शारदीय नवरात्री …. , जानें कब और कैसे करें पूजा माँ दुर्गा की…??
इस वर्ष 2013 के शारदीय नवरात्रे 5 अक्टूबर(शनिवार), आश्चिन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से प्रारम्भ होगें. इस दिन हस्त नक्षत्र, ऎन्द्र योग होगा. सूर्य और चन्द्र दोनों कन्या राशि में होंगे।

ज्योतिषाचार्य एवं वास्तुशास्त्री पंडित दयानंद शास्त्री(मोब।–.) के अनुसार ‘महाशक्ति’ की उपासना का पर्व नवरात्री 05 अक्टूबर (शनिवार) से आरम्भ होगा । नवरात्री पर्व में मां दुर्गा के नौ रूपों क्रमशः शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धदात्री देवी की पूजा का विधान है।
आदिशक्ति मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की आराधना का पर्व शारदीय नवरात्र हिन्दू पंचांग के अनुसार आश्विन मास के शुक्ल पक्ष में मनाया जाता है। आश्विन शुक्लपक्ष प्रथमा को कलश की स्थापना के साथ ही भक्तों की आस्था का प्रमुख त्यौहार शारदीय नवरात्र आरम्भ हो जाता है। ज्योतिषाचार्य एवं वास्तुशास्त्री पंडित दयानंद शास्त्री(मोब।–09024390067) के अनुसार नौ दिनों तक चलने वाले इस महापर्व में मां भगवती के नौ रूपों क्रमशः शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धदात्री देवी की पूजा की जाती है। यह महापर्व सम्पूर्ण भारत में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। इन दिनों भक्तों को प्रातः काल स्नानादि क्रियाओं से निवृत्त होकर निष्कामपरक संकल्प कर पूजा स्थान को गोमय से लीपकर पवित्र कर लेना चाहिए और फिर षोडशोपचार विधि से माता के स्वरूपों की पूजा करना चाहिए। पूजा करने के उपरान्त इस मंत्र द्वारा माता की प्रार्थना करना चाहिए-
विधेहि देवि कल्याणं विधेहि परमांश्रियम्द्य रूपंदेहि जयंदेहि यशोदेहि द्विषोजहिद्यद्य
ज्योतिषाचार्य एवं वास्तुशास्त्री पंडित दयानंद शास्त्री(मोब।–09024390067) के अनुसार नवरात्र माता की उपासना करने का विशेष समय होता है। इन नौ दिनों में सभी तन-मन से माता की आराधना करते हैं। इस त्योहार की शुरुआत अश्विन मास की शुक्ल प्रतिपदा से होता है
आश्विन के नवरात्री पर्व को ‘शारदीय नवरात्र’ कहा जाता है। नौ दिनों तक लोग प्रतिदिन पूजा-प्रार्थना के साथ निराहार या अल्पाहार व्रत का संकल्प पालन करते हैं। दुर्गा पूजा के नौ दिन तक देवी दुर्गा का पूजन, दुर्गा सप्तशती का पाठ इत्यादि धार्मिक क्रिया-कलाप पूर्ण किए जाते हैं।
नवरात्री व्रत पर्व साल में दो बार मनाया जाता है। यह हिन्दू धर्म को मानने वालों की आस्था और विश्वास का प्रतीक है। इसे शक्ति संचय का पर्व भी कहा जाता है। प्राकर्तिक रूप से ऋतुओं का संधि-काल माना जाता है। इन दिनों बाहरी तापमान भी लगभग शारीरिक तपमान के जितना ही रहता है।
प्राचीनकाल से मान्यता है की यह समय प्रकृति के नजदीक रहकर उसके असर को शरीर पर सूक्ष्मता से अनुभव करने के लिए उचित है। अधिक भोजन या गरिष्ठ भोज्य से आलस्य और उन्माद की अधिकता के कारन इस अनुभव में बाधा आती है। इसलिए इन दिनों व्रत का विधान बनाया गया है।
व्रत संकल्प का पालन करने वाले ब्रह्मचर्य धर्म भी निभाते हैं और सामान्यतया सादा जीवन व्यतीत करते हुए जमीन पर सोते हैं। भगवान राम ने भी लंकापति रावण पर विजय की प्राप्ति के लिए मां दुर्गा की उपासना की थी। श्री राम के अतिरिक्त भी अनेक पौराणिक कथाओं में आद्य शक्ति की आराधना का महत्त्व बताया गया है।
घट स्थापना के शुभ मुहूर्त (शारदीय नवरात्री,2013 के लिए)—
यह शारदीय नवरात्री पर्व संपूर्ण भारत में विशेषकर पूर्वी और उत्तरी भारत में आस्था और उत्साह से मनाया जाता है। 
—घट स्थापना पूरे आस्था, विश्वास और संकल्प के साथ 05 अक्टूबर 2013, शनिवार (अश्विन शुक्ल प्रतिपदा) को श्रेष्ठ समय सुबह 08 बजकर 05 मिनट से प्रातः 09 बजे तक रहेगा…
—तदुपरांत दोपहर 12 बजकर 03 मिनट से दोपहर 12 बजकर 50 मिनट तक बीच करना उत्तम/शुभ रहेगा।
—-इस दिन यदि चोघडिये के अनुसार घट स्थापना करना चाहे तो शुभ का चोघडिया प्रातः 07 बजकर 51 मिनट से सुबह 09 बजकर 19 मिनट तक रहेगा….
