प्रिय मित्रों/पाठकों, इस बार शरद पूर्णिमा रविवार ( .. अक्तूबर, .020) को मनाई जाएगी। ऐसा कई वर्षों में पहली बार हो रहा है जब शरद पूर्णिमा और शनिवार का संयोग बना है। इस दिन पूरा चंद्रमा दिखाई देने के कारण इसे महापूर्णिमा भी कहते हैं। इस दिन चन्द्रमा .6 कलाओं से युक्त होता है, इसलिए इस दिन का विशेष महत्व बताया गया है। आश्चिन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा शरद पूर्णिमा के रुप में मनाई जाती है|

वैदिक ज्योतिष विज्ञान में मन का स्वामी चन्द्रमा को माना गया है। चन्द्रमा को भगवान शिव के मस्तक पर सुशोभित करने का अभिप्रायः भी यही है कि मन सर्वोपरि है। कहते हैं न ‘मन जीता तो जग जीता’। यदि मन शुद्ध है तो आपका जीवन निश्चित ही शिवमय (कल्याणकारी) होगा। संसार में जो कुछ भी शिवमय है, वह स्वयं सत्यमय है और जो भी सत्यमय है वही तो सुन्दरतम है। सत्यं -शिवम -सुंदरम।

ज्योतिष विज्ञान की गहरी से गहरी खोजें भी इस बात की पुष्टि करती हैं कि चन्द्रमा यदि दोषयुक्त है तो व्यक्ति का मानसिक संतुलन गड़बड़ा जाता है। कैलिफोर्निया विश्वविद्द्यालय के शोधार्थियों ने जेल में बंद कुछ मानसिक रोगियों पर जो अनुसन्धान किये हैं उनके नतीजे चौंकाने वाले हैं। उनका कहना है महीने में दो बार उन कैदियों की गतिविधियों में अभूतपूर्व बदलाव देखने में आता है उनमे से कुछ अत्यधिक उग्र और उत्पाती हो जाते हैं जबकि कुछ एकदम शांत और शालीन। जब इन तिथियों को भारतीय पंचांग से मिलाया गया, तो ये तिथियाँ अमावस्या और पूर्णिमा या उनसे एक दो दिन आगे पीछे की तिथियाँ थी। स्त्रियों का मासिक चक्र भी चन्द्रमा की गतियों से ही निर्धारित होता है। यदि मानसिक रोगों से ग्रस्त व्यक्ति के जीवन में चन्द्रमा और अमावस्या इन दो तिथियों पर विशेष ध्यान देकर उसके व्यवहार को आँका जा सके,तो विज्ञान कहता है ऐसे मानसिक रोगियों को सदा के लिए ठीक किया जा सकता है।

किसी भी जन्म-पत्रिका का विश्लेषण करते समय चंद्रमा का अध्ययन अति आवश्यक है क्योंकि संसार में सबका पार पाया जा सकता है परन्तु मन का नहीं। संसार के सारे क्रिया-कलाप मन पर ही टिके हुये हैं तथा मन को तो एक सफल ज्योतिषी ही अच्छी तरह से पढ़ सकता है। सामान्यतः हम सुनते आए है कि हमारा मन नहीं लग रहा अथवा हमारा मन तो बस इसी में लगता है। जन्म-पत्रिका में यदि चन्द्रमा शुभ ग्रह से सम्बन्ध करता है तो उसमें अमृत-शक्ति का प्रादुर्भाव होता है तथा यदि वह अशुभ ग्रह अथवा पाप ग्रह से सम्बन्ध करता है तो विभिन्न विकार उत्पन्न करता है। यह सम्बन्ध किसी भी रूप में हो सकता है यथा युति सम्बन्ध, दृष्टि सम्बन्ध, राशि सम्बन्ध या नक्षत्र सम्बन्ध। विष यानि जहर। विष का जीवन में किसी भी प्रकार से होना मृत्यु अथवा मृत्यु तुल्य कष्ट का परिचायक है।

जन्म-पत्रिका में चन्द्रमा तथा शनि के सम्बन्ध से विष योग का निर्माण होता है। दूसरे शब्दों में चन्द्रमा पर शनि का किसी भी रूप से प्रभाव हो चाहे दृष्टि सम्बन्ध या अन्य, यह योग जीवन में विष योग के परिणाम देता है। विष योग को पुनर्फू योग भी कहते हैं। किसी भी जन्म-पत्रिका में यह युति सर्वाधिक रूप से बुरे फल प्रदान करती है। इसमें चन्द्रमा तथा शनि दोनों से संबन्धित शुभ फलों का नाश होता है। युति सम्बन्ध केवल शनि तथा चन्द्रमा के साथ-साथ बैठने से ही नहीं होता है अपितु दोनों का दीप्तांशों में समान होने पर ही यह युति होती है। दोनों ग्रह जितने अधिक अंशानुसार साथ होंगे उतना ही यह योग प्रभावशाली होगा साथ ही उसी अनुपात में नकारात्मक भी।

चन्द्रमा शनि के कारण निर्मित विष योग के कुयोग से मुक्ति शरद पर्णिमा के रात्रि को चन्द्रमा का अभिषेक-पूजन द्वारा भी प्राप्त की जा सकती हैं |चन्द्रमा के तांत्रिक या वैदिक मंत्र द्वारा चन्द्रमा का अभिषेक करना चाहिए | इस शरद पूर्णिमा पर चंद्र शनि विष योग से मुक्ति संबंधी अधिक जानकारी हेतु संपर्क करें–09039390067 ….

