राधा अष्टमी 9 सितंबर …6 (शुक्रवार) को मनेगी 


प्रिय बंधू, आपका दिन मधुर व मंगलमय हो |  “राधा अष्टमी” पर्व की आपको बधाइयाँ और शुभ कामनाएं।। 
भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी ,9 सितंबर 2016 (शुक्रवार)को श्रीकृष्ण की बाल सहचरी, जगजननी भगवती शक्ति राधाजी का जन्म दिन मनाया जायेगा। राधा के बिना श्रीकृष्ण का व्यक्तित्व अपूर्ण है। यदि श्रीकृष्ण के साथ से राधा को हटा दिया जाए तो श्रीकृष्ण का व्यक्तित्व माधुर्यहीन हो जाता। राधा के ही कारण श्रीकृष्ण रासेश्वर हैं।


ऐसी मान्यता है कि इसी दिन व्रज में श्रीकृष्ण के प्रेयसी राधा का जन्म हुआ था। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, राधा भी श्रीकृष्ण की तरह ही अनादि और अजन्मी हैं, उनका जन्म माता के गर्भ से नहीं हुआ। इस पुराण में राधा के संबंध में बहुत ही ऐसी बातें बताई गई हैं जो बहुत कम लोग जानते हैं।


9 सितंबर 2016 (शुक्रवार) को श्रीराधा अष्टमी है। जन्माष्टमी के पूरे 15 दिन बाद ब्रज के रावल गांव में राधा जी का जन्म हुआ । कहते हैं कि जो राधा अष्टमी का व्रत नहीं रखता, उसे जन्माष्टमी व्रत का फल नहीं मिलता। भाद्रपद शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को राधाष्टमी व्रत रखा जाता है। पुराणों में राधा-रुक्मिणी को एक ही माना जाता है। जो लोग राधा अष्टमी के दिन राधा जी की उपासना करते हैं, उनका घर धन संपदा से सदा भरा रहता है। राधा अष्टमी के दिन ही महालक्ष्मी व्रत का आरंभ होता है।  


जानिए कैसे हुआ श्रीराधा का जन्म?  


यह तो हम सभी जानते हैं कि श्री कृष्‍ण की कई पत्नियां थीं, लेकिन उनमें से राधा जी को ही उनकी सबसे खास और दिल के पास माना गया था। कृष्‍ण का नाम बिना राधा के बिल्‍कुल अधूरा है। राधा अष्‍टमी वह पावन दिन है जब राधा जी का जन्‍म हुआ था |


महाराज वृषभानु और उनकी पत्‍नी कीर्ति ने अपने पिछले जन्‍म में भगवान ब्रह्मा से वरदान मांगा था कि अगले जन्‍म में उन्‍हें माता लक्ष्‍मी एक बेटी के रूप में दें। तब भगवान ब्रह्मा ने उन्‍हें यह वरदान दिया। फिर एक दिन राजा वृषभानु पैदल ही अपने घर जा रहे थे, तभी रास्‍ते में कमल के एक बडे़ से पत्‍ते पर उन्‍हें छोटी सी बच्‍ची मिली। उन्‍होनें उस बच्‍ची को गोद लिया और सीधा घर पहुंच गए। इस तरह से राधा जी उनके घर पर आईं।


राधा जी के जन्म के पीछे एक कथा मिलती है। कहा जाता है कि एक बार गोलोक धाम में भगवान श्रीकृष्ण बैठे हुये थे। अचानक उनके हृदय में एक आनंद की लहर उठी। थोड़ी देर बाद कृष्ण का यही आनंद एक बालिका के रूप में प्रकट हुआ। यही बालिका राधा है। इसीलिए बिना राधा के नाम लिये, कृष्ण नाम के जाप का फल नहीं मिलता है। रावल और बरसाने में राधा जी के जन्मोत्सव का समारोह देखने लायक होता है। राधा जी का जन्म सुबह 4 बजे हुआ था इसीलिए जन्म का समारोह देर रात से ही शुरू हो जाता है। राधा का जन्‍म या फिर ये कहें कि राधा जी को कमल के पत्‍ते पर सोता हुआ पाया गया था। महाराज वृषभानु और उनकी पत्‍नी कीर्ति ने राधा को वहां से उठा कर अपनी बेटी बनाया। कहते हैं कि राधा जी ने तब तक अपनी आंखें नहीं खोली जब तक कि भगवान श्री कृष्‍ण का जन्‍म नहीं हो गया। राधा अष्‍टमी के दिन भक्‍त पूरा दिन व्रत रखते हैं। मंदिरों, आश्रमों में धूम मचाने लाखों भक्त जुटते हैं। राधा जी की मूर्ती को दूध से साफ कर के फूलों और गहनों से सजाया जाता है।


