आइये जाने की केसे मनाएं “बगलामुखी जयंती”..???
केसे करें माँ बगलामुखी साधना..???
क्या सावधानियां एवं उपाय और मन्त्र जाप किये जाएँ..??


बगलामुखी जयंती-  पूजा से मिलेंगी चमत्कारी शक्तियां

इस वर्ष  .6 अप्रैल,2..5 (रविवार) को मां बगलामुखी जयंती है। विश्व के सर्वाधिक प्राचीन बगलामुखी मंदिर नलखेड़ा (मध्य प्रदेश) में माता बगलामुखी जयंती समारोह 26 अप्रैल रविवार को धूमधाम से मनाया जाएगा। यह स्थान ( मां बगलामुखी शक्ति पीठ) नलखेड़ा में स्वयंभू प्रतिमा हैं शमशान क्षेत्र में स्थित हैं ..कहा जाता हैं की इसकी स्थापना महाभारत युद्ध के  12  वें दिन स्वयं धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण के  निर्देशानुसार की थी…  


देवी बगलामुखी तंत्र की देवी है। तंत्र साधना में सिद्धि प्राप्त करने के लिए पहले देवी बगलामुखी को प्रसन्न करना पड़ता है। धर्म ग्रंथों के अनुसार वैशाख शुक्ल अष्टमी को मां बगलामुखी की जयंती मनाई जाती है।
होगा महाभय का नाश….शत्रु मिटेंगे-मिलेगी सफलता….पुत्र,पत्नी, परिवार और संपत्ति की होगी सुरक्षा….
जीवन में हर ओर मिलेगी सफलता ही सफलता….आ गयी है शत्रु बाधा नाशक……



क्या और क्यों “बगलामुखी जयंती”—

पंडित  दयानंद शास्त्री के अनुसार  वैसाख माह को पवित्र और शुद्ध मास माना जाता है। इस माह में सारे शुभ काम किये जाते हैं। यह इस मास की विषेषता है कि शुक्ल पक्ष के द्वितीया को परशुराम जयंती, तृतीया को अक्षय तृतीया, त्रेता युग का प्रारंभ इसी दिन हुआ था। चतुर्थी को गणेश चतुर्थी, पंचमी को आदि शंकराचार्य जयंती, षष्ठी को रामानुचार्य जयंती, सप्तमी को गंगा सप्तमी, अष्टमी को बगलामुखी जयंती, नवमी को जानकी जयंती, त्रयोदशी को नरसिंह जयंती और पूर्णिमा को भगवान बुद्ध की जयंती होती है।

इस दिन व्रत एवं पूजा उपासना कि जाती है साधक को माता बगलामुखी की निमित्त पूजा अर्चना एवं व्रत करना चाहिए. बगलामुखी जयंती पर्व देश भर में हर्षोउल्लास व धूमधाम के साथ मनाया जाता है. इस अवसर पर जगह-जगह अनुष्ठान के साथ भजन संध्या एवं विश्व कल्याणार्थ महायज्ञ का आयोजन किया जाता है तथा महोत्सव के दिन शत्रु नाशिनी बगलामुखी माता का विशेष पूजन किया जाता है और रातभर भगवती जागरण होता है.

कौन है बगलामुखी मां..???



मां बगलामुखी जी आठवी महाविद्या हैं। इनका प्रकाट्य स्थल गुजरात के सौरापट क्षेत्र में माना जाता है। हल्दी रंग के जल से इनका प्रकट होना बताया जाता है। इसलिए, हल्दी का रंग पीला होने से इन्हें पीताम्बरा देवी भी कहते हैं। इनके कई स्वरूप हैं। इस महाविद्या की उपासना रात्रि काल में करने से विशेष सिद्धि की प्राप्ति होती है। इनके भैरव महाकाल हैं।

माँ बगलामुखी स्तंभव शक्ति की अधिष्ठात्री हैं अर्थात यह अपने भक्तों के भय को दूर करके शत्रुओं और उनके बुरी शक्तियों का नाश करती हैं. माँ बगलामुखी का एक नाम पीताम्बरा भी है इन्हें पीला रंग अति प्रिय है इसलिए इनके पूजन में पीले रंग की सामग्री का उपयोग सबसे ज्यादा होता है. देवी बगलामुखी का रंग स्वर्ण के समान पीला होता है अत: साधक को माता बगलामुखी की आराधना करते समय पीले वस्त्र ही धारण करना चाहिए.

