इस विषय पर पिछले लेखों में हमने कालसर्प दोष /कालसर्प योग के बारे में विस्तृत रूप से बताया था नाग दोष को भी कई लोग कालसर्प दोष ही मानते है लेकिन ये कालसर्प योग नहीं नाग दोष है।

समझिए कालसर्प और नागदोष में अंतर

     कई लोगों में भ्रम रहता है कि कालसर्प और नागदोष एक समान हैं किंतु यह सत्‍य नहीं है। कालसर्प दोष वंशानुगत होता है जबकि नाग दोष का प्रभाव जातक की मृत्‍यु के बाद भी प्रभावकारी रहता है। इसके अलावा अन्‍य सात ग्रहों के राहु या केतु के साथ युति होने पर कालसर्प दोष बनता है वहीं दूसरी ओर पहले, दूसरे,पांचवें, सातवें और आठवें घर में राहु-केतु के प्रवेश पर नाग दोष जन्‍म लेता है।

     ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री जी ने बताया कि जैसे की किसी कुंडली में राहु अथवा केतु कुंडली के पहले घर में, चन्द्रमा के साथ अथवा शुक्र के साथ स्थित हों तो ऐसी कुंडली में नाग दोष बन जाता है जो कुंडली में इस दोष के बल तथा स्थिति के आधार पर जातक को विभिन्न प्रकार के कष्ट तथा अशुभ फल दे सकता है।  जैसे कि राहु अथवा केतु की चन्द्रमा के साथ स्थिति के कारण बनने वाला नाग दोष जातक को मानसिक परेशानियां, व्यवसायिक समस्याएं आदि जैसे अशुभ फल दे सकता है, राहु अथवा केतु के किसी कुंडली में लग्न में स्थित होने से बनने वाला नाग दोष जातक को स्वास्थ्य, व्यवसाय तथा वैवाहिक जीवन से संबंधित समस्याएं प्रदान कर सकता है तथा किसी कुंडली में राहु अथवा केतु की शुक्र के साथ स्थिति के कारण बनने वाला नाग दोष जातक के वैवाहिक जीवन में विभिन्न प्रकार की समस्याएं पैदा कर सकता है जिसके चलते इस प्रकार के नाग दोष से पीड़ित जातक का एक अथवा एक से भी अधिक विवाह टूट भी सकते हैं।

समझें नागदोष कि की परिभाषा को

नाग दोष से पीड़ित जातक ने अपने किसी स्वार्थ के चलते नागों अथवा सांपों को सताया होता है अथवा उन्हें मारा होता है जिसके कारण उन नागों के  श्राप के कारण जातक की कुंडली में नाग दोष बनता है। नाग दोष की एक अन्य प्रचलित परिभाषा के अनुसार यदि किसी कुंडली में राहु अथवा केतु कुंडली के ., ., 5 , 7 अथवा 8 वें घर में स्थित हों तो ऐसी कुंडली में नाग दोष बनता है जिसके कारण जातक को विभिन्न प्रकार की समस्याओं तथा विपत्तियों का सामना करना पड़ सकता है जो जातक की कुंडली में राहु तथा केतु की स्थिति पर निर्भर करतीं हैं।

     ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री जी ने बताया कि नाग दोष की प्रचलित परिभाषाओं के अनुसार यदि इस दोष के निर्माण का अध्ययन किया जाए तो इस परिणाम पर पहुंचा जा सकता है कि लगभग प्रत्येक दूसरी कुंडली में नाग दोष बनता है। इसलिए प्रत्येक दूसरा व्यक्ति इस दोष के दुष्प्रभावों से पीड़ित होना चाहिए तथा प्रत्येक दूसरे व्यक्ति ने अपने पिछले जन्म में नागों को मारा होगा जैसा कि इस दोष के निर्माण के साथ जोड़ा जाता है। वर्तमान में दुनिया की कुल जनसंख्या लगभग 7 अरब से ज्यादा है जिसका अभिप्राय यह है कि इनमें से लगभग साढ़े तीन अरब लोगों ने अपने पिछले जन्म में सांपों को मारा होगा जिसका अभिप्राय यह है कि संसार की वर्तमान जनसंख्या ही लगभग चार अरब सांपों को मार चुकी है।

