अन्न दान क्या, क्यों और कैसे???
जानिए अन्न दान के लाभ एवम प्रभाव को..
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समझें दान का महत्व—
दान एक ऐसा कार्य है, जिसके जरिए हम न केवल धर्म का ठीक-ठीक पालन कर पाते हैं बल्कि अपने जीवन की तमाम समस्याओं से भी निकल सकते हैं. आयु, रक्षा और सेहत के लिए तो दान को अचूक माना जाता है. जीवन की तमाम समस्याओं से निजात पाने के लिए भी दान का विशेष महत्व है. दान करने से ग्रहों की पीड़ा से भी मुक्ति पाना आसान हो जाता है.
जब ज्योतिषियों द्वारा किसी व्यक्ति विशेष की जन्म पत्रिका का आंकलन करने के बाद, जीवन में सुख, समृद्धि एवं अन्य इच्छाओं की पूर्ति हेतु दान कर्म करने की सलाह दी जाती है। दान किसी वस्तु का, भोजन का, और यहां तक कि महंगे आभूषणों का भी किया जाता है।

जो व्यक्ति प्रतिदिन विधिपूर्वक अन्नदान करता है वह संसार के समस्त फल प्राप्त कर लेता है। अपनी सामर्थ्य एवं सुविधा के अनुसार कुछ न कुछ अन्नदान अवश्य करना चाहिए। इससे परम कल्याण की प्राप्ति होती है। विशेष रूप से अन्न का दान जीवन में सम्मान का कारक होता है। अतः जरूरतमंदों को अन्न का दान करना चाहिएए अन्न दान से समस्त पापों की निवृत्ति होकर इस लोक और परलोक में सुख प्राप्त होता है।

ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री जी ने बताया कि अलग -अलग वस्तुओं के दान से अलग-अलग समस्याएं दूर होती हैं, लेकिन बिना सोचे-समझे गलत दान से आपका नुकसान भी हो सकता है. कई बार गलत दान से अच्छे ग्रह भी बुरे परिणाम दे सकते हैं. ज्योतिष के जानकारों की मानें तो वेदों में भी लिखा है कि सैकड़ों हाथों से कमाना चाहिए और हजार हाथों वाला होकर दान करना चाहिए।

कीर्तिभवति दानेन तथा आरोग्यम हिंसया त्रिजशुश्रुषया राज्यं द्विजत्वं चाऽपि पुष्कलम। पानीमस्य प्रदानेन कीर्तिर्भवति शाश्वती अन्नस्य तु प्रदानेन तृप्तयन्ते कामभोगतः।। 

दान से यश, अहिंसा से आरोग्य तथा ब्राह्मणों की सेवा से राज्य तथा अतिशय ब्रह्मत्व की प्राप्ति होती है। जलदान करने से मनुष्य को अक्षय कीर्ति प्राप्त होती है। अन्नदान करने से मनुष्य को काम और भोग से पूर्ण तृप्ति मिलती है। दानी व्यक्ति को जीवन में अर्थ, काम एवं मोक्ष सभी कुछ प्राप्त होता है। कलयुग में कैसे भी दिया गया दान मोक्षकारक होता है। 

तुलसी दासजी ने कहा है- 

प्रगट चार पद धर्म कहि कलिमहि एक प्रधान येन केन विधि दिन्है दान काही कल्याण। 

दान की महिमा का अन्त नहीं संसार से कर्ण जैसा उदाहरण दानी के रूप में कोई नहीं। दान के विषय में चर्चा करने से पूर्व एक बात स्पष्ट करना चाहते है। कमाएं नीति से, खर्च करें रीति से, दान करें प्रीति से।

जब किसी व्यक्ति के लग्न, तीसरे, अष्टम या भाग्य स्थान में शनि तथा उस पर गुरू की किसी भी प्रकार से दृष्टि हो तो भी ऐसे लोग सुविधा सम्पन्न जीवन बिताते हैं। साथ ही यहीं ग्रह योग उन्हें जीवन में सफलता तथा मान भी प्रदान करता है। किन्तु यदि इस प्रकार के योग ना हो और समृधि की कामना हो तो

अन्नं ब्रह्मा रसो विष्णुः।

स्कन्दपुराण के अनुसार अन्न ही ब्रह्मा है और सबके प्राण अन्न मे ही प्रतिष्ठित हैं ण्ण्

अन्नं ब्रह्म इति प्रोक्तमन्ने प्राणाः प्रतिष्ठिताः।

अतः स्पष्ट है कि अन्न ही जीवन का प्रमुख आधार है। इसलिए अन्नदान तो प्राणदान के समान है। अन्नदान को सर्वश्रेष्ठ एवं पुण्यदायक माना गया है। धर्म में अन्नदान के बिना कोई भी जप, तप या यज्ञ आदि पूर्ण नहीं होता है। अन्न एकमात्र ऐसी वस्तु है जिससे शरीर के साथ-साथ आत्मा भी तृप्त होती है। इसीलिए कहा गया है कि अगर कुछ दान करना ही है तो अन्नदान करो। अन्नदान करने से बहुत लाभ होता है। चलिए आपको बताते हैं आखिर क्यों करना चाहिए अन्नदान या अन्नदान के लाभ के बारे में….
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दान हमेशा अपनी इच्छा से करना चाहिए। किसी दबाव में किया गया दान कभी शुभ परिणाम नहीं देता।

दान में जो भी वस्तुएं दी जाएं, वे हमेशा उत्तम श्रेणी की होनी चाहिए या कम से कम वैसी तो हों ही, जैसी आप खुद प्रयोग करते हों। निम्न श्रेणी की वस्तुओं का दान नहीं करना चाहिए।

ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री जी ने बताया कि दान हमेशा उसी व्यक्ति को करें, जो अभावग्रस्त हो और पात्र हो। कुपात्र और संपन्न व्यक्ति को दान करना फलदायी नहीं होता।

अगर दान ब्राह्मण को करना हो तो ध्यान रखें कि ब्राह्मण सात्विक, सदाचारी तथा भगवान का भक्त हो। कुसंस्कारी ब्राह्मण को दान देना निष्फल होता है।

अगर आपको ग्रहों के लिए दान करना है तो उसी ग्रह का दान करें, जो कष्टकारक हो। अनुकूल ग्रहों के लिए दान करना आपको संकट में डाल सकता है।

बाहरी व्यक्ति को दान देने के पूर्व विचार कर लें कि कहीं आपके परिवार में कोई अभाव में तो नहीं है। पहले अपने ऊपर आश्रित की व्यवस्था करें, तब दान करें।

जीवन भर किए गए दुष्कर्मों से मुक्त होने के लिए दान ही सबसे सरल और उत्तम माध्यम माना गया है। वेद और पुराणों में दान के महत्व का वर्णन किया गया है। यही कारण है कि हजारों वर्षों पुराने हिन्दू धर्म में आज भी विभिन्न वस्तुओं को दान करने के संस्कार का पालन किया जाता है। आजकल अमूमन दान कर्म ज्योतिषीय उपायों को मद्देनज़र रख कर किए जाते हैं।
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दान कर्म—

आपने यह तो सुना होगा कि जन्म कुण्डली के विभिन्न ग्रहों को शांत करने के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार के दान कर्म किए जाते हैं। जैसा हमें ज्योतिषी बताते हैं हम उसी अनुसार वस्तुओं का दान करते हैं। लेकिन क्या कभी किसी ज्योतिषी ने आपको बताया है कि किस समय कैसा दान नहीं करना चाहिए?

ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री जी बताते हैं कि हमारे शास्त्रों के अनुसार दुनिया का सबसे बड़ा दान अगर कुछ है तो वह है अन्नदान। यह संसार अन्न से ही बना है और अन्न की सहायता से ही इसकी रचनाओं का पालन हो रहा है। अन्न एकमात्र ऐसी वस्तु है जिससे शरीर के साथ-साथ आत्मा भी तृप्त होती हैं।
पद्मपुराण में इससे संबंधित एक कथा भी मिलती है। एक बार सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी और विदर्भ के राजा श्वेत के बीच संवाद हो रहा होता हैं।

इस संवाद से यह पता चलता है कि व्यक्ति अपनी जीवित अवस्था में जिस भी वस्तु का दान करता है, मृत्यु के बाद वही चीज उसे परलोक में प्राप्त होती है।

राजा श्वेत अपनी कठोर तपस्या के बल पर ब्रह्मलोक तो पहुंच जाते हैं लेकिन अपने जीवनकाल में कभी भोजन का दान ना करने के कारण उन्हें वहां भोजन प्राप्त नहीं होता।
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भगवान शिव—
एक अन्य कथा भी हमारे पुराणों में दर्ज है। जिसके अनुसार एक बार भगवान शिव, ब्राह्मण रूप धारण कर पृथ्वी पर विचरण कर रहे थे।

उन्होंने एक वृद्ध विधवा स्त्री के दान मांग लेकिन उसने कहा कि वह अभी दान नहीं दे सकती क्योंकि वह अभी उपले बना रही है।
जब उस ब्राह्मण ने हठ किया तो उस स्त्री ने गोबर उठाकर ब्राह्मण को दान में दे दिया। जब वह स्त्री परलोक पहुंची तो भोजन मांगने पर उसे खाने के लिए गोबर ही मिला।

जब उसने पूछा कि गोबर क्यों दिया गया है तो जवाब में उसे यही सुनना पड़ा कि उसने भी यही दान में दिया था।

इस तरह से अन्नदान के महत्व को समझा जा सकता है और यह बेहे जाना जा सकता है कि यह अन्न किस तरह जीवन और मृत्यु पर्यंत हमारी आत्मा की संतुष्टि के लिए आवश्यक है।
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अन्न दान के रूप में गरीब और फकीर लोगों को भरपेट खाना खिलाना पुण्य का काम है। इससे मन को सुख और शाति मिलती है। आत्मा खुश रहती है। दान देना मनुष्य जाति का सबसे बड़ा तथा पुनीत क‌र्त्तव्य है। इसे क‌र्त्तव्य समझकर दिया जाना चाहिए और उसके बदले में कुछ पाने की इच्छा नहीं रहनी चाहिए।

इसलिए, जब आप अन्न दान  अर्पण करते हैं, तो आप उनका शरीर, भोजन या अन्न के स्वरूप  उन्हें दे रहे होते हैं। मातृत्व का सबसे महत्वपूर्ण अंश अन्न दान है। दूध पिलाने से लेकर भोजन परोसने तक, आप आपनी माँ से प्रेम इसलिए करते हैं, क्योंकि उन्होंने आपको हमेशा अन्न दान दिया है।  तो, आप अन्न दान के अवसर का लाभ उठाकर, खुद को पूरे विश्व की मां के रूप में रूपांतरित कर सकते हैं। इसे आप हर दिन और जीवन के हर पल में याद रखिये।
अन्न दान भोजन के साथ अपने रिश्ते को चेतना और जागरूकता के निश्चित स्तर पर लाने के लिए एक संभावना है। इसे सिर्फ भोजन के रूप में मत देखियें, यह जीवन है। यह हम सब को समझना बहुत जरूरी है – जब भी आप के सामने भोजन आता है, आप इसें एक वस्तु की तरह न समझें जिसका आप उपयोग कर सकते हैं या फेंक सकते है – यह जीवन है। अगर आप अपने जीवन को विकसित करना चाहते हैं,तो आप को भोजन,जल,वायु और पृथ्वी को जीवन के रूप में देखना होगा – क्योंकि ये वे तत्व है जिससे आपका निर्माण हुआ है।


ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री जी ने बताया कि इस पूरे संसार में भूख से बड़ा दूसरा कोई शत्रु नहीं है, फिर चाहे वह किसी भी भूख हो इंसान या फिर जानवर की l अगर आप जीवन मे दान ही करना चाहते है तो अन्न का दान करें क्योंकि इससे बड़ा दुनिया में कोई दूसरा दान ही नहीं होता है l जब आप किसी को भोजन करा रहे होते है या फिर किसी को अन्न का दान कर रहे होते है तब आप सिर्फ उस व्यक्ति की भूख की तृप्ति नहीं बल्कि उस परमात्मा को संतुष्ट कर रहे होते है जो उस व्यक्ति के शरीर से जुड़ी हुई है l जब आप अन्न दान  अर्पण करते हैं, तो आप उनका शरीर उन्हें दे रहे होते हैं।

अन्न दान भोजन के साथ अपने रिश्ते को चेतना और जागरूकता के निश्चित स्तर पर लाने के लिए एक संभावना है। इसे सिर्फ भोजन के रूप में मत देखियें, यह जीवन है। यह हम सब को समझना बहुत जरूरी है – जब भी आप के सामने भोजन आता है, आप इसें एक वस्तु की तरह न समझें जिसका आप उपयोग कर सकते हैं या फेंक सकते है – यह जीवन है। अगर आप अपने जीवन को विकसित करना चाहते हैं,तो आप को भोजन,जल,वायु और पृथ्वी को जीवन के रूप में देखना होगा – क्योंकि ये वे तत्व है जिससे आपका निर्माण हुआ है। अन्न दान एक तरीका है जिस के द्वारा आप पूरे जुड़ाव के साथ अपने हाथों से, प्रेम और भक्ति के साथ खाना परोसते हुए दूसरे इंसान से गहराई से जुड़ सकते हैं।
हमारे प्राचीन भारतीय शास्त्रों के अनुसार अगर इस संसार में कोई सबसे बड़ा दान है तो वह है अन्न दान l यह संसार अन्न से ही चलता है और अन्न की सहायता से ही इसकी रचनाओं का पालन हो रहा है। अन्न एकमात्र ऐसी वस्तु है जिससे शरीर के साथ-साथ आत्मा भी तृप्त होती है। इसीलिए कहा गया है कि अगर कुछ दान करना ही है तो अन्नदान करो। अन्नदान करने से बहुत लाभ होता है।सभी शास्त्रों में जितने दान और व्रत कहे गए हैं, उनकी तुलना में अन्नदान सबसे श्रेष्ठ है।
अन्न ही तेज, बल और सुख है | इसलिए अन्नदाता प्राणदाता है | भूखा व्यक्ति जिस दुसरे वक्ती के घर आशा करके जाता है और वहाँ से संतुष्ट होकर आता है तो भोजन देनेवाला व्यक्ति धन्य हो जाता है, उसके समान पुण्यकर्मा और कौन होगा ?
 दीक्षा-प्राप्त स्नातक, कपिला गौ, याज्ञिक, राजा, भिक्षु तथा महोदधि – य सब दर्शनमात्र से पवित्र कर देते हैं | इसलिए घर पर आये भूखे व्यक्ति को जो भोजन न दे सके उसका गृहस्थाश्रम व्यर्थ है | अन्न के बिना कोई अधिक समयतक जीवित नहीं रह सकता | मनुष्यों का दुष्कृत अर्थात किया हुआ दूषित कर्म अन्न में प्रविष्ट हो जाता है, इसलिये जो ऐसे व्यक्ति का अन्न खाता हैं, वह अन्न देनेवाले के दुष्कृत का ही भक्षण करता है | इसके विपरीत अमृतमय पवित्र परान्न का भोजन करनेवाले व्यक्ति का एक महीने का किया हुआ पुण्य अन्नदाता को प्राप्त हो जाता है |
 जिस अन्न के दान का इतना महत्त्व है, उसका दान क्यों नहीं करते ? जो व्यक्ति ब्राह्मण-अतिथि आदि को भोजन आदि कराने तथा भिक्षा देने के पूर्व ही स्वयं भोजन कर लेता है, वह केवल पाप ही भक्षण करता है | जिस व्यक्ति ने दस हजार या एक हजार ब्राह्मणों को भोजन कराया है, उसने मानो ब्रह्मलोक में अपना स्थान बना लिया |
ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री जी ने बताया कि इस संसार का मूल अन्न है, प्राण का मूल अन्न है। यह अन्न अमृत बनकर मुक्ति देता है। सात धातुएं अन्न से ही पैदा होती हैं, यह अन्न जगत का उपकार करता है। इसलिए अन्न का दान करना चाहिए। इन्द्र आदि देवता भी अन्न की उपासना करते हैं, वेद में अन्न को ब्रह्मा कहा गया है। सुख की कामना से ऋषियों ने पहले अन्न का ही दान किया था। इस दान से उन्हें तार्किक और पारलौकिक सुख मिला। जो इंसान पूरे विधि-विधान से अन्नदान करता है, उसे पुण्य और यश की प्राप्ति होती है।
अथर्व वेद में कहा गया है—‘शतहस्त समाहर सहस्त्रहस्त सं किर’ अर्थात् ‘सैंकड़ों हाथों से धन अर्जित करो और हजारों हाथों से उसे बांटो।’  वेद में दान करने के लिए धन कमाना मनुष्य के लिए आवश्यक कर्म माना गया है। भारतीय संस्कृति में माना जाता है कि दान से देवता भी वश में हो जाते हैं। दान ईश्वर को प्रसन्नता प्रदान करता है।  
और सब लोग भगवान की खोज करते,
किंतु दानी की खोज भगवान स्वयं करते हैं।।
जीवन में किया हुआ दान अगले जन्मों में सुख एवं आनन्द देने वाला होता है। परलोक में केवल दान ही प्राणी से मित्रता निभाता है। महाभारत के यक्ष-युधिष्ठिर संवाद में यक्ष ने युधिष्ठिर से पूछा कि मरने के बाद साथ क्या जाता है? युधिष्ठिर ने उत्तर दिया कि मरने के बाद दान ही साथ जाता है। भविष्यपुराण में भगवान श्रीकृष्ण युधिष्ठिर से कहते हैं—‘मृत्यु के बाद धन-वैभव व्यक्ति के साथ नहीं जाते, व्यक्ति द्वारा सुपात्र को दिया गया दान ही परलोक में पाथेय (रास्ते का भोजन) बनकर उसके साथ जाता है।’ हम जो भी देते हैं, वह वास्तव में नष्ट नहीं होता बल्कि दुगुना-चौगुना होकर हमें मिलता है।
दान दिया संग लगा,
खाया पिया अंग लगा,
और बाकी बचा जंग लगा।
‘नादत्तं कस्योपतिष्ठते’  अर्थात् बिना दिए किसी को क्या मिलेगा।
जितना बोओगे, उसका कई गुना अधिक पाओगे
महाभारत के अनुशासनपर्व में बताया गया है कि पूर्वजन्म के किन कार्यों के कारण शुभ या अशुभ फल प्राप्त होते हैं।
जिस समय दुर्योधन, कर्ण और शकुनि ने छल से जुए में युधिष्ठिर के राज्य को छीन लिया और पांडव द्रौपदी के साथ वन को जा रहे थे, उस समय प्रजा व ब्राह्मण भी उनके साथ वन में जाने लगे। यह देखकर युधिष्ठिर को बहुत दु:ख हुआ और वे सोचने लगे कि वन में मैं इन सबका पेट कैसे भर सकूंगा। अपना पेट तो सब भर लेते हैं लेकिन उसी व्यक्ति का जीवन सफल है जो अपने कुटुम्ब, मित्र, अतिथि व ब्राह्मणों का पोषण कर सके। युधिष्ठिर ने उन ब्राह्मणों से कहा कि इस निर्जन वन में मुझे बारह वर्ष बिताने हैं अत: ऐसा कोई उपाय बताएं जिससे मेरे परिवार सहित आप लोगों के भोजन का प्रबन्ध हो सके।
साईं इतना दीजिए, जामें कुटुम्ब समाय।
मैं भी भूखा न रहूं, साधु न भूखा जाय।।
तब उन ब्राह्मणों में से मैत्रेय मुनि ने द्रौपदी के पूर्वजन्म की कथा सुनाते हुए युधिष्ठिर से कहा—‘लक्ष्मी रूपी द्रौपदी जहां रह रही हो वहां कोई भी चीज दुर्लभ नहीं है। द्रौपदी अपनी स्थाली (बटलोई, वह पात्र जिसमें भोजन बनाया जाता है) के अन्न से जगत को तृप्त कर सकती है।’

