समझें जन्मकुंडली में ऐसे ग्रह स्थितियों को जो आत्महत्या के लिए होती हैं जिम्मदार–
आखिर वे कौन-सी ग्रह स्थितियां होती हैं जिनके कारण व्यक्ति आत्महत्या जैसा कदम उठा लेता है।
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आइए आज जानने का प्रयास करते हैं ज्योतिष की दृष्टि से वे कोनसी समस्त संभावित ग्रह स्थितियां होती हैं जिनके कारण लोग आत्महत्या कर लेते हैं…
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वर्तमान वैश्विक प्रतिद्वंद्विता वाले युग में सुख-शांतिपूर्वक जीवन-जीना एक स्वप्न की भांति है।
जन्म के समय के आकाशीय ग्रह योग मानव के जन्म-मृत्यु का निर्धारण करते हैं। शरीर के संवेदनशील तंत्र के ऊपर चंद्र का अधिकार होता है। चंद्र अगर शनि, मंगल, राहु-केतु, नेप्च्यून आदि ग्रहों के प्रभाव में हो तो मन व्यग्रता का अनुभव करता है। दूषित ग्रहों के प्रभाव से मन में कृतघ्नता के भाव अंकुरित होते हैं, पाप की प्रवृत्ति पैदा होती है और मनुष्य अपराध, आत्महत्या, हिंसक कर्म आदि की ओर उन्मुख हो जाता है।
आत्महत्या एक समाजिक समस्या है। यह मानव व्यक्तित्व तथा समाजिक ढांँचे की असफलता का प्रतीक है। आत्महत्या करने वाले लोग अन्र्तमुखी और वाहृयमुखी दोनो ही प्रकार के होते है। आत्महत्या करने वाले भावनात्मक और बौद्धिक स्तर पर असंतुलित होते है चन्द्रमा व 4 व .. वां भाव भावनाओं के प्रतीक है।
लग्न, पंचम, आठवां भाव तथा बुध बौद्धिक क्षमताओं का कारक ग्रह है 5 वां भाव कल्पना, वैचारिक शक्ति, निर्णय शक्ति का प्रतीक है। 12 वां भाव अचेतन दिमाग, सजा, गुप्त शत्रु, विनाश और पीड़ा का प्रतीक है 12 वां भाव पंचम से आठवां अर्थात पंचम भाव की वस्तुओं की मृत्यु या उसके कारकों के विनाश का है। लग्न, पंचम, 12 वें भाव मे पापी ग्रह या इन भावों पर पापी दृष्टि तथा इनके स्वामियों का पाग्रस्त होना आत्महत्या योग बनाता है।
मंगल काल चक्र की प्रथम राशि मेष तथा 8 वीं राशि वृश्चिक राशि का स्वामी है अतः मंगल जीवन और मृत्यु का प्रतीक है। जो सभी प्रकार की हिंसा, भयानक व हिसंक मृत्यु, कलह, अत्याचार मृत्यु का प्रतीक है तथा गुरू पूर्व पुण्य, आशा, भाग्य का कारक है गुरू का पापग्रस्त हो जाना जीवन मे कुंठा असफलता, निराशा, व घोर अवसाद देता है। लग्न, तृतीय, चतुर्थ, पंचम, अष्ठम, द्वादश भाव भावेश, मंगल, गुरू बुध व चन्द्र व इनके राशि स्वामियों का पापग्रस्त हो जाना आत्महत्या कराता है। नेप्चून भंयकर निराशा, वैचारिक विनाश, तथा भ्रम देता है।
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चंद्र की कलाओं में अस्थिरता के कारण आत्महत्या की घटनाएं अक्सर एकादशी, अमावस्या तथा पूर्णिमा के आस-पास होती हैं। मनुष्य के शरीर में शारीरिक और मानसिक बल कार्य करते हैं। मनोबल की कमी के कारण मनुष्य का विवेक काम करना बंद कर देता है और अवसाद में हार कर वह आत्महत्या जैसा पाप कर बैठता है।
चन्द्रमा मन का कारक है। धर्म में ‘चंद्रमा मनसो जात:’। इसकी राशि कर्क है। कुंडली में चंद्र अशुभ होने पर मां को किसी भी प्रकार का कष्ट या सेहत का खतरा होता है, दूध देने वाले पशु की मृत्यु हो जाती है। स्मरण शक्ति कमजोर हो जाती है। घर में पानी की कमी आ जाती है या नलकूप, कुएं आदि सूख जाते हैं। इसके प्रभाव से मानसिक तनाव, मन में घबराहट, मन में तरह तरह की शंका और सर्दी बनी रहती है। व्यक्ति के मन में आत्महत्या करने के विचार भी बार-बार आते रहते है।
जगत की भौतिक परिस्थिति पर भी चंद्रमा का प्रभाव होता है। चंद्रमा का घटता बढ़ता आकार जिस प्रकार पृथ्वी पर समुद्र में ज्वार भाटा का कारक बनता है उसी प्रकार इसका प्रभाव मनुष्य के तन और मन पर भी डालता है। चन्द्रमा कृष्ण पक्ष में छोटा व शुक्ल पक्ष में पूर्ण होता है वैसे-वैसे मनुष्य के मन भी घटता बढ़ता रहता है। एकादशी तिथि से लेकर पंचमी तिथि तक पूर्णिमा के पांच दिन पहले और पांच दिन बाद तक मुख्यत: आत्महत्या की संभावना भावना बनती है। इस काल में पूरे विश्व में आत्महत्या की घटना में काफी बढ़ोतरी होती है। चंद्रमा इस दौरान पृथ्वी के नजदीक रहता है चूंकि चंद्रमा मन का कारक ग्रह है। कुंडली में चंद्रमा अशुभ स्थिति में रहने से लोग अवसाद में चले जाते हैं और आत्महत्या कर सकते हैं ।
आत्महत्या करने वालों में 6. प्रतिशत से अधिक लोग अवसाद या किसी न किसी मानसिक रोग से ग्रस्त होते हैं।
जानिए अचानक बढ़ती आत्महत्या के कारक/कारण को समझने का प्रयास करें —
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ज्योतिषशास्त्र में कुल 9 ग्रह बताए गए हैं जिनका प्रभाव हमारे जीवन और समाज पर होता है। इनमें 2 ग्रह राहु केतु हमेशा वक्री यानी उलटी चाल से चलते हैं और सूर्य एवं चंद्रमा हमेशा सीधी चाल से चलते हैं। बाकी 5 ग्रह व्रकी और मार्गी होते रहते हैं।
