आप सभी को तेजा दशमी की हार्दिक शुभकामनायें

आज भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि है। इस तिथि पर तेजादशमी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन तेजाजी महाराज के मंदिरों में मेला लगता है। ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री जी ने बताया कि सर्पदंश से बचने के लिए तेजाजी महाराज की विशेष पूजा की जाती है।

जानिए तेजा दशमी की कथा

प्रचलित कथा के अनुसार प्राचीन समय में तेजाजी राजा बाक्साजी के पुत्र थे। वे बचपन से ही साहसी थे और जोखिमभरे काम करने से भी नहीं डरते थे। एक बार वे अपने साथी के साथ बहन को लेने उसके ससुराल गए। उस दिन भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि थी। बहन के ससुराल जाने पर तेजा को पता चलता है कि मेणा नामक डाकू अपने साथियों के साथ बहन की ससुराल से सारी गायों को लूटकर ले गया है।
तेजाजी अपने साथी के साथ जंगल में मेणा डाकू से गायों को छुड़ाने के लिए जाते हैं। रास्ते में एक बांबी के पास भाषक नाम का सांप घोड़े के सामने आ जाता है और तेजा को डंसने लगता है। इसके बाद तेजाजी उस सांप को वचन देते हैं कि अपनी बहन की गायों को छुड़ाने के बाद मैं वापस यहीं आऊंगा, तब मुझे डंस लेना। ये सुनकर सांप ने रास्ता छोड़ दिया।
तेजाजी डाकू से अपनी बहन की गायों को आजाद करवा लेते हैं। डाकूओं से हुए युद्ध की वजह से वे लहुलुहान हो जाते हैं और ऐसी ही अवस्था में सांप के पास जाते हैं।
तेजा को घायल अवस्था में देखकर नाग कहता है कि तुम्हारा पूरा शरीर खून से अपवित्र हो गया है। मैं डंक कहां मारुं? तब तेजाजी उसे अपनी जीभ पर काटने के लिए कहते हैं।
तेजाजी की वचनबद्धता को देखकर नागदेव उन्हें आशीर्वाद देते हैं कि जो व्यक्ति सर्पदंश से पीड़ित है, वह तुम्हारे नाम का धागा बांधेगा, उस पर जहर का असर नहीं होगा। उसके बाद नाग तेजाजी की जीभ पर डंक मार देता है।

इसके बाद से हर साल भाद्रपद शुक्ल दशमी को तेजाजी के मंदिरों में श्रृद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। जिन लोगों ने सर्पदंश से बचने के लिए तेजाजी के नाम का धागा बांधा होता है, वे मंदिर में पहुंचकर धागा खोलते हैं।

 

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