हनुमान जी की पूजा महिलाओं को क्यों नहीं करनी चाहिए..???
वैसे तो कलियुग में .3 करोड़ देवी.देवताओं की कल्पना की गयी हैं जिनमें शिव, राम- कृष्ण, दुर्गा- लक्ष्मी,गणेश- पार्वती- हनुमान आदि प्रमुख हैं। इनमें हनुमान की एकमात्र ऐसे देवता हैं जिनकी पूजा करने से लगभग सभी देवी.देवताओं की पूजा का एक साथ फल मिल जाता है। हनुमान साधना कलियुग में सबसे सरल और प्रभावी मानी जाती है।
हनुमान को बल-बुद्धि व सिद्धि-सिद्धि का प्रतीक माना जाता है। यदि साधक सच्चे मन से हनुमानकी उपासना करे तो इस कलियुग में यह की गयी पूजा तुरंत फल देने वाली मानी गयी है। इसके अनेक प्रमाण हें। सभी देवी.देवताओं ने इस धरती पर अवतार लिया और अपना कार्य निपटाकर अपने अपने धामों को लौट गयेए परंतु राम भक्त हनुमान सीता माता और ब्रह्मा जी के आशिर्वाद से अजर.अमर हैं। वह वायु के रुप में पूरे ब्रह्मांड में विचरण करते हैंए जिसने भी उन्हें सच्चे मन से पुकारा वे उस आवाज को सुनकर दौडे चले आते हैं और उपासक की इच्छा पूर्ति में सहायक बनते हैं। गोस्वामी तुलसीदास ने हनुमान की सहायता से ही भगवान राम व लक्ष्मण के दर्शन किये थे।
महिलाएं / स्त्रियां भी कर सकती हैं हनुमानजी की पूजा, लेकिन ध्यान रखें ये बातें—
प्रायः कहा जाता है कि स्त्रियों को हनुमान जी की पूजा नहीं करनी चाहिए क्योंकि हनुमान जी ने जानकी जी को माता माना है। किंतु यह मान्यता तर्कसंगत नहीं है, न ही शास्त्रों में इसका कोई निषेध है। यदि स्त्रियों को हनुमान उपासना नहीं करनी चाहिए तो पुरुषों को भी लक्ष्मी की पूजा नहीं करनी चाहिए। किंतु ऐसी कोई वर्जना नहीं है और पुरूष लक्ष्मी की पूजा करते हैं। फिर स्त्रियों को हनुमान उपासना से क्यों रोका जाए, वह भी तब जब शास्त्रों में इस तरह की कोई वर्जना नहीं है। जैसा कि ऊपर कहा गया है।
अतः स्त्रियां भी पुरुषों की तरह हनुमान जी की पूजा उपासना कर सकती हैं तथा मंदिर जाकर प्रसाद भी चढ़ा सकती हैं। केवल लंबे अनुष्ठान करने में प्राकृतिक बाधा आती है। उनके रजस्वला होने से अनुष्ठान खंडित हो जाता है। दूसरे पारिवारिक उत्तरदायित्व भी उनके लंबे अनुष्ठान में विघ्न डालते हैं।
अतः वे हनुमान चालीसा के प्रतिदिन 5 या .. पाठ कर .0 या 10 दिन में 100 पाठ का अनुष्ठान कर सकती हैं (जो सतबार पाठ कर कोई। छूटहि बंदि महासुख होई।।) अथवा अपने कष्ट/संकट संबंधी ‘हनुमान चालीसा’ की चैपाई के 100 माला जप कर यथोचित लाभ उठा सकती हैं..
