जाने और समझे पित्र दोष के कारण और निवारण के उपायों को–


भारतीय हिन्‍दुधर्म की मान्‍यतानुसार पितृ दोष एक ऐसी स्थिति का नाम है, जिसके अन्‍तर्गत किसी एक के किए गए पापों का नुकसान किसी दूसरे को भोगना पडता है।


उदाहरण के लिए पिता के पापों का परिणाम यदि पुत्र को भोगना पडे, तो इसे पितृ दोष ही कहा जाएगा क्‍योंकि हिन्‍दु धर्म की मान्‍यता यही है कि पिता के किए गए अच्‍छे या बुरे कामों का प्रभाव पुत्र पर भी पडता है। इसलिए यदि पिता ने अपने जीवन में अच्‍छे कर्म की तुलना में बुरे कर्म अधिक किए हों, तो मृत्‍यु के बाद उनकी सद्गति नहीं होती और ऐसे में वे प्रेत योनि में प्रवेश कर अपने ही कुल को कष्ट देना शुरू कर देते हैं। इसी स्थिति को पितृ दोष के नाम से जाना जाता है।


इसके अलावा ऐसा भी माना जाता है कि किसी भी व्‍यक्ति के पूर्वज पितृलोक में निवास करते हैं और पितृ पक्ष के दौरान ये पूर्वज पृथ्‍वी पर आते हैं तथा अपने वंशजों से भोजन की आशा रखते हैं। इसलिए जो लोग पितृपक्ष में अपने पूर्वजों या पितरों जैसे कि पिता, ताया, चाचा, ससुर, माता, ताई, चाची और सास आदि का श्राद्ध, तर्पण, पिण्‍डदान आदि नहीं करते, उनके पितर अपने वंशजों से नाराज हाेकर श्राप देते हुए पितृलोक को लौटते हैं, जिससे इन लोगों को तरह-तरह की परेशानियों जैसे कि आकस्मिक दुर्घटनाओं, मानसिक बीमारियों, प्रेत-बाधा आदि से सम्‍बंधित अज्ञात दु:खों को भोगना पडता है और जिन्‍हें पितृ दोष जनित माना जाता है।


साथ ही ऐसी भी मान्‍यता है कि जो लोग अपने पूर्वजन्‍म में अथवा वर्तमान जन्‍म में अपने से बडों का आदर नहीं करते बल्कि उनका अपमान करते हैं, उन्‍हें पीडा पहुंचाते हैं, अपने, पूर्वजों का शास्त्रानुसार श्राद्ध व तर्पण नहीं करते, पशु-पक्षियों की व्यर्थ ही हत्या करते हैं और विशेष रूप से रेंगने वाले जीवों जैसे कि सर्प आदि का वध करते हैं, ऐसे लोगों को पितृ दोष का भाजन बनना पडता है।पितृ गण हमारे पूर्वज  हैंजिनका ऋण हमारे ऊपर है ,क्योंकि   उन्होंने कोई ना कोई उपकार हमारे जीवन के लिए  किया है | मनुष्य लोक से ऊपर पितृ लोक है,पितृ लोक के ऊपर सूर्य लोक है एवं इस से भी ऊपर स्वर्ग लोक है|  आत्मा जब अपने शरीर को त्याग कर सबसे पहले ऊपर उठती है तो वह पितृ लोक में जाती है ,वहाँ हमारे पूर्वज  मिलते हैं |अगर उस आत्मा के अच्छे पुण्य हैं तो ये हमारे पूर्वज भी उसको प्रणाम कर अपने को धन्य मानते हैं की इस अमुक आत्मा ने हमारे कुल में जन्म लेकर हमें धन्य किया |इसके आगे आत्मा अपने पुण्य के आधार  पर सूर्य लोक की तरफ बढती है |वहाँ से आगे  ,यदि और अधिक पुण्य हैं, तो आत्मा सूर्य लोक को बेध कर  स्वर्ग लोक की तरफ चली जाती है,लेकिन करोड़ों में एक आध आत्मा ही ऐसी होती है ,जो परमात्मा में समाहित  होती है |जिसे दोबारा जन्म नहीं लेना पड़ता | मनुष्य लोक एवं पितृ लोक  में बहुत सारी आत्माएं पुनः अपनी इच्छा वश  ,मोह वश अपने कुल में जन्म लेती हैं|


पितृ दोष के संदर्भ में यदि हम धार्मिक मान्‍यताओं के अनुसार बात करें तो जब हमारे पूर्वजों की मृत्‍यु होती है और वे सदगति प्राप्‍त न करके अपने निकृष्‍ट कर्मो की वजह से अनेक प्रकार की कष्टकारक योनियों में अतृप्ति, अशांति व असंतुष्टि का अनुभव करते हैं, तो वे अपने वंशजों से आशा करते हैं कि वे उनकी सद्गति या मोक्ष का कोई साधन या उपाय करें जिससे उनका अगला जन्म हो सके अथवा उनकी सद्गति या मोक्ष हो सके।
मृत्यु के पश्चात संतान अपने पिता का श्राद्ध नहीं करते हैं एवं उनका जीवित अवस्था में अनादर करते हैं तो पुनर्जन्म में उनकी कुण्डली में पितृदोष ( Pitra dosha) लगता है. सर्प हत्या या किसी निरपराध की हत्या से भी यह दोष लगता है.पितृ दोष को अशुभ प्रभाव देने वाला माना जाता है.
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पितृदोष किसे कहते है ?
हमारे पूर्वज, पितर जो कि अनेक प्रकार की कष्टकारक योनियों में अतृप्ति, अशांति, असंतुष्टि का अनुभव करते हैं एवं उनकी सद्गति या मोक्ष किसी कारणवश नहीं हो पाता तो हमसे वे आशा करते हैं कि हम उनकी सद्गति या मोक्ष का कोई साधन या उपाय करें जिससे उनका अगला जन्म हो सके एवं उनकी सद्गति या मोक्ष हो सके। उनकी भटकती हुई आत्मा को संतानों से अनेक आशाएं होती हैं एवं यदि उनकी उन आशाओं को पूर्ण किया जाए तो वे आशिर्वाद देते हैं। यदि पितर असंतुष्ट रहे तो संतान की कुण्डली दूषित हो जाती है एवं वे अनेक प्रकार के कष्ट, परेशानीयां उत्पन्न करते है, फलस्वरूप कष्टों तथा र्दुभाग्यों का सामना करना पडता है।


पितृ दोष से पीड़ित जातक की कुंडली का अध्ययन कर ग्रह उपचार के द्वारा पितृदोष का निवारण किया जा सकता है। ज्योतिष में सूर्य को पिता का कारक व मंगल को रक्त का कारक माना गया है। अतः जब जन्मकुंडली में सूर्य या मंगल, पाप प्रभाव में होते हैं तो पितृदोष का निर्माण होता है। इस प्रकार कुंडली से समझा जाता है कि जातक पितृदोष से युक्त है। यदि समय रहते, इस दोष का निवारण कर लिया जाए तो पितृ दोष से मुक्ति मिल सकती है।
हमारे जीवन में कई समस्याएं मूलभूत आध्यात्मिक कारणों से होती हैं। उन कारणों में से एक है, मृत पूर्वजों की अतृप्ति के कारण वंशजों को होने वाला कष्ट, जिसे पितृदोष कहते हैं। लोगों को किसी न किसी प्रकार से प्रभावित करने वाले अनेक आध्यात्मिक कारणों में यह एक सामान्य कारण है। पूर्वजों के कारण वंशजों को किसी प्रकार का कष्ट ही पितृदोष है।


ज्योतिष में पितृदोष का बहुत महत्व माना जाता है। प्राचीन ज्योतिष ग्रंथों में पितृदोष सबसे बड़ा दोष माना गया है। इससे पीड़ित व्यक्ति का जीवन अत्यंत कष्टमय हो जाता है। जिस जातक की कुंडली में यह दोष होता है उसे धन अभाव से लेकर मानसिक क्लेश तक का सामना करना पड़ता है। पितृदोष से पीड़ित जातक की उन्नति में बाधा रहती है।पितृदोष के कारण हमारे सांसारिक जीवन में और आध्यात्मिक साधना में बाधाएं उत्पन्न होती हैं। इस पर अनेक प्रकार के उपाय करने पर भी परिवार के सभी सदस्यों को कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। दैनिक जीवन में पितृदोष के कई लक्षण दिखाई देते हैं। ज्योतिष के अनुसार विवाह न हो पाना, वैवाहिक जीवन में अशांति, घर में कलेष आदि पितृदोष से होते हैं। हालांकि इसके कई अन्य कारण भी हो सकते हैं। 


पितृ दोष का सिद्धांत है – करे कोई, भरे कोई। पिता के पापों का परिणाम पुत्र को भोगना ही पड़ता है,यदि उन्हें मुक्ति नहीं मिलती है तो वे प्रेत योनि में प्रवेश कर अपने ही कुल को कष्ट देना शुरू कर देते हैं। कभी-कभी देखने में आता है कि हमारा कोई भी दोष नहीं होता, हमने कोई पाप कर्म नहीं किया होता, फिर भी हमें कष्ट भोगना पड़ता है। यह पितृदोष के कारण होता है।


ऐसे कुछ कारण निम्न हो सकते हैं- पिता, ताया, चाचा, ससुर, माता, ताई, चाची और सास का अपमान करना, पूर्वजों का शास्त्रानुसार श्राद्ध व तर्पण न करना, पशु पक्षियों की व्यर्थ ही हत्या करना, सर्प वध करना। पितृदोष के निवारण हेतु उपाय विधिपूर्वक उपाय करने से व्यक्ति स्वयं, अपने पितरों व आने वाली पीढ़ी को इस दोष के प्रभावों से बचा सकता है। 


ज्योतिष शास्त्र में सूर्य से पिता , चन्द्र से माता , गुरु से पितामह , बुध-मंगल से भाई बहन आदि के बारे में जानकारी मिलती है 
जैसे कुंडली में यदि कही चंद्र राहु, चंद्र केतु, चंद्र बुध, चंद्र, शनि आदि का सम्बन्ध बनता है तो मातृ पक्ष से योग बनता है या मातृ दोष कहलाते हैं। 


यदि चंद्र-राहु एवं सूर्य-राहु योगों को ग्रहण योग तथा बुध-राहु को जड़त्व योग कहते हैं।