स्थिर लग्न में स्थापना करें—-
—यदि आप चाहें तो स्थिर लग्न वृश्चिक में प्रातः 09 बजकर 35 मिनट से सुबह 11 बजकर 50 मिनट तक भी घट स्थापना कर सकते हें…
===राहुकाल में स्थापना न करें—
—ज्योतिष के अनुसार राहुकाल को अशुभ समय माना जाता है एवं ऐसा माना जाता है कि इस काल में किया हुआ कार्य अशुभ फल देता है।
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ज्योतिषाचार्य एवं वास्तुशास्त्री पंडित दयानंद शास्त्री(मोब।–09024390067) के अनुसार भारतीय संस्कृति में आराधना और साधना करने के लिए नवरात्र पर्व को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। जहां अन्य त्योहार होली, दीवाली, ग्रहण आदि में समय बहुत कम होता है, वहीं नवरात्र अपेक्षाकृत दीर्घकालिक होते हैं।
मूर्ति या तस्वीर स्थापनाः– 
माँ दुगा की मूर्ती या तसवीर को लकड़ी की चौकी पर लाल अथवा पीले वस्त्र(अपनी सुविधानुसार) के उपर स्थापित करना चाहिए। जल से स्नान के बाद, मौली चढ़ाते हुए, रोली अक्षत(बिना टूटा हुआ चावल), धूप दीप एवं नैवेध से पूजा अर्चना करना चाहिए।
आसनः- 
लाल अथवा सफेद आसन पूरब की ओर बैठकर नवरात्रि करने वाले विशेष को पूजा, मंत्र जप, हवन एवं अनुष्ठान करना चाहिए।
कुलदेवी का पूजनः- 
हर परिवार में मान्यता अनुसार जो भी कुलदेवी है उनका श्रद्धा-भक्ति के साथ पूजा अर्चना करना चाहिए।
देवी दुर्गा जी की पूजा प्राचीन काल से ही चली आ रही है, अनेक पौराणिक कथाओं में शक्ति की अराधना का महत्व व्यक्त किया गया है. नौ दिनों तक चलने नवरात्र पर्व में माँ दुर्गा के नौ रूपों क्रमशः शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धदात्री देवी की पूजा का विधान है. नवरात्र के इन प्रमुख नौ दिनों तक देवी दुर्गा का पूजन, दुर्गा सप्तशती का पाठ इत्यादि धार्मिक किर्या कलाप संपन्न किए जाते हैं.
