समझें विष  योग –  चांडाल योग को    

                                
विषयोग चन्द्र शनि की युति दृष्टि सम्बन्ध से बनने वाला योग है तो चांडाल योग बृहस्पति के साथ राहु/केतु की युति होने से बनने वाला योग है।यह दोनों ही योग अशुभ है लेकिन अशुभ होने पर इन दोनों योगो में विषयोग कुछ ज्यादा ही अशुभ होता जबकि चांडाल योग गुरु की युति राहु/केतु से किस भाव, किस राशि आदि में किस तरह से बन रही है? इन सब पर निर्भर करता है।।                                                                     #पहले बात करते है विषयोग की, विषयोग में चन्द्र को जब शनि का साथ मिलता है तब यह बनता है चन्द्रमा मन है तो शनि वेराग्य, उदासी और संघर्ष+कठिन जीवन जब चंद्रमा(मन) पर शनि(संघर्ष, उदासी आदि) का प्रभाव पड़ता है तब इस योग के फल अशुभ या यह कहे विपरीत मिलने लगते है कुंडली जिस भी भाव में यह योग बनता है या चन्द्र शनि जिन भावो के स्वामी होते है उन भावो की तरफ से अशुभ फल मिलते है इसमें भी जिस भाव में यह दोनों ग्रह बैठे होंगे उस भाव के अशुभ फल ज्यादा होते है क्योंकि जहाँ ग्रह बैठता है वहा सबसे ज्यादा प्रभाव डालता है जैसे विषयोग सप्तम भाव में बने तब शादी होने में दिक्कते, शादी के बाद भी शादी तनाब पूर्ण होकर चलना, कुल मिलाकर वैवाहिक जीवन का सुख ठीक तरह से नही मिलता।ऐसे ही दसवे भाव में विषयोग बनता है तब कभी भी जातक अपने कार्य छेत्र से संतुष्ट नही रहता नोकरी करे तो उसमे दिक्कते और व्यापार हो तब उसमे घाटा या कोई खास अच्छा व्यापार नही चलता।शनि चन्द्र बली है,कमजोर है अस्त-उदय है  किस नक्षत्र में है आदि? का प्रभाव भी इस योग पर पड़ता है।                                                                                     #दूसरा है गुरु चांडाल योग यह योग बृहस्पति के साथ राहु/केतु की युति से बनता है यह योग निर्भर करता है गुरु राहु केतु की शुभ-अशुभ स्थिति पर यदि गुरु बृहस्पति और राहु केतु शुभ और बली है तब गुरु चण्डाल योग भी शुभ परिणाम देने में सक्षम है और  तीनो में से कोई एक भी अशुभ हो तब इस योग के अशुभ फल ही भोगने को मिलते है इस कारण यह योग शुभ-अशुभ दोनों तरह से फल देता है।।                                                                                                     #जैसे:- मीन लग्न की कुंडली में गुरु लग्नेश और दशमेश होकर एक बहुत महत्वपूर्ण ग्रह होता है अब यदि गुरु उच्च का होकर बैठा हो जो भी पंचम भाव कर्क राशि में होगा और राहु .1वे भाव+केतु पंचम भाव में गुरु के साथ हो तब यह योग शुभ फल देगा क्योंकि गुरु यहाँ लग्नेश दशमेश उच्च होकर त्रिकोण भाव होता है+और राहु केतु अपने शुभ भाव 11और 5में होते है और राहु 11वे भाव लाभ-वृद्धि स्थान में बैठकर गुरु और अपने शुभ फलो की वृद्धि करके रोजगार व्यापार नोकरी में वृद्धि करके लाभ देने वाला यह योग बन जाता है लेकिन अब गुरु अस्त हो और राहु केतु भी नीच राशि के हो या अन्य तरह से अशुभ स्थिति में हो तब यह योग बेहद अशुभ फल देगा।।                                                                                                               इस तरह से कुछ अशुभ अशुभ योग ऐसे भी होते है जो शुभ स्थिति में बने तो कुछ दिक्कतो के बाद अच्छा फल देने में सक्षम होते है लेकिन कुछ अशुभ योग विषयोग की तरह ऐसे होते है जो शुभ फल किसी भी हालात में नही देते उनके फल अशुभ ही होते है इस तरह से अशुभ योग भी शुभ फल दे सकता है केवल अशुभ योग है तब जरूरी नही वह अशुभ फल देगा निर्भर यह करता  है कि वह अशुभ योग शुभ स्थिति में बना है या नही यदि शुभ स्थिति में बना है तब अशुभ फल जरूर देगा।

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