निरोगी शरीर का अर्थ है शरीर  का रोग से रहित होना ।
रोग दो प्रकार के होते है एक- साध्य रोग जो कि उचित उपचार, आहार,व्यबहार ठीक हो जाते हैं  दूसरे – असाध्य रोग जो कि उपचार के बाद भी व्यक्तिओं का पीछा नही छोडते है. इन्ही असाध्य रोगों मे अधिकाश रोग जिन्दगी भर साथ रहते है तथा उचित उपचार के साथ जिन्दगी के लिये घातक नही होते हैं परन्तु दो असाध्य रोग ऐसे है जिनका कोई उपचार नही है तथा वे दोनो रोगी की जान लेकर ही रहते हैं  वे दो रोग हैं
…–कैंसर
0..–एड्स.
इस आलेख मे हम कैंसर रोग के ज्योतिषीय पहलू का विवेचन करने का प्रयास करते है।

 आइये पहले यह जाने कि कैंसर रोग क्या है ??

आयुर्वेद के अनुसार त्वचा की छठी परत जिसे आयुर्वेद मे रोहिणी कहते है जिसका संस्कृत मे अर्थ है कोशिकाओं की रचना. जब ये कोशिकाये क्षतिग्रस्त होती हैं तो शरीर के उस हिस्से मे एक ग्रन्थि बन जाती है इस ग्रन्थि को असमान्य शोथ भी कहती है.जिसे आयुर्वेद मे बिभिन्न स्थान और प्रकार के नामों से जाना जा ता है जैसे: अर्बुद, गुल्म, शालुका आदि. जब ये शोथ त्रिदोषों (वात,पित्त,कफ) के नियंत्रण से  परे हो जाते हैं . तब यह ग्रन्थि कैंसर क रूप ले लेती हैं
पण्डित दयानन्द शास्त्री जी के अनुसार ज्योतिष पूर्वजन्म के किये हुए कर्मो का आधार है अर्थात हम ज्योतिष द्वारा ज्ञात कर सकते हैं कि हमारे पूर्वजन्म के किये हुए कर्मो का परिणाम हमे इस जन्म मे किस प्रकार प्राप्त होगा ज्योतिर्विग्यान के अनुसार कोई भी रोग पूर्व जन्मकृत कर्मों का ही फल होता है. ग्रह उन फलों के संकेतक हैं, ज्योतिष विग्यान कैंसर सहित सभी  रोगों की पहचान मे बहुत ही सहायक होता है. पहचान के साथ –साथ यह भी मालूम किया जा सकता है कि कैंसर रोग किस अवस्था मे होगा  तथा उसके कारण मृत्यु आयेगी या नही, यह सभी ज्योतिष द्वारा सटीक जाना जा सकता है वर्तमान समय में कैंसर सर्वाधिक भयप्रद बीमारी के रुप में चर्चित है । वैज्ञानिकों की लाख चेष्टा के बावजूद अभी तक इसका समुचित उपचार ढूढ़ा नहीं जा सका है । थोड़े-बहुत जो भी उपचार हैं, वो बहुत ही अर्थ साध्य हैं और पूरे तौर पर सुनिश्चित भी नहीं हैं ।  समुचित उपचार का अभाव ही रोग को अधिक भयावह बना दिया है । रोग का निश्चय हो जाना, मृत्यु घोषित हो जाने जैसा है ।  सबसे बड़ी बात ये होती है कि प्रायः घोषणा ही तब होती है जब रोग चौथे स्तर में पहुँच चुका होता है । फलतः उपचार के लिए समुचित समय भी नहीं मिल पाता ।