सूर्य और चंद्रमा ऐसे दो ग्रह हैं जो कभी वक्री नहीं होते हैं। जबकि राहु और केतु सदैव वक्री चाल चलते हैं। साल 2020 में पांच ग्रह वक्री होंगे। ये पांच ग्रह मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र और शनि हैं।
इस वर्ष मई जून में ग्रहों का अजब संयोग बना है जब राहु केतु के अलाव चार और ग्रह वक्री यानी उलटी चाल से चलेंगें इसे ग्रहों की प्रतिगामी चाल भी कहते हैं। इस बीच काल सर्प योग भी प्रभावी रहेगा। ज्योतिषीय दृष्टि से ग्रहों की ऐसी स्थिति शुभ नहीं होती है।
किसी भी वक्री ग्रह का प्रभाव राशि पर उसके संबंधानुसार पड़ता है। कोई भी ग्रह चाहें वक्री हो या फिर मार्गी, वह अपनी उच्च राशि में अच्छा फल देता है, जबकि नीच राशि में वह अशुभ फलकारी होता है।
पूरी दुनिया इन दिनों कोरोनो के गंभीर संकट का सामना कर रही है ।
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विगत 11 मई को शनि अपनी राशि मकर में वक्री हो जाएंगे। इसके बाद 1. मई से शुक्र और फिर 14 मई 2020 से देव गुरु बृहस्पति भी वक्री हो चुके हैं। इसके अलावा, 18 जून को बुध उलटी चाल से चलने लगेंगे।
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गौरतलब है कि 18 जून से 25 जून 2020 के बीच ये चारों ग्रह एक ही समय पर प्रतिगामी यानी वक्र रहेंगे। ग्रहों की यह स्थिति 15 जुलाई 2020 तक कालपुरुष कुंडली में बने काल सर्प दोष के साथ परस्पर व्याप्त होती है जिसका परिणाम चिंताजनक हो सकता है।
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बुध 18 जून 2020 से 12 जुलाई 2020 के बीच वृषभ राशि में वक्री रहेंगे। इस समय के दौरान कोरोनो वायरस के प्रभावों से निपटने के लिए नए विचार और समाधान सामने आ सकते हैं। पड़ोसियों देशों के साथ संवाद में व्यवधान आ सकता है। यह भी गौरतलब है कि 18 जून से 25 जून 2020 के बीच चार ग्रह – शनि, बृहस्पति, शुक्र और बुध – एक ही समय में प्रतिगामी गति में होंगे जो भ्रम और अराजकता पैदा कर सकते हैं।
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शनि 11 मई 2020 से 29 सितंबर 2020 तक मकर राशि में वक्री रहेंगे जो भारत की कुंडली के नौवें भाव में है। शनि का प्रतिगमन जिम्मेदारियों और काम के बोझ के साथ एक कठिन अवधि को दर्शाता है।
इसके बाद लगातार 34 दिनों तक गुरु, शुक्र, शनि और राहु-केतु ये 5 ग्रह वक्री रहेंगे। 18 जून 2020 को बुध भी अपनी स्वराशि मिथुन में वक्री हो जाएगा। इस तरह 6 ग्रहों वक्री हो जाएंगे।शनि का प्रतिगमन जिम्मेदारियों और काम के बोझ के साथ एक कठिन अवधि को दर्शाता है।
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7 दिनों के लिए 6 ग्रह रहेंगे वक्री–
ज्योतिष में ग्रहों की दो स्थितियां बताई गई हैं। एक मार्गी और दूसरी वक्री। मार्गी में ग्रह सीधा चलता है यानी आगे बढ़ता है। जबकि वक्री स्थिति में ग्रह टेढ़ा या उल्टा चलता है यानी पीछे की ओर चलने लगता है। 18 जून से 25 जून 2020 तक 7 दिनों के लिए 6 ग्रह वक्री रहेंगे। इसके बाद 25 जून की रात शुक्र ग्रह वृषभ राशि में मार्गी हो जाएगा। इसके बाद पांच ग्रह वक्री रह जाएंगे।
अनुसार इन ग्रहों के वक्री होने से दुनियाभर में महामारी का असर कम हो सकता है। अर्थ व्यवस्था में सुधार के भी योग बन रहे हैं।
21 जून 2020 को सूर्य ग्रहण के दिन बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु, केतु वक्री रहेंगे. इसके चलते वैश्विक परिदृश्य में अनर्थ होने के संकेत मिल रहे हैं. कुछ देशों के बीच युद्ध जैसे हालात उत्पन्न हो सकते हैं, लेकिन मंगल के कारण युद्ध टल सकता है. लेकिन राहु की उल्टी चाल राजनीतिक उथल-पुथल के संकेत दे रही है।
21 जून 2020 को लगने वाला यह ग्रहण स्वतंत्र भारत की कुंडली के दृष्टिगत देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलने के संकेत दे रहा है और लघु उद्योगों के पुनर्जीवित होने व रफ्तार पकड़ने की संभावनाओं को भी दर्शा रहा है। कृषि व बागवानी सेक्टर के लिए भी यह बहुत शुभ रहेगा। देश की अर्थव्यवस्था पटरी पर आने लगेगी। रियल एस्टेट में शिथिलता रहेगी लेकिन हेल्थ व आईटी सेक्टर मजबूत होगा। विश्व में भारत की साख भी बढ़ेगा।
ग्रह स्थितियां समाजिक विद्वेष, आर्थिक मंदी, प्राकृतिक आपदा, भूकंप, विमान अथवा रेल दुर्घटना, अतिवृष्टि की ओर इशारा कर रही है. राहु कुछ राज्यों में अचानक सत्ता परिवर्तन करा सकते हैं। 21 जून 2020 को नवम स्थान में स्वगृही शनि व गुरू के बीच चांडाल योग का निर्माण कर रहा है. मिथुन राशि में एक साथ 6 ग्रह, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु, केतु वक्री रहेंगें. यह संयोग बहुत बड़ा अनिष्टकारी हो सकता हैं. कोरोना संकट के बीच राजनैतिक अस्थिरता, समाजिक विद्वेष, आर्थिक एवं स्वास्थ्य संबंधित समस्या को बढाने वाला हो सकता है.।