जन्म कुंडली के प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम व दशम भावों में से किसी एक भाव पर सूर्य-राहु अथवा सूर्य-शनि का योग हो तो जातक को पितृ दोष होता है। यह योग कुंडली के जिस भाव में होता है उसके ही अशुभ फल घटित होते हैं।


प्रथम भाव में :- इसे ज्योतिष में लग्न कहते है यह शारीर का प्रतिनिधित्व करता है ,सूर्य-राहु अथवा सूर्य-शनि आदि अशुभ योग हो तो वह व्यक्ति अशांत, गुप्त चिंता, दाम्पत्य एवं स्वास्थ्य संबंधी परेशानियाँ होती हैं।
दूसरे भाव:– इस भाव से धन, परिवार आदि के बारे में पता चलता है इस भाव में यह योग बने तो परिवार में वैमनस्य व आर्थिक उलझनें हों, 
चतुर्थ भाव :- इस भाव से माता , वाहन , जमीन में पितृ योग के कारण भूमि, मकान, माता-पिता एवं गृह सुख में कमी या कष्ट होते हैं। 
पंचम भाव में उच्च विद्या में विघ्न व संतान सुख में कमी होने के संकेत हैं। 
सप्तम में यह योग वैवाहिक सुख में कमी करता है 
नवम भाव :- अगर किसी भी तरह से नवां भाव या नवें भाव का मालिक राहु या केतु से ग्रसित है तो यह सौ प्रतिशत पितृदोष के कारणों में आजाता है।
दशम भाव :- पिता के स्थान-दशम् भाव का स्वामी 6, 8, .. वें भाव में चला जाए एवं गुरु पापी ग्रह प्रभावित या राशि में हो साथ ही लग्न व पंचम के स्वामी पाप ग्रहों से युति करे तो ऐसी कुंडली पितृशाप दोष युक्त कहलाती है। सर्विस या कार्य व्यवसाय संबंधी परेशानियाँ होती हैं। 


किसी कुंडली में लग्नेश ग्रह यदि कोण (6,8 या 12) वें भाव में स्थित हो तथा राहु लग्न भाव में हो तब भी पितृदोष होता है। 
पितृयोग कारक ग्रह पर यदि त्रिक (6, 8,12) भावेश एवं भावों के स्वामी की दृष्टि अथवा युति का संबंध भी हो जाए, तो अचानक वाहनादि के कारण दुर्घटना का भय, प्रेत बाधा, ज्वर, नेत्र रोग, तरक्की में रुकावट या बनते कार्यों में विघ्न, अपयश, धन हानि आदि अनिष्ट फल होते हैं। 


ऐसी स्थिति में पितरों का तर्पण करने से पितृ आदि दोषों की शांति होती है।
इन योगों के प्रभावस्वरूप भी भावेश की स्थिति अनुसार ही अशुभ फल प्रकट होते हैं। 


‘श्रद्धया यत् क्रियते तत् श्राद्धम्’ 


पितरों को प्रसन्न करने के लिए श्रद्धा द्वारा हविष्ययुक्त (पिंड) प्रदान करना ही श्राद्ध कहलाता है। श्राद्ध करने से पितर संतुष्ट होते हैं और वे अपने वंशजों को दीर्घायु, प्रसिद्धि, बल-तेज एवं निरोगता के साथ-साथ सभी प्रकार के पितृ दोष से मुक्ति प्रदान करने का आशीर्वाद देते हैं।


उनकी भटकती हुई आत्मा को यदि सद्गति देने के लिए उनके वंशज कोई प्रयास करते हैं, तो वे आत्‍माऐं उन्‍हें आर्शीवाद देती हैं, जिससे उन लोगों की जिन्‍दगी धार्मिक, आर्थिक, व्‍यावसायिक, सामाजिक व मानसिक आदि सभी स्‍तरों पर काफी अच्‍छी हो जाती है। लेकिन यदि सद्गति देने के लिए उनके वंशज कोई प्रयास न करें, तो पूर्वजाें की आत्‍माऐं यानी पितर असंतुष्ट रहते हैं और अपने वंशजों को दु:खी करते हैं, जिसका लक्षण वंशजों की जन्‍म-कुण्‍डली में पितृ दोष के रूप में परिलक्षित होता है।


पितृ पक्ष में हम अपने पितरों के लिए पूजन आदि करते है । अपने इस लेख में हम आपको पित्र दोष की कुछ लक्षण आदि बताएं है कि अगर कुंडली में पित्र दोष हो तो घर और परिवार पर इसका कैसा असर पड़ सकता है , आइये , पहले लक्षणों को देखते है||


हिन्‍दु धर्म में पितृदोष से कई प्रकार की हानियों का विस्‍तृत वर्णन है जिनके अन्‍तर्गत यदि कोई व्‍यक्ति पित्रृदोष से पीडित हो, तो उसे अनेक प्रकार की मानसिक परेशानियां व हानियां उठानी पडती है, जिनमें से कुछ निम्‍नानुसार हैं-


—राक्षस, भूत-प्रेत, पिशाच, डाकिनी-शाकिनी, ब्रहमराक्षस आदि विभिन्न प्रकार की अज्ञात परेशानियों से पीडित होना पडता है।
—ऐसे लोगों के घर में हमेंशा कलह व अशांति बनी रहती है।
—रोग-पीडाएं इनका पीछा ही नहीं छोडती।
—घर में आपसी मतभेद बने रहते है। आपस में लोगों के विचार नहीं मिल पाते जिसके कारण घर में झगडे होते रहते है।
— बनते कार्यों में अनेक प्रकार की बाधाएं उत्पन्न हो जाती है।
—-अकाल मृत्यु का भय बना रहता है।
—पितृ दोष वाले जातक क्रोधी स्वभाव वाले होते हैं। इन्हें अक्सर मानसिक व्यथा का सामना करना पड़ता है। 
—संकट, अनहोनीयां, अमंगल की आशंका बनी रहती है।
—संतान की प्राप्ति में विलंब होता है अथवा संतान होती ही नहीं है।
—घर में धन का अभाव रहता है।
—-राजकीय सेवा या नौकरी में अक्सर उन्हें अपने अधिकारियों के कोप का सामना करना पड़ता है। 
—-आय की अपेक्षा खर्च अधिक होता है अथवा अच्छी आय होने पर भी घर में बरकत नहीं होती जिसके कारण धन एकत्रित नहीं हो पाता।
—-संतान के विवाह में काफी परेशानीयां और विलंब होता है।
—-पिता से अच्छा तालमेल नहीं बैठ पाता। 
—-जीवन में किसी आकस्मिक नुकसान या दुर्घटना के शिकार होते हैं। 
—-शुभ तथा मांगलीक कार्यों में काफी दिक्कते उठानी पडती है।
—-अथक परिश्रम के बाद भी थोडा-बहुत फल मिलता है।
—बने-बनाए काम को बिगडते देर नहीं लगती।
—घर में पितृ दोष होगा तो घर के बच्चे की शिक्षा , दिमाग , बाल , व्यवहार पर अच्छा प्रभाव नहीं पड़ता । 
—-जिन जातकों को पितृ दोष होता है उनके लिए इस दिन का बहुत महत्व है , बहुत से कारण होते है की हमारे अपने पितरों से सम्बन्ध अच्छे नहीं हो पाते , कारण , आपके जीवन में रुकावटें , परेशानियाँ और क्या नहीं होता । इसीलिए इस दिन की गयी पूजा आपको लाभ पंहुचा सकती है । 
—-पितृ दोष कही न कही अनेको दोषों को उत्पन्न करने वाला होता है जैसे की वंश न बढ़ने का दोष , असफलता मिलने का दोष , बाधा दोष और भी बहुत कुछ । तो इन दिनों में की गयी पूजा और तर्पण अगर विधि विधान और मन लगाकर किया जाए तो अच्छे फल देने वाली सिद्ध होती है । 
—-बालो पर सबसे पहले प्रभाव पड़ता है , जैसे की , समय से पहले बालों का सफ़ेद हो जाना , सिर के बीच के हिस्से से बालों का कम होना , हर कार्य में नाकामी हाथ लगाना , घर में हमेशा कलह रहना , बीमारी घर के सदस्यों को चाहे छोटी हो या बड़ी घेरे रखती है , यह सब लक्षण पितृ दोष घर में है इसको बताते है । और अगर घर में पितृ दोष है तो किसी भी सदस्य को सफलता आसानी से हाथ नहीं लगती । 
—-पितृ दोष कुंडली में है अगर , तो कुंडली के अच्छे गृह उतना अच्छा फल जितना उन्हें देना चाहिए ।
—घर के सभी लोग आपस में झगड़ते है , घर के बच्चों के विवाह देरी से होते है , और काफी दिक्कतों का सामना भी करना पड़ता है विवाह करने में , घर में धन ना के बराबर रुकेगा अगर पितृ दोष हावी है तो , बीमारी या फिर क़र्ज़ देने में धन चला जायेगा जुडा हुआ धन , पुरानी चीजे ठीक कराने में धन निकल जायेगा पर रकेगा नहीं । 
—- उस परिवार की मान और प्रतिष्ठा में गिरावट आती है , पितृ दोष के कारण घर में पेड़-पौधे या फिर जानवर नहीं पनप पाते । घर में शाम आते आते अजीब सा सूनापन हो जायेगा जैसे की उदासी भरा माहौल , घर का कोई हिसा बनते बनते रह जायेगा या फिर बने हुए हिस्से में टूट-फुट होगी , उस हिस्से में दरारे आ जाती है । 
— उस घर का मुखिया बीमार रहता है , रसोई घर के अस – पास वाली दीवारों में दरार आ जाते है । जिस घर में पितृ दोष हावी होता है उस घर से कभी भी मेहमान संतुष्ट होकर नहीं जायेंगे चाहे आप कुछ भी क्यूँ न कर ले या फिर कितनी ही खातिरदारी कर ले , मेहमान हमेशा नुक्स निकाल कर रख देंगे यानी की मोटे तौर पर आपकी इज्ज़त नहीं करेंगे ।
—- उस घर परिवार में चीजे और साधन होते हुए भी घर के लोग खुश नहीं रहते । जब पैसे की जरुरत पड़ती है तो पैसा मिल नहीं पाता । ऐसे घर के बच्चों को उनकी नौकरी या फिर कारोबार में स्थायित्व लम्बे समय बाद ही हो पाता है , बच्चा तेज़ होते हुए भी कुछ जल्दी से हासिल नहीं कर पायेगा ऐसी परिस्थितियाँ हो जायेंगी ।
—- ध्यान रखें, जिस घर में पितृ दोष होता है उस घर में भाई-बहन में मन-मुटाव रहता ही रहता है , कभी कभी तो परिस्थितियाँ ऐसी हो जाती है की कोई एक दूसरे की शकल तक देखना पसंद नहीं करता । पति-पानी में बिना बात के झगडा होना भी ऐसे घर में स्वाभाविक है जिस घर में पितृ दोष हो ।
—-ऐसे घर में रहने वाले लोग जब एक दूसरे के साथ रहेंगे तो हमेशा कलेश करके रखेंगे परन्तु जैसे ही एक दुसरे से दूर जायेंगे तो प्रेम से बात करेंगे । 
—-घर में स्त्रियों के साथ दुराचार करना , उन्हें नीचा दिखाना , उनका सम्मान न करने से शुक्र गृह बहुत बुरा फल देता है जिसका असर आने वाली चार पीड़ियों तक रहता है । तो शुक्र गृह भी पित्र दोष लगाता है कुंडली में । 
—- ध्यान रखें, जिस घर में जानवरों के साथ बुरा सुलूक किया जाता है उस घर में पितृ दोष आना स्वाभाविक है । और जो जानवरों के साथ बुरा सुलूक करते है वह ही नहीं अपितु उनका पूरा परिवार और उनकी संतान पर पितृ दोष के बुरे प्रभाव के हिस्सेदार जाने-अनजाने में बन जाते है । 
—-जिस घर में विनम्र रहने वाले व्यक्ति का अपमान होता है वह घर पितृ दोष से पीड़ित होगा , साथ में जो लोग कमजोर व्यक्ति का अपमान करेंगे वह भी पितृ दोष से प्रभावित होंगे ।
—-जमीन हथियाने से , हत्या करने से पित्र दोष लगेगा ।
—-जो लोग समाज-विरॊधि काम काम करेंगे उनका बृहस्पति खराब होकर उनकी कई पीड़ियों तक पितृ दोष देता रहता है । 
—- ध्यान रखें जिस घर में बुजुर्गों का अपमान जहा हुआ वहां समझिये पितृ दोष आया ही आया ।
—-सीढ़ियों के निचे रसोई या फिर सामान इक्कठा करने का स्टोर बनाने से पितृ दोष लगता है ।
—मित्र या प्रेमी को दोख देने से पितृ दोष लगता है , शेर-मुखी घर में रहने वाले लोगो को पितृ दोष के दुष्प्रभाव झेलने पड़ते है । {शेर-मुखी ऐसा घर होता है जो शुरू शुरू में चौड़ा होता है परन्तु जैसे जैसे आप घर के अंदर जाते जायेंगे वह पतला होता चला जाता है }


