रामदेव जी की दूज


आज भादव सुदी बड़ी दुज रामदेव बाबा प्रकट अवतार दिन ** *
आप सभी को भादवा सुदी दुज (बीज) की हार्दिक हार्दिक बधाई हो ** 🙏🙏🙏🌹🌹🌹🌹🌹


जय बाबा री सा…
बाबा सब का भला करे …


हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक बाबा रामदेव ने अपने अल्प जीवन के तेंतीस वर्षों में वह कार्य कर दिखाया जो सैकडो वर्षों में भी होना सम्भव नही था। सभी प्रकार के भेद-भाव को मिटाने एवं सभी वर्गों में एकता स्थापित करने की पुनीत प्रेरणा के कारण बाबा रामदेव जहाँ हिन्दुओ के देव है तो मुस्लिम भाईयों के लिए रामसा पीर। मुस्लिम भक्त बाबा को रामसा पीर कह कर पुकारते हैं। वैसे भी राजस्थान के जनमानस में पॉँच पीरों की प्रतिष्ठा है जिनमे बाबा रामसा पीर का विशेष स्थान है।


 जय बाबा री
अजमल घर अवतार की जय
मैनादे के लाल की जय
रूणैचा के श्याम की जय
द्वारका रे नाथ की जय
सुगना बाई क बीर की जय
डाली बाई क बीर की जय
लाछा बाई क बीर की जय
पीरा रे पीर की जय
पाँचौ रे पीर की जय
घोङ अशवार की जय
नैजा धारी की जय
धौली धव्जाधारी की जय
रूणैचा के नाथ की जय
खणी खणी खम्मा दरबार
जयश्री नक्लंक नेजाधारी


रामदेव जी राजस्थान के एक लोक देवता हैं। .5वी. शताब्दी के आरम्भ में भारत में लूट खसोट, छुआछूत, हिंदू-मुस्लिम झगडों आदि के कारण स्थितिया बड़ी अराजक बनी हुई थी। ऐसे विकट समय में पश्चिम राजस्थान के पोकरण नामक प्रसिद्ध नगर के पास रुणिचा नामक स्थान में तोमर वंशीय राजपूत और रुणिचा के शासक अजमाल जी के घर चेत्र शुक्ला पंचमी वि.स. 14.9 को बाबा रामदेव पीर अवतरित हुए (द्वारकानाथ ने राजा अजमल जी के घर अवतार लियाद्ध जिन्होंने लोक में व्याप्त अत्याचार, वैर-द्वेष, छुआछुत का विरोध कर अछुतोद्वार का सफल आन्दोलन चलाया।


राजा अजमल जी द्वारकानाथ के परमभक्त होते हुए भी उनको दु:ख था कि इस तंवर कुल की रोशनी के लिये कोई पुत्र नहीं था और वे एक बांझपन थे। दूसरा दु:ख था कि उनके ही राजरू में पड़ने वाले पोकरण से ३ मील उत्तर दिशा में भैरव राक्षस ने परेशान कर रखा था। इस कारण राजा रानी हमेशा उदास ही रहते थे। श्री रामदेव जी का जन्‍म चैत सुदी पंचम को विक्रम संवत् 1409 को सोमवार के दिन हुआ जिसका प्रमाण श्री रामदेव जी के श्रीमुख से कहे गये प्रमाणों में है जिसमें लिखा है —


भणे राजा रामदेव चैत सुदी पंचम को अजमल के घर मैं आयों (अखे प्रमाण श्री रामदेव जी) अमन घटोडा


सन्तान ही माता-पिता के जीवन का सुख है। राजा अजमल जी पुत्र प्राप्ति के लिये दान पुण्य करते, साधू सन्तों को भोजन कराते, यज्ञ कराते, नित्य ही द्वारकानाथ की पूजा करते थे। इस प्रकार राजा अजमल जी भैरव राक्षस को मारने का उपाय सोचते हुए द्वारका जी पहुंचे। जहां अजमल जी को भगवान के साक्षात दर्शन हुए, राजा के आखों में आंसू देखकर भगवान में अपने पिताम्बर से आंसू पोछकर कहा, हे भक्तराज रो मत मैं तुम्हारा सारा दु:ख जानता हूँ। मैं तेरी भक्ती देखकर बहुत प्रसन्न हूँ , माँगो क्या चाहिये तुम्हें मैं तेरी हर इच्छायें पूर्ण करूँगा।