जानिए श्रीकृष्ण के शरीर से ही प्रकट हुई थीं राधा ??
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, श्रीकृष्ण के बाएं अंग से एक सुंदर कन्या प्रकट हुई, प्रकट होते ही उसने भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में फूल अर्पित किए। श्रीकृष्ण से बात करते-करते वह उनके साथ सिंहासन पर बैठ गई। यह सुंदर कन्या ही राधा हैं।
एक बार गोलोक में श्रीकृष्ण विरजादेवी के समीप थे। श्रीराधा को यह ठीक नहीं लगा। श्रीराधा सखियों सहित वहां जाने लगीं, तब श्रीदामा नामक गोप ने उन्हें रोका। इस पर श्रीराधा ने उस गोप को असुर योनि में जन्म लेने का श्राप दे दिया। तब उस गोप ने भी श्रीराधा को यह श्राप दिया कि आपको भी मानव योनि में जन्म लेना पड़ेगा। वहां गोकुल में श्रीहरि के ही अंश महायोगी रायाण नामक एक वैश्य होंगे। आपका छाया रूप उनके साथ रहेगा। भूतल पर लोग आपको रायाण की पत्नी ही समझेंगे, श्रीहरि के साथ कुछ समय आपका विछोह रहेगा।


क्यों अनोखी हैं रावल की राधा ??
रावल के राधा मंदिर में राधा जी का जो विग्रह है, वह भगवान कृष्ण के हाथ से प्रकट हुआ था। इस प्रतिमा को ध्यान से देखने पर श्रीकृष्ण का रूप भी दिखाई देता है। वैसे भी राधा कृष्ण एक ही तत्व के 2 नाम हैं, जो लीला करने के लियें मिलते बिछुड़ते हैं।     


जानिए कैसे मनायें राधा अष्टमी?
राधा अष्टमी भी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की तरह मनायी जाती है। इस दिन श्रीराधा जी के विग्रह को पहले पंचामृत से स्नान कराया जाता है। फिर उनका श्रृंगार किया जाता है। कहीं कहीं राधा जी के जन्म के लिये प्रसूति गृह भी बनाया जाता है। इसके बाद राधा जी का श्रृंगार होता है। व्रत के दिन श्रीराधा जी की धातु की प्रतिमा का पूजन करने के बाद, उसे किसी ब्राह्मण को दान करने की परंपरा है। कहते हैं कि श्रीराधाष्टमी का व्रत करने वाला भक्त,श्रीराधा का रहस्य जान लेता है और उसे श्रीराधा के दर्शन होते हैं। श्रीराधा जी अपने भक्त को दर्शन देकर जन्म मरण के बंधन से मुक्ति दे देती हैं।राधाष्टमी के दिन राधा जी के मंदिर को फूलों और फलों से सजाया जाता है। पूरे बरसाने में इस दिन उत्सव का महौल होता है। राधाष्टमी के उत्सव में राधाजी को लड्डुओं का भोग लगाया जाता है और उस भोग को मोर को खिला दिया जाता है। राधा रानी को छप्पन प्रकार के व्यंजनों का भोग लगाया जाता है और इसे बाद में मोर को खिला दिया जाता है। मोर को राधा-कृष्ण का स्वरूप माना जाता है। बाकी प्रसाद को श्रद्धालुओं में बांट दिया जाता है। राधा रानी मंदिर में श्रद्धालु बधाई गान गाते है और नाच गाकर राधाष्टमी का त्योहार मनाते हैं। 


