रोजगार के नये अवसर—ज्योतिषी बनिये, जानिए की क्यों..??? 


===पंडित “विशाल” दयानंद शास्त्री…


(एक व्यंग लेख भारत में विज्ञापन आधारित ज्योतिषियों के सन्दर्भ में…ध्यान से इसे भी पढियेगा और फिर नीचे इसके जवाब को भी..!!!


किसी भी दैनिक या साप्ताहिक अखबार में प्रकाशित होने वाले सभी ज्योतिषियों और तांत्रिकों के विज्ञापनों पर एक नजर दौड़ायें । कई उत्साहित पाठक न सिर्फ विज्ञापन बल्कि उन ज्योतिषियों और तांत्रिकों के दफ्तर तक भी दौड़ लगा चुके होते हैं । 


मित्रों, यह धंधा चकाचक है । यह टोटली आपकी प्रतिभा पर निर्भर करता हैं कि आप सड़क पर बोर्ड लगाकर हाथ देखते हैं या फिर हवाई यात्रा करके किसी मंत्री के बेडरूम में पसर कर स्कॉच पीते हुये उसकी जन्मकुण्डली बांचते हैं । इधर फुटबाल के महाकुंभ में आपने आक्टोपस बाबा पाल की भविष्यवाणियों और बढ़ते यश का हाल तो देखा ही होगा ।देश और दुनिया में प्रसिद्द बेजानदारू वाला तक उनकी भविष्यवाणियों के आगे बेजान हो गये थे । 


बाबा पाल भविष्यवाणी करते करते इतने थक गये कि उन्होंने रिटायरमेंट की घोषणा कर दी । अच्छा ही किया । अपने देश जर्मनी को सेमीफाइनल में हरवा कर रिटायरमेंट ले लिये वर्ना जर्मनी की फुटबाल टीम वापस लौट कर उनके एक भी बाजू सलामत न छोड़ती ।


मित्रों, कोई नया धंधा स्टार्ट करने से पहले सर्वे जरूरी होता है । आप भी दो चार ज्योतिषियों या तांत्रिकों के ऑफिस जाकर देख आओ । न जा सको तो कोई बात नहीं मैं तफसील से समझाये देता हूँ । आफिस में दो कमरे होने चाहिये । एक रिसेप्शनिस्ट का कमरा दूसरे बाबा मस्तकलंदर का कमरा (एक गुप्त कमरा भी होना चाहिये जिसमें एक बेड पड़ा हो । इस कमरे में पुत्रवती होने का आशीर्वाद प्राप्त करने आयी सुघड़ महिलाओं को गुप्तरूप से दीक्षा दी जायेगी) । रिसेप्शन पर एक हसीन रिसेप्शनिस्ट रखो या फिर मुच्छड़ गैंडे जैसा पहलवान ये आपकी सोच पर निर्भर करता है । 


अनुभवी बाबा लोग जिनको अपनी प्रतिभा और ज्ञान पर पूरा भरोसा होता है (अपनी छठी इंद्री से जाना जाते हैं कि अब यह ग्राहक लौट कर दुबारा नहीं आयेगा) अपनी फीस काउंटर पर ही जमा करा लेते हैं । फीस आप ..0 रू0 से लेकर 1100 रू0 तक रख सकते हैं । काउंटर पर बैठी वह चंचल हसीना अपनी शोख अदाएं दिखाते हुये ग्राहक से कुछ गैर जरूरी सवाल पूछेगी जैसे आपका नाम, कहां से आये हैं, क्यों आये हैं, क्या तकलीफ है, किसको तकलीफ है और किससे तकलीफ है – बेटे, बेटी, पत्नी, सास, साले, साली, सरहज, भाई, भतीजा, रखैल, महिलामित्र इत्यादि । यह सारी जानकारी एक फाईल मे नोट करके वह फाईल बाबा नोटानंद तक आपके पहले ही भेज दी जाती है । 


