जानिए तिल चौथ ( संकष्टी चतुर्थी …5 ) का महत्व —
भारतीय संस्कृति में वैसे तो बारहों महीनों में कोई न कोई महत्वपूर्ण व्रत-त्योहार होता है, लेकिन धार्मिक दृष्टि से माघ मास को विशेष स्थान प्राप्त है। मघा नक्षत्र से युक्त होने के कारण इस महीने का नाम का माघ नाम पडा।
हिन्दू कैलेण्डर में प्रत्येक चन्द्र मास में दो चतुर्थी होती हैं। पूर्णिमा के बाद आने वाली कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं और अमावस्या के बाद आने वाली शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहते हैं।
भगवान गणेश को प्रथम पूज्य देवता माना गया है। कहा जाता है कि जो श्रद्घालु चतुर्थी का व्रत कर श्री गणेशजी की पूजा-अर्चना करता है, उसकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है। फिर माघी या तिल चौथ का तो विशेष महत्व है।माघ कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को सकट चौथ या वक्रतुण्ड चतुर्थी कहते हैं। संतान की लंबी आयु और आरोग्य के लिए इस दिन स्त्रियां व्रत रखती हैं। इस रोज गणपति के पूजन के साथ चंद्रमा को भी अघ्र्य दिया जाता है।
हालाँकि संकष्टी चतुर्थी का व्रत हर महीने में होता है लेकिन सबसे मुख्य संकष्टी चतुर्थी पुर्णिमांत पञ्चाङ्ग के अनुसार माघ के महीने में पड़ती है और अमांत पञ्चाङ्ग के अनुसार पौष के महीने में पड़ती है।
संकष्टी चतुर्थी अगर मंगलवार के दिन पड़ती है तो उसे अंगारकी चतुर्थी कहते हैं और इसे बहुत ही शुभ माना जाता है। पश्चिमी और दक्षिणी भारत में और विशेष रूप से महाराष्ट्र और तमिल नाडु में संकष्टी चतुर्थी का व्रत अधिक प्रचलित है।
जो श्रद्घालु नियमित रूप से चतुर्थी का व्रत नहीं कर सकते यदि माघी चतुर्थी का व्रत कर लें, तो ही साल भर की चतुर्थी व्रत का फल प्राप्त हो जाता है। माघी तिल (तिल चौथ) चतुर्थी पर जहां गणेश मंदिरों में भक्तों का तांता लगेगा, वहीं मंदिरों मे विशेष आयोजन भी होंगे। श्रद्घालु लंबोदर के समक्ष शीश नवाएंगे और आशीष पाकर अपने संकटों को दूर करेंगे।
माघी चौथ के अवसर पर गणेश मंदिरों में मनमोहक श्रृंगार होंगे तथा प्रसाद वितरण किया जाएगा। चतुर्थी का व्रत रख श्रद्घालु चंद्रदर्शन के बाद भोजन करेंगे। माघी चतुर्थी पर गणेश मंदिरों में तिल उत्सव मनेगा।
भगवान गणेश के भक्त संकष्टी चतुर्थी के दिन सूर्योदय से चन्द्रोदय तक उपवास रखते हैं। संकट से मुक्ति मिलने को संकष्टी कहते हैं। भगवान गणेश जो ज्ञान के क्षेत्र में सर्वोच्च हैं, सभी तरह के विघ्न हरने के लिए पूजे जाते हैं। इसीलिए यह माना जाता है कि संकष्टी चतुर्थी का व्रत करने से सभी तरह के विघ्नों से मुक्ति मिल जाती है।
संकष्टी चतुर्थी का उपवास कठोर होता है जिसमे केवल फलों, जड़ों (जमीन के अन्दर पौधों का भाग) और वनस्पति उत्पादों का ही सेवन किया जाता है। संकष्टी चतुर्थी व्रत के दौरान साबूदाना खिचड़ी, आलू और मूँगफली श्रद्धालुओं का मुख्य आहार होते हैं। श्रद्धालु लोग चन्द्रमा के दर्शन करने के बाद उपवास को तोड़ते हैं।
व्रतधारी श्रद्घालुओं को चंद्रदर्शन और गणेश पूजा के बाद व्रत समाप्त करना चाहिए। इसके अलावा पूजा के समय भगवान गणेश के इन बारह नामों का जाप करने से फल अवश्य मिलता है।
