कदंब का वृक्ष धार्मिक दृष्टि से बड़ा महत्वपूर्ण है। यह भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं से जुड़ा है। चित्रों में श्रीकृष्ण को ज्यादातर इसी वृक्ष के नीचे बांसुरी बजाते दिखाया जाता है। इस छायादार और स्वादिष्ट फल देने वाले वृक्ष के तना, पत्तियों और फलों में अनेक औषधीय गुण समाए हैं। कदंब की तीन प्रमुख प्रजातियां राजकदंब, धूलिकदंब और कदंबिका मानी गई हैं। इसके फूलों से इत्र भी तैयार किया जाता है। कदम्ब या कदम का पेड़ को देव का वृक्ष माना जाता है।

शास्त्रों के अनुसार गोकुल में गायों को चराने के दौरान भगवान कृष्ण कदंब के वृक्ष नीचे बैठकर बांसुरी बजाया करते थे, उनकी बांसुरी की मधुर धुन सुनकर गाय उनके पास आ जाती। सिर्फ गाय ही नहीं, गोपियों को भी उनकी बांसुरी की धुन मोहित कर देती थी। यमुना के किनारे कदंब के काफी वृक्ष हुआ करते थे।

बताया जाता है कि कृष्ण एक बार मटकी से माखन निकालकर खा रहे थे, उनके हाथ से माखन उनके कपड़ों पर गिर रहा था, जिस पर उनके सहपाठी हंसने लगे। तभी कृष्ण ने माखन रखने के लिए जिस पौधे की उत्पत्ति की, उसका नाम कृष्णवट रखा गया। जिसे माखनकटोरी भी कहा जाता है। कृष्ण गले में वैजयंतीमाला पहनते थे। वैजयंतीमाला के वृक्ष पर जो फल लगते हैं, उनकी माला बनाई जाती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार वैजयंतीमाला को पहनना बहुत ही शुभ माना जाता है। कदंब के पौधों में लगने वाले फलों को बंदर, लंगूर बड़े चाव से खाते हैं।

कदम्ब को कदम, बटर फ्लावर-ट्री, लैरन और लीचर्ड पाइन भी कहचे हैं। इसका वानस्पतिक नाम रूबियेसी कदम्बा (Rubiaceae cadamba) है। साइंटिफिक रूप में इसे नॉक्लिया कदम्बा (Neolamarckia cadamba) और Anthocephalus chinensis कहा जाता है। मुख्य रूप से भारत के अंडमान, बंगाल और असम में पाया जाता है। हालांकि, उत्तर प्रदेश में भी इसे खास तौर पर पहचाना जाता है। कदम्ब या कदम का पेड़ बहुत जल्दी बढ़ता है। इसके पेड़ की उंचाई .. से 40 फीट तक हो सकती है। इसके पत्ते महुवा से काफी मिलते हैं। जो आकार में बड़े होते हैं। इसकी पत्तियों की लंबाई .. से 23 सेमी होती हैं जो चिकनी, चमकदार, मोटी और उभरी नसों वाली होती हैं और इनसें गोंद निकलता है। बारिश के मौसम में इसके पेड़ों पर फूल आते हैं जो कुछ ही महीनों में फल बन जाते हैं। इस पेड़ को भारत में धार्मिक तौर पर भी जोड़ा जाता है। इसे देव का वृक्ष भी कहा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि बादलों की गरज से इसके फूल खिलने शुरू होते हैं। इसे हरिद्र और नीप भी कहा जाता है। सामान्य तौर पर पेड़ के चार से पांच साल होने पर इसमें फूल खिलने लगते हैं। इसके फूल काफी सुगंधित होते हैं जिनका इस्तेमाल इत्र बनाने के लिए भी किया जा सकता है। साथ ही, इसकी पत्ती, छाल और फल का इस्तेमाल विभिन्न तरह के स्वास्थ्य स्थितियों के उपचार में एक औषधी के तौर पर किया जा सकता है। कदम्ब के फूल के सुगंध को लेकर कहा जाता है कि यह भगवान् कृष्ण को भी अत्यन्त प्रिय थे।जब भी कदम्ब के पेड़ की बात होती है तो सबसे पहले भगवान श्री कृष्ण की याद आती है क्योकि उनकी अनेक लीलाएं कदम्ब के पेड़ से जुडी है. ब्रजवासियों और वहाँ के कवियों ने इस पेड़ की महिमा के रूप में अनेक कहानियाँ और कवितायें भी लिखी है. कदम्ब के पेड़ के नीचे बैठकर ही श्री कृष्ण बांसुरी बजाते थे जिसे सुनकर सभी मुग्ध हो जाते थे. वैसे आपको बता दें कि कदम्ब के पेड की अनेक प्रजातियाँ है जिनमें से राज कदम्ब, कदम्बिका और धुलिकदम्ब प्रमुख है।