मानव शरीर में कैंसर की उत्पत्ति में कोशिकाओं की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। कोशिकाओं में श्वेत एवं लाल रक्त कण होते हैं। ज्योतिष में श्वेत रक्त कण का सूचक कर्क राशि का स्वामी चंद्र तथा लाल रक्त कण का सूचक मंगल है। कर्क राशि का अंग्रेजी नाम कैंसर है तथा इसका चिह्न केकड़ा है। केकड़े की प्रकृति होती है कि वह जिस स्थान को अपने पंजों से जकड़ लेता है, उसे अपने साथ लेकर ही छोड़ता है। इसी प्रकार कोशिकाएं मानव शरीर के जिस अंग को अपना स्थान बना लेती है उसे शरीर से अलग करके ही कोशिकाओं को हटाया जाता है। इसलिए ज्योतिष में कैंसर जैसे भयानक रोग के लिए कर्क राशि के स्वामी चंद्र का विशेष महत्व है। इसी प्रकार रक्त में लाल कण की कमी होने पर प्रतिरोधक क्षमता में कमी आ जाती है।
पण्डित दयानन्द शास्त्री जी बताते हैं कि वैदिक ज्योतिर्विज्ञान के अनुसार कोई भी रोग पूर्व जन्मकृत कर्मों का ही फल होता है। ग्रह उन फलों के संकेतक हैं, ज्योतिष विज्ञान कैंसर सहित सभी रोगों की पहचान में सहायक होता है। पहचान के साथ-साथ यह भी मालूम किया जा सकता है कि कैंसर रोग किस अवस्था में होगा तथा उसके कारण मृत्यु आयेगी या नहीं, यह सभी ज्योतिष विधि द्वारा जाना जा सकता है |
इस रोग के होने में ग्रहों के साथ भाव भी पीड़ित होना चाहिए। फिर दशा/अन्तर्दशा का आंकलन किया जाना चाहिए, उसके बाद अंत में गोचर देखा जाना चाहिए |कैंसर एक लम्बी अवधि तक होने वाला रोग हैं. इसलिए छ्ठे भाव व अष्टम भाव का संबंध बनना आवश्यक है क्योकि छठा भाव रोग और आठवाँ भाव लम्बी अवधि तक होने वाले रोग हैं. शनि और राहु लम्बे समय तक चलने वाले रोगो की सूचना देते हैं. इसलिए इन दोनो ग्रहों की भूमिका भी कैंसर रोग के होने में मुख्य होती है।
कैंसर रोग का संबंध राहु, पीड़ित चंद्रमा, पीड़ित बृहस्पति या शनि से होता है और यह मेष, वृष, कर्क, तुला और, मकर राशियों से संबंधित होता है. किसी व्यक्ति की कुण्डली में चंद्रमा जब षष्ठेश या अष्टमेश होकर पीड़ित होता है और साथ ही दशा भी प्रतिकूल चल रही हो तब व्यक्ति को कैंसर रोग होने की संभावना बनती है.|शनि असाध्य एवं भयानक लंबे समय तक चलने वाले रोगों का परिचालक है। इसके संयोग से अधिक इसकी दृष्टि पीड़ादायक है।शरीर में किसी भी प्रकार की रसौली जल से होता है। अत: जल राशियों कर्क, वृश्चिक और मीन। ये जल राशियां हैं। इनके पाप ग्रस्त होने पर कैंसर की संभावना प्रबल होती है |
जन्म कुंडली में जब एक भाव पर ही अधिकतर पाप ग्रहों का प्रभाव होता है, विशेषकर शनि, राहु व मंगल से तब उस संबंधित भाव वाले अंग में कैंसर होने की संभावना बनती है. जन्म कुंडली में यदि नेप्च्यून व यूरेनस आमने-सामने हो तब इसे अत्यधिक अशुभ माना जाता है और यह बहुत ही घातक परिणाम देने वाले सिद्ध हो सकते हैं।
यदि जन्म कुंडली में दशानाथ पीड़ित होता है तब इस रोग के होने की संभावना अधिक होती है। कैंसर रोग जिस दशा में होता है, उसके बाद आने वाली दशाओं का आंकलन किया जाना चाहिए. यदि यह दशाएँ शुभ ग्रहों की है या अनुकूल ग्रह की है या योगकारक ग्रह की दशा आती है तब रोग का पता आरंभ में ही चल जाता है और उपचार भी हो जाता है.
आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के लिए भले ही कैंसर एक नयी बीमारी हो, किन्तु भारतीय विज्ञान- आयुर्वेद और ज्योतिषशास्त्र के लिए बिलकुल नया नहीं है । आयुर्वेद में कर्कटार्बुद नाम से  विशद वर्णन है इस व्याधि का और समुचित चिकित्सा भी सुझायी गयी है । इसी भांति ज्योतिष में भी इसकी पर्याप्त चर्चा है ।  किन्तु हमारा दुर्भाग्य है कि हमें अपने शास्त्रों पर भरोसा नहीं है । इसे पढ़ने, जानने, अनुसंधान करने में उतनी अभिरुचि नहीं है, जितनी पाश्चात्य पद्धतियों में । ये भी सोलह आने सच है कि हमारे शास्त्रीय विज्ञान को वर्बरता पूर्वक विदेशियों द्वारा नष्ट-भ्रष्ट किया गया है । खेद है कि आज भी वही काम , पहले से भी कहीं बढ़-चढ़कर स्वदेशियों द्वारा जारी है ।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, राहु-केतु जिन भावों में होते हैं, उनसे संबंधित अंगों में कैंसर की आशंका होती है। इसके अतिरिक्त इनकी जिन ग्रहों से युति हो उनसे संबंधित अंगों में भी कैंसर होने की संभावना अधिक होती है। इनके अलावा भी जन्म कुंडली में कुछ दोष होने पर कैंसर हो सकता है। ये उपाय करें ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, कुंडली में स्थित जिन ग्रहों के कारण कैंसर होने की संभावना बन रही है, उन ग्रहों से संबंधित ज्योतिषिय उपाय करें व उन ग्रहों के जप पूर्ण विधि-विधान से करें। उपरोक्त उपाय करने से कैंसर होने की संभावनाएं कम हो जाती हैं अथवा कैंसर होने पर भी इसका समुचित उपचार हो जाता है।
कैंसर के मुख्य कारक ग्रह मंगल, शनि, राहु, केतु एवं यूरेनस हैं। खासकर केतु एवं यूरेनस जब शनि, मंगल एवं राहु को अशुभ रूप से प्रभावित करते हैं तो कैंसर रोग होता है। पण्डित दयानन्द शास्त्री जी ने बताया कि राहु ग्रह का कुंडली के छठे भाव पर बुरे प्रभाव से रोग उत्पन्न होते हैं।
सर्वविदित है कि ज्योतिषशास्त्र पूर्वानुमान और सुनिश्चय का शास्त्र है । इसका सहारा लेकर यदि विचार करें तो समय से बहुत पहले ही  स्थिति ज्ञात हो जा सकती है और तदनुरुप समुचित उपचार भी कर सकते हैं । आज इसी आलोक में अर्बुदकर्कट /  कर्कटार्बुद पर विचार करते हैं ।
ज्योतिर्विग्यान के अनुसार कोई भी रोग पूर्व जन्मकृत कर्मों का ही फल होता है. ग्रह उन फलों के संकेतक हैं, ज्योतिष विज्ञान,  सहित सभी  रोगों की पहचान मे बहुत ही सहायक होता है. पहचान के साथ –साथ यह भी मालूम किया जा सकता है कि कैंसर रोग किस अवस्था मे होगा  तथा उसके कारण मृत्यु आयेगी या नही, यह सभी ज्योतिष द्वारा सटीक जाना जा सकता है  केंसर या कर्क रोग की पहचान निम्न ज्योतिषीय योग होने पर बडी आसानी से की जा सकती है—
रोग होने की स्थिति में जन्म कुंडली के साथ नवांश कुंडली, षष्टियाँश कुंडली और अष्टमांश कुंडली का भी भली-भाँति विश्लेषण करना चाहिए उसके बाद किसी नतीजे पर पहुंचना चाहिए। राहु को कैंसर का कारक माना गया है लेकिन शनि व मंगल भी यह रोग देते हैं. गुरु को वृद्धि का कारक ग्रह माना जाता है और कैंसर शरीर के किसी अंग में अवांछित वृद्धि से ही होता है और साथ ही यदि यह षष्ठेश या अष्टमेश होकर पीड़ित है तब कैंसर की संभावना बनती है।
