गीता जयंती एक प्रमुख पर्व है | हिंदु पौरांणिक ग्रथों में गीता का स्थान सर्वोपरि रहा है | इस वर्ष शनिवार,10 दिसंबर 2016 के दिन गीता जयंती का महोत्सव मनाया जाएगा | आज से लगभग पाँच हजार वर्ष पूर्व मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी के मंगलप्रभात के समय कुरुक्षेत्र की रणभूमि पर योगेश्वर श्रीकृष्ण के मुखारविंद से गीता का ज्ञान प्रवाह बहा और भारत को गीता का अमूल्य ग्रंथ प्राप्त हुआ। तबसे यह दिन भारत के ज्वलंत सांस्कृतिक इतिहास का एक सुवर्ण पृष्ठ बनकर रहा है।
केवल भारत ही नहीं, अपितु सम्पूर्ण विश्व के सूज्ञ व्यक्ति भावपूर्ण अन्तःकरण से जयंती का उत्सव प्रतिवर्ष मनाते हैं। किसी भी ग्रंथ का जन्मदिवस मनाया जाना यह कदाचित् सम्पूर्ण विश्व में गीता की ही विशेषता मानी जा सकती है। महाभारत समय श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को ज्ञान का मार्ग दिखाते हुए गीता का आगमन होता है. इस ग्रंथ में छोटे-छोटे अठारह अध्यायों में संचित ज्ञान मनुष्यमात्र के लिए बहुमूल्य रहा है |गीता अर्थात् योगश्वर श्रीकृष्ण के मुखारविंद से स्रवित माधुर्य व सौंदर्य का वांगयीन स्वरूप! भगवान गोपालकृष्ण की प्रेम मुरली ने गोकुल में सभी को मुग्ध किया तो योगेश्वर कृष्ण की ज्ञान मुरली गीता ने कुरुक्षेत्र की रणभूमि पर अर्जुन को युद्ध के लिए प्रवृत्त किया। तबसे लेकर आज तक अनेक ज्ञानी, भक्त, कर्मयोगी, ऋषि, संत, समाजसेवक और चिन्तक, फिर वे किसी भी देश या काल के हों, किसी धर्म या जाति के हों, उन सभी को गीता ने मुग्ध किया है। ‘कृष्णस्तु भगवान स्वयं’ से मुख से प्रवाहित इस वांगमय ने मानव को जीवन जीने की हिम्मत दी है।
वांगमय रसिकों को गीता में वांगयीन सौंदर्य दिखाई देता है, साहित्य शौकीनों का शौक गीता पूर्ण करती है, कर्मवीरों को गीता कर्म करने का उत्साह देती है, ज्ञानियों को ज्ञानगंगा में डुबकी लगाने का अवसर गीता देती है। भक्तों को गीता में भक्ति का रहस्य मिलता है। व्याकरणकारों के हृदय गीता के शब्दों का लालित्य देखकर डोलने लगते हैं। यह सब गीता में ही, परन्तु क्या केवल इन्हीं करणों से गीता की लोकप्रियता हैं ??
अर्जुन को गीता का ज्ञान देकर कर्म का महत्व स्थापित किया इस प्रकार अनेक कार्यों को करते हुए एक महान युग परवर्तक के रूप में सभी का मार्ग दर्शन किया.मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष की एकादशी को गीता जयंती के साथ साथ मोक्षदा एकादशी भी कहा जाता है. मोक्षदा एकादशी का व्रत करने वाले व्यक्ति को एकादशी के नाम के अनुसार मोक्ष प्राप्ति के योग बनते हैं | ऐसे काल ने श्री कृष्ण के शरीर में प्रवेश करके श्री मद्भगवत गीता का ज्ञान युद्ध करने की प्रेरणा करने के लिए तथा कलयुग में वेदों को जानने वाले व्यक्ति नहीं रहेंगे, इसलिए चारों वेदों का संक्षिप्त वर्णन व सारांश “गीता ज्ञान” रूप में 18 अध्यायों में 700 श्लोकों में सुनाया। श्री कृष्ण को तो पता नहीं था कि मैंने क्या बोला था गीता ज्ञान में?
