अधिक मास, पुरुषोत्तम मास, ADHIK MAS, PURUSHOTTAM MAS,
अधिक मास ,पुरुषोत्तम मास...
अधिक मास ,पुरुषोत्तम मास...1
सौर वर्ष और चांद्र वर्ष में सामंजस्य स्थापित करने के लिए हर तीसरे वर्ष पंचांगों में एक चान्द्रमास की वृद्धि कर दी जाती है। इसी को अधिक मास या अधिमास या मलमास कहते हैं। सौर-वर्ष का मान ३६५ दिन १५ घड़ी २२ पल और ५७ विपल हैं। जबकि चांद्रवर्ष ३५४ दिन २२ घड़ी १ पल और २३ विपल का होता है। इस प्रकार दोनों वर्षमानों में प्रतिवर्ष १० दिन ५३ घटी २१ पल अर्थात लगभग ११ दिन का अन्तर पड़ता है। इस अन्तर में समानता लाने के लिए चांद्रवर्ष १२ मासों के स्थान पर १३ मास का हो जाता है।
पंडित ” विशाल” दयानन्द शास्त्री के अनुसार अधिक मास को भगवान पुरुषोत्तम ने अपना नाम दिया है इसलिए इसे पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है। कम ही लोग ये बात जानते होंगे कि अधिक मास भी कई प्रकार का होता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार अलग-अलग कारणों से अधिक मास के 3 प्रकार बताए गए हैं। सामान्य अधिकमास, संसर्प अधिकमास और मलिम्लुच अधिकमास।
ज्योतिषियों के अनुसार जो अधिकमास क्षयमास के बिना आता है अर्थात वर्ष में केवल एक अधिकमास आता है वह सामान्य अधिकमास होता है।
वर्तमान में जो अधिकमास चल रहा है वह इसी प्रकार का है।
भारतीय पंचांग के अनुसार सभी नक्षत्र, तिथियां-वार, योग-करण के अलावा सभी माह के कोई न कोई देवता स्वामी है, किंतु पुरुषोत्तम मास का कोई स्वामी न होने के कारण सभी मंगल कार्य, शुभ और पितृ कार्य इस माह में वर्जित माने जाते हैं।
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पंडित ” विशाल” दयानन्द शास्त्री,(ज्योतिष वास्तु सलाहकार)
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19 साल बाद आया हैं यह अनूठा संयोग—
पंडित ” विशाल” दयानन्द शास्त्री के अनुसार आषाढ़ मास में मलमास के लगने का संयोग दशकों बाद होता है। इससे पूर्व 1996 में यह संयोग आया था। अगली बार यह संयोग 2035 में होगा। अधिक मास इस बार आषाढ़ में 17 जून से 16 जुलाई तक रहेगा। अधिक मास उपवास, दान धर्म, पूजा-पाठ, यज्ञ-हवन और ध्यान करने से मनुष्य के पाप कर्मों का क्षय होकर उन्हें कई गुना पुण्य फल प्राप्त होता है। पुरुषोत्तम मास में दान किया गया एक रुपया भी आपको सौ गुना फल देता है। इसलिए अधिक मास के महत्व को ध्यान में रखकर इस माह दान-पुण्य देने का बहुत महत्व है।
पुरुषोत्तम मास में धर्मप्रेमी लोग भाँति-भाँति का दान कर पुण्य फलों का संचय करेंगे। अनेक मंदिरों में कथा-पुराण के आयोजन होंगे। दिवंगतों की शांति और कल्याण की कामना में भूदेवों के घर पूरे माह जल सेवा करने का संकल्प लिया जाएगा। मिट्टी के कलश जल भर कर दान दिए जाएँगे। खरबूज, आम, तरबूज सहित अन्य मौसमी फलों का दान होगा। खजूर (खोड़िए) और प्लास्टिक के हाथ पंखे भूदेवों को भेंट किए जाएँगे। पूरे माह स्नान कर विधिपूर्वक पूजन-अर्चन कथा श्रवण होगा।