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कुछ अन्य विचारणीय तथ्य हमारे धार्मिक ग्रंथो से—-
इस प्रकार के विरोध को आधार मिलता है हमारे शास्त्रों से। अनेक धर्मसूत्रों और संहिताओं में महिलाओं के वेदपाठ और साधना के अधिकार को लेकर नकारात्मक संकेत मिलते हैं। आपस्तम्ब धर्मसूत्र में नारी के लिए यज्ञ-होम आदि करना वर्जित है। इसी के चलते स्त्री का उपनयन संस्कार भी नहीं किया जाता। ऐतरेय ब्राह्मण ने कन्या को अभिशाप कहा है। इसीलिए गर्भवती स्त्री के लिए ‘पुंसवन’ संस्कार की महत्ता थी। इसके द्वारा पुत्र के लिए प्रार्थना की जाती थी।
मनुस्मृति में परामर्श दिया गया है कि जिस कन्या के भाई न हों, उससे विवाह नहीं करना चाहिए। इससे ‘पुत्रिका शंका’ का अंदेशा है-यानी कन्या का पुत्रहीन होना। पिता पुत्री के ज्येष्ठ पुत्र से पिंडदान का वचन ले सकता है। पुत्रहीन स्त्री से तो अन्न ग्रहण का भी निषेध किया गया है। बेटे के प्रति मोह का एक कारण सद्गति का लालच भी है। बेटी के रहने पर भी पुत्रहीन पिता के अंतिम संस्कार के लिए दूरदराज के अनपहचाने रिश्तेदारों को खोजा जाता है। इसलिए पुत्री के जन्म का कहीं भी स्वागत नहीं होता।
यह विचार कि रजस्वला स्त्रियां स्वयं भी अपवित्र होती हैं और वातावरण को भी अपवित्र कर देती हैं , आज के युग में सर्वथा असंगत है। सृष्टि के विकास और निरंतरता के लिए प्रकृति नेे स्त्रियों के शरीर में इस प्रक्रिया का विधान किया है। इसके कारण पवित्र स्थान पर उनका प्रवेश निषेध कहां तक उचित है ? बाल विवाह जैसी प्रथा के पीछे ऋतुकाल का आतंक ही है।
विवाह योग्य कन्याओं को स्मृतियों में पांच भागों में बांटा गया है : नग्निका ( नग्न ), गौरी (8 वर्ष ), रोहिणी (9 वर्ष ) कन्या (10 वर्ष ), रजस्वला (10 से अधिक ) । नग्निका अर्थात पैदा होते ही योग्य वर से विवाह को सर्वोत्तम कहा गया है। महाभारत की एक परवर्ती व्याख्या में यह सलाह पुत्री के पिता को दी गई है ताकि वह सब से अधिक पुण्य लाभ कर सके।
ब्रह्म पुराण के अनुसार भी शैशव में ही (4 से 10 वर्ष की आयु के बीच ) कन्या का विवाह कर देना चाहिए। इससे पिता स्वर्ग प्राप्त करता है अन्यथा पापी कहलाता है। यम संहिता के अनुसार कन्या को अविवाहित अवस्था में रजस्वला देखने पर माता – पिता , ज्येष्ठ भ्राता , तीनों नरक के भागी होते हैं। जो ब्राह्मण अज्ञानतावश उस कन्या से विवाह कर लेता है वह बातचीत और पंक्ति में बैठकर भोजन करने योग्य नहीं होता।
जीमूतवाहन ने ‘ दायभाग ‘ में लिखा है कि स्तन प्रकट होने से पूर्व ही कन्यादान करें। यदि कन्या विवाह से पूर्व ऋतुमती हुई तो दाता और ग्रहीता दोनों नरकगामी होते हैं। प्राचीन ग्रंथों के इन उद्धरणों से आज के मंदिरों के विधि – निषेध समझ में आते हैं। 10 से 50 तक की अवधि सीमा के पीछे भी यही विश्वास है। स्त्रियों के लिए कई देवताओं के दर्शन – स्पर्श की भी मनाही है।
हनुमान बाल ब्रह्मचारी हैं इसी तरह से भगवान अयप्पा भी। यदि किसी नारी के दर्शन करने से उनका व्रत भंग होता है तो उनके निर्विकार रूप की संगति पर प्रश्नचिह्न लग जाता है। यह तर्क आज के पुरुषों की काम प्रवृत्ति के लिए भी दिया जाता है। स्त्री यदि बन संवर के निकले और पुरुष विचलित हो जाए तो दोष किसका है ? ईश्वर तत्व तो इन सब लौकिक ऐषणाओं से परे है न ?