     इन आंकड़ों पर विश्वास करना कठिन लगता है तथा यह मान लेना भी व्यवहारिक दृष्टि से उचित तथा तर्कसंगत नहीं है कि संसार के प्रत्येक दूसरे व्यक्ति की कुंडली में नाग दोष बनता है क्योंकि वैदिक ज्योतिष में प्रचलित कोई भी योग या दोष इतना सहज सुलभ नहीं होता कि संसार के हर दूसरे व्यक्ति की कुंडली में इसका निर्माण हो जाए। इसलिए यह कहा जा सकता है कि किसी कुंडली में नाग दोष का निर्माण अपनी प्रचलित परिभाषाओं के अनुसार नहीं होता तथा इस दोष के निर्माण के लिए अन्य कुछ नियम भी अवश्य ही होने चाहिएं। किसी भी अन्य दोष की भांति ही नाग दोष के निर्माण के लिए भी कुंडली में राहु तथा केतु का अशुभ होना आवश्यक है

      पण्डित दयानन्द शास्त्री जी के अनुसार राहु और केतु क शुभ होने की स्थिति में कुंडली में नाग दोष नहीं बनेगा क्योंकि शुभ ग्रह किसी भी कुंडली में कभी भी दोष नहीं बनाते। राहु और केतु के अशुभ होने के पश्चात इनका कुंडली में सक्रिय होना भी आवश्यक है क्योंकि बिना सक्रिय हुए कोई अशुभ ग्रह भी कुंडली में दोष नहीं बनाता तथा किसी कुंडली के कुछ विशेष घरों में राहु अथवा केतु की स्थिति ही नाग दोष बनाने के लिए पर्याप्त नहीं है। किसी कुंडली में नाग दोष के निर्माण की पुष्टि हो जाने पर कुंडली में इस दोष का बल, इस दोष के अशुभ प्रभाव में आने वाले जातक के जीवन के इस दोष से प्रभावित होने वाले क्षेत्रों आदि का भी भली भांति निरीक्षण कर लेना चाहिए। कुंडली में बनने वाले नाग दोष के दुष्प्रभावों को वैदिक ज्योतिष के उपायों जैसे कि मंत्र, यंत्र, रत्न तथा कुछ अन्य उपायों के माध्यम से बहुत कम किया जा सकता है।

नागदोष के प्रभाव को समझें

     नाग दोष से प्रभावित जातकों के वैवाहिक जीवन में अड़चनें आती हैं, विवाह में देरी एवं कुछ मामलों में इनका तलाक भी संभव है। महिलाओं के लिए यह दोष किसी श्राप से कम नहीं होता। इस दोष के प्रभाव में महिलाओं के गर्भपात की अत्‍यधिक संभावना रहती है। इनके जीवनसाथी का स्‍वास्‍थ्‍य बिगड़ा रहता है। इन जातकों को स्‍वप्‍न में सांप दिखाई देते हैं एवं इनका मानसिक विकास भी धीमी गति से होता है। इस दोष से ग्रस्‍त जातक की संतान ही उसकी विरोधी बन जाती है। यह व्‍यक्‍ति बुरे कर्मों में लिप्‍त रहता है।

     नाग दोष होने पर जातक को कोई पुराना एवं यौन संचारित रोग होता है। इन्‍हें अपने प्रयासों में सफलता प्राप्‍त नहीं होती। नाग दोष का अत्‍यंत भयंकर प्रभाव है कि इसके कारण महिलाओं को संतान उत्‍पत्ति में अत्‍यधिक परेशानी आती है। व्‍यक्‍ति की गंभीर दुर्घटना संभव है। इन्‍हें जल्‍दी-जल्‍दी अस्‍पताल के चक्‍कर लगाने पड़ते हैं एवं इनकी आकस्‍मिक मृत्‍यु भी संभव है। इन जातकों को उच्‍च रक्‍तचाप और त्‍वचा रोग की समस्‍या रहती है। नाग दोष का अत्‍यधिक नुकसान महिलाओं को होता है। इस दोष के प्रभाव में महिलाओं को संतान प्राप्‍ति में परेशानी आती है। सेहत ज्‍यादातर खराब रहती है।