जानिए कैसे रखें राधा अष्टमी व्रत?
-घर की उत्तर दिशा में लाल रंग का कपड़ा बिछायें
-मध्यभाग में चौकी पर मिट्टी या तांबे का कलश स्थापित करें
-चौकी पर राधा और कृष्ण की मूर्ति या चित्र रखें
-राधाकृष्ण जी को पंचामृत से स्नान करायें
-राधा जी को सोलह श्रृंगार आर्पित करें
-राधाकृष्ण का पंचोपचार पूजन करें
-धूप, दीप, पुष्प चंदन और मिश्री चढ़ायें
-ममः राधासर्वेश्वर शरणं मंत्र का यथा संभव जाप करें
-मंत्र जाप पूरा होने पर एक समय भोजन करें 
-पूजन के बाद सुहागिनों को भोजन कराकर आशीर्वाद लें
-राधा जी को चढ़ाई 16 श्रृंगार की सामग्री सुहागिनों में बांटें
-राधा अष्टमी व्रत से ब्रज क्षेत्र के हर रहस्य की जानकारी
एक दिन में . लाख जाप कैसे?
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे, हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। इस मंत्र की 64 माला का जाप एक लाख नाम जाप के बराबर है।


क्यों करें राधा अष्टमी पर गहवर वन की परिक्रमा ??
राधाष्टमी पर भक्त बरसाने की ऊंची पहाड़ी गहवर वन की परिक्रमा करते हैं। गहवर वन में ही भगवान श्रीकृष्ण, राधा जी का श्रृंगार करते थे। इसदिन बरसाने के श्रीराधा मंदिर में, सुबह 4 बजे से ही भक्तों की भीड़ जुटने लगती है। कहते हैं कि राधाष्मटी व्रत से, भक्तों को संसार के सभी सुख मिलते हैं। मान्यता है कि श्री राधा और रुक्मिणी एक ही हैं। जो इस दिन उनकी उपासना करता है, उसे देवी लक्ष्मी से वरदान मिलता है। जो पूरे साल कृष्ण पक्ष की अष्टमी का व्रत रखता है, उसे जीवन में कभी धन की कमी नहीं होती। 


कैसे मानेगा गीता वाटिका में राधा जन्मोत्सव ??
गोरखपुर की गीता वाटिका में किशोरी जी के जन्मोत्सव की शुरुआत, राधा बाबा ने की थी। यहां श्रीराधा नाम का अखंड कीर्तन चल रहा है। यहां राधाष्टमी की शुरुआत सप्तमी से हो जाती है। इस मौके पर ब्रज से रासलीला के कलाकार बुलाये जाते हैं। राधा जी के जन्म पर, ब्रज के लोगों ने हल्दी खेली थी। ब्रज की वही प्राचीन परंपरा आज भी निभाई जा रही है। 


जानिए कौन थे राधा बाबा?
श्रीराधा बाबा, श्रीराधा जी के अनन्य भक्त थे। वह एक दिन में श्रीराधा जी के नाम का 3 लाख जाप करते थे। उन्हें ध्यान के दौरान श्रीराधा कृष्ण का दर्शन होता था। गोरखपुर की गीता वाटिका में ही राधा बाबा को राधा जी के दर्शन हुये थे। राधा बाबा ने ही गीता वाटिका में राधा जन्मोत्सव मनाने की नींव डाली थी। कहते हैं कि श्रीराधा ही उनके जीवन का आधार थीं। बिहार के फखरपुर गांव में सन 1913 को जन्मे चक्रधर मिश्र स्वतंत्रता सेनानी थे। लेकिन बाद में राधा कृष्ण के प्रेम में संन्यासी हो गये। हर समय श्री राधा जी के नामाश्रय में रहने से उनका नाम ‘राधा बाबा’ पड़ा। सन 1951 की अक्षय तृतीया को भगवती त्रिपुर सुंदरी ने उन्हें दर्शन देकर निज मंत्र प्रदान किया था। 1956 की शरद पूर्णिमा पर उन्होंने काष्ठ मौन का कठोर व्रत लिया। गीता वाटिका में श्री राधाकृष्ण साधना मंदिर, भक्तों के आकर्षण का प्रमुख केन्द्र है। 13 अक्टूबर, 1992 को राधा बाबा की आत्मा श्री राधा जी के चरणों में लीन हो गयी। यहां राधा बाबा के श्रीविग्रह रोज़ पूजा होती है।