कुछ वर्षों के बाद वेदव्यास ऋषि ने इस अमृतज्ञान को संस्कृत भाषा में देवनागरी लिपि में लिखा। बाद में अनुवादकों ने अपनी बुद्धि के अनुसार इस पवित्रा ग्रन्थ का हिन्दी तथा अन्य भाषाओं में अनुवाद किया जो वर्तमान में गीता प्रैस गोरखपुर (UP) से प्रकाशित किया जा रहा है।
इसी दिन गीता जयन्ती होने से श्रीमदभगवद गीता की सुगन्धित फूलों द्वारा पूजा, कर गीता का पाठ करना चाहिए. विधिपूर्वक गीता व भगवान विष्णु की पूजा करने पर यथा शक्ति दानादि करने से पापों से मुक्ति मिलती है तथा शुभ फलों की प्राप्ति होती है. गीता जयंती के दिन श्री विष्णु जी का पूजन करने से उपवासक को आत्मिक शांति व ज्ञान की प्राप्ति होती है व मोक्ष मार्ग प्रश्स्त होता है |
निराशा के अंधकार में भटकने वाले मानव के जीवन में माँ गीता आशा का प्रकाश बिखेरती है। हतोत्साहीनिराश मनुष्य को गीता कहती है :-
क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्वय्युपपद्यते।
क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्तोत्तिष्ट परन्तप॥
और जो जो मनुष्य पापी नहीं है, (क्योंकि उसमें पाप करने की हिम्मत नहीं होती) वैसे ही जो निराश नहीं बनता (क्योंकि वह कुछ करता ही नहीं) ऐसे सामान्य मनुष्य के जीवन में भी रस भरने का काम गीता करती है। गीता ऐसे मनुष्य को कहती है,
‘तस्मात् योगी भव’
तू योगी बन यानी कहीं भी जुड़ जा। एकाध कार्य, संस्कति, ध्येय, राष्ट्र या ईश्वर के साथ जुड़े बिना जीवन का विकास असंभव है।वृक्ष भूमि के साथ जुड़ा हुआ होता है, इसलिए उसका जीवन सफल बनता है।
गीता जयंती कथा —
कर्म की अवधारणा को अभिव्यक्त करती गीता चिरकाल से आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितना तब रही. विचारों को तर्क दृष्टी के द्वारा बहुत ही सरल एवं प्रभावशाली रूप से प्रस्तुत किया गया है संसार के गुढ़ ज्ञान तथा आत्मा के महत्व पर विस्तृत एवं विशद वर्णन प्राप्त होता है.
गीता में अर्जुन के मन में उठने वाले विभिन्न सवालों के रहस्यों को सुलझाते हुए श्री कृष्ण ने उन्हें सही एवं गलत मार्ग का निर्देश प्रदान करते हैं. संसार में मनुष्य कर्मों के बंधन से जुड़ा है और इस आधार पर उसे इन कर्मों के दो पथों में से किसी एक का चयन करना होता है. इसके साथ ही परमात्मा तत्त्व का विशद वर्णन करते हुए अर्जुन की शंकाओं का समाधान करते हैं व गीता का आधार बनते हैं.
गीता जयंती महत्व—
गीता आत्मा एवं परमात्मा के स्वरूप को व्यक्त करती है. कृष्ण के उपदेशों को प्राप्त कर अर्जुन उस परम ज्ञान की प्राप्ति करते हैं जो उनकी समस्त शंकाओं को दूर कर उन्हें कर्म की ओर प्रवृत करने में सहायक होती है. गीता के विचारों से मनुष्य को उचित बोध कि प्राप्ति होती है यह आत्मा तत्व का निर्धारण करता है उसकी प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है. आज के समय में इस ज्ञान की प्राप्ति से अनेक विकारों से मुक्त हुआ जा सकता है.
