प्रिय पाठकों /मित्रों , ज्योतिष की मान्यता एवं प्राचीन धर्म ग्रंथो के अनुसार तथा हिन्दू-पंचांगों के अनुसार आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा, कोजागरी पूर्णिमा या रास पूर्णिमा कहते हैं। ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की वैदिक ज्योतिषीय ग्रंथों के अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन औषधियों की स्पंदन क्षमता अधिक होती है, पूरे साल में केवल इसी दिन चन्द्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है। रसाकर्षण के कारण जब अंदर का पदार्थ सांद्र होने लगता है, तब रिक्तिकाओं से विशेष प्रकार की ध्वनि उत्पन्न होती है। इसी दिन श्रीकृष्ण ने महारास रचाया था। मान्यता है शरद पूर्णिमा की रात्रि को चन्द्रमा की किरणों से अमृत झड़ता है। तभी इस दिन संपूर्ण भारत में खीर बनाकर रात भर चाँदनी में रखने का विधान है।
मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात को चन्द्रमा पृथ्वी के बहुत नजदीक होता है। पुराणों में ऐसी कथा आती है कि इस रात भगवान कृष्ण ने गोपियों के साथ महारास रचा था। इसलिए शरद पूर्णिमा को रास पूर्णिमा भी कहा जाता है। शरद पूर्णिमा अश्विन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस वर्ष शरद पूर्णिमा (.. अक्टूबर .020) को मनाया जाएगा।
बरसती है लक्ष्मी की कृपा
शरद पूर्णिमा की रात को जागने का विशेष महत्व दिया गया है। ऐसी मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात माता लक्ष्मी यह देखने के लिए घूमती कि कौन जाग रहा है। जो जगता है उसका माता लक्ष्मी कल्याण करती हैं। अगर आप भी चाहते है कि मां भी आपके ऊपर अपनी कृपा बरसाएं। जिससे कि आपके सभी काम हो और आपका भाग्य चमक जाएं, तो इस दिन रात के समय इस मंत्र का जाप करें।
“पुत्रपौत्रं धनं धान्यं हस्त्यश्वादिगवेरथम् प्रजानां भवसि माता आयुष्मन्तं करोतु मे।”
जानिए कैसे करें इस मंत्र का जाप
सबसे पहले इस दिन रात को चंद्रमा का दर्शन करके चांदी के बर्तन में दूध और मिश्री लेकर भोग लगाएं और फिर रातभर इस मंत्र का जाप
विज्ञानमतानुसार -: दुग्ध में लैक्टिक अम्ल और अमृत तत्व होता है। यह तत्व किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है। चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया और आसान हो जाती है। इसी कारण ऋषि-मुनियों ने शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर खुले आसमान में रखने का विधान किया है। यह परंपरा विज्ञान पर आधारित है। शोध के अनुसार खीर को चांदी के पात्र में बनाना चाहिए। चांदी में प्रतिरोधकता अधिक होती है। इससे विषाणु दूर रहते हैं। हल्दी का उपयोग निषिद्ध है। प्रत्येक व्यक्ति को कम से कम 30 मिनट तक शरद पूर्णिमा का स्नान करना चाहिए। रात्रि .0 से 12 बजे तक का समय उपयुक्त रहता है। इस वर्ष 2020 में शरद पूर्णिमा शुक्रवार (30 अक्टूबर) को मनाई जाएगी।
क्या करें शरण पूर्णिमा पर
