राजस्थानी रचना 
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मा ई मिंदर री मूरत
जग खांडो अर ढाल है मा !
टाबर री रिछपाळ है मा !
जायोड़ां पर आयोड़ी
विपतां पर ज्यूं काळ है मा !
दुख – दरियाव उफणतो जग
वाळां आडी पाळ है मा !
मैण जिस्यो हिरदै कंवळो
फळ – फूलां री डाळ  है मा !
जग बेसुरियो बिन थारै
तूं लय अर सुर – ताल है मा !
बिरमा लाख कमाल कियो
सैंस्यूं गजब कमाल है मा !
लिछमी सुरसत अर दुरगा
थारा रूप विशाल है मा !
मा ई मिंदर री मूरत
अर पूजा रो थाळ है मा !
जिण काळजियां तूंनीं बै
लूंठा निध कंगाल है मा !
न्याल जका मन सूं पूछै
– थारो कांईं हाल है मा !
धन कुणसो थासूं बधको ?
निरधन री टकसाल है मा !
राजेन्दर थारै कारण
आछो मालामाल है मा !
           -राजेन्द्र स्वर्णकार   
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स्वीकार कीजिए मेरी दो मौलिक रचनाएं
हिंदी गीत
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 मां
हृदय में पीड़ा छुपी तुम्हारे मुखमंडल पर मृदु – मुसकान !
पलकों पर आंसू की लड़ियां अधरों पर मधु – लोरी – गान !
धन्य तुम्हारा जीवन है मां ! तुम पर तन मन धन बलिदान !
तुम पर जग न्यौछावर माता ! स्वत्व मेरा तुम पर बलिदान!! 
कष्ट मौत का सह  जीवन देती कि नियम सृष्टि का पले !
मात्र यही अभिलाषा और आशीष कि बच्चे फूले – फले !
तेरी गोद मिलीवे धन्य हैं मां ! …क्या इससे बड़ा वरदान ?
तुम पर जग न्यौछावर माता ! स्वत्व मेरा तुम पर बलिदान!!
तू सर्दी – गर्मी भूख – प्यास सह‘ हमें बड़ा करती है मां !
तेरी देह त्याग तप ममता स्नेह की मर्म कथा कहती है मां !
ॠषि मुनि गण क्या देव दनुज सब करते हैं तेरा यशगान !
धन्य तुम्हारा जीवन है मां !  स्वत्व मेरा तुम पर बलिदान !!
भेदभाव माली क्या जाने जिसने स्वयं ही बीज लगाए !
फल कर पेड़ फूल फल दे या केवल कंटक शूल चुभाए !
करुणा स्नेह आशीष सभी में बांटे  तुमने एक समान !
तुम पर जग न्यौछावर माता ! स्वत्व मेरा तुम पर बलिदान!! 
तेरा जीवन – चरित निहार‘ स्वर्ग से पुष्प बरसते हैं मां !
तुम- सा क़द – पद पाने को स्वयं भगवान तरसते हैं मां !
चरण कमल छूकर मां ! तेरे धन्य स्वयं होते भगवान !
धन्य तुम्हारा जीवन है मां !  स्वत्व मेरा तुम पर बलिदान !!
-राजेन्द्र स्वर्णकार
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