योगानुसार निम्न योग कैंसर कारक हो सकते हैं…
1. राहु को विष माना गया है यदि राहु का किसी भाव या भावेश से संबंध हो एवं इसका लग्न या रोग भाव से भी सम्बन्ध हो तो शरीर में विष की मात्रा बढ़ जाती है।
2. षष्टेश लग्न, अष्टम या दशम भाव मे स्थित होकर राहु से दृष्ट हो तो कैंसर होने की सम्भावना बढ़ जाती है।
.. बारहवें भाव में शनि-मंगल या शनि-राहु, शनि-केतु की युति हो तो जातक को कैंसर रोग देती है।
4. राहु की त्रिक भाव या त्रिकेश पर दृष्टि हो भी कैंसर रोग की संभावना बढ़ाती है।
5. षष्टम भाव तथा षष्ठेश पीडि़त या क्रूर ग्रह के नक्षत्र में स्थित हो।
6. बुध ग्रह त्वचा का कारक है अत: बुध अगर क्रूर ग्रहों से पीडि़त हो तथा राहु से दृष्ट हो तो जातक को कैंसर रोग होता है।
7. बुध ग्रह की पीडि़त या हीनबली या क्रूर ग्रह के नक्षत्र में स्थिति भी कैंसर को जन्म देती है।
बृहत पाराशरहोरा शास्त् के अनुसार षष्ठ पर क्रूर ग्रह का प्रभाव स्वास्थ्य के लिये हानिप्रद होता है यथा ”रोग स्थाने गते पापे , तदीशी पाप….. अत: जातक रोगी होगा और यदि षष्ठ भाव में राहु व शनि हो तो असाध्य रोग से पीडि़त हो सकता है।
8.सभी लग्नो में कर्क लग्न के जातकों को सबसे ज्यादा खतरा इस रोग का होता है|
9.कर्क लग्न में बृहस्पति कैसर का मुख्य कारक है, यदि बृहस्पति की युति मंगल और शनि के साथ छठे, आठवे, बारहवें या दूसरे भाव के स्वामियों के साथ हो जाये व्यक्ति की मृत्यु कैंसर के कारण होना लगभग तय है|
10.शनि या मंगल किसी भी कुंडली में यदि छठे या आठवे स्थान में राहू या केतु के साथ हों तो कैंसर होने की प्रबल सम्भावना होती है|
11.छठे भाव का स्वामी लग्न, आठवे या दसवे में भाव में बैठा हो और पाप ग्रहों से दृष्ट हो तो भी कैंसर की प्रबल सम्भावना होती है|
12.किसी जातक की कुंडली में सूर्य यदि छठे, आठवे या बढ़ावे भाव में पाप ग्रहों के साथ हो तो जातक को पेट या आंतों में अल्सर और कैंसर होने की प्रबल सम्भावना होती है|
13.किसी जातक की कुंडली में यदि सूर्य कही भी पाप ग्रहों के साथ हो और लग्नेश या लग्न भी पाप ग्रहों के प्रभाव में हो तो भी कैंसर की प्रबल सम्भावना रहती है|
14.कमज़ोर चंद्रमा पापग्रहों की राशी में छठे, आठवे या बारहवे हो और लग्न अथवा चंद्रमा, शनि और मंगल से दृष्ट हो तो अवश्य ही कैंसर होता है|
15. चंद्रमा व शनि छठे भाव में स्थिति है तब व्यक्ति को पचपन वर्ष की उम्र पार करने के बाद रक्त कैंसर हो सकता है.
16. आश्लेषा नक्षत्र, लग्न या छठे भाव से संबंधित होने पर और मंगल से पीड़ित होने पर कैंसर होने की संभावना बनती है.
17. शनि छठे भाव में राहु के नक्षत्र में स्थित हो और पीड़ित हो तब कैंसर रोग की संभावना बनती है.
18. शनि और मंगल की युति छठे भाव में आर्द्रा या स्वाति नक्षत्र में हो रही हो.तो कैंसर की संभावना बनती है |
19. मंगल और राहु छठे या आठवें भाव को पीड़ित कर रहे हों तब त्वचा का कैंसर हो सकता है.
20. छ्ठे भाव में मेष राशि हो या स्वाति या शतभिषा नक्षत्र पड़ रहा हो और शनि छठे भाव को पीड़ित कर रहा हो तब त्वचा कैंसर का रोग हो सकता है.