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इस माह धार्मिक तीर्थस्थलों पर जाकर स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति और अनंत पुण्यों की प्राप्ति होती है। पुरुषोत्तम मास का अर्थ जिस माह में सूर्य संक्रांति नहीं होती वह अधिक मास कहलाता होता है। इनमें विशेष तौर पर सभी प्रकार के मांगलिक कार्य वर्जित माने गए है, लेकिन धार्मिक कर्म के लिए यह माह पुण्य फलदायी माना गया है।खास तौर पर भगवान कृष्‍ण, भगवद्‍गीता, श्रीराम की आराधना, कथा वाचन और विष्‍णु भगवान की उपासना की जा‍ती है। इस माह भर में उपासना करने का अपना अलग ही महत्व माना गया है। हमारे पुराण कहते हैं कि पुरुषोत्तम मास में कथा पढ़ने, सुनने से बहुत लाभ प्राप्त होता है। इस माह में जमीन पर शयन करना, एक ही समय भोजन ग्रहण करने से मनुष्य को अनंत फल प्राप्त होते हैं।
अधिकमास क्षयमास के पूर्व आने वाला अधिकमास होता है, वहीं मलिम्लुच अधिकमास क्षयमास के बाद में आने वाला अधिकमास होता है। ये दोनों अधिकमास क्षयमास के साथ ही आते हैं।सौर मास 12 और राशियां भी 12 होती हैं। जब दो पक्षों में संक्रांति नहीं होती, तब अधिकमास होता है। आमतौर पर यह स्थिति 32 माह और 16 दिन में एक बार यानी हर तीसरे वर्ष में बनती है। ऐसा सूर्य और पृथ्वी की गति में होने वाले परिवर्तन से तिथियों का समय घटने-बढऩे के कारण होता है। नए वर्ष में आषाढ़ 3 जून को शुरू होकर 30 जुलाई तक रहेगा। इस अवधि में 17 जून से 16 जुलाई तक की अवधि को अधिकमास माना जाएगा। इसे पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है।मौजूदा वर्ष की तुलना में पर्वों की तारीख हर तीन साल में घट-बढ़ गईं हैं। अब साल 2015 में आने वाले त्योहार 20 दिन बाद तक 10 दिन पहले आएंगे। ये पर्व वर्ष 2015 में अधिकमास के कारण बदल रहे हैं। त्योहारों की तिथियों का गणित, आषाढ़ के दो महीने पहले से आने के कारण हुआ है।सूर्य और पृथ्वी की गति में होने वाले परिवर्तन से तिथियों का समय घटने-बढऩे के कारण होता है। नए वर्ष में आषाढ़ 3 जून को शुरू होकर 30 जुलाई तक रहेगा। इस अवधि में 17 जून से 16 जुलाई तक की अवधि को अधिकमास माना जाएगा। इसे पुरूषोत्तम मास भी कहा जाता है।
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कैसे और कब आता है पुरुषोत्तम मास ??
जिस चन्द्रमास में सूर्य की संक्रान्ति नही होती है वह मास अधिमास कहलाता है. दूसरे अर्थ में यदि चन्द्रमास के दोनों ही पक्षों में सूर्य किसी भी राशि में प्रवेश नहीं करता यानि संक्रमण नहीं करता है. तब वह संक्रमण रहित मास वर्ष की मास गणना में अधिक हो जाता है. लोकभाषा में इसे अधिकमास, मलमास या पुरूषोत्तम कहा जाता है.
यस्मिन् मासे न संक्रान्ति: संक्रान्तिद्वयमेव वा।
मलमास: स विज्ञेयो मासे त्रिंशत्तमे भवेत्।।
धार्मिक दृष्टि से यह मास भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण को समर्पित पुण्यदायी मास है. भगवान श्रीकृष्ण का ही एक नाम पुरुषोत्तम होने से इस मास का नाम पुरुषोत्तम मास कहलाया. ज्योतिष विज्ञान अनुसार यह मास ३२ माह १६ दिन और चार घड़ी में फिर से आता है. अधिमास के विज्ञान को चन्द्रमास या सौरमास के आधार पर भी समझा जा सकता है.
ज्योतिष विज्ञान के अनुसार सूर्य पूरे वर्ष मे १२ राशियों से गुजरता है. सूर्य का इन राशियों में भ्रमण ३६५ दिन में पूर्ण होता है. सूर्य के एक राशि में समय बिताकर दूसरी राशि में प्रवेश करने तक का काल सौर मास कहलाता है. अत: सूर्य की इस गति के आधार पर की जाने वाली वर्ष गणना सौर वर्ष कहलाती है. इसी प्रकार चंद्रमा पृथ्वी का उपग्रह होने से सूर्य के सापेक्ष गति बनाने के लिए २९ दिन १२ घंटे और ४४ मिनट समय लेता है. चंद्रमा की गति का यह काल चंद्रमास कहलाता है.
