सावन का पहला सोमवार व चतुर्थी का दुर्लभ योग..जानें व्रत व पूजा विधि—-



हिन्दू धर्म में व्रत परंपरा और देव स्मरण मानव को प्रकृति के नियम और व्यवस्थाओं से जोड़कर जीवन को सुखी और स्वस्थ्य रखने का बेहतरीन उपाय माने गए हैं। यही कारण है हर माह, तिथि व वार अनेक देवी-देवता की पूजा-उपासना को समर्पित हैं। इसी कड़ी में सावन माह व सोमवार का दिन भगवान शिव की पूजा-आराधना का विशेष काल है।
सावन मास को श्रावण भी कहते हैं, जिसका अर्थ है सुनना। इसलिए यह भी कहा जाता है इस महीने में सत्संग, प्रवचन व धर्मोपदेश सुनने से विशेष फल मिलता है।

यह महीना और भी कई कारणों से विशेष है क्योंकि इस दौरान भक्ति, आराधना तथा प्रकृति के कई रंग देखने को मिलते हैं। यह महीना भगवान शंकर की भक्ति के लिए विशेष माना जाता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार इस मास में विधि पूर्वक शिव उपासना करने से मनचाहे फल की प्राप्ति होती है। सावन में ही कई प्रमुख त्योहार जैसे- हरियाली अमावस्या, नागपंचमी तथा रक्षा बंधन आदि आते हैं।

सावन में प्रकृति अपने पूरे शबाब पर होती है इसलिए यह भी कहा जाता कि यह महीना प्रकृति को समझने व उसके निकट जाने का है। सावन की रिमझिम बारिश और प्राकृतिक वातावरण बरबस में मन में उल्लास व उमंग भर देती है। अगर यह कहा जाए कि सावन का महीना पूरी तरह से शिव तथा प्रकृति को समर्पित है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी।


खासतौर पर सावन माह के हर सोमवार के व्रत फल शिव कृपा से सारी मनोकामनाओं को पूरा करने वाला माना गया है। 

इस वर्ष सावन माह में चार सोमवार के व्रत .8, .5 जुलाई व 1 और 8 अगस्त को रखे जाएंगे। इसी व्रत परंपरा में कल (18 जुलाई) को पहले सावन सोमवार का व्रत रखा जाएगा। इस बार सावन के पहले सोमवार के साथ चतुर्थी तिथि का भी शुभ योग है। चतुर्थी तिथि के देवता बुद्धिदाता गणेश हैं। 

यही कारण है कि धार्मिक दृष्टि से इस बार सावन का पहला सोमवार तन, मन और धन से जुड़े सभी सुखों और कामनाओं कों पूरा करने का बहुत अचूक अवसर माना जा रहा है। इसलिए जानते हैं कल सावन के पहले सोमवार के व्रत विधान और आसान पूजा की विधि – 

सोमवार व्रत विधि – 

सोमवार व्रत में भगवान भगवान शंकर के साथ माता पार्वती और श्री गणेश की भी पूजा की जाती है। व्रती यथाशक्ति पंचोपचार या षोडशोपचार विधि-विधान और पूजन सामग्री से पूजा कर सकता है। व्रत स्त्री-पुरुष दोनों कर सकते हैं। शास्त्रों के मुताबिक सोमवार व्रत की अवधि सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक है। सोमवार व्रत में उपवास रखना श्रेष्ठ माना जाता है, किंतु उपवास न करने की स्थिति में व्रती के लिए सूर्यास्त के बाद शिव पूजा के बाद एक बार भोजन करने का विधान है। सोमवार व्रत एक भुक्त और रात्रि भोजन के कारण नक्तव्रत भी कहलाता है। 

सावन के पहले सोमवार की पूजा विधि – 

– प्रात: और सांयकाल स्नान के बाद शिव के साथ माता पार्वती, गणेश जी, कार्तिकेय और नंदी जी पूजा करें।  चतुर्थी तिथि होने से श्री गणेश की भी विशेष पूजा करें। 

– पूजा में मुख पूर्व दिशा या उत्तर दिशा की ओर रखें। पूजा के दौरान शिव के पंचाक्षरी मंत्र ॐ नम: शिवाय और गणेश मंत्र जैसे ॐ गं गणपतये बोलकर भी पूजा सामग्री अर्पित कर सकते हैं। 

– पूजा में शिव परिवार को पंचामृत यानी दूध, दही, शहद, शक्कर, घी व जलधारा से स्नान कराकर, गंध, चंदन, फूल, रोली, वस्त्र अर्पित करें। शिव को सफेद फूल, बिल्वपत्र, सफेद वस्त्र और श्री गणेश को सिंदूर, दूर्वा, गुड़ व पीले वस्त्र चढ़ाएं। 

