जानिए वास्तु अनुसार कैसी हो आपके घर की दहलीज या चौखट—
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तिक्खट की जगह अगर चौखट होगी तो कुनबा बढ़ेगा और संगठित रहेगा।
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समझें दरवाजे की चौखट और राहु ग्रह ( दहलीज) का सम्बंध—
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वास्तुशास्त्र के अनुसार किसी भी भवन या ऑफिस के मुख्य द्वार का बहुत महत्व होता है। प्रवेश द्वार भवन का अहम भाग होता है। कहते हैं कि आरंभ अच्छा तो अंत अच्छा। जिस तरह भवन निर्माण से पूर्व भूमि का पूजन किया जाता है, उसी तरह भवन की चौखट अर्थात द्वार प्रतिस्थापना के समय भी पूजा की जाती है और प्रसाद वितरित किया जाता है।

कोई समय था जब मुख्य दरवाजे पर चौखट रहती थी यानी की फर्श पर भी ऊँचा कर के लकड़ी का बल्ल्म लगाया जाता था ( चार बलिययों का फ्रेम ) परन्तु अब तिखखट रह गयी है , ( यानी की तीन बलिययों का फ्रेम )

जो बल्ल्म फर्श पर सटा रहता था उसे शनि के रूप में राहु के बुरे प्रभाव को रोकने के लिए लगाया जाता था और जब भी कोई शुभ वस्तु,पशु, नई बहु बाहर से आये, औलाद अंदर आती थी तो उस चौखट के दोनों तरफ सरसों का तेल गिराया जाता था और राहु को शनि वास्ता दिया जाता था की तुझे तेरे गुरु की कसम है कोई गड़बड़ मत करना और जब नई बहू प्रवेश करती थी तो माँ जोड़े के सर से पानी (चंद्र) वार कर कुछ पी लेती थी और कुछ दहलीज पर गिरा देती थी की राहु को ‘चन्द्र’ का वास्ता दिया जाता था की कोई दिक्क्त न देगा और दरवाजे के ऊपर लाल धागे से तोरण बांध कर ‘मंगल’ का पहरा बिठाया जाता था, तब इस वजह परिवार बड़ा और एक ही जगह रहते हुए सन्तुष्ट था।
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मुख्य द्वार पर तिखट नही चौखट लगवाएं। परिवार नहीं टूटेगा। जब से मुख्य द्वार से चौखट गायब हुई परिवार टूटने शुरू हो गए हैं। ध्यान रखें, घर के मेन गेट पर एक चौखट (मार्बल या लकड़ी) होनी चाहिए।  क्योंकि एेसा माना जाता है कि यह नकारात्मक ऊर्जा को समाहित कर सकारात्मक ऊर्जा को आगे बढ़ाता है। अपने घर के मेन गेट को धार्मिक चिन्हों जैसे ओम, स्वास्तिक, क्रॉस से सजाएं और फ्लोर पर रंगोली बनाएं। यह इसलिए क्योंकि इन्हें शुभ माना जाता है और यह सुख-समृद्धि लाता है।
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मुख्य द्वार पर क्या-करें और क्या न करें:-
घर के प्रवेश द्वार पर हमेशा चमकदार रोशनी रखें, लेकिन लाल लाइट्स से परहेज रखें। शाम के वक्त घर के दरवाजे पर लाइट जरूर जलाएं।
घर के मुख्य द्वार के सामने कभी शीशा न रखें।
अगर जगह है तो एंट्रेंस को हरे पौधों से सजाएं।
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घर का मुख्य द्वार 9. डिग्री में खुलना चाहिए, वो भी बिना किसी रुकावट के।
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दरवाजों के कब्जों में नियमित तौर पर तेल डालें और दरवाजों के सामान पर पॉलिश करें। एंट्रेंस में किसी भी तरह की टूट-फूट और चटकी हुई लकड़ी नहीं होनी चाहिए, न ही कोई पेच निकला होना चाहिए।
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हमेशा नेम प्लेट लगाएं। अगर घर का दरवाजा उत्तर और पश्चिम दिशा की ओर है तो धातु की नेम प्लेट लगाने की हमेशा सलाह दी जाती है। अगर दक्षिण या पूर्व में है तो लकड़ी की नेम प्लेट लगाएं।
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घर में अलग-अलग किस्म की लकड़ी कई बाधाओं को जन्म देती है। इस दृष्टि से प्रायः शीशम, साल, पनस, सुपारी और नाग आदि के वृक्षों की लकड़ी ज्यादा उपयोगी होती है। कुछ वास्तु ग्रंथों में बबूल की लकड़ी को अच्छा नहीं माना जाता, किंतु मजबूती के कारण इसे ग्राह्य मान लिया गया है। काँटे तथा दूधवाले पेड़ों की लकड़ी का उपयोग वर्जित माना है।
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दूध वाले वृक्षों गूलर, बरगद और आक आदि की लकड़ी का प्रयोग नहीं करना चाहिए। सामान्य नियम यह है कि मुख्य द्वार की चौखट और उसके साथ लगने वाले दरवाजे एक ही प्रकार के वृक्ष की लकड़ी के होना चाहिए। यही नियम घर में लगने वाली खिड़कियों आदि के लिए भी लागू होता है। जिस नक्षत्र में आपका जन्म हुआ है, उससे संबंधित वृक्ष आपका कुल वृक्ष है। वह कल्प वृक्ष बनकर आपको सुख प्रदान करेगा। किसी व्यक्ति को घर में पौधे लगाने का शौक है तो वास्तुशास्त्र इस संबंध में दिक्‌ दर्शक कराता है।
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घर के मुख्य दरवाजे में इस्तेमाल होने वाली सामग्री-