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दान किसको दें ? –
यह भी एक विशिष्ट प्रश्न है। दान देने के मुख्यतः दो नियम हैं जिनका हमें दान देते समय ध्यान रखना चाहिए – प्रथम – श्रद्धा तथा द्वितीय – पात्रता। श्रद्धा से तात्पर्य है कि हमारा कितना मन है अर्थात हमारी कितनी क्षमता है। क्षमता से कम या अधिक दिया गया दान दान नहीं अपितु पाप कहलाता है। इसको हम एक उदाहरण से भली भाँति समझ सकते हैं, यदि किसी जातक की क्षमता पचास रूपये दान करने की है तो उसे पचास रूपये ही दान करने चाहिए। पचास के स्थान पर दस रूपये अथवा सौ रूपये दान करना दान नहीं अपितु पाप है। दान कार्य शुद्ध तथा प्रसन्न मन से किया जाना चाहिए। बिना श्रद्धा के मुसीबत अथवा बोझ समझ कर दान कभी भी नहीं करना चाहिए, इससे तो अच्छा है कि दान कार्य किया ही न जाये। किसी को अहसान जताकर कभी भी दान नहीं देना चाहिए। शुद्ध हृदय से दान देने से अपने हृदय को भी शांति मिलती है तथा दान लेने वाला भी खुश होकर मन से दुआ देता है, यह जरूरी नहीं कि उस दुआ की शब्दों के द्वारा ही अभिव्यक्ति हो। 

ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री जी के अनुसार दान का दूसरा नियम पात्रता है अर्थात हम दान किसको दे रहे हैं वह दान की हुई वस्तु का उपभोग कर पाएगा या नहीं। इस तथ्य को हम इस प्रकार से समझ सकते हैं कि किसी देहात में बान से बुनी चारपाई पर सोने वाले व्यक्ति को शहर में डनलप के गद्दे पर यदि सोने के लिए कहा जाये तो उसे सारी रात नींद नहीं आएगी करवटें ही बदलता रहेगा। इसी प्रकार गरीब भिक्षुक को जो फटे-पुराने वस्त्रों में रहता है यदि नया वस्त्र पहनने को दिया जाये तो वह वस्त्र उसको काटेगा, वह उस वस्त्र को पहन नहीं पाएगा या तो वह उसे बेच देगा या फेंक देगा, उसे तो फटे पुराने घिसे हुये ही वस्त्र पसन्द आएंगे। भरे पेट वाले को भोजन खिलाने से उसके मन से कोई दुआ नहीं निकलती है अपितु यदि भूखे पेट वाले दरिद्र व्यक्ति को भोजन खिलाया जाये तो वह पूर्णतः तृप्त होकर मन से दुआएँ ही देगा। दान भोजन का ही नहीं किसी भी वस्तु का हो सकता है। रोगी के लिए औषधि, अशिक्षित के लिए शिक्षा, भूखे को भोजन, निर्वस्त्र को वस्त्र कहने का तात्पर्य यह है कि जिस के पास जिस वस्तु की कमी है और वह उसको प्राप्त करने में असमर्थ है तो अमुक जातक को अमुक वस्तु की व्यवस्था करा देना भी दान ही श्रेणी में आता है। अतः दान देते समय विशेष ध्यान देना चाहिए कि दान उचित पात्र को ही दिया जाये।
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ग्रहों की मजबूत के लिए—

जन्म कुण्डली में कुछ ग्रहों को मजबूत एवं दुष्ट ग्रहों को शांत करने के लिए तो हम दान-पुण्य करते ही हैं, लेकिन ग्रहों की कैसी स्थिति में हमें कैसा दान नहीं करना चाहिए, यह भी जानने योग्य बात है।
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सूर्य ग्रह

सूर्य मेष राशि में होने पर उच्च तथा सिंह राशि में होने पर अपनी स्वराशि का होता है। यदि किसी जातक की कुण्डली में सूर्य इन्हीं दो राशियों में से किसी एक में हो तो उसे लाल या गुलाबी रंग के पदार्थों का दान नहीं करना चाहिए। इसके अलावा गुड़, आटा, गेहूं, तांबा आदि दान नहीं करना चाहिए। सूर्य की ऐसी स्थिति में ऐसे जातक को नमक कम करके, मीठे का सेवन अधिक करना चाहिए। सूर्य के निमित्त लाल चंदन, लाल वस्त्र, गेहूं, गुड़, घी व केसर का दान देना लाभप्रद होता है।
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चंद्र ग्रह

चन्द्र वृष राशि में उच्च तथा कर्क राशि में अपनी राशि का होता है। यदि किसी जातक की जन्मकुंडली में चंद्र ग्रह ऐसी स्थिति में हो तो, उसे खाद्य पदार्थों में दूध, चावल एवं आभूषणों में चांदी एवं मोती का दान नहीं करना चाहिए। ऐसे जातक के लिए माता या अपने से बड़ी किसी भी स्त्री से दुर्व्यवहार करना हानिकारक हो सकता है। किसी स्त्री का अपमान करने पर ऐसे जातक मानसिक तनाव का शिकार हो जाते हैं।चंद्रमा के निमित्त चांदी, चावल, सफेद चंदन, शंख, कर्पूर, दही, मिश्री आदि का दान संध्या के समय में फलदाई है।
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मानसिक तनाव हो सकता है–

जिस जातक के लिए चंद्र ग्रह स्वराशि हो उसे किसी नल, टयूबवेल, कुआं, तालाब अथवा प्याऊ निर्माण में कभी आर्थिक रूप से सहयोग नहीं करना चाहिए। यह उस जातक के लिए आर्थिक रूप से हानिकारक सिद्ध हो सकता है।
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मंगल ग्रह

मंगल मेष या वृश्चिक राशि में हो तो स्वराशि का तथा मकर राशि में होने पर उच्चता को प्राप्त होता है। यदि आपकी कुण्डली में मंगल ग्रह ऐसी स्थिति में है तो, मसूर की दाल, मिष्ठान अथवा अन्य किसी मीठे खाद्य पदार्थ का दान ना करें। मंगल के निमित्त गुड़, घी, लाल वस्त्र, कस्तूरी, केसर, मसूर की दाल, मूंगा, तांबे के बर्तन आदि का दान सूर्यास्त से पौन घंटे पूर्व करना चाहिए।

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मीठे खाद्य पदार्थ का दान निषेध

आपके घर यदि मेहमान आए हों तो उन्हें कभी सौंफ खाने को न दें अन्यथा वह व्यक्ति कभी किसी अवसर पर आपके खिलाफ ही कटु वचनों का प्रयोग करेगा। यदि मंगल ग्रह के प्रकोप से बचना चाहते हैं तो किसी भी प्रकार का बासी भोजन न तो स्वयं खाएं और न ही किसी अन्य को खाने के लिए दें।
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बुध ग्रह

बुध मिथुन राशि में तो स्वराशि तथा कन्या राशि में हो तो उच्च राशि का कहलाता है। यदि किसी जातक की जन्मपत्रिका में बुध उपरोक्त वर्णित किसी स्थिति में है तो, उसे हरे रंग के पदार्थ और वस्तुओं का दान कभी नहीं करना चाहिए। हरे रंग के वस्त्र, वस्तु और यहां तक कि हरे रंग के खाद्य पदार्थों का दान में ऐसे जातक के लिए निषेध है। इसके अलावा इस जातक को न तो घर में मछलियां पालनी चाहिए और न ही स्वयं कभी मछलियों को कभी दाना डालना चाहिए।
बुध के निमित्त सावधानी पूर्वक कांसे का पात्र, मूंग, फल आदि का दान करें।
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बृहस्पति ग्रह

