जाने और समझें काली मिट्टी (काले गारे) के महत्व एवम उपयोग को—
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सम्पूर्ण आर्यवर्त जी मिट्टी पूजनीय है औऱ हर राष्ट्र के नागरिक को अपनी मिट्टी से प्रेम, प्यार, आस्था, श्रद्धा होती है और होना भी चाहिए हम इसी पर जन्म लेते है खेलते है बड़े होते है और फिर जीवन के अंतिम चरण में इसी में विलीन हो जाते है, यही मिट्टी जीवन का मूल तत्व है पंच तत्व का भाग है।
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मिट्टी कई प्रकार की होती है —
हर प्रदेश की मिट्टी भी अलग अलग होती है हम चर्चा कर रहे है काली मिट्टी या ग्रामीण भाषा मे कहे तो कालो गारो की । काली मिट्टी सभी मिट्टियों में श्रेष्ठ मानी जाती है क्योंकि यह सभी प्रकारों के गुणों से युक्त होती है,
काली_मिट्टी नमी का उत्तम स्रोत मानी जाती है जिस खेत में काली मिट्टी होती है वहां फसल अधिक होती है यह मिट्टी लाल, भुरभुरी, पीली, दोमट आदि मिट्टियों से अधिक उपजाऊ होती है,
वैसे काली मिट्टी खेतो से प्राप्त की जा सकती है किंतु घरेलू उपयोग व आयुर्वेद में औषधि हेतु तालाब की मिट्टी का उपयोग किया जाता है, इसका संचय या प्राप्त करना एक सधी व वैज्ञानिक प्रक्रिया जैसे होती है मिट्टी प्राप्ति का स्थान को चुनना अनुभव पर आधारित होता है, यह ऐसे स्थान
से निकली जाती है जहाँ पर बारिश के पानी मे बहकर एक एक कण जमा होता जाता है उसमे रेत के कण भी शामिल नही होते है अर्थात आप इसे खा भी सकते है, बचपन मे माताजी के साथ कई बार तालाब पर मिट्टी लाने का काम पढ़ा तब देखा कि इतने बड़े तालाब में वे उस स्थान को ढूंढ लेती थी जहाँ बिना मिलावट की मिट्टी मिल जाती थी,
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पूर्व के समय मे काली मिट्टी का उपयोग शेम्पू के रूप में बाल धोने के लिए किया जाता था, काली मिट्टी में दही मिलाकर बाल धोने से रूसी, खोरी समाप्त होती है बाल रेशम से मुलायम हो जाते है व लम्बाई बढ़ती है , यह कहा जा सकता है कि यह बालों के लिए रामबाण औषधि है ।।
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शुद्ध साफ मिट्टी को कपड़ा छानकर लीजिए और उसे पूरे अंग पर रगड़िए। पूरे शरीर पर रगड़ने के बाद .. से .0 मिनट धूप में बैठ जाइए। तत्पश्चात शीतल जल से स्नान कर लें। यह सूखी मिट्टी का स्नान है।
*छान्दोग्य उपनिषद्* में मिट्टी को अन्य पंच तत्वों जल, पावक, गगन तथा समीर का सार कहा गया है। स्वास्थ्य सौन्दर्य और दीर्घायु का मिट्टी से प्रगाढ़ सबंध होता है। मिट्टी में अनेक रोगों के निवारण की अद्भुत क्षमता होती है।
मिट्टी चिकित्सा प्राकृतिक के अंतर्गत आने वाली ऐसी विधि है जिसमें विकारों को दूर करने तथा स्वास्थ्य संवर्धन के लिए मिट्टी का विभिन्न रूपों में प्रयोग किया जाता है। यह शरीर को शीतलता प्रदान करती है तथा शरीर के दूषित पदार्थो को घोलकर एवं अवषोशित कर शरीर से बाहर निकाल देती है। सिर दर्द एवं उच्च रक्तचाप आदि में पेट के साथ-साथ माथें पर भी मिट्टी की पट्टी रखने से लाभ द्विगुण हो जाता है।
