राहु कष्टदायक नहीं भाग्यदायक हैं…!!!!

राहु के शुभ होने पर व्यक्ति को कीर्ति, सम्मान, राज वैभव व बौद्धिक उपलब्धता प्राप्त होती हैं परन्तु राहु के अशुभ होने पर जो राहु की महादशा, अन्र्तदशा, प्रत्यन्तर व द्वादश भावों में राहु की स्थिति के दौरान व्यक्ति को कई तरह की परेशानियों व कष्टों का सामना भोगना पड़ता हैं। मिथुन, कन्या, तुला, मकर और मीन राशियाँ राहु की मित्र राशि है तथा कर्क और सिंह शत्रु राशिया है। यह ग्रह शुक्र के साथ राजस तथा सूर्य एवं चन्द्र के साथ शत्रुता का व्यवहार करता है। बुध, शुक्र, गुरू को न तो अपना मित्र समझता है और नहीं उससे किसी प्रकार की शत्रुता ही रखता है यह अपने स्थान से पाँचवे, सातवे, नवे स्थान को पूर्ण दृष्टि से देखता हैं
कलियुग में राहु का प्रभाव बहुत है अगर राहु अच्छा हुआ तो जातक आर.एस. या आई.पी.एस., कलेक्टर राजनैता बनता है। इसकी शक्ति असीम है। सामान्य रूप से राहु के द्वारा मुद्रण कार्य फोटोग्राफी नीले रंग की वस्तुए, चर्बी, हड्डी जनित रोगों से पीडि़त करता है। राहु के प्रभाव से जातक आलसी तथा मानसिक रूप से सदैव दुःखी रहता है। यह सभी ग्रहों में बलवान माना जाता है तथा वृष और तुला लग्न में यह योगकारक रहता है।
राहु के कारण व्यक्ति को निम्नांकित परेषानियों का सामना करना पड़ता हैं: – 
. नौकरी व व्यवसाय में बाधा 
.. मानसिक तनाव व अशांति  
.. रात को नींद न आना  
4. परीक्षाओं में असफलता प्राप्त होना 
5. कार्य में मन न लगना 
6. बेबुनियाद ख्यालों में उलझे रहना 
7. अचानक धन का अधिक खर्च होना या धन रूक-रूक कर प्राप्त होना 
8. बिना सोचे समझे कार्य करना 
9. दुर्जनों व दुष्टों से मित्रता 
1.. पति-पत्नी में तनाव व नीच स्त्रियों से सम्बन्ध होना 
11. पेट व आंतडि़यों के रोग होना 
12. बनते कार्यो में रूकावट होना। 
13. पुलिस व कानूनी परेशानियां तथा सरकार की तरफ से दण्ड 
14. घर व भौतिक सुखों की कमी 
15. धन,   चरित्र, स्वास्थ्य की तरफ से लापरवाही। 

जन्म पत्रिका के विभिन्न भावो  में राहु के प्रभाव:- 

प्रथम भाव: दुष्ट बुद्धि, दुष्ट स्वभाव, सम्बन्धियों को ठगने वाला, मस्तक का रोगी, विवाद में विजय व रोगी होता हैं। 
द्वितीय भाव: कठोर कर्मी, धन नाशक, दरिद्र, भ्रमणशीला होता हैंै। 
तृतीय भाव: शत्रुओं के ऐश्वर्य को नष्ट करने वाला, लोक में यशस्वी, कल्याण व ऐश्वर्य पाने वाला, सुख व विशाल को पाने वाला, भाईयों की मृत्यु करने वाला, पशु नाशक, दरिद्र, पराक्रमी होता हैं। 
चतुर्थ भाव: दुखी, पुत्र-मित्र सुख रहित, निरतंर भ्रमणशील व उदर रोगी बनाता हैं। 
पंचम भाव: सुखहीन, मित्रहीन, उदर-शुल रोगी, विलास में पीड़ा, भ्रमित व उदर रोगी बनाता हैं। 
षष्ठ भाव: शत्रु बल नाशक, द्रव्य लाभ पाने वाला, कमर में दर्द, म्लेच्छो से मित्रता व बलवान होता हेै। 
सप्तम भाव: स्त्री विरोधी, स्त्री नाशक, प्रचण्ड क्रोधी, स्त्री से विवाद करने वाला, रोगी स्त्री प्राप्त करता हैं। 
अष्ठम भाव: नाश करने वाला, गुदा में पीड़ा, प्रमेह रोग, अंड वृद्धि, शत्रुओं के कारण व्याकुल व क्रोधी बनाता हैं। 
नवम् भाव: क्रोध में धन नष्ट करने वाला, अल्प सुखी, निरन्तर भ्रमणशील, दरिद्री, सम्बन्धियों का अल्प सुख शरीर पीड़ा युक्त व वात रोगी बनाता हैं। 
दशम भाव: पितृ सुख रहित, अभागा, शत्रुनाशक, रोगी वाहनहीन, वात रोगी 
एकादश भाव: सभी प्रकार से धन, सुख का लाभ पाने वाला, सरकार से सुख, वस्त्राभूषण, पशु से लाभ, यंत्र-तंत्र विजय, मनोरथ सिद्धि को प्राप्त करने वाला। 
द्वादश भाव: नेत्र रोगी, पांव में चोंट, निश्चित प्रेम करने वाला, दुष्टों का स्नेही, पाखंडी, कामी, अविवेकी, चिन्तातुर व खर्चीला होता हैं। 