देवी बगलामुखी दसमहाविद्या में आठवीं महाविद्या हैं यह स्तम्भन की देवी हैं. संपूर्ण ब्रह्माण्ड की शक्ति का समावेश हैं माता बगलामुखी शत्रुनाश, वाकसिद्धि, वाद विवाद में विजय के लिए इनकी उपासना की जाती है. इनकी उपासना से शत्रुओं का नाश होता है तथा भक्त का जीवन हर प्रकार की बाधा से मुक्त हो जाता है. बगला शब्द संस्कृत भाषा के वल्गा का अपभ्रंश है, जिसका अर्थ होता है दुलहन है अत: मां के अलौकिक सौंदर्य और स्तंभन शक्ति के कारण ही इन्हें यह नाम प्राप्त है.

बगलामुखी देवी रत्नजडित सिहासन पर विराजती होती हैं रत्नमय रथ पर आरूढ़ हो शत्रुओं का नाश करती हैं. देवी के भक्त को तीनो लोकों में कोई नहीं हरा पाता, वह जीवन के हर क्षेत्र में सफलता पाता है पीले फूल और नारियल चढाने से देवी प्रसन्न होतीं हैं. देवी को पीली हल्दी के ढेर पर दीप-दान करें, देवी की मूर्ति पर पीला वस्त्र चढाने से बड़ी से बड़ी बाधा भी नष्ट होती है, बगलामुखी देवी के मन्त्रों से दुखों का नाश होता है.

पीताम्बरा की उपासना से मुकदमा में विजयी प्राप्त होती है। शत्रु पराजित होते हैं। रोगों का नाश होता है। साधकों को वाकसिद्धि हो जाती है। इन्हें पीले रंग का फूल, बेसन एवं घी का प्रसाद, केला, रात रानी फूल विशेष प्रिय है। पीताम्बरा का प्रसिद्ध मंदिर मध्यप्रदेश के नलखेडा(जिला-शाजापुर) और आसाम के कामाख्या में है।

क्या करें बगलामुखी जयंती के दिन..???

पंडित  दयानंद शास्त्री के अनुसार  इस दिन साधक को माता बगलामुखी की निमित्त व्रत एवं उपवास करना चाहिए तथा देवी का पूजन करना चाहिए। देवी बगलामुखी स्तंभव शक्ति की अधिष्ठात्री हैं अर्थात यह अपने भक्त के शत्रुओं और उनके बुरी शक्तियों को रोक देती हैं। देवी बगलामुखी का एक नाम पीताम्बरा भी है। इसका कारण है कि इनका रंग सोने के समान पीला है। इन्हें पीला रंग अति प्रिय है इसलिए इनके पूजन में पीले रंग की सामग्री का उपयोग सबसे ज्यादा होता है। साधक को माता बगलामुखी की आराधना करते समय पीले वस्त्र ही धारण करना चाहिए।
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माँ बगलामुखी का प्राचीन मंदिर-
तांत्रिकों की देवी बगलामुखी—
पंडित  दयानंद शास्त्री के अनुसार  माता बगलामुखी दसमहाविद्या में आठवीं महाविद्या हैं. इन्हें माता पीताम्बरा भी कहते हैं. ये स्तम्भन की देवी हैं. सारे ब्रह्माण्ड की शक्ति मिल कर भी इनका मुकाबला नहीं कर सकती. शत्रुनाश, वाकसिद्धि, वाद विवाद में विजय के लिए इनकी उपासना की जाती है. इनकी उपासना से शत्रुओं का स्तम्भन होता है तथा जातक का जीवन निष्कंटक हो जाता है. किसी छोटे कार्य के लिए 10000 तथा असाध्य से लगाने वाले कार्य के लिए एक लाख मंत्र का जाप करना चाहिए. बगलामुखी मंत्र के जाप से पूर्व बगलामुखी कवच का पाठ अवश्य करना चाहिए.
.6 अक्षर का बगलामुखी महामंत्र इस प्रकार है- 
“ॐ ल्ह्रिम बगलामुखी सर्वदुष्टानाम वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वाम कीलय बुद्धिं विनाशय ल्ह्रिमॐ स्वाहा” 
यह  सभी जप हल्दी की माला पर करना चाहिए और पूजा में पुष्प, नैवेद्य आदि भी पीले होने चाहिए.साधक पीले वस्त्र पहन कर पीले आसन पर बैठ कर मंत्र जाप करे.