भगवान की असीम कृपा से प्रसन्न होकर बोले हे प्रभु अगर आप मेरी भक्ती से प्रसन्न हैं तो मुझे आपके समान पुत्र चाहिये याने आपको मेरे घर पुत्र बनकर आना पड़ेगा और राक्षस को मारकर धर्म की स्थापना करनी पड़ेगी। तब भगवान द्वारकानाथ ने कहा- हे भक्त! जाओ मैं तुम्हे वचन देता हूँ कि पहले तेरे पुत्र विरमदेव होगा तब अजमल जी बोले हे भगवान एक पुत्र का क्या छोटा और क्या बड़ा तो भगवान ने कहा- दूसरा मैं स्वयं आपके घर आउंगा। अजमल जी बोले हे प्रभू आप मेरे घर आओगे तो हमें क्या मालूम पड़ेगा कि भगवान मेरे धर पधारे हैं, तो द्वारकानाथ ने कहा कि जिस रात मैं घर पर आउंगा उस रात आपके राज्य के जितने भी मंदिर है उसमें अपने आप घंटियां बजने लग जायेगी, महल में जो भी पानी होगा (रसोईघर में) वह दूध बन जाएगा तथा मुख्य द्वार से जन्म स्थान तक कुमकुम के पैर नजर आयेंगे वह मेरी आकाशवाणी भी सुनाई देगी और में अवतार के नाम से प्रसिद्ध हो जाउँगा।


श्री रामदेव जी का जन्म संवत् १४०९ में भाद्र मास की दूज को राजा अजमल जी के घर हुआ। उस समय सभी मंदिरों में घंटियां बजने लगीं, तेज प्रकाश से सारा नगर जगमगाने लगा। महल में जितना भी पानी था वह दूध में बदल गया, महल के मुख्य द्वार से लेकर पालने तक कुम कुम के पैरों के पदचिन्ह बन गए, महल के मंदिर में रखा संख स्वत: बज उठा। उसी समय राजा अजमल जी को भगवान द्वारकानाथ के दिये हुए वचन याद आये और एक बार पुन: द्वारकानाथ की जय बोली। इस प्रकार ने द्वारकानाथ ने राजा अजमल जी के घर अवतार लिया। 


बाल लीला में माता को परचा–


भगवान नें जन्म लेकर अपनी बाल लीला शुरू की। एक दिन भगवान रामदेव व विरमदेव अपनी माता की गोद में खेल रहे थे, माता मैणादे उन दोनों बालकों का रूप निहार रहीं थीं। प्रात:काल का मनोहरी दृश्य और भी सुन्दरता बढ़ा रहा था। उधर दासी गाय का दूध निकाल कर लायी तथा माता मैणादे के हाथों में बर्तन देते हुए इन्हीं बालकों के क्रीड़ा क्रिया में रम गई। माता बालकों को दूध पिलाने के लिये दूध को चूल्हे पर चढ़ाने के लिये जाती है। माता ज्योंही दूध को बर्तन में डालकर चूल्हे पर चढ़ाती है। उधर रामदेव जी अपनी माता को चमत्कार दिखाने के लिये विरमदेव जी के गाल पर चुमटी भरते हैं इससे विरमदेव को क्रोध आ जाता है तथा विरमदेव बदले की भावना से रामदेव जी को धक्का मार देते हैं। जिससे रामदेव जी गिर जाते हैं और रोने लगते हैं। रामदेव जी के रोने की आवाज सुनकर माता मैणादे दूध को चुल्हे पर ही छोड़कर आती है और रामदेव जी को गोद में लेकर बैठ जाती है। उधर दूध गर्म होन के कारण गिरने लगता है, माता मैणादे ज्यांही दूध गिरता देखती है वह रामदेवजी को गोदी से नीचे उतारना चाहती हैN उतने में ही रामदेवजी अपना हाथ दूध की ओर करके अपनी देव शक्ति से उस बर्तन को चूल्हे से नीचे धर देते हैं। यह चमत्कार देखकर माता मैणादे व वहीं बैठे अजमल जी व दासी सभी द्वारकानाथ की जय जयकार करते हैं।


