अगले महीने .. नवंबर को चंद्र ग्रहण लगने जा रहा है। इसका सीधा असर व्यक्ति के मन पर पड़ेगा, क्योंकि चंद्रमा को मन का कारक माना जाता है। इस साल .020 के नवंबर महीने में आखिरी चंद्र ग्रहण लगने वाला है। जो एक उपच्छाया चंद्र ग्रहण होगा। इस वर्ष का यह आखिरी चंद्र ग्रहण वृषभ राशि और रोहिणी नक्षत्र में होगा। चंद्रमा मन का कारक है इस लिए जब ये ग्रसित होता है तो लोगों के मन में नकारात्मक विचार जरूर आते हैं।  ग्रहणकाल के दौरान हर किसी को अपने चंद्रमा को बलवान करके की कोशिश जरूर करनी चाहिए। इससे मन पर किसी भी तरह का दुष्प्रभाव नहीं आ पाएगा। अपने आपको शुद्ध और पवित्र बनाए रखें। ग्रहणकाल के दौरान अपना और छोटे बच्चों का भी विशेष ध्यान रखें। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार ग्रहण काल में भगवान की मूर्ति स्पर्श नहीं करनी चाहिए। इसके अलावा, सूतक काल ग्रहण लगने पहले ही शुरू हो जाता है। इस समय खाने पीने की मनाही होती है। ग्रहण के दौरान बाल और नाखून काटने से बचना चाहिए। इसके अलावा न तो कुछ खाना चाहिए और न ही खाना बनाना चाहिए।

चंद्र ग्रहण तिथि 30 नवंबर 2020
उपच्छाया से पहला स्पर्श 30 नवंबर 2020 की दोपहर . बजकर 04 मिनट पर

परमग्रास चन्द्र ग्रहण 30 नवंबर 2020 की दोपहर 3 बजकर 13 मिनट पर

उपच्छाया से अन्तिम स्पर्श 30 नवंबर 2020 की शाम 5 बजकर 22 मिनट पर

इस बार लगने वाले चंद्रग्रहण में सूतककाल मान्य नहीं होगा।

चंद्र ग्रहण 2020 सूतक काल का समय

सूतक काल प्रारंभ- इस बार लगने वाले चंद्रग्रहण में सूतककाल मान्य नहीं होगा।

क्या है उपच्छाया चंद्र ग्रहण
ग्रहण से पहले चंद्रमा, पृथ्वी की परछाईं में प्रवेश करता है, जिसे उपच्छाया कहते हैं। इसके बाद ही चंद्रमा पृथ्वी की वास्तविक छाया में प्रवेश करता है। जब चंद्रमा पृथ्वी की वास्तविक छाया में प्रवेश करता है, तब वास्तविक ग्रहण होता है। लेकिन कई बार चंद्रमा धरती की वास्तविक छाया में जाए बिना, उसकी उपच्छाया से ही बाहर निकल आता है। जब चंद्रमा पर पृथ्वी की छाया न पड़कर केवल उसकी उपछाया मात्र ही पड़ती है, तब उपच्छाया चंद्र ग्रहण होता है। इसमें चंद्रमा के आकार में कोई अंतर नहीं आता है। इसमें चंद्रमा पर एक धुंधली सी छाया नजर आती है।

क्या कहता है आयुर्वेद

आयुर्वेद की दृष्टि से, ग्रहण से दो घंटे पहले हल्का और आसानी से पचने वाला भोजन खाने की सलाह दी जाती है। ग्रहण के दौरान कुछ भी न खाएं और न ही पीएं।

चंद्र ग्रहण की धार्मिक मान्यता
मान्यता है कि चंद्र ग्रहण को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। ज्योतिष शास्त्र में चंद्रमा को मन का कारक माना जाता है। इसी कारण से जब भी चंद्रमा पर ग्रहण लगता है तो इसका सीधा असर मन पर होता है। चंद्र ग्रहण का असर उन लोगों पर अधिक पड़ता है, जिनकी कुंडली में चंद्र ग्रहण पीड़ित हो या उनकी कुंडली में चंद्र ग्रहण दोष बन रहा है। इतना ही चंद्र ग्रहण के समय चंद्रमा पानी को अपनी ओर आकर्षित करता है। जिससे समुद्र में बड़ी -बड़ी लहरें काफी ऊचांई तक उठने लगती है। चंद्रमा को ग्रहण के समय अत्याधिक पीड़ा से गुजरना पड़ता है। इसी कारण से चंद्र ग्रहण के समय हवन, यज्ञ, और मंत्र जाप आदि किए जाते हैं।
पण्डित दयानन्द शास्त्री जी के अनुसार ज्‍योतिष की मानें तो पुरातलन काल में ग्रहण के समय याचक लोग शोर मचाते, ढोल बजाते और दैत्यों की भर्त्सना में जोर-जोर से अपशब्द कहते सुने जाते थे। धार्मिक लोग उस समय विशेष रूप से जप-तप और दान-पुण्य करते थे।

ग्रहण के दौरान निषेधकार्य

चंद्र या सूर्य ग्रहण काल में अन्न, जल ग्रहण नहीं करना चाहिए। शादी-शुदा लोगों को इस दौरान सहवास से भी बचना चाहिए। गुरुमंत्र के जाप से कष्ट दूर होते हैं। ग्रहण को खुली आंखों से न देखें। हालांकि चंद्र ग्रहण देखने से आंखों पर कोई बुरा असर नहीं होता।

चन्द्र ग्रहण लगने से पहले कर लें ये काम (यह रखें सावधानी)