– बेलपत्र, भांग-धतूरा भी शिव पूजा में चढ़ाएं। शिव को सफेद रंगे के  पकवानों और गणेश को मोदक यानी लड्डूओं का भोग लगाएं। 

– भगवान शिव व गणेश के जिन स्त्रोतों, मंत्र और स्तुति की जानकारी हो, उसका पाठ करें। 

– श्री गणेश व शिव की आरती सुगंधित धूप, घी के पांच बत्तियों के दीप और कर्पूर से करें। 

– अंत में गणेश और शिव से घर-परिवार की सुख-समृद्धि की कामनाएं करें। 

पहले सोमवार को शिव पर चढ़ाएं यह विशेष सामग्री – 

सावन के पहले सोमवार को शिव पूजा में भगवान शिव को कच्चे चावल चढ़ाने का विशेष महत्व है।

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इस स्त्रोत से प्रसन्न होंगे शिव—

सावन में शिव भक्ति का फल कई गुना मिलता है, यह धर्म ग्रंथों में भी लिखा है। 18 जुलाई को सावन का पहला सोमवार है। इस दिन की गई शिव पूजा से कई जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं और हर कार्य में सफलता मिलती है। नीचे लिखे स्त्रोत से यदि शिवजी की उपासना की जाए तो भगवान शंकर अति प्रसन्न होते हैं।

शिव पंचाक्षर स्त्रोत—-

नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांग रागाय महेश्वराय

नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मे न काराय नम: शिवाय:॥

मंदाकिनी सलिल चंदन चर्चिताय नंदीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय

मंदारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय तस्मे म काराय नम: शिवाय:॥

शिवाय गौरी वदनाब्जवृंद सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय

श्री नीलकंठाय वृषभद्धजाय तस्मै शि काराय नम: शिवाय:॥

वषिष्ठ कुभोदव गौतमाय मुनींद्र देवार्चित शेखराय

चंद्रार्क वैश्वानर लोचनाय तस्मै व काराय नम: शिवाय:॥

यज्ञस्वरूपाय जटाधराय पिनाकस्ताय सनातनाय

दिव्याय देवाय दिगंबराय तस्मै य काराय नम: शिवाय:॥

पंचाक्षरमिदं पुण्यं य: पठेत शिव सन्निधौ

शिवलोकं वाप्नोति शिवेन सह मोदते॥

शिव पंचाक्षर स्त्रोत भक्तों की हर मनोकामना पूरी करता है।

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.इस अचूक मंत्र से पाएं शिव-शनि कृपा—

हिन्दू माह सावन शिव भक्ति के  लिए जाना जाता है। इसे सावन महोत्सव भी पुकारा जाता है। सावन की शुरुआत इस वर्ष शनिवार के साथ हुई है। हिन्दू धर्मशास्त्रों में शनिवार शनि की उपासना का भी शुभ दिन है। शनि भी शिव भक्त बताए गए हैं। शिव भक्ति ने ही शनि को सबल व पूजनीय बना दिया। यही कारण है कि शिव-शनि भक्ति दोनों ही जीवन के लिये सुखदायी मानी गई है। इसलिए शनिवार के साथ सावन के शुभारंभ की घड़ी में शिव-शनि उपासना से आप सांसारिक इच्छाओं की पूर्ति के साथ संकट व पीड़ाओं से छुटकारा भी पा सकते हैं।

किसी भी रूप में शिव भक्ति शनि दोष या कोप का शमन करने वाली मानी गई है। इसलिए पीड़ादायक शनि दशा, साढ़े साती या शनि दोष शांति के लिए यहां बताया जा रहा शिव उपासना का मंत्र बहुत ही असरदार माना गया है।

शिव का यह मंत्र काल, रोग, दु:ख के नाश के लिए अचूक उपाय है। यह मंत्र है महामृत्युंजय मंत्र। इस मंत्र को रुद्राक्ष की माला और कुश के आसन पर बैठ शिव व शनि की नीचे बताई शास्त्रोक्त पूजा सामग्रियों को चढ़ाने के बाद करें –

– सूर्यादय के पूर्व जागकर स्नान करें। घर या देवालय में शिव पर पवित्र जल में काले तिल डालकर अर्पित करें। चंदन, अक्षत, सफेद फूल, बिल्वपत्र चढाएं।

– इसी तरह शनिदेव की प्रतिमा पर तेल अर्पित कर गंध, फूल, काले तिल, काला वस्त्र चढ़ाकर पूजा करें।

– शिव को सफेद रंग के पकवान तो शनि को तेल के पकवान का भोग लगाएं।

– शिव-शनि की पूजा के बाद नीचे लिखे महामृत्युंजय मंत्र का जप कम से कम 1.8 बार जरूर करें –