इस समय विशेषकर युवाआें को सावधानी रखनी होगी। क्योंकि ज्ञान के दाता गुरु आैर बुद्धि के दाता बुध के पीड़ित होने से इन दोनों के प्रभाव में कमी आएगी। इससे लोग डिप्रेशन का शिकार हो सकते हैं। ऐसे में आवेश में आकर कोई फैसला न लें। किसी भी तरह की परेशानी हो तो प्रियजन और परिजन से सलाह जरूर लें,अन्यथा नुकसान उठाना पड़ सकता है।
ज्योतिषाचार्य पं. दयानन्द शास्त्री जी ने बताया कि इस समय अधिकांश ग्रहों की चाल वक्री हो गई है। इतना ही नहीं वक्री बृहस्पति राहु के साथ चांडाल योग बनाए हुए है। ज्ञान का कारक ग्रह गुरु वक्री होकर चांडाल योग में राहु से पीड़ित है। इसके चलते कुछ मानवों पर ज्ञान का प्रभाव लगभग समाप्त हो जाएगा। बुद्धि दाता ग्रह बुध भी शत्रु राशि में वक्री होकर पीड़ित है तथा सूर्य भी पीड़ित हैं, जिसके कारण ज्ञान और विवेक की कमी होगी जिससे लोग खासतौर पर युवा वर्ग डिप्रेशन में आएगा और आत्महत्या के प्रयास तक करेगा।
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ग्रह स्थिति कृत अल्पायु योग: —
शनि तुला के नवांश में हो और उस पर गुरु की दृष्टि हो, तो बालक 13 वर्ष की आयु तक जीता है। शनि वक्री हो और राहु के साथ 12 वें भाव में हो, तो 13 वर्ष की आयु होती है। बृहस्पति के नवांश में स्थित शनि पर राहु की दृष्टि हो और लग्नेश पर शुभ ग्रह की दृष्टि न हो तो बालक अल्पायु होता है, पर यदि लग्नेश उच्च का हो तो 19 वर्ष आयु होती है।
शनि द्विस्वभाव राशिगत होकर लग्न में हो, द्वादशेश व अष्टमेश केंद्र में हांे और लग्नेश बलहीन हो तो 30 से 32 की वर्ष आयु होती है। लग्नेश व अष्टमेश अष्टमस्थ हो व उनके साथ पाप ग्रह हो तो जातक की आयु 27 वर्ष की होगी। सूर्य, चंद्र व शनि अष्टम भाव में हो तो 29 वर्ष की आयु होगी। क्रूर ग्रहों से घिरा सूर्य लग्नस्थ हो तो 31 वर्ष की आयु होगी।
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हमारे ऋषि-महर्षियों ने बहुत पहले ही ज्योतिष गणना के आधार पर जीवन और मृत्यु के बारे में ग्रहों के कुछ योग बताएं है जिसके आधार जाना जा सकता है कि जातक की कितने वर्ष जियेगा या मृत्यु कैसे, किस प्रकार, और कब होगी।
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ऐसे योग जिनसे लंबी आयु का पता लगता है
1- यदि किसी जातक की कुंडली के लग्न अथवा प्रथम भाव में शुक्र स्थित है और प्रथम, चतुर्थ, सप्तम या दशम भाव में गुरु हो तथा अष्टम भाव में कोई पाप ग्रह नहीं है तो उसकी आयु 120 वर्ष होती है।
2- किसी व्यक्ति की कुंडली में अष्टम यानी आठवें भाव या लग्न (प्रथम) भाव में कोई पाप ग्रह न हो और अन्य ग्रहों की स्थिति भी अच्छी हो तो वह व्यक्ति कम से कम 108 वर्ष का जीवन जीता है। अर्थात यदि किसी की कुंडली के प्रथम, चतुर्थ, सप्तम या दशम भाव में गुरु हो तो वह व्यक्ति की 108 वर्ष की आयु होगी और उम्र भर स्वस्थ भी रहता हैं।
3- यदि किसी जातक की कर्क लग्न की कुंडली बनती हैं और उसके प्रथम भाव में गुरु एवं शुक्र हो और अष्टम भाव में कोई पाप ग्रह नहीं है तो वह व्यक्ति 100 से अधिक शतायु जीवन जीता है। साथ ही यदि कर्क लग्न की कुंडली के प्रथम भाव में चंद्र और गुरु स्थित हो और अष्टम भाव में कोई पाप ग्रह नहीं है तो भी उस व्यक्ति की आयु 100 वर्ष से अधिक होती है।
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जानिए मृत्यु का रहस्य को–
जन्म कुंडली में लग्न चक्र और नवांश को देखकर यह बताया जा सकता है की मृत्यु कैसे होगी।
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1- जन्म के समय के आकाशीय ग्रह योग मानव के जन्म-मृत्यु का निर्धारण करते हैं। चंद्र की कलाओं में अस्थिरता के कारण ज्यादातर आत्महत्यों की घटनाएं अक्सर एकादशी, अमावस्या तथा पूर्णिमा तिथियों में या इनके आस-पास होती है, यदि बुध और शुक्र अष्टम भाव में हो तो जातक की मृत्यु नींद में होती है। अगर लग्नेश का नवांश मेष हो तो जातक की पितृदोष, पीलिया, गंभीर ज्वर, जठराग्नि आदि से संबंधित बीमारियों से मृत्यु होती है।
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2- आत्महत्या या हत्या के कारणः- यदि मकर या कुंभ राशिस्थ चंद्र दो पापग्रहों के मध्य हो तो जातक की मृत्यु फांसी, आत्महत्या या अग्नि से होती है और चतुर्थ भाव में सूर्य एवं मंगल तथा दशम भाव में शनि हो तो जातक की मृत्यु फांसी से होती है। यदि अष्टम भाव में एक या अधिक अशुभ ग्रह हों तो जातक की मृत्यु हत्या, आत्महत्या, गंभीर बीमारी या दुर्घटना के कारण होती है।
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3- दुर्घटना के कारण मृत्यु योग:-
जिस जातक के जन्म लग्न से चतुर्थ और दषम भाव में से किसी एक में सूर्य और दूसरे में मंगल हो उसकी मृत्यु पत्थर से चोट लगने के कारण होती है।, यदि शनि, चंद्र और मंगल क्रमशः चतुर्थ, सप्तम और दशम भाव में है तो जातक की मृत्यु कुएं में गिरने से होती है, और यदि सूर्य और चंद्र दोनों कन्या राशि में हों और पाप ग्रह से दृष्ट हों तो जातक की उसके घर में परिवार के सदस्यों के सामने मृत्यु होती है।
