आइये जाने की हस्त रेखाओं द्वारा रोग की पहचान केसे करें और उपाय—-
—-जिन व्यक्तियों का मंगल अच्छा नहीं होता है, उनमें क्रोध और आवेश की अधिकता रहती है। ऐसे व्यक्ति छोटी-छोटी बातों पर भी उबल पड़ते हैं। अन्य व्यक्तियों द्वारा समझाने का प्रयास भी ऐसे व्यक्तियों के क्रोध के आगे बेकार हो जाता है। क्रोध और आवेश के कारण ऐसे लोगों का खून एकदम गर्म हो जाता है। लहू की गति (रक्तचाप) के अनुसार क्रोध का प्रभाव भी घटता-बढ़ता रहता है। राहू के कारण जातक अपने आर्थिक वादे पूर्ण नहीं कर पाता है। इस कारण भी वह तनाव और मानसिक संत्रास का शिकार हो जाता है।
————-कोई भी रोग पहले मन में उत्पन्न होता है तत्पश्चात उस रोग के लक्षण शरीर अथवा किसी अवयव में परिलक्षित होते हैं | आधुनिक चिकित्सा विज्ञान ने रोगों कि पहचान करने के लिए नये-नये यन्त्र विकसित कर लिए जिनसे रोग की पहचान करके रोगी की उचित चिकित्सा की जा सके, परन्तु आधुनिक चिकित्सा विज्ञान इस तथ्य से सर्वथा अनभिज्ञ रहा कि प्रकृति ने मानव के कई अंग विशेष में ऐसे चिन्ह/ लक्षण उत्पन्न किये हैं जिनसे रोगों की पहचान के साथ ही भविष्य में शरीर में आने वाली व्याधियों का पता आसानी से लगाया जा सकता है | इतना ही नही स्वास्थ्य के अतिरिक्त मनुष्य की प्रवृत्ति,गुण,अवगुण,उसकी प्रकृति आदि की गणना भी उक्त पहचान चिन्हों से की जा सकती है | इन चिन्हों को हस्तरेखा विज्ञान का नाम दिया गया |
—–मेरे विचार से हस्तरेखा विज्ञान पूर्ण रूप से मष्तिस्क के क्रिया-कलापों पर आधारित है ऐसा
कहना असंगत नही होगा | चूँकि मष्तिस्क का मनुष्य के स्वास्थ्य से गहरा सम्बन्ध है अतः हस्त -रेखाएं, चिन्ह आदि भी हमारे मनोभावों के अतिरिक्त शारीरिक स्वास्थ्य से सम्बंधित हैं |
——युग ऋषि पं. श्रीराम शर्मा के अनुसार – शरीर में लगभग ७५ अरब कोशिकाएं हैं , प्रत्येक जीव कोष के आर -पार ६०-९० बोल्ट का विद्युत् विभव होता है | इस प्रकार मानव शरीर एक शक्तिशाली बिजलीघर है | मष्तिस्क रूपी जेनरेटर और ह्रदय रूपी विदुतोत्सर्जन केंद्र मिलकर जिस स्तर की उर्जा उत्पन्न करते हैं वह समस्त जीव कोशों में समान रूप से प्रवाहित होकर कुछ स्थान विशेष पर प्रचुर मात्रा में विद्यमान हो जाती हैं | इस सूक्ष्म स्तर की विद्युत् व् चेतना स्तर की प्राण सत्ता का जब मिलन होता है तब यही समन्वित स्वरुप व्यक्ति विशेष में परिलक्षित होने लगता है |
——हमारा शरीर पञ्चतत्वों – पृथ्वी,जल,वायु,अग्नि और आकाश से मिलकर बना है | सामान्यतः इन तत्वों का असंतुलन ही रोगों का कारण है | इन तत्वों का संचालन / नियमन शरीर स्थित प्राण शक्ति,चेतना विद्युत् से होता है | इस विद्युत् के उत्पादन एवं संचालन का कार्य मस्तिष्क द्वारा ही संपन्न होता है |