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।

उर्वारूकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥

– मंत्र जप पूजा के बाद शिव व शनि की आरती करें। शिव की आरती में गाय का घी व कर्पूर व शनि आरती तेल के दीप से करें तो शुभ फलदायी होती है।
– पूजा-आरती के बाद शिव व शनि से निरोगी, निर्भय व सुखी जीवन की कामना के साथ सावन माह का मंगल आरंभ करें।

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इसलिए सावन में चमत्कारी होती है शिव पूजा—



हिंदू पंचांग के पांचवे महीने को श्रावण या सावन कहते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस मास के दौरान या पूर्णिमा के दिन आकाश में श्रवण नक्षत्र का योग बनता है इसलिए श्रवण नक्षत्र के नाम से इस माह का नाम श्रावण रखा गया है। धार्मिक दृष्टि से भी श्रावण मास का विशेष महत्व है। धर्म ग्रंथों के अनुसार सावन मास में शिव आराधना का विशेष फल मिलता है। इस महीने में भक्त अलग-अलग माध्यमों से शिव भक्ति में डूब जाते हैं। सावन में प्रकृति की छटा भी देखते ही बनती है। रिमझिम बारिश, झूले और इनके साथ ही शिव की भक्ति, सावन के महीने को पूरी तरह धर्ममय बना देती है।
शिव की सत्ता में विश्वास करने वाले शैव ग्रंथों में भगवान शिव सृष्टि की रचना, पालन और विनाशक शक्तियों के स्वामी हैं। यही कारण है कि शिव आराधना किसी भी वक्त, काल और युग में सांसारिक बाधाओं को दूर करने वाली मानी गई है। लेकिन सावन माह, उसकी तिथियां या सोमवार पर शिव भक्ति जल्द मनोरथ सिद्धि की दृष्टि से बाकी माहों व तिथियों से तुलनात्मक रूप से श्रेष्ठ मानी गई है। इसके पीछे धर्मग्रंथों में बताई कुछ खास पौराणिक मान्यताएं हैं –

एक पौराणिक मान्यता के मुताबिक मरकंडू ऋषि के पुत्र मारकण्डेय ने लंबी आयु के लिए सावन माह में ही घोर तप कर शिव कृपा प्राप्त की। जिससे मिली मंत्र शक्तियों के सामने मृत्यु के देवता यमराज भी नतमस्तक हुए।

इसी तरह ही दूसरी मान्यता है – अमरनाथ गुफा में भगवान शंकर द्वारा माता पार्वती के सामने अमरत्व का रहस्य उजागर करना।

जिसके मुताबिक अमरनाथ की गुफा में जब भगवान शंकर अमरत्व की कथा सुनाने लगे तो इस दौरान माता पार्वती को कुछ समय के लिए नींद आ गई। किंतु उसी वक्त इस कहानी को वहां उपस्थित शुक यानि तोते ने सुना। जिससे वह शुक अमरत्व को प्राप्त हुआ। तब गोपनीयता भंग होने से भगवान शंकर के कोप से बचकर निकला यही शुक बाद में शुकदेव जी के रुप में जन्मा। जिन्होंने नैमिषारण्य क्षेत्र में यही अमर कथा भक्तों को सुनाई।

मान्यता है कि इसी स्थान पर भगवान शंकर ने ब्रह्मा और विष्णु के सामने सृष्टि चक्र की रक्षा और जगत कल्याण के लिए शाप दिया कि आने वाले युगों में इस अमर कथा को सुनने वाले अमर न होंगे। किंतु इस कथा को सुनकर हर भक्त पूर्व जन्म और वर्तमान जन्म में किए पाप और दोषों से मुक्त होकर शिवलोक को प्राप्त होगें। विशेष रूप से सावन के माह में इस अमर कथा का पाठ या श्रवण जनम-मरण के बंधन मुक्त कर देगा।

ऐसे पौराणिक महत्व से ही श्रावण मास में शिव आराधना को शुभ और शीघ्र फलदायी  माना जाता है। जिसमें शिव पूजा, अभिषेक, शिव स्तुति, मंत्र जप, शिव कथा को पढऩा-सुनना सभी सांसारिक कलह, अशांति व संकटों से रक्षा करते हैं। श्रावण मास में शिव उपासना ग्रह दोष और पीड़ा का अंत करने वाली भी मानी गई है।


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भारत के सभी शिवालयों में श्रावण सोमवार पर हर-हर महादेव और बोल बम बोल की गूँज सुनाई देगी। श्रावण मास में शिव-पार्वत‍ी का पूजन बहुत फलदायी होता है। इसलिए सावन मास का बहुत मह‍त्व है।

क्यों है सावन की विशेषता? :- हिन्दू धर्म की पौराणिक मान्यता के अनुसार सावन महीने को देवों के देव महादेव भगवान शंकर का महीना माना जाता है। इस संबंध में पौराणिक कथा है कि जब सनत कुमारों ने महादेव से उन्हें सावन महीना प्रिय होने का कारण पूछा तो महादेव भगवान शिव ने बताया कि जब देवी सती ने अपने पिता दक्ष के घर में योगशक्ति से शरीर त्याग किया था, उससे पहले देवी सती ने महादेव को हर जन्म में पति के रूप में पाने का प्रण किया था।