प्राचीन तंत्र ग्रंथों में दस महाविद्याओं का उल्लेख मिलता है। उनमें से एक है बगलामुखी। माँ भगवती बगलामुखी का महत्व समस्त देवियों में सबसे विशिष्ट है। विश्व में इनके सिर्फ तीन ही महत्वपूर्ण प्राचीन मंदिर हैं, जिन्हें सिद्धपीठ कहा जाता है। उनमें से एक है नलखेड़ा में।
भारत में माँ बगलामुखी के तीन ही प्रमुख ऐतिहासिक मंदिर माने गए हैं जो क्रमश: दतिया (मध्यप्रदेश), कांगड़ा (हिमाचल) तथा नलखेड़ा जिला शाजापुर (मध्यप्रदेश) में हैं। तीनों का अपना अलग-अलग महत्व है।
मध्यप्रदेश में तीन मुखों वाली त्रिशक्ति माता बगलामुखी का यह मंदिर शाजापुर तहसील नलखेड़ा में लखुंदर नदी के किनारे स्थित है। द्वापर युगीन यह मंदिर अत्यंत चमत्कारिक है। यहाँ देशभर से शैव और शाक्त मार्गी साधु-संत तांत्रिक अनुष्ठान के लिए आते रहते हैं।
इस मंदिर में माता बगलामुखी के अतिरिक्त माता लक्ष्मी, कृष्ण, हनुमान, भैरव तथा सरस्वती भी विराजमान हैं। इस मंदिर की स्थापना महाभारत में विजय पाने के लिए भगवान कृष्ण के निर्देश पर महाराजा युधि‍ष्ठिर ने की थी। मान्यता यह भी है कि यहाँ की बगलामुखी प्रतिमा स्वयंभू है।
पंडित  दयानंद शास्त्री के अनुसार  यह बहुत ही प्राचीन मंदिर है। यहाँ के पुजारी अपनी दसवीं पीढ़ी से पूजा-पाठ करते आए हैं। 1815 में इस मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया था। इस मंदिर में लोग अपनी मनोकामना पूरी करने या किसी भी क्षेत्र में विजय प्राप्त करने के लिए यज्ञ, हवन या पूजन-पाठ कराते हैं।
यहाँ के अन्य पंडित गोपालजी पंडा, मनोहरलाल पंडा आदि ने बताया कि यह मंदिर श्मशान क्षेत्र में स्थित है। बगलामुखी माता मूलत: तंत्र की देवी हैं, इसलिए यहाँ पर तांत्रिक अनुष्ठानों का महत्व अधिक है। यह मंदिर इसलिए महत्व रखता है, क्योंकि यहाँ की मूर्ति स्वयंभू और जाग्रत है तथा इस मंदिर की स्थापना स्वयं महाराज युधिष्ठिर ने की थी।
इस मंदिर में बिल्वपत्र, चंपा, सफेद आँकड़ा, आँवला, नीम एवं पीपल के वृक्ष एक साथ स्थित हैं। इसके आसपास सुंदर और हरा-भरा बगीचा देखते ही बनता है। नवरात्रि में यहाँ पर भक्तों का हुजूम लगा रहता है। मंदिर श्मशान क्षेत्र में होने के कारण वर्षभर यहाँ पर कम ही लोग आते हैं।
कैसे पहुँचें:-
वायु मार्ग: नलखेड़ा के बगलामुखी मंदिर स्थल के सबसे निकटतम इंदौर का एयरपोर्ट है।
रेल मार्ग: ट्रेन द्वारा इंदौर से 30 किमी पर स्थित देवास या लगभग 60 किमी मक्सी पहुँचकर भी शाजापुर जिले के गाँव नलखेड़ा पहुँच सकते हैं।
सड़क मार्ग: इंदौर से लगभग 165 किमी की दूरी पर स्थित नलखेड़ा पहुँचने के लिए देवास या उज्जैन के रास्ते से जाने के लिए बस और टैक्सी उपलब्ध हैं।
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यह हें माँ बगलामुखी मंत्र —-