विशेष सावधानी/ध्यान रखें,  यदि बहुत मेहनत करने के बाद भी वांछित सफलता प्राप्‍त न हो, हमेंशा किसी न किसी तरह की परेशानी लगी ही रहे, घर के किसी न किसी सदस्‍य को मानसिक परेशानी या मानसिक रोग लगा ही रहे, जिसका ईलाज अच्‍छे से अच्‍छा चिकित्‍सक भी ठीक से न कर पाए, घर के निवासियों के बार-बार बेवजह अकल्‍पनीय रूप से एक्सीडेंट्स होते हों, तो इस प्रकार की अप्राकृतिक स्थितियों का कारण पितृ दोष हो सकता है।
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पितृ दोष है या नहीं – कैसे जानें ?


हिन्‍दु धर्म में ज्‍योतिष को वेदों का छठा अंग माना गया है और किसी व्‍यक्ति की जन्‍म-कुण्‍डली देखकर आसानी से इस बात का पता लगाया जा सकता है कि वह व्‍यक्ति पितृ दोष से पीडित है या नहीं। क्‍योंकि यदि व्‍यक्ति के पितर असंतुष्‍ट होते हैं, तो वे अपने वंशजों की जन्‍म-कुण्‍डली में पितृ दोष से सम्‍बंधित ग्रह-स्थितियों का सृजन करते हैं।


भारतीय ज्‍योतिष-शास्‍त्र के अनुसार जन्म-पत्री में यदि सूर्य-शनि या सूर्य-राहु का दृष्टि या युति सम्‍बंध हो, जन्म-कुंडली के प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम व दशम भावों में से हो, तो इस प्रकार की जन्‍म-कुण्‍डली वाले जातक को पितृ दोष होता है। साथ ही कुंडली के जिस भाव में ये योग होता है, उसके सम्‍बंधित अशुभ फल ही प्राथमिकता के साथ घटित होते हैं। उदारहण के लिए यदि सूर्य-राहु अथवा सूर्य-शनि का अशुभ योग-


प्रथम भाव में हो, तो वह व्यक्ति अशांत, गुप्त चिंता, दाम्पत्य एवं स्वास्थ्य संबंधी परेशानियाँ होती हैं क्‍योंकि प्रथम भाव को ज्योतिष में लग्न कहते है और यह शरीर का प्रतिनिधित्व करता है।
दूसरे भाव में हो, तो धन व परिवार से संबंधित परेशानियाँ जैसे कि पारिवारिक कलह, वैमनस्य व आर्थिक उलझनें होती हैं।
चतुर्थ भाव में हो तो भूमि, मकान, सम्‍पत्ति, वाहन, माता एवं गृह सुख में कमी या कष्ट होते हैं।
पंचम भाव में हो तो उच्च विद्या में विघ्न व संतान सुख में कमी होने के संकेत होते हैं।
सप्तम भाव में हो तो यह योग वैवाहिक सुख व साझेदारी के व्‍यवसाय में कमी या परेशानी का कारण बनता है।
नवम भाव में हो, तो यह निश्चित रूप से पितृदोष होता है और भाग्‍य की हानि करता है।
दशम भाव में हो तो सर्विस या कार्य, सरकार व व्यवसाय संबंधी परेशानियाँ होती हैं।
उपरोक्‍तानुसार किसी भी प्रकार की ग्रह-स्थिति होने पर अचानक वाहनादि के कारण दुर्घटना का भय, प्रेत बाधा, ज्वर, नेत्र रोग, तरक्की में रुकावट या बनते कार्यों में विघ्न, अपयश, धन हानि व मानसिक रोगों से सम्‍बंधित अनिष्ट फल प्राप्‍त होते हैं।
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पितृ दोष दो प्रकार से प्रभावित करता है—


१.अधोगति वाले पितरों के कारण—
२. .उर्ध्वगति वाले पितरों के कारण—– 

अधोगति वाले पितरों के दोषों का मुख्य कारण परिजनों द्वारा किया गया गलत आचरण, परिजनों की अतृप्त इच्छाएं ,जायदाद  के प्रति मोह और उसका गलत लोगों द्वारा उपभोग होने पर,विवाहादिमें परिजनों द्वारा गलत निर्णय .परिवार के किसी  प्रियजन को अकारण कष्ट देने पर पितर क्रुद्ध हो जाते हैं , परिवार जनों को श्राप दे देते हैं और अपनी शक्ति से नकारात्मक फल प्रदान करते हैं| उर्ध्व गति वाले पितर सामान्यतः पितृदोष उत्पन्न नहीं करते ,
परन्तु उनका किसी भी रूप में अपमान होने पर अथवा परिवार के पारंपरिक रीति- रिवाजों का निर्वहन नहीं
 करने पर वह पितृदोष उत्पन्न करते हैं |


इनके द्वारा उत्पन्न पितृदोष से व्यक्ति की भौतिक एवं आध्यात्मिक उन्नति बिलकुल बाधित हो जाती है ,
फिर चाहे कितने भी प्रयास क्यों ना किये जाएँ ,कितने भी पूजा पाठ क्यों ना किये जाएँ, उनका कोई भी कार्य ये पितृदोष सफल नहीं होने देता | 
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जानिए पित्र दोष निवारण के सरल उपाय–


पीपल और बरगद के वृ्क्ष की पूजा करने से पितृ दोष की शान्ति होती है।
पितृपक्ष मे अपने पितरों की याद मे पीपल या बरगद का वृक्ष लगाकर, उसकी पूर्ण श्रद्धा से सेवा करने से भी पितृदोष समाप्त होता है ।
प्रत्येक अमावस्या को कंडे की धूनी लगाकर उसमें खीर का भोग लगाकर दक्षिण दिशा में पितरों का आव्हान करने व उनसे अपने कर्मों के लिये क्षमायाचना करने से भी पितृ दोष की शान्ति होती है।
सूर्योदय के समय किसी आसन पर खड़े होकर सूर्य को निहारने, जल चढाने, उससे शक्ति देने की प्रार्थना करने और गायत्री मंत्र का जाप करने से भी सूर्य मजबूत होता है जिसकी कमजोरी ही पितृ दोष का मुख्‍य कारण है।
सोमवती अमावस्या के दिन पितृ दोष निवारण पूजा करने से भी पितृ दोष में लाभ मिलाता है।
घर के सभी बड़े-बुजुर्गों को प्रेम, सम्मान और पूर्ण अधिकार दिया जाना चाहिए। धार्मिक मान्‍यता है कि ऐसा करने से पित्र दोष में लाभ मिलता है।
अमावस्या को बबूल के पेड़ पर संध्या के समय भोजन रखने से भी पित्तर प्रसन्न होते है।
आप चाहे किसी भी धर्म को मानते हो घर में भोजन बनने पर सर्वप्रथम पित्तरों के नाम की खाने की थाली निकालकर गाय को खिलाने से उस घर पर पित्तरों का सदैव आशीर्वाद रहता है। घर के मुखियां को भी चाहिए कि वह भी अपनी थाली से पहला ग्रास पित्तरों को नमन करते हुए कौओं के लिये अलग निकालकर उसे खिला दें।
श्री मद भागवत गीता का ग्यारहवां अध्याय का पाठ करें।
शनिवार के दिन पीपल की जड़ में गंगा जल, काला तिल चढाऐं।
जब भी किसी तीर्थ पर जाएं तो अपने पितरों के लिए तीन बार अंजलि में जल से उनका तर्पण अवश्य ही करें ।
पितृदोष निवारण के लिए अपने घर की दक्षिण दिशा की दीवार पर अपने दिवंगत पूर्वजों के फोटो लगाकर उन पर हार चढ़ाकर सम्मानित करना चाहिए तथा उनकी मृत्यु तिथि पर ब्राह्मणों को भोजन, वस्त्र एवं दक्षिणा सहित दान, पितृ तर्पण एवं श्राद्ध कर्म करने चाहिए।
भोजन से पहले तेल लगी दो रोटी गाय को खिलाएं।
श्राद्धपक्ष या वार्षिक श्राद्ध में ब्राह्मणों के लिए तैयार भोजन में पितरों की पसंद का पकवान जरुर बनाएं।
देवता और पितरों की पूजा स्थान पर जल से भरा कलश रखकर सुबह तुलसी या हरे पेड़ों में चढ़ाएं।
हालांकि कुण्‍डली में दिखाई देने वाला कोई भी दोष उस जातक के लिए कभी भी पूरी तरह से समाप्‍त नहीं हो सकता। लेकिन यदि किसी की कुण्‍डली में पितृ दोष हो, तो वह इन उपायों में से जितने सम्‍भव हो सके, उन्‍हें उपयोग में लेकर अपने पितृ दोष के प्रभावों में कमी ला सकता है।


