नाग पंचमी के दिन नाग देवता की आराधना करने से भक्तों को उनका आशीर्वाद मिलता है। इस बार नाग पंचमी .5 जुलाई को पड़ रही है। सावन में मनाई जाने वाली नाग पंचमी सावन के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाई जाती है। इस दिन नागों की पूजा की जाती है। कहते हैं पंचमी के दिन नाग देवता की पूजा करने से विशेष फल प्राप्त होता है। वहीं इस बार यह तिथि 25 जुलाई 2.20 को पड़ रही है। इसलिए नाग पंचमी का पर्व 25 जुलाई को शनिवार के दिन मनाया जाएगा।
पण्डित दयानन्द शास्त्री जी ने बताया की  इस नाग पंचमी पर मंगल वृश्चिक लग्न में होंगे। इसी दिन कल्कि भगवान की जयंती भी है और विनायक चतुर्थी व्रत का पारण भी है। धन-समृद्धि पाने के लिए भी नाग देवताओं की पूजा की जाती है। मान्यता के अनुसार ऐसा माना जाता है कि नाग देवता, धन की देवी मां लक्ष्मी की रक्षा करते हैं। इस दिन श्रीया, नाग और ब्रह्म अर्थात शिवलिंग स्वरुप की आराधना से मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है। जिस व्यक्ति कुंडली में कालसर्प दोष होता है तो उसे इस दोष से बचने के लिए नाग पंचमी का व्रत अवश्य करना चाहिए। यदि आपको अक्सर सपने में सांप दिखाई देता है या फिर आपको सांप से अधिक डर लगता है तो आपको विधि-विधान से सांप की पूजा करनी चाहिए। विशेष रूप से नागपंचमी के दिन जरूर नाग की पूजा करें। इससे सांपों को लेकर आपका भय दूर हो जाएगा। इस दिन में अनन्त, वासुकि, पद्म, महापद्म, तक्षक, कुलीर, कर्कट और शंख नामक अष्टनागों की पूजा की जाती है। इनकी पूजा से भक्तों को भय से मुक्ति मिलती है। भविष्योत्तर पुराण में इस संबंध में एक श्लोक लिखा है। जो इस प्रकार है –
वासुकिः तक्षकश्चैव कालियो मणिभद्रकः।
ऐरावतो धृतराष्ट्रः कार्कोटकधनंजयौ ॥
एतेऽभयं प्रयच्छन्ति प्राणिनां प्राणजीविनाम् ॥
चतुर्थी के दिन एक बार भोजन करें तथा पंचमी के दिन उपवास करके शाम को भोजन करना चाहिए. इसके बाद पूजा करने के लिए नाग चित्र या मिट्टी की सर्प मूर्ति को लकड़ी की चौकी के ऊपर स्थान दिया जाता है. फिर हल्दी, रोली, चावल और फूल चढ़कर नाग देवता की पूजा की जाती है. इसके बाद कच्चा दूध, घी, चीनी मिलाकर लकड़ी के पट्टे पर बैठे सर्प देवता को अर्पित किया जाता है. पूजन करने के बाद सर्प देवता की आरती उतारी जाती है। पूजा करने के बाद अंत में नाग पंचमी की कथा अवश्य सुननी चाहिए। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार सर्पों को पौराणिक काल से ही देवता के रूप में पूजा की जाती है, इसलिए नाग पंचमी के दिन नाग पूजन का अत्यधिक महत्व है। हिन्दू पुराणों के अनुसार ब्रह्मा जी के पुत्र ऋषि कश्यप की चार पत्नियाँ थी। मान्यता यह है कि उनकी पहली पत्नी से देवता, दूसरी पत्नी से गरुड़ और चौथी पत्नी से दैत्य उत्पन्न हुए, परन्तु उनकी जो तीसरी पत्नी कद्रू थी, जिनका ताल्लुक नाग वंश से था, उन्होंने नागों को उत्पन्न किया।
पुराणों के मतानुसार सर्पों के दो प्रकार बताए गए हैं – 
दिव्य और भौम । दिव्य सर्प वासुकि और तक्षक आदि हैं। इन्हें पृथ्वी का बोझ उठाने वाला और प्रज्ज्वलित अग्नि के समान तेजस्वी बताया गया है। वे अगर कुपित हो जाएं तो फुफकार और दृष्टिमात्र से सम्पूर्ण जगत को दग्ध कर सकते हैं। इनके डसने की भी कोई दवा नहीं बताई गई है। परन्तु जो भूमि पर उत्पन्न होने वाले सर्प हैं, जिनकी दाढ़ों में विष होता है तथा जो मनुष्य को काटते हैं उनकी संख्या अस्सी बताई गई है
अनन्त, वासुकि, तक्षक, कर्कोटक, पद्म, महापदम, शंखपाल और कुलिक – इन आठ नागों को सभी नागों में श्रेष्ठ बताया गया है। इन नागों में से दो नाग ब्राह्मण, दो क्षत्रिय, दो वैश्य और दो शूद्र हैं। अनन्त और कुलिक – ब्राह्मण, वासुकि और शंखपाल – क्षत्रिय, तक्षक और महापदम – वैश्य व पदम और कर्कोटक को शुद्र बताया गया है।
पौराणिक कथानुसार जन्मजेय जो अर्जुन के पौत्र और परीक्षित के पुत्र थे; उन्होंने सर्पों से बदला लेने व नाग वंश के विनाश हेतु एक नाग यज्ञ किया क्योंकि उनके पिता राजा परीक्षित की मृत्यु तक्षक नामक सर्प के काटने से हुई थी। नागों की रक्षा के लिए इस यज्ञ को ऋषि जरत्कारु के पुत्र आस्तिक मुनि ने रोका था। जिस दिन इस यज्ञ को रोका गया उस दिन श्रावण मास की शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि थी और तक्षक नाग व उसका शेष बचा वंश विनाश से बच गया। मान्यता है कि यहीं से नाग पंचमी पर्व मनाने की परंपरा प्रचलित हुई।
– ऐसी भी मान्यता है कि नाग पंचमी के दिन नागों की पूजा करने वाले व्यक्ति को सांप के डसने का भय नहीं होता.