21. जन्म कुंडली में राहु या केतु लग्न में षष्ठेश के साथ हो तो पेट का कैंसर हो सकता है |
22. छठा भाव पीड़ित हो और राहु या केतु, आठवें या दसवें भाव में स्थित हो तो पेट का कैंसर हो सकता है |
23. यदि किसी जातिका की कुण्डली में लग्नेश अष्टम, षष्टम अथवा द्वाद्श में चला गया हो, लग्न स्थान पर क्रूर व पापी ग्रहों की स्थिति हो, चतुर्थ स्थान का अधिपति शत्रुगृही होकर पीड़ित हो, छठे भाव का अधिपति चतुर्थेश से संबंध बना रहा हो तो ऐसी स्थिति में जातिका को ब्रेस्ट कैंसर या स्तनों में बड़े विकार की संभावना प्रबल रूप से मौज़ूद होती है।
24. छठे भाव में कर्क अथवा मकर राशि का शनि स्तन कैंसर का संकेत देता है।
25. छठे भाव में कर्क या मकर का मंगल स्तन कैंसर का द्योतक है।
26. यदि छठे भाव का स्वामी पाप ग्रह हो और लग्नेश आठवें या दसवें घर में बैठा हो तो कैंसर रोग की आशंका रहती है।
27. छठे भाव में कर्क राशि में चंद्रमा हो, तब भी कैंसर का द्योतक है।
28. चंद्रमा से शनि का सप्तम होना कैंसर की संभावना को प्रबल बनाता है।
इनके अतिरिक्त ज्योतिष रत्न के पाठ 24 के अनुसार—
१.      राहु को विष माना गया है यदि राहु का किसी भाव या भावेश से संबन्ध हो एवम इसका लग्न या रोग भाव से भी सम्बन्ध हो तो शरीर मे विष की मात्रा बढ जाती है
२.      षष्टेश लग्न ,अष्टम या दशम भाव में स्थित होकर राहु से दृष्ट हो तो कैंसर होने की सम्भावना बढ जाती है
३.      बारहवे भाव मे शनि-मंगल या शनि –राहु,शनि-केतु की युतिहो तो जातक को कैंसर रोग देती है.
४.       राहु की त्रिक भाव या त्रिकेश पर दृष्टि हो भी कैंसर रोग की संभावना बढाती है.
इनके अलावा निम्न बिन्दु भी कैसर रोग की पह्चान के लिये मेरे अनुभव सिद्ध है
१   षष्टम भाव तथा षष्ठेश पीडित या क्रूर ग्रह के नक्षत्र मे स्थित हो
२  बुध ग्रह त्वचा का कारक है अतः बुध अगर क्रूर ग्रहो से पीडित हो तथा राहु से दृष्ट हो तो जातक को कैसर रोग होता है
३ बुध ग्रह की पीडित या हीनबली या क्रूर ग्रह के नक्षत्र मे स्थिति भी कैंसर को जन्म देती है
बृहत पाराशरहोरा शास्त् के अनुसार  षष्ठ पर क्रूर ग्रह का प्रभाव स्वास्थ्य के लिये हानिप्रद होता है यथा ” रोग स्थाने गते पापे , तदीशी पाप..