आज जब मनुष्य भोग विलास, भौतिक सुखों, काम वासनाओं में जकडा़ हुआ है और एक दूसरे का अनिष्ट करने में लगा है तब इस ज्ञान का प्रादुर्भाव उसे समस्त अंधकारों से मुक्त कर सकता है क्योंकी जब तक मानव इंद्रियों की दासता में है, भौतिक आकर्षणों से घिरा हुआ है, तथा भय, राग, द्वेष एवं क्रोध से मुक्त नहीं है तब तक उसे शांति एवं मुक्ति का मार्ग प्राप्त नहीं हो सकता.
विशेष आयोजन होंगें कुरुक्षेत्र (हरियाणा) में–
हरियाणा सरकार इस बार अंतरराष्ट्रीय उत्सव के रूप में मनाने की केवल घोषणा कर चुकी है। बल्कि कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड की मीटिंग में घोषणा को विधिवत मंजूरी भी दी जा चुकी है। यही नहीं गीता जयंती पर इस बार महज कुरुक्षेत्र में ही बड़े आयोजन नहीं होंगे। बल्कि कुरुक्षेत्र 48 कोस के पांच जिलों में भी भव्य आयोजन किए जाएंगे। इन पांचों जिलों के 1.4 प्राचीन तीर्थ स्थलों पर गीता जयंती के तहत बड़े समारोह होंगे। मुख्यमंत्रीने अधिकारियों को निर्देश दिए कि इस बार कुरुक्षेत्र में जहां अंतरराष्ट्रीय गीता उत्सव होगा। वहीं प्रदेश की स्वर्ण जयंती भी मनाई जाएगी। इन दोनों बड़े आयोजनों के लिए खुद को अभी से तैयार करें। स्वर्ण जयंती समारोह साल भर चलेगा। कुरुक्षेत्र हरियाणा की सांस्कृतिक राजधानी है। इसलिए इन दोनों बड़े कार्यक्रमों में देश विदेश से लाखों लोग पहुंचेंगे। अगर इन लोगों को कोई कमी नजर आई तो वे अपने क्षेत्र में जाकर अच्छा संदेश नहीं देंगे। हर नजरिये से शहर को सुंदर अप टू डेट बनाएं। स्वर्ण जयंती वर्ष पर कई योजनाएं लागू होंगी।
इस प्रकार विभिन्न प्रकार के मनुष्यों को उनके अनुरूप ऐसा मार्गदर्शक संदेश देने वाली गीता अंत में मानव को सच्चा मानव बनने को कहती है। अंत में इतना ही कहना है कि जब हमारा जीवन गीता का प्राणवान भाष्य बनेगा, तभी सच्चे अर्थ में गीता जयंती मनाई है, ऐसा कहा जाएगा। गीता माँ का पवित्र संदेश अपने जीवन में चरितार्थ करके हम भी सच्चे अर्थ में धनुर्धर पार्थ बनने का संकल्प करें |
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गीता (श्रीमद भगवत गीता ) से जुड़े कुछ प्रश्न (जिज्ञासा) और उनके उत्तर–
प्रश्न:– आज (सन् 2016) तक तो यह सुनने में आया है कि गीता जी का ज्ञान श्री कृष्ण ने बोला। आपने बताया कि श्री कृष्ण के शरीर में प्रवेश करके काल ने गीता ज्ञान कहा और श्री कृष्ण को तो पता ही नहीं था कि उन्होंने क्या ज्ञान कहा था? यह असत्य प्रतीत होता है, कोई प्रमाण बताएं।
उत्तरः– आपको ढ़ेर सारे प्रमाण देते हैं, जिनसे स्वसिद्ध हो जाता है कि गीता शास्त्र का ज्ञान “काल” ने कहा। सर्व प्रथम गीता से ही प्रमाणित करता हूँ।
