ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया कि मलमाल में .6. वर्ष बाद ऐसा शुभ संयोग बन रहा है और इसके बाद ऐसा शुभ मलमास .0.9 में आएगा।

इस वर्ष अधिक मास में 15 दिन शुभ योग रहेगा। अधिक मास के दौरान सर्वार्थ सिद्धि योग 9 दिन, द्विपुष्कर योग 2 दिन, अमृत सिद्धि योग 1 दिन और पुष्य नक्षत्र का योग 2 दिन बन रहा है। पुष्य नक्षत्र भी रवि और सोम पुष्य होंगे।

मान्य पौराणिक सिद्धांतों के अनुसार, इस मास के दौरान यज्ञ-हवन के अलावा श्रीमद् देवीभागवत, श्री भागवत पुराण, श्री विष्णु पुराण, भविष्योत्तर पुराण आदि का श्रवण, पठन, मनन विशेष रूप से फलदायी होता है।

ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री बताते हैं कि अधिक मास के अधिष्ठाता भगवान विष्णु जी हैं, इसीलिए इस पूरे समय में भगवान विष्णु जी के मंत्रों का जाप विशेष लाभकारी होता है। हिंदू धर्म में जहां मलमास का विशेष महत्व है, वहीं ज्योतिष शास्त्र के लिहाज से भी इसे काफी विशेष माना जाता है। इस वर्ष जो मलमास आने वाला है, उसे काफी शुभ माना जा रहा है।

18 सितंबर 2020 को पंचांग के अनुसार प्रतिपदा की तिथि है. इस दिन चंद्रमा और सूर्य दोनों ही ग्रह कन्या राशि में विराजमान रहेंगे। मलमास की शुरूआत इसी दिन से होने जा रही है। अधिक मास को मलमास, पुरुषोत्तम मास के नामों से भी जाना जाता है. मलमास में भगवान विष्णु की पूजा करने से सभी प्रकार की मनोकामनाएं पूर्ण होती है। अधिक मास में कुछ नियम भी बताए गए हैं, इन नियमों का पालन करने से अधिक मास में भगवान विष्णु का आर्शाीवाद प्राप्त होता है।

भारतीय हिंदू कैलेंडर सूर्य मास और चंद्र मास की गणना के अनुसार चलता है। भारतीय गणना पद्धति के अनुसार प्रत्येक सूर्य वर्ष 365 दिन और करीब 6 घंटे का होता है, वहीं चंद्र वर्ष 354 दिनों का माना जाता है। दोनों वर्षों के बीच लगभग 11 दिनों का अंतर होता है, जो हर तीन वर्ष में लगभग एक मास के बराबर हो जाता है। इसी अंतर को पूरा करने के लिए हर तीन साल में एक चंद्र मास अस्तित्व में आता है, जिसे अतिरिक्त होने के कारण अधिकमास का नाम दिया गया है।

धनु व मीन राशि के सूर्य को खरमास=मलमास की संज्ञा देकर व सिंह राशि के बृहस्पति में सिंहस्थ दोष दर्शाकर भारतीय भूमंडल के विशेष क्षेत्र गंगा और गोदावरी के मध्य (धरती के कंठ प्रदेश से हृदय व नाभि को छूते हुए) गुह्य तक उत्तर भारत के उत्तरांचल, उत्तरप्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, राजस्थान, राज्यों में मंगल कर्म व यज्ञ करने का निषेध किया गया है, जबकि पूर्वी व दक्षिण प्रदेशों में इस तरह का दोष नहीं माना गया है।

वनवासी अंचल में क्षीण चन्द्रमा अर्थात वृश्चिक राशि के चन्द्रमा (नीच राशि के चन्द्रमा) की अवधि भर ही टालने में अधिक विश्वास रखते हैं, क्योंकि चंद्रमा मन का अधिपति होता है तथा पृथ्वी से बहुत निकट भी है, लेकिन धनु संक्रांति मलमास में वनवासी अंचलों में विवाह आयोजनों की भरमार देखी जा सकती है, किंतु सामाजिक स्तर पर उनका अनुसंधान किया जाए तो इस समय में किए जाने वाले विवाह में एक-दूसरे के प्रति संवेदना व समर्पण की अपेक्षा यौन विकृति व अपराध का स्तर अधिक दिखाई देता है।

