सोच सझकर,ध्यान पूर्वक करें चतुर्दशी तिथि (.9  सितंबर 2..6 ,गुरुवार) पर श्राद्ध, 
इस तिथि को श्राद्ध करने से  होता है अशुभ परिणाम, जानिए क्यों—


श्राद्ध साधारण शब्दों में श्राद्ध का अर्थ अपने कुल देवताओं, पितरों, अथवा अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा प्रकट करना है। हिंदू पंचाग के अनुसार वर्ष में पंद्रह दिन की एक विशेष अवधि है जिसमें श्राद्ध कर्म किये जाते हैं इन्हीं दिनों को श्राद्ध पक्ष, पितृपक्ष और महालय के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि इन दिनों में तमाम पूर्वज़ जो शशरीर परिजनों के बीच मौजूद नहीं हैं वे सभी पृथ्वी पर सूक्ष्म रूप में आते हैं और उनके नाम से किये जाने वाले तर्पण को स्वीकार करते हैं।कहते हैं माता-पिता के ऋण को पूरा करने का दायित्व संतान का होता है। लेकिन जब संतान माता-पिता या परिवार के बुजूर्गों की, अपने से बड़ों की उपेक्षा करने लगती है तो समझ लेना चाहिये कि अब घर का बंटाधार होना तय है। इस स्थिति से बचने के लिये अपने पूर्वजों जो जीवित हैं उनके लिये सम्मान और जो पंचतत्व में विलीन हो चुके हैं उनके प्रति श्रद्धा का भाव होना जरुरी है। ज्योतिष शास्त्र मानता है यदि विधि द्वारा बनाये गये इस विधान का पालन नहीं होता तो जातक पर दोष लग जाता है। इसे पितृ दोष कहा जाता है। 
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जानिए कौन हैं पितर—-


परिवार के दिवंगत सदस्य चाहे वह विवाहित हों या अविवाहित, बुजूर्ग हों या बच्चे, महिला हों या पुरुष जो भी अपना शरीर छोड़ चुके होते हैं उन्हें पितर कहा जाता है। मान्यता है कि यदि पितरों की आत्मा को शांति मिलती है तो घर में भी सुख शांति बनी रहती है और पितर बिगड़ते कामों को बनाने में आपकी मदद करते हैं लेकिन यदि आप उनकी अनदेखी करते हैं तो फिर पितर भी आपके खिलाफ हो जाते हैं और लाख कोशिशों के बाद भी आपके बनते हुए काम बिगड़ने लग जाते हैं।
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कब होता है पितृपक्ष—


हिन्दूओं के धार्मिक ग्रंथों में पितृपक्ष के महत्व पर बहुत सामग्री मौजूद हैं। इन ग्रंथों के अनुसार पितृपक्ष भाद्रपद की पूर्णिमा से ही शुरु होकर आश्विन मास की अमावस्या तक चलते हैं। दरअसल आश्विन माह के कृष्ण पक्ष को पितृपक्ष कहा जाता है। भाद्रपद पूर्णिमा को उन्हीं का श्राद्ध किया जाता है जिनका निधन वर्ष की किसी भी पूर्णिमा को हुआ हो। कुछ ग्रंथों में भाद्रपद पूर्णिमा को देहत्यागने वालों का तर्पण आश्विन अमावस्या को करने की सलाह दी जाती है। शास्त्रों में वर्ष के किसी भी पक्ष (कृष्ण-शुक्ल) में, जिस तिथि को स्वजन का देहांत हुआ हो उनका श्राद्ध कर्म पितृपक्ष की उसी तिथि को करना चाहिये।
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जानिए क्या होता है पितृ दोष—


जब परिवार में किसी की समय-असमय मृत्यु हो जाती है और जिनके संस्कार में किसी तरह की कमी रह जाती है या उन्हें वह सम्मान नहीं दिया जाता जिसके वे हकदार हैं तो मान्यता है कि ऐसी स्थिति में वे दिवंगत आत्माएं नकारात्मक ऊर्जा का संचार करती हैं जिससे परिवार में अशांति रहने लगती है और बने बनाये काम बिगड़ने लगते हैं। इसे ही पितृ दोष कहा जाता है। जब विवाह या संतानोत्पत्ति में समस्या का सामना करना पड़ रहा हो। व्यापार में घाटा हो रहा हो या फिर धन की हानि हो रही हो तो आप पर पितृ दोष हो सकता है। हालांकि इसकी पुष्टि तो जातक की कुंडली के अध्ययन के उपरांत ही विद्वान आचार्य कर सकते हैं।
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जानिए कब लगता है पितृदोष—-


पितृदोष के बारे में आपने जाना आइये अब जानते हैं कि यह दोष लगता कब है। सबसे पहली बात तो यही है कि जब जातक माता-पिता की सेवा के अपने दायित्व को पूरा नहीं करते तो इससे पितृदोष लगता है। लेकिन ज्योतिषशास्त्र के अनुसार ग्रहों की दशा भी है जिससे जातक पर पितृदोष लगता है।