प्रमाण नं. 1.:- गीता अध्याय 10 में जब गीता ज्ञान दाता ने अपना विराट रूप दिखा दिया तो उसको देखकर अर्जुन काँपने लगा, भयभीत हो गया। यहाँ पर यह बताना भी अनिवार्य है कि अर्जुन का साला श्री कृष्ण था क्योंकि श्री कृष्ण की बहन सुभद्रा का विवाह अर्जुन से हुआ था।
गीता ज्ञान दाता ने जिस समय अपना भयँकर विराट रूप दिखाया जो हजार भुजाओं वाला था। तब अर्जुन ने पूछा (गीता अध्याय 11 श्लोक 31) कि हे देव! आप कौन हैं? हे सहंस्राबाहु (हजार भुजा वाले) आप अपने चतुर्भुज रूप में दर्शन दीजिए (क्योंकि अर्जुन उन्हें विष्णु अवतार कृष्ण तो मानता ही था, परन्तु उस समय श्री कृष्ण के शरीर से बाहर निकलकर काल ने अपना अपार विराट रूप दिखाया था) मैं भयभीत हूँ, आपके इस रूप को सहन नहीं कर पा रहा हूँ। (गीता अध्याय 11 श्लोक 46)
विचारें पाठक जन: क्या हम अपने साले से पूछेंगे कि हे महानुभव! बताईए आप कौन हैं? नहीं। एक समय एक व्यक्ति में प्रेत बोलने लगा। साथ बैठे भाई ने पूछा आप कौन बोल रहे हो? उत्तर मिला कि तेरा मामा बोल रहा हूँ। मैं दुर्घटना में मरा था। क्या हम अपने भाई को नहीं जानते? ठीक इसी प्रकार श्री कृष्ण में काल बोल रहा था।
प्रमाण नं. 2 गीता अध्याय 11 श्लोक 21 में अर्जुन ने कहा कि आप तो देवताओं के समूह के समूह को ग्रास (खा) रहे हैं जो आपकी स्तुति हाथ जोड़कर भयभीत होकर कर रहे हैं। महर्षियों तथा सिद्धों के समुदाय आप से अपने जीवन की रक्षार्थ मंगल कामना कर रहे हैं। गीता अध्याय 11 श्लोक 32 में गीता ज्ञान दाता ने बताया कि हे अर्जुन! मैं बढ़ा हुआ काल हूँ। अब प्रवर्त हुआ हूँ अर्थात् श्री कृष्ण के शरीर में अब प्रवेश हुआ हूँ। सर्व व्यक्तियों का नाश करूँगा। विपक्ष की सर्व सेना, तू युद्ध नहीं करेगा तो भी नष्ट हो जाएगी। इससे सिद्ध हुआ कि गीता का ज्ञान काल ने कहा है। श्री कृष्ण जी के शरीर में प्रविष्ट होकर श्री कृष्ण जी ने कभी नहीं कहा कि मैं काल हूँ। श्री कृष्ण जी को देखकर कोई भयभीत नहीं होता था। गोप-गोपियाँ, ग्वाल-बाल, पशु-पक्षी सब दर्शन करके आनन्दित होते थे। तो क्या श्री कृष्ण जी काल थे? नहीं। इसलिए गीता ज्ञान दाता काल है जिसने श्री कृष्ण जी के शरीर में प्रवेश करके गीता शास्त्रा का ज्ञान दिया।
प्रमाण नं. 3– गीता अध्याय 11 श्लोक 47 में गीता ज्ञानदाता ने कहा कि हे अर्जुन! मैंने प्रसन्न होकर अपनी शक्ति से तेरी दिव्य दृष्टि खोलकर यह विराट रूप दिखाया है। यह विराट रूप तेरे अलावा पहले किसी ने नहीं देखा है।