जानिए जम्मू कश्मीर में कैसे मानेगी राधा अष्टमी ??
जम्मू कश्मीर में द्रुबड़ी के रुप में मनाई जाती है राधा अष्टमी। इस दिन निर्जल व्रत रखकर, जलदेवता से परिवार की सुख समृद्धि का आशीर्वाद मांगा जाता है। जिस परिवार में उस साल बेटे का जन्म होता है, उसे कान्हा बनाया जाता है। अगर बेटी पैदा होती है तो उसे राधा बनाय़ा जाता है। जहां करवाचौथ में पति की लंबी आयु की कामना की जाती है, वहीं द्रुबड़ी में परिवार के हर सदस्य के दीर्घायु होने के लिये जल देवता से प्रार्थना की जाती है। इसमें दिन भर के व्रत के बाद, शाम को तारा देखकर व्रत खोला जाता है। जम्मू कश्मीर में परिवार की सुख समृद्धि के लिए, राधा अष्टमी के दिन ध्वजा लगाने की भी परंपरा है। 


कहानी चरणामृत की 
एक बार श्री कृष्‍ण बहुत ज्‍यादा बीमार पड़ गए, जिसे देख सभी गोपियां हैरान हो गई कि अब क्‍या किया जाए। उन सभी ने मिल कर भगवान श्री कृष्‍ण से प्राथना की, कि वह खुद को जल्‍दी से ठीक कर लें। तभी श्री कृष्‍ण ने कहा कि वह तभी ठीक होगें जब वे उन्‍हें चरणामृत ला कर पिलाएंगी। यह बात सुन कर सही परेशान हो गई कि अगर उन्‍होन अपने पांव का चरणामृत कृष्‍ण को पिलाया और कृष्‍ण ठीक नहीं हुए तो, सभी गोपियां एक दूसरे का उपहार उड़ाएंगी और उन्‍हें नरक झेलना पडे़गा। तभी राधा आई और कृष्‍ण को चरणामृत पिला कर ठीक कर दिया। उस समय उनके लिये नरक के डर से ज्‍यादा कृष्‍ण की बीमारी का डर ज्‍यादा सता रहा था। वह चाहती थीं कि कृष्‍ण जल्‍द ठीक हो जाएं। इस चीज को सभी गोपियों ने देखा और राधा तथा कृष्‍ण के प्‍यार को भली भांति समझा।चरणामृत की इस कहानी को राधा अष्‍टमी के दिन भक्‍तगणों को सुनाई जाती है। इन कहानियों से पता चलता है कि श्री कृष्‍ण और राधा का प्रेम केवल दिखावा न हो कर बल्‍कि एक सच्‍चा प्‍यार था। इससे यह भी पता चलता है कि राधा जी श्री कृष्‍ण के लिये कितनी ज्‍यादा अनमोल थीं।
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जानिए बरसाना पहुंचने के लिए क्या करें बाहर लोग, क्या की गर्इ है व्यवस्था –
राधा को कृष्ण की अनन्यतम प्रियतमा कहा गया है। राधारानी के गांव बरसाने से कृष्ण का काफी लगाव रहा है। चूंकि राधारानी इसी गांव की हैं इसलिए इसे ब्रजमंडल में प्रमुख स्थान प्राप्त है।
भौगोलिक स्थिति एवं पौराणिक महत्व – बरसाना का पुराना नाम बृहत्सानु, ब्रहसानु या वृषभानुपुर था। यह नगर पहाड़ी पर बसा है जिसे साक्षात ब्रह्मा का स्वरूप माना जाता है। इसके चार शिखर ब्रह्मा के चार मुख माने जाते हैं।
बरसाने के दूसरी ओर भी एक पहाड़ी है। इन्हीं दो पहाडिय़ों के बीच में बसा है-बरसाना। यहीं श्यामसुंदर ने गोपियों को घेरा था।
बरसाने में ही भानुपुष्कर नाम का सुंदर तालाब है जिसे वृषभानुजी ने बनवाया था। इसके किनारे एक जलमहल है जिसके दरवाजे सरोवर में जल के ऊपर खुले हुए हैं। यहां पीरी पोखर नामक सरोवर बड़ा प्रसिद्ध है। कहते हैं कि राधा यहां स्नान करती थीं और शादी के बाद अपने पीले हाथ उन्होंने इसी सरोवर में धोए थे। इसी कारण इसका नाम पीरी पोखर पड़ा।
बरसाना राधारानी का गांव था इसलिए राधाष्टमी पर यहां काफी भीड़ होती है। अष्टमी से चतुर्दशी तक यहां बहुत बड़ा मेला लगता है। बरसाना ब्रजमंडल में है। मथुरा से बरसाना लगभग 26 किलोमीटर दूर पड़ता है। यहां आने के लिए मथुरा से काफी साधन मिलते हैं।
देश भर से राधे के भक्त यहां बहुत पहले से जमा होने लगते हैं। उनके ठहरने के बंदोबस्त में प्रशासन भी हांथ बंटाता है। करीब एक सप्ताह तक कलक्ट्रेट सभाकक्ष, डीएम, एसएसपी के अलावा प्रशानिक अधिकारियों की मींटिग के दौरान में बरसाना के चेयरमैन और ईओ को तैयारी में सहयोग के निर्देश दिए। यहां तक कि सभी मजिस्ट्रेट मंदिरों के पास मौजूद स्थलों और भक्तों की सुविधा के लिए बने भण्ढारों की साफ सफाई की शर्त पर ही अनुमति के पात्र बनाए गए।