अपने दूसरे जन्म में देवी सती ने पार्वती के नाम से हिमाचल और रानी मैना के घर में पुत्री के रूप में जन्म लिया। पार्वती ने युवावस्था के सावन महीने में निराहार रह कर कठोर व्रत किया और उन्हें प्रसन्न कर विवाह किया, जिसके बाद ही महादेव के लिए यह विशेष हो गया।

सावन में शिवशंकर की पूजा :- सावन के महीने में भगवान शंकर की विशेष रूप से पूजा की जाती है। इस दौरान पूजन की शुरूआत महादेव के अभिषेक के साथ की जाती है। अभिषेक में महादेव को जल, दूध, दही, घी, शक्कर, शहद, गंगाजल, गन्ना रस आदि से स्नान कराया जाता है। अभिषेक के बाद बेलपत्र, समीपत्र, दूब, कुशा, कमल, नीलकमल, ऑक मदार, जंवाफूल कनेर, राई फूल आदि से शिवजी को प्रसन्न किया जाता है। इसके साथ की भोग के रूप में धतूरा, भाँग और श्रीफल महादेव को चढ़ाया जाता है।

महादेव का अभिषेक :- महादेव का अभिषेक करने के पीछे एक पौराणिक कथा का उल्लेख है कि समुद्र मंथन के समय हलाहल विष निकलने के बाद जब महादेव इस विष का पान करते हैं तो वह मूर्च्छित हो जाते हैं। उनकी दशा देखकर सभी देवी-देवता भयभीत हो जाते हैं और उन्हें होश में लाने के लिए निकट में जो चीजें उपलब्ध होती हैं, उनसे महादेव को स्नान कराने लगते हैं। इसके बाद से ही जल से लेकर तमाम उन चीजों से महादेव का अभिषेक किया जाता है।

बेलपत्र और समीपत्र :- भगवान शिव को भक्त प्रसन्न करने के लिए बेलपत्र और समीपत्र चढ़ाते हैं। इस संबंध में एक पौराणिक कथा के अनुसार जब 89 हजार ऋषियों ने महादेव को प्रसन्न करने की विधि परम पिता ब्रह्मा से पूछी तो ब्रह्मदेव ने बताया कि महादेव सौ कमल चढ़ाने से जितने प्रसन्न होते हैं, उतना ही एक नीलकमल चढ़ाने पर होते हैं। ऐसे ही एक हजार नीलकमल के बराबर एक बेलपत्र और एक हजार बेलपत्र चढ़ाने के फल के बराबर एक समीपत्र का महत्व होता है।

बेलपत्र ने दिलाया वरदान : बेलपत्र महादेव को प्रसन्न करने का सुलभ माध्यम है। बेलपत्र के महत्व में एक पौराणिक कथा के अनुसार एक भील डाकू परिवार का पालन-पोषण करने के लिए लोगों को लूटा करता था। सावन महीने में एक दिन डाकू जंगल में राहगीरों को लूटने के इरादे से गया। एक पूरा दिन-रात बीत जाने के बाद भी कोई शिकार नहीं मिलने से डाकू काफी परेशान हो गया।

इस दौरान डाकू जिस पेड़ पर छुपकर बैठा था, वह बेल का पेड़ था और परेशान डाकू पेड़ से पत्तों को तोड़कर नीचे फेंक रहा था। डाकू के सामने अचानक महादेव प्रकट हुए और वरदान माँगने को कहा। अचानक हुई शिव कृपा जानने पर डाकू को पता चला कि जहाँ वह बेलपत्र फेंक रहा था उसके नीचे शिवलिंग स्थापित है। इसके बाद से बेलपत्र का महत्व और बढ़ गया।

विशेष सजावट : सावन मास में शिव मंदिरों में विशेष सजावट की जाती है। शिवभक्त अनेक धार्मिक नियमों का पालन करते हैं। साथ ही महादेव को प्रसन्न करने के लिए किसी ने नंगे पाँव चलने की ठानी, तो कोई पूरे सावन भर अपने केश नहीं कटाएगा। वहीं कितनों ने माँस और मदिरा का त्याग कर दिया है।

काँवरिए चले शिव के धाम : सावन का महीना शिवभक्तों के लिए खास होता है। शिवभक्त काँवरियों में जल लेकर शिवधाम की ओर निकल पड़ते हैं। शिवालयों में जल चढ़ाने के लिए लोग बोल बम के नारे लगाते घरों से निकलते हैं। भक्त भगवा वस्त्र धारण कर शिवालयों की ओर कूच करते हैं।

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