विचारणीय विषय:– प्रिय पाठको! महाभारत ग्रन्थ में प्रकरण आता है कि जिस समय श्री कृष्ण जी कौरवों की सभा में उपस्थित थे और उनसे कह रहे थे कि आप दोनों (कौरव और पाण्डव) आपस में बातचीत करके अपनी सम्पत्ति (राज्य) का बटँवारा कर लो, युद्ध करना शोभा नहीं देता। पाण्डवों ने कहा कि हमें पाँच (5) गाँव दे दो, हम उन्हीं से निर्वाह कर लेंगे। दुर्योधन ने यह भी माँग नहीं मानी और कहा कि पाण्डवों के लिए सुई की नोक के समान भी राज्य नहीं है, युद्ध करके ले सकते हैं। इस बात से श्री कृष्ण भगवान बहुत क्षुब्द्ध हो गए तथा दुर्योधन से कहा कि तू पृथ्वी के नाश के लिए जन्मा है, कुलनाश करके टिकेगा। भले मानव! कहाँ आधा, राज्य कहाँ 5 गाँव। कुछ तो शर्म कर ले।
इतनी बात श्री कृष्ण जी के मुख से सुनकर दुर्योधन राजा आग-बबूला हो गया और सभा में उपस्थित अपने भाईयों तथा मन्त्रिायों से बोला कि इस कृष्ण यादव को गिरफ्तार कर लो। उसी समय श्री कृष्ण जी ने विराट रूप दिखाया। सभा में उपस्थित सर्व सभासद उस विराट रूप को देखकर भयभीत होकर कुर्सियों के नीचे छिप गए, कुछ आँखों पर हाथ रखकर जमीन पर गिर गए। श्री कृष्ण जी सभा छोड़ कर चले गए तथा अपना विराट रूप समाप्त कर दिया।
अब उस बात पर विचार करते हैं जो गीता अध्याय 11 श्लोक 47 में गीता ज्ञान दाता ने कहा था कि यह मेरा विराट रूप तेरे अतिरिक्त अर्जुन! पहले किसी ने नहीं देखा था। यदि श्री कृष्ण गीता ज्ञान बोल रहे होते तो यह कभी नहीं कहते कि मेरा विराट रूप तेरे अतिरिक्त पहले किसी ने नहीं देखा था क्योंकि श्री कृष्ण जी के विराट रूप को कौरव तथा अन्य सभासद पहले देख चुके थे।
इससे सिद्ध हुआ कि श्रीमद्भगवत गीता का ज्ञान श्री कृष्ण ने नहीं कहा, उनके शरीर में प्रेतवत प्रवेश करके काल (क्षर पुरूष) ने कहा था। यह तीसरा प्रमाण हुआ।
प्रमाण नं. 4– श्री विष्णु पुराण (गीता प्रैस गोरखपुर से प्रकाशित) के पृष्ठ 233 पर प्रमाण है कि एक समय देवताओं और राक्षसों का युद्ध हुआ। देवता पराजित होकर समुद्र के किनारे जाकर छिप गए। फिर भगवान की तपस्या स्तुति करने लगे। काल का विधान है अर्थात् काल ने प्रतिज्ञा कर रखी है कि मैं अपने वास्तविक काल रूप में कभी किसी को दर्शन नहीं दूंगा। अपनी योग माया से छिपा रहूँगा। (प्रमाण गीता अध्याय 7 श्लोक 24-25 में) इसलिए यह काल (क्षर पुरूष) किसी को विष्णु जी के रूप में दर्शन देता है, किसी को शंकर जी के रूप में, किसी को ब्रह्मा जी के रूप में दर्शन देता है।
देवताओं को श्री विष्णु जी के रूप में दर्शन देकर कहा कि मैंने जो आप की समस्या है, वह जान ली है। आप पुरंज्य राजा को युद्ध के लिए तैयार कर लो। मैं उस राजा श्रेष्ठ के शरीर में प्रविष्ट होकर राक्षसों का नाश कर दूंगा, ऐसा ही किया गया। (अधिक ज्ञान के लिए आप जी विष्णु पुराण पढ़ सकते हैं।
