आइये जाने की केसे करें हनुमान ध्यान,सेवा तथा आराधना हनुमान बाहुक और अन्य मंत्रो द्वारा —–
इस हनुमान बाहु की रचना संत प्रवर गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपीन दाहिनी बाहु में हुई असह्य पीड़ा के निवारण के लिए की थी। इसमें श्रीमारुति की महिमा का चिन्तन तथा उनसे सर्वअंगों में होने वाली पीड़ा की निवृति की प्रार्थना है। यह हनुमान बाहुत सिद्ध सन्त द्वारा विरचित सिद्ध स्तोत्र है। किसी भी प्रकार की आधि–व्याधि जन्य पीड़ा, भूत, पेत, पिशाच, जन्य उपाधि तथा किसी भी प्रकार के शत्रु द्वारा किये हुए दुष्ट भिचार की निवृति के लिए हनुमान बाहुक का पाठ तथा उसका नियमित अनुष्ठान सर्वात्तम उपाय है। एकाहार अथवा फलाहार करते हुए ब्रचर्यादि का पालन और भूमि शैया पर शयन के साथ नित्यप्रति भगवान् मारुति का पूजन और हनुमान बाहुक के पाठ का अनुष्ठान 4. दिन तक करने से अभीष्ट फल की सिद्धि अथवा कष्ट निवारण हो जाता है।
हनुमान को बल,बुद्धि एवं रिद्धि-सिद्धि का प्रतीक माना जाता है। यदि साधक सच्चे मन से हनुमानकी उपासना करे तो इस कलियुग में यह की गयी पूजा तुरंत फल देने वाली मानी गयी है। इसके अनेक प्रमाण हें। सभी देवी.देवताओं ने इस धरती पर अवतार लिया और अपना कार्य निपटाकर अपने अपने धामों को लौट गये परंतु राम भक्त हनुमान सीता माता और ब्रह्मा जी के आशिर्वाद से अजर.अमर हैं। वह वायु के रुप में पूरे ब्रह्मांड में विचरण करते हैंए जिसने भी उन्हें सच्चे मन से पुकारा वे उस आवाज को सुनकर दौडे चले आते हैं और उपासक की इच्छा पूर्ति में सहायक बनते हैं। गोस्वामी तुलसीदास ने हनुमान की सहायता से ही भगवान राम व लक्ष्मण के दर्शन किये थे।
——-हनुमान जी की पूजा में इत्रा सुगंधित द्रव्य तथा गुलाब के फूलों का प्रयोग नहीं किया जाता। उपासक स्नान कर शुळ वस्त्रा धारण कर बैठे यदि लाल लंगोट पहने हो तो सर्वोत्तम माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार महिलाओं को बजरंग बाण का पाठ नहीं करना चाहिए परंतु वह हनुमानजी की मूर्ति या चित्रा के सामने दीपक तथा अगरबत्ती जलाकर हनुमान चालीसा का पाठ कर सकती हैं।
—–हनुमान साधना में हनुमानजी की मूर्ति या चित्रा के सामने तेल का दीपक जलाना चाहिए और उन्हें गुड़ मिश्रित चने का भोग लगाना चाहिए। उपासना करनेवाला अपना आसन ऊनी वस्त्रा का ही बिछाए और मन में हनुमानजी का ध्यान करें। धीरे धीरे उपासक स्वयं महसूस करेगा कि उसके शरीर में एक नई चेतनाए एक नया जोश और नई शक्ति का प्रवेश होरहा है।
——बच्चों की नजर उतारनेए शांत और गहन निद्रा के लिए रात्रि को अकेले यात्रा करते समयए भूत बाधा दूर करने तथा अकारण भय को दूर करने के लिए बजरंग बाण आश्चर्यजनक सफलता देता है।
—–किसी भी महत्पूर्ण कार्य पर जाने से पूर्व भी यदि इसका पाठ किया जाये तो उसे निश्चय ही सफलता प्राप्त होगी।