अतः जातक रोगी होगा और यदि षष्ठ भाव में राहु व शनि हो तो असाध्य रोग से पीडित हो सकता है
कैंसर नाम की एक राशि होती है, जिसे भारतीय ज्योतिष में कर्कराशि कहते हैं । मेषादि राशिक्रम में इसका स्थान चौथा है । इसके स्वामी चन्द्रमा हैं । स्वभाव से यह चर राशि है । कालपुरुष के हृदय का प्रतिनिधित्व करती है ये राशि, फलतः जातक के हृदय से इसका विशेष सम्बन्ध माना जाता है । लग्नादि क्रम से चतुर्थ भाव को कर्क का प्रतिनिधित्व मिला है । अतः भले ही किसी जातक का जन्मलग्न कोई भी हो, उसके चतुर्थ भाव का विचार कर्करोग (कैंसर) विचार के सम्बन्ध में अवश्य करना चाहिए । साथ ही ये भी देखना चाहिए कि कर्कराशि जातक की कुण्डली में किस भाव में पड़ी हुयी, यानी कि जातक का जन्मलग्न क्या है ।
जन्मांकचक्र के चतुर्थ भाव में राहु की अवस्थिति हो, अथवा कर्कराशि पर आरुढ़ होकर राहु किसी भी भाव में विराज रहा हो तो कर्करोग होने की सर्वाधिक आशंका जतायी जा सकती है । साथ ही ये भी देखना चाहिए कि चतुर्थ भाव और इसका भावेश किसी न किसी तरह यदि राहु से प्रभावित – दृष्ट, पीड़ित हो तो कर्करोग की आशंका जतायी जा सकती है । राहु की पूर्ण दृष्टिभोग के सम्बन्ध में अन्यान्य ग्रहों से किंचित भिन्न मत पर ध्यान देना चाहिए ।
यथा—सुत मदन नवान्ते पूर्ण दृष्टिं तमस्य ,
          युगल दशम गेहे चार्द्ध दृष्टिं वदन्ति ।
        सहज रिपु पश्यन् पाददृष्टिं मुनीन्द्राः ,
  निज भुवन मुपेतो लोचनांधः प्रदिष्टः ।।
(पंचम,सप्तम,नवम- पूर्ण दृष्टि, द्वितीय और दशम- अर्द्ध दृष्टि, तृतीय और षष्ठम पाद दृष्टि तथा स्वगृह(कन्या राशि पर)राहु लोचनांध होते हैं । )
 चतुर्थ भावपति का नीचस्थ वा शत्रुक्षेत्रस्थ होने पर भी कर्करोग की स्थिति हो सकती है । इन स्थितियों के अतिरिक्त चन्द्रमा, शनि, मंगल, सूर्य आदि का भी गम्भीरता से विचार अवश्य कर लेना चाहिए । क्यों कि उक्त ग्रहों की स्थिति, युति, दृष्टि आदि का सीधा प्रभाव पड़ता है रोग की स्थिति, मात्रा और अंग वा प्रकार पर । जैसे मंगल की विकृति से ब्लडकैंसर का खतरा हो सकता है । बुध की विकृति से ग्रन्थियों का बाहुल्य रहेगा इत्यादि
मुख्यतः लोग षष्ठम भाव से रोग का विचार करते हैं, किन्तु इसके अतिरिक्त प्रथम, अष्टम व द्वादश भाव का भी गहन विचार करना चाहिए । साथ ही द्वितीय एवं सप्तम भाव को मारकेशत्व प्रधान होने के कारण इनपर भी विचार अवश्य करना चाहिए । रोग की साध्यासाध्यता की जानकारी हेतु सूर्य के बलाबल का ध्यान देना आवश्यक है । प्रभावी (जिम्मेवार) ग्रह (रोगकारक) की महादशा, अन्तर्दशादि के समय रोग की उग्रता समझनी चाहिए । मारकेशत्वों के बलाबल से साध्यासाध्यता की पहचान की जा सकती है ।
समझें केंसर के उपचार और उपाय को–
जन्म कुंडली में भावों के अनुसार शरीर से संबंधित ग्रहों के रत्नों का धारण करने से रोग-मुक्ति संभव होती है। लेकिन कभी-कभी जिसके द्वारा रोग उत्पन्न हुआ है, उसके शत्रु ग्र्रह का रत्न धारण करना भी लाभप्रद होता है। इसका आकलन किसी नीम हकीम ज्योतिषी से करवाना घातक हो सकता है |जिसे बहुत गंभीर समझ हो उसकी ही सलाह इस रोग में लेनी चाहिए और ज्योतिषीय उपाय करने चाहिए।