क्या करें उपाय जिनसे हो लाभ 

  • नाग दोष के प्रभाव को कम करने के लिए षष्‍टी के दिन सर्प परिहार पूजा करें एवं इसके समापन के पश्‍चात् स्‍नान अवश्‍य करें।
  • नियमित रूप से भगवान शिव की आराधना करें और शिवलिंग पर दूध और जल चढ़ाएं।
  • रोजाना 1.8 बार ‘ऊं नम: शिवाय:’ और ‘दोष निवारण मंत्र’ का जाप करें।
  • माथे पर चंदन का तिलक लगाएं।
  • मंगलवार और शनिवार के दिन शेषनाग की पूजा करें। यह पूजन कम से कम 18 सप्‍ताह तक अवश्‍य करें।
  • घर पर मोर पंख रखें।
  • नागपंचमी के दिन महाभारत पाठ करें और किसी ज्‍योतिष की सलाह से पंच धातु की अंगूठी धारण करें।
  • गोमेद रत्‍न की चांदी की अंगूठी मध्‍यमा अंगुली में धारण करें।
  • भगवान नरसिंह हेतु पूजा का आयोजन करें।
  • हर शनिवार जीवनसाथी के साथ किसी धार्मिक स्‍थान पर जाकर प्रार्थना करें।
  • 42 बुधवार तक किसी गरीब एवं जरूरतमंद व्‍यक्‍ति को दाल दान में दें।
  • श्रावण मास में नाग मंत्र “ॐ नागराजाय विद्महे कद्रूवंशाय धीमहि, तन्नो नाग: प्रचोदयात्” का सवालाख जाप और दशांश हवन कराना उत्तम माना गया है।
  • भुजंग स्तोत्र का प्रतिदिन पाठ करें।
  • प्रतिदिन निम्न मंत्रो से नाग स्तुति करें।

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अनंतं वासुकि शेष पद्मनाभं च कम्बलम्।

शड्खपाल धार्तराष्ट्र तक्षकं कालियं तथा।।

एतानि नव नामानि नागानां च महात्मनाम्।

सायंकाले पठेन्नित्यं प्रातः काले विशेषतः।।

तस्मे विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयीं भवेत्।

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समझें वैदिक ज्योतिष में कालसर्प योग से प्राप्त परिणाम या फल को

     वैदिक ज्योतिष की परिभाषा में कालसर्प दो शब्दों से मिलकर बना है-काल और सर्प। जब सूर्यादि सातों ग्रह राहु(सर्प मुख) और केतु(सर्प की पूंछ) के मध्य आ जाते हैं तो कालसर्प योग बन जाता है। जिसकी कुण्‍डली में यह योग होता है उसके जीवन में काफी उतार चढ़ाव और संघर्ष आता है। इस योग को अशुभ माना गया है।

     कुण्‍डली में कालसर्प योग के अतिरिक्‍त सकारात्‍मक ग्रह अधिक हों तो व्‍यक्ति उच्‍चपदाधिकारी भी बनता है, परन्‍तु एक दिन उसे संघर्ष अवश्‍य करना पड़ता है। यदि नकारात्‍मक ग्रह अधिक बली हों तो जातक को बहुत अधिक संघर्ष करना पड़ता है। यदि आपकी कुण्‍डली में कालसर्प दोष है तो घबराएं नहीं, इसके उपाय आसानी से किये जा सकते हैं और इससे होने वाले कष्टों से निजात पाया जा सकता है।