कानून कितने ही बना दिए जाएं , जब तक समाज की मानसिकता नहीं बदलेगी , परिस्थितियां जस की तस रहेंगी। यह विडंबना है कि एक तरफ तो भारत में शक्ति के रूप में देवी की उपासना करते हुए कन्याओं का पूजन होता है लेकिन दूसरी तरफ समाज उन्हें उनके अधिकारों से वंचित करता है।
देवी पूजन और बालिका दिवस के अवसरों पर सोचना होगा कि कन्याओं को गाहे – बगाहे पूजा की दरकार नहीं। उन्हें स्वस्थ जीवन और समान अवसर चाहिए। सृष्टि के दो मूल तत्व पुरुष और प्रकृति एक दूसरे के पूरक बन कर हमकदम बन सकें , इतना ही बहुत है।
घर में बच्चों का पालन – पोषण बिना भेदभाव के हो सके , इसकी जिम्मेदारी माता – पिता को लेनी होगी। शरीर की संरचना के अनुसार जो भी बदलाव आते हैं उनके आधार पर किसी के भी अधिकारों का हनन प्रकृति का अपमान है। हजारों साल पहले बनी रूढि़यां आज की पीढ़ी के लिए असंगत हैं।
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जानिए की कैसे हुयी हनुमान जी की उत्पत्ति-
शास्त्रों में उल्लेख है कि हनुमान शिव के रुद्रावतार हैं। इनका जन्म वायुदेव के अंश और अंजनी के गर्भ से हुआ जो केसरी नामक वानर की पत्नी थी। पुत्र न होने से वह दु:खी थी। मतंग ऋषि के कहने पर अंजना ने बारह वर्ष तक कठोर तपस्या की जिसके फलस्वरूप हनुमान का जन्म हुआ।
यह रखें पूजा में सावधानी—-
– हनुमान की पूजा-अर्चना और व्रत में ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए अर्थात संयमपूर्वक रहना चाहिए।
-पूजा में चरणामृत का उपयोग न करें। शास्त्रों में इसका विधान नहीं है।
-जो प्रसाद हनुमान को चढ़ाया जाए, वह शुद्ध होना चाहिए।
-दीपक और प्रसाद में शुद्ध घी का ही प्रयोग करें।
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बजरंग बाण—
हनुमान शक्ति व साहस के प्रतीक हैं। जब मनुष्य दुश्मनों से घिरा हुआ हो और चारों तरफ से निराश हो चुका होतो उसे गोस्वामी तुलसीदास रचित बजरंग बाण पूरी श्रळा व पवित्रा मन से पढना चाहिए। इसके पढ़ने से शरीर में हनुमानजी की श्क्तियो का विकास होने लगता है और मन की संकल्प शक्ति में बढोतरी होती है। इसके पढने से मनुष्य निर्भीक हो जाता है।
तांत्रिक मांत्रिक के क्षेत्रा में भी बजरंग बाण का विशेष महत्व है।शारीरिक व्याधिए घर में भूत.प्रेत आपदा की बाधाएं मानसिक परेशानियां आदि के निवारण के लिए बजरंग बाण रामबाण की तरह है। जहां इसका नियमित पाठ होता है उस घर में कभी दैवी आपदा बाधा नहीं आती। साधक को चाहिए कि वह अपने सामने हनुमानजी का चित्रा और यदि हनुमान यंत्रा मिल सके तो उसे भी या मूर्ति रख लें और पूरी भावना तथा आत्मविश्वास के साथ उनका मानसिक ध्यान करे। वह यह विचार करे कि हनुमान जी की दिव्य और बलवान शक्तियां मेरे मन व शरीर में प्रवेश कर रही हैं। यह शक्ति मेरी मन की शक्ति को बढाने में सहायक बने। धीरे धीरे इस प्रकार अभ्यास करने से उपासक के मन का शक्ति द्वार खुलने लगता है और एकाग्रता पर नियंत्राण होने लगता है। जब ऐसा अनुभव हो तो समझना चाहिए बजरंग बाण सिळ हो गया।