बृहस्पति जब धनु या मीन राशि में हो तो स्वगृही तथा कर्क राशि में होने पर उच्चता को प्राप्त होता है। जिस जातक की कुण्डली में बृहस्पति ग्रह ऐसी स्थिति में हो तो, उसे पीले रंग के पदार्थ नहीं करना चाहिए। सोना, पीतल, केसर, धार्मिक साहित्य या वस्तुओं आदि का दान नहीं करना चाहिए। इन वस्तुओं का दान करने से समाज में सम्मान कम होता है। गुरु के निमित्त चने की दाल, धार्मिक पुस्तकें, पीले वस्त्र, हल्दी, केसर, पीले फल आदि का दान करना चाहिए।
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शुक्र ग्रह

शुक्र ग्रह वृष या तुला राशि में हो स्वराशि का एवं मीन राशि में हो तो उच्च भाव का होता है। जिस जातक की कुण्डली में शुक्र ग्रह की ऐसी स्थिति हो, तो उसे श्वेत रंग के सुगन्धित पदार्थों का दान नहीं करना चाहिए अन्यथा व्यक्ति के भौतिक सुखों में कमी आने लगती है। इसके अलावा नई खरीदी गई वस्तुओं का एवं दही, मिश्री, मक्खन, शुद्ध घी, इलायची आदि का दान भी नहीं करना चाहिए। ध्यान रखें, शुक्र के निमित्त चावल, मिश्री, दूध, दही, इत्र, सफेद चंदन आदि का दान सूर्योदय के समय करें।
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शनि ग्रह

शनि यदि मकर या कुम्भ राशि में हो तो स्वगृही तथा तुला राशि में हो तो उच्च राशि का कहलाता है। यदि आपकी कुण्डली में शनि की स्थिति है तो आपको काले रंग के पदार्थों का दान कभी भूलकर भी नहीं करना चाहिए। इसके अलावा लोहा, लकड़ी और फर्नीचर, तेल या तैलीय सामग्री, बिल्डिंग मैटीरियल आदि का दान नहीं करना चाहिए।शनि के निमित्त लोहा, उड़द की दाल, सरसों का तेल, काले वस्त्र, जूते का दान करना चाहिए।
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काला रंग

ऐसे जातक को अपने घर में काले रंग का कोई पशु जैसे कि भैंस अथवा काले रंग की गाय, काला कुत्ता आदि नहीं पालना चाहिए। ऐसा करने से जातक की निजी एवं सामाजिक दोनों रूप से हानि हो सकती है।
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राहु ग्रह–

राहु यदि कन्या राशि में हो तो स्वराशि का तथा वृष एवं मिथुन राशि में हो तो उच्च का होता है। जिस जातक की कुण्डली इसमें से किसी भी एक स्थिति का योग बने, तो ऐसे जातक को नीले, भूरे रंग के पदार्थों का दान नहीं करना चाहिए। राहु के निमित्त तिल, सरसों, सप्तधान्य, लोहे का चाकू व छिलनी, सीसा, कम्बल, पशु, नीला वस्त्र, गोमेद आदि वस्तुओं का दान रात्रि समय में करना चाहिए।
इसके अलावा अन्न का अनादर करने से परहेज करना चाहिए। जब भी ये खाना खाने बैठें, तो उतना ही लें जितनी भूख हो, थाली में जूठन छोड़ना इन्हें भारी पड़ सकता है।
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केतु ग्रह—

केतु यदि मीन राशि में हो तो स्वगृही तथा वृश्चिक या फिर धनु राशि में हो तो उच्चता को प्राप्त होता है। यदि आपकी कुण्डली में केतु उपरोक्त स्थिति में है तो आपको घर में कभी पक्षी नहीं पालना चाहिए, अन्यथा धन व्यर्थ के कामों में बर्बाद होता रहेगा। इसके अलावा भूरे, चित्र-विचित्र रंग के वस्त्र, कम्बल, तिल या तिल से निर्मित पदार्थ आदि का दान नहीं करना चाहिए। केतु के लिए लोहा, तिल, सप्तधान, तेल, दो रंगे या चितकबरे कम्बल या अन्य वस्त्र, शस्त्र, लहसुनिया व बहुमूल्य धातुओं में स्वर्ण का दान निशाकाल में करना चाहिए
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हर सक्षम व्यक्ति को सूर्य संक्रांति, सूर्य व चंद्र ग्रहण, अधिक मास व कार्तिक शुक्ल द्वादशी को अन्न व जल का दान अवश्य करना चाहिए।

जीवन में कई बार ग्रह हमारे पक्ष में नहीं होते और बनते काम भी बिगडऩे लगते हैं। ग्रहों की अनुकूलता पाने के लिए उनसे संबंधी मंत्रों का जाप, उपवास, नित्य विशिष्ट पूजा के अलावा दान करना भी एक उपाय माना जाता है। वराह पुराण के अनुसार सभी दानों में अन्न व जल का दान सर्वश्रेष्ठ है। 
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अन्नदान – 
किसी भी ज़रुरतमंद को अन्नदान करने से माना जाता है की आपके जीवन में कभी भी अन्न की कमी नहीं होगी | बिना पके अन्न का दान करें तो उससे ज्यादा पुण्य मिलता है |