यदि चंद्र मेष या वृश्चिक राशि में दो पाप ग्रहों के मध्य स्थित हो तो जातक की मृत्यु शस्त्र या अग्नि दुर्घटना से होती है। यदि चंद्र या गुरु जल राशि (कर्क, वृश्चिक या मीन) में अष्टम भाव में स्थित हो और साथ में राहु हो तथा उसे पाप ग्रह देखता हो तो सर्पदंश से मृत्यु होती है। अष्टमेश पर मंगल का प्रभाव हो, तो जातक गोली से और शनि की दृष्टि अष्टमेश पर हो और लग्नेश भी वहीं हो तो ट्रेन, गाड़ी, जीप, मोटर आदि वाहन दुर्घटना से मौत होती है।
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यदि सूर्य लग्न में पाप ग्रहों से घिरा हो और गुरु मिथुन राशि में अष्टम भाव में हो तो 37 वर्ष की आयु होगी। लग्न द्विस्वभाव राशि में, गुरु केंद्र में और शनि दशम भाव में हो तो 44 वर्ष यदि चर राशि पर लग्नेश और अष्टमेश अथवा लग्न चंद्र व लग्न होरा स्थिर राशि हो तो जातक दीर्घायु होता है। यदि लग्नेश और अष्टमेश अथवा लग्नचंद्र या होरा चर व स्थिर राशिगत हो तो मध्यम आयु योग होता है। चर व द्विस्वभाव राशिगत हो तो अल्पायु योग होता है।
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महर्षि जैमिनी के अनुसार प्रस्तारक चक्र के माध्यम से आयु विचार दीर्घायु मध्यायु अल्पायु लग्न, अष्टमेश चर रशि चर राशि चर राशि लग्न चंद्र, लग्न होरा चर राशि स्थिर राशि द्विस्वभाव लग्नेश, अष्टमेश स्थिर स्थिर राशि स्थिर राशि लग्न चंद्र, लग्न होरा द्विस्वभाव चर स्थिर लग्नेश, अष्टमेश द्विस्वभाव द्विस्वभाव द्विस्वभाव लग्न चंद्र, लग्न होरा द्विस्वभाव द्विस्वभाव चर राशि की आयु होती है।
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विभिन्न राशियों में लग्नेश के नवांश से मृत्यु का ज्ञान: लग्नेश का नवांश मेष हो तो पितृदोष, पीलिया, ज्वर, जठराग्नि आदि से संबंधित बीमारी से मृत्यु होती है। लग्नेश का नवांश वृष हो तो एपेंडिसाइटिस, शूल या दमा आदि से मृत्यु होती है। लग्नेश मिथुन नवांश में हो तो मेनिन्जाइटिस, सिर शूल, दमा आदि से मृत्यु होती है। लग्नेश कर्क नवांश में हो तो वात रोग से मृत्यु हो सकती है। लग्नेश सिंह नवांश में हो तो व्रण, हथियार या अम्ल से अथवा अफीम, मय आदि के सेवन से मृत्यु होती है। कन्या नवांश में लग्नेश के होने से बवासीर, मस्से आदि रोग से मृत्यु होती है।
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तुला नवांश में लग्नेश के होने से घुटने तथा जोड़ांे के दर्द अथवा किसी जानवर के आक्रमण चतुष्पद (पशु) के कारण मृत्यु होती है। लग्नेश वृश्चिक नवांश में हो तो संग्रहणी, यक्ष्मा आदि से मृत्यु होती है। लग्नेश धनु नवांश में हो तो विष ज्वर, गठिया आदि के कारण मृत्यु हो सकती है। लग्नेश मकर नवांश में हो तो अजीर्ण, अथवा, पेट की किसी अन्य व्याधि से मृत्यु हो सकती है। लग्नेश कुंभ नवांश में हो तो श्वास संबंधी रोग, क्षय, भीषण ताप, लू आदि से मृत्यु हो सकती है। लग्नेश मीन नवांश में हो धातु रोग, बवासीर, भगंदर, प्रमेह, गर्भाशय के कैंसर आदि से मृत्यु होती है।
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अरिष्ट महादशा:—
जब द्वादशेश में द्वितीयेश की अंतर्दशा आए। अष्टमेश भाव 6, 8 या 12 में हो तो अष्टमेश की दशा-अंतर्दशा में और दशमेश के बाद के ग्रह की अंतर्दशा मंे मृत्यु होती है। दशमेश, अष्टमेश, लग्नेश या शनि यदि निर्बल हो, तो उसकी अंतर्दशा अरिष्टकारी होती है। षष्ठेश व अष्टमेश पाप ग्रह हों और शत्रु ग्रह से दृष्ट हों तो उनकी अंतर्दशा में मृत्यु होगी। अश्विनी, मूल और मघा नक्षत्रों में केतु महादशा में मंगल का अंतर अरिष्टकारी होगा। भरणी, पूर्वाषाढ़ा और पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्रों में शुक्र महादशा में बृहस्पति की दशा अरिष्टकारी होती है। मृगशिरा, चित्रा और धनिष्ठा नक्षत्रों में मंगल व शनि की महादशा अरिष्टकारी होती है। अश्लेषा, रेवती और ज्येष्ठा नक्षत्रों में जन्म महादशा और बुध तथा राहु की दशा अरिष्टकारी होती है।
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आत्महत्या के कारण मृत्यु योग —
जन्म कुंडली में निम्न स्थितियां हों तो जातक आत्महत्या की तरफ उन्मुख होता है। लग्न व सप्तम स्थान में नीच ग्रह हो। अष्टमेश पाप ग्रह शनि राहु से पीड़ित हो। अष्टम स्थान के दोनों तरफ अर्थात् सप्तम व नवम् भाव में पापग्रह हों। चंद्र पाप ग्रह से पीड़ित हो, उच्च या नीच राशिस्थ हो अथवा मंगल व केतु की युति में हो। सप्तमेश और सूर्य नीच भाव का हो तथा राहु शनि से दृष्टि संबंध रखता हो। लग्नेश व अष्टमेश का संबंध व्ययेश से हो। मंगल व षष्ठेश की युति हो, तृतीयेश, शनि और मंगल अष्टम में हों। अष्टमेश यदि जल तत्वीय हो तो जातक पानी में डूबकर और यदि अग्नि तत्वीय हो तो जल कर आत्महत्या करता है। कर्क राशि का मंगल अष्टम भाव में हो तो जातक पानी में डूबकर आत्महत्या करता है।