इस अवधि के आधार पर पूरे वर्ष के दिनों की गणना करें तो एक चंद्रवर्ष ३५४ दिनों का होता है. जबकि सौर वर्ष ३६५ दिनों का होता है. इस प्रकार चंद्रवर्ष में ११ दिन कम होते हैं. सनातन धर्म में प्राचीन ऋषि-मुनियों, ग्रह-नक्षत्रों और ज्योतिष विद्या के मनीषियों ने काल गणना त्रुटिरहित बनाने की दृष्टि से ही चंद्रवर्ष और सौरवर्ष की अवधि में इस अंतर को दूर करने के लिए ३२ माह १६ दिन और चार घड़ी के अंतर से यानि हर तीसरे चंदवर्ष में एक ओर चंद्रमास जोड़कर ११ दिनों के अंतर को पूरा किया जाता है. यह मास ही अधिकमास कहलाता है.
प्रत्येक राशि,नक्षत्र,करण व चैत्रादि बारह मासों के सभी के स्वामी है,परन्तु मलमास का कोई स्वामी नही है. इसलिए देव कार्य,शुभ कार्य एवं पितृ कार्य इस मास में वर्जित माने गये है.
इससे दुखी होकर स्वयं मलमास बहुत नाराज व उदास रहता था, इसी कारण सभी ओर उसकी निंदा होने लगी.मलमास को सभी ने असहाय, निन्दक, अपूज्य तथा संक्रांति से वर्जित कहकर लज्जित किया. अत: लोक-भत्र्सना से चिन्तातुर होकर अपार दु:ख समुद्र में मग्न हो गया.वह कान्तिहीन, दु:खों से युक्त, निंदा से दु:खी होकर मल मास भगवान विष्णु के पास वैकुण्ठ लोक में पहुंचा.
और मलमास बोला – हे नाथ, हे कृपानिधे! मेरा नाम मलमास है. मैं सभी से तिरस्कृत होकर यहां आया हूं. सभी ने मुझे शुभ-कर्म वर्जित, अनाथ और सदैव घृणा-दृष्टि से देखा है. संसार में सभी क्षण, लव, मुहूर्त, पक्ष, मास, अहोरात्र आदि अपने-अपने अधिपतियों के अधिकारों से सदैव निर्भय रहकर आनन्द मनाया करते हैं. मैं ऐसा अभागा हूं जिसका न कोई नाम है, न स्वामी, न धर्म तथा न ही कोई आश्रम है. इसलिए हे स्वामी, मैं अब मरना चाहता हूं.’ऐसा कहकर वह शान्त हो गया.तब भगवान विष्णु मलमास को लेकर गोलोक धाम गए. वहां भगवान श्रीकृष्ण मोरपंख का मुकुट व वैजयंती माला धारण कर स्वर्णजडि़त आसन पर बैठे थे.गोपियों से घिरे हुए थे. भगवान विष्णु ने मलमास को श्रीकृष्ण के चरणों में नतमस्तक करवाया व कहा – कि यह मलमास वेद-शास्त्र के अनुसार पुण्य कर्मों के लिए अयोग्य माना गया है इसीलिए सभी इसकी निंदा करते हैं.
तब श्रीकृष्ण ने कहा – हे हरि! आप इसका हाथ पकड़कर यहां लाए हो. जिसे आपने स्वीकार किया उसे मैंने भी स्वीकार कर लिया है. इसे मैं अपने ही समान करूंगा तथा गुण, कीर्ति, ऐश्वर्य, पराक्रम, भक्तों को वरदान आदि मेरे समान सभी गुण इसमें होंगे. मेरे अन्दर जितने भी सदॄगुण है, उन सभी को मैं मलमास में तुम्हे सौंप रहा हूँ मैं इसे अपना नाम ‘पुरुषोत्तम’ देता हूं और यह इसी नाम से विख्यात होगा.
यह मेरे समान ही सभी मासों का स्वामी होगा. कि अब से कोई भी मलमास की निंदा नहीं करेगा. मैं इस मास का स्वामी बन गया हूं. जिस परमधाम गोलोक को पाने के लिए ऋषि तपस्या करते हैं वही दुर्लभ पद पुरुषोत्तम मास में स्नान, पूजन, अनुष्ठान व दान करने वाले को सरलता से प्राप्त हो जाएंगे.इस प्रकार मल मास पुरुषोत्तम मास के नाम से प्रसिद्ध हुआ.
