पूजा करने की सही दिशा क्या है?


सामान्यत: पूर्वाभिमुख होकर अर्चना करना ही श्रेष्ठ स्थिति है। इसमें देव प्रतिमा (यदि हो तो) का मुख और दृष्टि पश्चिम दिशा की ओर होती है। इस प्रकार की गई उपासना हमारे भीतर ज्ञान, क्षमता, सामर्थ्य और योग्यता प्रकट करती है, जिससे हम अपने लक्ष्य की तलाश करके उसे आसानी से हासिल कर लेते हैं। पर विशिष्ट उपासनाओं में पश्चिमाभिमुख रहकर पूजन का वर्णन भी मिलता है। इसमें हमारा मुख पश्चिम की ओर होता है और देव प्रतिमा की दृष्टि और मुख पूर्व दिशा की ओर होती है।


पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री के अनुसार यह सच है कि कहीं भी किसी भी स्थान और दिशा में भक्ति-भाव से पूजा किया जाये तो वह सफल होता है। लेकिन वास्तु के नियम की बात करें तो मकान के पूर्व-उत्तर में पूजा का स्थान सर्वोत्तम माना गया है। इस स्थान पर पूजा स्थल होने से घर में रहने वालों को शांति, सुकून, धन, प्रसन्नता और स्वास्थ का लाभ मिलता है। सीढ़ियों या रसोई घर के नीचे, शौचालय के ऊपर या नीचे कभी भी पूजा का स्थान नहीं बनाना चाहिए।


यह उपासना पद्धति सामान्यत: पदार्थ प्राप्ति या कामना पूर्ति के लिए अधिक प्रयुक्त होती है। उन्नति के लिए कुछ ग्रंथ उत्तरभिमुख होकर भी उपासना का परामर्श देते हैं। दक्षिण दिशा सिर्फ षट्कर्मों के लिए इस्तेमाल की जाती है।


पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री के अनुसार घर अपना हो अथवा किराये का सभी अपने घर को सजाकर और संवार कर रखते हैं। और ऐसे में उनके लिए एक शोचनीय बात यह होती है कि अपने घर में भगवान के लिए कौन सा स्थान सही होगा। भगवान के लिए घर अर्थात पूजा घर या पूजा स्थल। यह बड़ा सवाल है कि घर में पूजा स्थल कौन सी जगह पर होनी चाहिए मूर्तियों या तस्वीरों की दिशा क्या होनी चाहिए। 


यह भी सच है कि आज जगह के आभाव में घर में अलग से पूजा का कमरा बनाना संभव नहीं है। फिर भी छोटा से छोटा घर में भी पूजा का स्थान जरूर होता है। 


कर्मकांड, तंत्र और वास्तु ये सब अलग-अलग विधाएं हैं। पर, इन्हें मिला देने से कभी-कभी विपरीत फल भी प्राप्त हो सकते हैं।


तंत्र शास्त्र और कर्मकांड में लक्ष्मी की विशिष्ट साधना के लिए पश्चिमाभिमुख होकर अर्चना का उल्लेख मिलता है।


पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री के अनुसार  वास्तु में पश्चिम की तरफ पीठ करके यानी पूर्वाभिमुख होकर बैठना ज्ञान प्राप्ति के लिए श्रेष्ठ माना जाता है।
बही वास्तु में सोने के लिए दक्षिण में सिर रखकर सोने का विवरण प्राप्त होता है और इसे ही धन प्राप्ति के लिए उत्तम माना जाता है। क्योंकि, चुंबकीय ऊर्जा दक्षिण से उत्तर की तरफ प्रवाहित होती है।
पश्चिम की तरफ सिर करके सोना सर में भारीपन व स्वास्थ्य समस्याओं के साथ अनेक अवांछित परिस्थितियों को जन्म देने वाला होता है।


पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री के अनुसार  उत्तर-पूर्व के कोण को ईशान कोण माना गया है। ईशान कोण वैसे भी देवताओं का स्थान माना गया है। यहां स्वयं भगवान शिव का भी वास होता है। देव गुरु बृहस्पति और केतु की दिशा भी ईशान कोण ही माना गया है। यही कारण है कि यह कोण पूजा-पाठ या अध्यात्म के लिए सबसे बेहतर होता है। 