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हत्या या आत्महत्या के कारण होने वाली मृत्यु के अन्य योग: —
यदि मकर या कुंभ राशिस्थ चंद्र दो पापग्रहों के मध्य हो तो जातक की मृत्यु फांसी, आत्महत्या या अग्नि से होती है। चतुर्थ भाव में सूर्य एवं मंगल तथा दशम भाव में शनि हो तो जातक की मृत्यु फांसी से होती है। यदि अष्टम भाव में एक या अधिक अशुभ ग्रह हों तो जातक की मृत्यु हत्या, आत्महत्या, बीमारी या दुर्घटना के कारण होती है। यदि अष्टम भाव में बुध और शनि स्थित हों तो जातक की मृत्यु फांसी से होती है। यदि मंगल और सूर्य राशि परिवर्तन योग में हों और अष्टमेश से केंद्र में स्थित हों तो जातक को सरकार द्वारा मृत्यु दण्ड अर्थात् फांसी मिलती है। शनि लग्न में हो और उस पर किसी शुभ ग्रह की दृष्टि न हो तथा सूर्य, राहु और क्षीण चंद्र युत हों तो जातक की गोली या छुरे से हत्या होती है।
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यदि नवांश लग्न से सप्तमेश, राहु या केतु से युत हो तथा भाव 6, 8 या 12 में स्थित हो तो जातक की मृत्यु फांसी लगाकर आत्महत्या कर लेने से होती है। यदि चंद्र से पंचम या नवम राशि पर किसी अशुभ ग्रह की दृष्टि या उससे युति हो और अष्टम भाव अर्थात 22वें द्रेष्काण में सर्प, निगड़, पाश या आयुध द्रेष्काण का उदय हो रहा हो तो जातक फांसी लगाकर आत्महत्या करने से मृत्यु को प्राप्त होता है। चैथे और दसवें या त्रिकोण भाव में अशुभ ग्रह स्थित हो या अष्टमेश लग्न में मंगल से युत हो तो जातक फांसी लगाकर आत्महत्या करता है।
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दुर्घटना के कारण मृत्यु योग —
जिस जातक के जन्म लग्न से चतुर्थ और दषम भाव में से किसी एक में सूर्य और दूसरे में मंगल हो उसकी मृत्यु पत्थर से चोट लगने के कारण होती है। यदि शनि, चंद्र और मंगल क्रमशः चतुर्थ, सप्तम और दशम भाव में हो तो जातक की मृत्यु कुएं में गिरने से होती है। सूर्य और चंद्र दोनों कन्या राशि में हों और पाप ग्रह से दृष्ट हों तो जातक की उसके घर में बंधुओं के सामने मृत्यु होती है। यदि कोई द्विस्वभाव राशि लग्न में हो और उस में सूर्य तथा चंद्र हों तो जातक की मृत्यु जल में डूबने से होती है।
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यदि चंद्र मेष या वृश्चिक राशि में दो पाप ग्रहों के मध्य स्थित हो तो जातक की मृत्यु शस्त्र या अग्नि दुर्घटना से होती है। जिस जातक के जन्म लग्न से पंचम और नवम भावों में पाप ग्रह हों और उन दोनों पर किसी भी शुभ ग्रह की दृष्टि नहीं हो, उसकी मृत्यु बंधन से होती है। जिस जातक के जन्मकाल में किसी पाप ग्रह से युत चंद्र कन्या राशि में स्थित हो, उसकी मृत्यु उसके घर की किसी स्त्री के कारण होती है। जिस जातक के जन्म लग्न से चतुर्थ भाव में सूर्य या मंगल और दशम में शनि हो, उसकी मृत्यु चाकू से होती है।
वैसे तो डिप्रेशन के कारण कमजोर मन, असफलता और आसक्ति हो जाती है अर्थात जो हम चाहते हैं, उसके विपरीत घटनाओं का होना हमें अवसाद की तरफ ले जाता है l
जीवन में संघर्ष तो सभी के साथ होता है परन्तु जिनकी जन्मपत्रिका में कमजोर और पीड़ित चंद्रमा होता है वो सफलता के शिखिर पर पहुंचकर भी कभी-कभी मन से हार जाते हैं l
किसी व्यक्ति के जीवन में अवसाद या डिप्रेशन के लिए मुख्य रूप से जो ग्रह उत्तरदायी होते हैं, उनमें कमजोर चंद्रमा, राहु व शनि की भूमिका मुख्य होती है।
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सूर्य आत्मा का व चन्द्रमा मन का कारक होता है। जन्म पत्रिका का लग्न भाव शरीर और मस्तिष्क का परिचायक होता है। ऐसे में यदि लग्न पर अशुभ ग्रहों का प्रभाव हो या चन्द्रमा अशुभ प्रभाव में हो और लग्न, लग्नेश या चन्द्र पर राहु या शनि का प्रभाव हो और इन ग्रहों पर किसी शुभ ग्रहों का प्रभाव न हो तो इस प्रकार की ग्रह स्थिति जातक को अवसादग्रस्त करने में सहायक होती है।
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जन्मकुंडली में आठवां स्थान मृत्यु का स्थान—
किसी भी जन्मकुंडली में आठवां स्थान मृत्यु का स्थान कहलाता है। इस भाव में मौजूद विभिन्न् ग्रह स्थितियों को देखकर पता लगाया जा सकता है कि व्यक्ति की मृत्यु किन कारणों से और कैसे होगी।
वैदिक ज्योतिष के अनुसार चंद्रमा मन का प्रतिनिधि ग्रह है। यह मनुष्य के विचारों को नियंत्रित करता है।
बुध मनुष्य की निर्णय लेने की क्षमता को नियंत्रित करता है। कौन व्यक्ति किस मुद्दे पर क्या निर्णय लेगा यह बुध से तय होता है। बुध यदि किसी पापी ग्रह से पीड़ित है तो यह व्यक्ति को भ्रमित करता है और इससे निर्णय क्षमता प्रभावित होती है। कई मामलों में यह व्यक्ति को आत्महत्या तक के लिए उकसाता है।
