क्या हैं योग ??? जानिए योग को
योग – एक जीवन शैली हैं –पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री
जब भी आप योग के बारे में सुनते हैं तो आप इसके बारे में अपने दिमाग में एक खाका तैयार करते हैं कि आखिर यह आपके लिए क्या है। योग का नाम आते ही कुछ के दिमाग में कांटों के बिस्तर पर बैठा फकीर याद आता होगा, जो ध्यान में लीन है और उन्हें लगता होगा कि यही योग है।
कुछ लोग किसी पहाड़ की गुफा में बैठे किसी साधु के बारे में सोचते हैं और योग को उससे जोड़ कर देखते हैं। कुछ लोगों ने रीढ़ की हड्डी पर कुंडलिनी की ऊपर की ओर जाती हुई पिक्टोरल रिप्रजेंटेशन देखी होगी और उनकी योग में रुचि जग गई। जबकि कोई अन्य व्यक्ति योग स्टूडियो में जाकर शीशे के सामने योग एरोबिक्स करता है। वह अपने शरीर को देखता है, अपने आसन को ध्यान से देखता है और उन्हें लगता है कि योग शारीरिक होता है और यह उनके शरीर के आकार को बनाकर रखता है।
आजकल अनेक चैनलों और सचर पत्रों में हिन्दू बनाम मुस्लिम के दायरे में योग को लेकर बहस हो रही है क्योंकि इससे राजनीति सधती है। मुझे कभी कहीं नहीं लगा कि कोई स्वामी, कोई महात्मा ऐसी दावेदारी कर रहे हैं, आज क्यों ऐसा लग रहा है। वे योग को धर्मविशेष के चश्मे से भी नहीं देखते। योग डरपोक नहीं बनाता है। योग आपको किसी दल के अधीन नहीं करता है। योग के नाम पर किसी धार्मिक राजनीतिक विचारधारा का प्रोपेगैंडा नहीं किया जाना चाहिए। योग की उत्पत्ति धर्म की आधुनिक समझ पर छपी किताबों के किसी भी पन्ने से नहीं होती है।संयुक्त राष्ट्र द्वारा .. जून विश्व योग दिवस के रूप में स्वीकार होने पर आज इस विषय पर सम्पूर्ण विश्व का ध्यान गया हैं..
‘योगी सर्प, मेढक आदि जन्तुओं से आसन, मुद्रा, प्रणायाम आदि योगांकों को सीखकर अपने स्वास्थ्य और आयु की वृद्धि करने में समर्थ हुए थे। प्राचीन ऋषियों की, ईसा आदि महात्माओं की योगबल से रोगियों के रोग दूर करने की बात प्रसिद्ध ही है। योगबल के साधक ईर्ष्या-द्वेष, सुख-दुख, शत्रु-मित्र से दूर होकर शान्तचित्त होकर किस प्रकार पृथ्वी पर शांति राज्य स्थापित करने में सहायक हुए थे इसके ज्वलंत उदाहरण हैं- शंकर, ईसामसीह, बुद्ध इत्यादि।
हर व्यक्ति योग के बारे में अपना अलग विचार रखता है या उसके दिमाग में इसको लेकर अलग तस्वीर बनती है और इसी तरह से योग की पहचान बनी है। आप अपने दिमाग में योग को लेकर कई विचार, कई तस्वीरें बनाते हैं, जो ये तय करता है कि आपके लिए योग क्या है। हालांकि इनमें से कुछ भी योग नहीं है। …तो फिर आखिर योग है क्या?
