प्रकृति स्वयं को विभिन्न रंगों में अभिव्यक्त करती है और व्यक्ति प्रकृति के इन्हीं रंगों के माध्यम से अपनी संवेदनाओं, भावनाओं, एवं पसंद को अभिव्यक्त करता है । रंग अपनी ओजस्विता एवं प्रकाश द्वारा मानव मस्तिष्क एवं शरीर को प्रभावित करते हैं ।
सूर्य के श्वेत उज्जवल प्रकाश में सात रंग अर्न्तनिहित होते हैं । लाल, पीला, आसमानी, हरा, नीला तथा बैंगनी ये सातों रंग वस्तुतः सात रंगों की रश्मियां हैं इन्हें त्रिआयामी (प्रिज्म) नामक शीशे से देखा जा सकता है । जम कालिक ग्रहों की प्रबल या निर्मल अवस्था के अनुरूप इन ग्रहों की रश्मियां मनुष्य के जीवन पर सकारात्मक अथवा नकारात्मक प्रभाव डालती हैं इसी कारण हर व्यक्ति का भाग्य एवं व्यक्तित्व दूसरे से भिन्न होता है । वैज्ञानिकों ने भी अपने परीक्षणों के आधार पर रंगों के लक्षणों एवं प्रभावों की व्याख्या की है । वर्तमान में प्रचलित ‘रंगों द्वारा चिकित्सा’ मानव जीवन में रंगों की महत्त्वता का ज्वलन्त उदाहरण है ।
पौराणिक ग्रंथों में श्रीकृष्ण एवं राम को पीले पीताम्बर पहने, माँ भगवती व लक्ष्मी को लाल साड़ी पहने, सरस्वती को श्वेत वस्त्र पहने दिखाया गया है । साधु-संयासी सदैव भगवा वस्त्र धारण करते हैं । डॉक्टर सफेद व हरे वस्त्र का उपयोग करते हैं । जज व वकील काले रंग का चौगा इस्तेमाल करते हैं । वास्तव में इन सब के पीछे रंगों का मनोवैज्ञानिक सांकेतिक अर्थ है । रंगों का ज्योतिष शास्त्र, रत्न शास्त्र, धार्मिक परम्पराओं व चिकित्सा शास्त्र में भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है । कुछ रंग आकर्षण उत्पन्न करते हैं, हमे पॉजीटिव एनर्जी देते हैं तो कुछ रंगों को हमारी आँखें दुबारा देखना नहीं चाहती । कुछ रंग मन को शान्ति प्रदान करते हैं, आँखों को ठण्डक देते हैं, जबकि कुछ रंग शरीर में गरमी पहुंचाते हैं, हमको उत्तेजित करते हैं ।
वस्त्र, कमरे, टेबल, क्लॉथ, बिस्तरों, कम्बलों सॉज-सज्जा के सामानों में किन रंगों का प्रयोग किया जाये इसकी जानकारी सर्व साधारण को नहीं होती । वास्तव में रंगों को उनके प्रभावों व परिणामों को ध्यान में रखते हुए प्रयोग में लाया जाना चाहिये । जीवन में अनुकूल रंगों को प्रयोग में लाकर न केवल भाग्य को बलवान बनाया जा सकता है बल्कि प्राकृतिक तौर पर रोगों का निदान भी किया जा सकता है । वैसे तो सात रंगों के सम्मिश्रण से हजारों रंग बन जाते हैं, किन्तु मनुष्य के शरीर एवं मस्तिष्क को प्रभावित करने वाले कुछ रंग इस प्रकार हैं-
सफेद –
यह रंग पवित्रता, शुद्धता, शांति, विद्या, नीति एवं सभ्यता का प्रतीक है । सफेद रंग के प्रयोग से मन की चंचलता समाप्त होती है । व्यक्ति की सोच सकारात्मक बनती है । सफेद रंग पसंद करने वाला व्यक्ति संयमी, सहनशील व शुद्धता का ध्यान रखने वाला होता है । सात्त्विक विचार का होता है । विद्यार्थियों के लिये यह रंग शुभ फलदायक है ।
लाल –