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व्यक्ति का अस्तित्व धरती पर कितने समय तक—
शनि से यह तय होता है कि व्यक्ति का अस्तित्व धरती पर कितने समय तक रहेगा। यदि शनि आठवें भाव से संबद्ध है तो व्यक्ति दीर्घायु होता है। लेकिन यदि शनि कमजोर है तो व्यक्ति बीमारियों से घिरा रहता है और कम आयु में ही उसकी मृत्यु हो जाती है।
केवल सूर्य एकमात्र ऐसा ग्रह है जो व्यक्ति को कभी गलत कार्य करने के लिए नहीं उकसाता। खासकर आत्महत्या जैसे कदम सूर्य नहीं उठाने देता है। जिस व्यक्ति की जन्मकुंडली में सूर्य मजबूत है उसमें भरपूर आत्मविश्वास होता है और उसमें कभी भी कोई नकारात्मक विचार, दुखी करने वाले विचार नहीं आते।
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आठवें भाव में बुध की विभिन्न् ग्रहों से युति के कारण आत्महत्या—
ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री जी बताते हैं की बुध व्यक्ति की निर्णय क्षमता को प्रभावित करता है। यदि बुध पापी ग्रहों से घिरा हुआ है तो व्यक्ति निश्चित रूप से आत्महत्या करता है। आइए जानते हैं बुध की किन दूषित ग्रहों से युति होने का क्या असर होता है और व्यक्ति की मौत किन परिस्थितियों में होती है
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जब केतु की युति या दृष्टि संबंध बुध के साथ राहु होता हैं —
बुध के साथ राहु की युति होने पर व्यक्ति जहर खाकर अपनी जान दे देता है। जिस व्यक्ति की कुंडली में बुध और राहु की युति हो रही हो वह जहरीला पदार्थ पी लेता है। कीटनाशकों का सेवन कर अपनी जान दे देता है या फिर किसी ऊंची बिल्डिंग से छलांग लगा देता है।
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बुध के साथ केतु :
किसी व्यक्ति की जन्मकुंडली में बुध के साथ केतु की युति या दृष्टि संबंध बन रहा हो तो ऐसा व्यक्ति किसी तीर्थ स्थल पर आत्महत्या करता है। ऐसा व्यक्ति नींद की अधिक गोलियां खाकर या कोई केमिकल पीकर आत्महत्या कर बैठता है।
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बुध के साथ शनि:
शनि का संबंध वाहनों से है, इसलिए कुंडली में शनि और बुध की युति हो तो व्यक्ति तेज गति से वाहन चलाकर खुद की मौत का जिम्मेदार बनता है। ऐसा व्यक्ति रेलवे पटरी पर लेटकर जान दे देता है, खुद पर चाकू से वार कर लेता है या फांसी लगा लेता है।
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मंगल का संबंध हथियारों से है
बुध के साथ शुक्र
इन दोनों ग्रहों की युति के कारण व्यक्ति मौत का ऐसा रास्ता चुनता है जिसमें उसे अधिक तकलीफ न हो। जैसे जहर पीकर या नींद की गोलियां खाकर सो जाता है।
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बुध के साथ गुरु :
इन दोनों ग्रहों की युति जिन लोगों की कुंडली में होती है ऐसे व्यक्ति की मौत योगाभ्यास के दौरान होती है। ऐसा व्यक्ति योग के दौरान जीव समाधि या प्राणायाम प्रक्रिया करके मौत को गले लगा लेता है।
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बुध के साथ मंगल :
मंगल का संबंध हथियारों से है। जिस व्यक्ति की कुंडली में मंगल के साथ बुध की युति हो या दृष्टि संबंध हो तो वह तेज धारदार हथियार से खुद की गर्दन, कलाई काट लेता है या पिस्टल से गोली मार लेता है। ऐसा व्यक्ति आत्मदाह कर लेता है या बिजली का करंट लगा लेता है।
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बुध के साथ चंद्र :
चंद्र का संबंध जल से है, इसलिए जिस व्यक्ति की कुंडली में बुध और चंद्र की युति हो रही हो वह तालाब, नदी, कुएं या समुद्र में डूबकर जान दे देता है।
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जानिए दुर्घटना के कारण होने वाले मृत्यु योग को —
जिस जातक के जन्म लग्न से चतुर्थ और दषम भाव में से किसी एक में सूर्य और दूसरे में मंगल हो उसकी मृत्यु पत्थर से चोट लगने के कारण होती है।
यदि शनि, चंद्र और मंगल क्रमशः चतुर्थ, सप्तम और दशम भाव में हो तो जातक की मृत्यु कुएं में गिरने से होती है।
सूर्य और चंद्र दोनों कन्या राशि में हों और पाप ग्रह से दृष्ट हों तो जातक की उसके घर में बंधुओं के सामने मृत्यु होती है।
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यदि कोई द्विस्वभाव राशि लग्न में हो और उस में सूर्य तथा चंद्र हों तो जातक की मृत्यु जल में डूबने से होती है।
यदि चंद्र मेष या वृश्चिक राशि में दो पाप ग्रहों के मध्य स्थित हो तो जातक की मृत्यु शस्त्र या अग्नि दुर्घटना से होती है।
जिस जातक के जन्म लग्न से पंचम और नवम भावों में पाप ग्रह हों और उन दोनों पर किसी भी शुभ ग्रह की दृष्टि नहीं हो, उसकी मृत्यु बंधन से होती है।