श्री ब्रह्मास्त्र-विद्या बगलामुख्या नारद ऋषये नम: शिरसि।
त्रिष्टुप् छन्दसे नमो मुखे। श्री बगलामुखी दैवतायै नमो ह्रदये।
ह्रीं बीजाय नमो गुह्ये। स्वाहा शक्तये नम: पाद्यो:।
ऊँ नम: सर्वांगं श्री बगलामुखी देवता प्रसाद सिद्धयर्थ न्यासे विनियोग:।

इसके पश्चात आवाहन करना चाहिए….

ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं बगलामुखी सर्वदृष्टानां मुखं स्तम्भिनि सकल मनोहारिणी अम्बिके इहागच्छ सन्निधि कुरू सर्वार्थ साधय साधय स्वाहा।

अब देवी का ध्यान करें इस प्रकार…..

सौवर्णामनसंस्थितां त्रिनयनां पीतांशुकोल्लसिनीम्
हेमावांगरूचि शशांक मुकुटां सच्चम्पकस्रग्युताम्
हस्तैर्मुद़गर पाशवज्ररसना सम्बि भ्रति भूषणै
व्याप्तांगी बगलामुखी त्रिजगतां सस्तम्भिनौ चिन्तयेत्।

सामान्य बगलामुखी मंत्र —–

ऊँ ह्रीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तंभय जिह्ववां कीलय बुद्धि विनाशय ह्रीं ओम् स्वाहा।

माँ बगलामुखी की साधना करने वाला साधक सर्वशक्ति सम्पन्न हो जाता है. यह मंत्र विधा अपना कार्य करने में सक्षम हैं. मंत्र का सही विधि द्वारा जाप किया जाए तो निश्चित रूप से सफलता प्राप्त होती है. बगलामुखी मंत्र के जाप से पूर्व बगलामुखी कवच का पाठ अवश्य करना चाहिए. देवी बगलामुखी पूजा अर्चना सर्वशक्ति सम्पन्न बनाने वाली सभी शत्रुओं का शमन करने वाली तथा मुकदमों में विजय दिलाने वाली होती है.

जानिए श्री सिद्ध बगलामुखी देवी महामंत्र को—–

ॐ ह्लीं बगलामुखी देव्यै सर्व दुष्टानाम वाचं मुखं पदम् स्तम्भय जिह्वाम कीलय-कीलय बुद्धिम विनाशाय ह्लीं ॐ नम:

इस मंत्र से काम्य प्रयोग भी संपन्न किये जाते हैं जैसे —-
1. मधु. शर्करा युक्त तिलों से होम करने पर मनुष्य वश में होते है।
2. मधु. घृत तथा शर्करा युक्त लवण से होम करने पर आकर्षण होता है।
3. तेल युक्त नीम के पत्तों से होम करने पर विद्वेषण होता है।
4. हरिताल, नमक तथा हल्दी से होम करने पर शत्रुओं का स्तम्भन होता है।