पाबू हडू रामदे ए माँगाळिया मेहा।
पांचू पीर पधारजौ ए गोगाजी जेहा।।


बाबा रामदेव ने छुआछुत के खिलाफ कार्य कर सिर्फ़ दलितों का पक्ष ही नही लिया वरन उन्होंने दलित समाज की सेवा भी की। डाली बाई नामक एक दलित कन्या का उन्होंने अपने घर बहन-बेटी की तरह रख कर पालन-पोषण भी किया। यही कारण है आज बाबा के भक्तो में एक बहुत बड़ी संख्या दलित भक्तों की है। बाबा रामदेव पोकरण के शासक भी रहे लेकिन उन्होंने राजा बनकर नही अपितु जनसेवक बनकर गरीबों, दलितों, असाध्य रोगग्रस्त रोगियों व जरुरत मंदों की सेवा भी की। यही नही उन्होंने पोकरण की जनता को भैरव राक्षक के आतंक से भी मुक्त कराया। 


प्रसिद्ध इतिहासकार मुंहता नैनसी ने भी अपने ग्रन्थ “मारवाड़ रा परगना री विगत” में इस घटना का जिक्र करते हुए लिखा है- भैरव राक्षस ने पोकरण नगर आतंक से सुना कर दिया था लेकिन बाबा रामदेव के अदभूत एवं दिव्य व्यक्तित्व के कारण राक्षस ने उनके आगे आत्म-समर्पण कर दिया था और बाद में उनकी आज्ञा अनुसार वह मारवाड़ छोड़ कर चला गया। बाबा रामदेव ने अपने जीवन काल के दौरान और समाधी लेने के बाद कई चमत्कार दिखाए जिन्हें लोक भाषा में परचा देना कहते है। इतिहास व लोक कथाओं में बाबा द्वारा दिए ढेर सारे परचों का जिक्र है। जनश्रुति के अनुसार मक्का के मौलवियों ने अपने पूज्य पीरों को जब बाबा की ख्याति और उनके अलोकिक चमत्कार के बारे में बताया तो वे पीर बाबा की शक्ति को परखने के लिए मक्का से रुणिचा आए। बाबा के घर जब पांचो पीर खाना खाने बैठे तब उन्होंने बाबा से कहा की वे अपने खाने के बर्तन (सीपियाँ) मक्का ही छोड़ आए है और उनका प्रण है कि वे खाना उन सीपियों में खाते है तब बाबा रामदेव ने उन्हें विनयपूर्वक कहा कि उनका भी प्रण है कि घर आए अतिथि को बिना भोजन कराये नही जाने देते और इसके साथ ही बाबा ने अलौकिक चमत्कार दिखाया जो सीपी जिस पीर कि थी वो उसके सम्मुख रखी मिली।


इस चमत्कार (परचा) से वे पीर इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने बाबा को पीरों का पीर स्वीकार किया। आख़िर जन-जन की सेवा के साथ सभी को एकता का पाठ पढाते बाबा रामदेव ने भाद्रपद शुक्ला एकादशी वि.स . 144. को जीवित समाधी ले ली। श्री बाबा रामदेव जी की समाधी संवत् 1442 को रामदेव जी ने अपने हाथ से श्रीफल लेकर सब बड़े बुढ़ों को प्रणाम किया तथा सबने पत्र पुष्प् चढ़ाकर रामदेव जी का हार्दिक तन मन व श्रद्धा से अन्तिम पूजन किया। रामदेव जी ने समाधी में खड़े होकर सब के प्रति अपने अन्तिम उपदेश देते हुए कहा ‘प्रति माह की शुक्ल पक्ष की दूज को पूजा पाठ, भजन कीर्तन करके पर्वोत्सव मनाना, रात्रि जागरण करना। 