लाल रंग ऊर्जा, स्फूर्ति शक्ति महत्त्वाकांक्षा, उत्तेजना, क्रोध, पराक्रम, बल व उत्साह का द्योतक है । यह रंग अनुकूल परिणाम, सफलता, संघर्षों से जूझने व खतरों से खेलने में अदम्य साहस प्रदान करता है । यह स्नायु व रक्त की क्रियाशीलता को बढ़ाता है तथा एड्रीनल ग्रन्थि व संवेदी तंत्रिकाओं को उत्तेजित करता है । क्रोधी, चिड़चिड़े व हाई ब्लड प्रेशर से पीड़ित लोगों को इस रंग के प्रयोग से बचना चाहिये । शारीरिक दुर्बलता, मानसिक क्षीणता, भय, ह्रदय सम्बन्धी विकार तथा नपुंसकता को दूर करने के लिये लाल रंग का प्रयोग लाभदायक होता है ।
नीला –
यह रंग स्नेह, शांति, सौजन्य, पवित्रता, बल, पौरूष और वीर भाव का परिचायक है । नीला रंग व्यक्ति को सत्य भाषी, धार्मिक, धैर्यवान बनाता है । इस रंग में प्रेम-माधुर्य, त्याग, कोमलता, अनुराग और विश्वास के भाव निहित रहते हैं । यह रंग रक्त संचार व्यवस्था को ठीक रखता है । नीले रंग की बोतल में पानी भर कर पीने से एवं इस रंग के अधिकाधिक प्रयोग से हाई ब्लड़ प्रेशर, जोड़ों के दर्द, दमा, श्वांस के रोग, स्नायु तंत्र व आँखों के रोग दूर हो सकते हैं ।
पीला –
पीला रंग आनन्द, ऐश्वर्य, कीर्ति, भव्यता, सुख, आरोग्यता, एवं योग्यता का परिचायक है । हल्का या मिश्रित पीला रंग दरिद्रता व बीमारी का सूचक है । माँस-पेशियों को मजबूत बनाये रखने व पाचन संस्थान को ठीक रखने के लिये इसका प्रयोग लाभदायक है किन्तु अधिक समय तक इसके प्रयोग से पित्त दोष उत्पन्न हो सकता है । पीला रंग पसंद करने वाले व्यक्ति प्रशंसा के भूखे, बातों को बढ़ा चढ़ा कर कहने वाले, लोगों को टीका-टिप्पणी पर ध्यान न देने वाले तथा कुछ डरपोक होते हैं ।
हरा –
हरा रंग व्यक्ति की राजसी ठाट, गर्वशीलता, अपरिवर्तन और निंरकुश प्रवृत्ति की ओर संकेत करता है । यह रंग मन को प्रसन्नता, ताजगी, हृदय को शीतलता, सुख-शांति व नेत्रों को ठण्डक प्रदान करता है । हरा रंग पसंद करने वाले व्यक्ति हास्य प्रिय, चंचल, कर्मशील, सक्रिय व आत्म विश्वासी होते हैं । हर रंग के प्रयोग द्वारा नाड़ी सम्बन्धी रोग, आमाशय, आँतों, वाणी, जिह्वा व लीवर के रोग दूर किये जा सकते हैं । हरा रंग मन में उत्तम भावनाओं को विकसित कर मानसिक तनाव से छुटकारा दिलाता है ।
नारंगी –
नारंगी रंग लाल व पीले रंग का सम्मिश्रण है । यह रोगाणु प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है । नाड़ी की गति को बढ़ाता है किन्तु रक्त चाप को सामान्य बनाये रखता है । यह जीवन में उत्तेजना व बल प्रदान करता है । इस रंग को पसंद करने वाले व्यक्ति नर्म दिल, दयालु, एकाग्रता से काम करने वाले तथा धीरे-धीरे मित्रता को विकसित करने वाले होते हैं । ये लोग व्यर्थ वाद-विवाद के झमेले में उलझना पसंद नही करते हैं । नारंगी रंग धार्मिकता, दार्शनिकता, एवं साधना का द्योतक है ।
काला –
सभी रंगों के सम्मिश्रण से तैयार काला रंग रंगों की सत्ता को नकारता है तथा विमुखता को व्यक्त करता है । यह रंग बदला, घृणा तथा द्वन्द्व की ओर संकेत करता है । काला रंग पसंद करने वाले व्यक्ति परिस्थितियों के विरूद्ध विद्रोह करने व हार न मानने की क्षमता रखते हैं । न्याय व समर्पण की भावना रखने वाले ये लोग समय आने पर सबको तिलांजलि देने से भी नहीं चूकते । तामसिक प्रवृत्ति का यह रंग सुरक्षात्मक कवच के रूप में भी प्रयोग में लाया जाता है । इस रंग का प्रयोग सर्दियों में अनुकूल रहता है ।