जाने और समझें वर्तमान परिस्थति में व्यापारिक नुकसान  कम करने के ज्योतिष वास्तु सम्मत उपायों को–
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मनुष्य का जीवन उसके निर्णयों पर आधारित है जो कि आगे के जीवन की दिशा और दशा को निर्धारित करता है। 

सही समय पर सही निर्णय लेना और सही दिशा का प्रयास हमारी योग्यता के माप दंड को दर्शाता है | किंतु कई बार ऐसे विपरीत ग्रहो की दशा ,महादशा में लिए गए निर्णय के कारण कई सफलता के अवसर हाथ से निकल सकते है और एक सही निर्णय जीवन को खुशीयों से भरता है |

प्रत्येक ग्रह अपनी स्थिति एवं अवस्था के अनुसार जीवन के प्रत्येक पहलू को प्रभावित करता है| हर व्यक्ति की कुण्डली में ग्रहों के कुछ विशेष योग होते हैं। इन ग्रहों का प्रभाव देते है इन अच्छे – ख़राब परिणाम… व्यापार  में लिए गए निर्णय ही आपके भविष्य का निर्धारण करते हैं| 

जीवन के किसी भी क्षेत्र में निर्णय की सफलता के लिए ज्ञान, कर्म और भाग्य की संयुक्त रुप से आवश्यकता होती है। 

उज्जैन के ज्योतिर्विद पण्डित दयानन्द शास्त्री जी बताते हैं कि ज्योतिष में बनने वाले ऐसे व्यापारिक योगो   द्वारा आर्थिक स्थिति एवं उतार चढ़ाव , धन संबंधी मामलों को समझने में बहुत आसानी होती है. जैसे की व्यक्ति के जीवन में कौन सी ग्रह दशाएं और ग्रहों के प्रभाव से अनायास धन हानि / आर्थिक हानि के कारण उत्पन होते है |

ज्योतिष शास्त्र, जातक की जन्मकुंडली में स्थित ग्रह योग के आधार पर, भाग्य के अनुरूप धन के नुकसान योग और प्रतिकूल ग्रह दशा के बारे में उचित मार्गदर्शन करता है।

ग्रहों की स्थिति और अन्य ग्रहों की युति से बने सम्बन्धों के आधार पर व्यक्ति के धन तथा अन्य सम्बन्धी बातों पर विचार किया जा सकता है। 
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*====जानिए कुंडली में धन हानि ( व्यापार) में नुकसान संबंधी योग =====*
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-यदि कुंडली के द्वितीय भाव में किसी पाप ग्रह की दृष्टि हो, तो वह व्यक्ति धनहीन हो सकता है। ये लोग कड़ी मेहनत के बाद भी पैसों की तंगी का सामना करते हैं।
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-ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री जी ने बताया किकमजोर लग्नेश, धनेश और लाभेश का आपसी संबंध धन के नुकशान की परिस्थति का निर्माण करता है | इनके साथ छठे, आठवें अथवा बारहवें (त्रिक) भाव के स्वामियों का भी संबंध हो तो ‘हानि’ तथा ‘ऋण’ योग का निर्माण होता है। इनके स्वामियों की दशा अंतर्दशा में धन हानि की संभावना रहती है।
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-जब कुंडली में लग्नेश, सूर्य व चंद्र पर जितना पाप प्रभाव होगा उसी अनुपात में मनुष्य निर्धन, असहाय व पीड़ित रहेगा।
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जब कुण्डली के द्वितीय भाव में स्थित पाप ग्रह अन्य पाप ग्रहों से दृष्ट हो तो अनायास नुकसान के सम्भावना बढ़ जाती है ।
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जब कुंडली में . या . ग्रह नीच होकर किसी भी भाव में स्थित हों तो जातक उन ग्रहों की दशा-भुक्ति में ऋणी रहता है।

-यदि कुंडली के द्वितीय भाव में चंद्रमा स्थित हो और उस पर नीच के बुध की दृष्टि पड़ जाए तो अनायास धन के नुकसान की सम्भावना बढ़ जाती है |
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-पण्डित दयानन्द शास्त्री के अनुसार यदि जन्म कुण्डली में षष्ठेश के साथ लग्न, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, अष्टम, नवम्, दशम, एकादश तथा द्वादश भाव के स्वामियों का संबंध हो तो आर्थिक हानि के योग बनते है।
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-व्ययेश के साथ लग्न, द्वितीय, चतुर्थ, तृतीय, पंचम, सप्तम, अष्टम, नवम्, दशम तथा एकादश भाव के स्वामियों का संबंध हो तो धन-हानि योग का निर्माण होता है।
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-यदि कुंडली के द्वितीय भाव में बुध हो तथा उस पर चंद्रमा की दृष्टि हो, तो वह व्यक्ति हमेशा गरीब होता है। ऐसे लोग कठिन प्रयास करते हैं, लेकिन धन एकत्र नहीं कर पाते हैं।
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-जब सूर्य, मंगल, राहु, शनि या कमजोर चंद्र द्वितीय भाव में हो, तब व्यक्ति को अचानक ही धन की कमी महसूस होने लगती है |
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-जब लग्न कुंडली में दरिद्र योग हों तो धनाढ्य कुल में जन्म लेकर तथा धन के होते हुए भी दरिद्र योगों के प्रभाव के कारन जातक जीवन में बार-बार आर्थिक तंगी भुगतनी पड़ती है |
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-यदि जन्म पत्रिका में सूर्य और बुध पीड़ित होकर द्वितीय भाव में स्थित हो तो ऐसे व्यक्ति के पास पैसा नहीं टिकता।

ज्योतिषाचार्य पण्डित दयानन्द शास्त्री जी ने बताया कि वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार किसी भी  जातक की कुंडली का षष्ठम भाव, उसके जीवन में ऋण की स्थिति को दर्शाता है। यह भाव कर्ज संबंधी सभी बातों का खुलासा करता है।

पण्डित दयानन्द शास्त्री जी बताते हैं कि ऐसे समय में किसी  अच्छे ज्योतिष के द्वारा जन्म कुंडली का विश्लेषण और उचित और अनुचित ग्रह दशाओ का निरिक्षण एवं जरुरी ज्योतिषीय उपायों को किये जाने से ख़राब योगो और ग्रहों से व्यापारिक नुकसान को कम किया जा सकता है |

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