लकड़ी का दरवाजा मुख्य द्वार के लिए सबसे शुभ माना गया है।
दक्षिण दिशा: दरवाजा लकड़ी और धातु का मिश्रण होना चाहिए।
पश्चिम: दरवाजे में धातु का काम होना चाहिए।
उत्तर दिशा: दरवाजे में सिल्वर रिंग की अधिकता होनी चाहिए।
पूर्व: दरवाजा लकड़ी और सीमित धातु से बना होना चाहिए।
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वास्तुशास्त्र के अनुसार घर की पश्चिम दिशा की ओर पीपल का वृक्ष होना शुभ है। बिल्व, नारियल, आँवला, तुलसी और चमेली सभी दिशाओं में शुभ हैं।
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 कुछ अन्य वृक्षों के लिए शुभ दिशाओं की सूची निम्नानुसार हैं-
.. जामुन- दक्षिण-पूर्व उत्तर।
.. केला- तुलसी के साथ सभी दिशाओं में।
.. बरगद- पूरब (पश्चिम विशेष अशुभ)।
4. नीम- वायव्य-आग्नेय (विशेष अशुभ)।
5. अनार- आग्नेय-नैऋत्य।
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मुख्य द्वार के ऊंचाई उसकी चौड़ाई से दोगुनी से अधिक होनी चाहिए। मुख्य द्वार के ऊपर द्वार या द्वार के सामने द्वार भी नहीं बनवाना चाहिए ऐसा करने से धन का व्यर्थ ही नाश होता है तथा दरिद्रता आती है। मुख्य द्वार हमेशा दो पल्लों का बनवाना चाहिए व द्वार आराम से खुलने व बंद होने वाला होना चाहिए, यदि मुख्य द्वार खुलने पर बुरी आवाज करता होतो ऐसा द्वार भवन के स्वामी पर अशुभ प्रभाव डालता है, यदि दरवाजे के पल्ले बार बार आपस में टकराते हों तो गृह कलह की सम्भावना बढ़ जाती है।
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यदि मुख्य द्वार का झुकाव अंदर की ओर होतो गृह स्वामी की आयु कम करता है और यदि झुकाव बाहर की तरफ होतो गृह स्वामी को अधिकतर बाहर ही  रहना पड़ता है। मुख्य द्वार अपने आप खुलता होतो मानसिक उन्माद देता है और यदि अपने आप बंद हो जाता होतो कुल का नाश करता है। मुख्य द्वार के सामने खम्बा, पेड़, कांटे दार पेड़, दीवार का कोना, टीला आदि होतो द्वार वेध दोष लगता है द्वार वेध भवन के निवासियों पर अशुभ प्रभाव डालता है। द्वार के सामने कीचड़ होतो शोक, यदि जल बहता हो तो धन हानि, द्वार के सामने यदि कुआँ होतो भवन के सदस्यों को भय, मिर्गी आदि रोगों का सामना करना पड़ता है। द्वार के सामने मंदिर होतो गृह स्वामी के लिए कष्टकारी होता है।
यदि मकान का मुख्यद्वार वास्तु के अनुरूप बना हो तो घर में सकारात्मक ऊर्जा का विस्तार स्वत: ही हो जाएगा। अत: आप वास्तुशास्त्र के इन सुझावों पर अवश्य ध्यान दें :

1. मुख्यद्वार का आकार हमेशा घर के भीतर बने सभी दरवाजों की तुलना में लंबाई व चौडाई की दृष्टि से सबसे बडा होना चाहिए।