यह मेरे समान ही सभी मासों का स्वामी होगा. अब यह जगत को पूज्य व नमस्कार करने योग्य होगा. यह इसे पूजने वालों के दु:ख-दरिद्रता का नाश करेगा. यह मेरे समान ही मनुष्यों को मोक्ष प्रदान करेगा. जो कोई इच्छा रहित या इच्छा वाला इसे पूजेगा वह अपने किए कर्मों को भस्म करके नि:संशय मुझ को प्राप्त होगा.
अहमेवास्य संजात: स्वामी च मधुसूदन:। एतन्नान्मा जगत्सर्वं पवित्रं च भविष्यति।।
मत्सादृश्यमुपागम्य मासानामधिपो भवेत्। जगत्पूज्यो जगद्वन्द्यो मासोयं तु भविष्यति।।
पूजकानां सर्वेषां दु:खदारिद्रयखण्डन:।।
सब साधनों में श्रेष्ठ तथा सब काम व अर्थ का देने वाला यह पुरुषोत्तम मास स्वाध्याय योग्य होगा. इस मास में किया गया पुण्य कोटि गुणा होगा. जो भी मनुष्य मेरे प्रिय मलमास का तिरस्कार करेंगे और जो धर्म का आचरण नहीं करेंगे, वे सदैव नरक के गामी होंगे. अत: इस मास में स्नान, दान, पूजा आदि का विशेष महत्व होगा.
इसलिए हे रमापते! आप पुरुषोत्तम मास को लेकर बैकुण्ठ को जाओ.’इस प्रकार बैकुण्ठ में स्थित होकर वह अत्यन्त आनन्द करने लगा तथा भगवान के साथ विभिन्न क्रीड़ाओं में मग्न हो गया. इस प्रकार श्री कृष्ण ने मन से प्रसन्न होकर मलमास को बारह मासों में श्रेष्ठï बना दिया तथा वह सभी का पूजनीय बन गया. अत: श्री कृष्ण से वर पाकर इस भूतल पर वह पुरुषोत्तम नाम से विख्यात हुआ.
इस मास में केवल ईश्वर के निमित्त व्रत, दान, हवन, पूजा, ध्यान आदि करने का विधान है. ऐसा करने से पापों से मुक्ति मिलती है और पुण्य प्राप्त होता है. भागवत पुराण के अनुसार इस मास किए गए सभी शुभ कार्यों का फल प्राप्त होता है. इस माह में भागवत कथा श्रवण, राधा कृष्ण की पूजा और तीर्थ स्थलों पर स्नान और दान का महत्व है.
किसी भी वर्ष की गणना के अनुसार 32 महीने 16 दिवस 1 घंटा 36 मिनट के अंतर से अधिकमास का चक्र प्रारंभ होता है। सौर वर्ष 365 दिन 6 घंटे 11 सेकंड के मान का बना है जबकि चंद्र वर्ष 354 दिन 9 घंटे का होता है। सौर वर्ष और चंद्र वर्ष के मध्य होने वाले फर्क को अधिक मास द्वारा पाटा जाता है। अधिकमास भगवान को प्रिय होने के कारण उन्होंने इसे अपना नाम पुरुषोत्तम दिया। इस कारण से इसे पुरुषोत्तम मास भी कहते हैं।
असंक्रांति मासोऽधिमासः स्फुटः स्यात्‌
द्विसंक्रांति मासः क्षयाख्यः कदाचित्‌॥
‘ओम नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र या गुरु द्वारा प्रदत्त मंत्र का नियमित जप करना चाहिए. इस मास में श्रीविष्णु सहस्त्रनाम, पुरुषसूक्त, श्रीसूक्त, हरिवंश पुराण और एकादशी महात्म्य कथाओं के श्रवण से सभी मनोरथ पूरे होते हैं.इस मास में शुभ कार्य ,मांगलिक कार्य का आरंभ नहीं करना चाहिये केवल धार्मिक कार्यों को करना चाहिये.निष्काम भाव बहुत जरुरी है.