कभी-कभी यह जानकारी आपके बगल में ग्राहक बन कर बैठे बाबा श्मशानानंद के पालतू भक्त आप से बात ही बात में पूछ लेते हैं और बाबा जोगियानंद को जाकर बता देते हैं । अब आप अपना नंबर पुकारे जाने पर उठ कर दरवाजे के उस पार जैसे ही पहुंचोगे बाबा त्रिशूलानंद जी सूअरों जैसी हंसी हंसते हुये कहेंगे ”पधारिये देवकीनंदन खत्री जी, क्या हुआ बेटी फिर घर से भाग गयी ! कोई बात नहीं । सब मालूम है मुझे । पहले यह काम एन. सी. आर. में हम भी किया करते थे । अब वो काम अपने चेलों को सौंप दिया है और आप लोगों की सेवा के लिये इस धंधे में उतर आये हैं ।” आप फटी ऑंखों से बाबा करैतनाथ को देखोगे और तड़ से उनके चरणों में दण्डवत । बाबा को तो बिना बताये ही दिल का हाल मालूम है ।


मित्रों जितना बड़ा इन्वेस्टमेंट उतना बड़ा प्राफिट । बाबा त्रिपुंडानंद का कमरा ए.सी. होना चाहिये और बाबा को लैपटाप पर पिट पिट करना भी आना चाहिये । असर पड़ता है । फर्स्ट इम्प्रेशन इज दी लास्ट इम्प्रेशन । चाचा खुराना को लैपटाप इनाम में मिल रहा है वो चाहें तो यह धंधा आजमा सकते हैं । चाचा चेहरे से अनुभवी भी दिखते हैं । मैं स्मार्ट फोन लेकर उनको भक्तों की पोलपट्टी देता रहूंगा । 


आजकल दोनो का समय अच्छा चल रहा है । जब तक पब्लिक की ऑंखे खुलेगी तब हम दोनो .5-.0 लाख का नफा समेट चुके होंगे । वो सब बाद की बात है । देखते हैं चाचा की क्या प्लानिंग है ।


अब थोड़ा ज्ञान की बात । दो-चार किताबें ज्योतिष और हस्तरेखाशास्त्र की पढ़नी होंगी । और एक किताब रत्नों के बारे में । ग्राहक को डराने के लिये शनी, राहू-केतू, नीच का मंगल और कालसर्प दोष का उच्चारण्ा बार बार करते रहना होगा । ग्रह शांति के लिये 5000 रू0 से लेकर 51000 रू0 तक की स्कीमें लैपटाप पर तैयार रखनी होंगी । 


इसके अलावा थोड़ा रत्नों की जानकारी भी होनी चाहिये । जयपुर से कौड़ियों के भाव रद्दी पत्थर थोक में खरीद लीजिये और हर ग्राहक को कम से कम एक पत्थर टिपाने की कोशिश कीजिये । पत्थर के मामले में एक बात मजेदार है कि आम आदमी इसकी कीमत का अनुमान भी नहीं लगा सकता है । पचास पैसे का लाल पत्थर मूंगा बता कर आप 5000 रू में बेच सकते हैं । यकीन नहीं आता । टीवी पर टेलीशापिंग वाले जो नवग्रह पत्थरों की माला या एक पत्थर की अंगूठी 2500 रू से 5000 रू तक में बेचते हैं उसका वास्तविक दाम 50 रू भी नहीं होता है । 


एक टोटका आप और कर सकते हैं । पहाड़ों से एक बोरा रूद्राक्ष मंगवा लीजिये । एक मुखी से लेकर चौदहमुखी तक के रूद्राक्ष आप चाहे तो भक्तों को फ्री में बांट दे या फिर 1100 से 5100 रू में बेच दें ।


मित्रों इस लेख में जो ज्ञान में आपको दे रहा हूँ इसकी रिसर्च करने में मेरा अब तक 20,000 रू0 खर्च हुआ है । आपको फ्री में दे रहा हूँ । आपको अगर मुफ्त की चीजों से घृणा टाईप कुछ है तो मेरी कंसलटेंसी फीस के रूप में आप जो भी चाहे 1100 रू0 या 2100 रू0 दे सकते हैं । मैं मना नहीं करूंगा ।