—–हनुमान साधना में हनुमानजी की मूर्ति या चित्रा के सामने तेल का दीपक जलाना चाहिए और उन्हें गुड़ मिश्रित चने का भोग लगाना चाहिए। उपासना करनेवाला अपना आसन ऊनी वस्त्रा का ही बिछाए और मन में हनुमानजी का ध्यान करें। धीरे धीरे उपासक स्वयं महसूस करेगा कि उसके शरीर में एक नई चेतनाए एक नया जोश और नई शक्ति का प्रवेश होरहा है।
——बच्चों की नजर उतारनेए शांत और गहन निद्रा के लिए रात्रि को अकेले यात्रा करते समयए भूत बाधा दूर करने तथा अकारण भय को दूर करने के लिए बजरंग बाण आश्चर्यजनक सफलता देता है।
—–किसी भी महत्पूर्ण कार्य पर जाने से पूर्व भी यदि इसका पाठ किया जाये तो उसे निश्चय ही सफलता प्राप्त होगी।
——तुलसीदास रचित ‘हनुमान साठिका’ भी प्रमाणित स्तोत्रा है। इसे नित्य शुळ मन से पढने वाने व्यक्ति को जीवन भर संकटों का सामना नहीं करना पडता। सभी विपत्तियां बाधाएं स्वतरू दूर हो जाती है। इसके संबंध में स्वयं तुलसीदास जी ने कहा है ——
जो यह साठिक पढ़े नितए तुलसी कहें विचारि।
पड़े न संकट ताहि कोए साक्षी हैं त्रिपुरारि।।
पड़े न संकट ताहि कोए साक्षी हैं त्रिपुरारि।।
—–यदि कोई मनुष्य बीमार है और अनेक इलाज करने पर भी वह ठीक नहीं हो रहा तो उसे तुलसीदास रचित हनुमान बाहुक का नित्य सुबह शाम शुळ मन से पाठ करना चाहिए। तुलसीदास जी एक बार भुजा की पीडा से बहुत परेशान हो गये थेए अनेक दवाएं करने पर भी जब उन्हें आराम नहीं हुआ तो उन्होंने इसके लिए हनुमान जी से निवेदन किया था। यही निवेदन हनुमान बाहुक के रुप में हैं। सभी प्रकार की बीमारियों का इलाज हनुमान बाहुक के नित्य प्रति श्रळापूर्वक पाठ किये जाने मात्रा से हो जाता है।
—–यदि कोई उपासक हनुमान जी की निरूस्वार्थ भाव से वैसे ही पूजा करना चाहता है तो ऊपर लिखी विधियों के अनुसार वह केवल निम्न मंत्र के द्वारा ही हनुमान जी की उपासना करें तो उसका घर रिळि.सिळि से भरपूर रहता है।
यह हनुमान जी का बीज मंत्रा है—–
—– ऐं हीं हनुमते रामदूताय नमरू
इस बीज मंत्रा को उठते.बैठतेए चलते फिरते भी मन ही मन में जपा जा सकता है।
यदि किसी व्यक्ति का कोई कार्य न बन रहा हो वह उसके लिए काफी प्रयास कर चुका हो फिर भी निराशा ही हाथ लगती हो तो उसे निश्चित रुप से हनुमानजी की शरण में जाना चाहिए। कार्य पूर्ण होने की गारंटी है।
——किसी भी चन्द्रग्रहण अथवा सूर्य ग्रहण के समय साधक उपरोक्त विधियों के अनुसार धूप.दीप कर लाल लंगोट पहनकर ही ऊनी आसन पर बैठे। यह काम हनुमान मंदिरए पीपल वृक्ष के नीचेए नदी के किनारे तथा घर में पूजा के कमरे में भी किया जा सकता है। अपने हाथ में पानी लेकर उस कार्य को करने का हनुमान जी से निवेदन करें और निम्न मंत्रा का .1 हजार जप मूंगे की माला या रुद्राक्ष की माला से करें। जप ग्रहण काल में ही पूरा हो जाना चाहिए इस बीच आसन छोडना वर्जित है। धूप.दीप इस बीच बुझे नहीं। दीपक में तेल डालते रहें और निरंतर अगरबत्ती जलाते रहे। मंत्रा इस प्रकार हैंरू.