जिस जातक के जन्मकाल में किसी पाप ग्रह से युत चंद्र कन्या राशि में स्थित हो, उसकी मृत्यु उसके घर की किसी स्त्री के कारण होती है।
जिस जातक के जन्म लग्न से चतुर्थ भाव में सूर्य या मंगल और दशम में शनि हो, उसकी मृत्यु चाकू से होती है।
जिस जातक के जन्मकाल में अष्टम भाव में क्षीण चंद्र, दशम भाव में मंगल, लग्न में शनि और चतुर्थ भाव में सूर्य स्थित हों, उसकी मृत्यु लाठी के प्रहार आदि से होती है।
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यदि दशम भाव में क्षीण चंद्र, नवम में मंगल, लग्न में शनि और पंचम में सूर्य हो तो जातक की मृत्यु अग्नि, धुआं, बंधन या काष्ठादि के प्रहार के कारण होती है।
जिस जातक के जन्म लग्न से चतुर्थ भाव में मंगल, सप्तम में सूर्य और दशम में शनि स्थित हो तो उसकी मृत्यु शस्त्र या अग्नि दुर्घटना से होती है।
जिस जातक के जन्म लग्न से दशम भाव में सूर्य और चतुर्थ में मंगल स्थित हो उसकी मृत्यु सवारी से गिरने से या वाहन दुर्घटना में होती है।
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यदि लग्न से सप्तम भाव में मंगल और लग्न में शनि, सूर्य एवं चंद्र हों उसकी मृत्यु मशीन आदि से होती है।
यदि मंगल, शनि और चंद्र क्रम से तुला, मेष और मकर या कुंभ में स्थित हों तो जातक की मृत्यु विष्ठा में गिरने से होती है।
मंगल और सूर्य सप्तम भाव में, शनि अष्टम में और क्षीण चंद्र में स्थित हो उसकी मृत्यु पक्षी के कारण होती है।
यदि लग्न में सूर्य, पंचम में मंगल, अष्टम में शनि और नवम में क्षीण चंद्र हो तो जातक की मृत्यु पर्वत के शिखर या दीवार से गिरने अथवा वज्रपात से होती है।
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सूर्य, शनि, चंद्र और मंगल लग्न से अष्टमस्थ या त्रिकोणस्थ हों तो वज्र या शूल के कारण अथवा दीवार से टकराकर या मोटर दुर्घटना से जातक की मृत्यु होती है।
चंद्र लग्न में, गुरु द्वादश भाव में हो, कोई पाप ग्रह चतुर्थ में और सूर्य अष्टम में निर्बल हो तो जातक की मृत्यु किसी दुर्घटना से होती है।
यदि दशम भाव का स्वामी नवांशपति शनि से युत होकर भाव 6, 8 या 12 में स्थित हो तो जातक की मृत्यु विष भक्षण से होती है।
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यदि चंद्र या गुरु जल राशि (कर्क, वृश्चिक या मीन) में अष्टम भाव में स्थित हो और साथ में राहु हो तथा उसे पाप ग्रह देखता हो तो सर्पदंश से मृत्यु होती है।
यदि लग्न में शनि, सप्तम में राहु और क्षीण चंद्र तथा कन्या में शुक्र हो तो जातक की शस्त्राघात से मृत्यु होती है।
यदि अष्टम भाव तथा अष्टमेश से सूर्य, मंगल और केतु की युति हो अथवा दोनों पर उक्त तीनों ग्रहों की दृष्टि हो तो जातक की मृत्यु अग्नि दुर्घटना से होती है।
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यदि शनि और चंद्र भाव 4, 6, 8 या 12 में हांे तथा अष्टमेश अष्टम भाव में दो पाप ग्रहों से घिरा हो तो जातक की मृत्यु नदी या समुद्र में डूबने से होती है।
लग्नेश, अष्टमेश और सप्तमेश यदि एक साथ बैठे हों तो जातक की मृत्यु स्त्री के साथ होती है।
यदि कर्क या सिंह राशिस्थ चंद सप्तम या अष्टम भाव में हो और राहु से युत हो तो मृत्यु पशु के आक्रमण के कारण होती है।
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दशम भाव में सूर्य और चतुर्थ में मंगल स्थित हो तो वाहन के टकराने से मृत्यु होती है।
अष्टमेश एवं द्वादशेश में भाव परिवर्तन हो तथा इन पर मंगल की दृष्टि हो तो जातक की अकाल मृत्यु होती है।
जब षष्ठ, अष्टम अथवा द्वादश भाव में चंद्र, शनि एवं राहु हों तो जातक की मृत्यु अस्वाभाविक तरीके से होती है। लग्नेश एवं अष्टमेश बलहीन हों तथा मंगल षष्ठेश के साथ हो तो जातक की मृत्यु कष्टदायक होती है।
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अष्टमस्थ राहु पाप ग्रह से दृष्ट हो तो जातक की मृत्यु सर्पदंश से होती है। चंद्र एवं मंगल अष्टमस्थ हों तो जातक की मृत्यु सर्पदंश से होती है। चंद्र, मंगल एवं शनि अष्टमस्थ हों तो मृत्यु शस्त्र से होती है।
जब षष्ठ भाव में लग्नेश एवं अष्टमेश हों तथा षष्ठेश मंगल से दृष्ट हो तो जातक की मृत्यु शत्रु द्वारा या शस्त्राघात से होती है।
जब लग्नेश और अष्टमेश अष्टम भाव में हों तथा पाप ग्रहों से युत दृष्ट हों तो जातक की मृत्यु प्रायः दुर्घटना के कारण होती है।
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जब चतुर्थेश, षष्ठेश एवं अष्टमेश में संबंध हो तो जातक की मृत्यु वाहन दुर्घटना में होती है। अष्टमस्थ केतु 25 वें वर्ष में भयंकर कष्ट अर्थात् मृत्युतुल्य कष्ट देता है। इस स्थिति में भी जातक की अकाल मृत्यु संभव है।
जब अष्टम भाव में चर राशि तथा अष्टमेश चर राशि में हो तो जातक की मृत्यु जन्मस्थान से दूर होती है। क्षीण चंद्र अष्टम भावस्थ हो तो जातक की मृत्यु पानी में डूबने से हो सकती है।