योग आपके शरीर, व्यवहार, मन और भावनाओं को नियंत्रित करने वाली एक जीवनशैली है। यह दिल, दिमाग और हाथों के संबंधों या विशेषताओं को बढ़ाने वाली एक जीवनशैली है। मेरे विचार से यही योग की परिभाषा है।मैं योग को एक जीवनशैली के रूप में देखता हूं। जैसे-जैसे आप योग के छोटे-छोटे नियमों का अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में पालन करने लगते हैं आपका दैनिक जीवन अच्छा होने लगता है। आप योग के छोटे-छोटे नियमों को अपने व्यवहार में लाते हैं तो आपका व्यवहार अच्छा होने लगता है। आप थोड़ा-बहुत विश्राम और ध्यान करने लगते हैं तो आप अपनी जिंदगी में तनाव व चिंताओं से बेहतर तरीके से निपटने लगते हैं। जैसे ही आप योग घटकों को अपने दिनचर्या में लाना शुरू करते हैं तो योग आपकी जीवनशैली का हिस्सा बन जाता है। अगर आपको लगता है कि योग क्लास में शारीरिक क्रियाओं, सांसों पर नियंत्रण, विश्राम और ध्यान के जरिए ही योग किया जा सकता है तो फिर यह आपकी जिंदगी का हिस्सा कभी नहीं बन पाएगा।
योग परम्परा और शास्त्रों का विस्तृत इतिहास रहा है. हालाँकि इसका इतिहास दफन हो गया है अफगानिस्तान और हिमालय की गुफाओं में और तमिलनाडु तथा असम सहित बर्मा के जंगलों की कंदराओं में. जिस तरह राम के निशान इस भारतीय उपमहाद्वीप में जगह-जगह बिखरे पड़े है उसी तरह योगियों और तपस्वियों के निशान जंगलों, पहाड़ों और गुफाओं में आज भी देखे जा सकते है. बस जरूरत है भारत के उस स्वर्णिम इतिहास को खोज निकालने की जिस पर हमें गर्व है. माना जाता है कि योग का जन्म भारत में ही हुआ मगर दुखद यह रहा की आधुनिक कहे वाले समय में अपनी दौड़ती-भागती जिंदगी से लोगों ने योग को अपनी दिनचर्या से हटा लिया| जिसका असर लोगों के स्वाथ्य पर हुआ| मगर आज भारत में ही नहीं विश्व भर में योग का बोलबाला है और निसंदेह उसका श्रेय भारत के ही योग गुरूओं को जाता है जिन्होंने योग को फिर से पुनर्जीवित किया|
योग संस्कृत धातु ‘युज’ से उत्पन्न हुआ है जिसका अर्थ है व्यक्तिगत चेतना या आत्मा का सार्वभौमिक चेतना या रूह से मिलन। योग 5.00 वर्ष प्राचीन भारतीय ज्ञान का समुदाय है। यद्यपि कई लोग योग को केवल शारीरिक व्यायाम ही मानते हैं जहाँ लोग शरीर को तोड़ते -मरोड़ते हैं और श्वास लेने के जटिल तरीके अपनाते हैं | वास्तव में देखा जाए तो ये क्रियाएँ मनुष्य के मन और आत्मा की अनंत क्षमताओं की तमाम परतों को खोलने वाले ग़ूढ विज्ञान के बहुत ही सतही पहलू से संबंधित हैं|
योग विज्ञान में जीवन शैली का पूर्ण सार आत्मसात किया गया है , जिसमें ज्ञान योग या तत्व ज्ञान,भक्ति योग या परमानन्द भक्ति मार्ग,कर्म योग या आनंदित कार्य मार्ग और राज योग या मानसिक नियंत्रण मार्ग समाहित हैं । राजयोग आगे और ८ भागों में विभाजित है। राजयोग प्रणाली के मुख्य केंद्र में उक्त विभिन्न पद्धतियों को संतुलित करना एवं उन्हे समीकृत करना ही योग के आसनों का अभ्यास है…
आज योग को भारतीयता की पहचान बताते हुए हिन्दुत्व से जोड़ने का प्रयास हो रहा है। पहले हिन्दुत्व और भारतीयता को एक कहा गया अब योग के बहाने भारतीयता की बात हो रही है। जबकि योग का कभी दावा नहीं रहा कि वो किसी की सत्ता को बनाए या बचाए रखने के लिए साधन बनेगा। हमें पूछना चाहिए कि क्या हम योग के स्वरूप को जानते हैं। ट्विटर पर हैशटैग चला देने या हठयोग के एक दो आसनों का प्रदर्शन कर सबको चौंका देना योग नहीं है। योग को लेकर कितनी सार्थक दार्शनिक बहस हो सकती थी लेकिन इसे आसनों के पैकेज में बदल दिया गया है। योगी वही चमत्कार करता हुआ दिख रहा है जिसकी चेतावनी योग पर विचार करने वाले महात्माओं ने समय-समय पर जारी की है। क्या योग को तमाम परंपराओं से अलग किया जा रहा है?