—-यम वायुपुत्रायए एहि.एहिए आगच्छ.आगच्छए अवशेय अवशेय मम कार्य सिळी करि स्वाहा।
11 हजार जप ;110 मालाएंद्ध कर उठ जायें और ग्रहण के बाद 5 ब्राह्मणों को भोजन करा दें। कार्य निश्चित होगा। इस विधान को अनेकों लोगों से कराकर मैनें प्रमाण प्राप्त किये है। तथा इस जप को अन्य लोग कर रहें हैं जिनकी कार्य सिळि का मुझे हनुमानजी की कृपा से विश्वास है उनको फल अवश्य प्राप्त होगा। जप शुळ मन से एकाग्रचित होकर तथा पूर्ण विश्वास के साथ किया जाना चाहिए।
अब मैं हनुमानजी को प्रसन्न कर तथा उनसे कार्य कराने में सहायता लेने संबंधी कुछ मंत्रों का यहां जिक्र कर रहा हूं। जिन्हें अपनी.अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए सिळ किया जा सकता है।
हनुमान के पांच मुंह भी बताए गये है। इसलिए हनुमान की पंचमुखी आराधना करने का भी विधान है। इसके लिए मैं सरल पंचमुखी हनुमत कवच बता रहा हूं जो इस प्रकार है—-
——पूर्व कपिए पंच मुखी हनुमते ठं ठं ठं ठं ठं सकल शत्राु संहारणाय स्वाहा।
—–दक्षिण मुख पंचमुखे हनुमते कराल बदनाय नरसिंहाय हां हां हां हां हां सकल भूत प्रेत दमनाय स्वाहा।
—-पश्चिम मुखें गरुणासनाय पंचमुखि वीर हनुमते मं मं मं मं मं सकल विघ्न हराय स्वाहा।।
—- उत्तर मुखे आदि वराहाय लं लं लं लं लं नृसिंहाय नीलकंण्ठाय पंचमुखि हनुमते स्वाहा।
—अंजनी सुताय वायु पुत्राय महाबलाय रामेष्ठ फाल्गुन सखाय सीता शोक निवारणाय लक्षमण प्राण रक्षकाय कपि सैन्य प्रकाशाय सुग्रीवाभिमान दहनाय श्री रामचंद्र वर प्रसाकाय महावीर्याय प्रथम ब्रह्मांडनायकाय पंचमुखि हनुमते भूत.प्रेत पिशाच ब्रह्मराक्षस शाकिनी डाकिनी अंतरिक्ष ग्रह परमंत्रा परमंत्रा सर्व ग्रहोच्चाटनाय सकल शत्रु संहारणाय पंचमुखी हनुमळीर प्रसादकाय सर्व रक्षकाय जं जं जं जं जं स्वाहा।।
——पूर्व कपिए पंच मुखी हनुमते ठं ठं ठं ठं ठं सकल शत्राु संहारणाय स्वाहा।
—–दक्षिण मुख पंचमुखे हनुमते कराल बदनाय नरसिंहाय हां हां हां हां हां सकल भूत प्रेत दमनाय स्वाहा।
—-पश्चिम मुखें गरुणासनाय पंचमुखि वीर हनुमते मं मं मं मं मं सकल विघ्न हराय स्वाहा।।
—- उत्तर मुखे आदि वराहाय लं लं लं लं लं नृसिंहाय नीलकंण्ठाय पंचमुखि हनुमते स्वाहा।
—अंजनी सुताय वायु पुत्राय महाबलाय रामेष्ठ फाल्गुन सखाय सीता शोक निवारणाय लक्षमण प्राण रक्षकाय कपि सैन्य प्रकाशाय सुग्रीवाभिमान दहनाय श्री रामचंद्र वर प्रसाकाय महावीर्याय प्रथम ब्रह्मांडनायकाय पंचमुखि हनुमते भूत.प्रेत पिशाच ब्रह्मराक्षस शाकिनी डाकिनी अंतरिक्ष ग्रह परमंत्रा परमंत्रा सर्व ग्रहोच्चाटनाय सकल शत्रु संहारणाय पंचमुखी हनुमळीर प्रसादकाय सर्व रक्षकाय जं जं जं जं जं स्वाहा।।
सर्व बाधा मुक्ति के लिए इस कवच का प्रतिदिन पाठ बड़ा उपयोगी सिद्ध हुआ है।
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हनुमानबाहुक——–
० गुरु वंदना
सिन्धु-तरन सिय-सोच-हरन,रबी-बाल बरन-तनु|
भुज बिसाल,मूरत कराल कालहुको काल जनु||
गहन-दहन निरदहन लंक नि:संक बंक-भुव|
जातुधान-बलवान-मान मद-दवन पवंनसुव||