———————————————————————————————-
विशेष—-
01 .—माघी चतुर्थी का विशेष महत्व है। इस दिन व्रत करने वाले श्रद्घालुओं की समस्त मनोकामना अवश्य पूरी होती है।
– सुबह गणेश पूजा करें।
– पूजा के साथ यदि अथर्वशीर्ष का पाठ किया जाए तो अति उत्तम।
– गणेश द्वादश नामावली का पाठ करें।
– दिन में अथवा गोधूली वेला में गणेश दर्शन अवश्य करें।
– शाम को सहस्र मोदक या स्वेच्छानुसार लड्डुओं का भोग अर्पित करें।
– सहस्र दुर्वा अर्पण करें।
– हो सके तो सहस्र मोदक से हवन अवश्य करें।
————————————————————————
विशेष—-
02 .—विनायक पूजा और उपासना कार्य बाधा और जीवन में आने वाली शत्रु बाधा को दूर कर शुभ व मंगल करती है। यही कारण है हर माह के शुक्ल पक्ष को विनायक चतुर्थी पर श्री गणेश की उपासना कार्य की सफलता के लिए बहुत ही शुभ मानी गई है। यहां जानते हैं विनायक चतुर्थी के दिन श्री गणेश उपासना का एक सरल उपाय, जो कोई भी अपनाकर हर कार्य को सफल बना सकता है –
– चतुर्थी के दिन, बुधवार को सुबह और शाम दोनों ही वक्त यह उपाय किया जा सकता है।
– स्नान कर भगवान श्री गणेश को कुमकुम, लाल चंदन, सिंदूर, अक्षत, अबीर, गुलाल, फूल, फल, वस्त्र, जनेऊ आदि पूजा सामग्रियों के अलावा खास तौर पर 21 दूर्वा चढ़ाएं। दूर्वा श्री गणेश को विशेष रूप से प्रिय मानी गई है।
– विनायक को 21 दूर्वा चढ़ाते वक्त नीचे लिखे 10 मंत्रों को बोलें यानी हर मंत्र के साथ दो दूर्वा चढ़ाएं और आखिरी बची दूर्वा चढ़ाते वक्त सभी मंत्र बोलें। जानते हैं ये मंत्र
– ॐ गणाधिपाय नम:। ॐ विनायकाय नम:। ॐ विघ्रनाशाय नम:। ॐ एकदंताय नम:। ॐ उमापुत्राय नम:। ॐ सर्वसिद्धिप्रदाय नम:।ॐ ईशपुत्राय नम:। ॐ मूषकवाहनाय नम:। ॐ इभवक्त्राय नम:। ॐ कुमारगुरवे नम:।- ॐ गं गौं गणपतये विघ्रविनाशिने स्वाहा।
– मंत्रों के साथ पूजा के बाद यथाशक्ति मोदक का भोग लगाएं। 21 मोदक का चढ़ावा श्रेष्ठ माना जाता है।
मंत्र जप के बाद भगवान गणेश की आरती गोघृत यानी गाय के घी के दीप और कर्पूर से करें।
– अंत में भगवान गणेश से हर पीड़ा, दु:ख, संकट, भय व बिघ्न का अंत करने की प्रार्थना कर सफलता की कामना करें। यह मंत्र जप किसी भी प्रतिकूल या संकट की स्थिति में पवित्र भावना से स्मरण करने पर शुभ फल देता है।
– अंत में श्री गणेश आरती कर क्षमा प्रार्थना करें। कार्य में विघ्र बाधाओं से रक्षा की कामना करें।
————————————————————————-
जानिए चिंतामण गणेश के बारह नाम—-
1- वक्रतुंड
2- एकदंत
.- कृष्णपिंगाक्ष
4- गजवक्त्र
5- लंबोदर
6- विकट
7- विघ्नराज
8- धूम्रवर्ण
9- भालचंद्र
10-विनायक
11- गणपति
12- गजानंद।

1 COMMENT

    • जे शिवशक्ति….
      आप सभी का कल्याण हो, इसी कामना के साथ
      आपका…
      डाक्टर पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री (ज्योतिष,वास्तु एवं हस्तरेखा विशेषज्ञ),
      मोनिधाम (मोनतीर्थ), गंगा घाट,
      संदीपनी आश्रम के निकट, मंगलनाथ मार्ग,
      उज्जैन (मध्यप्रदेश) -465.06
      mob.–09669.90067..m.p.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here