——चिकित्सा विज्ञान के अनुसार हथेली की रेखाओं पर कुछ ऐसे तंतु होते हैं जो हाँथ में होने वाले कम्पनों का संचालन करते हैं | व्यक्ति के शरीर की आन्तरिक संरचना एक जैसी होते हुए भी उसकी प्रवृत्ति,आदि में एक-दुसरे से असमानता होती है इसीलिए हाँथ की रेखाओं की बनावट भी भिन्न होती है, यहाँ तक की उँगलियों के निशान [ जो कि अपराधियों को पहचानने में बहुत सहायक सिद्ध होते हैं ] में भी असमानता होती है |
——शरीर में सर्वाधिक स्नायु हाँथ में ही होते हैं एवं उँगलियों के सिरों में स्पर्श की संवेदना सर्वाधिक होती है | यह स्नायु मस्तिष्क के आदेश का तुरंत पालन करते हैं | इनका एक तंतु मस्तिष्क की प्रक्रिया को,सम्बंधित अवयव तक तथा दूसरा उस अवयव की प्रक्रिया को मस्तिष्क तक पहुँचाने का कार्य करता है |
——-‘मैसनर’ की पुस्तक-” एनाटामी एंड फिजियोलाजी ऑफ़ दि हैण्ड ” के अनुसार हाथों में विशेष प्रकार के आणविक तत्त्व होते हैं जो कि उँगलियों के छोरों तथा हाँथ कि रेखाओं से होकर कलाई तक पहुंचकर अदृश्य हो जाते हैं | इनमें कुछ रेशे होते हैं जो शरीर में एक तरह का कम्पन उत्पन्न करते हैं | इस आणविक तत्त्व का सम्बन्ध सीधे मस्तिष्क से होता है | स्नायु जब किसी बात का आभास देते हैं तब उनमें आणविक तत्त्व प्रवाहित होने लगता है , जिसका सम्बन्ध मस्तिष्क में हो रहे कम्पनो द्वारा- तुरंत मस्तिष्क से स्थापित हो जाता है | इसी स्नायविक क्रियाशीलता के फलस्वरूप इन्द्रियों द्वारा मन की अनुभूतियों का संचालन होता है|
——-हथेली की रेखाएं हाँथ को मोड़ने अथवा अन्य किसी बाह्य क्रिया से न तो निर्मित होती हैं और न ही टूटती हैं क्योंकि इनका सम्बन्ध मस्तिष्क प्रेषित प्राण उर्जा से है | योग के अंतर्गत -यम,नियम,आसन,प्राणायाम,प्रत्याहार एवं ध्यान के द्वारा इन रेखाओं, पर्वतों के आकार -प्रकार में परिवर्तन लाया जा सकता है एवं परिस्थितियों को अपने अनुकूल बनाया जा सकता है |
———हस्त रेखा शास्त्री हाँथ की रेखाओं को देख कर व्यक्ति के वर्तमान,भविष्य एवं उसके स्वास्थ्य की सही – सही गणना कर देता है | यदि हम रोग या परिस्थिति प्रतिकूलता विशेष के विपरीत सकारात्मक सोंच विकसित कर लें तो मस्तिष्क की क्रियाओं से शरीर में ऐसी प्रतिक्रिया होने लगती है की आश्चर्यजनक परिणाम सामने आने लगते हैं | फलस्वरूप हस्तचिन्हों में भी परिवर्तन होने लगता है [ पाठक गण इसे कोरी कल्पना या जादू न समझें यह एक विशुद्ध वैज्ञानिक प्रक्रिया है एवं मैंने इसका स्वयं प्रयोग किया है ] योग के अंग —–यम,नियम,आसन,प्राणायाम,प्रत्याहार एवं ध्यान को अपनाने से शारीरिक एवं मानसिक दोनों शक्तियों का विकाश होता है, इससे विशेष रूप से केंद्रीय तंत्रिका तंत्र, अन्तःस्रावी ग्रंथियां एवं मस्तिष्क की कोशिकाएं क्रियाशील हो जाती हैं | केवल ‘ ध्यान ‘ करने से ही हमारे विचार,प्रवृत्ति आदि में परिवर्तन प्रारंभ होने लगता है | मस्तिष्क में सकारात्मक विचारों का अभ्युदय हो जाता है फलस्वरूप मस्तिष्क के विशेष कोशों में वृद्धि होने लगती है एवं उसका प्रतिबिम्ब हथेली की रेखाओं एवं विभिन्न पर्वतों के रूप में परिलक्षित होने लगता है | मस्तिष्क से जिस प्रकार के विचार तंत्रिका-तंत्र के माध्यम से हथेली तक पहुंचते हैं, उसी प्रकार की रेखाएं एवं विशेष चुम्बकीय क्षेत्र / उभार [ पर्वत ] निर्मित होने लगते हैं |
——-हथेली पर हृदय रेखा टूट रही हो या फिर चेननुमा हो, नाखूनों पर खड़ी रेखाएँ बन गई हों तो ऐसे व्यक्ति को हृदय संबंधी शिकायतें, रक्त शोधन में अथवा रक्त संचार में व्यवधान पैदा होता है। यदि जातक का चंद्र कमजोर हो तो उसे शीतकारी पदार्थ जैसे दही, मट्ठा, छाछ, मिठाई और शीतल पेयों से दूर रहना चाहिए।
——इसी तरह मंगल अच्छा न हो तो मिर्च-मसाले वाली खुराक नहीं लेनी चाहिए। तली हुई चीजें जैसे सेंव, चिवड़ा, पापड़, भजिए, पराठे इत्यादि से भी परहेज रखना चाहिए। ऐसे जातक को चाहिए कि वह सुबह-शाम दूध पीएँ, देर रात्रि तक जागरण न करें और सुबह-शाम के भोजन का समय निर्धारित कर ले। सुबह-शाम केले का सेवन भी लाभप्रद होता है।
—–पेट की खराबी से शरीर में गर्मी बढ़ जाती है और फिर इसी वजह से रक्तविकार पैदा होते हैं, जो आगे चलकर कैंसर का रूप तक अख्तियार कर सकते हैं। यह मत विश्व प्रसिद्ध हस्तरेखा शास्त्री डॉ. आउंट लुईस का है। जिस व्यक्ति के हाथ का आकार व्यावहारिक हो और साथ ही व्यावहारिक चिह्नों वाला हो तो ऐसा जातक अपने जीवन में काफी नियमित रहता है।
——-ऐसा जातक वृद्धावस्था में भी स्वस्थ रहता है। इसी तरह विशिष्ट बनावट के हाथ या कोणीय आकार के हाथ, जिसमें चंद्र और मंगल पर शुक्र का अधिपत्य हो तो ऐसे लोग स्वादिष्ट भोजन के शौकीन होते हैं। शुक्र प्रधान होने के कारण भोजन का समय नियमित नहीं रहता है। ऐसे में उदर विकार स्वाभाविक ही है। इस पर यदि हृदय रेखा मस्तिष्क रेखा और मंगल-राहू अच्छे न हों तो रक्तजनित रोगों की आशंका बढ़ जाती है।
——–हस्तरेखा देखकर कैंसर की पूर्व चेतावनी दी जा सकती है और इस जानलेवा बीमारी के संकेत चिन्ह हथेली पर देखे जा सकते हैं। मस्तिष्क रेखा पर द्वीप समूह या पूरी मस्तिष्क रेखा पर बारीक-बारीक लाइनें हो तो ऐसे जातक को कैंसर की पूरी आशंका रहती है। ऐसी स्थिति में यदि मेडिकल टेस्ट करा लिया जाए और उसमें कोई लक्षण न मिलें, तब भी जातक की जीवनशैली में आवश्यक फेरबदल कर उसे भविष्य में कैंसर के आक्रमण से बचाया जा सकता है।
होगा।
अंगुलियों की मुद्रा द्वारा अनेक दोष पूर्ण रेखाओं से लाभ प्राप्त किया जा सकता है। तपस्वी लोग तपस्या के अवस्था में अपने
अंगुलियों को विशेष स्थिति में रखते हैं जिसे हम मुद्रा कहते हैं। मुद्राओं का उद्देश्य मस्तिष्क के कुछ केन्द्रों को अतिरिक्त शक्ति प्रदान करके लाभ देना होता है।