यधपि मान्‍यता ये है कि यदि कोई पितृ दोष या कालसर्प दोष से पीडित हो और उसने कभी भी पितृ दोष या कालसर्प दोष निवारण से सम्‍बंधित कभी कोई उपाय नहीं किया है, तो उसकी जन्‍म-कुण्‍डली में पितृ दोष या कालसर्प दोष के योग जरूर होंगे। साथ ही उसकी संतानों की कुण्‍डली में भी पितृ दोष या कालसर्प दोष से सम्‍बंधित योग दिखाई देंगे और एेसा इसलिए होता है क्‍योंकि पितृ दोष व कालसर्प दोष कई पीढियों में आगे से आगे समान रूप से चलता रहता है।


इसलिए यदि आपकी कुण्‍डली में पितृ दोष या कालसर्प दोष है, तो उसका यथा सम्‍भव निवारण कीजिए। जब आप पितृ दोष या कालसर्प दोष से सम्‍बंधित सभी उपयुक्‍त उपाय करते हैं और यदि आपका पितृ दोष या कालसर्प दोष का प्रभाव कम या समाप्‍त होता है, तो उस स्थिति में आपके परिवार में जन्‍म लेने वाली अगली संतान की जन्‍म-कुण्‍डली में पितृ दोष या कालसर्प दोष से सम्‍बंधित योग पूरी तरह से समाप्‍त हो जाते हैं। जबकि यदि जन्‍म लेने वाली नई संतान की कुण्‍डली में भी पितृ दोष या कालसर्प दोष के योग दिखाई दें, तो ये इसी बात का संकेत है कि अभी भी आपका पितृ दोष या कालसर्प दोष पूरी तरह से समाप्‍त नहीं हुआ है।


यहां एक बाद ध्‍यान रखने वाली ये है कि हालांकि कालसर्प दोष का सम्‍बंध श्राद्ध से है, लेकिन पितृ दोष का कोई सम्‍बंध कालसर्प दोष से नहीं है। कालसर्प दोष और पितृ दोष, दोनों को अक्‍सर मिला दिया जाता है क्‍योंकि दोनों ही प्रकार के दोषों का निवारण करने के लिए श्राद्ध करना होता है। जबकि वास्‍तव में श्राद्ध भी 5 प्रकार के होते हैं, और पितृ पक्ष में किया जाने वाला पितृ यज्ञ या पितृ श्राद्ध, उनमें से एक है तथा कालसर्प योग के दोष या सर्प दोष के निवारण के लिए जो श्राद्ध किया जाता है, उसे नारायणबलि, नागबलि या त्रिपिण्‍डी श्राद्ध के नाम से जाना जाता है और इसका कोई सीधा सम्‍बंध पितृ दोष से नहीं होता।
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पितरो का ऋणबंधन है या मां-बाप की उपेक्षा का श्राप ?
===पं- केवल आनन्द जोशी (kajoshi46@gmail.com,


प्रत्येक  मनुष्य जातक पर उसके जन्म के साथ ही तीन प्रकार के ऋण अर्थात देव ऋण, ऋषि ऋण और मातृपितृ ऋण अनिवार्य रूप से चुकाने बाध्यकारी हो जाते है। जन्म के बाद  इन बाध्यकारी होने जाने वाले ऋणों से यदि प्रयास पूर्वक मुक्ति प्राप्त न की जाए तो जीवन की प्राप्तियों का अर्थ अधूरा रह जाता है। ज्योतिष के अनुसार इन दोषों से पीड़ित कुंडली शापित कुंडली कही जाती है। ऐसे व्यक्ति अपने मातृपक्ष अर्थात माता के अतिरिक्त माना मामा-मामी मौसा-मौसी नाना-नानी तथा पितृ पक्ष अर्थात दादा-दादी चाचा-चाची ताऊ ताई आदि को कष्ट व दुख देता है और उनकी अवहेलना व तिरस्कार करता है।

जन्मकुण्डली में यदि चंद्र पर राहु केतु या शनि का प्रभाव होता है तो जातक मातृ ऋण से पीड़ित होता है। चन्द्रमा मन का प्रतिनिधि ग्रह है अतः ऐसे जातक को निरन्तर मानसिक अशांति से भी पीड़ित होना पड़ता है। ऐसे व्यक्ति को मातृ ऋण से मुक्ति के प्श्चात ही जीवन में शांति मिलनी संभव होती है।
पितृ ऋण के कारण व्यक्ति को मान प्रतिष्ठा के अभाव से पीड़ित होने के साथ-साथ संतान की ओर से कष्ट संतानाभाव संतान का स्वास्यि खराब होने या संतान का सदैव बुरी संगति जैसी स्थितियों में रहना पड़ता है। यदि संतान अपंग मानसिक रूप से विक्षिप्त या पीड़ित है तो व्यक्ति का सम्पूर्ण जीवन उसी पर केन्द्रित हो जाता है। जन्म पत्री में यदि सूर्य पर शनि राहु-केतु की दृष्टि या युति द्वारा प्रभाव हो तो जातक की कुंडली में पितृ ऋण की स्थिति मानी जाती है।
माता-पिता के अतिरिक्त हमें जीवन में अनेक व्यक्तियों का सहयोग व सहायता प्राप्त होती है गाय बकरी आदि पशुओं से दूध मिलता है। फल फूल व अन्य साधनों से हमारा जीवन सुखमय होता है इन्हें बनाने व इनका जीवन चलाने में यदि हमने अपनी ओर से किसी प्रकार का सहयोग नहीं दिया तो इनका भी ऋण हमारे ऊपर हो जाता है। जन कल्याण के कार्यो में रूचि लेकर हम इस ऋण से उस ऋण हो सकते हैं। देव ऋण अर्थात देवताओं के ऋण से भी हम पीड़ित होते हैं। हमारे लिए सर्वप्रथम देवता हैं हमारे माता-पिता, परन्तु हमारे इष्टदेव का स्थान भी हमारे जीवन में महत्वपूर्ण है। व्यक्ति भव्य व शानदार बंगला बना लेता है अपने व्यावसायिक स्थान का भी विज्ञतार कर लेता है, किन्तु उस जगत के स्वामी के स्थान के लिए सबसे अन्त में सोचता है या सोचता ही नहीं है जिसकी अनुकम्पा से समस्त ऐश्वर्य वैभव व सकल पदार्थ प्राप्त होता है। उसके लिए घर में कोई स्थान नहीं होगा तो व्यक्ति को देव ऋण से पीड़ित होना पड़ेगा। नई पीढ़ी की विचारधारा में परिवर्तन हो जाने के कारण न तो कुल देवता पर आस्था रही है और न ही लोग भगवान को मानते हैं। फलस्वरूप ईश्वर भी अपनी अदृश्य शक्ति से उन्हें नाना प्रकार के कष्ट प्रदान करते हैं।
ऋषि ऋण के विषय में भी लिखना आवश्यक है। जिस ऋषि के गोत्र में हम जन्में हैं, उसी का तर्पण करने से हम वंचित हो जाते हैं। हम लोग अपने गोत्र को भूल चुके हैं। अतः हमारे पूर्वजों की इतनी उपेक्षा से उनका श्राप हमें पीढ़ी दर पीढ़ी परेशान करेगा। इसमें कतई संदेह नहीं करना चाहिए। जो लोग इन ऋणों से मुक्त होने के लिए उपाय करते हैं, वे प्रायः अपने जीवन के हर क्षेत्र में सफल हो जाते हैं। परिवार में ऋण नहीं है, रोग नहीं है, गृह क्लेश नहीं है, पत्नी-पति के विचारों में सामंजस्य व एकरूपता है संताने माता-पिता का सम्मान करती हैं। परिवार के सभी लोग परस्पर मिल जुल कर प्रेम से रहते हैं। अपने सुख-दुख बांटते हैं। अपने अनुभव एक-दूसरे को बताते हैं। ऐसा परिवार ही सुखी परिवार होता है।  दूसरी ओर, कोई-कोई परिवार तो इतना शापित होता है कि उसके मनहूस परिवार की संज्ञा दी जाती है। सारे के सारे सदस्य तीर्थ यात्रा पर जाते हैं अथवा कहीं सैर सपाटे पर भ्रमण के लिए निकल जाते हैं और गाड़ी की दुर्घटना में सभी एक साथ मृत्यु को प्राप्त करते हैं। पीछे बच जाता है परिवार का कोई एक सदस्य समस्त जीवन उनका शोक मनाने के लिए। इस प्रकार पूरा का पूरा वंश ही शापित होता है। इस प्रकार के लोग कारण तलाशते हैं। जब सुखी थे तब न जाने किस-किस का हिस्सा हड़प लिया था। किस की संपत्ति पर अधिकार जमा लिया था। किसी निर्धन कमजोर पड़ोसी को दुख दिया था अथवा अपने वृद्धि माता-पिता की अवहेलना और दुर्दशा भी की और उसकी आत्मा से आह निकलती रही कि जा तेरा वंश ही समाप्त हो जाए। कोई पानी देने वाला भी न रहे तेरे वंश में। अतएव अपने सुखी जीवन में भी मनुष्य को डर कर चलना चाहिए। मनुष्य को पितृ ऋण उतारने का सतत प्रयास करना चाहिए। जिस परिवार में कोई दुखी होकर आत्महत्या करता है या उसे आत्महत्या के लिए विवश किया जाता है तो इस परिवार का बाद में क्या हाल होगा? इस पर विचार करें। आत्महत्या करना सरल नहीं है, अपने जीवन को कोई यूं ही तो नहीं मिटा देता, उसकी आत्मा तो वहीं भटकेगी। वह आप को कैसे चैन से सोने देगी, थोड़ा विचार करें। किसी कन्या का अथवा स्त्री का बलात्कार किया जाए तो वह आप को श्राप क्यों न देगी, इस पर विचार करें। वह यदि आत्महत्या करती है, तो कसूर किसका है। उसकी आत्मा पूरे वंश को श्राप देगी। सीधी आत्मा के श्राप से बचना सहज नहीं है। आपके वंश को इसे भुगतना ही पड़ेगा, यही प्रेत बाधा दोष व यही पितृ दोष है। इसे समझें।
पितृ दोष क लिए जिम्मेदार ज्योतिषीय योग:–
1. लग्नेश की अष्टम स्थान में स्थिति अथवा अष्टमेष की लग्न में स्थिति।
2. पंचमेश की अष्टम में स्थिति या अष्टमेश की पंचम में स्थिति।
.. नवमेश की अष्टम में स्थिति या अष्टमेश की नवम में स्थिति।
4. तृतीयेश, यतुर्थेश या दशमेश की उपरोक्त स्थितियां। तृतीयेश व अष्टमेश का संबंध होने पर छोटे भाई बहनों, चतुर्थ के संबंध से माता, एकादश के संबंध से बड़े भाई, दशमेश के संबंध से पिता के कारण पितृ दोष की उत्पत्ति होती है। 
5. सूर्य मंगल व शनि पांचवे भाव में स्थित हो या गुरु-राहु बारहवें भाव में स्थित हो।
6. राहु केतु की पंचम, नवम अथवा दशम भाव में स्थिति या इनसे संबंधित होना।
7. राहु या केतु की सूर्य से युति या दृष्टि संबंध (पिता के परिवार की ओर से दोष)।
8. राहु या केतु का चन्द्रमा के साथ युति या दृष्टि द्वारा संबंध (माता की ओर से दोष)। चंद्र राहु पुत्र की आयु के लिए हानिकारक।
9. राहु या केतु की बृहस्पति के साथ युति अथवा दृष्टि संबंध (दादा अथवा गुरु की ओर से दोष)।
1.. मंगल के साथ राहु या केतु की युति या दृष्टि संबंध (भाई की ओर से दोष)।
11. वृश्चिक लग्न या वृश्चिक राशि में जन्म भी एक कारण होता है, क्योंकि वह राशि चक्र के अष्टम स्थान से संबंधित है।
12. शनि-राहु चतुर्थी या पंचम भाव में हो तो मातृ दोष होता है। मंगल राहु चतुर्थ स्थान में हो तो मामा का दोष होता है।
13. यदि राहु शुक्र की युति हो तो जातक ब्राहमण का अपमान करने से पीड़ित होता है। मोटे तौर पर राहु सूर्य पिता का दोष, राहु चंद्र माता , राहु बृहस्पति दादा का दोष, राहु-शनि सर्प और संतान का दोष होता है।
14. इन दोषों के निराकारण के लिए सर्वप्रथम जन्मकुंडली का उचित तरीके से विश्लेषण करें और यह ज्ञात करने की चेष्टा करें कि यह दोष किस किस ग्रह से बन रहा है। उसी दोष के अनुरूप उपाय करने से आपके कष्ट समाप्त हो जायेंगे।
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जानिए कुछ सामान्य उपाय —
1. अमावस्या के दिन अपने पूर्वजों के नाम पर मन्दिर में दूध, चीनी, श्वेत वस्त्र व दक्षिणा आदि दें।
2. पीपल की 108 परिक्रमा निरंतर 108 दिन तक लगाएं।
3. परिवार के किसी सदस्य की अकाल मृत्यु होने पर उसके निमित्त पिंडदान अवश्य कराएं।
4. ग्रहण के समय दान अवश्य करें।
5. जन कल्याण के कार्य करें, वृक्षारोपण करें। जल की व्यवस्था में सहयोग दें।
6. पितृदोष निवारण के लिए विशेष रूप से निर्मित यंत्र लगाकर एक विशेष यंत्र का 45 दिन विधिवत पाठ करके गृह शुद्धि करें।
7. श्रीमद्भागवत का पाठ करें या श्रवण करें। इससे पितृदोष समाप्त हो जाता है और पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। उनके आशीर्वाद से हमारा परिवार जो वास्तव में उनका ही एक अंश है सुखी हो जाता है।
पिशाच/भूत-प्रेत योनि श्राप है या पशुवध/जीव हत्याजनित दोष 
विद्वानों ने अपने ग्रंथों में विभिन्न दोषों का उदाहरण दिया है और पितर दोष का संबंध बृहस्पति (गुरु) से बताया है।