यह भी ध्यान देने की बात है कि पूजा स्थल पर बीच में भगवान गणेश की तस्वीर या मूर्ति जरूर होनी चाहिए। मूर्तियां छोटी और कम वजनी ही बेहतर होती है। अगर कोई मूर्ति खंडित या क्षतिग्रस्त हो जाये तो उसे तुरंत पूजा स्थल से हटा कर कहीं बहते जल में प्रवाहित कर देना चाहिए। 


पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री के अनुसार भगवान का चेहरा कभी भी ढका नहीं होना चाहिए। यहां तक कि फूल-माला से भी चेहरा नहीं ढकना चाहिए। संभव हो तो पूजा स्थल ग्राउंडफ्लोर पर खुला और बड़ा होना चाहिए।


पूजास्थल सकारात्मक ऊर्जा का एक शक्तिशाली स्थान  होता है शक्ति का इसलिए ध्यान यह देना चाहिए कि घर में एक से अधिक पूजा स्थल नहीं होना चाहिए। अन्यथा परेशानी बढ़ सकती है। 


पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री के अनुसार  भगवान का मुंह दक्षिण मुखी कभी नहीं होना चाहिए। पूरब, पश्चिम और उत्तर मुखी हो सकते हैं। पूजा करने वाले की भी पूरब-पश्चिम की ओर ही मुंह कर पूजा करना चाहिए। पूजा घर में कोई अन्य सामान नहीं रखना चाहिए।


अगर आप अपने घर में सही स्थान और सही दिशा में पूजा स्थल बनवाकर सही तरीके से पूजा करते हों तो निश्चित रूप से वहां से साकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होगा। जो आपको स्वास्थ तो रखेगा ही सुखी और सामर्थ्यवान भी बनाएगा।
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जानिए पूजन में ध्यान रखने योग्य कुछ सामान्य नियम—-


पूजन में चावल(अक्षत) विशेष रूप से अर्पित किए जाते हैं। पूजन के लिए ऐसे चावल का उपयोग करना चाहिए जो खंडित या टूटे हुए ना हो। चावल चढ़ाने से पहले इन्हें हल्दी से पीला कर लेना चाहिए। पानी में हल्दी घोलकर उसमें चावल को डूबो कर पीला किया जा सकता है।


पूजन में पान का पत्ता भी अर्पित किया जाता है। ध्यान रखें केवल पान का पत्ता अर्पित ना करें, इसके साथ इलाइची, लौंग, गुलकंद आदि भी चढ़ाना चाहिए। पूरा बना हुआ पान अर्पित करेंगे तो श्रेष्ठ रहेगा।


देवी-देवताओं के समक्ष घी और तेल, दोनों के ही दीपक जलाने चाहिए। यदि आप प्रतिदिन घी का दीपक घर में जलाएंगे तो घर के कई वास्तु दोष दूर हो जाएंगे।


पूजन में हम जिस आसन पर बैठते हैं, उसे पैरों से इधर-उधर खिसकाना नहीं चाहिए। आसन को हाथों से ही खिसकाना चाहिए।


किसी भी भगवान के पूजन में उनका आवाहन करना, ध्यान करना, आसन देना, स्नान करवाना, धूप-दीप जलाना, अक्षत, कुमकुम, चंदन, पुष्प, प्रसाद आदि अनिवार्य रूप से होना चाहिए।


देवी-देवताओं को हार-फूल, पत्तियां आदि अर्पित करने से पहले एक बार साफ पानी से जरूर धो लेना चाहिए।


घर में या मंदिर में जब भी कोई विशेष पूजा करें तो इष्टदेव के साथ ही स्वस्तिक, कलश, नवग्रह देवता, पंच लोकपाल, षोडश मातृका, सप्त मातृका का पूजन अनिवार्य रूप से किया जाना चाहिए।



किसी भी प्रकार के पूजन में कुल देवता, कुल देवी, घर के वास्तु देवता, ग्राम देवता आदि का ध्यान करना आवश्यक है।

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