चाल से जानिए–चाल-चलन:::—
प्राचीन शास्त्रों में भी व्यक्ति के ‘चाल-चलन’ पर कई रोचक टिप्पणियाँ की गई हैं। इस‍ीलिए हमारे बुजुर्ग अपनी पारखी नजरों से किसी भी अनजान व्यक्ति को देखकर उसका चाल-चलन भाँप लेते हैं। आधुनिक मनोवैज्ञानिकों में भी ‘चाल’ शोध का रुचिकर क्षेत्र बनता जा रहा है। कारण आपकी चाल, आपकी मन:स्थिति के बारे में अनजाने में ही दूसरों को बहुत कुछ कह देती है।
वैसे आवश्यक नहीं है कि हर बात बोलकर या शब्दों में ही अभिव्यक्त की जाए और यह भी जरूरी नहीं है कि किसी के मूड के बारे में हम उससे बात करके ही जानें। व्यक्ति की भाव-भंगिमा, चेहरे की आकृति द्वारा ही हम काफी कुछ अंदाज लगा सकते हैं। आप भी अगर किसी से कुछ बोले बिना उसके दिल का हाल जानना चाहते हैं तो आइए हम आपको अवगत कराते हैं : –
* अगर कोई व्यक्ति आराम से प्रसन्नचित्त बाँहें झुलाते हुए अपने आसपास चौकन्नी नजरें घुमाते हुए चुस्ती से कदम नापते हुए चल रहा हो तो समझ लीजिए कि वह आत्मविश्वास से परिपूर्ण सामान्य मन:स्थिति में है।
* झुके हुए कंधे, झुका हुआ सिर, डगमग चाल बताती है कि व्यक्ति परेशान है, किसी समस्या में उलझा, भीतरी उधेड़बुन से जूझता हुआ व असमंजस में है। इस तरह की चाल व्यक्ति की अवसादग्रस्त और अनिश्चयात्मक मन:स्थिति की सूचक है।
* दोनों हाथ कोट-पतलून अथवा जीन्स की जेबों में डाले कुछ सिर झुकाए मंद-मंद गति या कछुए की चाल से अपने आपमें खोया हुआ कोई व्यक्ति चल रहा हो तो समझें कि फिलहाल वह अकेला रहना चाहता है। वह आत्मचिंतन में लीन है और उस वक्त किसी तरह का व्यवधान नहीं चाहता।
* दृढ़ मुद्रा, स्थिर कंधे और तेज चाल से पता चलता है कि व्यक्ति तनावग्रस्त है। साथ ही वह जिद्दी तथा अपने लक्ष्य से आसानी से डिगने वाला नहीं है जिस वजह से तनाव हुआ है उस पर वह अपनी बात से हटने को तैयार नहीं। वह अपनी जगह सख्ती से खड़ा होना चाहता है।
* हिरनी- सी बलखाती, मटकती, सजगता भरी चाल बताती है कि आप अपने सौंदर्य को दिल से महसूस करते हैं और साथ ही अन्य लोगों का ध्यान आकृष्ट करने को लालायित हैं।
* हर कदम सहमा, चौकन्ना हो, कभी खुद की चाल पर नजर हो और कभी अपने लिबास पर, बार-बार आसपास के लोगों को देखते बाल ठीक करते नाप-तौल कर कदम रखते सधी-सँवरी सावधान चाल कोई चले तो इसका अर्थ है कि वह अपनी छवि के प्रति बेहद सतर्क है।
* चप्पलों से घिसने की आवाज करते हुए चलने वाले की चाल कहती है कि व्यक्ति अपनी जिंदगी या नौकरी को बोझ समझता है। जीवन में नीरसता को महसूस करता है और उसे लगता है कि दुनिया में उसके लिए कोई आकर्षण नहीं। वह हीनता के बोझ तले दबता रहता है।
ये तो बात हुई चाल से मन:स्थिति पहचानने की, किंतु शरीर के सही नाप-तौल व सुंदर नयन-नक्श के बावजूद बेढंगी चाल से पूरी सुंदरता नष्ट हो जाती है। सिर को हमेशा झुकाकर चलने से ठोड़ी दोहरी हो जाती है। कूबड़ निकली-सी लगती है। इसलिए अच्छी चाल बनाने के लिए सिर पर मटकी रखकर चलने से आवश्यक सुधार होता है। सिर उठाकर तथा ठोड़ी जमीन से समानांतर रखकर चलें।चलते समय कंधों को आराम से रखें, लेकिन झुकाए नहीं। पेट की मांसपेशियों को तानें और भीतर की ओर खींचें। घुटनों को आराम की स्थिति में रखें और लचीला बनाएँ। चलते समय ऐसा महसूस करें कि मानों आप ऊँचे हैं।
उठना, बैठना, बोलना जैसे मानव- व्यवहार हमेशा से ही कवि, शायर, गीतकारों के लिए मनपसंद विषय रहे हैं और इन पर आधारित कई दिलकश रचनाएँ भी रची गई हैं। गीतकारों ने तो ‘चाल’ जैसे उपेक्षित विषय को भी अपने गीतों के माध्यम से बेहद आकर्षक बनाया है।
—–कान में झुमका, चाल में ठुमका……………….
——तौबा ये मतवाली चाल, झुक जाए फूलों की डाल……

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