कह तुलसीदास सेवत सुलभ सेवक हित संतत निकट|
गुनगनत,नमत,सुमिरत,जपत समन-सकल संकट-बिकट||१||
स्वर्न-सैल-संकास कोटि-रबि-तरुन तेज-धन|
उर बिसाल,भुजदंड चंड नख बज्र बजतन||
पिंग नयन,भ्रकुटी कराल रसना दसनासन|
कपिस केस करकस लंगूर,खल-बल भानन||
कह तुलसीदास बस जासु उर मारुतसुत मूरति बिकट|
संताप पाप तेहि पुरुष पहिं सपनेहुँ नहीं आवत निकट||२||
झूलना
पंचमुख-छमुख-भ्रगुमुख्य भट-असुर-सुर ,
सर्व-सरि-समर समरत्य सुरों|
बांकुरो बीर बिरुदेत बिरुदावली ,
बेद बंदी बदत पैजपुरो||
जासु गुनगाथ रघुनाथ कह,जासु बल,
बिपुल-जल-भरित जग-जलधि झुरो|
दुवन-दल-दमनको कौन तुलसीस है,
पवनको पूत राजपूत रुरो||२||
धनाक्षरी
भानुसों पढ़न हनुमान गये भानु मन
अनुमान ससुकेली कियो फेरफार सो|
पाहिले पगनि गम गगन मगन-मन,
क्रमको न भ्रम,कपि बालक-बिहार सो||
कौतुक बिलोक लोकपाल हरिहर बिधि
लोचननी चकाचौधि चित्तनी खभार सो|
बल कैंधों बीररस,धीरज कै,साहस कै,
तुलसी सरीर धरे सबनिको सार सो||४||
भारतमें पारथके रथकेतु कपिराज,
गाज्यो सुनि कुरुराज दल हलबल भो|
कह्यो द्रोंन भीषम समिरसुत महाबीर
बीर-रस बारि-निधि जाको बल जल भो|
बानर सुभाय बालकेलि भूमि भानु लागि,
फलन्ग फलान्गहुते धाती नभतल भो|
नाइ –नाइ माथ जोरि-जोरि हाथ जोधा जोहें,
हनुमान देखे जगजीवनको फल भो||५||
गोपद पयोधि करि होलिका ज्यों लाई लंक,
निपट निसंक परपुर गलबल भो|
द्रोंन-सो पहार लियो ख्याल ही उखारि कर,
कंदुक-ज्यों कपिखेल बेल कैसो फल भो||
साहसी समत्य तुलसीको नाह जाकी बाँह,
लोकपाल पालनको फिर थिर थल भो||६||
कमठकी पीठि जाके गोडनंकी गाड़ने मानो
नापके भाजन भरि जलनिधि-जल भो|
जातुधान-दावन परावनको दुर्ग भयो,
महामीनबास तिमी तोमानिको थल भो||
कुंभकरन-रावन-पयोधनाद-ईधनको
तुलसी प्रताप जाको प्रबल अनल भो|
भीषम कहत मेरे अनुमान हनुमान
सरिको त्रिकाल न त्रिलोक महाबल भो||७||
दूत रामरायको,सपूत पूत पौनको,तू
अंजनीको नंदन प्रताप भूरि भानु सो|
सीय-सोच-समन,दुरित-दोष-दमन,
सरन आये अवन,लखनप्रिय प्रान सो||
दसमुख दुसह दरिद्र दरिबेको भयो,
प्रकट तिलोक ओक तुलसी निधान सो|
ज्ञान-गुनवान बलवान सेवा सावधन,
साहेब सुजन उर आनु हनुमान सो||८||
दवन-दुवन-दल भुवन-बिदित बल,
बेद जस गावत बिबुध बंदीछोर को|
पाप-ताप-तिमिर तुहिन-विघटन-पटु,
सेवक-सरोरूह सुखद भानु भोरके||
रामको दुलारों दास बामदेवको निवास,
नाम कलि-कामतरु केसरी-किसोरको||९||
महाबीर बिदित बरायो रघुबीरको|
कुलिस-कठोरतनु जोरपरे रोर रन,
करुना-कलित मन धारमिक धीरको|
दुर्जनको कालसो कराल पाल सज्जनको,
सुमिरे हरनहार तुलसीकी पीरको,
सीय-सुखदायक दुलोरो रघुनाथको,
सेवक सहायक है साहसी समीरको||१०||
रचिबेको बिधि जैसे,पालिबेको हरि,हर
मीच मरिबेक.ज्याइबेको सुधापान भो,
धरिबेको धरनि,तरनि तम दलिबेको,
सोखिबे कृसानु,पोशिबेको हिम-भानु भो||
खल-दुख दोषिबेको,जन-परितोषिबेको,
मंगिबो मलिनताको मोदक सुदान भो|
आरतीकी आरति निवारिबेको तिहूँ पुर,
तुलसीको साहेब हठीलो हनुमान भो||११||
सेवक स्योकाई जनि जानकीस मानें कनि.