पुरुषोत्तम मास पवित्र मास है—
इस मास में व्रत-उपवास के साथ ही भगवान पुरुषोत्तम (राधा-माधव)की भक्ति के नियम और विधान का भी संयम और पवित्रता से पालन करना चाहिए. पुराणों और शास्त्रों में पुरुषोत्तम मास के लिए व्रत-नियम हेतु क्या आचरण करना चाहिए, यह बताया गया है. तृषित इनका पालन करने से संकल्प शक्ति मजबूत होती है. साथ ही धर्म के प्रति श्रद्धा और ईश्वर के प्रति भक्ति का भाव पैदा होता है. जिससे आत्म शुद्धि होने से व्यक्ति के बुद्धि, विचार, चेतना, ज्ञान और एकाग्रता में वृद्धि होती है. ऐसा माना जाता है कि इस मास में भगवान पुरुषोत्तम, जगत पालक श्री विष्णु और श्री कृष्ण की विधिपूर्वक आराधना से वह बहुत प्रसन्न होते हैं
इस माह में किए गए जप, तप, दान का भी बहुत महत्व बताया गया है. सूर्य की बारह संक्रांतियों के आधार पर हमारे चंद्र पर आधारित बारह माह कहे गए हैं और हर तीन वर्ष के अंतराल पर अधिक मास या मलमास आता है. इस मास में मांगलिक कार्य वर्जित माने जाते हैं, परंतु धर्म-कर्म के कार्य फलदायी होते हैं. समय के अंतर की असमानता को दूर करने के लिए अधिक मास एवं क्षय मास के नियम बनाए गए हैं.अधिक मास में व्रत, दान, पूजा, हवन, ध्यान करने का विधान निश्चित किया गया है. ऐसा करने से पाप कर्मों से मुक्ति मिलती है और पुण्य प्राप्त होता है. भागवत पुराण तथा अन्य ग्रंथों के अनुसार पुरुषोत्तम मास में किए गये सभी शुभ कर्मो ,शक्तिपात दीक्षा लेने और साधना करने का कई गुना फल प्राप्त होता है |
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अहमेते यथा लोके प्रथितः पुरुषोत्तमः।
तथायमपि लोकेषु प्रथितः पुरुषोत्तमः।।
उन गुणों के कारण जिस प्रकार मैं वेदों, लोकें और शास्त्रों में ‘पुरुषोत्तम’ नाम से विख्यात हूँ, उसी प्रकार यह मलमास भी भूतल पर ‘पुरुषोत्तम’नाम से प्रसिद्ध होगा और मैं स्वयं इसका स्वामी हो गया हूँ।”
इस प्रकार अधिक मास, मलमास, ‘पुरुषोत्तम मास’ के नाम से विख्यात हुआ।
भगवान कहते हैं- ‘इस मास में मेरे उद्देश्य से जो स्नान (ब्राह्ममुहूर्त में उठकर भगवत्स्मरण करते हुए किया गया स्नान), दान, जप, होम, स्वाध्याय, पितृतर्पण तथा देवार्चन किया जाता है, वह सब अक्षय हो जाता है। जो प्रमाद से इस बात को खाली बिता देते हैं, उनका जीवन मनुष्यलोक में दारिद्रय, पुत्रशोक तथा पाप के कीचड़ से निंदित हो जाता है इसमें संदेह नहीं है।
सुगंधित चंदन, अनेक प्रकार के फूल, मिष्टान्न, नैवेद्य, धूप, दीप आदि से लक्ष्मी सहित सनातन भगवान तथा पितामह भीष्म का पूजन करें। घंटा, मृदंग और शंख की ध्वनि के साथ कपूर और चंदन से आरती करें। ये न हों तो रूई की बत्ती से ही आरती कर लें। इससे अनंत फल की प्राप्ति होती है। चंदन, अक्षत और पुष्पों के साथ ताँबे के पात्र में पानी रखकर भक्ति से प्रातःपूजन के पहले या बाद में अर्घ्य दें।
अर्घ्य देते समय भगवान ब्रह्माजी के साथ मेरा स्मरण करके इस मंत्र को बोलें-
देवदेव महादेव प्रलयोत्पत्तिकारक।
गृहाणार्घ्यमिमं देव कृपां कृत्वा ममोपरि।।
स्वयम्भुवे नमस्तुभ्यं ब्रह्मणेऽमिततेजसे।
नमोऽस्तुते श्रियानन्त दयां कुरु ममोपरि।।
‘हे देवदेव ! हे महादेव ! हे प्रलय और उत्पत्ति करने वाले ! हे देव ! मुझ पर कृपा करके इस अर्घ्य को ग्रहण कीजिए। तुझ स्वयंभू के लिए नमस्कार तथा तुझ अमिततेज ब्रह्मा के लिए नमस्कार। हे अनंत ! लक्ष्मी जी के साथ आप मुझ पर कृपा करें।’