इस धंधे में किसी डिग्री की जरूरत नहीं है । बस अंधविश्वासी और कामचोर पैसेवाले भक्तों की जरूरत है जो सोचते हैं कि फला ग्रह की पूजा कराने से या फला पत्थर पहनने से उनके बिगड़े काम बन जायेंगे । असल में कर्म ही पूजा है । अब बस आप इस व्यंग लेख को पढ़ो और काम  पर लग जाओ । अगली कड़ी में एक नये रोजगार की बारीकियों के साथ फिर मुलाकत होगी । टिप्पणी करने मे कंजूसी मत दिखाईयेगा । बोलो बाबा व्यभिचारानंद की जय ।
नोट:—  बाबा मस्तकलंदर, नोटानंद, श्मशानानंद, जोगियानंद, त्रिशूलानंद, करैतनाथ, त्रिपुंडानंद, व्यभिचारानंद आदि नाम आपकी सहूलियत के लिये दिये गये हैं । 
धंधा शुरू करने पर आप इनमे से कोई भी नाम अपना सकते है।
नोट:— मेरा यहाँ इस लेख को लिखने का तात्पर्य केवल इतना हैं की आजकल इस विद्या का अनपढ़ एवं अज्ञानी लोगों ने मजाक बनाकर रख दिया हैं,इसे उसे उसी सन्दर्भ में पढ़ा -देखा जाये)…मेने साथ में इसका जवाब/उत्तर भी नीचे देने का प्रयास किया हैं…
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एक कड़वा सच यह भी हैं…


(ज्योतिष अपने आप में एक सम्पूर्ण विज्ञानं हैं…ज्योतिषी गलत हो सकता हैं,ज्योतिष नहीं..मित्रों..जहाँ सभी विज्ञानं का ज्ञान समाप्त हो जाता हैं वह से ज्योतिष विज्ञानं आरम्भ होती हैं..)


यह लगभग 12  वर्ष पुरानी घटना हैं,में साक्षात्कार देकर लौटते हुये मै ट्रेन मे रिजर्वेशन की तलाश मे भटक रहा था। ट्रेन मे तिल रखने तक की जगह नही थी। थकहार कर मै टायलेट के पास बैठे अपने ही जैसे यात्रियो के साथ बैठ गया। एक सहयात्री समय काटने के लिये लोगो का हाथ देख रहा था और विस्तार से सब कुछ बता रहा था। पास बैठे पिता-पुत्र की बारी आयी। पुत्र का हाथ देखते ही उसके माथे पर चिंता की लकीर उभर आयी। वह कुछ नही बोला। पिता को आशंका हुयी। वह पुत्र के बारे मे जानने व्यग्र हो उठा। एक कोने मे ले जाकर उस सहयात्री ने धीरे से बताया कि आपके पुत्र के हाथ को देखकर लगता है कि इसका कुछ समय पहले किसी से झग़डा हुआ है और ऐसा भी लगता है कि यह मर्डर करके भागा है। मै ने सोचा अब तो उस ज्योतिषी की खैर नही। ऐसा पिटेगा कि दम निकल जायेगा। पर हुआ उल्टा। पिता उनके पैरो मे गिर गया और बताया कि बिहार मे दोस्तो के साथ किसी झग़डे मे इन सब से किसी की हत्या हो गयी। कैसे भी मैने अपने बेटे को निकाला है। अब इसे मुम्बई ले जा रहा हूँ ताकि कुछ काम सीखने के बाद खाडी के देशो मे नौकरी मिल सके। मेरे आश्चर्य का ठिकाना नही रहा। मैने बहुत बार भविष्य़वाणियो के बारे मे सुना और पढा था पर उन्हे सच होते इतने करीब से नही देखा था। 