इस दिन गाय के दूध से खीर बनाकर उसमें घी और चीनी मिलाकर रात्रि में चन्द्रमा की रोशनी में रख दें। सुबह इस खीर का भगवान को भोग लगाएं तथा घर के सभी सदस्य सेवन करें। इस दिन खीर बनाकर चन्द्रमा की रोशनी में रखने से उसमें औषधीय गुण आ जाते हैं तथा वह मन, मस्तिष्क तथा शरीर के लिए अत्यन्त उपयोगी मानी जाती हैं। इससे दिमाग तेज होता है। एक अध्ययन के अनुसार दुग्ध में लैक्टिक अम्ल और अमृत तत्व होता है। यह तत्व किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है। चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया और आसान हो जाती है। इसी कारण ऋषि-मुनियों ने शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर खुले आसमान में रखने का विधान किया है। यह परंपरा विज्ञान पर आधारित है। शोध के अनुसार खीर को चांदी के पात्र में बनाना चाहिए। चांदी में प्रतिरोधकता अधिक होती है। इससे विषाणु दूर रहते हैं। हल्दी का उपयोग निषिद्ध है। प्रत्येक व्यक्ति को कम से कम 30 मिनट तक शरद पूर्णिमा का स्नान करना चाहिए। रात्रि 10 से 12 बजे तक का समय उपयुक्त रहता है।
इस रात्रि को कुछ लोग चाँद की तरफ देखते हुए सुई में धागा पिरोते है। कुछ लोग काली मिर्च को चांदनी में रख कर सेवन करते है। माना जाता है की इनसे आँखों स्वस्थ होती है और उनकी रौशनी बढ़ती है। आयुर्वेद के अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन खीर को चन्द्रमा की किरणों में रखने से उसमे औषधीय गुण पैदा हो जाते है। और इससे कई असाध्य रोग दूर किये जा सकते है। खीर खाने का अपना औषधीय महत्त्व भी है। इस समय दिन में गर्मी होती है और रात को सर्दी होती है। ऋतु परिवर्तन के कारण पित्त प्रकोप हो सकता है। खीर खाने से पित्त शांत रहता है। इस प्रकार शारीरिक परेशानी से बचा जा सकता है। शरद पूर्णिमा की रात में खीर का सेवन करना इस बात का प्रतीक है कि शीत ऋतु में हमें गर्म पदार्थों का सेवन करना चाहिए क्योंकि इसी से हमें जीवनदायिनी ऊर्जा प्राप्त होगी।
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की गाय के दूध से किसमिस और केसर डालकर चावल मिश्रित खीर बनाकर शाम को चंद्रोदय के समय बाहर खुले में रखने से उसमें पुष्टिकारक औषधीय गुणों का समावेश हो जाता है जब अगले दिन प्रातः काल उसका सेवन करते हैं, तो वह हमारे आरोग्य के दृष्टिकोण से अत्यंत लाभकारी हो जाती है। यह खीर यदि मिटटी की हंडिया में रखी जाये,और प्रातः बच्चे उसका सेवन करें, तो छोटे बच्चों के मानसिक विकास में अतिशय योगदान करती है; ऐसा आयुर्वेद में उल्लेखित है। इस खीर के प्रयोग से अनेक मानसिक विकारों से बचा जा सकता है।
वर्ष में एक बार शरद पूर्णिमा की रात दमा रोगियों के लिए वरदान बनकर आती है। इस रात्रि में दिव्य औषधि को खीर में मिलाकर उसे चांदनी रात में रखकर प्रात: 4 बजे सेवन किया जाता है। रोगी को रात्रि जागरण करना पड़ता है और औषधि सेवन के पश्चात 2-3 किमी पैदल चलना लाभदायक रहता है। शरद पूर्णिमा के दिन औषधियों की स्पंदन क्षमता अधिक होती है। रसाकर्षण के कारण जब अंदर का पदार्थ सांद्र होने लगता है, तब रिक्तिकाओं से विशेष प्रकार की ध्वनि उत्पन्न होती है।
ऐसे लगाएं खीर का भोग