प्राचीन और आधुनिक योग – सभी के लिए—
योग के दैहिक अभ्यास की सुंदरता यह है कि योग आसन आपको संभाले रखते हैं आप वृद्ध हो या जवान ,हृष्ट पुष्ट हों या कमज़ोर। उम्र के बढ़ने के साथ आपकी समझ आसनो के प्रति प्रगतिशील हो जाती है। आप आसनों के बाहरी संरेक्षण एवं प्रक्रिया से आगे बढ़कर आंतरिक शुद्धिकरण और अंततः केवल आसान में ही बने रहने तक पहुँच जाते है। योग हमारे लिए कभी भी पराया नहीं रहा है। हम योग तबसे कर रहे हैं जब से हम शिशु थे चाहे वह ‘बिल्ली खिचाव’ आसन हो जो मेरुदंड बनता हो या ‘पवन मुक्त’ आसन जो पाचन को बढ़ावा देता है। आप देखेंगे कि शिशु दिन भर में कोई न कोई आसन कर रहा होता है। विभिन्न लोगों के लिए योग के विभिन्न रूप हो सकते हैं । हम दृढ़ संकल्पित हैं कि हम आपको अपनी योग – जीवन की राह को खोजने में सहायक होंगे |
योग हैं आयुर्वेद -जीवन का विज्ञान—
आयुर्वेद विश्व की सबसे प्रगतिशील एवं शक्तिशाली मानसिक-शारीरिक स्वास्थ व्यवस्था है। यह प्रणाली केवल बिमारियों के इलाज तक ही सीमित नहीं है,बल्कि आयुर्वेद जीवन का विज्ञान है। इस बौद्धिक ज्ञान का स्वरूप सब लोगों को जीवंत एवं स्वस्थ रहने में मदद करता है साथ ही उनको अपनी पूर्ण मानवीय क्षमताओं का भी एहसास कराता है। वह प्रकृति के सिद्धांतों का उपयोग करके मनुष्य के व्यक्तिगत शरीर ,मन एवं मनोवृत्ति का सही संतुलन कराकर उसे अच्छा स्वास्थय प्रदान करता है। आयुर्वेद का अभ्यास आपके योग अभ्यास को भी बेहतर बनता है,जो एक सतत्त लाभकारी स्थिति है। यह भाग बेहतर जीवन के लिए बहुत से आयुर्वेदिक नुक्ते और सुझाव लेकर आया है
योग में हैं प्राणायाम एवं ध्यान का महत्त्व —
प्राणायाम अपने श्वास की वृद्धि एवं नियंत्रण है। श्वास लेने की सही तकनीक का अभ्यास करने से रक्त एवं दिमाग में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाई जा सकती है , अंततः इससे प्राण या महत्त्वपूर्ण जीवन ऊर्जा के नियंत्रण में मदत मिलती है। प्राणायाम आसानी से योग आसन के साथ किया जा सकता है। इन दो योग सिद्धांतों का मिलन मन एवं शरीर का उच्चतम शुद्धिकरण एवं आत्मानुशासन माना गया है। प्राणायाम की तकनीक हमारे ध्यान के अनुभव को भी गहरा बनाती है। इन वर्गों में आप अनेक प्रकार के प्राणायाम तकनीकों की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।योग साधना के आठ अंग हैं, जिनमें प्राणायाम चौथा सोपान है. अब तक हमने यम, नियम तथा योगासन के विषय में चर्चा की है, जो हमारे शरीर को ठीक रखने के लिए बहुत आवश्यक है.प्राणायाम के बाद प्रत्याहार, ध्यान, धारणा तथा समाधि मानसिक साधन हैं. प्राणायाम दोनों प्रकार की साधनाओं के बीच का साधन है, अर्थात् यह शारीरिक भी है और मानसिक भी. प्राणायाम से शरीर और मन दोनों स्वस्थ एवं पवित्र हो जाते हैं तथा मन का निग्रह होता है.
जानिए योगासनों के गुण और लाभ—-
(1) योगासनों का सबसे बड़ा गुण यह हैं कि वे सहज साध्य और सर्वसुलभ हैं. योगासन ऐसी व्यायाम पद्धति है जिसमें न तो कुछ विशेष व्यय होता है और न इतनी साधन-सामग्री की आवश्यकता होती है.
