कब होगा आपको धन लाभ..????

. धनभाव में बुध तथा शुक्र हो। 
. अष्ठम में शुभ ग्रह और केन्द्र में धनेश तथा लाभेश हो। 
. लाभ में धनेश तथा धन में लाभेश। 
4 त्रिकोण या केन्द्र में लाभेश हो तथा एकादश में पाप ग्रह हो तो उक्त योगों में उत्पन्न व्यक्ति धनी होता है।
धन भाव में लग्नेश एवं लाभ भाव में धनेश तथा लाभेश लग्न में हो तो गड़े हुए धन की प्राप्ति होती हैं। 
गड़े हुए धन का विचार वैसे तो चतुर्थ भाव से करना चाहिए। यहां इसको लाने का अभिप्राय बिना परिश्रम से धन प्राप्त करने से हैं। अचानक धन प्राप्ति के लिए पंचम भाव का विशेष महत्व होता हैं। यदि कुण्डली में लग्नेश लाभ भाव में , लाभेश लग्न या धन भाव में तथा धनेश लग्न में हो या यह तीनों भावेश एक साथ इन तीनों भाव में हो या इन तीनों भावों तथा भावेशों का आपस में सम्बन्ध बन रहा हो तो बिना परिश्रम से धन लाभ होता हैं। तथा इन्हें लाटरी आदि भी लगती हैं।

स्वोपार्जित धन प्राप्ति योग—-
धन स्थान का स्वामी यदि लग्नेश से युक्त वा द्रष्ट हो तो अपने बाहुबल द्वारा धन पाता हैं। कुम्भ में शनि , मेष में चन्द्रमा , धनु में सूर्य तथा मकर में शुक्र हो तो ऐसा जातक अपने पिता का धन उपभोग नहीं करता हैं तथा अपने आप धन कमाता हैं। 

भाई से धन प्राप्ति —-

1 तृतीय भाव में लग्नेश तथा धनेश हो तथा वे बलवान या वैशैषिकांश में होकर तृतीयेश से दृष्ट वा युक्त हो तो। 
2 धन भाव में तृतीयेश तथा भ्रातृकारक ग्रह मंगल हो तथा वह लग्नेश से द्रष्ट होकर वैशेषिकांश में हो तो इन योगों में उत्पन्न व्यक्ति अपने भाई के धन को पाता है। 
3 तृतीय एवं एकादश द्वारा भाई का विचार करना चाहिए। तृतीय स्थान से छोटे भाई तथा एकादश द्वारा बड़े भाई का विचार करना चाहिए। षष्ठ स्थान तथा बुध से चचेरे भाई का विचार करना चाहिए। यदि बुध का सम्बन्ध तृतीय एवं एकादश भाव से होने पर तथा उपरोक्त योग होने पर भाई की जगह बहिन द्वारा धन लाभ समझें। 
4 धन स्थान, भाग्य स्थान, चतुर्थ स्थान का सम्बन्ध मंगल, तृतीय एवं एकादश स्थान के स्वामी से होने पर भी भाई या बहिन द्वारा लाभ होता हैं। 
5 धनेश लग्न में हो एवं तृतीयेश की इनसे युति या द्रष्टि हो या कोई अन्य सम्बन्ध हो। 
6 चतुर्थ भाव में मंगल हो या चतुर्थेश मंगल के साथ हो तथा तृतीयेश एवं धनेश का इस से सम्बन्ध हो तृतीयेश गुरू के साथा धन भाव में हो एवं लग्नेश का इन से किसी भी प्रकार का सम्बन्ध हो। 
7 नवमेश एवं तृतीयेश एक साथ तृतीय , धन या भाग्य भाव में हो। 
8 नवमेश व तृतीयेश एक साथ होने तथा शुभ ग्र्रह द्वारा द्रष्ट होने पर भ्राता से कुछ न कुछ सहयोग अवश्य मिलता हैं। 

पिता से धन लाभ —-

1 बलवान धनेश दशमेश तथा पितृकारक सूर्य से द्रष्ट या युक्त हो। 
2 चतुर्थ स्थान में सूर्य हो तो इस योग में उत्पन्न व्यक्ति पिता से धन प्राप्त करता है। 
3 चन्द्रमा से चतुर्थ या प्रथम में सूर्य हो तथा सुखेश से द्रष्ट हो। 
4 लग्न में सूर्य हो तथा दशमेश से युक्त हो एवं लग्नेश से युक्त या द्रष्ट हो तो इन योगों में उत्पन्न व्यक्ति पिता के कोश को प्राप्त करता हैं।  

पुत्र से धन प्राप्ति —
1 बलवान धनेश यदि पंचमेश तथा पुत्रकारक गुरू से युक्त व द्रष्ट हो। 


स्त्री से धन प्राप्ति—

1 सप्तमेश और स्त्रीकारक ग्रह (शुक्र) से युक्त या द्रष्ट बलवान धनेश हो। 
2 धन में शुभ ग्रह राशि हो और उसमें बलवान बहुत ग्रह हो तो इन योग में स्त्री द्वारा धन प्राप्त होता हैं। 

 पं. दयानन्द शास्त्री 
विनायक वास्तु एस्ट्रो शोध संस्थान ,  
पुराने पावर हाऊस के पास, कसेरा बाजार, 
झालरापाटन सिटी (राजस्थान) 326023
मो0 नं0 … .

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here