प्रतिवर्ष मेरे जन्मोत्सव के उपलक्ष में तथा अन्तर्ध्यान समाधि होने की स्मृति में मेरे समाधि स्तर पर मेला लगेगा। मेरे समाधी पूजन में भ्रान्ति व भेद भाव मत रखना। मैं सदैव अपने भक्तों के साथ रहुँगा। इस प्रकार श्री रामदेव जी महाराज ने समाधी ली।’ आज भी बाबा रामदेव के भक्त दूर- दूर से रुणिचा उनके दर्शनार्थ और अराधना करने आते है। वे अपने भक्तों के दु:ख दूर करते हैं, मुराद पूरी करते हैं. हर साल लगने मेले में तो लाखों की तादात में जुटी उनके भक्तो की भीड़ से उनकी महत्ता व उनके प्रति जन समुदाय की श्रद्धा का आकलन आसानी से किया जा सकता है। 


बाबा रामदेवजी ने अपने अनुयायियों को दो व्रत रखने का उपदेश दिया. प्रत्येक माह की शुक्ल पक्ष की दूज व एकादशी बाबा की द्रष्टि में उपवास के लिए अति उत्तम थी ओर बाबा के अनुयायी आज भी इन दो तिथियों को बड़ी श्रद्धा से उपवास रखते हैं |

दूज (बीज) के दिन चन्द्रमा में बढ़ोतरी होने लगती हैं यही कारण हैं कि दूज को बीज की संज्ञा दी गयी हैं. बीज यानि विकास की अपार संभावनाएं. वट वृक्ष के छोटे बीज में उसकी विशाल शाखाएं, जटायें, पत्ते व फल समाये रहते हैं इसी कारण बीज भी आशावादी प्रवृति का धोतक हैं ओर दूज को बीज का रूप देते हुए बाबा ने बीज के व्रत का विधान रचा ताकि उतरोत्तर बढ़ते चन्द्रमा कि तरह व्रत करने वाले के जीवन में आशावादी प्रवृति का संचार हो सके |

प्रातः काल नित्य कर्म से निवृत होकर शुद्ध वस्त्र धारण करें (इससे पूर्व व दूज कि रात्रि को ब्रह्मचर्य का पालन करे) फिर घर में बाबा के पूजा स्थल पर पगलिये या प्रतिमा जो भी आपने प्रतिष्ठीत कर रखी हो उसका कच्चे दूध व जल से अभिषेक करे व गुग्गल धूप खेवें तत्पश्चात पूरे दिन अपने नित्यकर्म बाबा को हरपल याद करते हुए करे. पूरे दिन अन्न ग्रहण नहीं करे. चाय, दूध व फलाहार लिया जा सकता है. वैसे तो बीज व्रत में व अन्य व्रतों में कोई फर्क नहीं हैं मगर बीज का व्रत सूर्यास्त के बाद चन्द्रदर्शन के बाद छोड़ा जाता हैं. यदि बादलो के कारण चन्द्र दर्शन नहीं हो सके तो बाबा की ज्योति का दर्शन करके भी छोड़ा जा सकता है. व्रत छोड़ने से पहले साफ़ लोटे में शुद्ध जल भर लेवे ओर देशी घी की बाबा कि ज्योति उपलों ( कंडा, थेपड़ी ) के अंगारों पर करें. इस ज्योति में चूरमे का बाबा को भोग लगावें. जल वाले लोटे में ज्योति की थोड़ी भभूती मिलाकर पूरे घर में छिड़क देवें. तत्पश्चात भोग चरणामृत का स्वयं भी आचमन करें व वहां उपस्थित अन्य लोगों को भी चरणामृत दें. चूरमे का प्रसाद भी लोगों को बांटे. इसके बाद पांच बार बाबा के बीज मंत्र का मन में उच्चारण करके व्रत छोड़ें. इस तरह पूरे मनोयोग से किये गये व्रत से घर-परिवार में सुख-समर्धि आती हैं. किसी भी विपत्ति से रक्षा होती हैं व रोग-शोक से भी बचाव होता हैं |