मान्यता है कि सूर्यग्रहण के दौरान सूर्य राहू से पीड़ित होता है, इसलिये इस स्थिति में पितृदोष लगता है। चूंकि सूर्य को आत्मज, पिता स्वरुप, पिता का अंश माना जाता है इसलिये जब जातक की कुंडली में पितृदोष लगता है। इसके अलावा दशमेश या नवमेश पाप ग्रहों से दृष्ट हों या युक्ति कर रहे हों तो इसे भी पितृदोष कहा जाता है। इसके अलावा जातक का जन्म अमावस्या का हो तो इस समय सूर्य, चंद्रमा एक साथ हो जाते हैं यह स्थिति भी पितृदोष की कारक मानी जाती है।


केतु और सूर्य का युक्ति संबंध भी पितृदोष की श्रेणी में आता है। गुरु ग्रह की युक्ति से भी पितृदोष लगता है। अगर राहू केतु के बीच में सारे ग्रह आ जायें तो इस दोष को कालसर्प दोष इस स्थि में भी पितृदोष लगता है जिसके उपाय जरुर करने चाहिये।
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जानिए की क्यों ना करें चतुर्दशी तिथि पर श्राद्ध—


हिंदू धर्म के अनुसार, श्राद्ध पक्ष में परिजनों की मृत्यु तिथि के अनुसार ही श्राद्ध करने का विधान है, लेकिन श्राद्ध पक्ष की चतुर्दशी तिथि (29  सितंबर 2016 ,गुरुवार ) को श्राद्ध करने की मनाही है। महाभारत के अनुसार, इस दिन केवल उन परिजनों का ही श्राद्ध करना चाहिए, जिनकी मृत्यु किसी दुर्घटना में या शस्त्राघात (शस्त्र के वार से) से हुई हो। 


इस तिथि पर अकाल मृत्यु (दुर्घटना, आत्महत्या आदि) को प्राप्त पितरों का श्राद्ध करने का ही महत्व है। इस तिथि पर स्वाभाविक रूप से मृत परिजनों का श्राद्ध करने से श्राद्ध करने वाले को अनेक प्रकार की मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। ऐसी स्थिति में उन परिजनों का श्राद्ध सर्वपितृमोक्ष अमावस्या के दिन करना श्रेष्ठ रहता है। 


श्राद्ध पक्ष की चतुर्दशी तिथि से संबंधित अन्य बातें इस प्रकार हैं-


— चतुर्दशी तिथि पर अकाल रूप से मृत परिजनों का श्राद्ध करने का विधान है। अकाल मृत्यु से अर्थ है जिसकी मृत्यु हत्या, आत्महत्या, दुर्घटना आदि कारणों से हुई है। इसलिए इस श्राद्ध को शस्त्राघात मृतका श्राद्ध भी कहते हैं। जिन पितरों की मृत्यु ऊपर लिखे गए कारणों से हुई हो तथा मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं हो, उनका श्राद्ध इस तिथि को करने से वे प्रसन्न होते हैं व अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं।


—-महाभारत के अनुशासन पर्व में भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को बताया है कि जो लोग आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को तिथि अनुसार श्राद्ध करते हैं, वे विवादों में घिर जाते हैं। उसके घर वाले जवानी में ही मर जाते हैं और श्राद्धकर्ता को भी शीघ्र ही लड़ाई में जाना पड़ता है। इस तिथि के दिन जिन लोगों की मृत्यु स्वाभाविक रूप से हुई हो, उनका श्राद्ध सर्वपितृमोक्ष अमावस्या के दिन करना उचित रहता है। 


—चतुर्दशी श्राद्ध के संबंध में ऐसा ही वर्णन कूर्मपुराण में भी मिलता है कि चतुर्दशी को श्राद्ध करने से अयोग्य संतान की प्राप्ति होती है।
—-याज्ञवल्क्यस्मृति के अनुसार, भी चतुर्दशी तिथि के संबंध में यही बात बताई गई है। इसमें भी चतुर्दशी को श्राद्ध के लिए निषेध माना गया है। इनके अनुसार चतुर्दशी का श्राद्ध करने से श्राद्ध करने वाला विवादों में उलझ सकता है।     
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जानिए पितृदोष निवारण के उपाय—


पितृदोष का निवारण करने के लिये पितृपक्ष में पितरों के नाम से तृपण करवाना चाहिये। इसके साथ-साथ किसी गरीब ब्राह्मण को भोजन करवाना चाहिये। वेदों का अध्ययन करने वाले ब्राह्मण को अध्ययन सामग्री का दान करने से भी पितृदोष का प्रभाव कम होता है। इसके अलावा पीपल के वृक्ष की पूजा करने से भी पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। 


पितृपक्ष में कव्वे, चींटियों, गाय, कुत्ते के लिये भोजन की व्यवस्था करनी चाहिये। किसी गरीब व भूखे व्यक्ति को भी भोजन खिलाना चाहिये। इसके अलावा नलकूप, धर्मशाला, वृद्धाश्रम आदि में भी दान करना चाहिये। गीता, भागवत पुराण, विष्णु सहस्रनाम, गरुड़पुराण, गजेंद्र मोक्ष, गायत्री मंत्र आदि का पाठ भी सुयोग्य ब्राह्मण से करवाना चाहिये। 


उज्जैन (मध्यप्रदेश) स्थित सिद्धवट तीर्थ एवम गया कोठी कुंड/मंदिर  के साथ साथ गंगा घाट हरिद्वार, काशी, प्रयाग आदि तीर्थ स्थलों में पितृ पक्ष के दौरान पितरों के नाम से पिंड दान दें तो इससे भी पितृदोष का प्रभाव कम हो सकता है।


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