प्रमाण नं. 5– श्री विष्णु पुराण के पृष्ठ 243 पर प्रमाण है कि एक समय नागवंशियों तथा गंधर्वों का युद्ध हुआ। गंधर्वों ने नागों के सर्व बहुमूल्य हीरे, लाल व खजाने लूट लिए, उनके राज्य पर भी कब्जा कर लिया। नागाओं ने भगवान की स्तुति की, वही काल भगवान विष्णु रूप धारण करके प्रकट हुआ। कहा कि आप पुरूकुत्स राजा को गंधर्वों के साथ युद्ध के लिए तैयार कर लें। मैं राजा पुरूकुत्स के शरीर में प्रवेश करके दुष्ट गंधर्वों का नाश कर दूँगा, ऐसा ही हुआ।
उपरोक्त विष्णु पुराण की दोनांे कथाओं से स्पष्ट हुआ (प्रमाणित हुआ) कि यह काल भगवान (क्षर पुरूष) इस प्रकार अव्यक्त (गुप्त) रहकर कार्य करता है। इसी प्रकार इसने श्री कृष्ण जी में प्रवेश करके गीता का ज्ञान कहा है।
प्रमाण नं. 6– महाभारत ग्रन्थ में (गीता प्रैस गोरखपुर (न्ण्च्) से प्रकाशित में) भाग-2 पृष्ठ 667 पर लिखा है कि महाभारत के युद्ध के पश्चात् राजा युधिष्ठर को राजगद्दी पर बैठाकर श्री कृष्ण जी ने द्वारिका जाने की तैयारी की। तब अर्जुन ने श्री कृष्ण जी से कहा कि आप वह गीता वाला ज्ञान फिर से सुनाओ, मैं उस ज्ञान को भूल गया हूँ। श्री कृष्ण जी ने कहा कि हे अर्जुन! आप बड़े बुद्धिहीन हो, बड़े श्रद्धाहीन हो। आपने उस अनमोल ज्ञान को क्यों भुला दिया, अब मैं उस ज्ञान को नहीं सुना सकता क्योंकि मैंने उस समय योगयुक्त होकर गीता का ज्ञान सुनाया था।
विचार करें:- युद्ध के समय योगयुक्त हुआ जा सकता है तो शान्त वातावरण में योगयुक्त होने में क्या समस्या हो सकती है? वास्तव में यह ज्ञान काल ने श्री कृष्ण में प्रवेश करके बोला था।
श्री कृष्ण जी को स्वयं तो वह गीता ज्ञान याद नहीं, यदि वे वक्ता थे तो वक्ता को तो सर्व ज्ञान याद होना चाहिए। श्रोता को तो प्रथम बार में 40 प्रतिशत (चालीस प्रतिशत) ज्ञान याद रहता है। इससे सिद्ध है कि गीता का ज्ञान श्री कृष्ण जी में प्रवेश होकर काल (क्षर पुरूष) ने बोला था। उपरोक्त प्रमाणों से स्पष्ट हुआ कि श्री मद्धभगवत गीता का ज्ञान श्री कृष्ण ने नहीं कहा। उनको तो पता ही नहीं कि क्या कहा था, श्री कृष्ण जी के शरीर में प्रवेश करके काल पुरूष (क्षर पुरूष) ने बोला था।
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स्वकल्याण हेतु इस गीता जयंती (मोक्षदा एकादशी) (शनिवार, 10 दिसंबर 2016 ) को करें ये उपाय–
धर्म ग्रन्थों के अनुसार, मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को ये गीता जयंती का पर्व मनाया जाता है और इस बार ये पर्व 10 दिसम्बर 2016 को दिन शनिवार को आ रहा है । गीता मोक्ष प्रदान करती है इसलिए इस एकादशी को मोक्षदा एकादशी भी कहते है ।