-ऐसा माना जाता है कि इस दिन सर्पों को दूध से स्नान और पूजन कर दूध से पिलाने से अक्षय-पुण्य की प्राप्ति होती है.
– यह पर्व सपेरों के लिए भी विशेष महत्व का होता है. इस दिन उन्हें सर्पों के निमित्त दूध और पैसे दिए जाते हैं.
– कुछ जगह इस दिन घर के प्रवेश द्वार पर नाग चित्र बनाने की भी परम्परा है. मान्यता है कि इससे वह घर नाग-कृपा से सुरक्षित रहता है।
यह रहेगा नाग पंचमी 2020 पूजन का शुभ मुहूर्त—
पंचमी तिथि प्रारंभ – 24 जुलाई शाम 02 बजकर .3 मिनट पर
पंचमी तिथि समाप्ति – 25 जुलाई दोपहर .2 बजकर 01 मिनट पर
पूजा मुहूर्त – सुबह 05 बजकर 47 मिनट 20 से 08 बजकर 27 मिनटर तक
कुल अवधि : 2 घंटे 39 मिनट
– श्रावण शुक्ल पंचमी में नागव्रत (नाग पंचमी व्रत) किया जाता है
– यदि दूसरे दिन पंचमी तीन मुहूर्त से कम हो और पहले दिन तीन मुहूर्त से कम रहने वाली चतुर्थी से वह युक्त हो तो पहले ही दिन यह व्रत किया जाता है
– यदि पहले दिन पंचमी तीन मुहूर्त से अधिक रहने वाली चतुर्थी से युक्त हो तो दूसरे दिन दो मुहूर्त तक रहने वाली पंचमी में भी यह व्रत किया जा सकता है.
नाग पंचमी व्रत व पूजन विधि—
     नाग पंचमी के दिन आठ देव नाग माने गए हैं. इस दिन में अनन्त, वासुकि, पद्म, महापद्म, तक्षक, कुलीर, कर्कट और शंख नामक अष्टनागों की पूजा की जाती है. चतुर्थी के दिन एक बार भोजन करें तथा पंचमी के दिन उपवास करके शाम को भोजन करना चाहिए. इसके बाद पूजा करने के लिए नाग चित्र या मिट्टी की सर्प मूर्ति को लकड़ी की चौकी के ऊपर स्थान दिया जाता है. फिर हल्दी, रोली (लाल सिंदूर), चावल और फूल चढ़कर नाग देवता की पूजा की जाती है. इसके बाद कच्चा दूध, घी, चीनी मिलाकर लकड़ी के पट्टे पर बैठे सर्प देवता को अर्पित किया जाता है. पूजन करने के बाद सर्प देवता की आरती उतारी जाती है. पूजा करने के बाद अंत में नाग पंचमी की कथा अवश्य सुननी चाहिए.
ऐसे करें नाग देवता की पूजा
     इस दिन भक्त पूजन के लिए नाग देवता के मंदिर में जाकर प्रतिमा पर दूध व जल से अभिषेक करके, धुप-दीप जलाएं और नाग देवता से प्रार्थना करते हैं. इस दिन जो लोग नाग देवता की पूजा करते हैं उनके परिवार को सर्प से खतरा नहीं रहता. नाग देवता की पूजा के दिन विशेष मंत्रों का उच्चारण करना अनिवार्य होता है.
इस मंत्र का करें जाप —
     सर्वे नागाः प्रीयन्तां मे ये केचित् पृथिवीतले। ये च हेलिमरीचिस्था येऽन्तरे दिवि संस्थिताः। ये नदीषु महानागा ये सरस्वतिगामिनः। ये च वापीतडागेषु तेषु सर्वेषु वै नमः।।

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