पुरुषोत्तम मास का व्रत दारिद्रय, पुत्रशोक और वैधव्य का नाशक है। इसके व्रत से ब्रह्महत्या आदि सब पाप नष्ट हो जाते हैं।
इस महीने में केवल ईश्वर के उद्देश्य से जो जप, सत्संग व सत्कथा – श्रवण, हरिकीर्तन, व्रत, उपवास, स्नान, दान या पूजनादि किये जाते हैं, उनका अक्षय फल होता है और व्रती के सम्पूर्ण अनिष्ट हो जाते हैं। निष्काम भाव से किये जाने वाले अनुष्ठानों के लिए यह अत्यंत श्रेष्ठ समय है। ‘देवी भागवत’ के अनुसार यदि दान आदि का सामर्थ्य न हो तो संतों-महापुरुषों की सेवा सर्वोत्तम है, इससे तीर्थस्नानादि के समान फल प्राप्त होता है।
इस मास में प्रातःस्नान, दान, तप नियम, धर्म, पुण्यकर्म, व्रत-उपासना तथा निःस्वार्थ नाम जप – गुरुमंत्र का जप अधिक महत्त्व है।
इस महीने में दीपकों का दान करने से मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। दुःख – शोकों का नाश होता है। वंशदीप बढ़ता है, ऊँचा सान्निध्य मिलता है, आयु बढ़ती है। इस मास में आँवले और तिल का उबटन शरीर पर मलकर स्नान करना और आँवले के वृक्ष के नीचे भोजन करना यह भगवान श्री पुरुषोत्तम को अतिशय प्रिय है, साथ ही स्वास्थ्यप्रद और प्रसन्नताप्रद भी है। यह व्रत करने वाले लोग बहुत पुण्यवान हो जाते है।
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जरूरतमंदोंको दें दान—-
पंडित ” विशाल” दयानन्द शास्त्री के अनुसार इस मास में जरूरतमंदों को किए गए दान से दानदाता अपनी असली पूंजी संग्रहित करता है और वह पूंजी उसके अगले जन्म-जन्मांतर तक काम आती है। पुराणों में भी इस बात का वर्णन है कि अष्टादश पुराणेषु व्यासस्य वचनद्वयं परोपकाराय पुण्याय पापाय परपीडनमं। उन्होंने कहा कि सभी पुराणों का एक ही मत है। परोपकार करना पुण्य है और दूसरों को कष्ट देना महापाप है।
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पुरुषोत्तम मास का दूसरा नाम मल मास है | ‘मल’ कहते हैं पाप को और ‘पुरुषोत्तम’ नाम है भगवान् का | इसलिए हमें इसका अर्थ यों लगाना चाहिए की पापों को छोडकर भगवान पुरुषोत्तम में प्रेम करें और वो ऐसा करें की इस एक महीने का प्रेम अनंत कालके लिए चिरस्थायी हो जाए | भगवान में प्रेम करना ही तो जीवन का परम-पुरुषार्थ है, इसी केलिए तो हमें दुर्लभ मनुष्य जीवन और सदसद्विवेक प्राप्त हुआ है | हमारे ऋषियों ने पर्वों और शुभ दिनों की रचना कर उस विवेक को निरंतर जागृत रखने के लिए सुलभ साधन बना दिया है, इसपर भी यदि हम ना चेतें तो हमारी बड़ी भूल है |
इस पुरुषोत्तम मास में परमात्मा का प्रेम प्राप्त करनेके लिए यदि सबही नर-नारी निम्नलिखित नियमों को महीनेभर तक सावधानी के साथ पालें तो उन्हें बहुत कुछ लाभ होने की संभावना है |
१. प्रात:काल सूर्योदय से पहले उठें |
२. गीताजी के पुरुषोत्तम-योग नामक
१५ वे अध्याय का प्रतिदिन श्रद्धा पूर्वक पाठ करें | श्रीमद भागवत का पाठ करें, सुनें | संस्कृत के श्लोक ना पढ़ सकें तो अर्थों का ही पाठ करलें |
३. स्त्री-पुरुष दोनों एक मतसे महीनेभर तक ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करें | जमीनपर सोवें |