  • कदम्ब आयुर्वेद में अपने औषधीय गुणों के लिए बहुत ही मशहूर है। कदम्ब का स्वास्थ्यवर्द्धक गुण (Kadamba tree uses) बहुत सारे रोगों के उपचार के लिए उपयोग किया जाता है।
  • कदम्ब की एक विशेष बात ये है कि इसके पत्ते बहुत बड़े होते है और इसमें से गोंद निकलता है। इसके फल नींबू की तरह होते हैं। कदम के फूलों (Kadamba Pushpam) का अपना अलग ही महत्व है। प्राचीन वेदों और रचनाओं में इन सुगन्धित फूलों (kadamba flower) का उल्लेख मिलता है।
  • कदम्ब की एक विशेष बात ये है कि इसके पत्ते बहुत बड़े होते है और इसमें से गोंद निकलता है। इसके फल नींबू की तरह होते हैं।

आकर्षित करते हैं फल

कदंब के फूल पत्तियों के ऊपर लगते हैं और खुशबू बिखेरते हैं जबकि इसके फल गोल और पकने पर पीले रंग के होते हैं जो दिखने में सुंदर तो लगते ही हैं साथ ही स्वादिष्ट भी होते हैं। खट्टे स्वाद वाले इसके फल बच्चों की पाचन शक्ति को ठीक बनाए रखते हैं। ग्रामीण फलों का उपयोग खटाई के लिए करते हैं। फलों का रस स्तनपान कराने वाली माताओं के दूध में वृद्धि करता है

पत्तियों का उपयोग घाव भरने में

इसकी पत्तियों का रस अल्सर के उपचार में उपयोगी होता है तथा घाव भी जल्द ठीक करता है। सूखी लकड़ी ज्वर दूर करने में काम आती है जबकि पत्तियां मुख रोगों के उपचार में काम आती हैं। कदंब की पत्तियों के रस से कुल्ला करने पर कई मुख रोग दूर होते हैं। चोट घाव और सूजन में इसकी पत्तियों को गर्म कर बांधने से आराम मिलता है। सांप के काटने पर पत्तियों से उपचार किया जाता है।आयुर्वेद में कदम्ब की कई जातियों यानि राजकदम्ब, धारा कदम्ब, धूलिकदम्ब तथा भूमिकदम्ब आदि उल्लेख प्राप्त होता है। चरक, सुश्रुत आदि प्राचीन ग्रन्थों में कई स्थानों पर कदम्ब का वर्णन मिलता है।

इसके अतिरिक्त इसकी एक और प्रजाति पाई जाती है जिसे भूमि कदम्ब (Mitragyna parvifolia (Roxb.) Korth.) कहते हैं।

Anthocephalus cadamba (Roxb.) Miq. (कदम्ब)-
Mitragyna parvifolia (Roxb.) Korth. (भूमि कदम्ब)- भूमिकदम्ब का 10-20 मी ऊँचा पेड़ भारत के शुष्क वनों में पाया जाता है। इसके फूल (Kadamba Pushpam) मुण्डक कदम्ब के पुष्पमुण्डकों के समान परन्तु आकार में छोटे सफेद रंगों के होते हैं। जो सूखने पर भूरे-काले रंग के हो जाते हैं तथा पूरे साल वृक्ष पर लगे रहते हैं।
कदम्ब कड़वा होता है। यह तीन दोषों को हरने वाला, दर्दनिवारक, स्पर्म काउन्ट बढ़ाने के साथ ब्रेस्ट का साइज बढ़ाने में भी मदद करता है।

कदम्ब का फल खांसी, जलन, योनिरोग (वैजाइना संबंधित रोग), मूत्रकृच्छ्र (मूत्र संबंधी रोग), रक्तपित्त (नाक-कान से खून निकलना), अतिसार (दस्त), प्रमेह (डायबिटीज), मेदोरोग (मोटापा) तथा कृमिरोग नाशक होते हैं। कदम्ब के पत्ते कड़वे, छोटे, भूख बढ़ाने में सहायक तथा अतिसार या दस्त में फायदेमंद होते हैं।