समझें कालसर्प दोष के लक्षण या प्रभाव को

  • रोजगार में दिक्कत या फिर रोजगार हो तो बरकत न होना। बाल्यकाल में किसी भी प्रकार की बाधा का उत्पन्न होना। अर्थात घटना-दुर्घटना, चोट लगना, बीमारी आदि का होना। विद्या अध्ययन में रुकावट होना या पढ़ाई बीच में ही छूट जाना। पढ़ाई में मन नहीं लगना या फिर ऐसी कोई आर्थिक अथवा शारीरिक बाधा जिससे अध्ययन में व्यवधान उत्पन्न हो जाए।
  • घर-परिवार मांगलिक कार्यों के दौरान बाधा उत्पन्न होना।आए दिन घटना-दुर्घटनाएं होते रहना।घर में कोई सदस्य यदि लंबे समय से बीमार हो और वह स्वस्थ नहीं हो पा रहा हो साथ ही बीमारी का कारण पता नहीं चल रहा है। यदि परिवार में किसी का गर्भपात या अकाल मृत्यु हुई है तो यह भी कालसर्प दोष का लक्षण है।
  • एक अन्य लक्षण कालसर्प दोष है संतान का न होना और यदि संतान हो भी जाए तो उसकी प्रगति में बाधा उत्पन्न होती है। घर के किसी सदस्य पर प्रेतबाधा का प्रकोप रहना या पूरे दिन दिमाग में चिड़चिड़ापन रहना।
  • इस दोष के चलते घर की महिलाओं को कुछ न कुछ समस्याएं उत्पन्न होती रहती हैं। विवाह में विलंब भी कालसर्प दोष का ही एक लक्षण है। यदि ऐसी स्थिति दिखाई दे तो निश्चित ही किसी विद्वान ज्योतिषी से संपर्क करना चाहिए। इसके साथ ही इस दोष के चलते वैवाहिक जीवन में तनाव और विवाह के बाद तलाक की स्थिति भी पैदा हो जाती है। रोज घर में कलह का होना। पारिवारिक एकता खत्म हो जाना।परिजन तथा सहयोगी से धोखा खाना, खासकर ऐसे व्यक्ति जिनका आपने कभी भला किया हो।