  • ग्रहण काल के समय भोजन नहीं करना चाहिए। क्योंकि ये शरीर के लिए नुकसानदायक माना गया है। घर में पके हुए भोजन में सूतक काल लगने से पहले ही तुलसी के पत्ते डालकर रख देने चाहिए। इससे भोजन दूषित नहीं होता।
  • चन्द्र ग्रहण किसी भी मास की पूर्णिमा पर घटित होता हैं अतः भगवान सत्यनारायण की कथा करें। जरूरतमंद लोगों को धन और अनाज का दान करें।
  • अपने इष्टदेव के मंत्रों का जाप करें। मंत्र जाप की संख्या कम से कम 108 होनी चाहिए। शिवलिंग पर जल चढ़ाएं और ऊँ नम: शिवाय मंत्र का जाप करें। इससे चंद्र ग्रहण के बुरे प्रभावों का असर नहीं पड़ेगा।
  • ग्रहण के समय तेल मालिश करना, जल ग्रहण करना, मल-मूत्र विसर्जन, बालों में कन्घा करना, मञ्जन-दातुन करना तथा यौन गतिविधियों में लिप्त होना ग्रहण काल में प्रतिबन्धित माना जाता है।
  • ग्रहण से बारह घण्टे तथा चन्द्र ग्रहण से नौ घण्टे पूर्व से लेकर ग्रहण समाप्त होने तक भोजन नहीं करना चाहिए। यद्यपि बालकों, रोगियों तथा वृद्धों के लिये भोजन मात्र एक प्रहर अथार्त तीन घण्टे के लिये ही वर्जित है।
  • ग्रहण से कई धार्मिक पहलूं जुड़े हुए हैं। ग्रहण के दौरान कर्मकांड का भी प्रावधान है। यदि चन्द्र ग्रहण आपके शहर में दिखाई ना दे रहा हो लेकिन दूसरे देशों अथवा शहरों में दर्शनीय हो तो कोई भी ग्रहण से सम्बन्धित कर्मकाण्ड नहीं किया जाता है। लेकिन यदि मौसम की वजह से चन्द्र ग्रहण दर्शनीय न हो तो ऐसी स्थिति में चन्द्र ग्रहण के सूतक का अनुसरण किया जाता है और ग्रहण से सम्बन्धित सभी सावधानियों का पालन किया जाता है।

ग्रहण के दौरान पूजा-पाठ

ग्रहण के समय भगवान (चंद्रमा या सूर्य) को राहु ग्रसित करता है, जिससे भगवान अत्यंत कष्ट में रहते हैं। ऐसे समय में जब कोई भक्त पूजा-पाठ करता है, तो भगवान को इससे बल मिलता है और उनका कष्ट कम होता है। विद्वानों का कहना है कि ग्रहण के दौरान जितनी आराधना की जाए, उससे कई गुणा ज्यादा फल की प्राप्ति होती है। ग्रहण के समय जब आप पूजा-पाठ करते हैं, जो भगवान अत्यंत प्रसन्न होते हैं। वहीं, ग्रहण के बाद दान-दक्षिणा से दोष और पाप का नाश होता है।

ग्रहण के बाद नदी-तालाब में नहाने की परंपरा
पुराने समय से भारतीय संस्कृति में ग्रहण के बाद नहाने की परंपरा है। माना जाता है कि ग्रहण के बाद नहाने से शुद्धिकरण हो जाता है। ग्रहण समाप्ति के बाद किसी तीर्थ स्थान या नदी तालाब सरोवर या घर में ही स्वच्छ पानी से स्नान करने के लिए कहा जाता है।

ग्रहण के दौरान न करें भोजन
ग्रहण के दौरान भोजन को नहीं खाना चाहिए। मान्यता ये भी है कि ग्रहण में लगने वाले सूतक काल में खाना बनाना भी नहीं चाहिए। ग्रहण समाप्ति के बाद ही भोजन करना चाहिए। यदि भोजन ग्रहण के दौरान बना हुआ है तो उसे फेंकना नहीं चाहिए, बल्कि ग्रहण के पश्चात् उसमें तुलसी के पत्ते डालकर उसे शुद्ध करके ग्रहण करना चाहिए।

क्या होता है मांद्य चंद्र ग्रहण

मांद्य चंद्र ग्रहण सामान्य चंद्र से भिन्न होता है। इसमें पृथ्वी, सूर्य और चंद्रमा ये तीनों एक सीधी रेखा में नहीं होते हैं। बल्कि ऐसी स्थिति में होते हैं जहां से पृथ्वी की केवल हल्की सी छाया चंद्रमा पर पड़ती है। इसमें चंद्रमा घटता-बढ़ता नहीं है, बल्कि सामान्य आकार का दिखाई देता है।

नहीं माना जाता वास्तविक चंद्र ग्रहण

पेनुमब्रल को उपच्छाया चंद्र ग्रहण भी कहते हैं। जो उस स्थिति में बनता है जब चंद्रमा पर पृथ्वी की छाया न पड़कर केवल उसकी उपच्छाया मात्र पड़ती है। ऐसा तब होता है जब चंद्रमा धरती की वास्तविक छाया में न आकर उसकी उपच्छाया से ही वापस लौट जाता है। वास्तविक चंद्र ग्रहण की तरह इस उपच्छाया चंद्र ग्रहण में चांद के आकार पर कोई असर नहीं पड़ता और ना ही चंद्रमा का कोई भाग ग्रस्त होता दिखाई देता है। लेकिन चंद्रमा पर एक धुंधली सी छाया नजर आती है। ये ग्रहण विशेष तरह के उपकरणों से ही आसानी से समझा जा सकता है।

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