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की इस दिन व्रत रख कर विधि-विधान से लक्ष्मीनारायण का पूजन करें। खीर बनाकर रात में खुले आसमान के नीचे ऐसे रखें ताकि चन्द्रमा की रोशनी खीर पर पड़े। अगले दिन स्नान करके भगवान को खीर का भोग लगाएं। फिर तीन ब्राह्मणों या कन्याओं को प्रसाद रूप में इस खीर को दें और अपने परिवार में खीर का प्रसाद बांटे। इस खीर को खाने से अनेक प्रकार के रोगों से छुटकारा मिलता है।
जानिए योग और शरद पूर्णिमा का सम्बन्ध
लंकाधिपति रावण शरद पूर्णिमा की रात किरणों को दर्पण के माध्यम से अपनी नाभि पर ग्रहण करता था। इस प्रक्रिया से उसे पुनर्योवन शक्ति प्राप्त होती थी। चांदनी रात में 10 से मध्यरात्रि 12 बजे के बीच कम वस्त्रों में घूमने वाले व्यक्ति को ऊर्जा प्राप्त होती है। सोमचक्र, नक्षत्रीय चक्र और आश्विन के त्रिकोण के कारण शरद ऋतु से ऊर्जा का संग्रह होता है और बसंत में निग्रह होता है।
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की शरद पूर्णिमा का बड़ा महत्व है | भारतीय वैदिक मतानुसार/पंचांग अनुसार वर्षभर में बारह (१२) पूर्णिमा होती है लेकिन सिर्फ शरद पूर्णिमा पर ही अमृतवर्षा होती है ! यह एक मान्यता मात्र नहीं है , वरन आध्यात्मिक अवस्था की एक खगोलीय घटना है | शरद पूर्णिमा की रात्रि पर चन्द्रमा पृथ्वी के सबसे निकट होता है एवं वह अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण रहता है | इस रात्रि चन्द्रमा का ओज सबसे तेजवान एवं उर्जावान होता है | इसके साथ ही शीतऋतु का प्रारंभ होता है | शीतऋतु में जठराग्नि तेज हो जाती है और मानव शरीर स्वस्थ्यता से परिपूर्ण होता है परन्तु इस घटना का आध्यात्मिक पक्ष इस प्रकार होता है कि जब मानव अपनी इन्द्रियों को वश में कर लेता है तो उसकी विषय – वासना शांत हो जाती है | मन इन्द्रियों का निग्रह कर अपनी शुद्ध अवस्था में आ जाता है | मन का मल निकल जाता है और मन निर्मल एवं शांत हो जाता है | तब आत्मसूर्य का प्रकाश मन रुपी चन्द्रमा पर प्रकाशित होने लगता है , इस प्रकार जीवरूपी साधक की अवस्था शरद पूर्णिमा की हो जाती है और वह अमृतपान का आनंद लेता है | यही मन की स्वस्थ्य अवस्था होती है | इस अवस्था में साधक अपनी इच्छाशक्ति को प्राप्त होता है | योग में इसी को धारणा कहते है | धारणा की प्रगाढ़ता ही ध्यान में परिवर्तित हो जाती है और यहाँ से ध्यान का प्रारंभ होता है ।
जानिए ज्योतिष और चन्द्रमा का सम्बन्ध
ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की ज्योतिष विज्ञान में मन का स्वामी चन्द्रमा को माना गया है। चन्द्रमा को भगवान शिव के मस्तक पर सुशोभित करने का अभिप्रायः भी यही है कि मन सर्वोपरि है। कहते हैं न ‘मन जीता तो जग जीता’। यदि मन शुद्ध है तो आपका जीवन निश्चित ही शिवमय (कल्याणकारी) होगा। संसार में जो कुछ भी शिवमय है, वह स्वयं सत्यमय है और जो भी सत्यमय है वही तो सुन्दरतम है। सत्यं -शिवम -सुंदरम।