(2) योगासन अमीर-गरीब, बूढ़े-जवान, सबल-निर्बल सभी स्त्री-पुरुष कर सकते हैं.
(.) आसनों में जहां मांसपेशियों को तानने, सिकोड़ने और ऐंठने वाली क्रियायें करनी पड़ती हैं, वहीं दूसरी ओर साथ-साथ तनाव-खिंचाव दूर करनेवाली क्रियायें भी होती रहती हैं, जिससे शरीर की थकान मिट जाती है और आसनों से व्यय शक्ति वापिस मिल जाती है. शरीर और मन को तरोताजा करने, उनकी खोई हुई शक्ति की पूर्ति कर देने और आध्यात्मिक लाभ की दृष्टि से भी योगासनों का अपना अलग महत्त्व है.
(4) योगासनों से भीतरी ग्रंथियां अपना काम अच्छी तरह कर सकती हैं और युवावस्था बनाए रखने एवं वीर्य रक्षा में सहायक होती है.
(5) योगासनों द्वारा पेट की भली-भांति सुचारु रूप से सफाई होती है और पाचन अंग पुष्ट होते हैं. पाचन-संस्थान में गड़बड़ियां उत्पन्न नहीं होतीं.
(6) योगासन मेरुदण्ड-रीढ़ की हड्डी को लचीला बनाते हैं और व्यय हुई नाड़ी शक्ति की पूर्ति करते हैं.
(7) योगासन पेशियों को शक्ति प्रदान करते हैं. इससे मोटापा घटता है और दुर्बल-पतला व्यक्ति तंदरुस्त होता है.
(8) योगासन स्त्रियों की शरीर रचना के लिए विशेष अनुकूल हैं. वे उनमें सुन्दरता, सम्यक-विकास, सुघड़ता और गति, सौन्दर्य आदि के गुण उत्पन्न करते हैं.
(9) योगासनों से बुद्धि की वृद्धि होती है और धारणा शक्ति को नई स्फूर्ति एवं ताजगी मिलती है. ऊपर उठने वाली प्रवृत्तियां जागृत होती हैं और आत्मा-सुधार के प्रयत्न बढ़ जाते हैं.
(10) योगासन स्त्रियों और पुरुषों को संयमी एवं आहार-विहार में मध्यम मार्ग का अनुकरण करने वाला बनाते हैं, अत: मन और शरीर को स्थाई तथा सम्पूर्ण स्वास्थ्य, मिलता है.
(11) योगासन श्वास- क्रिया का नियमन करते हैं, हृदय और फेफड़ों को बल देते हैं, रक्त को शुद्ध करते हैं और मन में स्थिरता पैदा कर संकल्प शक्ति को बढ़ाते हैं.
(12) योगासन शारीरिक स्वास्थ्य के लिए वरदान स्वरूप हैं क्योंकि इनमें शरीर के समस्त भागों पर प्रभाव पड़ता है और वह अपने कार्य सुचारु रूप से करते हैं.
(13) आसन रोग विकारों को नष्ट करते हैं, रोगों से रक्षा करते हैं, शरीर को निरोग, स्वस्थ एवं बलिष्ठ बनाए रखते हैं.
(14) आसनों से नेत्रों की ज्योति बढ़ती है. आसनों का निरन्तर अभ्यास करने वाले को चश्में की आवश्यकता समाप्त हो जाती है.
(15) योगासन से शरीर के प्रत्येक अंग का व्यायाम होता है, जिससे शरीर पुष्ट, स्वस्थ एवं सुदृढ़ बनता है. आसन शरीर के पांच मुख्यांगों, स्नायु तंत्र, रक्ताभिगमन तंत्र, श्वासोच्छवास तंत्र की क्रियाओं का व्यवस्थित रूप से संचालन करते हैं जिससे शरीर पूर्णत: स्वस्थ बना रहता है और कोई रोग नहीं होने पाता. शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आत्मिक सभी क्षेत्रों के विकास में आसनों का अधिकार है. अन्य व्यायाम पद्धतियां केवल वाह्य शरीर को ही प्रभावित करने की क्षमता रखती हैं, जब कि योगसन मानव का चहुँमुखी विकास करते हैं.