ग्रह स्थितियों अनुसार  करें कालसर्प दोष की पहचान 

  • जब लग्न मेष, वृष या कर्क हो तथा राहु की स्थिति १, ३, ४, ५, ६, ७, ८, ११ या १२ वें भाव में हो। तब उस स्थिति में जातक स्त्री, पुत्र, धन-धान्य व अच्छे स्वास्थ्य का सुख प्राप्त करता है।जब राहु छठे भाव में अवस्थित हो तथा बृहस्पति केंद्र में हो तब जातक का जीवन खुशहाल व्यतीत होता है।
  • जब राहु व चंद्रमा की युति केंद्र (१,४,७,१० वें भाव) या त्रिकोण में हो तब जातक के जीवन में सुख-समृद्धि की सारी सुविधाएं उपलब्ध हो जाती हैं। जब राहु के साथ बृहस्पति की युति हो तब जातक को तरह-तरह के अनिष्टों का सामना करना पड़ता है। जब राहु की मंगल से युति यानी अंगारक योग हो तब संबंधित जातक को भारी कष्ट का सामना करना पड़ता है। जब राहु के साथ सूर्य या चंद्रमा की युति हो तब भी जातक पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, शारीरिक व आर्थिक परेशानियाँ बढ़ती हैं।
  • पंडित दयानन्द शास्त्री जी ने बताया की जब कालसर्प योग में राहु के साथ शुक्र की युति हो तो जातक को संतान संबंधी ग्रह बाधा होती है।जब लग्न व लग्नेश पीड़ित हो, तब भी जातक शारीरिक व मानसिक रूप से परेशान रहता है।चंद्रमा से द्वितीय व द्वादश भाव में कोई ग्रह न हो। यानी केंद्रुम योग हो और चंद्रमा या लग्न से केंद्र में कोई ग्रह न हो तो जातक को मुख्य रूप से आर्थिक परेशानी होती है।जब राहु के साथ चंद्रमा लग्न में हो और जातक को बात-बात में भ्रम की बीमारी सताती रहती हो, या उसे हमेशा लगता है कि कोई उसे नुकसान पहुँचा सकता है या वह व्यक्ति मानसिक तौर पर पीड़ित रहता है।जब अष्टम भाव में राहु पर मंगल, शनि या सूर्य की दृष्टि हो तब जातक के विवाह में विघ्न, या देरी होती है।
  • यदि जन्म कुंडली में शनि चतुर्थ भाव में और राहु बारहवें भाव में स्थित हो तो संबंधित जातक बहुत बड़ा धूर्त व कपटी होता है। इसकी वजह से उसे बहुत बड़ी विपत्ति में भी फंसना पड़ जाता है। जब राहु के साथ शनि की युति यानी नंद योग हो तब भी जातक के स्वास्थ्य व संतान पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, उसकी कारोबारी परेशानियाँ बढ़ती हैं
  • जब राहु की बुध से युति अर्थात जड़त्व योग हो तब भी जातक पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, उसकी आर्थिक व सामाजिक परेशानियाँ बढ़ती हैं।जब लग्न में राहु-चंद्र हों तथा पंचम, नवम या द्वादश भाव में मंगल या शनि अवस्थित हों तब जातक की दिमागी हालत ठीक नहीं रहती। उसे प्रेत-पिशाच बाधा से भी पीड़ित होना पड़ सकता है।
  • जब दशम भाव का नवांशेश मंगल/राहु या शनि से युति करे तब संबंधित जातक को हमेशा अग्नि से भय रहता है और अग्नि से सावधान भी रहना चाहिए।जब दशम भाव का नवांश स्वामी राहु या केतु से युक्त हो तब संबंधित जातक मरणांतक कष्ट पाने की प्रबल आशंका बनी रहती है।जब राहु व मंगल के बीच षडाष्टक संबंध हो तब संबंधित जातक को बहुत कष्ट होता है। वैसी स्थिति में तो कष्ट और भी बढ़ जाते हैं जब राहु मंगल से दृष्ट हो।
  • पंडित दयानन्द शास्त्री जी के अनुसार जब लग्न में मेष, वृश्चिक, कर्क या धनु राशि हो और उसमें बृहस्पति व मंगल स्थित हों, राहु की स्थिति पंचम भाव में हो तथा वह मंगल या बुध से युक्त या दृष्ट हो, अथवा राहु पंचम भाव में स्थित हो तो संबंधित जातक की संतान पर कभी न कभी भारी मुसीबत आती ही है, अथवा जातक किसी बड़े संकट या आपराधिक मामले में फंस जाता है।जब दशम भाव में मंगल बली हो तथा किसी अशुभ भाव से युक्त या दृष्ट न हो। तब संबंधित जातक पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता।
  • जब मंगल की युति चंद्रमा से केंद्र में अपनी राशि या उच्च राशि में हो, अथवा अशुभ ग्रहों से युक्त या दृष्ट न हों। तब कालसर्प योग की सारी परेशानियां कम हो जाती हैं।जब शुक्र दूसरे या १२ वें भाव में अवस्थित हो तब जातक को अनुकूल फल प्राप्त होते हैं।
  • जब बुधादित्य योग हो और बुध अस्त न हो तब जातक को अनुकूल फल प्राप्त होते हैं।जब लग्न व लग्नेश सूर्य व चंद्र कुंडली में बलवान हों साथ ही किसी शुभ भाव में अवस्थित हों और शुभ ग्रहों द्वारा देखे जा रहे हों। तब कालसर्प योग की प्रतिकूलता कम हो जाती है।जब राहु अदृश्य भावों में स्थित हो तथा दूसरे ग्रह दृश्य भावों में स्थित हों तब संबंधित जातक का कालसर्प योग समृध्दिदायक होता है।
  • जब राहु छठे भाव में तथा बृहस्पति केंद्र या दशम भाव में अवस्थित हो तब जातक के जीवन में धन-धान्य की जरा भी कमी महसूस नहीं होती।जब शुक्र से मालव्य योग बनता हो, यानी शुक्र अपनी राशि में या उच्च राशि में केंद्र में अवस्थित हो और किसी अशुभ ग्रह से युक्त अथवा दृष्ट न हो रहा हो। तब कालसर्प योग का विपरत असर काफी कम हो जाता है।जब शनि अपनी राशि या अपनी उच्च राशि में केंद्र में अवस्थित हो तथा किसी अशुभ ग्रह से युक्त या दृष्ट न हों। तब काल सर्प योग का असर काफी कम हो जाता है।

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