चन्द्रमा की गतिविधियों का हमारे मन और शरीर से गहरा और सीधा सम्बन्ध है। मन की सभी वृत्तियों को चन्द्रमा नियंत्रित करता है। पश्चिम के देशों में इसपर अनेक शोध कार्य चल रहे हैं।वैज्ञानिक मान्यताएं हैं कि जो व्यक्ति पागल होते हैं उनमें चन्द्रमा एक प्रमुख कारक के रूप में उपस्थित होता है। ज्योतिष विज्ञान की गहरी से गहरी खोजें भी इस बात की पुष्टि करती हैं कि चन्द्रमा यदि दोषयुक्त है तो व्यक्ति का मानसिक संतुलन गड़बड़ा जाता है। कैलिफोर्निया विश्वविद्द्यालय के शोधार्थियों ने जेल में बंद कुछ मानसिक रोगियों पर जो अनुसन्धान किये हैं उनके नतीजे चौंकाने वाले हैं। उनका कहना है महीने में दो बार उन कैदियों की गतिविधियों में अभूतपूर्व बदलाव देखने में आता है उनमे से कुछ अत्यधिक उग्र और उत्पाती हो जाते हैं जबकि कुछ एकदम शांत और शालीन। ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की जब इन तिथियों को भारतीय पंचांग से मिलाया गया, तो ये तिथियाँ अमावस्या और पूर्णिमा या उनसे एक दो दिन आगे पीछे की तिथियाँ थी। वैज्ञानिक इस बात पर भी सहमत होते दिखे कि उन मानसिक रोगियों के व्यवहार परिवर्तनों में कहीं न कहीं चन्द्रमा की गतियों का कुछ तारतम्य अवश्य है।
विशालतम समुद्र में ज्वारभाटा चन्द्रमा के कारण ही आता है। चन्द्रमा जब इतने विशालकाय सागर के अस्तित्व को प्रभावित कर सकता है, तब एक मनुष्य का उसके सम्मुख क्या स्थान है। यहाँ यह भी जान लेना ज़रूरी है कि हमारे शरीर में लगभग 85 प्रतिशत जल है और इस जल में नमक की मात्रा कमोबेश उतनी ही है, जितनी समुद्र के जल के खारेपन में होती है। तभी तो पसीना हमें खारा लगता है। समुद्र में रहने वाले अधिकांश जलीय जंतुओं का चन्द्रमा से एक खास सम्बन्ध है। अनेक प्रजातियों की मछलियाँ चन्द्रमा की गति के मुताबिक अपने जीवन चक्र को संयोजित करती हैं। ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की चन्द्रमा की कलाओं से वे यह सुनिश्चित करती हैं कि उन्हें अपने अंडें कहाँ और कब देने हैं। सिर्फ मछलियाँ ही नहीं महिलाओं के शरीर में होने वाले हार्मोन्स और व्यवहार के परिवर्तनों में भी चन्द्रमा का विशेष हस्तक्षेप है। स्त्रियों का मासिक चक्र भी चन्द्रमा की गतियों से ही निर्धारित होता है। यदि मानसिक रोगों से ग्रस्त व्यक्ति के जीवन में चन्द्रमा और अमावस्या इन दो तिथियों पर विशेष ध्यान देकर उसके व्यवहार को आँका जा सके,तो विज्ञान कहता है ऐसे मानसिक रोगियों को सदा के लिए ठीक किया जा सकता है।
चन्द्रमा का प्रायः सभी धर्मों में समान आदर है। उसकी गहरी से गहरी वज़हों में यह बात छिपी है कि धर्मों के अधिष्ठाता इस बात से भली प्रकार विज्ञ थे कि चन्द्रमा को साध लिया तो सब सध जायेगा। ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की भारतीय पुरातन परम्पराओं में चन्द्रमा के इर्द -गिर्द ही सभी पर्वों का प्रभाव अस्तित्वमान रहा है। श्री राम को 12 कलाओं और योगिराज श्री कृष्ण को 16 कलाओं में दक्ष की संज्ञा दी जाती है। श्री कृष्ण की ये 16 कलाएं वस्तुतः चन्द्रमा की ही 16 पूर्ण अवस्थाओं को उपलब्ध हो जाना है। जब पूरा चाँद क्षितिज पर दैदीप्यमान होता है तब उसकी छटा देखने लायक होती है। श्री कृष्ण एक ऐसे अवतार जिन्होंने मन के सभी आयामों पर विजय प्राप्त कर ली। यही तो 16 कलाओं में पूर्ण होना हुआ और क्या ? अपनी इन 16 कलाओं अर्थात 16 दिनों के सत्त्व से पूरित चन्द्रमा जब एक नक्षत्र विशेष में आकाश पर उदित होता है वह विशेष तिथि है -शरद पूर्णिमा |