छाल और जड़ भी उपयोगी

    • इसकी जड़ मूत्र रोगों में और छाल नेत्र रोगों में काम आती है। छाल को घिसकर लगाने से कंजक्टीवाइटिस में आराम मिलता है।

मूत्र संबंधी बीमारी में फायदेमंद कदम्ब

    • मूत्र संबंधी बीमारी में मूत्र करते वक्त दर्द होना, जलन होना या रुक-रुक कर पेशाब आने जैसी समस्या होती है तो कदम्ब का सेवन बहुत काम आता है। विदारीकंद, कदंब छाल तथा ताड़ फल के पेस्ट एवं काढ़े में पकाए हुए दूध एवं घी को 5-10 मिली की मात्रा में सेवन करने से मूत्रकृच्छ्र (दर्द सहित मूत्र त्याग) में लाभ होता है।

कैंसर के उपचार में मदद करे

    • कदम्ब शरीर में एंटी-ट्यूमर गतिविधियों का उत्पादन कर सकता है। इसके सेवन से प्रोस्टेट कैंसर, पेट के कैंसर, ब्रेस्ट कैंसर और एसोफैगल कैंसर के लक्षणों को नियंत्रित किया जा सकता है। कदंब का सेवन करने से शरीर में फैल रही कैंसर कोशिकाओं की वृद्धि को सीमित किया जा सकता है। इसमें कई बायोएक्टिव यौगिक होते हैं जो कीमोथेरेप्यूटिक एजेंटों के समान एक क्रिया का उत्पादन कर सकते हैं।

जहर का असर मिटायें 

    • माना जाता है कि इस पेड़ में कुछ तत्व होते है जो जहर को तुरंत दूर कर देते है और इसका यही गुण इसे जहरशामक की उपाधि दिलाता है. इसलिए जब भी आपको किसी दवाई से एलर्जी हो जाएँ या आपको कोई जहरीला कीड़ा काट लें तो आप तुरंत कदम्ब के पत्तों, फल और इसकी सुखी छाल को बराबर मात्रा में लें उसे पानी में उबाल लें. इस तरह बनायें काढ़े को आप दिन में दो बार लें. जहर का असर आश्चर्यजनक तरीके से कम होने लगेगा।

उच्च कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड्स

    • कदम्ब का उपयोग कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड के लेवल को कम करने के लिए भी किया जा सकता है।

फंगल इंफेक्शन दूर करने में 

    • कदम्ब में एंटी-फंगल गुण पाए जाते हैं। इसके इस्तेमाल से स्किन और कान के इंफेक्शन का उपचार किया जा सकता है। इसकी पत्ती और छाल के अर्क के एंटी-फंगल गुण इसमें काफी लाभकारी हो सकते हैं। साथ ही, यह कैंडिडा एल्बिकंस और एस्परगिलस फ्यूमिगेटस जैसे इंफेक्शन के उपचार में भी मदद कर सकता है।

एंटी-बैक्टीरियल ट्रीटमेंट के लिए

    • कदम्ब का उपयोग बैक्टीरिया के कारण होने वाले कई तरह के इंफेक्शन के इलाज के लिए भी किया जा सकता है। जिससे पाचन तंत्र, तंत्रिका तंत्र, हड्डियों का उपचार किया जा सकता है। इसके फल के अर्क में स्टैफिलोकोकस ऑरियस (Staphylococcus), स्यूडोमोनास एरुगिनोसा (Pseudomonas aeruginosa), एस्चेरिचिया कोली (Escherichia coli), माइक्रोकॉकस ल्यूटस, बेसिलस सबटिलिस, स्यूडोमोनस एरुगिनोसा, क्लियोसा, कैलोसा जैसे सूक्ष्म जीवों को खत्म करने के गुण होते हैं।

हड्डियों से जुड़ी बीमारियों के उपचार में

    • यह गठिया, मांसपेशियों में अकड़न जैसे स्वास्थ्य स्थितियों के उपचार में भी लाभकारी साबित हो सकता है। प्राकृतिक तौर पर इसमें एनाल्जेसिक और एंटी- इंफ्लामेंट्री गुण पाए जाते हैं। साथ ही, इसमें क्वेरसेटिन, डेडेजिन, सिलीमारिन एपिगेनिन और जेनिस्टिन जैसे फ्लेवोनॉयड्स के भी गुण होते हैं, जो हड्डियों से जुड़ी समस्याओं के कारण शरीर में होने वाले दर्द को दूर कर सकते हैं।