योग – एक जीवन शैली हैं –पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री
जब भी आप योग के बारे में सुनते हैं तो आप इसके बारे में अपने दिमाग में एक खाका तैयार करते हैं कि आखिर यह आपके लिए क्या है। योग का नाम आते ही कुछ के दिमाग में कांटों के बिस्तर पर बैठा फकीर याद आता होगा, जो ध्यान में लीन है और उन्हें लगता होगा कि यही योग है।
कुछ लोग किसी पहाड़ की गुफा में बैठे किसी साधु के बारे में सोचते हैं और योग को उससे जोड़ कर देखते हैं। कुछ लोगों ने रीढ़ की हड्डी पर कुंडलिनी की ऊपर की ओर जाती हुई पिक्टोरल रिप्रजेंटेशन देखी होगी और उनकी योग में रुचि जग गई। जबकि कोई अन्य व्यक्ति योग स्टूडियो में जाकर शीशे के सामने योग एरोबिक्स करता है। वह अपने शरीर को देखता है, अपने आसन को ध्यान से देखता है और उन्हें लगता है कि योग शारीरिक होता है और यह उनके शरीर के आकार को बनाकर रखता है।
आजकल अनेक चैनलों और सचर पत्रों में हिन्दू बनाम मुस्लिम के दायरे में योग को लेकर बहस हो रही है क्योंकि इससे राजनीति सधती है। मुझे कभी कहीं नहीं लगा कि कोई स्वामी, कोई महात्मा ऐसी दावेदारी कर रहे हैं, आज क्यों ऐसा लग रहा है। वे योग को धर्मविशेष के चश्मे से भी नहीं देखते। योग डरपोक नहीं बनाता है। योग आपको किसी दल के अधीन नहीं करता है। योग के नाम पर किसी धार्मिक राजनीतिक विचारधारा का प्रोपेगैंडा नहीं किया जाना चाहिए। योग की उत्पत्ति धर्म की आधुनिक समझ पर छपी किताबों के किसी भी पन्ने से नहीं होती है।संयुक्त राष्ट्र द्वारा .. जून विश्व योग दिवस के रूप में स्वीकार होने पर आज इस विषय पर सम्पूर्ण विश्व का ध्यान गया हैं..
‘योगी सर्प, मेढक आदि जन्तुओं से आसन, मुद्रा, प्रणायाम आदि योगांकों को सीखकर अपने स्वास्थ्य और आयु की वृद्धि करने में समर्थ हुए थे। प्राचीन ऋषियों की, ईसा आदि महात्माओं की योगबल से रोगियों के रोग दूर करने की बात प्रसिद्ध ही है। योगबल के साधक ईर्ष्या-द्वेष, सुख-दुख, शत्रु-मित्र से दूर होकर शान्तचित्त होकर किस प्रकार पृथ्वी पर शांति राज्य स्थापित करने में सहायक हुए थे इसके ज्वलंत उदाहरण हैं- शंकर, ईसामसीह, बुद्ध इत्यादि।
हर व्यक्ति योग के बारे में अपना अलग विचार रखता है या उसके दिमाग में इसको लेकर अलग तस्वीर बनती है और इसी तरह से योग की पहचान बनी है। आप अपने दिमाग में योग को लेकर कई विचार, कई तस्वीरें बनाते हैं, जो ये तय करता है कि आपके लिए योग क्या है। हालांकि इनमें से कुछ भी योग नहीं है। …तो फिर आखिर योग है क्या?