देवी पूजा में इनका रखे ध्यानः-
ज्योतिषाचार्य एवं वास्तुशास्त्री पंडित दयानंद शास्त्री(मोब।–09024390067 ) के अनुसार इन नवरात्रों में रखें की कोई असावधानी न हो, दुर्गा पूजा करते समय कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी है जैसे एक घर में दुर्गा की तीन मूर्तियां न हों अर्थात देवी की तीन प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा, पूजन न करें। देवी के स्थान पर वंशवाध, शहनाई का घोष नहीं करना चाहिए तथा दुर्गा पूजन में दूर्वा अर्थात दूब का प्रयोग नहीं करना चाहिए। दुर्गा आवाहन के समय बिल्वपत्र, बिल्व शाखा, त्रिशूल, श्रीफल का प्रयोग करना चाहिए। पूजन में सुगंधहीन व विषैले फूल न चढ़ाए बल्कि लाल फूल मां को प्रिय हैं। रात्रि में कलश स्थापना नही करनी चाहिए। मां दुर्गा को लाल वस्त्र पहनाए और उनका मुख उत्तर दिशा की तरफ कदापि न करें। विभिन्न लग्न, मुहूर्ताे में मंत्र जाप और उपासना का विशिष्ट फल मिलता है जैसे मेष, कर्क, कन्या, तुला, वृश्चिक, मकर, कुम्भ में एश्वर्य, धन लाभ, स्वर्ण प्राप्ति और सिद्धि मिलती है। परंतु वृष, मिथुन, सिंह, धनू, मीन लग्न में अपमान, मृत्यु, धन नाश और दुखों की प्राप्ति होती है।
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नवरात्रि पूजन विधि—-
नवरात्रि के प्रत्येक दिन माँ भगवती के एक स्वरुप श्री शैलपुत्री, श्री ब्रह्मचारिणी, श्री चंद्रघंटा, श्री कुष्मांडा, श्री स्कंदमाता, श्री कात्यायनी, श्री कालरात्रि, श्री महागौरी, श्री सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। यह क्रम आश्विन शुक्ल प्रतिपदा को प्रातकाल शुरू होता है। प्रतिदिन जल्दी स्नान करके माँ भगवती का ध्यान तथा पूजन करना चाहिए। सर्वप्रथम कलश स्थापना की जाती है।
कलश / घट स्थापना विधि —–
सामग्री: —
जौ बोने के लिए मिट्टी का पात्र,
जौ बोने के लिए शुद्ध साफ़ की हुई मिटटी, 
पात्र में बोने के लिए जौ ,
घट स्थापना के लिए मिट्टी का कलश, 
कलश में भरने के लिए शुद्ध जल, गंगाजल, 
मोली/कलेवा/हाथ पर रक्षा बंधन हेतु,
इत्र, 
साबुत सुपारी, 
कलश में रखने के लिए कुछ सिक्के ,
अशोक या आम के 5 पत्ते, 
कलश ढकने के लिए ढक्कन, 
ढक्कन में रखने के लिए बिना टूटे चावल, 
पानी वाला नारियल, 
नारियल पर लपेटने के लिए लाल कपडा, 
फूल माला,

यह हें घट स्थापना की विधि ——
ज्योतिषाचार्य एवं वास्तुशास्त्री पंडित दयानंद शास्त्री(मोब।–09024390067) के अनुसार आश्चिन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन प्रात: स्नानादि से निवृत हो कर संकल्प किया जाता है. व्रत का संकल्प लेने के पश्चात ब्राह्मण द्वारा या स्वयं ही मिटटी की वेदी बनाकर जौ बौया जाता है. कलश की स्थापना के साथ ही माता का पूजन आरंभ हो जाता है ..नवरात्र का श्रीगणेश शुक्ल पतिपदा को प्रातरूकाल के शुभमहूर्त में घट स्थापना से होता है। 
घट स्थापना हेतु मिट्टी अथवा साधना के अनुकूल धातु का कलश लेकर उसमे पूर्ण रूप से जल एवं गंगाजल भर कर कलश के ऊपर नारियल को लाल वस्त्र/चुनरी से लपेट कर अशोक वृक्ष या आम के पाँच पत्तो सहित रखना चाहिए।
पवित्र मिट्टी में जौ के दाने तथा जल मिलाकर वेदिका का निर्माण के पश्चात उसके उपर कलश स्थापित करें। स्थापित घट पर वरूण देव का आह्वान कर पूजन सम्पन्न करना चाहिए।
सबसे पहले जौ बोने के लिए मिट्टी का पात्र लें। इस पात्र में मिट्टी की एक परत बिछाएं। अब एक परत जौ की बिछाएं। इसके ऊपर फिर मिट्टी की एक परत बिछाएं। अब फिर एक परत जौ की बिछाएं। जौ के बीच चारों तरफ बिछाएं ताकि जौ कलश के नीचे न दबे। इसके ऊपर फिर मिट्टी की एक परत बिछाएं। अब कलश के कंठ पर मोली बाँध दें। अब कलश में शुद्ध जल, गंगाजल कंठ तक भर दें। कलश में साबुत सुपारी डालें। कलश में थोडा सा इत्र दाल दें। कलश में कुछ सिक्के रख दें। कलश में अशोक या आम के पांच पत्ते रख दें। अब कलश का मुख ढक्कन से बंद कर दें। ढक्कन में चावल भर दें। नारियल पर लाल कपडा लपेट कर मोली लपेट दें। अब नारियल को कलश पर रखें। अब कलश को उठाकर जौ के पात्र में बीचो बीच रख दें। अब कलश में सभी देवी देवताओं का आवाहन करें। “हे सभी देवी देवता और माँ दुर्गा आप सभी नौ दिनों के लिए इस में पधारें।” अब दीपक जलाकर कलश का पूजन करें। धूपबत्ती कलश को दिखाएं। कलश को माला अर्पित करें। कलश को फल मिठाई अर्पित करें। कलश को इत्र समर्पित करें।