४. प्रतिदिन घंटे भर किसी भी नियत समयपर मौन रहकर अपनी-अपनी रूचि और विश्वास के अनुसार भगवान् का भजन करें |
५. जान-बूझकर झूठ ना बोलें | किसीकी निंदा ना करें |
६. भोजन और वस्त्रों में जहां तक बन सके, पूरी शुद्धि और सादगी बरतें | पत्तेपर भोजन करें, भोजन में हविष्यान्न ही खाएं |
७. माता,पिता,गुरु,स्वामी आदि बड़ों के चरणोंमें प्रतिदिन प्रणाम करें | भगवान पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण की पूजा करें|
पुरुषोत्तम मास में दान देनेका और त्याग करनेका बड़ा महत्त्व माना गया है, इसलिए जहां तक बन सके, जिसके पास जो चीज़ हो वाही योग्य पात्र के प्रति दान देकर परमात्मा की सेवा करनी चाहिए | त्याग करनेमें तो सबसे पहले पापों का त्याग करना ही जरूरी है | जो भाई या बहन हिम्मत करके कर सकें, वे जीवन भर के लिए झूठ, क्रोध और दूसरों की जान-बूझकर बुराई करना छोड़ दें |
जीवन भर का व्रत लेनेकी हिम्मत ना हो सकें तो जितने अधिक दिनों का ले सकें, उतना ही लें | परन्तु जो भाई-बहन दिलकी कमजोरी, इन्द्रियों की आसक्ति, बुरी संगती अथवा बिगड़ी हुयी आदत के कारण मांस खाते हैं और मदिरा-पान करते हैं तथा पर-स्त्री और पर-पुरुष से अनुचित संबंध रखते हैं, उनसे तो हम हाथ-जोड़कर प्रार्थना करते हैं की वे इन बुराईयोंको सदा के लिए छोडकर दयामय प्रभुसे अब तक की भूल के लिए क्षमा मांगे |
जो भाई-बहन ऊपर लिखे सातों नियम जीवन-भर पाल सकें तो पालने की चेष्ठा करें, कम-से-कम चातुर्मास नहीं तो पुरुषोत्तम महीने भर तक तो जरूर पालें और भविष्य में सदा इसे पालने के लिए अपनेको तैयार करें | अपनी कमजोरी देखकर निराश ना हों, दया के सागर और परम करुनामय भगवान का आश्रय लेनेसे असंभव भी संभव हो जाता है* |
*जितने नियम कम-से-कम पालन कर सकें उतने अवश्य ही पालें |
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पंडित ” विशाल” दयानन्द शास्त्री के अनुसार पुरुषोत्तम मास में लोग आध्यात्म को अपनाएं। इस माह में पूजा-अर्चना के दौरान भगवान के समक्ष अपनी मनोकामना रखनी चाहिए। भगवान भक्तों की मनोभाव को समझते हुए उनकी मनोकामना अवश्य पूरी करते हैं।
पंडित ” विशाल” दयानन्द शास्त्री के अनुसार पुरुषोत्तम मास का अर्थ है वर्ष में 13वां महीना और यह अवसर 3 साल में एक बार आता है। इस वर्ष यह माह 17 जून से प्रारंभ होकर 16 जुलाई तक चलेगा। भगवान नारायण ने ही इस माह का नाम पुरुषोत्तम मास रखा है। उन्होंनेे कहा कि इस मास में विवाह, मुंडन संस्कार, गृह प्रवेश, मकान बनाना तीर्थ यात्रा जैसे शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं। लेकिन अपनी आध्यात्मिक उन्नति के लिए मनुष्य को अपने धर्म के अनुसार इस अवधि में अपने आराध्य देव की पूजा-अर्चना, ग्रहों का जाप, रूद्राभिषेक, महामृत्युंजय जाप, दान, जाप, पाठ भजन अवश्य करना चाहिए।
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2015 के आषाढ मे अधिकमास ( मलेमास / उतम मास / खर मास ) होगा।
2015 के जेठ ( जून) से मार्च 2016 तक के वीच कोई नया या पहली शुरूवात नही कर सकते है , अधिक मास होने के कारण इस बार 16 जून तक ही विवाह का मुहूर्त है इसकै बाद नवम्बर 2016 मे विवाह मुहूर्त होगा ।
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आषाड़ अधिक मास में क्या करें?क्या न करें?