योग आपके शरीर, व्यवहार, मन और भावनाओं को नियंत्रित करने वाली एक जीवनशैली है। यह दिल, दिमाग और हाथों के संबंधों या विशेषताओं को बढ़ाने वाली एक जीवनशैली है। मेरे विचार से यही योग की परिभाषा है।मैं योग को एक जीवनशैली के रूप में देखता हूं। जैसे-जैसे आप योग के छोटे-छोटे नियमों का अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में पालन करने लगते हैं आपका दैनिक जीवन अच्छा होने लगता है। आप योग के छोटे-छोटे नियमों को अपने व्यवहार में लाते हैं तो आपका व्यवहार अच्छा होने लगता है। आप थोड़ा-बहुत विश्राम और ध्यान करने लगते हैं तो आप अपनी जिंदगी में तनाव व चिंताओं से बेहतर तरीके से निपटने लगते हैं। जैसे ही आप योग घटकों को अपने दिनचर्या में लाना शुरू करते हैं तो योग आपकी जीवनशैली का हिस्सा बन जाता है। अगर आपको लगता है कि योग क्लास में शारीरिक क्रियाओं, सांसों पर नियंत्रण, विश्राम और ध्यान के जरिए ही योग किया जा सकता है तो फिर यह आपकी जिंदगी का हिस्सा कभी नहीं बन पाएगा।
योग परम्परा और शास्त्रों का विस्तृत इतिहास रहा है. हालाँकि इसका इतिहास दफन हो गया है अफगानिस्तान और हिमालय की गुफाओं में और तमिलनाडु तथा असम सहित बर्मा के जंगलों की कंदराओं में. जिस तरह राम के निशान इस भारतीय उपमहाद्वीप में जगह-जगह बिखरे पड़े है उसी तरह योगियों और तपस्वियों के निशान जंगलों, पहाड़ों और गुफाओं में आज भी देखे जा सकते है. बस जरूरत है भारत के उस स्वर्णिम इतिहास को खोज निकालने की जिस पर हमें गर्व है. माना जाता है कि योग का जन्म भारत में ही हुआ मगर दुखद यह रहा की आधुनिक कहे वाले समय में अपनी दौड़ती-भागती जिंदगी से लोगों ने योग को अपनी दिनचर्या से हटा लिया| जिसका असर लोगों के स्वाथ्य पर हुआ| मगर आज भारत में ही नहीं विश्व भर में योग का बोलबाला है और निसंदेह उसका श्रेय भारत के ही योग गुरूओं को जाता है जिन्होंने योग को फिर से पुनर्जीवित किया|
योग संस्कृत धातु ‘युज’ से उत्पन्न हुआ है जिसका अर्थ है व्यक्तिगत चेतना या आत्मा का सार्वभौमिक चेतना या रूह से मिलन। योग 5.00 वर्ष प्राचीन भारतीय ज्ञान का समुदाय है। यद्यपि कई लोग योग को केवल शारीरिक व्यायाम ही मानते हैं जहाँ लोग शरीर को तोड़ते -मरोड़ते हैं और श्वास लेने के जटिल तरीके अपनाते हैं | वास्तव में देखा जाए तो ये क्रियाएँ मनुष्य के मन और आत्मा की अनंत क्षमताओं की तमाम परतों को खोलने वाले ग़ूढ विज्ञान के बहुत ही सतही पहलू से संबंधित हैं|
योग विज्ञान में जीवन शैली का पूर्ण सार आत्मसात किया गया है , जिसमें ज्ञान योग या तत्व ज्ञान,भक्ति योग या परमानन्द भक्ति मार्ग,कर्म योग या आनंदित कार्य मार्ग और राज योग या मानसिक नियंत्रण मार्ग समाहित हैं । राजयोग आगे और ८ भागों में विभाजित है। राजयोग प्रणाली के मुख्य केंद्र में उक्त विभिन्न पद्धतियों को संतुलित करना एवं उन्हे समीकृत करना ही योग के आसनों का अभ्यास है…
आज योग को भारतीयता की पहचान बताते हुए हिन्दुत्व से जोड़ने का प्रयास हो रहा है। पहले हिन्दुत्व और भारतीयता को एक कहा गया अब योग के बहाने भारतीयता की बात हो रही है। जबकि योग का कभी दावा नहीं रहा कि वो किसी की सत्ता को बनाए या बचाए रखने के लिए साधन बनेगा। हमें पूछना चाहिए कि क्या हम योग के स्वरूप को जानते हैं। ट्विटर पर हैशटैग चला देने या हठयोग के एक दो आसनों का प्रदर्शन कर सबको चौंका देना योग नहीं है। योग को लेकर कितनी सार्थक दार्शनिक बहस हो सकती थी लेकिन इसे आसनों के पैकेज में बदल दिया गया है। योगी वही चमत्कार करता हुआ दिख रहा है जिसकी चेतावनी योग पर विचार करने वाले महात्माओं ने समय-समय पर जारी की है। क्या योग को तमाम परंपराओं से अलग किया जा रहा है?