किसी भी कुंडली में चंद्रमा की स्थिति बहुत महत्वपूर्ण होती है। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में चन्द्रमा शुभ ग्रह के साथ है तो व्यक्ति को जीवन कई सुख प्राप्त होते हैं। जबकि चंद्रमा अशुभ ग्रह अथवा पाप ग्रह से संबंधित हो तो व्यक्ति को बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। शनि चंद्र का योग युति, दृष्टि, अंश आदि किसी भी प्रकार से बनता हो उसमें नक्षत्र का विशेष महत्व होता है अर्थात जब शनि चन्द्रमा के नक्षत्र रोहिणी, हस्त तथा श्रवण में हो अथवा चन्द्रमा शनि के नक्षत्र पुष्य, अनुराधा तथा उत्तरा-भाद्रपद में हो या शनि तथा चन्द्रमा एक ही राशि में हों तो विष योग/पुनर्फू योग का निर्माण होता है। यदि नक्षत्र मित्र राशि या परम मित्र राशि में है तो समस्या कर जल्दी ही चली जाती है मन की स्थिति खराब नहीं होती है किन्तु यदि नीच राशि का चन्द्रमा शनि के साथ (वृश्चिक राशि तथा अनुराधा नक्षत्र) बहुत निम्न स्थिति का निर्माण करता है – व्यक्ति का मानसिक रोगी होना निश्चित है।

विशेष
आम लोग और सरकार ध्यान रखें की इस शरद पूर्णिमा से फाल्गुन पूर्णिमा 2019 के देश में दंगे-फसाद, साम्प्रदयिक वैर भाव, भीषण अग्निकांड,आगजनी जैसी घटनाएं संभावित हैं ||

जानिए कुंडली में कैसे बनता हैं शनि-चंद्र के कारण बनता है विष योग
यदि कुंडली में चंद्र और शनि एक साथ होते हैं तो विष योग बनता है। यदि चंद्र पर शनि की नजर पड़ रही है, तब भी विष योग का असर रहता है। यह योग अशुभ फल प्रदान करने वाला है। कुंडली के जिस भाव में विष योग बनता है, उससे संबंधित अशुभ फल व्यक्ति को मिलते हैं। इस योग से व्यक्ति का मन अधिकतर दुखी रहता है और वह अकेलापन महसूस करता है। इस शरद पूर्णिमा पर चंद्र शनि विष योग से मुक्ति संबंधी अधिक जानकारी हेतु संपर्क करें–09039390067 ….

  • यदि चन्द्रमा शनि किसी भाव में युति संबंध बनाते है, तो विषयोग का निर्माण होता है।
  • जब जन्म कुण्डली के लग्न भाव में जब शनि की तीसरी सातवीं एवं 10वीं दृष्टि पड़ रही हो तो विष योग का निर्माण माना जाता है।
  • जब जन्म कुण्डली में कर्क राषि में पुष्य नक्षत्र में हो और चन्द्रमा मकर राषि में श्रवण नक्षत्र का हो और दोनों का स्थान परिवर्तन योग हो या शनि और चन्द्र विपरीत स्थिति में हो और दोनों की एक दूसरे पर दृष्टि हो तब विषयोग की स्थिति बनती है।
  • जब किसी कुंडली में सूर्य अष्टम भाव में, चन्द्र षष्टम भाव में और शनि 12 वे भाव में होने पर भी इस अषुभ योग का निर्माण होता है।
  • जब किसी जन्म कुण्डली में आठवे स्थान पर राहू हो और शनि, मेष, कर्क, सिंह, या वृष्चिक लग्न में हो तो विषयोग का निर्माण होता है।
  • यदि शनि-चन्द्रमा पर राहु की दृष्टि भी हो जाये तो आग में घी का काम होता है – धन-नाश, स्वास्थ्य हानि, रक्त-विकार, नेत्र कष्ट, छाती के रोग तथा माता को कष्ट होना निश्चित है।

माता का कारक है चंद्र
चंद्र माता का कारक ग्रह है इसीलिए इसकी स्थिति से माता के जुड़ी बातें मालूम हो सकती हैं। विष योग होने से व्यक्ति को माता के स्वास्थ्य के कारण परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इस योग से माता के सुख में कमी आती है। माता और संतान के विचार अलग-अलग होते हैं। इस योग का असर माता की आयु पर भी हो सकता है।