बीज मंत्र –

ॐ नमो भगवते नेतल नाथाय, सकल रोग हराय सर्व सम्पति कराय |
मम मनाभिलाशितं देहि देहि कार्यम साधय, ॐ नमो रामदेवाय स्वाहा ||

क्या देखें रामदेवरा में और राम देवरा के  निकट दर्शनीय स्थल–

रामसरोवर
रामसरोवर बाबा रामदेव मंदिर के पीछे की तरफ आया हुआ हैं. यह तक़रीबन 150 एकड़ क्षेत्र में फेला हुआ हैं एवं 25 फिट गहरा हैं. बारिश से पूरा भरने पर यह सरोवर बहुत ही रमणीय स्थल बन जाता हैं. मान्यता हैं कि बाबा ने गूंदली जाति के बेलदारों }kjk  इस
तालाब की खुदाई करवाई थी. यह तालाब पुरे रामदेवरा जलापूर्ति का स्रोत हैं, कहते हैं जांभोजी के श्राप के कारण यह सरोवर मात्र छः(6) माह ही भरा रहता हैं. भक्तजन यंहा आकर इस सरोवर में डूबकी लगा कर अपनी काया को पवित्र करते हैं एवं इसका जल अपने साथ ले जाते हैं तथा नित्य आचमन करते हैं |


परचा बावडी
परचा बावडी मंदिर के पास ही स्थित है. यहीं से बाबा के मंदिर में अभिषेक हेतु जलापूर्ति होती हैं. माना जाता हैं कि इस बावडी का निर्माण बाबा रामदेवजी के आदेशानुसार बाणिया बोयता ने करवाया था. लाखों श्रद्धालु परचा बावडी की सैंकड़ों सीढियां उतरकर यहाँ
के दर्शन करने पहुँचते हैं| मान्यतानुसार अंधों को आँखें, कोढ़ी को काया देने वाला यह जल तीन पवित्र नदियों गंगा,यमुना और सरस्वती का मिश्रण हैं |
रूणीचा कुआ
   रूणीचा कुआ रामदेवरा गाँव से दो किमी. दूर पूर्व में स्थित हैं. यहाँ पर रामदेवजी}kjk निर्मित एक कुआ और बाबा का एक छोटा मंदिर भी हैं. चारों और सुन्दर वृक्ष और नवीन पौधों के वातावरण में स्थित यह स्थल प्रातः भ्रमण हेतु भी यात्रियों को रास
आता हैं| मान्यता के अनुसार रानी नेतलदे को प्यास लगने पर बाबा रामदेव जी ने अपने भाले की नोक से इसी जगह पर पाताल तोड़ कर पानी निकाला था, तभी से यह स्थल “राणीसा का कुआ” के रूप में जाना जाता गया, लेकिन काफी सदियों से अपभ्रंश होते होते यह “रूणीचा कुआ” में परिवर्तित हो गया . इस दर्शनीय स्थल तक पहुँचने के लिए पक्की सड़क मार्ग की सुविधा उपलब्ध हैं एवं रात्रि विश्राम हेतु विश्रामगृह भी बना हुआ है. मेले के दिनों में यहाँ बाबा के भक्तजन रात्रि में जम्मे का आयोजन भी करते है |
डाली बाई की जाल
डाली बाई कि जाल अर्थात वह पेड़ जिसके नीचे रामदेव जी को डाली बाई मिली थी. यह स्थल मंदिर से . किलोमीटर दूर NH15 पर स्थित हैं. कहते हैं कि रामदेवजी जब छोटे थे तब उन्हें उस पेड़ के नीचे एक नवजात शिशु मिला था. बाबा ने उसको डाली बाई नाम देते
हुए अपनी मुहबोली बहिन बना दिया. डाली ने अपना संपूर्ण जीवन दलितों का उद्धार करने एवं बाबा कि भक्ति को समर्पित कर दिया. इसी कारण ही उन्हे रामदेव जी से पहले समाधी ग्रहण करने का श्रेय प्राप्त हुआ |


