केसरनेमी की फाउंडर दिव्या सोनी ने बताया कि खुशबू की समझ और फिर उसकी उतनी कीमत अदा करना सबको नहीं आता। इत्र फूलों से निकला प्योर नेचुरल ऑयल होता है। इस प्रोसेस में फूलों को जितना डिस्टिलेशन करेंगे, इसकी कीमत उतनी बढ़ती जाएगी। प्योरेस्ट रूह-अल गुलाब इत्र .. से 35 लाख प्रति लीटर की कीमत रखता है।
जिसके लिए जहांगीर (.569- 16.7) ने अपने ऑटोबायोग्राफिकल वर्क, तुज़ुक ए जहांगीरी में लिखा था कि रूह अल गुलाब अतुल्य खुशबू है, जो रूह को खुश कर तरोताजा कर देती है। इस इत्र के एक लीटर के लिए 8 हजार किलो गुलाब की जरूरत होती है।
सात दिनों की अलग-अलग महक
गल्फ रीजंस में इत्र की उम्र के मुताबिक कीमत तय होती है। जिसे दुल्हन को गोल्ड के साथ एक वुडन चेस्ट, देज़्ज़ा में दिया जाता है। गणेश परफ्यूम गैलरी के नमन साबू ने बताया कि यहां अब टर्की के ब्लैक रोज से लेकर श्री लंकन वुड से बने इत्र खरीदे जाते हैं। इनकी कीमत 4 लाख 75 हजार तक जाती है। वहीं इनकी बॉटल्स भी उतनी ही खास हैं, जो कई बार इत्र जितनी ही कीमत की होती हैं। इनमें कैमल स्किन का जार या गोल्ड व सिल्वर में बनी बॉटल पसंद की जाती है। यहां तक कि हफ्ते के सात दिनों की सात अलग-अलग महक और सात अलग बॉटल्स खरीदी जा रही हैं।
‘रूह गुलाब’ नामक इत्र, आभूषणों पर भी भारी पड़ सकता है। नर्इ दिल्ली सहित कर्इ एकांत ठौरों पर अब भी इसकी खुशबू आ रही है। जबकि हाल ही सरकार ने चंदन के तेल और इत्र के निर्यात पर बैन लगाया था। यह इत्र ‘गुलाब सिंह जौहरी मल’ के यहां निर्मित होता है। फर्म स्थापक (नाम नहीं बताया) के मुताबिक इसकी कीमत 18,000/10g है। यानी यह चांदी से तो महंगा है ही, कुछ साल पहले सोने से भी आगे रहा।
5 ग्राम इत्र बनाने में 40KG गुलाब लगता है
आजकल बाजार में लेडीज़्स परफ्यूम्स की कमी नहीं है, कौन-किस तरह के केमिकल से बनता है, यह भी पता नही हैं। कई प्रीमियम ब्रांड विशेष छूट भी देते हैं। लेकिन ‘रूह गुलाब’ इत्र तैयार करने वाली फर्म का दावा है कि ये एक दम प्योर है। यह इतनी मेहनत और सलीके से तैयार हो पाता है कि, गुलाबों का बगीचा एकबारगी पूरा खत्म हो जाता है। मात्र 5 ग्राम रूह गुलाब बनाने के लिए विशेष किस्म के 40 किलोग्राम गुलाबों की जरूरत पड़ती है।
मिट्टी का इत्र देता है बारिश की महक
परफ्यूम कैपिटल ऑफ इंडिया, कन्नौज में बीस साल पहले तक 700 परफ्यूम डिस्टलरीज थी लेकिन अब सिर्फ 100 बची हैं। जयपुर फ्रेगरेंस के फाउंडर अमन प्रभाकर ने बताया कि इत्र में बेस आयल बढ़ाते ही उसकी कीमत गिरने लगती है।
चंदन की लकड़ी की कमी की वजह से अब प्लेन वेजिटेबल आयल बेस की तौर पर इस्तेमाल होने लगा है। फूलों के अलावा बारिश के पहले मिट्टी की भीनी महक को भी अब इत्र में उतारा जा रहा है जो लाइट और सूदिंग खुशबू देता है। असल में इत्र बनाना आर्ट , साइंस और नॉलेज का मिक्सचर है। इसे बेहद स्लो प्रोसेस से बनाया जाता है। पुराने समय में महलों में खुशबू खाना हुआ करता था, जहां सिर्फ महा राजाओं के लिए महक तैयार होती थी।
आजादी से पहले इत्र सवाई माधोपुर से रावल पिंडी भिजवाए जाते थे। यहां तक इसे हवा जितना शुद्ध मानकर काशी में सबसे पहले श्रीनाथ जी पर छिड़कते थे और फिर ही इसके इस्तेमाल करने की अनुमति होती थी। कॉपर पॉट्स में थोड़े से ठंडे पानी में फूलों को 4 से 6 घंटे तक लकड़ी या उपलों की आंच में उबाला जाता है। गर्म भाप फूलों से एसेंशियल आयल रिलीज़ करती है, जिसे बैम्बू पाइप से दूसरे पॉट में इकट्ठा किया जाता है।
चांदनी चौक में वर्ष 1818 से इत्र का कारोबार कर रही इस फर्म का हाथरस के पास हसायन में इत्र बनाने वाली डिस्टिलियरी भी है। फर्म की ब्रांच के मालिक नवीन गांधी के मुताबिक, “इसे बनाने की प्रक्रिया बेहद महंगी और कठिन है। यह हसायन की मिट्टी में उपजे गुलाब से ही बनता है और इसके प्रोसेस में काफी सावधानी बरतनी पड़ती है।”