विषोत्तरी महादषा में राहु का फलादेष: —-

राहु की महादशा में जातक को मतिभ्रम, सर्वशुन्य, विपत्ति कष्ट रोग, धन-नाश, प्रिय-वियोग, मृत्युतुल्य कष्ट या अनेक प्रकार के दुखों का सामना करना पड़ता हैं। 
सूर्य की महादशा में राहु का अन्तर हो तो व्यक्ति को व्याधि, अपमान, शंका, धन-नाश, जन-हानि, आदि प्रकार के कष्टों को झेलना पड़ता हैं। 
चन्द्रमा की महादशा में राहु का अन्तर हो तो व्यक्ति को शत्रु, रोग, अग्नि आदि का भय, धन का नाश, बन्धु बान्धवों का नाश आदि दुखों का सामना करना पड़ता हैं। इस अतरकाल में सुख प्राप्त करना कठिन होता हैं। 
मंगल की महादशा में राहु का अन्तर हो तो व्यक्ति देवता, ब्राह्मण, आदि का पूजन करता हैं तथा तीर्थ यात्रा का लाभ उठाता हैं परन्तु सरकारी भय बना रहता हैं। 
राहु की महादशा में राहु का अन्तर हो तो व्यक्ति के भाई या पिता की मृत्यु, शरीर के रोग, धन का नाश, विदेश यात्रा तथा सम्मान की हानि होती हैं तथा अनेक प्रकार के कष्ट भोगने पड़ते हैं। 
बृहस्पति की महादशा में राहु का अन्तर हो तो व्यक्ति को भाई-बन्धुओं से घबराहट, रोग मृत्यु एवं कलह की प्राप्ति होती हैं। 
शनि की महादशा में राहु का अन्तर हो तो व्यक्ति को वात पीड़ा, ज्वर, अतिसार जैसी बीमारियां होती हैं तथा वह शत्रुओं से पराजित होता हैं। धन का नाश होता हैं तथा विभिन्न प्रकार से पतन के गड्डे में गिरता हैं। 
बुध की महादशा में राहु का अन्तर हो तो व्यक्ति को शत्रु से पीड़ा व अग्नि का भय और आकस्मिक रूप से धन का नाश होता हैं। 
केतु की महादशा में राहु का अन्तर हो तो व्यक्ति को चोरों का भय, शत्रुओं से विरोध तथा अन्य कष्टों का सामना करना पड़ता हैं तथा अंग-भंग होने का खतरा भी बना रहता हैं। 
शुक्र की महादशा में राहु का अन्तर हो तो व्यक्ति को चाण्डाल मनुष्यों से कलेश, भाई-बन्धुओं से कलेश तथा आकस्मिक भय प्राप्त होता हैं। 

जन्म कुण्डली के विभिन्न भावों में स्थित राहु अपने दोषी प्रभाव को निम्नानुसार प्रकट करता है: –
1 प्रथम, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ, सप्तम, नवम, दशम तथा एकादश भाव में राहु की स्थिति शुभ नहीं मानी जाती हैं। परन्तु कुछ विद्वान तीसरे, छठे तथा ग्यारहवें भाव राहु की स्थिति को शुभ भी मानते हैं। 
2 नीच अथवा धनु राशि का राहु, अशुभ फल देता हैं। 
3 यदि राहु शुभ भावी का स्वामी होकर अपने भाव से छठे अथवा आठवें स्थान पर बैठा हो तो अशुभ फल देता हैं। 
4 यदि राहु श्रेष्ट भाव का स्वामी होकर सूर्य के साथ बैठा हो अथवा शुक्र व बुध के साथ बैठा हो तो अशुभ फल देता हैं।
5 सिंह राशिस्थ अथवा सूर्य से दृष्ट राहु अशुभ होता हैं। 
6 जन्म कुण्डली में राहु की अशुभ स्थिति हो तो राहु कृत पीड़ा के निवारणार्थ राहु-शांति के उपाय अवश्य कराने चाहिए।    

राहु के कष्टो के निवारणार्थ निम्न उपाय करें –    
               
 01.मंगलवार , शनिवार श्री हनुमान जी को छुवारे ं ( खारक ) का प्रसाद अर्पण करें और बच्चो में बाटें 
02.गरीबो को कम्बल , साबुन , या नमक का दान करें । 
03.बन्दरों को बैंगन या फल खिलाये । श्री हनुमान जी को यथा संभव गुड़ , चनें का भोग रविवार , मंगलवार , व शनिवार को लगावें ।                     
04.बहतें पानी में कोयले बहायं। भगवान शिव को पिण्ड खजूर का प्रसाद अर्पण करें और बांटें । 
05.ताम्र पात्र का ही जल पीयें । और संभव हो तो ताम्र गिलास में ही जल पिवंे ।
06.प्रत्येक रविवार को श्री हनुमान जी को 11 या 21 लोगं की माला पहनाए और बजरंग बाण का पाठ करे ।

पं0 दयानन्द शास्त्री 
विनायक वास्तु एस्ट्रो शोध संस्थान ,  
पुराने पावर हाऊस के पास, कसेरा बाजार, 
झालरापाटन सिटी (राजस्थान) 326023
मो0 नं0 … .

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