सानुकूल सूलपानि नवें नाथ नाँकको|
देवी देव दानव दयावाने हैंव नाथ.
बापुरे बराक कहा और राजा रांकको||
जागत सोवत बैठे बागत बिनोद मोद,
ताकै जो अनर्थ सो समर्थ एक आँकको|
सब दिन रूरो परे पुरो जहाँ-तहां ताहि.
जाके है भरोसे हिये हनुमान हांकको||१२||
सानुग सगौरि सानुकूल सूलपानि ताहि,
लोकपाल सकल लखन राम जानकी|
लोक परलोकको बिसोक सो तिलोक ताहि,
तुलसी तमाइ कहा काहू बीर आनकी||
केसरीकिसोर बंदीछोरके नेवाजे सब,
कीरति बिमल कपि करुनानिधानकी|
बालक ज्यों पलिहें कृपालु मुनि सिद्ध ताको,
जाके हिये हुलसति हांक हनुमानकी||१३||
करुना निधान,बलबुद्धिके निधान मोद
महिमानिधान,गुन-ज्ञानके निधान हौं |
बामदेव-रूप भूप रामके सनेही,नाम
लेत देत अर्थ धर्म काम निरबान हौं ||
आपने प्रभाव सीतानाथके सुभाव सील,
लोक-बेद बिधिके बिदुष हनुमान हौं|
मंकी,बचनकी करमकी तिहूँ प्रकार,
तुलसी तिहारो तुम साहेब सुजन हौं||१४||
मनको अगम,तन सुगम किये कपीस,
काज महाराजके समाज साज साजे हैं|
देव-बंदीछोर रनरोर केसरीकिसोर,
जुग-जुग जग तेरे बिरद बिराजे हैं||
बीर बरजोर,घटि जोर तुलसीकी ओर
सुन सकुचाने साधु,खलगन गाजे हैं|
बिगरी संवार अंजनीकुमार कीजे मोहिं,
जैसे होत आये हनुमानके निवाजे हैं||१५||
सवैया
जानसिरोमनि होँ हनुमान सदा जनके मन बास तिहोरो|
ढारो बिगारो मैं काको कहा केहि कारन खीझत हों तो तिहारो||
साहेब सेवक नाते ते हातो कियो सो तहां तुलसी न चारो|
दोष सुनाये ते आगेहुँको होशियार ह्वों हों मन टों हिय हारो||१६||
तेरे थपे उथपे न महेश,थापें थिरको कपि जे घर घाले|
तेरे निवाजे गरीबनिवाज बिराजित बेरिनके साले||
संकट सोच सबै तुलसी लिये नाम फटे मकरीके से जाले|
बूढ़ भये,बलि,मोरिही बार,कि हरि परे बहुतै नत पाले||१७||
सिंधु तरे,बड़े बीर दले खल,जारे जारे हैं लंकसे बंक मवा से|
तेन् रन-केहरि केहरिके बिदले अरि-कुंजर छैल छवा से||
टोसों समत्थ सुसाहिब सेई सहे तुलसी दुख दोष दवासे|
बानर बाज बढे खल-खेचर;लीजत क्योँ न लपेटि लवा-से||१८||
अच्छ-बिमर्दन कानन-भानि दसानन आनन भा न निहारो|
बारिदनाद अकंपन कुंभकरन्न-से कुंजर केहरि-बारो||
राम प्रताप-हुतासन.कच्छ,बिपच्छ,समीर समीरदुलारों|
पापतें,सापतें,ताप तिहूँते सदा तुलसी कहँ सो रखवारो||१९||
धनाक्षरी
जानत जहान हनुमानको निवाज्यौ जन,
मन अनुमान; बलि;बोल न बिसारिये|
सेवा-जोग तुलसी कबहूँ कहा चुक परी,
साहेब सुभाव कपि साहिबी संभारिये||
अपराधी जनि कीजे सासति सहस भांति,
मोदक मरै जो, ताहि माहुर न मारिये|
साहसी समिरके दुलारे रघुबीरजूके,
बाँह पीर महाबीर बेगि ही निवारिये||२०||