जानिए क्या करें उपाय इस शरद पूर्णिमा पर आपकी जन्म कुंडली के चंद्र संबंधी दोष दूर करने के उपाय (आपकी राशि अनुसार)
प्रिय पाठकों/मित्रों, ज्योतिष के अनुसार चंद्रमा मन का कारक होता है। चंद्रमा का प्रभाव विभिन्न राशियों पर अलग-अलग पड़ता है। ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की शरद पूर्णिमा के दिन अपनी राशि अनुसार उपाय करने से चंद्र संबंधी दोष दूर होते हैं और बिगड़े काम बनने की संभावना बढ़ती है।
जानिए आपकी राशि अनुसार कोनसा उपाय होगा प्रभावी/लाभकारी
मेष राशि अनुसार – शरद पूर्णिमा पर मेष राशि के लोग कन्याओं को खीर खिलाएं और चावल को दूध में धोकर बहते पानी में बहाएं। ऐसा करने से आपके सारे कष्ट दूर हो सकते हैं।
वृषभ राशि अनुसार – इस राशि में चंद्रमा उच्च का होता है। वृष राशि शुक्र की राशि है और राशि स्वामी शुक्र प्रसन्न होने पर भौतिक सुख-सुविधाएं प्रदान करते हैं। शुक्र देवता को प्रसन्न करने के लिए इस राशि के लोग दही और गाय का घी मंदिर में दान करें।
मिथुन राशि अनुसार- इस राशि का स्वामी बुध, चंद्र के साथ मिल कर आपकी व्यापारिक एवं कार्य क्षेत्र के निर्णयों को प्रभावित करता है। उन्नति के लिए आप दूध और चावल का दान करें तो उत्तम रहेगा।
कर्क राशि अनुसार – आपके मन का स्वामी चंद्रमा है, जो कि आपका राशि स्वामी भी है। इसलिए आपको तनाव मुक्त और प्रसन्न रहने के लिए मिश्री मिला हुआ दूध मंदिर में दान देना चाहिए।
सिंह राशि अनुसार – आपका राशि का स्वामी सूर्य है। शरद पूर्णिमा के अवसर पर धन प्राप्ति के लिए मंदिर में गुड़ का दान करें तो आपकी आर्थिक स्थिति में परिवर्तन हो सकता है।
कन्या राशि अनुसार- इस पवित्र पर्व पर आपको अपनी राशि के अनुसार 3 से 10 वर्ष तक की कन्याओं को भोजन में खीर खिलाना विशेष लाभदाई रहेगा।
तुला राशि अनुसार – इस राशि पर शुक्र का विशेष प्रभाव होता है। इस राशि के लोग धन और ऐश्वर्य के लिए धर्म स्थानों यानी मंदिरों पर दूध, चावल व शुद्ध घी का दान दें।
वृश्चिक राशि अनुसार – इस राशि में चंद्रमा नीच का होता है। सुख-शांति और संपन्नता के लिए इस राशि के लोग अपने राशि स्वामी मंगल देव से संबंधित वस्तुओं, कन्याओं को दूध व चांदी का दान दें।
धनु राशि अनुसार- इस राशि का स्वामी गुरु है। इस समय गुरु उच्च राशि में है और गुरु की नौवीं दृष्टि चंद्रमा पर रहेगी। इसलिए इस राशि वालों को शरद पूर्णिमा के अवसर पर किए गए दान का पूरा फल मिलेगा। चने की दाल पीले कपड़े में रख कर मंदिर में दान दें।
मकर राशि अनुसार – इस राशि का स्वामी शनि है। गुरु की सातवी दृष्टि आपकी राशि पर है जो कि शुभ है। आप बहते पानी में चावल बहाएं। इस उपाय से आपकी मनोकामनाएं पूरी हो सकती हैं।
कुंभ राशि अनुसार – इस राशि के लोगों का राशि स्वामी शनि है। इसलिए इस पर्व पर शनि के उपाय करें तो विशेष लाभ मिलेगा। आप दृष्टिहीनों को भोजन करवाएं।