पंच पीपली
पंच पीपली वही स्थान है जहां पर बाबा ने मक्का से आये पांच पीरो को उन्ही के कटोरो, जो कि वे मक्का मे ही भूल गये थे, में भोजन करवाया था.उन्ही पांच पीरो के कारण वहा पांच पीपल के पेड उग आये थे, और बाबा को “पीरो के पीर रामसापीर” की उपाधि भी प्रदान की
थी. यह स्थल मंदिर से 12 की.मी. दूर एकां गाँव में स्थित है. यहां पर बाबा रामदेव का एक छोटा सा मंदिर एवं सरोवर है |
गुरु बालीनाथ जी का धूणा
रामदेवजी के गुरु बालीनाथ जी का धूणा या आश्रम पोकरण में स्थित हैं । बाबा ने बाल्यकाल में यहीं पर गुरु बालीनाथ जी से शिक्षा प्राप्त की थी । यही वह स्थल हैं, जहाँ पर बाबा को बालिनाथजी ने भैरव राक्षस से बचने हेतु छिपने को कहा था । शहर के
पश्चिमी छोर पर सालमसागर एवं रामदेवसर तालाब के बीच में स्थित गुरु बालीनाथ के आश्रम पर मेले के दौरान आज भी लाखों यात्री यहाँ आकर धुणें के प्रति अपनी श्रद्धा अर्पित करते हैं । बालिनाथजी के धुणें के पास ही एक प्राचीन बावडी भी स्थित हैं । रामदेवरा आने वाले लाखों श्रद्धालु यहाँ पर बाबा के गुरु महाराज का दर्शन करने अवश्य आते हैं ।
भैरव राक्षस गुफा
बचपन मे बाबा रामदेव ने सभी जन मानस को भैरव नामक राक्षस के आतंक से मुक्त करवाया था. उस भैरव को बाबा ने एक गुफा मे आजीवन बंदी बना दिया था. यह गुफा मंदिर से 12 किमी. दूर पोकरण के निकट स्थित है.पहाडी पार स्थित यह गुफा भैरव
राक्षस की शरणास्थली है. वहां तक जाने के लिये पक्का सडक मार्ग है |


श्री पार्श्वनाथ जैन मंदिर
श्री रामदेव बाबा के मंदिर से मात्र 1.5 किमी. दूर RCP रोड पर श्री पार्श्वनाथ जैन मंदिर,गुरु मंदिर एवं दादावाड़ी स्थित हैं. मंदिर पूर्णरूप से संगमरमर के पत्थर से बना हुआ हैं और इसकी अदभुत स्थापत्य कला एवं वास्तुकला मनोहर हैं. श्री पार्श्वनाथ जैन मंदिर की
प्रतिष्ठा 4 जुलाई 2008 को हुई थी. मंदिर के पट्ट सुबह 6 बजे खुलते एवं रात्रि 9 बजे बंद होते हैं. यहाँ पर प्रतिवर्ष आषाढ़ सुदी 2 को ध्वजारोहण का सालाना महोत्सव भी आयोजित होता हैं. श्री जैन तीर्थ संस्थान के परिसर में एक जैन धर्मशाला भी स्थापित हैं. सम्पूर्ण सुविधा युक्त इस धर्मशाला में वातानुकूलन, लिफ्ट एवं भोजनशाला की भी व्यवस्था हैं|
छतरियां ( सतीयो की देवली )
छतरियां या सतीयो की देवली प्राचीन समय में रानीयो के सती होने पर उनकी याद में बनाई गई है । यह स्थल पोकरण के निकट पहाडी पर स्थित है । प्राचीन जैसलमेर की कला पर आधारित यह छतरियां देखने में अत्यंत ही सुंदर है । इसकी कला शैली vf}rh;  है ।
मान्यता है कि इन छतरियो के खम्भे गिनना किसी के लिये भी संभव नही है । इन छतरियो के सामने ही एक छोटी सी झील भी स्थित है ।
पोकरण फोर्ट
पोकरण फोर्ट 14 वीं सदी में बना राजस्थान के पुराने किलों में से एक है. यह किला “बालागढ” के नाम से भी जाना जाता है. वर्तमान में पोकरण किले के ठाकुर नागेन्द्र सिंह एवं ठकुरानी यशवंत कुमारी हैं पोकरण का किला प्राचीन स्थापत्य कला का अनुपम उदाहरण हैं |
किले के अन्दर एक भव्य म्यूजियम भी स्थित हैं. वर्तमान में किले के अन्दर होटल का संचालन किया जा रहा हैं. विदेशी सैलानी यंहा पर अपना ठहराव करते है किले का सम्पूर्ण रख-रखाव ठाकुर साहब }kjk ही किया जाता है |