प्राचीन और आधुनिक योग – सभी के लिए—
योग के दैहिक अभ्यास की सुंदरता यह है कि योग आसन आपको संभाले रखते हैं आप वृद्ध हो या जवान ,हृष्ट पुष्ट हों या कमज़ोर। उम्र के बढ़ने के साथ आपकी समझ आसनो के प्रति प्रगतिशील हो जाती है। आप आसनों के बाहरी संरेक्षण एवं प्रक्रिया से आगे बढ़कर आंतरिक शुद्धिकरण और अंततः केवल आसान में ही बने रहने तक पहुँच जाते है। योग हमारे लिए कभी भी पराया नहीं रहा है। हम योग तबसे कर रहे हैं जब से हम शिशु थे चाहे वह ‘बिल्ली खिचाव’ आसन हो जो मेरुदंड बनता हो या ‘पवन मुक्त’ आसन जो पाचन को बढ़ावा देता है। आप देखेंगे कि शिशु दिन भर में कोई न कोई आसन कर रहा होता है। विभिन्न लोगों के लिए योग के विभिन्न रूप हो सकते हैं । हम दृढ़ संकल्पित हैं कि हम आपको अपनी योग – जीवन की राह को खोजने में सहायक होंगे |
योग हैं आयुर्वेद -जीवन का विज्ञान—
आयुर्वेद विश्व की सबसे प्रगतिशील एवं शक्तिशाली मानसिक-शारीरिक स्वास्थ व्यवस्था है। यह प्रणाली केवल बिमारियों के इलाज तक ही सीमित नहीं है,बल्कि आयुर्वेद जीवन का विज्ञान है। इस बौद्धिक ज्ञान का स्वरूप सब लोगों को जीवंत एवं स्वस्थ रहने में मदद करता है साथ ही उनको अपनी पूर्ण मानवीय क्षमताओं का भी एहसास कराता है। वह प्रकृति के सिद्धांतों का उपयोग करके मनुष्य के व्यक्तिगत शरीर ,मन एवं मनोवृत्ति का सही संतुलन कराकर उसे अच्छा स्वास्थय प्रदान करता है। आयुर्वेद का अभ्यास आपके योग अभ्यास को भी बेहतर बनता है,जो एक सतत्त लाभकारी स्थिति है। यह भाग बेहतर जीवन के लिए बहुत से आयुर्वेदिक नुक्ते और सुझाव लेकर आया है
योग में हैं प्राणायाम एवं ध्यान का महत्त्व —
प्राणायाम अपने श्वास की वृद्धि एवं नियंत्रण है। श्वास लेने की सही तकनीक का अभ्यास करने से रक्त एवं दिमाग में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाई जा सकती है , अंततः इससे प्राण या महत्त्वपूर्ण जीवन ऊर्जा के नियंत्रण में मदत मिलती है। प्राणायाम आसानी से योग आसन के साथ किया जा सकता है। इन दो योग सिद्धांतों का मिलन मन एवं शरीर का उच्चतम शुद्धिकरण एवं आत्मानुशासन माना गया है। प्राणायाम की तकनीक हमारे ध्यान के अनुभव को भी गहरा बनाती है। इन वर्गों में आप अनेक प्रकार के प्राणायाम तकनीकों की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।योग साधना के आठ अंग हैं, जिनमें प्राणायाम चौथा सोपान है. अब तक हमने यम, नियम तथा योगासन के विषय में चर्चा की है, जो हमारे शरीर को ठीक रखने के लिए बहुत आवश्यक है.प्राणायाम के बाद प्रत्याहार, ध्यान, धारणा तथा समाधि मानसिक साधन हैं. प्राणायाम दोनों प्रकार की साधनाओं के बीच का साधन है, अर्थात् यह शारीरिक भी है और मानसिक भी. प्राणायाम से शरीर और मन दोनों स्वस्थ एवं पवित्र हो जाते हैं तथा मन का निग्रह होता है.
जानिए योगासनों के गुण और लाभ—-
(1) योगासनों का सबसे बड़ा गुण यह हैं कि वे सहज साध्य और सर्वसुलभ हैं. योगासन ऐसी व्यायाम पद्धति है जिसमें न तो कुछ विशेष व्यय होता है और न इतनी साधन-सामग्री की आवश्यकता होती है.