1) भय नाशक मंत्र—–

अगर आप किसी भी व्यक्ति वस्तु परिस्थिति से डरते है और अज्ञात डर सदा आप पर हावी रहता है तो देवी के भय नाशक मंत्र का जाप करना चाहिए…

ॐ ह्लीं ह्लीं ह्लीं बगले सर्व भयं हन

पीले रंग के वस्त्र और हल्दी की गांठें देवी को अर्पित करें…
पुष्प,अक्षत,धूप दीप से पूजन करें…
रुद्राक्ष की माला से 6 माला का मंत्र जप करें…
दक्षिण दिशा की और मुख रखें….

2) शत्रु नाशक मंत्र—-

अगर शत्रुओं नें जीना दूभर कर रखा हो, कोर्ट कचहरी पुलिस के चक्करों से तंग हो गए हों, शत्रु चैन से जीने नहीं दे रहे, प्रतिस्पर्धी आपको परेशान कर रहे हैं तो देवी के शत्रु नाशक मंत्र का जाप करना चाहिए….

ॐ बगलामुखी देव्यै ह्लीं ह्रीं क्लीं शत्रु नाशं कुरु

नारियल काले वस्त्र में लपेट कर बगलामुखी देवी को अर्पित करें….
मूर्ती या चित्र के सम्मुख गुगुल की धूनी जलाये ….
रुद्राक्ष की माला से 5 माला का मंत्र जप करें…
मंत्र जाप के समय पश्चिम कि ओर मुख रखें….

3) जादू टोना नाशक मंत्र—-

यदि आपको लगता है कि आप किसी बुरु शक्ति से पीड़ित हैं, नजर जादू टोना या तंत्र मंत्र आपके जीवन में जहर घोल रहा है, आप उन्नति ही नहीं कर पा रहे अथवा भूत प्रेत की बाधा सता रही हो तो देवी के तंत्र बाधा नाशक मंत्र का जाप करना चाहिए….

ॐ ह्लीं श्रीं ह्लीं पीताम्बरे तंत्र बाधाम नाशय नाशय

आटे के तीन दिये बनाये व देसी घी ड़ाल कर जलाएं….
कपूर से देवी की आरती करें….
रुद्राक्ष की माला से 7 माला का मंत्र जप करें…
मंत्र जाप के समय दक्षिण की और मुख रखे….

4) प्रतियोगिता इंटरवियु में सफलता का मंत्र—–
आपने कई बार इंटरवियु या प्रतियोगिताओं को जीतने की कोशिश की होगी और आप सदा पहुँच कर हार जाते हैं, आपको मेहनत के मुताबिक फल नहीं मिलता, किसी क्षेत्र में भी सफल नहीं हो पा रहे, तो देवी के साफल्य मंत्र का जाप करें….

ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं बगामुखी देव्यै ह्लीं साफल्यं देहि देहि स्वाहा:

बेसन का हलवा प्रसाद रूप में बना कर चढ़ाएं…
देवी की प्रतिमा या चित्र के सम्मुख एक अखंड दीपक जला कर रखें…
रुद्राक्ष की माला से 8 माला का मंत्र जप करें…
मंत्र जाप के समय पूर्व की और मुख रखें…

5) बच्चों की रक्षा का मंत्र—-

यदि आप बच्चों की सुरक्षा को ले कर सदा चिंतित रहते हैं, बच्चों को रोगों से, दुर्घटनाओं से, ग्रह दशा से और बुरी संगत से बचाना चाहते हैं तो देवी के रक्षा मंत्र का जाप करना चाहिए.. .