अगर गुरु ग्रह पर दो बुरे ग्रहों का असर हो तथा गुरु 4-8-12वें भाव में हो या नीच राशि में हो तथा अंशों द्वारा निर्धन हो तो यह दोष पूर्ण रूप से घटता है और यह पितर दोष पिछले पूर्वज (बाप दादा परदादा) से चला आता है, जो सात पीढ़ियों तक चलता रहता है। उदाहरण हेतु इस जन्मकुंडली को देखें जिसमें पूर्ण पितर दोष है। इनका परदादा अपने पिता का एक ही लड़का था, दादा भी अपने पिता का एक ही लड़का था। इसका बाप भी अपने पिता का भी एक ही लड़का और यह अपने बाप का एक ही लड़का है और हर बाप को अपने बेटे से सुख नहीं मिला। जब औलाद की सफलता व सुपरिणाम का समय आया तो बाप चल बसा। पितर दोष के और भी दुष्परिणाम देखे गए हैं- जैसे कई असाध्य व मंभीर प्रकार की बीमारियां जैसे दमा, शुगर इत्यादि जो पीढ़ी दर पीढ़ी चलती हैं। पितर दोष का प्रभाव घर की स्त्रियों पर भी अधिक रहता है।
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देव दोष क्या?:- देव दोष ऐसे दोषों को कहते हैं जो पिछले पूर्वजों, बुजुर्गो से चलें आ रहे हैं, जिसका देवताओं से संबंध होता है। गुरु और पुरोहित तथा ब्राहमण विद्वान पुरुषों को इनके पिछले पूर्वज मानते चले आते थे। इन्होंने उनको मानना छोड़ दिया अथवा वह पीपल जिस पर यह रहते थे, को काट दिया तो उससे देव दोष पैदा होता है। इसका असर औलाद तथा कारोबार पर विपरीत होता है। इसका संबंध बृहस्पति तथा सूर्य से होता है। बृहस्पति नीच सूर्य भी नीच या दो बुरे ग्रहों के घरे में हो तो यह दोष उत्पन्न होता है।
अपने समय के अनुरूप इस जातक के भाई ने कोई रूहानी गुरु धारण कर लिया और उस गुरु के कहने पर देवी देवता पुरोहित की पूजा छोड़ दी, जिससे कारोबार में अत्यधिक हानि होती गई। रुकती नहीं। पहले इनके पूर्वज बुजुर्गादि, देवी देवता व शहीदों मृतकों को मानते थे। परन्तु इन्होंने उनको मानना पूजा आदि छोड़ दी इस कारण ऐसा हुआ। दोबारा पूजा शुरू करने पर सब ठीक है।
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पितृदोष के कारण भूत-प्रेत आदि का भय:—-
जिसके यहां खून के रिश्ते में कोई पानी में डूब गया हो या अग्नि द्वारा जल गया हो या शस्त्र द्वारा मौत हो गई हो या कोई औरत तड़प-तड़प कर मर गई हो या मारी गई हो, उनको प्रेत-दोष भुगतना पड़ता है और कई बार तो बाहरी भूत प्रेतों का भी असर हो जाता है। जैसे किसी समाधि या कब्र का अनादर अपमान किया जाए या किसी पीपल-बरगद जैसे विशेष वृक्ष के नीचे पेशाब आदि करने से यह दोष शुरू हो जाता है। कई बार किसी शत्रु द्वारा किए कराए का असर भी होता है।