(2) योगासन अमीर-गरीब, बूढ़े-जवान, सबल-निर्बल सभी स्त्री-पुरुष कर सकते हैं.
(.) आसनों में जहां मांसपेशियों को तानने, सिकोड़ने और ऐंठने वाली क्रियायें करनी पड़ती हैं, वहीं दूसरी ओर साथ-साथ तनाव-खिंचाव दूर करनेवाली क्रियायें भी होती रहती हैं, जिससे शरीर की थकान मिट जाती है और आसनों से व्यय शक्ति वापिस मिल जाती है. शरीर और मन को तरोताजा करने, उनकी खोई हुई शक्ति की पूर्ति कर देने और आध्यात्मिक लाभ की दृष्टि से भी योगासनों का अपना अलग महत्त्व है.
(4) योगासनों से भीतरी ग्रंथियां अपना काम अच्छी तरह कर सकती हैं और युवावस्था बनाए रखने एवं वीर्य रक्षा में सहायक होती है.
(5) योगासनों द्वारा पेट की भली-भांति सुचारु रूप से सफाई होती है और पाचन अंग पुष्ट होते हैं. पाचन-संस्थान में गड़बड़ियां उत्पन्न नहीं होतीं.
(6) योगासन मेरुदण्ड-रीढ़ की हड्डी को लचीला बनाते हैं और व्यय हुई नाड़ी शक्ति की पूर्ति करते हैं.
(7) योगासन पेशियों को शक्ति प्रदान करते हैं. इससे मोटापा घटता है और दुर्बल-पतला व्यक्ति तंदरुस्त होता है.
(8) योगासन स्त्रियों की शरीर रचना के लिए विशेष अनुकूल हैं. वे उनमें सुन्दरता, सम्यक-विकास, सुघड़ता और गति, सौन्दर्य आदि के गुण उत्पन्न करते हैं.
(9) योगासनों से बुद्धि की वृद्धि होती है और धारणा शक्ति को नई स्फूर्ति एवं ताजगी मिलती है. ऊपर उठने वाली प्रवृत्तियां जागृत होती हैं और आत्मा-सुधार के प्रयत्न बढ़ जाते हैं.
(10) योगासन स्त्रियों और पुरुषों को संयमी एवं आहार-विहार में मध्यम मार्ग का अनुकरण करने वाला बनाते हैं, अत: मन और शरीर को स्थाई तथा सम्पूर्ण स्वास्थ्य, मिलता है.
(11) योगासन श्वास- क्रिया का नियमन करते हैं, हृदय और फेफड़ों को बल देते हैं, रक्त को शुद्ध करते हैं और मन में स्थिरता पैदा कर संकल्प शक्ति को बढ़ाते हैं.
(12) योगासन शारीरिक स्वास्थ्य के लिए वरदान स्वरूप हैं क्योंकि इनमें शरीर के समस्त भागों पर प्रभाव पड़ता है और वह अपने कार्य सुचारु रूप से करते हैं.
(13) आसन रोग विकारों को नष्ट करते हैं, रोगों से रक्षा करते हैं, शरीर को निरोग, स्वस्थ एवं बलिष्ठ बनाए रखते हैं.
(14) आसनों से नेत्रों की ज्योति बढ़ती है. आसनों का निरन्तर अभ्यास करने वाले को चश्में की आवश्यकता समाप्त हो जाती है.
(15) योगासन से शरीर के प्रत्येक अंग का व्यायाम होता है, जिससे शरीर पुष्ट, स्वस्थ एवं सुदृढ़ बनता है. आसन शरीर के पांच मुख्यांगों, स्नायु तंत्र, रक्ताभिगमन तंत्र, श्वासोच्छवास तंत्र की क्रियाओं का व्यवस्थित रूप से संचालन करते हैं जिससे शरीर पूर्णत: स्वस्थ बना रहता है और कोई रोग नहीं होने पाता. शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक और आत्मिक सभी क्षेत्रों के विकास में आसनों का अधिकार है. अन्य व्यायाम पद्धतियां केवल वाह्य शरीर को ही प्रभावित करने की क्षमता रखती हैं, जब कि योगसन मानव का चहुँमुखी विकास करते हैं.