पूजन के वक्त सावधानियां—


कुछ ऎसी गूढ़ बातें हैं जो देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना के वक्त ध्यान जरूर दी जानी चाहिए। 
घर या व्यावसायिक स्थल में पूजा का स्थान हमेशा ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) दिशा में ही होना चाहिए।


पूजा हमेशा आसन पर बैठकर पूर्व दिशा की ओर मुख करके ही करनी चाहिए। दीपक अवश्य जलाएं।


दो शिवलिंग की पूजा एक साथ नहीं करनी चाहिए, लेकिन नर्बदेश्वर, पारदेश्वर शिवलिंग और सालिगराम घर में शुभ होते हैं।


धर्म शास्त्रों के अनुसार तुलसी पत्र ऎसे दिन नहीं तोड़ने चाहिए, जिस दिन सूर्य संक्रांति हो, पूर्णिमा, द्वादशी, अमावस्या तिथि हो, रविवार का दिन हो, व्यतिपात, वैधृति योग हो। रात्रि और संध्याकाल में भी इन्हें नहीं तोड़ना चाहिए।


भगवान गणपति के दूब चढ़ानी चाहिए, जिससे भगवान गणपति प्रसन्न होते हैं। जबकि देवी के दूब चढ़ाना निषेध बताया गया है।


घी का दीपक हमेशा देवताओं के दक्षिण में 
तथा तेल का दीपक बाई तरफ रखना चाहिए। 


इसी प्रकार धूपबत्ती बाएं और नैवेद्य (भोग) 
सन्मुख रखना चाहिए।


दो सालिगराम जी, दो शंख और दो सूर्य भी पूजा में एक साथ नहीं रखें। सालिगराम बिना प्राण प्रतिष्ठा के भी पूजा योग्य है।


तीन गणेश व तीन दुर्गा की भी घर में एक साथ रखकर पूजा नहीं करनी चाहिए। ऎसा करने पर जातक दोष का भागी बनता है।


देवताओं को खंडित फल अर्पण नहीं करने चाहिए। जैसे- आधा केला, आधा सेब आदि। 


पूजा के पश्चात देसी घी से प्रज्वलित दीपक से आरती अवश्य करनी चाहिए। यदि दीपक किसी कारणवश उपलब्ध नहीं हो, तो केवल जल आरती भी की जा सकती है। आरती करने से पूजा में संपूर्णता आ जाती है।


देवताओं पर चढ़े हुए जल और पंचामृत को निर्माल्य कहा जाता है, जिसे पैरों से स्पर्श नहीं करना चाहिए। क्योंकि इससे बहुत बड़ा पाप लगता है। इसे किसी पेड़ में या बहते हुए जल में विसर्जित कर देना चाहिए।


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