बालक बिलोकि, बलि, बारेटें आपनो कियो,
दीनबंधु दया कीन्ही निरुपाधि न्यारिये|
रावरो भरोसो तुलसीके, रावरोई बल,
आस रावरीयै, दास रावरो बिचारिये||
बड़ो बिकराल कलि, काको न बिहाल कियो,
माथे पगु बालीके, निहारि सो निवारिये|
केसरीकिसोर, रनरोर, बरजोर बीर,
बाहुँपीर राहुमातु ज्यों पछारि मारिये||२१||
उथपे थपनिथिर थपे उथपनहार,
केसरीकुमार बल आपनो संभारिये|
रामके गुलामनिको कामतरु रामदूत,
मोसे दीन दुबरेको तकिया तिहारिर्ये||
साहेब समर्थ तोसों तुलसीके माथे पर,
सोऊ अपराध बिनु बीर, बाँधि मारिये|
पोखरी बिसाल बांहु, बलि बारिचर पीर,
मकरी ज्यौ पकरिके बदन बिदारिये||२२|
रामको सनेह, राम साहस लखन सिय.
रामकी भगति, सोच संकट निवारिये|
मुद-मरकट रोग-बारिनिधि हेरि हारे,
जीव-जामवंतको भरोसे तेरो भरिये||
कूदिये कृपाल तुलसी सप्रेम-पब्बयते,
सुथल सुबेल भालु बेठिकें बिचारिये|
महाबीर बाँकुरे बराकी बांहपीर क्योँ न,
लंकिनी ज्यों लातघात ही मरोरि मारिये||२३||
लोक-परलोकहूँ तिलोक न बिलोकियत,
तोसे समरथ चष चारिहूँ निहारिये|
कर्म, काल लोकपाल, अग-जग जीवलाल,
नाथ हाथ सब निज महिमा बिचारिये||
खास दास रावरो, निवास तेरो तासु उर,
तुलसी सो देव दुखी देखियत भारिये|
बात तरुमुल बांहुसूल कपिकच्छु-बेलि,
उपजी सकेलि कपिकेलि ही उखारिये||२४||
करम-कराल कंस भुमिपालके भरोसे,
बकी बकभगिनी काहूतें कहा डरेगी|
बड़ी बिकराल बालघतिनी न जात कहि,
बांहुबल बालक छबीले छोटे छारैगी|
आई है बनाइ बेष आप ही बिचारि देख
पाप जाय सबको गुनीके पाले परैगी|
पूतना पिसाचिनी जयों कपिकान्ह तुलसीकी,
बांह्पीर महाबीर, तेरे मारे मरेगी||२५||
भालकी कि कालकी कि रोषकी त्रिदोषकी है,
बेदन बिषम पाप-ताप छलछान्हकी|
करमन कूतकी कि जंत्रमंत्र बूटकी,
पराहीं जाहि पपिनी मलीन मनमान्ह्की|
पैहही सजाय नत कहत बजाय तोहि,
बावरी न होहि बानि जानि कापीनान्ह्की|
आन हनुमानकी दोहाई बलवानकी,
सपथ महाबीरकी जो रहै पीर बान्हकी||२६||
सिंहका संहारि बल, सुरसा सुधारि छल,
लंकिनी पछारि मारि बाटिका उजारी है|
लंक परजारि मकरी बिदारि बारबार,
जातुधान धारि धूरिधानी करि डारी है||
तोरि जमकातरी मदोदरी कढोरी आनी,
रावनकी रानी मेगनाद मह्न्तारी है|
भीर बान्हपीरकी निपट राखी महाबीर,
कौनके सकोच तुलसीके सोच भारी है||२७||
तेरो बालकेलि बीर सुनि सहमत धीर,
भूलत सरीरसुधि सक्र-रबि रहुकी|
तेरी बाँह बसत बिसोंक लोकपाल सब,
तेरो नाम लेट रहै आरति न कहुकि||
सैम दान भेद बिधि बेदहू लबेद सिधि,
हाथ कपिनाथहीके चोटी चोर साहुकी|
आलस अनख परिहासकै सिखावन है,
एते दिन रही पीर तुलसीके बहुकी||२८||
तुकनिको घर-घर डोलत कंगाल बोलि,