एक बात बहुत स्पष्ट रूप से समझ लेना चाहिए कि मात्र ज्योतिषीय मंत्र-तंत्र-यंत्र से ही किसी रोग का निवारण नहीं किया जा सकता है।क्योकि ग्रह स्थितियों को सुधारकर भी आप शरीर में आये भौतिक परिवर्तन को नहीं बदल सकते |दूध जब तक दूध है तभी तक उसे बचा सकते हैं ,दही बनने पर वह दूध नहीं हो सकता वापस |इसलिए मात्र ज्योतिषीय उपायों के बल पर बैठना घातक होगा |
तंत्र मंत्र की सीमा वहां तक है की रोगी में सकारात्मक ऊर्जा ,धनात्मक ऊर्जा बढ़ा देंगे जिससे लड़ने की क्षमता बढ़ जाए |भाग्य अगर किन्ही नकारात्मक ऊर्जा के कारण बाधित है अथवा नकारात्मक ऊर्जा रोग बढ़ा रही है तो उसे तंत्र मंत्र हटा देंगे |जीवनी शक्ति बढ़ा देंगे ,पर रोग हो गया तो उसे केवल इनसे ख़त्म करना मुश्किल है।
ज्योतिषीय उपाय ,तंत्र मंत्र के साथ अवचेतन को बल देना बेहतर होता है क्योकि अंततः सारा खेल अवचेतन को ही करना होता है अगर यह निराश हताश हुआ तो फिर न दवा काम करेगी न कोई उपाय | इन सभी के साथ-साथ औषधि सेवन, चिकित्सकों के द्वारा दी गई सलाह आदि का पालन किया जाना उतना ही आवश्यक है। तभी इसका पूर्ण लाभ उठाया जा सकता हैै। अगर समय से पूर्व किसी भी घटना या दुर्घटना के बारे में जानकारी हो जाये तो उससे बचने का हर संभव प्रयास किया जा सकता है पर दुर्घटना होने के बाद मुश्किल हो जाती है।
स्तन कैंसर के ज्योतिषीय कारण —
आखिर ब्रेस्ट कैंसर होता क्यों है ??
इसका जवाब जब आप ज्योतिष से जानने की कोशिश करेंगे तो आपको आसानी होगी।
क्या स्तन कैंसर का कोई ज्योतिषीय कारण भी हो सकता है? विज्ञान इसे खारिज कर सकता है परंतु सदियों पुराने ज्योतिष शास्त्र में इस व्याधि की ओर भी संकेत किया गया है।
जातक की  कुंडली के कई योग बताते हैं कि अगर वे प्रभावशाली हो जाएं तो स्तन कैंसर जैसा रोग उत्पन्न हो सकता है। जानिए कारण और निवारण के बारे में।
यदि लग्नेश स्वस्थान से आठवें, छठे या बारहवें भाव में चला गया हो एवं लग्न के स्थान पर क्रूर ग्रह बैठे हों तो, चौथे स्थान का स्वामी शत्रु के घर में विराजमान हो और छठे का मालिक चौथे से संबंध बनाए तो संभव है कि उस महिला को स्तन संबंधी कोई बड़ा रोग हो जाए।
पण्डित दयानन्द शास्त्री जी बताते हैं कि यदि किसी महिला की कुंडली का लग्न कमजोर हो, उस पर क्रूर ग्रहों की दृष्टि हो अथवा वहां ऐसे ग्रह विराजमान हों जो शुभ फल देने में सक्षम न हों तो रोगी होने की आशंका प्रबल होती है।
अगर उसके साथ ही छठा भाव भी श्रेष्ठ परिणाम न देने वाला हो, चंद्र की स्थिति प्रभावी न हो तो महिला को स्तन कैंसर हो सकता है।
अगर महिला की कुंडली में छठे या आठवें भाव में कोई क्रूर ग्रह स्थित हो तो उसे असाध्य रोग होने की आशंका होती है।
वहीं चतुर्थ भाव में क्रर ग्रहों का योग सीने में दर्द एवं बड़े रोगों की ओर इशारा करता है। अगर समय रहते उनका इलाज नहीं कराया तो स्थिति बेकाबू हो सकती है।
ऐसे में रोगी महिला को अपने खानपान पर पर्याप्त ध्यान देना चाहिए। स्वस्थ जीवनशैली की आदत डालते हुए योग, ध्यान, प्राणायाम आदि करने चाहिए। इससे वह इस स्तन कैंसर के संकट को टाल सकती है।
आप सभी स्वस्थ रहें,इसी मंगलकामना के साथ..
।।शुभमस्तु।

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