मिट्टी में अनेकों प्रकार के क्षार, विटामिन्स, खनिज, धातु, रासायन रत्न, रस आदि की उपस्थिति उसे औषधीय गुणों से परिपूर्ण बनाती है। औषधियां कहां से आती है? जबाब होगा पृथ्वी, मतलब सारे के सारे औषधियां के भंडार होता पृथ्वी। अत: जो तत्व औषधियों में है, उनके परमाणु पहले से ही मिट्टी में उपस्थित रहते हैं।
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मिट्टी कई प्रकार की होती है तथा इसके गुण भी अलग-अलग होते हैं। उपयोगिता के दृष्टिकोण सें पहला स्थान काली मिट्टी का है, उसके बाद पीली, सफेद और उसके बाद लाल मिट्टी का स्थान है।
मानव शरीर के पांच निर्माण कारक तत्वों में से एक तत्व जल है। शरीर में इसकी कमी से जहां अनेक रोगों का कारण बनती है वहीं इसकी समुचित मात्रा में रोगों को दूर करती है। त्वचा रोग, कब्ज, अनिद्रा, थकान, मिर्गी, उच्च रक्तचाप, पाचन क्रिया संबंधित विकार आदि अनेक रोगों में जल चिकित्सा बेहद असरदार होती है।
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शरीर के भीतर की गर्मी को नियंत्रित या अधिक होने पर काली मिट्टी को नाभि पर रखकर उस पर शीतल जल का अभिषेक किया जाता है क्योंकि नाभि शरीर का केंद्र है इस कारण शरीर की अनावश्यक उष्मा इस प्रक्रिया से नियंत्रित हो जाती है, थी ।।
*काली मिट्टी के लेप से ठंडक पहुंचती है। साथ ही यह विष के प्रभाव को भी दूर करती है। यह सूजन मिटाकर तकलीफ खत्म कर देती है। जलन होने, घाव होने, विषैले फोड़े तथा चर्मरोग जैसे खाज में काली मिट्टी विशेष रूप से उपयोगी होती है। रक्त के गंदा होने और उसमें विषैले पदार्थों के जमाव को भी यह मिट्टी कम करती है। पेशाब रुकने पर यदि पेड़ू के ऊपर (पेट की नीचे) काली मिट्टी का लेप किया जाता है तो पेशाब की रुकावट समाप्त हो जाती है और वह खुलकर आता है। मधुमक्खी, कनखजूर, मकड़ी, बर्रे और बिच्छू के द्वारा डंक मारे जाने पर प्रभावित स्थान पर तुरंत काली मिट्टी का लेप लगाना चाहिए इससे तुरंत लाभ पहुंचता है*।
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पेट के रोग जैसे पेचिश, मरोड़ दर्द, ऐंठन तथा अतिसार होने पर भी पेडू पर काली मिट्टी की यह पट्टी बांधने से लाभ मिलता है। गठिया में भी यह पट्टी बेहद उपयोगी है।
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मासिक धर्म के समय होने वाली पीड़ा भी इस पट्टी को पेड़ू पर बांधने से दूर होती है। गर्भाशय संबंधी समस्त दोषों का निवारण भी इस पट्टी की सहायता से किया जा सकता है। परन्तु गर्भवती स्त्रियों के लिए इसका प्रयोग पूर्णतया वर्जित है।
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त्वचा संबंधी रोगों के निवारण के लिए मिट्टी की सर्वांग मालिश भी बहुत उपयोगी होती है। इसके लिए कपड़े से छानी हुई मिट्टी का समूचे शरीर पर लेप करके केवल दस मिनट धूप में बैठने से त्वचा स्वस्थ, मुलायम और लचकदार बन जाती है। रोम कूप पूरी तरह खुल जाते हैं, फोड़े तथा फुन्सियां नहीं होतीं। इस प्रकार की मालिश से मस्तिष्क संबंधी रोगों के खतरे भी दूर हो जाते हैं। धरती में अनेक औषधीय गुण होते हैं, कमर दर्द, सिरदर्द, सूजन तथा त्वचा संबंधी रोगों के लिए कीचड़ की मालिश भी लाभकारी है। इसके लिए कीचड़ भरे एक आदमकद गड्ढ़े में रोगी को इस पकार खड़ा किया जाता है कि उसके कंधों के ऊपर का भाग अर्थात गला, मुंह और सिर कीचड़ के ऊपर रहें। कीचड़ में खड़े रहने के लिए रोगी का वस्त्र उतारना जरूरी है अन्यथा इसका लाभ नहीं मिल पाता। कीचड़ में खड़े रहने की अवधि क्या हो यह रोगी की शारीरिक दशा पर निर्भर करता है। यदि रोगी का शरीर दुर्बल है तो उसे केवल पांच-दस मिनट, इसके विपरीत बलवान शरीर वाले रोगियों को तीस मिनट तक कीचड़ में खड़ा रखा जा सकता है।