कलश स्थापना के बाद माँ दुर्गा की चौकी स्थापित की जाती है।
नवरात्री के प्रथम दिन एक लकड़ी की चौकी की स्थापना करनी चाहिए। इसको गंगाजल से पवित्र करके इसके ऊपर सुन्दर लाल वस्त्र बिछाना चाहिए। इसको कलश के दायीं और रखना चाहिए। उसके बाद माँ भगवती की धातु की मूर्ति अथवा नवदुर्गा का फ्रेम किया हुआ फोटो स्थापित करना चाहिए। माँ दुर्गा को लाल चुनरी उड़ानी चाहिए। माँ दुर्गा से प्रार्थना करें “हे माँ दुर्गा आप नौ दिन के लिए इस चौकी में विराजिये।” उसके बाद सबसे पहले माँ को दीपक दिखाइए। उसके बाद धूप, फूलमाला, इत्र समर्पित करें। फल, मिठाई अर्पित करें।

—-नवरात्रि में नौ दिन मां भगवती का व्रत रखने का तथा प्रतिदिन दुर्गा सप्तशती का पाठ करने का विशेष महत्व है। हर एक मनोकामना पूरी हो जाती है। सभी कष्टों से छुटकारा दिलाता है।
—–नवरात्री के प्रथम दिन ही अखंड ज्योत जलाई जाती है जो नौ दिन तक जलती रहती है। दीपक के नीचे “चावल” रखने से माँ लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है तथा “सप्तधान्य” रखने से सभी प्रकार के कष्ट दूर होते है
—माता की पूजा “लाल रंग के कम्बल” के आसन पर बैठकर करना उत्तम माना गया है
—-नवरात्रि के प्रतिदिन माता रानी को फूलों का हार चढ़ाना चाहिए। प्रतिदिन घी का दीपक (माता के पूजन हेतु सोने, चाँदी, कांसे के दीपक का उपयोग उत्तम होता है) जलाकर माँ भगवती को मिष्ठान का भोग लगाना चाहिए। मान भगवती को इत्र/अत्तर विशेष प्रिय है।
—-नवरात्री के प्रतिदिन कंडे की धूनी जलाकर उसमें घी, हवन सामग्री, बताशा, लौंग का जोड़ा, पान, सुपारी, कपूर, गूगल, इलायची, किसमिस, कमलगट्टा जरूर अर्पित करना चाहिए।
—-लक्ष्मी प्राप्ति के लिए नवरात्र मैं पान मैं गुलाब की ७ पंखुरियां रखें तथा मां भगवती को अर्पित कर दें
—मां दुर्गा को प्रतिदिन विशेष भोग लगाया जाता है। किस दिन किस चीज़ का भोग लगाना है ये हम विस्तार में आगे बताएँगे।
—प्रतिदिन कन्याओं का विशेष पूजन किया जाता है। किस दिन क्या सामग्री गिफ्ट देनी चाहिए ये भी आगे बताएँगे।
—-प्रतिदिन कुछ प्रभावी सिद्ध मन्त्रों का पाठ/जप/स्मरण भी करना चाहिए। जेसे—-
ज्योतिषाचार्य एवं वास्तुशास्त्री पंडित दयानंद शास्त्री(मोब।–09024390067) के अनुसार 
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===सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके । शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोस्तुते ।।
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===ऊँ जयन्ती मङ्गलाकाली भद्रकाली कपालिनी ।दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते ।।
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या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता , नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
या देवी सर्वभूतेषु मातृरूपेण संस्थिता , नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
या देवी सर्वभूतेषु दयारूपेण संस्थिता , नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेण संस्थिता , नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मीरूपेण संस्थिता , नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः 
या देवी सर्वभूतेषु तुष्टिरूपेण संस्थिता , नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