विष योग के कारण वैवाहिक जीवन में आती हैं परेशानियां
जब विष योग सप्तम भाव में हो तो व्यक्ति के जीवन में बहुत अधिक मानसिक तनाव बना रहता है। विवाह होने में बाधाएं आती हैं। विष योग के कारण विवाह हो जाता है तो जीवन साथी से मतभेद रहते हैं। विचार अलग-अलग होने से वाद-विवाद की स्थिति भी बनती है।
अधिकतर साधु-संतों की कुंडली में होता है ये योग
यदि कुंडली के चतुर्थ भाव में विष योग हो तो व्यक्ति उदासीन बना रहता है। पूर्ण चन्द्रमा यदि वैरागी ग्रह शनि के साथ हो तो व्यक्ति उच्च कोटि का तत्व-चिंतक संत होता है। चतुर्थ भाव में यह योग व्यक्ति को पूर्णतः उदासीन बना देता है। उदासीन साधु-संन्यासियों की जन्म-पत्रिका में शनि से प्रभावित चन्द्रमा प्रायः पाया जाता है। अधिकतर साधु-संतों की कुंडली में शनि से प्रभावित चन्द्रमा रहता है। विष योग के कारण शनि और चंद्र के विपरीत स्वभाव के कारण सफलता भी आसानी से नहीं मिलती है। बार-बार बाधाएं आती हैं। द्वितीय भाव में यह योग हो तो वाणी दोष होता है। चतुर्थ भाव में विष योग हो तो मन दुखी रहता है। यदि शनि-चन्द्रमा पर राहु की दृष्टि भी हो जाये तो यह बहुत अशुभ योग हो जाता है। विष योग के कारण धन-नाश, स्वास्थ्य हानि और माता को कष्ट हो सकते हैं। चन्द्रमा बलवान हो तो नुकसान कम होते हैं।

इस विष योग युति के जन्म कुंडली के सभी भाव में फल निम्न प्रकार हैं –

  • किसी भी कुंडली के लग्न में यह युति प्राणघातक सिद्ध होती है, अन्य प्रबल योग ही जीवन-शक्ति प्रदान करते हैं।
  • किसी भी कुंडली के द्वितीय भाव में यह योग माता को मृत्यु तुल्य कष्ट प्रदान करता है, कभी-कभी दूसरी स्त्री का योग भी बनता है।
  • किसी भी कुंडली के तृतीय भाव में यह युति पुत्र-सन्तान के लिए घातक सिद्ध होती है।
  • किसी भी कुंडली के चतुर्थ भाव में यह युति व्यक्ति को शूरवीर हंता बनाती है।
  • किसी भी कुंडली के पंचम भाव में इस युति से सुलक्षण जीवन साथी तो मिलता है परन्तु वैवाहिक जीवन में अधूरापन रहता है।
  • किसी भी कुंडली के छठे भाव में इस युति से व्यक्ति रोगी तथा अल्पायु होता है।
  • किसी भी कुंडली के सप्तम भाव में यह युति व्यक्ति को विचारों से धार्मिक बनाती है परन्तु जीवन साथी के लिए मृत्यु तुल्य योग बनता है, बहु पत्नी/पति योग भी बनता है।
  • किसी भी कुंडली के अष्टम भाव में यह योग दानवीर कर्ण जैसी दानशीलता प्रदान करता है।
  • किसी भी कुंडली के नवम भाव में इस योग से लम्बी धार्मिक यात्राएं प्राप्त होती हैं।
  • किसी भी कुंडली के दशम भाव में इस योग से व्यक्ति उच्च सम्मान के साथ-साथ महा कंजूस होता है।
  • किसी भी कुंडली के एकादश भाव में यह योग शारीरिक पीड़ा प्रदान करता है, व्यक्ति धर्म से विमुख होकर नास्तिक बनता है।
  • किसी भी कुंडली के द्वादश भाव में यह योग वैराग्य भाव उत्पन्न नहीं करता है परन्तु व्यक्ति धर्म के नाम पर पैसा लेता है।

विष योग निवारक उपाय

  • विष योग से निवारण हेतु देवाधिदेव भगवान शंकर का रुद्राभिषेक भी लाभकारी होता हैं ||
  • रात्रि को अपने पलंग के नीचे परात में जल रखें तथा सुबह उठते ही हरे पौधों में डालें।
  • रोज शिवलिंग पर जल चढ़ाएं।
  • हनुमान चालीसा का पाठ करें।
  • रात्रि में सिरहाने एक गिलास दूध रखकर सुबह बबूल के वृक्ष पर लगातार चालीस दिन तक चढ़ाएं।
  • गरीबों को काला कंबल दान करें।
  • हर शनिवार तेल का दान करें।
  • सोमवार तथा पूर्णिमा को नमक का पूर्ण त्याग करें।
  • शनिवार को खीर का दान करें।
  • सोमवार से प्रारम्भ कर एक गिलास दूध रात्रि को सिर के पास रख कर सोएं तथा सुबह किसी कुएं में लगातार 40-43 दिन तक डालें।
  • शनिवार को पीपल की कम से कम 7 परिक्रमा करें।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here