खाँसी से दिलाये राहत कदम्ब

    • अगर खाँसी से राहत नहीं मिल रहा है तो कदम्ब का इस तरह से सेवन बहुत लाभप्रद होता है। 5-10 मिली कदम्ब के तने के छाल का काढ़ा पीने से कास या खाँसी में लाभ होता है।

पूयदंत में फायदेमंद कदम्ब

    • कदम्ब के पत्तों का काढ़ा बनाकर गरारा करने से मुँह की बदबू तथा पूयदंत (पाइरिया)आदि बीमारियों में फायदा पहुँचता है।

मुँह के छालों से दिलाये राहत कदम्ब 

    • अक्सर शरीर में पोषण की कमी या असंतुलित खान-पान के कारण मुँह में छाले पड़ जाते हैं। कदम्ब के पत्तों का काढ़ा बनाकर गरारा करने से मुंह के छालों से राहत मिलती है।

टाइप-2 डायबिटीज का उपचार

    • इसका इस्तेमाल टाइप-2 डायबिटीज के उपचार के लिए किया जा सकता है। भारत सरकार के कंट्रोलर जनरल ऑफ पेटेंट्स द्वारा इस दवा का पेटेंट भी दे दिया गया है और विश्व व्यापार संगठन ने इसे अंतर्राष्ट्रीय वर्गीकरण नंबर भी प्रदान किया है। विशेषज्ञों के मुताबिक कदंब या कदम्ब के पेड़ में हाइड्रोसाइक्लोन (Hydrocyclone) और कैडेमबाइन (cadambine) नाम के दो प्रकार के क्विनोलाइन अल्कलॉइड्स (Quinoline alkaloids) की मात्रा पाई जाती है। हाइड्रोसाइक्लोन शरीर में बनने वाली इंसुलिन के मात्रा को नियंत्रित कर सकता है और कैडेमबाइन इंसुलिन का सेवन करने वाली कोशिकाओं को इसके कम सेवन के लिए प्रेरित कर सकती हैं। हालांकि, अभी भी इस दिशा में शोध चल रहे हैं। इसलिए व्यापक रूप से इसका इस्तेमाल टाइप-2 डायबिटीज के उपचार के लिए करने में समय लग सकता है।

स्तन में दूध बढायें 

    • कभी कभी स्त्री के प्रसव के बाद उनके स्तन में दूध की मात्रा कम रह जाती है, ऐसी महिलाओं को स्तन में दूध की मात्रा को बढाने के लिए कदम के सूखे हुए फलों का पाउडर और शतावर के पाउडर को बराबर मात्रा में मिलाकर प्रयोग में लाना चाहियें. इसको लेने के लिए स्त्रियाँ गुनगुना पानी इस्तेमाल करें.

सुजन उतारे 

    • सुजन चाहे कैसी भी हो, उसको उतारें के लिए आप इस पेड के पत्तों, छाल और नमक को पानी में उबालकर उसे किसी रबड़ की बोतल में डालें और उससे सुजन वाली जगह पर सिकाई करें. जल्द ही सुजन में आराम मिलता है. आपको बता दें कि कदम्ब के फलों को छाया में सुखाकर बनायें गए पाउडर को खाने से शरीर की दुर्बलता दूर होती है और शारीरिक ताकत में निरंतर इजाफा होता है।
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पूरे मधुबन में कदम्ब का वृक्ष कृष्ण को बहुत प्रिय था। यह अकारण न था। इसकी कई विशिष्टताएं हैं। यह पेड़ बहुत जल्दी बढ़ता है। वर्षा ऋतु में इस पर फूल आते हैं। इसके डंठल पर पीले गुच्छे के रूप में बहुत छोटे और सुगंधमय फूल होते हैं। कहा जाता है कि बादलों की गर्जना से इसके फूल अचानक खिल उठते हैं। इसके फूलों में से इत्र निकाला जाता है।

