‎******भगवती दुर्गा की पूजा का विधान*************************************


जिसके श्रवनमात्र से घोर विपत्तियाँ स्वयं भाग जाती हैं! जो इन भगवती दुर्गा की उपासना नहीं करता हो, ऐसा तो इस जगत में हो ही नहीं सकता, क्योंकि वे सब की उपासना, सबकी जननी, शैवी एवं शक्ति देवी बड़ी ही अद्भुत हैं! ये भगवती दुर्गा सबकी बुद्धि की अधिदेवी हैं, अंतर्यामीरूप से सब के भीतर इनका वास रहता है! घोर संकट से रक्षा करने के कारण जगत में ये दुर्गा नाम से प्रसिद्द हैं! शैव और वैष्णव पुरुषों द्वारा निरंतर इनकी उपासना होती है! इन मूलप्रकृति श्री दुर्गा देवी के सत्प्रयास से जगत की सृष्टि, स्थिति और संहार होते हैं! अब इनके उत्तम नवाक्षर मन्त्र का वर्णन करता हूँ!


सरस्वती बीज { ऐं}
भुवनेश्वरी बीज { ह्रीं }


और कामबीज {क्लीं}—इन तीनों बीजों का आड़ू में क्रमश: प्रयोग करके ” चामुंडायै” इस पद को लगाकर, फिर “विच्चे” यह दो अक्षर जोड़ देना चाहिये, { ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे} यही मनुप्रोक्त नवाक्षर मन्त्र है! उपासकों के लिये यह कल्पवृक्ष के समान है! इस नवार्ण मन्त्र के ब्रह्मा, विष्णु और रूद्र–ये तीन ऋषि कहे जाते हैं! महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती देवता हैं तथा रक्तदंतिका, दुर्गा एवं भ्रामरी बीज हैं! नंदा, शाकम्भरी और भीमा शक्तियां कही गयी हैं! धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति के लिये इस मन्त्र का प्रयोग किया हाता है! ऐं ह्रीं क्लीं —तीन बीज मन्त्र, चामुंडायै ये वहार अक्षर तथा विच्चे में दो अक्षर–ये मन्त्र के अंग हैं! प्रतेयक के साथ नम:, स्वाहा, वषट, हुम, वौषट और फट –ये छ: जातीसंज्ञक वर्ण लगाकर शिखा, दोनों नेत्र, दोनों कान, नासिका, मुख और गुदा आदि स्थानों में इस मन्त्र के वर्णों का न्यास करना चाहिये!


ध्यान —–इस प्रकार है———


महाकाली जी का ध्यान —–


तीन नेत्रों से शोभा पाने वाली भगवती महाकाली की मैं उपासना करता हूँ! वे अपने हाथों में खडग, चक्र, गदा, बाण, धनुष, परिध, शूल, भुशुण्डी, मस्तक और शंख धारण कराती हैं! वे समस्त अंगों में दिव्य आभूषणों से विभूषित हैं! उनके शरीर की कान्तिनीलमणि के समान है!तथा वे दस मुख और दस पैरों से युक्त हैं! कमलासन ब्रह्मा जी ने मधु-कैटभ का वध करने के लिये इन महाकाली की उपासना की थी! इस प्रकार काम बीज स्वरूपिणी भगवती महाकाली का ध्यान करना चाहिये!


महालक्ष्मी जी का ध्यान———–


जो अपने हाथों में अक्षमाला, फरसा, गदा, बाण, वज्र, पद्म, धनुष, कुण्डिका, दंड, शक्ति, खडग, ढाल, घंटा, मधुपात्र, त्रिशूल, पाश और सुदर्शनचक्र धारण कराती हैं, जिनका वर्ण अरुण है, तथा जो लाल कमल पर विराजमान हैं, उन भगवती महिषासुरमर्दिनी भगवती महालक्ष्मी जी का मैं भजन करता हूँ!


महासरस्वती जी का ध्यान—–


जो अपने करकमलों में घंटा, शूल, हल, शंख, मूसल, चक्र, धनुष और बाण धारण करती हैं, कुंद के समान जिनकी मनोहर कान्ति है, जो शुम्भ आदि दैत्यों का नाश करने वाली हैं, वाणी बीज जिनका स्वरुप है तथा जो सच्चिदानन्दमय विग्रह से संपन्न हैं, उन भगवती महासरस्वती जी का मैं भजन करता हूँ!
इस प्रकार विनियोग लगा कर माँ भगवती दुर्गा जी का पूजा विधान कहा गया है! जो पुरुष विधानानुसार पाठ करता है, उसकी सभी कामनाएं भगवती दुर्गा जी अतिशीघ्र पूरी कराती हैं!——


{सत्यं सत्यं न संशय———सत्य है सत्य है, इस में कोई संशय नहीं है!}
—–ऐसा जान———
************************************************************

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here