श्री हनुमान जी का व्रत खंडित हुआ—–
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:- श्री हनुमान जी का व्रत खंडित हुआ —–

हनुमान जी ने कहा आज मेरा व्रत खंडित हुआ! बड़ा पश्चात्ताप, महान दुःख! इस अंतर्वेदना की कक्पना करना सर्वसामान्य के लिये संभव नहीं है! जिसने कोई व्रत, कोई नियम दीर्घकाल तक पालन किया हो, उससे किसी प्रमादवश अनजान में वह नियम टूट जाय, तब उसे कुछ थोड़ा अनुभव होता है कि व्रत-भंग की वेदना कैसे होती है!

हनुमान जी कहते हैं– मैं मरणांत प्रायश्चित करूंगा! 


हनुमान जी ने लंका में प्रवेश किया था रात्रि में और उन्हें पता तो था नहीं कि रावण ने श्री जनकनंदिनी को कहाँ रखा है! अत: वे राक्षसों के घर में घूमते फिरे! रावण का अन्त:पुर छान मारा उन्होंने! श्री जानकी को ढूँढ़ना है तो स्त्रियाँ जहाँ रह सकती हैं वहीँ तो ढूँढ़ना पड़ता! वे राक्षसों के अन्त:पुर थे, संयमियों के नहीं! सुरापान एवं उन्मत्त विलास ही राक्षसों का व्यसन था! वे अपनी उन्मद-क्रीडा के अनन्तर निद्रामग्न हो चुके थे! लगभग प्रत्येक गृह में अस्त-व्यस्त वस्त्राभरण,नग्न, अर्धनग्न निद्रा में पड़ी युवतियां ही देखने को मिलीं! उस अवस्था में परस्त्री को देखना सदगृहस्थ के लिये भी बहुत बड़ा दोष है! हनुमान जी तो ब्रह्मचारी थे!


कोई अनर्थ हो, कुछ कर बैठे, इससे पूर्व जैसे हृदय में प्रकाश हो गया! अन्तस्थित रघुवंशविभूषण अपने आश्रितों की रक्षा ही करते हैं! हनुमान जी के मन में बात स्पष्ट हुई–किसी नारी के सौन्दर्य पर तो मेरी दृष्टि नहीं गयी! मैं तो माता जानकी को ढूँढ़ रहा था! मेरे मन में तो कहीं कोई विकार आया नहीं! ये जो स्त्रियों के देह मुझे देखने पड़े, यह सब शव-जैसे ही तो हैं मेरी दृष्टि में! तब मेरा व्रत-भंग कैसे हुआ? मेरा व्रत भंग नहीं हुआ, मेरा व्रत भंग नहीं हुआ कहते हुए उछल पड़े!
व्रत का मूल मन है, देह नहीं! हनुमान जी के व्रत में कोई त्रुटी नहीं आयी थी! उनके मन में जो पश्चात्ताप जगा था, वह ब्रह्मचर्य-व्रत के प्रति उनकी जो प्रबल निष्ठा और सतत जाग रूकता है, उसी का सूचक है!


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