मीन राशि अनुसार- शरद पूर्णिमा के अवसर पर आपकी राशि में पूर्ण चंद्रोदय होगा। इसलिए आप सुख, ऐश्वर्य और धन की प्राप्ति के लिए ब्राह्मणों को भोजन करवाएं।
विशेष : कृपया उपरोक्त उपाय करने से पूर्व किसी योग्य ज्योतिषी से सलाह /परामर्श अवश्य कर लेवें |
जानिए क्या करें उपाय/टोटके शरद पूर्णिमा पर
शरद पूर्णिमा के दिन लक्ष्मी पूजा के छोटे-छोटे उपाय करने पर माँ लक्ष्मी हमेशा मेहरबान रहती है और धन की कभी कमी नही होती है। माता लक्ष्मी सुख-समृद्धि, धन, वैभव और ऐश्वर्य की देवी है। ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की माँ लक्ष्मी की उपासना महाष्टमी, महानवमी और शरद पूर्णिमा को करने पर सुख-ऐश्वर्य प्राप्त होता है। धन की देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने के ये आसान उपाय इस प्रकार है-
- मोती शंख पर केसर से स्वास्तिक बनाएं 108 अक्षत लेकर एक एक अक्षत महालक्ष्मी मंत्र बोलकर चढ़ाएं…फिर उस अक्षत को लाल कपड़े में बांध कर अपनी तिजोरी या कैश बॉक्स में रखें। मंत्र है- ओम श्रीं ओम , ओम ह्रीं ओम महालक्ष्मये नम :। चावल चंद्रमा का प्रतीक और शंख लक्ष्मी स्वरुप है। ये उपाय आप रात 9 बजे से लेकर आधी रात 12:30 तक कर सकते हैं।
- घर में लक्ष्मी के स्थायी निवास के लिये, पूर्णिमा की शाम से लेकर सुबह तक अखंड दीप जलायें। चंद्रलोक में मां लक्ष्मी दीप रुप में विराजमान हैं। अखंड दीप की रोशनी से मां लक्ष्मी खिंची चली आयेंगी।
- लक्ष्मी के तांत्रिक उपाय में आप छोटे नारियल की पूजा करके उसे पूजा स्थान पर स्थापित करें। अष्ट लक्ष्मी पर 8 कमल चढ़ाकर महालक्ष्मी अष्टकम पढ़ने से भी मां लक्ष्मी निर्धनों के जीवन में प्रवेश करती हैं।
- दक्षिणावर्ती शंख से मां लक्ष्मी का अभिषेक करें और धूप,दीप ,फूल से पूजा करें, दक्षिणावर्ती शंख भी पूर्णिमा के दिन ही प्रकट हुआ था। श्रीसूक्त का पाठ करने से भी मिलता है धन।
- पूर्णिमा को लक्ष्मी सहस्त्रनाम, लक्ष्मी अष्टोत्र नावामली, सिद्धिलक्ष्मी कवच, श्रीसूक्त, लक्ष्मी सूक्त, महालक्ष्मी कवच, कनकधारा के पाठ से भी आपको मां लक्ष्मी की कृपा मिलेगी।
- पूर्णिमा को आंवला की पूजा से भी लक्ष्मी का घर में प्रवेश होता है। चांदनी रात में रखे आंवले में औषधीय शक्ति भी आती है।
- शरद पूर्णिमा पर महालक्ष्मी को खीर, छुहाड़े की खीर, मेवे की खीर का भोग लगायें। गाय के दूध में महालक्ष्मी का वास है, इसीलिये उन्हें खीर बहुत प्रिय है।
- शरद पूर्णिमा के दिन माता अष्ट लक्ष्मी की तस्वीर लेकर उसपर केसर का तिलक करके कमल चढ़ाकर महालक्ष्मी अष्टकम पढ़े। इस उपाय से कुंडली में चाहे जैसा भी योग हो महालक्ष्मी अपने भक्त को जीवन में अचल ऐश्वर्य प्रदान करती है।
- इस दिन ताम्बे के बर्तन में भरकर किसी ब्राह्मण को दान करने और साथ में दक्षिणा भी देने से बहुत पुण्य की प्राप्ति होती है और धन लाभ की प्रबल सम्भावना बनती है। इस दिन ब्राह्मण को खीर, कपड़ें आदि का दान भी करना बहुत शुभ रहता है।
इन उपाय/टोटकों के आलावा भी आप निम्न कार्य कर करके लाभ उठा सकते हैं –
- सुबह जल्दी उठते ही अपने हाथों की लकीरों को देखें। शास्त्रों में लिखा है कि ‘कराग्रे वसते लक्ष्मी’ यानी हाथों के अगले भाग में माता लक्ष्मी का वास होता है।
- ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की किसी पवित्र स्थान पर जाकर अर्घ्य दें। पवित्रता में ही मां लक्ष्मी का वास है। अतः पवित्र स्थानों पर जाने से माँ लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है।
- महाष्टमी व महानवमी की शुभ तिथियों पर देवी लक्ष्मी की पंचोपचार पूजा गंध, पुष्प, धूप, दीप व नैवेद्य से करें और लक्ष्मीजी की आरती कर आखिरी में शंख व डमरू बजाएं। ऐसा करने से घर से दरिद्रता, कलह व दोष का नाश हो जाता है।
- देवी लक्ष्मी को पूजन में कमल के फूल चढ़ावे और लक्ष्मी मंत्र का 108 बार कमलगट्टे का माला से स्मरण करें।
- महाष्टमी व महानवमी पर भगवान विष्णु के मंदिर में पति-पत्नी दोनों साथ जाएं और पीला वस्त्र चढ़ाएं। इससे घर-परिवार में लक्ष्मी कृपा के साथ धन-संपत्ति भी आएगी।
- महाष्टमी व महानवमी तिथियों पर गाय के गोबर से बना दीपक मीठा तेल व थोड़ा सा गुड़ डालकर प्रज्जवलित करें और शाम के समय इसे घर के बाहर रख दें। ऐसा करने से घर में लक्ष्मी का प्रवेश होता है।
- तुलसी के पत्तों की माला बनाकर माँ लक्ष्मी के चरणों में अर्पित करने पर धन लाभ होता है।
- महाष्टमी व महानवमी पर देवी लक्ष्मी को चढ़ाए तुलसी के पत्ते तिजोरी मे रखने पर आर्थिक तंगी दूर होती है।
- ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की शुभ तिथियों पर पीपल के पेड़ की परछाई में खड़े होकर उसकी जड़ में दूध, घी व शक्कर मिला पवित्र गंगाजल चढ़ाएं और शाम के समय पीपल के पेड़ की परिक्रमा करने पर धन लाभ होता है।
- महाष्टमी व महानवमी पर देवी पूजा में मोती शंख व गोमती चक्र की पूजा करने पर सुख-समृद्धि बनी रहती है।
- शुभ तिथियों पर पूजन में कमल, गोबर, आंवले व शंख का उपयोग करने पर परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।
- पौराणिक मान्यता के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान देवी लक्ष्मी प्रकट हुई। उन्हे पाने के लिए देव-दानव आपस में संघर्ष करने लगे। इस संघर्ष के दौरान देवी लक्ष्मी ने बिल्व वृक्ष के नीचे आराम किया अतः नवरात्र के दौरान महाष्टमी व महानवमी के दिन बिल्वपत्र के पेड़ की पूजा की जाती है और जल चढ़ाया जाता है।
- दुर्गाष्टमी व दुर्गा नवमी पर महालक्ष्मी मंदिर में विद्वान ब्राह्मणों द्वारा विधि-विधान से अभिमंत्रित श्रीयंत्र घर में लाकर देवालय में स्थापित कर लक्ष्मी पूजा व स्मरण करें तो घर में धन-संपत्ति में वृद्धि होती है।
- महाष्टमी व महानवमी के दिन किसी मंदिर में स्थापित सिंदूर चढ़े श्वेतार्क यानी आंकडे के गणेश को 21 दूर्वा व यथाशक्ति लड़्डुओं का भोग लगाएं। ऐसा करने से परेशानियों का अंत होगा और धन की प्राप्ति होगी।
- घर में या मंदिर में मन ही मन माँ लक्ष्मी के इस मंत्र का जाप करें-
“श्रीं महालक्ष्मी मम गृह धनं पूरय पूरय चिन्तायै दूरय दूरय स्वाहा“
- ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की घर के पास या मंदिर में अशोक के पेड़ को जल अर्पित करने पर सारे दुखों का नाश होगा और सुख की प्राप्ति होगी।