बाल जयों कृपाल नतपाल पालि पोसो है|
कीन्ही है संभार सार अंजनीकुमार बीर,
आपनो बिसारिहै मेरेहू भरोसो है||
इतनो परेखो सब भांति समरथ आजु,
कपिराज साँची कहों को तिलोक तोसो है|
सासति सहत दास कीजे पेखि परिहास,
चारिको मरन खेल बालकनिको सो है||२९||
आपने ही पापते त्रितापतें कि सपतें,
बढ़ी है बान्हबेदन कही न सहि जाति है|
औशध अनेक तंत्र-मंत्र-टोटकादि किये,
बादी भये देवता मनाये अधिकाति है||
करतार, भरतार,हरतार, कर्म, काल,
को है जगजाल जो न मानत इताति है|
चेरो तेरो तुलसी तू मेरो कह्यो रामदूत,
ढील तेरी बीर मोहि पीरतें पिराति है||३०||
दूत रामरायको, सपूत सपूत पूत बायको,
समत्थ हाथ पायको सहाय असहायको,
बांकी बिरदावली बिरदवाली बिदित बेद गाइयत,
रावन सो भट भयो मुठिकाके घायको||
एते बड़े साहेब समर्थकों निवाजो आज,
सीदत सुसेवक बचन मन कायको|
थोर्री बान्हपीरकी बड़ी गलानि तुलसीको,
कौन पाप कोप, लोप प्रगट प्रभायको||३१||
देवी देव दनुज मनुज मुनि सिद्ध नाग,
छोटे बड़े जीव जेते चेतन अचेत हैं|
पूतना पिसाची जातुधानी जातुधान बाम,
रामदूतकी रजाई माथे मानि लेट हैं,
घोर जंत्र मंत्र कूट कपट करोग जोग,
हनुमान आन सुनि छाडत निकेत हैं|
क्रोध कीजे कर्मको प्रबोध कीजे तुलसीको,
सोध कीजे तिनको जो दोष दुख देत हैं||३२||
तेरे बल बानर जिताये रन रावनसों,
तेरे घाले जातुधान भये घर-घरके,
तेरे बल रामराज किये सब सुरकाज,
सकल समाज साज साजे रघुबरके||
तेरो गुनगान सुनि गीरबान पुलकत,
सजल बिलोचन बिरंचि हरि हरके|
तुलसीके माथेपर हाथ फेरो कीसनाथ,
देखिये न दास दुखी तोसे कनिगरके||३३||
पालो तेरे टूकको परेहू चूक मुकिये न,
कूर कौड़ी दूको हौं आपनी ओर हेरिये|
भोरनाथ भोरेही सरोष होत थोरे दोष,
पोषि तोषि थापि आपनो न अवड़ेरिये||
अंबु तू ह्यों अंबुचर,अंब तू ह्यों डिंभ, सो न,
बूझिये बिलंब अबलंब मेरे तेरिये|
बालक बिकल जानि पाहि प्रेम पहिचानि,
तुलसीकी बाँह पर लामीलूम फेरिये||३४||
घेरि लियो रोगनि कूजोगनी कुलोगनि ज्यौं,
बासर जलद घन घटा धुकि धाई है|
बरसत बारि पीर जारिये जवासे जस,
रोष बिनु दोष धूम-मूल मलिनोई है||
करूनानिधान हनुमान महाबलवान,
हेरि हँसी हाँकि फुँकी फौजे तैँ उड़ाई है|
खाये हुतो तुलसी कुरोग राढ़ राकसनी,
केसरीकिसोर राखे बीर बरिआई है||३५||
सवैया
रामगुलाम तुही हनुमान गोसांई सुसाइ सदा अनुकुलो|
पाल्यो होँ बाल ज्यों आखर दू पितु मातु सों मंगल मोद समूलो||
बांहकी बेदन बन्हपगार पुकारत आरत आंनद भूलो|
श्रीरघुबीर निवारिये पीर रहोँ दरबार परो लटि लूलो||३६||
घनाक्षरी
कालकी करालता करम कठिनाई कीधोँ,
