विवाह में अष्टकूट एवम गुण मिलान—
भारत वर्ष में विवाह से पूर्व वर एवम कन्या के जन्म नक्षत्रों के अनुसार अष्टकूट मिलान से गुण मिलाने की प्राचीन परम्परा है| वर , कन्या तथा उनके परिजन एक -दूसरे की प्रकृति ,गुण -दोष आदि के बारे में प्रायःअनभिज्ञ होते हैं | विवाह से पूर्व दोनों पक्ष अपने दोषों को छिपाते हैं तथा गुणों को बढा -चढा कर दिखाते हैं जिसके कारण विवाह के कुछ समय बाद ही पति -पत्नी के संबंधों में तनाव आरम्भ हो जाता है |विवाहोपरांत वर एवम कन्या की परस्पर अनुकूलता हो ,दोनों की आयु दीर्घ हो ,धन -संपत्ति एवम संतान का सुख उत्तम हो इसी उद्देश्य से ऋषि -मुनिओं ने अपने ज्ञान एवम अनुसन्धान के आधार पर वर एवम कन्या की जन्म राशिः तथा जन्म नक्षत्रों के अनुसार विवाह से पूर्व अष्टकूट मिलान से गुण मिलाने की श्रेष्ठ पद्दति का विकास किया |प्रश्न -मार्ग ,विवाह वृन्दावन ,मुहूर्त गणपति ,मुहूर्त चिंतामणि प्रभृति ग्रंथों में अष्टकूट मिलान एवम इसकी उपयोगिता पर विस्तृत प्रकाश डाला गया है |

क्या है अष्टकूट ?
वर्णों वश्यं तथा तारा योनीश्च गृह मैत्रकम |
गण मैत्रं भकूटश्च नाडी चैते गुणाधिका ||
मुहूर्त चिंतामणि ]
.. वर्ण .. वश्य ., तारा 4. योनि 5. ग्रह मैत्री 6. गण 7. भकूट 8.नाडी ये आठ अष्टकूट हैं जिनका विचार मिलान में किया जाता है | क्रम संख्या के अनुसार ही इनके गुण होते हैं |जैसे वर्ण का क्रम एक है तो गुण भी एक होगा ,योनि का क्रम चार है तो गुण भी चार ही होंगे |इस प्रकार क्रमानुसार योग करने पर अष्टकूटोँ के कुल गुण 1+2+3+4+5+6+7+8=36 गुण होते हैं |

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1. वर्ण कूट

वर्ण जन्म योनि
ब्राह्मण कर्क ,वृश्चिक ,मीन
क्षत्रिय मेष ,सिंह ,धनु
वैश्य वृष,कन्या मकर
शूद्र मिथुन ,तुला कुम्भ

वर का वर्ण कन्या से उत्तम होने पर एक गुण अन्यथा शून्य गुण मिलता है |

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2. वश्य कूट

संज्ञा राशिः
नर मिथुन ,कन्या ,तुला एवम धनु 15 अंश तक
चतुष्पद मेष ,वृष ,सिंह ,धनु के अंतिम 15 अंश ,मकर 15 अंश तक
जलचर कुम्भ ,मीन ,मकर के अंतिम 15 अंश
कीट कर्क ,वृश्चिक

सिंह राशिः को छोड़ कर सभी राशियां नर के वश में होती हैं| वृश्चिक को छोड़ कर शेष राशियां सिंह राशिः के वश में हैं |समान वश्य में 2 गुण ,एक वश्य व दूसरा शत्रु हो तो 1 गुण ,एक वश्य व दूसरा भक्ष्य हो तो 1/2 गुण प्राप्त होते हैं |
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3. तारा कूट

कन्या के जन्म नक्षत्र से वर के जन्म नक्षत्र तक तथा वर के जन्म नक्षत्र से कन्या के जन्म नक्षत्र तक गिनें |दोनों संख्याओं को अलग -अलग 9 से भाग दें |शेष 3,5,7 हो तो तारा अशुभ अन्यथा शुभ होगी |दोनों तारा अशुभ हो तो . गुण , दोनों शुभ हों तो 2 गुण ,एक अशुभ व दूसरी शुभ हों तो 1 गुण होता है |

4.योनि कूट 

वैर
वैर
वैर
वैर
वैर
वैर
वैर
योनी

नक्षत्र
नक्षत्र

अश्व महिष सिंह हाथी मेढा वानर नेवला सर्प मृग श्वान बिल्ली मूषक व्याघ्र गौ
अश्वनी
शतभिषा
स्वाति
हस्त
धनिष्ठा
पू0भा0
भरणीरेवती पूष्य
कृतिका
श्रवण पू०षा उ0षाअभिजित मृगशिरा रोहिणी
ज्येष्ठा
अनुराधा
मूल
आर्द्रा
पुनर्वसुअश्लेशा मघा
पू०फ़ा0
विशाखा चित्रा उ०भा
उ०फ़ा0

एक ही योनि हो या अधि मित्र योनि हो तो 4 गुण , मित्र हो तो 3 गुण ,सम हो तो 2 गुण ,वैर में 1 गुण तथा महा वैर में 0 गुण मिलता है |
5. ग्रह मैत्री कूट