कैलाश टेकरी
कैलाश टेकरी एक अति प्राचीन जगह का नाम है जो कि पहाडी पर स्थित है. यहां पर दुर्गा मैया का एक भव्य मंदिर है. इस मंदिर की स्थापत्य कला एवं वास्तुकला प्रशंसनीय है . यह यात्रियो के लिये एक प्रकार से पिकनिक स्पोट भी है. कई विदेशी सैलानी भी यहां
आकर मंदिर की अनुपम कला को निहारते है. यह स्थल पोकरण में स्थित है एवं यहां तक पहुचने के लिये पक्का सडक मार्ग है.
शक्ति स्थल
शक्ति स्थल पोकरण से 1 किमी. पहले पोकरण-रामदेवरा मार्ग पर स्थित हैं । यह एक प्रकार का शौर्य संग्रहालय हैं । इस संग्रहालय में भारत की तीनो सेनाओ यथा जल,थल,वायु से सम्बंधित जानकारियां एकत्रित हैं । इस म्यूजियम में पोकरण परमाणु विस्फोट के बारे
में सम्पूर्ण जानकारी दी गयी हैं । इस संग्रहालय में युद्ध में उपयोग हुए हथियार, अग्नि, ब्रम्होस जैसी विशाल मिसाइलों के मॉडल एवं यमराज व अन्य शक्तिशाली टैंकरों के प्रतिरूप भी प्रदर्शन हेतु रखे गए हैं । यह संग्रहालय भारतीय सेना की विशाल शक्ति का दुनिया को उदाहरण हैं ।

HOW TO REACH :कैसे पहुंचे रामदेवरा–
Geographic Status:-
Village Name:- Ramdevra
Tehsil :- Pokhran Distt.:- Jaisalmer
Pincode :- 345023 STD Code:- 02996
Nearest Airport : Jodhpur 180 Kms.
Train No. 4059 (Delhi Jaisalmer Express) from Delhi via Gurgaon, Rewari, Alwar, Jaipur, Jodhpur. Its run daily with classes 2AC, 3AC and Sleeper. Train No. 4810 (Jodhpur Jaisalmer Express ) from Jodhpur. Its run daily with classes 3AC and Sleeper.
Nearest City is Jaiselmer by Road : 120 Kms
रामदेवरा रेल मार्ग एवं सड़क मार्ग दोनों से जुड़ा हुआ है | NH 15 रामदेवरा को छूती हुई 

निकलती है | नजदीकी Airport जोधपुर ( 180 किमी ) में स्थित है |



दिल्ली से सीधे रेल }kjk रामदेवरा पंहुचा जा सकता है | दिल्ली से चलकर इंटरसिटी एक्सप्रेस 

अगले दिन रामदेवरा पहुचती है |



भारत में कंही से भी जोधपुर किसी भी माध्यम से पंहुचा जा सकता है जोधपुर से रामदेवरा 

180 किमी है जो की रेल बस या निजी वाहन की सुविधा से पंहुचा जा सकता है |

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