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अष्टम भाव तथा अष्टमेश, षष्ठ भाव तथा षष्ठेश और मंगल, इन सबका परस्पर संबंध हो तो शत्रु द्वारा मृत्यु होती है। यदि उक्त भावों और भावेशों से एकादशेश का भी संबंध हो तो इस योग में और वृद्धि होती है।
यदि क्षीण चंद्र मंगल, शनि या राहु से युत होकर अष्टम भाव में स्थित हो तो जातक की मृत्यु अग्नि या हथियार से अथवा डूबने से होती है।
यदि चंद्र, सूर्य, मंगल एवं शनि भाव 8, 5 या 9 में स्थित हों तो मृत्यु ऊंचाई से गिराने या डूबने से अथवा तूफान या वज्रपात के कारण होती है। यदि चंद्र अष्टम में, मंगल नवम में सूर्य लग्न में एवं शनि पंचम में हो तो मृत्यु वज्रपात के कारण या पेड़ से गिरने से होती है।
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यदि सूर्य अष्टम में, चंद्र लग्न मंे और बृहस्पति द्वादश में हो तो मृत्यु चारपाई से गिरने से होती है।
यदि लग्नेश लग्न से 64 वें नवांश में हो या दबा हुआ हो या षष्ठ भाव में हो तो जातक की मृत्यु भोजन की कमी के कारण होती है।
यदि सूर्य चतुर्थ भाव में, चंद्र दशम में और शनि अष्टम में हो तो मृत्यु लकड़ी की चोट से होती है।
यदि सूर्य, चंद्र और बुध सप्तम भाव में, शनि लग्न में एवं मंगल 12 वें भाव में हो तो जातक की मृत्यु जन्मभूमि से बाहर होती है। यदि सूर्य एवं चंद्र अष्टम या षष्ठ भाव में हों तो मृत्यु खूंखार जानवर द्वारा होती है।
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यदि चंद्र और बुध षष्ठ या अष्टम भाव में युत हों तो मृत्यु जहर से होती है। यदि अष्टम भाव में चंद्र, मंगल, और शनि हों तो जातक की मृत्यु हथियार से होती है।
यदि द्वादश भाव में मंगल और अष्टम भाव में शनि हो तो भी जातक की मृत्यु हथियार द्वारा होती है। यदि षष्ठ भाव में मंगल हो तो भी जातक की मृत्यु हथियार से होती है।
यदि राहु चतुर्थेश के साथ षष्ठ भाव में हो तो मृत्यु डकैती या चोरी के समय उग्र आवेग के कारण होती है। यदि चंद्र मेष या वृश्चिक राशि में पापकर्तरी योग में हो तो जातक जलने से या हथियार के प्रहार से मृत्यु को प्राप्त होता है।
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यदि अष्टम भाव में चंद्र, दशम में मंगल, चतुर्थ में शनि और लग्न में सूर्य हो तो मृत्यु कुंद वस्तु से होती है। यदि सप्तम भाव में मंगल और लग्न में चंद्र तथा शनि हों तो मृत्यु संताप के ।
यदि लग्नेश और अष्टमेश कमजोर हों और मंगल षष्ठेश से युत हो तो मृत्यु युद्ध में होती है। यदि नवांश लग्न से सप्तमेश, शनि से युत हो या भाव 6, 8 या 12 में हो तो मृत्यु जहर खाने से होती है।
यदि चंद्र और शनि अष्टम भाव में हांे और मंगल चतुर्थ में हो या सूर्य सप्तम में अथवा चंद और बुध षष्ठ भाव में हांे तो जातक की मृत्यु जहर खाने से होती है।
यदि शुक्र मेष राशि में, सूर्य लग्न में और चंद्र सप्तम भाव में अशुभ ग्रह से युत हो तो स्त्री के कारण मृत्यु होती है।
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यदि लग्न स्थित मीन राशि में सूर्य, चंद्र और अशुभ ग्रह हों तथा, अष्टम भाव में भी अशुभ ग्रह हों तो दुष्ट स्त्री के कारण मृत्यु होती है।
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उपाय–
– चंद्र के लिये सफेद वस्तु का दान व चंद्र के बीज मंत्रो का जाप दीर्घायु प्रदान करता हैं।
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– जन्म कुंडली के अष्टमेष का पूजन व दान, दुर्घटना आदि से बचाव करता हैं।
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देवी की अराधना व दुर्गा कवच का नित्य पाठ आयु में वृद्धि करता हैं।
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– जिस घर में रोजाना घी का दीपक प्रजवलित होता हैं, वहां मृत्यु भय नही होता।
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अगर किसी जातक का मृत्यु योग बन रहा हो तो नियमित 108 बार संपुटयुक्त महा मृत्युंजय मंत्र का रुद्राक्ष की माला से जप करने पर जीवनदान मिलता हैं।
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– महादेव का पूजन करने से व्यक्ति को मृत्यु का भय नही रहता हैं। मारकेश व अष्टमेष की दशा हो तो महामृत्युंजय मंत्र जाप करवाना श्रेष्ट होता हैं।
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संपुटयुक्त महा मृत्युंजय मंत्रः-
ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ !!
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– अगर किसी अपने के लिए दुसरे के लिए जप करना हो तो उसका नाम लेकर लघु मृत्युंजय मंत्र ।। ॐ जूं स माम् पालय पालय स: जूं ॐ।। इस मंत्र का 108 बार रुद्राक्ष की माला से जप करने पर जीवनदान मिलता हैं।
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