हृदय रेखा का दोष दूर करने का उपाय
यदि आपके हाथ में हृदय रेखा दोषपूर्ण हो तो व्यक्ति को रक्तचाप और हृदय रोग होता है। ऐसी अवस्था में जातक अनेक प्रकार के औषधि लेता है पर उसे लाभ नहीं होता है। यदि आप हृदय रेखा के दोष से बचाव चाहते हैं तो कनिष्ठका अंगुली को छोड़कर अन्य तीनों अंगुलियों के सिरों को अंगूठे के सिरे से मिलाएं तो जो मुद्रा बनती है। इसका नित्य अभ्यास करने से अधिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है। यह मुद्रा प्रातःकाल करने से अधिक लाभ मिलता है।
मस्तक रेखा का दोष दूर करने का उपाय
यदि मस्तिच्च्क रेखा दोषपूर्ण हो तो जातक को स्नायु से संबंधी अनेक रोग होते हैं। ऐसी स्थिति में परस्पर तर्जनी और अंगूठा को मिलाकर मुद्रा बनायें। इस मुद्रा का नित्य अभ्यास करने से से गुरु पर्वत के दोष नष्ट हो जाते हैं। यह मुद्रा प्रतिदिन प्रातःकाल एवं सायंकाल में 15 मिनट करनी चाहिए।
जीवन रेखा का दोष दूर करने का उपाय
यदि जीवन रेखा दोषपूर्ण हों तो जातक के जीवन में अनेक दुर्घटना एवं शारीरिक कष्ट व रोग उत्पन्न होते हैं जिनसे उसे कष्ट उठाना पड़ता है।
ऐसी स्थिति में कनिष्ठका और अनामिका को अंगूठे से मिलाकर मुद्रा बनायें। इस मुद्रा को करने से शुक्र पर्वत, मंगल पर्वत, जीवनरेखा, बुधरेखा आदि का दोष नष्ट होता है तथा जातक को
अच्छा फल मिलता हैं।
शनि दोष दूर करने के उपाय
यदि शनि पर्वत में या शनि रेखा में दोष हो तो तर्जनी को मोड़कर उसे शुक्र पर्वत पर लगायें। सभी अंगुलियां और अंगूठा अलग रखें। यह मुद्रा शानि रेखा एवं शनि पर्वत के दोष को नष्ट करती है तथा अनेक रोग से रक्षा करती है।
बुध दोष दूर करने के उपाय
यदि बुध रेखा अथवा बुध पर्वत में कोई दोष हो तो उसको दूर करने के लिए बायें हाथ की तर्जनी का सिरा दाएं हाथ की तर्जनी और मध्यमा से जोडं+े। यह मुद्रा करने से बुध का दोष दूर हो जाता है। उदर व शरीर के किसी भाग में गैस एकत्रा होने पर भी इस मुद्रा द्वारा लाभ पाया जा सकता है।
ये उपाय करते समय ध्यान रखें-
उक्त मुद्राएं बारी-बारी से दोनों हाथों द्वारा करना चाहिए।
यदि रेखाओं में दोष न हो तो भी इन मुद्राओं को दो-चार मिनट अभ्यास करने से इसका लाभ तन के अनेक रोग दूर करने में होता है और तन को शक्ति प्रदान होती है।
सदाचार सबसे अच्छा उपाय है जिसे जीवन में अपनाने से समस्त ग्रह दोषों से मुक्ति मिलती है।
गौ ग्रास अर्थात् चौके से गाय, कौए और कुत्ते के लिए रोटी निकालकर प्रतिदिन देने से भी ग्रह दोषों से मुक्ति मिलती है।
हस्तरेखाओं का एकाग्रता से भली-भांति विचार कर किसी प्रकार का निर्णय लेकर जातक को बताना चाहिए। उसे ऋणात्मक फल बताकर हताश एवं निराश नहीं करना चाहिए। अहित दिखने पर उसे बात इस तरह से बतानी चाहिए कि जिससे उसका हौसला बढ़े नाकि वह परेशान व निराश हो जाए।