आतें हैं तुम्हारे सपने खुली आँखों में…….


( पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री)


आँख बंद कर सोने की कोशिश….
 ना कामयाब हो जाती है…. 
खुली आँखों में सपने आतें हैं तुम्हारे…
तुम्हारे चेहेरे मुझे साफ नजर आते हैं 
तुम इशारे करके मुझे बुलाती हो…. 


भीड़ से मैं तुम्हें देखा करता हूँ…. 
पर कुछ कह नहीं पाता हूँ…. 
बस तुम्हे में स्व्प्न में देखता रहता हूँ…… 


ना जाने तुम मुझे क्यों सताती हो ??
आखिर क्या रिश्ता है मेरा तुम्हारा ??


जो मुझे खुली आँखों में आतें हैं सपने तुम्हारे…..


( पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री)

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