उत्तरभारत में यज्ञ-अनुष्ठान का बड़ा महत्व रहा है। इस महत्व पर संस्कार के निमित्त एक कथा इस प्रकार है कि पौष मास में ब्रह्मा ने पुष्य नक्षत्र के दिन अपनी पुत्री का विवाह किया, लेकिन विवाह समय में ही धातु क्षीण हो जाने के कारण ब्रह्मा द्वारा पौष मास व पुष्य नक्षत्र श्रापित किए गए।

इस तरह के विज्ञान की कई रहस्यमय बातों को कथानक द्वारा बताई जाने के पौराणिक आख्यानों में अनेक प्रसंग मिलते हैं, इसलिए धनु संक्रांति सूर्य पौष मास में रहने व मीन सूर्य चैत्र मास में रहने से यह मास व पुष्य नक्षत्र भी विवाह में वर्जित किया गया है।

जानिए मलमास का महत्व

हिंदू धर्म के अनुसार प्रत्येक जीव पंचमहाभूतों से मिलकर बना है। इन पंचमहाभूतों में जल, अग्नि, आकाश, वायु और पृथ्वी सम्मिलित हैं। अपनी प्रकृति के अनुरूप ही ये पांचों तत्व प्रत्येक जीव की प्रकृति न्यूनाधिक रूप से निश्चित करते हैं। अधिकमास में समस्त धार्मिक कृत्यों, चिंतन- मनन, ध्यान, योग आदि के माध्यम से साधक अपने शरीर में समाहित इन पांचों तत्वों में संतुलन स्थापित करने का प्रयास करता है। इस तरह अधिकमास के दौरान किए गए प्रयासों से व्यक्ति हर तीन साल में स्वयं को बाहर से स्वच्छ कर परम निर्मलता को प्राप्त कर नई उर्जा से भर जाता है।

अधिकमास में क्या करना उचित

आमतौर पर अधिकमास में हिंदू श्रद्धालु व्रत- उपवास, पूजा- पाठ, ध्यान, भजन, कीर्तन, मनन को अपनी जीवनचर्या बनाते हैं। पौराणिक सिद्धांतों के अनुसार इस मास के दौरान यज्ञ- हवन के अलावा श्रीमद् देवीभागवत, श्री भागवत पुराण, श्री विष्णु पुराण, भविष्योत्तर पुराण आदि का श्रवण, पठन, मनन विशेष रूप से फलदायी होता है। अधिकमास के अधिष्ठाता भगवान विष्णु हैं, इसीलिए इस पूरे समय में विष्णु मंत्रों का जाप विशेष लाभकारी होता है। ऐसा माना जाता है कि अधिक मास में विष्णु मंत्र का जाप करने वाले साधकों को भगवान विष्णु स्वयं आशीर्वाद देते हैं, उनके पापों का शमन करते हैं और उनकी समस्त इच्छाएं पूरी करते हैं।

अधिक मास में क्या करें और क्या न करें

अधिक मास में धार्मिक कार्यों को वरियता देने के लिए कहा गया है। अधिक मास में पूजा, उपासना, धार्मिक अनुष्ठान, कथा- भागवत और यज्ञ का विशेष फल बताया गया है। अधिक मास में किसी भी प्रकार के मांगलिक कार्य नहीं करने चाहिए। मान्यता है कि अधिक मास में शादी-विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश आदि के कार्य नहीं करने चाहिए।