- शुभ तिथियों में देवी की पूजा के साथ गन्ने की जड़ की पूजा करने पर दरिद्रता दूर होगी।
- दुर्गाष्टमी व दुर्गानवमी पर देवालय में लाल आसन पर बैठ देवी लक्ष्मी को लाल फूल व लाल अनार चढ़ाकर लाल चंदन की माला से “ऊं पद्मावती पद्मनेत्रे लक्ष्मीदायिनी सर्वकार्य सिद्धि करि करि ऊं श्रीं पद्मावल्ये नमः” इस मंत्र का जप कम से कम 108 बार करें। घर से धन, रोग, शोक व आर्थिक परेशानियां दूर हो जाएंगी।
- हिन्दू धर्म मान्यताओं में गाय भी लक्ष्मी स्वरूपा है। महाष्टमी व महानवमी पर गाय की पूजा करें, घास के अलावा गोग्रास देना न चूकें। घर के कोने-कोने में संभव हो तो गोमूत्र व गंगाजल छिड़कें। कलह व दरिद्रता दूर होगी।
- ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ने बताया की भगवान विष्णु को इस मंत्र “ऊं नमो भगवते वासुदेवाय” के साथ मस्तक पर केसर चंदन लगाएं। ऐसा करने से धन-लाभ होगा और मनचाही नौकरी मिलेगी।
- माँ लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए जरूरतमंदों को चावल व गेहूं का दान करें।
- शुभ तिथियों पर यह मंत्र “ऊं महालक्ष्म्यै नमः” कमलगट्टे की माला से 5, 11 या 21 बार स्मरण करें।
- महाष्टमी व महानवमी पर दुर्गा पूजा के लिए महाकाली, महालक्ष्मी व महासरस्वती के साथ महागौरी व सिद्धीदात्री को रक्त या लाल चंदन, अक्षत, लाल फूल, लाल चुनरी चढ़ाकर खासतौर पर चने-हलवा, महागौरी को नारियल व माता सिद्धिदात्री को तिल से बने पकवानों का भोग लगाएं।
- माँ लक्ष्मी की पूजा के बाद देवी सिद्धिदात्री मंत्र बोलें और विशेष देवी मंत्र का स्मरण करें।
- महाष्टमी व महानवमी की रात पूरी श्रद्धा से देवी मंदिर में जाकर इन दो मंत्रों के स्मरण से सुख-ऐश्वर्य प्राप्त होगा।
महागौरी ध्यान मंत्र –
श्वेत वृषे समारूढ़ा श्वेताम्बरधरा शुचि:।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोददा॥
मां सिद्धिदात्री मंत्र –
या देवी सर्वभूतेषु मां सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
महालक्ष्मी को इस मंत्र के साथ गाय के दूध व चावल से बनी खीर का भोग लगाएं व यह मंत्र बोलें –
ॐ महालक्ष्मी च विद्महे,
विष्णुपत्नी च धीमहि।
तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात्॥
- शास्त्रों के अनुसार जहां स्त्रियों का सम्मान होता है, वहां लक्ष्मी का वास हो जाता है। अतः कन्या पूजा करें और सुहागिन स्त्रियों को सुहाग सामग्री का दान करें।
- दुर्गाष्टमी व नवमी पर पूरे मन, वचन और कर्म से माँ लक्ष्मी की उपासना करें, इससे माँ लक्ष्मी शुभ फल प्रदान करती है। धर्म शास्त्रों मे भी बताया गया है कि देवी लक्ष्मी पवित्रता, धर्म व सत्य का पालन करने वाले पर अपार कृपा बनाए रखती है।
मेरी प्रार्थना (ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री ) हैं की आज भी जहाँ शहरों की प्रदूषित हवाएँ नहीं पहुंची हैं और हमारा जीवन प्रकृति के नियमों की डोर से बंधा है वहां के युवक युवतियां मानसिक रोगों और अवसादों भरे मन से कोसों दूर हैं।
पंडित दयानन्द शास्त्री,
(ज्योतिष-वास्तु सलाहकार)
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