उस ज्योतिषी के दिव्य ज्ञान ने मुझे प्रेरित किया कि मै इस प्राचीन विज्ञान का विस्तार से अध्ययन करुँ। मैने ढेरो पुस्तके खरीदी पर बिना गुरु के सही ज्ञान नही प्राप्त कर सका। बाद मे जब मैने अन्ध-विश्वास हटाने वाली संस्था की सदस्यता ली तो ऐसे अभियानो मे जाने मिला जो ज्योतिषियो के खिलाफ थे। जब भी हमे अखबारो मे किसी ज्योतिषी का विज्ञापन दिखता हम उसके ठिकने पर पहुँच जाते। उल्टे-सीधे सवाल पूछकर उसका माखौल उडाते और फिर जब वह डरकर चला जाता तो वापस लौटकर अखबारो मे खबर छपवाते कि अन्ध-विश्वास नही चलेगा। अखबार ऐसी खबरे सुर्खियो मे छापते और इन खबरो मे अपना नाम देखकर हमारा सीना चौडा हो जाता। हम फिर नये मुर्गे की तलाश मे जुट जाते। कुछ समय तक यह सिलसिला चला फिर यह बात साफ होने लगी कि भगाये गये ज्योतिष दूसरे दिन वापस आ जाते थे। फिर उनके खिलाफ कोई अभियान नही होता था। इसी तरह जो शहर के ज्योतिषी थे उन्हे रोकने की हिम्मत किसी मे नही थी। घर के सदस्य और रिश्तेदार जब पंडित जी के पास जाते या पिताजी पंचाँग के अनुसार खेती करते तो बडा ही विचित्र लगता था। मन कचोटता था कि एक ओर हम इसे अन्ध-विश्वास कहकर लोगो की रोजी-रोटी छिन रहे है दूसरी ओर खुद हमारा समाज इसके आगे नत-मस्तक है। शादी-विवाह जैसे मामलो के लिये संस्था के सदस्यो को भी ज्योतिषीयो के पास जाना पडता था जिसका लाभ लेकर वे खुलेआम हमारा माखौल उडाते कि हमारे सदस्य कैसे इस विज्ञान पर विश्वास करते है। धीरे-धीरे समझ विकसित हुयी और जब एक ज्योतिष सम्मेलन मे दुनिया भर से आये विद्वानो से मिलवाने मेरे पारिवारिक मित्र मुझे जबरदस्ती ले गये तो मेरी आँखे खुली। मैने ज्योतिष को एक समृद्ध पारम्परिक ज्ञान की तरह पाया। उन्ही विद्वानो से पता चला कि कैसे भारतीय ज्योतिष के आगे सारी दुनिया नतमस्तक है। उसके बाद से मैने ज्योतिषीयो को पकडने के अभियान मे न जाने का निश्चय किया। सदस्यो ने पूछा तो मैने साफ-साफ हकीकत कह दी। कुछ ने समर्थन किया जबकि कुछ ने कहा कि हम ढोंगियो को पकडते है और हमारा इस विज्ञान से कोई बैर नही है। फिर भी मेरे प्रश्न अनुत्तरित थे। जब हममे से किसी ने इस विज्ञान को पढा नही, जाना नही तो कैसे हम यह तय करते है कि जिस पर हम कार्यवाही कर रहे है वह कितने पानी मे है? 


कुछ वर्षो पहले एक ऐसे हस्तरेखा विशेषज्ञ से मिलने का अबसर मिला जो लोगो को टीवी पर या मंच से सुनकर उनकी हू-बहू हस्तरेखाए बना देता है। हस्तरेखा से लोगो के बारे मे बताना तो ठीक है पर लोगो को सुनकर भला कैसे कोई हस्तरेखा बना सकता है? यह विशेषज्ञ अपनी मर्जी से ही व्यक्ति का चुनाव करता है और इस ज्ञान से अर्थ लाभ नही करता है। वह इसके प्रदर्शन के भी खिलाफ है। मुझे पता है कि यदि वह इस ज्ञान के साथ बाजार मे आये तो उसे लोगो के सिर आँखो मे बैठने मे जरा भी देर नही लगेगी। डिस्कवरी चैनल मे एक बार एक फिल्म आ रही थी जिसमे बताया गया था कि शीत युद्ध के दिनो मे अमेरीकी सेना ने एक ऐसे लोगो की टोली बनायी थी जो कल्पना के सहारे एक बन्द कमरे मे बैठकर दुश्मनो के बारे मे विशिष्ट जानकारी देते थे। आज ऐसी कोई बात भारत मे करे तो हमारा आधुनिक समाज इसे अन्ध-विश्वास घोषित करने मे जरा भी देर नही करेगा। इसी तरह की सोच ने आज भारतीय पारम्परिक ज्ञान को उसके अपने घर मे बेसहारा कर दिया है। 