अनाज के दान को हिन्दू धर्म में एक महत्वपूर्ण दान बताया गया है | भूखो को भोजन खिलाने से हमारे पितृ देवी देवता प्रसन्न होते है | यह दान हमारे भविष्य में आने वाले दुर्भाग्य को दूर करने में सहायता करता है |शास्त्रों के अनुसार अगर सबसे बड़ा दान कोई है तो वो अन्न दान है। यह संसार अन्न से ही बना है और अन्न की सहायता से ही इसकी रचनाओं का पालन हो रहा है। अन्न एकमात्र ऐसी वस्तु है जिससे शरीर के साथ-साथ आत्मा भी तृप्त होती है। इसीलिए कहा गया है कि अगर कुछ दान करना ही है तो अन्नदान करो। अन्नदान करने से बहुत लाभ होता है। 
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जानिए अन्न दान से होने वाले लाभ को:
सभी शास्त्रों में जितने दान और व्रत कहे गए हैं, उनकी तुलना में अन्नदान सबसे श्रेष्ठ है। इस संसार का मूल अन्न है, प्राण का मूल अन्न है। यह अन्न अमृत बनकर मुक्ति देता है।
सात धातुएं अन्न से ही पैदा होती हैं, यह अन्न जगत का उपकार करता है। इसलिए अन्न का दान करना चाहिए।
इन्द्र आदि देवता भी अन्न की उपासना करते हैं, वेद में अन्न को ब्रह्मा कहा गया है। सुख की कामना से ऋषियों ने पहले अन्न का ही दान किया था। इस दान से उन्हें तार्किक और पारलौकिक सुख मिला।
जो श्रद्धालु विधि-विधान से अन्नदान करता है, उसे पुण्य की प्राप्ति होती है।

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वस्त्र दान – 
जो व्यक्ति वस्त्रों का दान करता है उसको जीवन में कभी भी आर्थिक समस्याओं का सामना नही करना पढ़ता | वस्त्र दान करते समय ध्यान रहे की फटे पुराने वस्त्रों का दान नही करना चाहिए | जिस स्तर के कपड़े आप खुद पहनते हैं उसी स्तर के कपड़े दान मिओं दें |अमावस्या पर अपने पितरो की याद में खीर और एक मिठाई सहित भोजन बनाना चाहिए | फिर एक अच्छे ब्राह्मण को घर पर बुलाकर , उनकी खातिरदारी कर अच्छे से प्रेम से भोजन कराये और फिर उनके चरण स्पर्श कर उन्हें दक्षिणा में पांच कपडे और सामर्थ्य अनुसार रुपये देने  चाहिए |

किसी भी अमावस्या के दिन दान-पुण्य से पितृ दोष दूर होंने के साथ साथ केतु और शनि की पीड़ा से भी मुक्ति पाई जा सकती है।
इस दिन मूल नक्षत्र पड़ने के कारण यह तिथि काफी असरकारक हो जाती है। इस दिन किए गए उपाय बहुत ही प्रभावी होते हैं। 

वैदिक ज्योतिष में शनि को एक क्रूर ग्रह माना गया है लेकिन जिन जातकों की जन्म कुंडली में शानि मजबूत होता है उनको यह अच्छे परिणाम देता है। 

अमावस्या के दिन नीली, काली वस्तुओं का दान शुभ रहता हैं। यदि इस दिन इन वस्तुओं का दान किया जाए तो उस दिन जिस भी देवता को माना गया है उसका आशीर्वाद प्राप्त होता है और बुरी शक्तियां निकट आने से डरती हैं।

ऐसा भी कहा जाता है कि कमजोर दिल वालों को ये शक्तियां ज्यादा प्रभावित करती हैं। इसका संबंध चंद्रमा की रोशनी से भी है और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ज्वार भाटा से भी। 

पितृदोष से मुक्ति पाने के लिए इस दिन पितृ तर्पण स्नानदान आदि करना बहुत ही पुण्य फलदायी माना जाता है। इस दिन अनेक छूटे हुए कार्यों को भी पूर्ण किया जा सकता है।

 अमावस्या पर  क्या उपाय करें ताकि आपके जीवन से भी शनिदेव समस्याओं को खत्म कर दें। इन उपायों से आपके जीवन से आर्थिक संकट समाप्त होंगे, जीवन में तरक्की होगी। 

वैवाहिक, दांपत्य जीवन, प्रेम प्रसंग में लाभ होता है। भूमि, भवन, वाहन संपत्ति सुख प्राप्त होता है।

मूल नक्षत्र के स्वामी केतु है। अमावस्या तिथि भी राहु और केतु के प्रभाव के कारण मानी जाती है। ऐसे में केतु और शनि की शांति के लिए इस दिन पका अन्न दान किया जा सकता है। इसके अलावा पितृ दोष का निवारण भी किया जा सकता है।

सामान्य गृहस्थ पकी हुई काली उड़द और पके चावल का दान करें। इससे उनको लाभ होगा। इसके साथ ही पितृ दोष का पूजन भी किया जा सकता है। इसके लिए पत्तल पर जौ, चावल, काले तिल, खीर और नींबू को रखकर पीपल के वृक्ष के नीचे दोपहर में रखना होगा। इससे पितृ दोष खत्म हो जाएगा।

हर सक्षम व्यक्ति को सूर्य संक्रांति, सूर्य व चंद्र ग्रहण, अधिक मास व कार्तिक शुक्ल द्वादशी को अन्न व जल का दान अवश्य करना चाहिए। ज्योतिष में मूल रूप से नव ग्रहों की विभिन्न प्रकृति होती है।

हर ग्रह का एक मूल स्वभाव है और उसी अनुरूप दान करना चाहिए। सूर्य देव उपवास, कथा श्रवण व नमक के परित्याग से, चंद्र भगवान शिव के मंत्रों के जाप से, मंगल ग्रह उपवास के अलावा मंत्रजाप से, तो बुध ग्रह गणपति की आराधना के साथ दान से सर्वाधिक प्रसन्न होते हैं। देव गुरु सात्विक रूप से उपवास रखने मात्र से प्रसन्न होते हैं।