17 जून 2015 से अधिक मास प्रविष्ट हो रहा है । पुराणों के अनुसार यह मास पापों से मुक्ति दिलाता है। इस मास को पुरूषोत्तम मास भी कहा जाता है। इस मास में किया गया धर्म का कार्य अधिक फलदाई होता है। इस माह में भगवान विष्णु के सहत्र नाम का पाठ करना फलदाई होता है। सात्विकी भोजन करना चाहिए मांसाहार परनिंदा और रजस्वला स्त्री से दूर रहना चाहिए।
इस समय बन रही शनि राहु बुध की वक्री स्थिति से दिल्ली, उत्तर प्रदेश में राजनैतिक अशांति और अग्निकांड हो सकते हैं सीमा पर 12 जून से अशांति देखी जा सकती है. प्रजा में अशांति, खाद्यान्नों में तेजी रहेगी शेयर मार्किट में गिरावट रहेगी 13 जून को बाजार संभलेगा. सोने- चाँदी के मूल्य में वृद्धि होगी. 13 से 15 जून के मध्य उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, हिमांचल, बिहार में तेज हवा के साथ वर्षा के योग बनेंगे .
इस वर्ष 17 जून से देश में प्राकृतिक उपद्रवों से हानि के योग बनेंगे, सूर्य तथा मंगल का आर्द्रा नक्षत्र में प्रवेश 22 जून 2015 से उत्तर भारत में वर्षा के कारण मौसम ठीक रहे शुक्र और गुरु का आश्लेषा नक्षत्र चार दक्षिण पश्चमी प्रांतों में दुर्भिक्ष और बाढ़ से जनधन हानि संभव है इस सप्ताह खाद्यान्नों के मूल्य सामान्य रहेंगे सोना चाँदी तेल में घटा बढ़ीं रहेगी 17 जून,18 जून एवं 22 जून २०१५ में वृष्टि के योग हैं .
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इस समय बनेंगें अधिक मास–
यह स्थिति अधिकमास के कारण बनेगी। यानि गत 18 अगस्त से 13 सितंबर 2012 में अधिकमास होने के कारण दो भादों थे और 2015 में दो आषाढ़ होंगे, जबकि 2018 में 16 मई से 13 जून तक दो जेठ होंगे।
इस वर्ष देरी से आएंगे त्योहार—
जुलाई से दिसंबर तक जो भी त्योहार होंगे, वे मौजूदा साल की तिथियों के मुकाबले 10 से 20 दिन तक की देरी से आएंगे। जुलाई से दिसंबर तक होने वाले त्योहार 10 से 19 दिन की देरी से आएंगे। यह स्थिति अधिक मास के कारण बनेगी।
2012 में अधिक मास होने के कारण दो भाद्रपद थे और 2015 में दो आषाढ़ होंगे, जबकि 2018 में 16 मई से 13 जून तक दो ज्येष्ठ होंगे। यानी नए वर्ष के शुरू के छह माह में त्योहार गत वर्ष की अपेक्षा दस दिन पहले और बाद के छह माह में देरी से होंगे। इसकी वजह नए साल में दो आषाढ़ होना मान रहे हैं।
जानिए कौनसा पर्व आएगा कब—-
रक्षाबंधन का पर्व (2014 में) 10 अगस्त को आया था। इस साल (2015 में) यह 29 अगस्त को आएगा। इसी प्रकार जन्माष्टमी जो पिछले साल 17 अगस्त को थी, इस साल 5 सितंबर को आएगी। तीज पिछले साल 28 अगस्त को थी। यह इस साल 16 सितंबर को आएगी।
गणेश चतुर्थी गत वर्ष 29 अगस्त को मनाई गई। यह इस साल 17 सितंबर को मनाई जाएगी। वहीं, जो नवरात्र पिछले साल 25 सितंबर को शुरू हुए थे, इस साल वे 13 अक्टूबर से प्रारंभ होंगे। दशहरा पिछले साल 3 अक्टूबर को था, इस साल 22 अक्टूबर को आएगा।
दीपावली 23 अक्टूबर को थी, वह इस साल 11 नवंबर को आएगी। देवोत्थान एकादशी 3 नवंबर को थी, यह इस 2015 में 22 नवंबर को आएगी। इसी प्रकार काल भैरव अष्टमी 2014 में 14 नवंबर को थी। वह इस साल 3 दिसंबर को आएगी।

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