भूत-प्रेत के कारक:- भूत-प्रेत कारक ग्रह राहु से अधिक संबंध रखता है। चौथे स्थान में राहु, दसवें स्थान में शनि-मंगल हो तो उसके निवास स्थान में प्रेत का वास रहता है। इसके कारण धन हानि, संतान हानि, स्त्री को कष्ट इत्यादि होता है। अगर दूसरे, चौथे, पंचम, छठे, सातवें, द्वादश रवि के साथ राहु या गुरु के साथ राहु या तीनों एक जगह हों तो धन के लिए किसी की हत्या करना, विधवा स्त्री का धन, जायदाद आदि हड़प लेने से घर में पागलपन, दरिद्रता, लोगों के लापता हो जाने जैसी घटनाएं होती हैं। ऐसी हालत  में वहां पिशाच, प्रेत का निवास होता है। पांच पीढ़ी तक यह दुख देता है।
राहु अगर चंद्र या शुक्र के साथ हो तो किसी स्त्री का श्राप सात पीढ़ी तक चलता है। महारोग क्षयरोग गण्डमाला रोग, सांप का काटना इत्यादि घटनाएं होती हैं। राहु के साथ शनि आत्महत्या का कारक है। तंग होकर कोई खून के रिश्ते में आत्महत्या कर ले, तो सात पीढ़ी तक चलता है। औलाद व औरत न बचे, धन हानि होती है। ये हैं प्रेत दोष।
इस प्रकार प्रथम भाव से खानदानी दोष देह पीड़ा द्वितीय भाव आकाश देवी, तृतीय भाव अग्नि दोष, चतुर्थ भाव प्रेत दोष, पंचम भाव देवी देवताओं का दोष, छठा भाव ग्रह दोष, सातवों भाव लक्ष्मी देवी दोष, आठवां भाव नाग देवता दोष, नवम भाव धर्म स्थान दोष, दशम भाव पितर दोष, लाभ भाव ग्रह दशा, व्यय भाव पिछले जन्म का ब्रहम दोष होता है। कोई ग्रह किसी घर में पीड़ित हो, सूर्य दो ग्रहों द्वारा पीड़ित हो तो जिस घर में होगा वही दोष होगा।
भूत प्रेत कौन और कैसे?:- भूत प्रेत, जिन्नदि जैसे मनुष्यों में ब्राहमण, क्षत्रिय, वैश्य आदि जाति भेद हैं, उसी प्रकार उनकी भी जातियां या भेद सुविधानुसार किए गए हैं। इनमें भूत-प्रेत, जिन्न, ब्रहम, राक्षस, डाकिनी-शाकिनी आदि मुख्य हैं। जिनकी किसी दुर्घटना में मृत्यु हो जाती है, वे भूत प्रेत बन जाते हैं।
1. जिसका जीवन में किसी ने ज्यादा शोषण किया हो, जिनको धोखे से किसी ने ठगा या हानि पहुंचाई हो। वे बदले की भावना में भूत प्रेत योनी स्वीकार कर लेते हैं।
2. आत्महत्या या जहर देकर जिनकी हत्या हुई हो।
3. जिनकी मरते समय कोई इच्छा अतृप्त रह जाती है, वे भूत प्रेत योनी में अथवा जन्म की सुरक्षा हेतु इस योनी में जन्म लेते हैं।
4. जो पापी कामी क्रोधी और मूर्ख होते हैं, भूत प्रेत बन जाते हैं।
प्रेत बाधाग्रस्त व्यक्ति की पहचान:- वास्तव में जो व्यक्ति प्रेत बाधित होता है उसकी आंखे स्थिर अधमुंदी और लाल रहती हैं। शरीर का तापमान सामान्य से अधिक होता है। हाथ पैर के नाखून काले पड़े होते हैं। भूख बिलकुल कम लगती है या फिर बहुत अधिक भोजन करता है। नींद आती ही नहीं या आती भी है तो बिलकुल कम। स्वभाव क्रोधी जिद्दी उग्र और उद्वंड हो जाता है। प्यास अधिक लगती है। शरीर से दुर्गंध और पसीना निकलता है।


असली नकली प्रेतावेश की पहचान —
प्रेत बाधित व्यक्ति में उपर्युक्त लक्षण हैं, तो समझना चाहिए कि सचमुच प्रेत कष्ट से वह पीड़ित है, अन्यथा नहीं।
व्यक्ति वास्तव में प्रेतग्रस्त है और उसके माध्यम से बोलने वाला वास्तव में प्रेत है या पालतू प्रेत है, इसे समझने के लिए एक हरा और ताजा नींबू लेकर उसे प्रेतग्रस्त व्यक्ति को दिखाकर चाकू से काटें और देखें अगर पालतू प्रेत होगा तो तत्काल भाग जाएगा, नहीं तो नहीं।


पितर दोषों के उपाय:- पितर दोष के लिए बृहस्पति की पूजा, पीपल ब्रहमा की पूजा तीन महीने करें। रोज प्रातः इतवार को छोड़कर दूध जल चीनी मिलाकर पीपल की जड़ में पानी डालें तथा कच्चा सूत लपेटें और ज्योति जलाएं। हल्दी जैसे पीले रंग का प्रसाद बांटे, अपने बुजुर्गों की सेवा करें। लीला पुखराज नौ या बारह रत्ती का धारण करें और घर में नारायण बलि का हवन पाठ कराएं।
वास्तव में पितर अपने वंशज की श्रद्धा के भूखे होते हैं, उनके द्वारा दी गई वस्तुओं के भूखे नहीं होते। श्राद्ध कर्म का मूल तत्व है, श्रद्धा। श्रद्धा और तप्रण सर्वथा निरर्थक है। कंजूसी करना अनुचित है। श्राद्धकर्ता पितरों के आशीर्वाद से धन धान्य, सुख समृद्धि, संतान और स्वर्ग प्राप्त करता है। शास्त्रों में पितृगण को देवताओं से भी अधिक दयालु और कृपालु बताया गया है। पितृपक्ष में श्राद्ध और तप्रण पाकर वे वर्ष भर तृप्त रहते हैं। जिस घर में पूर्वजों का श्राद्ध होता है वह घर पितरों द्वारा सदैव सुरक्षित रहता है। पितृपक्ष में श्राद्ध न किए जाने से पितर अतृप्त होकर कुपित हो जाते हैं जिससे व्यक्ति को अनेकों प्रकार के कष्ट और दुख उठाने पडते हैं। मृतक के लिए किए गए श्राद्ध का सूक्ष्मांश उस तक अवश्य पहुंचता है। चाहे वह किसी लोक या योनी में हों। श्राद्ध और तप्रण वंशज द्वारा बुजुर्गो पुरखों पूर्वजों को दी गई एक श्रद्धांजलि मात्र है। हमें किसी भी स्थिति में अपने इस आध्यात्मिक कर्तव्य से विमुख होकर उदासीनता नहीं बरतनी चाहिए। पितृपक्ष पुरखों पूर्वजों की स्मृति का विशेष पक्ष है। पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का जो हमारा दायित्व और धर्म है उसके लिए इससे अच्छा मौका नहीं मिल सकता।
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जानिए पितृदोष का प्रभाव कम करने के कुछ सामान्य उपाय—


आमतौर पर पितृदोष का प्रभाव कम करने के लिए कई खर्चीले उपाय बताए जाते हैं। लेकिन आज हम आपको ऐसे कई आसान, सस्ते व सरल उपाय बता रहे हैं जिनसे पितृदोष प्रभाव कम हो सकता है।
कुंडली में पितृ दोष बन रहा हो तब जातक को घर की दक्षिण दिशा की दीवार पर अपने स्वर्गीय परिजनों का फोटो लगाकर उस पर हार चढ़ाना चाहिए और रोजाना उनकी पूजा करनी चाहिए। उनसे आशीर्वाद प्राप्त करने से पितृदोष से मुक्ति मिलती है।
अपने स्वर्गीय परिजनों की निर्वाण तिथि पर जरूरतमंदों अथवा गुणी ब्राह्मणों को भोजन कराए। भोजन में मृतात्मा की कम से कम एक पसंद की वस्तु अवश्य बनाएं।
इसी दिन अगर हो सके तो अपनी सामर्थ्यानुसार गरीबों को वस्त्र और अन्न आदि दान करने से भी यह दोष मिटता है।
पीपल के वृक्ष पर दोपहर में जल, पुष्प, अक्षत, दूध, गंगाजल, काले तिल चढ़ाएं और स्वर्गीय परिजनों का स्मरण कर उनसे आशीर्वाद मांगें।
शाम के समय में दीप जलाएं और नाग स्तोत्र, महामृत्युंजय मंत्र या रुद्र सूक्त या पितृ स्तोत्र व नवग्रह स्तोत्र का पाठ करें। इससे भी पितृ दोष की शांति होती है।
सोमवार सुबह स्नान कर नंगे पैर शिव मंदिर में जाकर आक के 21 पुष्प, कच्ची लस्सी, बिल्वपत्र के साथ शिवजी की पूजा करें। 21 सोमवार करने से पितृदोष का प्रभाव कम होता है।
प्रतिदिन इष्ट देवता व कुल देवता की पूजा करने से भी पितृ दोष का शमन होता है।
कुंडली में पितृदोष होने से किसी गरीब कन्या का विवाह या उसकी बीमारी में सहायता करने पर भी लाभ मिलता है।
ब्राह्मणों को प्रतीकात्मक गोदान, गर्मी में पानी पिलाने के लिए कुंए खुदवाएं या राहगीरों को शीतल जल पिलाने से भी पितृदोष से छुटकारा मिलता है।
पवित्र पीपल तथा बरगद के पेड़ लगाएं। विष्णु भगवान के मंत्र जाप, श्रीमद्भावगवत गीता का पाठ करने से भी पित्तरों को शांति मिलती है और दोष में कमी आती है।
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जानिए की कैसे हो पित्र दोष निवारण / पूजा—-


कुंडली में उपस्थित भिन्न प्रकार के दोषों के निवारण के लिए की जाने वाली पूजाओं को लेकर बहुत सी भ्रांतियां तथा अनिश्चितताएं बनीं हुईं हैं तथा एक आम जातक के लिए यह निर्णय लेना बहुत कठिन हो जाता है कि किसी दोष विशेष के लिए की जाने वाली पूजा की विधि क्या होनी चाहिए।