दैत्य गुरु शुक्र गौ सेवा और दान व कन्याओं को उपहार देने से प्रसन्न होते हैं। न्याय के देवता शनि महाराज को मनाने के लिए जप, तप, उपवास व दान के अलावा शुद्ध व सात्विक जीवन शैली होनी चाहिए। छाया ग्रह राहु व केतु जाप के साथ दान से ही प्रसन्न होते हैं। दान के समय जातक को प्रसन्न मन और आनंद के साथ व्यवहार करना चाहिए।
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विशेष आवश्यकताओं के लिए दान करें-

स्वास्थ्य और आयु की समस्या के लिए : अन्न और जल का दान करें।
रोजगार की प्राप्ति के लिए : प्रकाश का दान करें (तुलसी के नीचे या मंदिर में दीपक जलाएं)।
शीघ्र विवाह के लिए : सुहाग की वस्तुओं का दान करें।
मुकदमे में विजय के लिए :  मीठी वस्तु (मिठाई) का दान करें।
संतान प्राप्ति के लिए : वृक्ष लगाएं और नियमित जल दान करें (जल डालें)।
दुर्घटना से रक्षा के लिए : काले तिल का दान करें।
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ऐसा दान ना करें–

क्योंकि ग्रहों की स्थिति के विपरीत यदि दान कर्म किया जाए, तो वह और भी बुरा असर देता है। ऐसे में हमारे द्वारा किया गया दान हमें अच्छा फल देने की बजाय, बुरा फल देना आरंभ कर देता है। और हमें इस बात की जानकारी भी नहीं होती।
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जानिए कब न करें दान–

ग्रहों की किस स्थिति में कैसा दान कर्म भूलकर भी नहीं करना चाहिए, हम आज यही आपको बताने जा रहे हैं। ज्योतिष विधा के अनुसार जन्मकुंडली में जो ग्रह उच्च राशि या अपनी स्वयं की राशि में स्थित हों, उनसे सम्बन्धित वस्तुओं का दान व्यक्ति को कभी भूलकर भी नहीं करना चाहिए। क्योंकि ऐसा दान हमें हमेशा हानि ही देता है।
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मान्यता है की जो व्यक्ति दान करता है उसे आनंद मिलता है साथ ही भगवान की कृपा उसके साथ रहती है | ध्यान रहे की दान उसी व्यक्ति को करें जो व्यक्ति दान की गयी वस्तु का उपयोग करे |
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दान क्यों करें ? – 
लगभग सभी धर्मों के अनुसार हमें अपनी आय का कुछ भाग अवश्य ही दान करना चाहिए। ऐसा सभी धर्म ग्रन्थों में लिखा हुआ है तथा हम अपने पूर्वजों तथा बुजुर्गों से सुनते आए हैं कि हमें अपनी कमाई में से कुछ न कुछ भाग अवश्य ही दान करना चाहिए। भोजन बनाने के बाद भगवान को भोग लगाए बिना ग्रहण करना पाप समान माना जाता है। अतः भगवान को भोग लगाने के बाद आश्रित जीव-जंतुओं का भाग निकालना चाहिए। इस क्रिया को हम सभी के पूर्वज (दादी, नानी आदि) करते चले आए हैं। किसी भी त्योहार, तिथि विशेष (अमावस्या, पूर्णिमा, एकादशी आदि) पर तो ब्राह्मण, पंडित, पुजारी आदि को भोजन कराकर दक्षिणा देना हमारा परम कर्तव्य माना जाता है। हमारे शास्त्रों के अनुसार भी इस प्रकार से किया गया दान आवश्यक तथा उत्तम होता है। इस प्रथा को हम अपने आस पास सभी स्थानों पर देखते चले आए हैं। दान किसी पर अहसान करके नहीं करना चाहिए क्योंकि यह तो हमारी स्वेच्छा तथा श्रद्धा पर निर्भर होता है तथा दान देते समय अपने दुखों, कष्टों, दारिद्र््य आदि को कम किया जाना ही जातक का उद्देश्य होता है। अनिष्ट ग्रहों की शांति तथा विभिन्न प्रकार के कष्ट निवारण के लिए भी दान किया जाता है। अपनी आय का कुछ भाग दान करने से आत्म शुद्धि तथा धन की वृद्धि अवश्य ही होती है। यह परम सत्य है कि दान अपने स्वयं के कल्याण के लिए ही किया जाता है।

ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री जी के अनुसार दान से दरिद्रता दूर होती है, यहाँ तक कि अगला जन्म तक सुधर जाता है। दान देने से कभी भी कमी नहीं आती है क्योंकि किसी भी प्रकार से किया गया दान कभी भी खाली नहीं जाता है अपितु अगले जन्म तक उसका फल-प्रतिफल प्राप्त होता है। दान पुण्य कर्मों के एकत्रीकरण का उपाय भी है तथा अपने द्वारा किए गए अशुभ कर्मों का पाश्चाताप भी है। अशुभ कर्मों के निवारण के अनेकों सहज व सटीक उपाय हैं परन्तु उन सभी में सबसे महत्वपूर्ण उपाय दान है। अतः दान जब भी किया जाये सबको दिखाकर, प्रचार प्रसार करके कभी नहीं करना चाहिए, इस प्रकार से किया गया दान व्यर्थ हो जाता है क्योंकि सभी जानते हैं कि दान इस प्रकार से किया जाना चाहिए कि एक हाथ से दान किया जाये तो दूसरे हाथ को पता भी न चले। इसीलिए हमारे समाज ने गुप्त दान को सबसे अधिक महत्वपूर्ण स्थान दिया है।

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