ग्रह—> सूर्य चन्द्र मंगल बुध गुरु शुक्र शनि
मित्र चन्द्र मंगलगुरु सूर्य बुध चन्द्र सूर्य गुरु सूर्य शुक्र चन्द्र सूर्यमंगल बुध शनि बुध शुक्र
सम बुध मंगल गुरु शुक्रशनि शुक्र शनि मंगल गुरु शनि शनि मंगल गुरु गुरु
शत्रु शुक्र शनि बुध चन्द्र बुध शुक्र चन्द्र सूर्य चन्द्र सूर्यमंगल

वर -कन्या की एक ही राशिः हो या परस्पर मैत्री हो तो 5 गुण ,एक मित्र व एक सम हो तो 4 गुण ,दोनों सम हों तो 3 गुण ,एक मित्र व एक शत्रु हो तो 1 गुण ,एक सम व एक शत्रु हो तो 1/2 गुण ,दोनों शत्रु हों तो 0 गुण मिलता है |

6.गण

देवगण मानवगण राक्षसगण
अश्वनी भरणी कृतिका
मृगशिरा रोहिणी आश्लेषा
पुनर्वसु आर्द्रा मघा
पुष्य पूर्वा ० फा 0 चित्रा
हस्त उत्तरा ० फा 0 विशाखा
स्वाति पूर्वाषाढ़ ज्येष्ठा
अनुराधा उत्तरा षाढ़ मूल
श्रवण पूर्वा ० भा 0 धनिष्ठा
रेवती उत्तरा ० भा o शतभिषा 

वर ,कन्या का गण समान हो तो 6 गुण, वर का देव तथा कन्या का मानव गण हो तो 6 गुण , कन्या का देव तथा वर का मानव गण हो तो 5 गुण ,कन्या का देव तथा वर का राक्षस गण हो तो 1 गुण ,कन्या का राक्षस तथा वर का देव गण हो या एक का मानव व दूसरे का राक्षस गण हो तो 0 गुण मिलता है |

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भकूट

वर एवम कन्या की जन्म राशि एक -दूसरे से 6-8, 5-9, 2-12 वें हो तो भकूट दोष होता है |
6-8 अर्थात षडाष्टक दोष से रोग ,कलह या वियोग , 5-9 अर्थात नव-पंचम से अन्पत्यता , 2-12 अर्थात द्वि -द्वादश दोष से हानि एवम दरिद्रता होती है |भकूट दोष होने पर 0 गुण अन्यथा 7 गुण मिलते हैं |

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8. नाडी कूट—

आदिनाडी अश्वनी आर्द्रा पुनर्वसु उ0फा0 हस्त ज्येष्ठा मूल शतभिषा पू०भा0
मध्यनाडी भरणी मृगशिरा पुष्य पू०फ़ा0 चित्रा अनुराधा पू0षा0 धनिष्ठा उ०भा0
अन्त्यनाडी कृतिका रोहिणी आश्लेषा मघा स्वाति विशाखा उ० षा० श्रवण रेवती

वर कन्या का जन्म नक्षत्र एक ही नाडी में हो तो अत्यन्त अशुभ समझा जाता है तथा शुन्य गुण मिलता है । अन्यथा आठ गुण प्राप्त होते है ।
दोनों का जन्म नक्षत्र आदि नाडी मे हो तो वियोग , मध्य में हो तो हानि , तथा अन्त्य नाडी मे हो तो मृत्यु अथवा दारुण कष्ट सहना पड़ता है ।



अष्टकूट दोषों का परिहार—–

यह बड़े आश्चर्य का विषय है कि वर एवम कन्या के जन्म नक्षत्र का मिलान करते हुए सभी ज्योतिषी अष्टकूट दोषों का विचार तो करते हैं पर उनके परिहारों को महत्त्व प्रदान नहींकरते |सभी मेलापक एवम मुहूर्त ग्रंथों में अष्टकूट दोषों के साथ ही उनके परिहारों का वर्णन किया गया है | परिहार उपलब्ध होने पर दोष कि निवृति मान कर उसके आधे गुण ग्रहण करने का शास्त्र उपदेश देते हैं |कुल 36 गुणों में से 18 से 21 तक गुण मिलने पर मिलान मध्यम तथा इस से अधिक होने पर उत्तरोतर शुभ मिलान होता है |18 से कम गुण मिलने पर विवाह सम्बन्ध नहीं करना चाहिए |अष्टकूट दोषों का परिहार निम्नलिखित प्रकार से वर्णित है :—
अष्टकूट परिहार
वर्ण राशियों के स्वामियों या नवांशेशों कि मैत्री या एकता हो
वश्य राशियों के स्वामियों यानवांशेशों कि मैत्री या एकताहो
तारा राशियों के स्वामियों यानवांशेशों कि मैत्री या एकताहो
योनि राशियों के स्वामियों यानवांशेशों कि मैत्री या एकताहो
राशिः मैत्री 1 राशियों के नवांशेशों किमैत्रीया एकता हो |
2 भकूट दोष न हो |
|गण 1 राशियों के स्वामियों यानवांशेशों कि मैत्री या एकताहो | 2 भकूट दोष न हो |

भकूट
राशियों के स्वामियों यानवांशेशों कि मैत्री या एकताहो
नाडी 1. दोनों कि राशिः एक तथानक्षत्रअलग-अलग हों |
2. दोनों के नक्षत्र एक तथा राशि अलग -अलग हो |
3. दोनों के नक्षत्रों में चरण वेध न हो अर्थात
दोनों के नक्षत्रों के चरण 1-4 या 2-3 न हो क्योंकि इनमें परस्पर वेध होता है |

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