इसके खट्टे-मीठे फलों का प्रयोग अचार और चटनी के लिए किया जाता है। इनसे औषधि भी बनती है। कदम्ब के पेड़ से एक प्रकार का द्रव निकलता है, जिसे ‘कादम्बरी’ कहा जाता है। मिथकों में बलराम, शेषनाग, स्कंद के प्रिय मादक पेय के रूप में इसका उल्लेख है। कृष्ण का प्रिय वृक्ष होने के नाते जन्माष्टमी को झूला सजाने में इसके फूल भी लगाए जाते हैं।
व्युत्पत्ति की दृष्टि से ‘क’ का अर्थ प्रजापति होता है। सृष्टि का सृजन करने के लिए वे ‘उपस्थ इंद्रिय’ (जननेंद्रिय) में निवास करते हैं। परंतु इसी इंद्रिय का दमन भी कर सकते हैं। अत: ‘कदम्ब’ जितेंद्रिय और तत्त्वज्ञानी का भी प्रतीक है। इस प्रकार कदम्ब और कृष्ण का संबंध सामान्य नहीं। ‘कदम्ब’ की छाया में खड़े कृष्ण इंद्रियजित हैं, सृष्टि के सर्जक, जगत् के पालक हैं।

मानव अवतार रूप में राधा और गोपियों के साथ उनका संबंध काम से परे है। वंशी कृष्ण के व्यक्तित्व का अभिन्न अंग है। ‘मुर’ नामक दैत्य का संहार करने वाले ‘मुरारी’ के अधरों पर वंशी विभूषित रहती है। बांसुरी की तान अमृत बरसाती है। जीव उसी के पोषण से ईश्वर की ओर उन्मुख हो जाता है। फिर कोई बाधा उसे रोक नहीं पाती। कृष्ण का वेणुवादन सृष्टि के मूल तत्त्व ‘नाद’ का भी प्रतीक है। इसके सात छिद्रों में से निकलता नाद जीव को ईश्वर की ओर ले जाता है।

यह सात सोपान हैं, जो आरोहण और अवरोहण से अंतत: परमपद की प्राप्ति करवाते हैं। इसके अतिरिक्त बांस की बनी बांसुरी मनुष्य के मन का भी प्रतीक है। अंदर से खोखली वंशी में से जैसे मधुर स्वर निकलता है, इसी तरह जब हमारा मन विकारों से रिक्त हो जाता है तो उसमें से ईश्वरीय नाद सुनाई पड़ता है।

‘वंशी’ गोपियों की ईर्ष्या का पात्र बनी। गिरिवरधारी कृष्ण दास की भांति उसकी सेवा में गर्दन एक ओर झुका कर, एक पैर पर खड़े-खड़े टेढ़े हुए जाते हैं। मुरली छिपा ली जाती है। पर ‘रास’ के समय यही वंशी ध्वनि सुन कर वे घर-द्वार छोड़ अस्त-व्यस्त वेशभूषा में बेसुध-सी भागी चली आती हैं। ऐसे अचूक प्रभाव वाली वेणु वास्तव में भगवान के अनुग्रह का ही विस्तार है।

वनविहारी नंद नंदन गले में वैजयन्ती माला पहनते हैं। यह माला पंचरंगी है। पांच इन्द्रियों पर विजय प्राप्त करने का चिह्न। भक्तों ने ‘कृष्ण’ के व्यक्तित्व में कर्षक के तत्त्व का गुणगान किया है। स्वामी अखंडानंद सरस्वती के अनुसार ‘कृ’ में अंकुश है, जो एक बार हृदय में गड़ गया तो भक्त का सब कुछ खींच कर अपना बना लेता है। इसीलिए पंढरीनाथ ने पथिकों को सावधान किया था कि भीमा नदी के किनारे मत जाना, वहां तमाल वृक्ष-सा काला नौजवान है। इतना धूर्त कि बिना छुए ही हृदय की पूंजी छीन लेता है।

शरद पूर्णिमा की रात्रि में कृष्ण प्रत्येक गोपी के पास विद्यमान होते हैं। मंडलाकार नृत्य का कोई आदि-अंत नहीं। नित्य, शाश्वत आनंद की स्थिति को पहुंचाने वाला यह महारास- वेदों में वर्णित नक्षत्ररास से भिन्न नहीं है। सूर्य को केंद्र में रख कर ज्योति पिंड नियमित गति से अपनी-अपनी धुरी पर परिक्रमा करते हैं। ब्रजभूमि के निधि वन में हुआ रास आकाशीय रास की प्रतीक है।

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