इस दौरान श्रद्धालुओं के लिए शौचालय, स्नानघर और महिलाओं के कपड़े बदले के लिए चेंजिग रूम पर्याप्त संख्या में बनाए जाने पर भी चर्चा हुई थी। ऐसे में ऐन वक्त पर किसी व्यवस्था में कमी नहीं रहे, इस बात का खास ख्याल रखा गया है। 
बरसाना श्री लाडली जी कौ धाम है। बहुतेरे श्रद्घालु इस अवसर पर डुबकी लगाएंगे। हर बार की तरह कोई बच्चा भी भूल से गहराई में उतर जाए, गोताखोर पलक झपकते ही उूपर ले आएंगे। इतना ही नहीं सुरक्षा के खातिर प्रिया कुंड में नाव चलाई जाएगी। चार गोताखोर प्रिया कुंड पर और दो गोताखोर गहवर कुंड पर हाजिर रहेंगे। यहां गोता लगाने वालों में लडकियां भी कम नहीं होतीं। कहते हैं न राधा हैं तो सखियन ते दूर कैसे रहेंगी। गहवर कुंड के पास ही करीब एक माह पहले राधा जी की सैकडों बरस पुरानी प्रतिमा प्रकट हुई है। माना जाता है कि इसकी गहराई 22 फीट से भी कहीं ज्यादा है।


आपके लिए आसान रूट, ऐसे पहुंच सकते हैं—
श्री राधे के धाम में पधारने के लिए आप यदि जयपुर से जा रहे हैं तो अलवर, डीग होते हुए लोकल ट्रेन गोवर्धन पहुंचती है। इसका पूर्ण स्टॉप मथुरा जंक्शन है। गोवर्धन स्टेशन पर ही बरसाना के लिए सैकडों वाहन इंतजार में खडे हैं। बस से जाएंगे तो इससे भी सरल रूट है, सीधा बरसाना उतरेंगे। नेशनल हाइवे नंबर दो आगरा और दिल्ली को जोडता है, तहसील छाता में उतरकर बरसाने के लिए निरे आटो हैं, बसे भी चल रही हैं।


बरसाना मथुरा-दिल्ली हाइवे से नजदीक है—
मथुरा से बरसाना करीब 45 किलोमीटर है वहीं गोवर्धन से 14 किमी। आपको बताएं तो अब गोर्वधन स्टेशन इलाहाबाद एक्सप्रेस, जो मथुरा होते हुए जयपुर आती है, में बनारस, कानपुर, लखनउू तक के श्रद्घालु सीधे आ रहे है। 
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बरसाने वाली राधारानी की कृपा और आशीर्वाद आप पर बना रहें।। 
कलयुगी राधा माँ से आप बचे रहें।।


    ||| जय श्री कृष्णा |||


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