ॐ हं ह्लीं बगलामुखी देव्यै कुमारं रक्ष रक्ष

देवी माँ को मीठी रोटी का भोग लगायें…
दो नारियल देवी माँ को अर्पित करें…
रुद्राक्ष की माला से 6 माला का मंत्र जप करें….
मंत्र जाप के समय पश्चिम की ओर मुख रखें…

6) लम्बी आयु का मंत्र—-

यदि आपकी कुंडली कहती है कि अकाल मृत्यु का योग है, या आप सदा बीमार ही रहते हों, अपनी आयु को ले कर परेशान हों तो देवी के ब्रह्म विद्या मंत्र का जाप करना चाहिए…

ॐ ह्लीं ह्लीं ह्लीं ब्रह्मविद्या स्वरूपिणी स्वाहा:

पीले कपडे व भोजन सामग्री आता दाल चावल आदि का दान करें…
मजदूरों, साधुओं,ब्राह्मणों व गरीबों को भोजन खिलाये…
प्रसाद पूरे परिवार में बाँटें….
रुद्राक्ष की माला से 5 माला का मंत्र जप करें…
मंत्र जाप के समय पूर्व की ओर मुख रखें…

7) बल प्रदाता मंत्र—-
यदि आप बलशाली बनने के इच्छुक हो अर्थात चाहे देहिक रूप से, या सामाजिक या राजनैतिक रूप से या फिर आर्थिक रूप से बल प्राप्त करना चाहते हैं तो देवी के बल प्रदाता मंत्र का जाप करना चाहिए…

ॐ हुं हां ह्लीं देव्यै शौर्यं प्रयच्छ

पक्षियों को व मीन अर्थात मछलियों को भोजन देने से देवी प्रसन्न होती है…
पुष्प सुगंधी हल्दी केसर चन्दन मिला पीला जल देवी को को अर्पित करना चाहिए…
पीले कम्बल के आसन पर इस मंत्र को जपें….
रुद्राक्ष की माला से 7 माला मंत्र जप करें…
मंत्र जाप के समय उत्तर की ओर मुख रखें…

8) सुरक्षा कवच का मंत्र—-

प्रतिदिन प्रस्तुत मंत्र का जाप करने से आपकी सब ओर रक्षा होती है, त्रिलोकी में कोई आपको हानि नहीं पहुंचा सकता ….
ॐ हां हां हां ह्लीं बज्र कवचाय हुम

देवी माँ को पान मिठाई फल सहित पञ्च मेवा अर्पित करें..
छोटी छोटी कन्याओं को प्रसाद व दक्षिणा दें…
रुद्राक्ष की माला से 1 माला का मंत्र जप करें…
मंत्र जाप के समय पूर्व की ओर मुख रखें…

ये स्तम्भन की देवी भी हैं। कहा जाता है कि सारे ब्रह्मांड की शक्ति मिलकर भी इनका मुकाबला नहीं कर सकती। शत्रु नाश, वाक सिद्धि, वाद-विवाद में विजय के लिए देवी बगलामुखी की उपासना की जाती है।

बगलामुखी देवी को प्रसन्न करने के लिए 36 अक्षरों का बगलामुखी महामंत्र —-

‘ऊं हल्रीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय, जिहवां कीलय बुद्धिं विनाशय हल्रीं ऊं स्वाहा’ का जप,

हल्दी की माला पर करना चाहिए।

केसे करें मां बगलामुखी पूजन…??

माँ बगलामुखी की पूजा हेतु इस दिन प्रात: काल उठकर नित्य कर्मों में निवृत्त होकर, पीले वस्त्र धारण करने चाहिए. साधना अकेले में, मंदिर में या किसी सिद्ध पुरुष के साथ बैठकर की जानी चाहिए. पूजा करने के लुए पूर्व दिशा की ओर मुख करके पूजा करने के लिए आसन पर बैठें चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर भगवती बगलामुखी का चित्र स्थापित करें.