हनुमान जी की पूजा में इत्रा सुगंधित द्रव्य तथा गुलाब के फूलों का प्रयोग नहीं किया जाता। उपासक स्नान कर शुळ वस्त्रा धारण कर बैठे यदि लाल लंगोट पहने हो तो सर्वोत्तम माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार महिलाओं को बजरंग बाण का पाठ नहीं करना चाहिए परंतु वह हनुमानजी की मूर्ति या चित्रा के सामने दीपक तथा अगरबत्ती जलाकर हनुमान चालीसा का पाठ कर सकती हैं।
हनुमान साधना में हनुमानजी की मूर्ति या चित्रा के सामने तेल का दीपक जलाना चाहिए और उन्हें गुड़ मिश्रित चने का भोग लगाना चाहिए। उपासना करनेवाला अपना आसन ऊनी वस्त्रा का ही बिछाए और मन में हनुमानजी का ध्यान करें। धीरे धीरे उपासक स्वयं महसूस करेगा कि उसके शरीर में एक नई चेतनाए एक नया जोश और नई शक्ति का प्रवेश होरहा है।
बच्चों की नजर उतारनेए शांत और गहन निद्रा के लिए रात्रि को अकेले यात्रा करते समयए भूत बाधा दूर करने तथा अकारण भय को दूर करने के लिए बजरंग बाण आश्चर्यजनक सफलता देता है। किसी भी महत्पूर्ण कार्य पर जाने से पूर्व भी यदि इसका पाठ किया जाये तो उसे निश्चय ही सफलता प्राप्त होगी।
हनुमान की पूजा पद्धति—-
—हनुमान की प्रतिमा पर तेल एवं सिंदूर चढ़ाया जाता है। उन्हें फूल भी पुरुषवाचक जैसे गुलाब, गेंदा आदि चढ़ाना चाहिए। सुंदरकांड या रामायण के पाठ से वे प्रसन्न होते हैं। प्रसाद के रूप में चना, गुड़, केला, अमरूद, या लड्डू चढ़ाया जाता है।
— -हनुमान को लाल फूल प्रिय हैं। अत: पूजा में लाल फूल ही चढ़ाएं।
— -मूर्ति को जल व पंचामृत से स्नान कराने के बाद सिंदूर में तिल का तेल मिलाकर उनको लगाना चाहिए। इससे वे प्रसन्न होते हैं।
—-साधना हमेशा पूर्व दिशा की ओर मुंह करके ही शुरू करना चाहिए।
हनुमान की पूजा-आराधना के विशेष दिन—-
मंगलवार और शनिवार को हनुमान की पूजा का महत्व है। ऐसा कहते हैं उनका जन्म मंगलवार के दिन हुआ था। शनिदेव को उन्होंने युद्ध में हराया था। शनि ने इनको आशीर्वाद दिया था कि जो व्यक्ति शनिवार के दिन हनुमान की पूजा करेगा उसे शनि का कष्ट नहीं होगा।
हनुमान चालीसा-पाठ—-
भक्तों को 108 बार गोस्वामी तुलसीदास कृत हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए। पाठ शुरू करने के पहले रामरक्षास्तोत्रम् का पाठ अवश्य करना चाहिए। अगर एक बैठक में 108 बार चालीसा-पाठ न हो सके तो इसे दो बार में पूरा कर सकते हैं।