अधिक मास में दान का महत्व

अधिक मास में दान का विशेष महत्व बताया गया है। अधिक मास में तिथिवार दान का फल बताया गया है। अधिक मास में दीपदान करना शुभ माना गया है। इसके अतिरिक्त धार्मिक पुस्तकों का दान भी शुभ बताया गया है। अधिक मास के प्रथम दिन प्रतिपदा तिथि है इस दिन घी का दान श्रेष्ठ फलदायी बताया गया है।

अधिक मास के स्वामी है भगवान विष्णु

पौराणिक कथा के अनुसार प्रत्येक मास, राशि और नक्षत्र आदि के कोई न कोई स्वामी हैं। लेकिन अधिक मास का कोई स्वामी नहीं है। स्वामी न होने के कारण अधिक मास को मलमास कहा जाने लगा। जिससे अधिक मास को बहुत दुख हुआ और इस बात की शिकायत भगवान विष्णु से की। शिकायत सुनने के बाद भगवान विष्णु ने अधिक मास को अपना नाम पुरुषोत्तम दिया जिसके बाद अधिक मास को पुरुषोत्तम मास कहा जाने लगा। भगवान विष्णु ने कहा कि अधिक मास का अब से मैं स्वयं स्वामी हूं। अधिक मास में जो भी भक्त मेरी पूजा और उपासना करेगा उसे आर्शीवाद प्राप्त होगा।

भगवान राम के नाम पर पड़ा ‘पुरुषोत्तम मास’

धार्मिक मान्यता है कि अधिकमास के अधिपति स्वामी भगवान विष्णु हैं और पुरुषोत्तम भगवान विष्णु का ही एक नाम है, इसलिए अधिकमास को पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है।

मलमास के समय में मांगलिक कार्यों जैसे कि विवाह, मुंडन, उपनयन संस्कार, गृह प्रवेश आदि की मनाही होती है। शुभ कार्य मलमास के समय में वर्जित होते हैं। हालांकि खरीदारी आदि की मनाही नहीं होती है।अधिक मास में फल की कामना के लिए किए जाने वाले मांगलिक कार्य वर्जित माने जाते हैं। अधिक मास में खरीदारी आदि की मनाही नहीं है। केवल प्रॉपर्टी के समय कागजी कार्यवाही पूरी रहे। शेष किसी भी तरह की खरीदारी आदि में अधिक मास में रोक नहीं है। ज्वेलरी, कपड़े, इलेक्ट्रानिक्स आदि सभी खरीदे जा सकते हैं।

मलमास के दौरान किसी भी नई चीज की खरीदारी के लिए शुभ नहीं माना जाता है। लेकिन शास्त्रों के अनुसार इस महीने आप वस्त्रों, आभूषणों एवं वाहन आदि की खरीदारी कर सकते हैं।

मलमास में मांगलिक कार्य जैसे विवाह, प्राण-प्रतिष्ठा, स्थापना, मुंडन, नववधू गृह प्रवेश, यज्ञोपवीत, नामकरण आदि कार्यों को नहीं करना चाहिए।

इस बार मलमल या अधिकमास में दो दिन पुष्य नक्षत्र भी पड़ रहा है।

10 अक्टूबर 2020 को रवि पुष्य और 11 अक्टूबर 2020 को सोम पुष्य नक्षत्र रहेगा। यह ऐसी तारीखें होंगी, जब कोई भी आवश्यक शुभ काम किया जा सकता है। यह तिथियां खरीदारी इत्यादि के लिए शुभ मानी जाती हैं। इसलिए इन तिथियों में की गई खरीदारी शुभ फलकारी होती है।

अधिकमास के दौरान सर्वार्थसिद्धि योग 9 दिन, द्विपुष्कर योग 2 दिन, अमृतसिद्धि योग एक दिन और दो दिन पुष्य नक्षत्र का योग बन रहा है।

अधिक मास में सर्वार्थसिद्धि योग बनने से लोगों की मनोकामनाएं पूर्ण होंगी। जबकि द्विपुष्कर योग में किए गए कार्यों का फल दोगुना मिलता है। इसके अलावा पुष्य नक्षत्र खरीदारी के लिए शुभ साबित होगा।

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