या देवी सर्वभूतेषु शांतिरूपेण संस्थिता , नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः
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प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्माचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्।।
पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्म्रणव महात्मना।।
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इन बातों का धयान रखें मन्त्र सिद्धि के समय (आवश्यक जानकारी )—
ज्योतिषाचार्य एवं वास्तुशास्त्री पंडित दयानंद शास्त्री(मोब।–09024390067) के अनुसार इस नवरात्र के अंतराल में मन्त्र एवं यंत्र की सिद्धि का बहुत माहात्म्य बताया गया है–
दुर्लभं वान्छादायकम सर्व सिद्धिप्रदम खलु। पंचायतनम यन्त्रं मंत्रम शारदे कृत नारदः।
अर्थात शारदीय नवरात्र के अंतराल में सिद्ध किये गए यंत्र एवं मन्त्र हे नारद ! सर्व कामनाओं को पूरा करने वाले होते है। किन्तु यह तो एक सामान्य बात हो गयी। “ज्योत्षना शाकम्भरी” में यह स्पष्ट किया गया है की जिनका जन्म अनुराधा, मघा, अश्विनी, चित्रा, तीनो पूर्वा एवं तीनो उत्तरा में हुआ हो उनको पूजा का फल तो मिल सकता है, किन्तु यंत्र-मन्त्र सिद्ध नहीं हो सकते। इसी बात का संक्षेप एवं विस्तार से कई ग्रंथो में विवरण मिलता है।
खैर जो भी हो, मैं सब श्रद्धालुओं से यही अपेक्षा करूंगा की इस परम पावन एवं देव दुर्लभ नवरात्र का भरपूर लाभ उठायें। तथा शाकम्भरी, कात्यायनी, शाबर, डामर, भैरव, लुब्धक, कंटक एवं दुर्गा यंत्र तथा माहेश्वरी, विपाशा, अरुंधती, कीलक, कवच आदि मंत्रो की सिद्धि का अवश्य प्रयत्न करें।
ज्योतिषाचार्य एवं वास्तुशास्त्री पंडित दयानंद शास्त्री(मोब।–09024390067) के अनुसार यंत्र की सिद्धि के पूर्व यह अवश्य सुनिश्चित कर लें की वह शुद्ध बना हो, आप की जन्म नक्षत्र के भुक्त अंशो के परिमाण का हो, तथा छह माह से ज्यादा पुराना बना न हो।
मंत्रो के बारे में यह सुनिश्चित कर लें कि आप उसका सस्वर शुद्ध उच्चारण कर लेगें। जिस मन्त्र के सस्वर एवं शुद्ध उच्चारण के प्रति आप आश्वस्त हो, उन्हें ही सिद्ध करें। अन्यथा आप का धन, समय एवं प्रयत्न सब विफल होगा। उदाहरण के लिए स्वरों (अ, आ से लेकर औ तक के वर्ण) के ऊपर आने वाली बिंदियों का उच्चारण “म” नहीं बल्कि अँ” के रूप में करें। जैसे ऐं” का उच्चारण “ऐम” के रूप में नहीं बल्कि “न्ग” के रूप में करें।
यदि पहले से कोई सिद्ध यंत्र या अंगूठी आप धारण कर रखें हो तो इस नवरात्र में उसका पुनः जागृतिकरण कर लें।
और सबसे महत्व पूर्ण बात यह कि सामग्री एवं ब्राह्मण की मज़दूरी (दक्षिणा को आज मज़दूरी कहना मज़बूरी है) में कोई कमी न करें। यदि आप को लगता है की इस काम में ज्यादा धन खर्च होगा, तो कृपया यंत्र-मन्त्र की सिद्धि के झमेले में न पड़ें। और दबाव में या किसी लोभ में यह काम न करें। सीधे अपनी इच्छा के अनुरूप पूजा का समापन कर लें।
यदि किसी कारण से इस दौरान यंत्र धारण न कर सकते हो, तो सिरे से इस काम को स्थगित कर दें।
वर्त्तमान परिप्रेक्ष्य में महंगाई के मद्दे नज़र यंत्रो की सिद्धि अब गरीब लोगो के बस की बात नहीं रह गयी है। उन्हें माता जी की पूजा एवं अराधना से ही संतुष्ट होना चाहिए।ये नौ दिन बड़े ही उत्कट प्रभाव देने वाले होते है। समस्त ग्रहों के समक्ष एकाएक धरती का एक विशिष्ट भाग प्रकट होता है। और इसीलिए इन नौ दिनों में की गयी साधना अमोघ एवं अचूक फल देने वाली हो जाती है।
जैसा की मैं पहले ही बता चुका हूँ। की माता जी की पूजा तो किसी भी दिन करें, किन्तु इस नवरात्र के दौरान इसकी अनुकूलता का अलग लाभ उठायें।
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शारदीय नवरात्र आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक इनका रंग दिन प दिन चढ़ता जाता है और नवमी के आते आते पर्व का उत्साह अपने चरम पर होते हैं.