गीता जयंती अपनी हर मनोकामना पूर्ण करने का सबसे बढ़िया दिन है । इस दिन अगर हर व्यक्ति श्रीकृष्ण को प्रसन्न करने वाले उपाय करे तो हर मनोकामना पूरी हो सकती है । निचे कुछ उपाय दिए है अगर आप ये उपाय करते है तो निश्चित ही आप श्रीकृष्ण जी की कृपा पाएंगे ।
—-एक नारियल और कुछ बादाम किसी भी कृष्ण मंदिर में जा कर लगातार 21 दिन तक चढ़ाये और ये उपाय आप गीता जयंती से शुरू कर के लगातार 21 दिन तक करे । अवश्य ही आपकी हर मनोकामना पूर्ण हो सकती है।
—अगर आपको पैसो की तंगी चल रही है तो गीता जयंती वाले दिन सुबह स्नानादि करने के बाद राधा-कृष्ण मंदिर में जा कर उनके दर्शन करे और पीले फूल से बनी माला अर्पित करे । इस उपाय से आपकी धन संबंधी परेशानियो का समाधान होगा ।
—-अगर आप अपने जीवन सुख और समृद्धि पाना चाहते है तो गुलाब जल में केसर मिला कर भगवान कृष्ण जी का जलाभिषेक करे । इस उपाय से आपके घर में भी शांति का वातावरण होगा ।
—-गीता जयंती पर केले के दो पौधे लगाए और इनकी नियमत रूप से देखभाल करे और जब भी इन पर फल लगे तो इनको स्वयं न खा कर दान करे । इससे माँ लक्ष्मी की कृपा आप पर बनेगी ।
—-धन लाभ पाने हेतु ये उपाय करे । गीता जयंती पर भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करे और उनको पान अर्पित करे । पूजा के बाद पान पर रोली से श्री लिख कर अपनी धन रखने वाली जगह पर रख दे आपको लाभ होगा ।
—-भगवान श्रीकृष्ण जी को जल्दी प्रसन्न करना चाहते है तो आप उन्हें खीर का भोग लगाए और तुलसी के पत्ते डालना मत भूलना ।
—गीता जयंती पर भगवान श्रीकृष्ण जी का दक्षिणावर्ती शंख से जलाभिषेक करे । इस उपाय से माँ लक्ष्मी जी बहुत जल्दी प्रसन्न होते है और हर इच्छा पूरी करते है ।
—-भगवान श्रीकृष्ण के इस मंत्र का जप तुलसी की माला से श्री कृष्ण के किसी भी मंदिर में जाकर करे ।
मंत्र :
क्लीं कृष्णाय वासुदेवाय हरिः परमात्मने प्रणतः
क्लेशनाशाय गोविंदाय नमो नमः
—-सभी समस्याओं के समाधान के लिए इस उपाय का प्रयोग कर सकते है । गीता जयंती पर भगवान श्रीकृष्ण को पीले वस्त्र , पीले फल व अनाज चढ़ाये और बाद में इन सब को जरूरतमंद लोगो में बाँट दे ।
—-मन की शांति के लिए ये उपाय करे । गीता जयंती की शाम को माँ तुलसी के सामने गाय के शुद्ध घी का दीपक जलाये और ॐ वासुदेवाय नमः मंत्र बोलते हुए 11 परिक्रमा करे ।
—- अपनी नोकरी या जॉब में प्रमोशन पाने हेतु या आमदनी बढ़ाने हेतु ये उपाय करे । गीता जयंती पर 7 कन्याओ को घर बुला कर उन्हें खीर या सफ़ेद मिठाई खिलाये । ये उपाय लगातार 5 शुक्रवार तक करे ।