पापके प्रभावकी सुभाय बाय बावरे|
बेदन कुभांति सो सही न जाति राति दिन,
सोई बाँह गही जो गही समीरदावरे||
लायो तरू तुलसी तिहारो सो निहारि बारि,
सींचिये मलीन भो तयो हैं तिहूँ तावरे,
भुतनिकी आपनी परायेकी कृपानिधान,
जानियत सबहीकी रीति राम रावरे||३७||
पायंपीर पेटपीर बान्हपीर मुहंपीर,
जरजर सकल सरीर पीरमई है|
देव भूत पितर करम खल काल ग्रह,
मोहिपर दवरि दमानक सी दई है||
होँ तो बिन मोलके बिकानो बलि बारेही तें,
ओट रामनामकी ललाट लिखि लई है|
कुंभजके किंकर बिकल बूड़े गोखुरनि,
हाय रामराय ऐसी हाल कंहू भई है||३८||
बाहुक-सुबाहु नीच लीचर-मरीच मिलि,
मुंहपीर-केतुजा कुरोग जातुधान हैं|
राम नाम जगताप कियो चहयों सानुराग,
काल कैसे दूत भूत कहा मेरे मान हैं||
सुमिरे सहाय रामलखन आखर दोऊ,
जिनके समूह साके जागत जहान हैं|
तुलसी संभारि ताड़का-संहारि भारी भट,
बेधे बरगदसे बनाइ बागवान हैं||३९||
बालपने सूधे मन राम सनमुख भयो,
रामनाम लेट मांगि खात टूकटाक हौं|
परयो लोकरीतमें पुनीत प्रीति रामराय,
मोहबस बैठी तोरि तरकितराक हौं||
तुलसी गोसाई भयो भोंड़े दिन भूलि गयो,
ताको फल पावत निदान परिपाक हौं||४०||
असन-बसन-हीन बिषम-बिषाद-लीन.
देखि दीन दूबरो करै न हाय-हाय को|
तुलसी अनाथसो सनाथ रघुनाथ कियो,
दियो फल सीलसिंधु आपने सुभायको||
नीच यही बीच पति पाई भरूहाईगो,
बिहाई प्रभु-बचन मन कायको|
तातें तनु पेषियत घोर बरतोर मिस,
फुटि-फुटि निकसत लोन रामरायको||४१||
जियों जग जानकीजीवनको कहाई जन
मरिबेको बारानसी बारि सुरसरिको|
तुलसीके दुहूँ हाथ मोदक है ऐसे ठाउँ,
जाके ज जिये मुये सोच करिहैं न लारिको||
मोको झूठो सांचो लोग रामको कहत सब,
मेरे मन मान है न हरको न हरिको|
भारी पीर दुसह सरीरतें बिहाल होत,
सोऊ रघुबीर बिनु सकै दूर करिको||४२||
सीतापति साहेब सहाय हनुमान नित,
हित उपदेसको महेस मानो गुरुकै|
मानस बचन काय सरन तिहारे पांए,
तुम्हारे भरोसे सुर मैं न जाने सुरकै||
ब्याधि भुतजनित उपाधि काहू खलकी,
समाधि कीजे तुलसीकी जानि जन फुरकै|
कपिनाथ रघुनाथ भोलानाथ भूतनाथ,
रोगसिंधु क्योँ न डारियत गाय खुरकै||४३||
कहों हनुमानसों सुजान रामरायसों,
कृपानिधान संकरसों सावधान सुनिये|
हरष विषाद राग रोष देखियत दुनिये||
माया जीव कालके करमके सुभायके,
करैया राम बेद कहैं साँची मन गुनिये|
तुम्हतें कहा न होय हाह्य सो बुझैये मोहि,
हाँ हूँ रहों मौन ही बयो सो जानि लुनिये||४४||
||इतिश्री||
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सुनिए हनुमान बाहुक मधुर आवाज में —-
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