पित्र दोष के निवारण के लिए की जाने वाली पूजा को लेकर बहुत अनिश्चितता की स्थिति बनी हुई है जिसके कारण जातक को दुविधा का सामना करना पड़ता है। पित्र दोष के निवारण के लिए धार्मिक स्थानों पर की जाने वाली पूजा के महत्व के बारे में पितृ दोष के निवारण के लिए की जाने वाली पूजा है क्या।
पित्र दोष का कारण है:- जातक ने अपने पूर्वजों के मृत्योपरांत किये जाने वाले संस्कार तथा श्राद्ध आदि उचित प्रकार से नहीं किये होते जिसके चलते जातक के पूर्वज उसे शाप देते हैं जो पित्र दोष बनकर जातक की कुंडली में उपस्थित हो जाता है, उसके जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में समस्याएं उत्पन्न करता है। ऐसे पित्र दोष के निवारण के लिए पित्रों के श्राद्ध कर्म आदि करने, पिंड दान करने तथा नारायण पूजा आदि का सुझाव देते हैं इन उपायों को करने वाले जातकों को पित्र दोष से कोई विशेष राहत नहीं मिलती क्योंकि पित्र दोष वास्तविकता में पित्रों के शाप से नहीं बनता अपितु पित्रों के द्वारा किये गए बुरे कर्मों के परिणामस्वरूप बनता है जिसका फल जातक को भुगतना पड़ता है, निवारण के लिए जातक को नवग्रहों में से किसी ग्रह विशेष के कार्य क्षेत्र में आने वाले शुभ कर्मों को करना पड़ता है जिनमें से उस ग्रह के वेद मंत्र के साथ की जाने वाली पूजा भी एक उपाय है जिसे पित्र दोष निवारण पूजा भी कहा जाता है।
दोष के निवारण के लिए की जाने वाली पूजा को विधिवत करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण है दोष के निवारण के लिए निश्चित किये गए मंत्र होती है। पूजा के आरंभ वाले दिन पांच या सात पंडित पूजा करवाने वाले यजमान अर्थात जातक के साथ भगवान शिव के शिवलिंग के समक्ष बैठते हैं तथा शिव परिवार की विधिवत पूजा करने के पश्चात मुख्य पंडित यह संकल्प लेता है कि वह और उसके सहायक पंडित उपस्थित यजमान के लिए पित्र दोष के निवारण मंत्र जाप एक निश्चित अवधि में करेंगे तथा इस जाप के पूरा हो जाने पर पूजन, हवन तथा कुछ विशेष प्रकार के दान आदि करेंगे।
संकल्प के समय मंत्र का जाप करने वाली सभी पंडितों का नाम तथा उनका गोत्र बोला जाता है तथा इसी के साथ पूजा करवाने वाले यजमान का नाम, उसके पिता का नाम तथा उसका गोत्र भी बोला जाता है पितृ दोष के निवारण मंत्र के इस जाप से पित्र दोष का निवारण होता है।
भगवान शिव, मां पार्वती, भगवान गणेश तथा शिव परिवार के अन्य सदस्यों की पूजा फल, फूल, दूध, दहीं, घी, शहद, शक्कर, धूप, दीप, मिठाई, हलवे के प्रसाद तथा अन्य कई वस्तुओं के साथ की जाती है तथा इसके पश्चात मुख्य पंडित के द्वारा पितृ दोष के निवारण मंत्र का जाप पूरा हो जाने का संकल्प किया जाता है जिसमे यह कहा जाता है कि मुख्य पंडित ने अपने सहायक अमुक अमुक पंडितों की सहायता से इस मंत्र का जाप निर्धारित विधि में सभी नियमों का पालन करते हुए किया है जिसने जाप के शुरू होने से लेकर अब तक पूर्ण निष्ठा से पूजा के प्रत्येक नियम की पालना की है तथा इसलिए अब इस पूजा से विधिवत प्राप्त होने वाला सारा शुभ फल उनके यजमान को प्राप्त होना चाहिए।
समापन पूजा के चलते नवग्रहों से कुछ विशेष ग्रहों से संबंधित विशेष वस्तुओं का दान किया जाता है जो जातकों के लिए भिन्न हो सकता है तथा इन वस्तुओं में चावल, गुड़, चीनी, नमक, गेहूं, दाल, तेल, सफेद तिल, काले तिल, जौं तथा कंबल का दान किया जाता है। हवन की प्रक्रिया शुरू की जाती है जो जातक तथा पूजा का फल प्रदान करने वाले देवी देवताओं अथवा ग्रहों के मध्य एक सीधा तथा शक्तिशाली संबंध स्थापित करती है। विधियों के साथ हवन अग्नि प्रज्जवल्लित करने के पश्चात तथा हवन शुरू करने के पश्चात पित्र दोष के निवारण मंत्र का जाप पुन: प्रारंभ किया जाता है, इस मंत्र का जाप पूरा होने पर स्वाहा: का स्वर उच्चारण किया जाता है जिसके साथ ही हवन कुंड की अग्नि में एक विशेष विधि से हवन सामग्री डाली जाती है।


पितृदोष निवारण—-
अंत में सूखे नारियल को उपर से काटकर उसके अंदर कुछ विशेष सामग्री भरी जाती है तथा नारियल को विशेष मंत्रों के उच्चारण के साथ हवन कुंड की अग्नि में पूर्ण आहुति के रूप में अर्पित किया जाता है तथा इसके साथ ही इस पूजा के इच्छित फल एक बार फिर मांगे जाते हैं।
पूजा की शांति पितृ दोष निवारण पूजा में भी उपरोक्त विधियां पूरी की जातीं हैं इन्हें ठीक प्रकार से न करने पर जातक को इस पूजा से प्राप्त होने वाले फल में कमी आ सकती है तथा जितनी कम विधियों का पूर्णतया पालन किया गया होगा, उतना ही इस पूजा का फल कम होता जाएगा।
इसलिए धार्मिक स्थानों पर किसी भी प्रकार की पूजा का आयोजन करवाते रहने की आवश्यकता है जिससे आपके दवारा करवाई जाने वाली पूजा का शुभ फल आपको पूर्णरूप से प्राप्त हो सके।
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—–पित्रों की शांति, तर्पण आदि न करने से पाप—–
—–पित्रों की शांति एवं तर्पण आदि न करने वाले मानव के शरीर का रक्तपान पित्रृगण करते हैं अर्थात् तर्पण न करने के कारण पाप से शरीर का रक्त शोषण होता है।
——-पितृदोष की शांति हेतु त्रिपिण्डी श्राद्ध, नारायण बलि कर्म, महामृत्युंजय मंत्र
—–त्रिपिण्डी श्राद्ध यदि किसी मृतात्मा को लगातार तीन वर्षों तक श्राद्ध नहीं किया जाए तो वह जीवात्मा प्रेत योनि में चली जाती है। ऐसी प्रेतात्माओं की शांति के लिए त्रिपिण्डी श्राद्ध कराया जाता है।
——-नारायण बलि कर्म यदि किसी जातक की कुण्डली में पित्रृदोष है एवं परिवार मे किसी की असामयिक या अकाल मृत्यु हुई हो तो वह जीवात्मा प्रेत योनी में चला जाता है एवं परिवार में अशांति का वातावरण उत्पन्न करता है। ऐसी स्थिति में नारायण बलि कर्म कराना आवश्यक हो जाता है।
——-महामृत्युंजय मंत्र महामृत्युंजय मंत्र जाप एक अचूक उपाय है। मृतात्मा की शांति के लिए भी महामृत्युंजय मंत्र जाप करवाया जा सकता है। इसके प्रभाव से पूर्व जन्मों के सभी पाप नष्ट भी हो जाते है।
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वैसे तो कुंडली में किस प्रकार का पितृ दोष है उस पितृ दोष के प्रकार के हिसाब से पितृदोष शांति करवाना अच्छा होता है ,लेकिन कुछ ऐसे सरल सामान्य उपाय  भी हैं,
जिनको करने से पितृदोष  शांत  हो जाता है ,ये उपाय निम्नलिखित हैं :—-


सामान्य उपाय : —
१ .ब्रह्म पुराण (२२०/१४३ )में  पितृ गायत्री मंत्र दिया गया है ,इस मंत्र कि प्रतिदिन १ माला या अधिक जाप करने से पितृ दोष में अवश्य लाभ होता है| 

मंत्र :  देवताभ्यः पित्रभ्यश्च महा योगिभ्य एव  च
  |   नमः स्वाहायै   स्वधायै  नित्यमेव नमो नमः  || “


२. मार्कंडेय पुराण (९४/३ -१३ )में वर्णित इस चमत्कारी पितृ स्तोत्र का नियमित पाठ करने से भी पितृ  प्रसन्न होकर  स्तुतिकर्ता  मनोकामना कि पूर्ती करते हैं ———–


पुराणोक्त  पितृ -स्तोत्र : —-

अर्चितानाममूर्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम्।

नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम्।।
इन्द्रादीनां च नेतारो दक्षमारीचयोस्तथा।

तान् नमस्याम्यहं सर्वान् पितृनप्सूदधावपि।।
नक्षत्राणां ग्रहाणां च वाय्वग्न्योर्नभसस्तथा।
द्यावापृथिव्योश्च तथा नमस्यामि कृतांजलिः।।
देवर्षीणां जनितृंश्च सर्वलोकनमस्कृतान्।

अक्षय्यस्य सदा दातृन् नमस्येऽहं कृतांजलिः।।
प्रजापतं कश्यपाय सोमाय वरूणाय च।

योगेश्वरेभ्यश्च सदा नमस्यामि कृतांजलिः।।
नमो गणेभ्यः सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु।

स्वयम्भुवे नमस्यामि ब्रह्मणे योगचक्षुषे।।
सोमाधारान् पितृगणान् योगमूर्तिधरांस्तथा।

नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम्।।
अग्निरूपांस्तथैवान्यान् नमस्यामि पितृनहम्।

अग्निषोममयं विश्वं यत एतदशेषतः।।
ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्याग्निमूर्तयः।

जगत्स्वरूपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरूपिणः।।
तेभ्योऽखिलेभ्यो योगिभ्यः पितृभ्यो यतमानसः।
नमो नमो नमस्ते मे प्रसीदन्तु स्वधाभुजः।।

अर्थ:—

रूचि बोले – जो सबके द्वारा पूजित, अमूर्त, अत्यन्त तेजस्वी, ध्यानी तथा दिव्यदृष्टि सम्पन्न हैं, उन पितरों को मैं सदा नमस्कार करता हूँ।
जो इन्द्र आदि देवताओं, दक्ष, मारीच, सप्तर्षियों तथा दूसरों के भी नेता हैं, कामना की पूर्ति करने वाले उन पितरो को मैं प्रणाम करता हूँ।
जो मनु आदि राजर्षियों, मुनिश्वरों तथा सूर्य और चन्द्रमा के भी नायक हैं, उन समस्त पितरों को मैं जल और समुद्र में भी नमस्कार करता हूँ।
नक्षत्रों, ग्रहों, वायु, अग्नि, आकाश और द्युलोक तथा पृथ्वी के भी जो नेता हैं, उन पितरों को मैं हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ।
जो देवर्षियों के जन्मदाता, समस्त लोकों द्वारा वन्दित तथा सदा अक्षय फल के दाता हैं, उन पितरों को मैं हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ।
प्रजापति, कश्यप, सोम, वरूण तथा योगेश्वरों के रूप में स्थित पितरों को सदा हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूँ।
सातों लोकों में स्थित सात पितृगणों को नमस्कार है। मैं योगदृष्टिसम्पन्न स्वयम्भू ब्रह्माजी को प्रणाम करता हूँ।
चन्द्रमा के आधार पर प्रतिष्ठित तथा योगमूर्तिधारी पितृगणों को मैं प्रणाम करता हूँ। साथ ही सम्पूर्ण जगत् के पिता सोम को नमस्कार करता हूँ।
अग्निस्वरूप अन्य पितरों को मैं प्रणाम करता हूँ, क्योंकि यह सम्पूर्ण जगत् अग्नि और सोममय है।
जो पितर तेज में स्थित हैं, जो ये चन्द्रमा, सूर्य और अग्नि के रूप में दृष्टिगोचर होते हैं तथा जो जगत्स्वरूप एवं ब्रह्मस्वरूप हैं, उन सम्पूर्ण योगी पितरो को मैं एकाग्रचित्त होकर प्रणाम करता हूँ। उन्हें बारम्बार नमस्कार है। वे स्वधाभोजी पितर मुझपर प्रसन्न हों।