मै ज्योतिष को विज्ञान मानता हूँ। आम तौर पर ज्योतिषीयो द्वारा की जाने वाली भविष्यवाणियो पर तरह-तरह के सवाल किये जाते है। ये भविष्य़वाणियाँ व्यवसायिक ज्योतिष से जुडे लोग अर्थार्जन के लिये करते है। इसी आधार पर ज्योतिष के विज्ञान होने पर सन्देह किया जाता है। लोगो के इस तर्क को सुनकर मुझे बरबस ही एक और विज्ञान की याद आ जाती है। वह है हम सब का प्यारा मौसम विज्ञान जिसकी भविष्य़वाणियाँ शायद की कभी सही होती है। शहर से लेकर गाँवो तक सब जानते है इस विज्ञान को और इसकी उल्टी भविष्य़वाणियो को। पर फिर भी कोई इसे ज्योतिष की तरह कटघरे मे खडा नही करता। देश मे इस विज्ञान के विकास के लिये अरबो खर्च किये जा रहे है। इसका एक प्रतिशत भी भारतीय ज्योतिष के उत्थान मे खर्च किया जाता तो इसे नया जीवन मिल जाता। 


कुछ वर्षो पहले एक किसान की हवाले से यह जानकारी स्थानीय अखबार मे छपी कि इस बार मछरिया नामक खरपतवार की संख्या को देखकर लगता है कि बारिश कम होगी। जैसी कि उम्मीद थी दूसरे ही दिन इसे अन्ध-विश्वास बताते हुये एक समाचार छप गया। किसान ने ठान लिया कि चुप रहने मे ही भलाई है। उस साल सचमुच बारिश कम हुयी। ऐसे ही वनस्पतियो और पशुओ के व्यवहार से मौसम की परम्परागत भविष्य़वाणी का विज्ञान अपने देश मे समृद्ध है। मौसम विज्ञानी इसे महत्व नही देते है पर जानकारी मिलने पर इस पर शोध-पत्र तैयार कर विदेशो मे प्रस्तुत करने का अवसर भी नही छोडते है। किसानो के पारम्परिक ज्ञान पर वाह-वाही लूटकर अवार्ड भी पा जाते है। 


कौआ-कैनी नामक खरपतवार जो कि बरसात मे खेतो मे उगता है, के फूलो को बन्द होता देखकर किसान यह पूर्वानुमान लगा लेते है कि मौसम बिगडने वाला है। इसी तरह सर्दियो मे उगने वाले कृष्णनील नामक खरपतवारो के फूलो से भी ऐसी ही जानकारी एकत्र की जाती है। मैने अपने सर्वेक्ष्णो के माध्यम से अब तक ऐसी 20,000 से अधिक पारम्परिक विधियो का दस्तावेजीकरण किया है। अब भी यह सागर मे एक बूँद के समान है। 


मुझे कभी-कभी लगता है कि पारम्परिक भारतीय ज्ञान की रक्षा के लिये और परम्पराओ और संस्कारो को नयी पीढी तक पहुँचाने के लिये लोगो को जोडकर एक ऐसा संगठन बनाऊँ जो इस विषय मे उपलब्ध तमाम जानकारियो को आम लोग तक तो पहुँचाये ही साथ ही इन्हे अन्ध-विश्वास बताकर अपनी दुकान चलाने वाले तथाकथित समाजसेवियो के खिलाफ भी आवाज उठाये। आखिर भारत मे रहकर उसकी परम्पराओ और संस्कारो को गलत ठहराना किसी अपराध से कम नही है।

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