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गर्मी के दिनों में उठने वाली घमौरियां और फुंसियां इससे दूर रहती हैं। सिर के बालों को मुल्तानी मिट्टी से धोने का रिवाज अभी तक मौजूद है। इससे मैल दूर होता है,काले बाल, मुलायम, मजबूत और चिकने रहते है तथा मस्तिष्क में बड़ी तरावट पहुंचती है। शरीर पर मिट्टी लगाकर स्नान करना एक अच्छा उबटन माना जाता है।
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मिट्टी पर नंगे पैर सैर करने से बहुत लाभ होता है। खेतों, नदियों या नहरों के किनारे सूखी या कुछ गीली मिट्टी पर नंगे पैर सैर करने से शरीर में चुस्ती-फुर्ती आ जाती है। इस प्रक्रिया में धरती की उर्जा शरीर को प्राप्त होती है।
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लाभ – त्वचा नरम, लचीली एवं कोमल हो जाती है। रोमकूप खुल जाते हैं। इससे शरीर के विजातीय तत्व पसीने के रूप में बाहर आने लगते हैं। त्वचा के छिद्र भरपूर श्वास लेने लायक हो जाते हैं जिससे त्वचा के अनेक रोग, चर्मरोग, दाद, खाज-खुजली, फोड़े-फुंसियां दूर होने लगती हैं। आयुर्विज्ञान में इसको ‘रज स्नान’ कहा गया है।
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वर्तमान में आयुर्विज्ञान में रजस्नान या चिकित्सा का विधान है तथा पंचकर्म में भी मिट्टी का घोल बनाकर उसमे बिठा कर अनेक रोगों की चिकित्सा की जाती है, कई देशों में कीचड़ लगाकर पर्व भी मनाया जाता है,
सारांश-उपसंहार यह है कि हमे अपनी मिट्टी से जुड़ना चाहिए अपनी संतानों को जोड़ना चाहिए, आज कई विकसित देशों में पुनः बच्चों को मिट्टी में खेलने के लिए प्रेरित किया जा रहा है इससे शरीर की रोगप्रतिरोधक शक्ति भी बढ़ती है शरीर का विकास भी होता है, उचित स्थान का चयन अवश्य आवश्यक है,
हमारी माटी सुगंधित स्प्रे को भी मात देती है जब वर्षा किसी पड़ोसी क्षेत्र में होती है तो हवा के माध्यम से भीनी भीनी महक खुशबू जो माटी की आती है वह मन को प्रफुल्लित कर देती है वाह प्रकृति आपका कोई सानी नहीं।
देश से जुड़े, देश की मिट्टी से जुड़े तभी उसके प्रति हमारे भीतर एक सच्चा आदर भाव उत्पन्न होगा जो वर्तमान के नवांकुरों में आवश्यक है, आज भी हमारे उज्जैन के सांदीपनि आश्रम की मिट्टी लोग ले जाते है विद्यार्थियों के सिरहाने रखते है क्योंकि उसमे उनकी श्रद्धा जुड़ी है,,
आओ हम संकल्प ले इस वर्ष अधिक से अधिक हमारी मातृभूमि से जुड़ उसके ऋण से ऋणमुक्त होने का प्रयास करेंगे ।।
*जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी*”
(निवेदन – उक्त प्रयोगों को अधिक एवम उचित लाभ हेतु किसी कुशल, प्रशिक्षित एवम अनुभवी व्यक्ति के मार्गदर्शन में ही सम्पन्न करें)