2. सामान्यत: आजकल 4 गुणा 8 फुट आकार का मुख्यद्वार वास्तु के अनुसार सर्वोत्तम माना जाता है।

3. प्राय: महानगरों में स्थित फ्लैटों में इतने बडे आकार का मुख्यद्वार बन नहीं पाता और स्थानाभाव के कारण इसे छोटा करना पडता है। ऐसी दशा में मुख्यद्वार 3 &7 फुट का भी रखा जा सकता है। परंतु यह याद रहे कि फ्लैट में भीतर का कोई भी दरवाजा मुख्यद्वार से बडा न हो।

4. यदि किसी कारणवश मुख्यद्वार भवन के अंदर के दरवाजों से छोटा बन गया हो तो उसके आसपास एक ऐसी फोकस लाइट लगाएं, जिसका प्रकाश हर समय मुख्यद्वार और वहां से प्रवेश करने वाले लोगों पर पडे।

5. मकान की चौखट या मुख्यद्वार हमेशा लकडी का बना होना चाहिए। मकान के भीतर केबाकी दरवाजों के फ्रेम या चौखट लोहे के बने हो सकते हैं।

6. मुख्यद्वार हमेशा चौखट वाला होना चाहिए। आज के दौर में ज्यादातर घरों में चौखट की बजाय तीन साइड वाला डोर फ्रेम लगाया जा रहा है। यह वास्तु की दृष्टि से ठीक नहीं होता। इस वास्तुदोष को दूर करने के लिए लकडी की पतली पट्टी या वुडन फ्लोरिंग में इस्तेमाल होने वाली पतली-सी वुडन टाइल को मुख्यद्वार पर फर्श के साथ चिपका देने से भी यह वास्तुदोष दूर किया जा सकता है।

7. लोहा, तांबा, पीतल, स्टील जैसी धातुएं ऊष्मा एवं ऊर्जा की सुचालक होती है और इनसे सकारात्मक ऊर्जा नहीं मिलती। इसलिए मुख्यद्वार के लिए इन धातुओं का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।

8. लकडी के विकल्प के रूप में यदि संपूर्ण भवन में लोहे काफ्रेम या दरवाजा लगाना चाहती हों तो कम से कम मुख्यद्वार लकडी का जरूर होना चाहिए। लेकिन इसके लिए पीपल, बरगद जैसे पूजनीय वृक्षों की लकडी का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

9. मकान के भीतर के सभी दरवाजों के लिए प्रेस्डवुड, पार्टीकल्स, प्लाइवुड, बोर्ड, फाइबर आदि के मैटीरियल का इस्तेमाल किया जा सकता है।

10. वास्तु के अनुसार घर का मुख्यद्वार हमेशा दो पल्ले का बना होना चाहिए।

11. मुख्यद्वार से संबंधित वास्तु दोषों को दूर करने के लिए इसके पास तुलसी के पौधे का गमला रखना चाहिए। इससे किसी भी नकारात्मकऊर्जा का निराकरण किया जा सकता है।

12. यदि घर का प्रवेशद्वार दक्षिण, पश्चिम या नैऋत्य कोण में हो तो उसके भीतर या बाहर गणेश जी की मूर्ति लगाएं।

13. घर के प्रवेशद्वार के आसपास किसी तरह का अवरोध जैसे-बिजली के खंभे, कोई कंटीला पौधा आदि नहीं होना चाहिए।

14. प्रवेशद्वार के आसपास की सफाई का पूरा ध्यान रखें। डस्टबिन सामने न रखें।

15.प्रतिदिन सूरज ढलनेके बाद घर के मुख्य द्वार की लाइट जरूर जलानी चाहिए। इससे घर में लक्ष्मी का आगमन होता है।
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अब कहां वो बातें, माँ और दादी माँ को याद था, पर अगले बच्चों की माँ को याद रहेगा या नहीं कोई गारंटी नहीं है क्योंकि दरवाजे की चौखट तो रही नहीं अब तो तिखखट रह गयी है और न ही लोहे की साँकल वाला कुण्डा ( शनि ) रहा जिस पर ताला लगाया जाता था और उस कुण्डे को खड़का कर ही दरवाजा खुलवाया जाता था जहां शनि की आहट किसी बुजुर्ग के खांसने की तरह होती थी वहां सब बहुएं सर को पल्लु से ढक लेती थी और राहु ( ससुर) शांत रहता था अब तो वक्त बदल गया, मुसीबतें बढ गयी ….

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