विशेष – मार्कण्डेयपुराण में महात्मा रूचि द्वारा की गयी पितरों की यह स्तुति ‘पितृस्तोत्र’ कहलाता है। पितरों की प्रसन्नता की प्राप्ति के लिये इस स्तोत्र का पाठ किया जाता है। इस स्तोत्र की बड़ी महिमा है। श्राद्ध आदि के अवसरों पर ब्राह्मणों के भोजन के समय भी इसका पाठ करने-कराने का विधान है।

३.भगवान  भोलेनाथ की तस्वीर या प्रतिमा के समक्ष बैठ कर या घर   में  ही  भगवान भोलेनाथ का  ध्यान  कर निम्न  मंत्र  की एक  माला नित्य जाप करने से समस्त प्रकार के पितृ- दोष संकट   बाधा  आदि  शांत  होकर  शुभत्व  की  प्राप्ति  होती  है  |मंत्र  जाप प्रातः  या  सायंकाल  कभी  भी  कर  सकते  हैं : 

मंत्र : “ॐ   तत्पुरुषाय  विद्महे  महादेवाय  च  धीमहि   तन्नो  रुद्रः  प्रचोदयात  |  


४.अमावस्या को  पितरों के निमित्त पवित्रता पूर्वक बनाया गया भोजन तथा चावल  बूरा ,घी  एवं  एक रोटी  गाय  को  खिलाने  से पितृ दोष शांत   होता  है |

  ५  . अपने माता -पिता ,बुजुर्गों का सम्मान,सभी स्त्री कुल का आदर /सम्मान करने और उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति करते रहने से पितर हमेशा प्रसन्न रहते हैं |
६ . पितृ दोष जनित संतान कष्ट को दूर करने के लिए  “हरिवंश  पुराण ” का श्रवण करें  या स्वयं नियमित रूप से पाठ करें  |

७ . प्रतिदिन दुर्गा सप्तशती  या सुन्दर काण्ड  का पाठ करने से भी इस दोष में कमी आती है  |

८.सूर्य पिता है अतः ताम्बे के लोटे में जल भर कर ,उसमें लाल फूल ,लाल चन्दन का चूरा ,रोली आदि  डाल  कर सूर्य देव को अर्घ्य  देकर ११ बार “ॐ घृणि सूर्याय नमः ”      मंत्र का जाप करने से पितरों की प्रसन्नता  एवं उनकी ऊर्ध्व गति होती है  | 

९. अमावस्या  वाले दिन अवश्य अपने पूर्वजों के नाम दुग्ध ,चीनी ,सफ़ेद कपडा ,दक्षिणा  आदि किसी मंदिर में अथवा किसी योग्य ब्राह्मण को दान करना चाहिए |

१० .पितृ पक्ष में पीपल की परिक्रमा  अवश्य  करें | अगर १०८ परिक्रमा  लगाई जाएँ ,तो पितृ दोष अवश्य दूर होगा |
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जानिए पित्र दोष निवारण के कुछ विशिष्ट उपाय : —
—किसी मंदिर के परिसर में पीपल अथवा बड़ का वृक्ष लगाएं और रोज़ उसमें जल डालें ,उसकी देख -भाल करें ,जैसे-जैसे वृक्ष फलता -फूलता जाएगा,पितृ -दोष दूर होता जाएगा,क्योकि इन वृक्षों पर ही सारे देवी -देवता ,इतर -योनियाँ ,पितर आदि निवास करते हैं | 
— ध्यान रखें, यदि आपने किसी का हक छीना है,या किसी मजबूर व्यक्ति  की धन संपत्ति का हरण किया है,तो उसका हक या संपत्ति उसको अवश्य लौटा दें |
—-पितृ दोष से पीड़ित व्यक्ति को किसी भी एक अमावस्या से लेकर दूसरी अमावस्या तक अर्थात एक माह तक किसी पीपल के वृक्ष के नीचे सूर्योदय काल में एक शुद्ध घी का दीपक लगाना चाहिए,ये क्रम टूटना नहीं चाहिए |
एक माह बीतने पर जो अमावस्या आये उस दिन एक प्रयोग और करें :–
इसके लिए किसी देसी गाय या दूध देने वाली गाय का थोडा सा गौ -मूत्र प्राप्त करें|उसे थोड़े एनी जल में मिलकर इस जल को पीपल वृक्ष की जड़ों  में डाल दें |इसके बाद पीपल वृक्ष के नीचे ५ अगरबत्ती ,एक नारियल और शुद्ध घी का दीपक लगाकर अपने पूर्वजों से श्रद्धा पूर्वक अपने कल्याण की कामना करें,और घर आकर उसी दिन दोपहर में कुछ गरीबों को भोजन करा दें |ऐसा करने पर पितृ दोष शांत हो जायेगा|   
 —-घर में कुआं हो या पीने का पानी रखने की जगह हो ,उस जगह की शुद्धता का विशेष ध्यान रखें,क्योंके ये पितृ स्थान माना जाता है | इसके अलावा  पशुओं  के लिए पीने का पानी भरवाने तथा प्याऊ  लगवाने  अथवा आवारा कुत्तों को जलेबी खिलाने से भी पितृ दोष शांत होता है|
—-अगर पितृ दोष के कारण अत्यधिक परेशानी हो,संतान हानि  हो या संतान को कष्ट हो तो किसी शुभ समय अपने पितरों को प्रणाम कर उनसे प्रण होने की प्रार्थना करें और अपने dwara जाने-अनजाने में किये गए अपराध / उपेक्षा के लिए क्षमा याचना करें ,फिर घर में श्रीमदभागवद का यथा विधि पाठ कराएं,इस संकल्प ले साथ की इसका पूर्ण फल पितरों को प्राप्त हो |ऐसा करने से पितर अत्यंत प्रसन्न होते हैं ,क्योंके उनकी मुक्ति का मार्ग आपने प्रशस्त किया होता है| 
—–पितृ दोष की शांति हेतु ये उपाय बहुत ही अनुभूत और अचूक फल देने वाला देखा गया है,वोह ये कि- किसी गरीब की कन्या के विवाह में गुप्त रूप से अथवा प्रत्यक्ष रूप से आर्थिक सहयोग करना |(लेकिन ये सहयोग पूरे दिल से होना चाहिए ,केवल दिखावे या अपनी बढ़ाई कराने के लिए नहीं )|इस से पितर अत्यंत प्रसन्न होते हैं ,क्योंकि इसके परिणाम स्वरुप मिलने वाले पुण्य फल से  पितरों को बल और तेज़ मिलता है ,जिस से वह ऊर्ध्व लोकों की ओरगति करते हुए पुण्य लोकों को प्राप्त होते हैं.|
—अगर किसी विशेष कामना को लेकर किसी परिजन की आत्मा पितृ दोष उत्पन्न करती है तो तो ऐसी स्थिति में मोह को त्याग कर उसकी सदगति के लिए “गजेन्द्र मोक्ष स्तोत्र ” का पाठ करना चाहिए.|
—-पितृ  दोष दूर करने का अत्यंत सरल उपाय :— इसके लिए सम्बंधित  व्यक्ति को अपने घर के वायव्य कोण (N -W )में  नित्य सरसों का तेल में बराबर मात्रा में अगर का तेल मिलाकर दीपक पूरे पितृ पक्ष में नित्य लगाना चाहिए+दिया पीतल का हो तो ज्यादा अच्छा है ,दीपक कम से कम १० मिनट नित्य जलना आवश्यक है लाभ प्राप्ति के लिए |
 इन उपायों के अतिरिक्त वर्ष की प्रत्येक अमावस्या को दोपहर के समय गूगल की धूनी पूरे घर में सब जगह घुमाएं ,शाम को आंध्र होने के बाद पितरों के निमित्त शुद्ध भोजन बनाकर एक दोने में साड़ी सामग्री रख कर किसी बबूल के वृक्ष अथवा पीपल या बड़ किजद में रख कर आ जाएँ,पीछे मुड़कर न देखें.|नित्य प्रति घर में देसी कपूर जाया करें|ये कुछ ऐसे उपाय हैं,जो सरल भी हैं  और प्रभावी भी,और हर कोई सरलता से इन्हें कर पितृ दोषों से मुक्ति पा सकता है|लेकिन किसी भी प्रयोग की सफलता आपकी पितरों के प्रति श्रद्धा के ऊपर निर्बर करती है|
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इन वास्तु उपायों द्वारा पायें पितृ दोष से शांति—
(वास्तु-ज्योतिष के उपायों द्वारा पित्र दोष शांति—


ध्यान रखें, जिस घर का वास्तु ठीक होता है जहां किसी तरह का दोष नहीं होता है तो घर में सुख-समृद्धि हमेशा बनी रहती है। यदि किसी घर की आर्थिक तरक्की नहीं हो रही है। पूरी मेहनत के बाद भी घर के हर सदस्य को उसकी योग्यता के अनुसार सफलता नहीं मिल पाती है, किसी ना किसी तरह की समस्या या परेशानी हमेशा बनी रहती है।
यदि किसी घर के निवासियों के बार-बार एक्सीडेंट्स होते हैं तो निश्चित मानिये की उस घर में पितृदोष होता है।


1. इसीलिए जिस घर में पीने के पानी का स्थान दक्षिण दिशा में हो उस घर को पितृदोष अधिक प्रभावित नहीं करता साथ ही यदि नियमित रूप से उस स्थान पर घी का दीपक लगाया जाए तो पितृदोष आशीर्वाद में बदल जाता है। ऐसा माना जाता है।


2. यदि पीने के पानी का स्थान उत्तर या उत्तर-पूर्व में भी है तो भी उसे उचित माना गया है और उस पर भी पितृ के निमित्त दीपक लगाने से पितृदोष का नाश होता है क्योंकि पानी में पितृ का वास माना गया है और पीने के पानी के स्थान पर उनके नाम का दीपक लगाने से पितृदोष की शांति होती है ऐसी मान्यता है..


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