ज्योतिषाचार्य एवं वास्तुशास्त्री पंडित दयानंद शास्त्री(मोब।–09024390067) के अनुसार दुर्गा अष्टमी तथा नवमी के दिन मां दुर्गा देवी की पूर्ण आहुति दी जाती है नैवेद्य, चना, हलवा, खीर आदि से भोग लगाकर कन्यों को भोजन कराया जाता है. शक्ति पूजा का यह समय, कन्याओं के रुप में शक्ति की पूजा को अभिव्यक्त करता है.आदिशक्ति की इस पूजा का उल्लेख पुराणों में प्राप्त होता है. श्री राम द्वारा किया गया शक्ति पूजन तथा मार्कण्डेय पुराण अनुसार स्वयं मां ने इस समय शक्ति पूजा के महत्व को प्रदर्शित किया है.
आश्विन माह की नवरात्र में रामलीला, रामायण, भागवत पाठ, अखंड कीर्तन जैसे सामूहिक धार्मिक अनुष्ठान देखे जा सकते हैं नवरात्र में देवी दुर्गा की कृपा, जीव को सदगति प्रदान करने वाली होती है तथा जीव समस्त बंधनों एवं कठिनाईयों से पार पाने कि शक्ति प्राप्त करने में सफल होता है.
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इस नवरात्रि करें अपनी राशि अनुसार पूजन—
इन नवरात्री के नौ दिन में इस प्रकार करें अपनी जन्म/नाम राशी अनुसार पूजन विधि-विधान से ——
—इन नौ दिनों में मेष व वृश्चिक राशि व लग्न वाले लाल पुष्पों को अर्पित कर लाल चंदन की माला से मंत्रों का जाप करें। नैवेद्य में गुड़, लाल रंग की मिठाई चढ़ा सकते है। नवार्ण मंत्र इनके लिए लाभदायी रहेगा।
—- वृषभ व तुला राशि व लग्न वाले सफेद चंदन या स्फटिक की माला से कोई भी दुर्गा जी का मंत्र जप कर नैवेद्य में सफेद बर्फी या मिश्री का भोग लगा सकते हैं।
—- मिथुन व कन्या राशि व लग्न वाले तुलसी की माला से जप कर गायत्री दुर्गा मंत्रों का जाप कर सकते हैं। नैवेद्य में खीर का भोग लगाएं।
—– कर्क राशि व लग्न वाले सफेद चंदन या स्फटिक की माला से जप कर नैवेद्य में दूध या दूध से बनी मिठाई का भोग लगाएं।
—- सिंह राशि व लग्न वाले गुलाबी रत्न से बनी माला का प्रयोग व नैवेद्य में कोई भी मिठाई अर्पण कर सकते हैं।
—-धनु व मीन राशि व लग्न वालों के लिए हल्दी की माला से बगुलामुखी या दुर्गा जी का कोई भी मंत्र से जप ध्यान कर लाभ पा सकते है। नैवेद्य हेतु पीली मिठाई व केले चढ़ाएं।
—- मकर व कुंभ राशि व लग्न वाले नीले पुष्प व नीलमणि की माला से जाप कर नैवेद्य में उड़द से बनी मिठाई या हलवा चढ़ाएं।
वैसे देवी किसी चढ़ावा या किसी विशेष पूजन-अर्चन से ही प्रसन्न होंगी, ऐसी बात नहीं है, बल्कि शुद्ध चित्त-मन श्रद्धा-भक्ति से किए गए पूजन से देवी प्रसन्न होती हैं।

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