इसके बाद आचमन कर हाथ धोएं। आसन पवित्रीकरण, स्वस्तिवाचन, दीप प्रज्जवलन के बाद हाथ में पीले चावल, हरिद्रा, पीले फूल और दक्षिणा लेकर संकल्प करें. इस पूजा में ब्रह्मचर्य का पालन करना आवशयक होता है मंत्र- सिद्ध करने की साधना में माँ बगलामुखी का पूजन यंत्र चने की दाल से बनाया जाता है और यदि हो सके तो ताम्रपत्र या चाँदी के पत्र पर इसे अंकित करें.
इस अवसर पर मां बगलामुखी को प्रसन्न करने के लिए इस प्रकार पूजन करें-

साधक को माता बगलामुखी की पूजा में पीले वस्त्र धारण करना चाहिए। इस दिन सुबह जल्दी उठकर नित्य कर्मों में निवृत्त होकर पूर्व दिशा की ओर मुख करके आसन पर बैठें। चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर भगवती बगलामुखी का चित्र स्थापित करें। इसके बाद आचमन कर हाथ धोएं। आसन पवित्रीकरण, स्वस्तिवाचन, दीप प्रज्जवलन के बाद हाथ में पीले चावल, हरिद्रा, पीले फूल और दक्षिणा लेकर इस प्रकार संकल्प करें-

ऊँ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु: अद्य……(अपने गोत्र का नाम) गोत्रोत्पन्नोहं ……(नाम) मम सर्व शत्रु स्तम्भनाय बगलामुखी जप पूजनमहं करिष्ये। तदगंत्वेन अभीष्टनिर्वध्नतया सिद्ध्यर्थं आदौ: गणेशादयानां पूजनं करिष्ये।

इसके बाद भगवान श्रीगणेश का पूजन करें। नीचे लिखे मंत्रों से गौरी आदि षोडशमातृकाओं का पूजन करें-

गौरी पद्मा शचीमेधा सावित्री विजया जया।

देवसेना स्वधा स्वाहा मातरो लोक मातर:।।

धृति: पुष्टिस्तथातुष्टिरात्मन: कुलदेवता।

गणेशेनाधिकाह्योता वृद्धौ पूज्याश्च षोडश।।

इसके बाद गंध, चावल व फूल अर्पित करें तथा कलश तथा नवग्रह का पंचोपचार पूजन करें।

तत्पश्चात इस मंत्र का जप करते हुए देवी बगलामुखी का आवाह्न करें-

नमस्ते बगलादेवी जिह्वा स्तम्भनकारिणीम्।

भजेहं शत्रुनाशार्थं मदिरा सक्त मानसम्।।

आवाह्न के बाद उन्हें एक फूल अर्पित कर आसन प्रदान करें और जल के छींटे देकर स्नान करवाएं व इस प्रकार पूजन करें-

गंध- ऊँ बगलादेव्यै नम: गंधाक्षत समर्पयामि। का उच्चारण करते हुए बगलामुखी देवी को पीला चंदन लगाएं और पीले फूल चड़ाएं।

पुष्प- ऊँ बगलादेव्यै नम: पुष्पाणि समर्पयामि। मंत्र का उच्चारण करते हुए बगलामुखी देवी को पीले फूल चढ़ाएं।

धूप- ऊँ बगलादेव्यै नम: धूपंआघ्रापयामि। मंत्र का उच्चारण करते हुए बगलामुखी देवी को धूप दिखाएं।

दीप- ऊँ बगलादेव्यै नम: दीपं दर्शयामि। मंत्र का उच्चारण करते हुए बगलामुखी देवी को दीपक दिखाएं।

नैवेद्य- ऊँ बगलादेव्यै नम: नैवेद्य निवेदयामि। मंत्र का उच्चारण करते हुए बगलामुखी देवी को पीले रंग की मिठाई का भोग लगाएं।

अब इस प्रकार प्रार्थना करें-

जिह्वाग्रमादाय करणे देवीं, वामेन शत्रून परिपीडयन्ताम्।

गदाभिघातेन च दक्षिणेन पीताम्बराढ्यां द्विभुजां नमामि।।

अब क्षमा प्रार्थना करें-

आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्।

पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वरि।।

मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि।

यत्पूजितं मया देवि परिपूर्णं तदस्तु मे।।

अब नीचे लिखे मंत्र का एक माला जप करें-

गायत्री मंत्र- ऊँ ह्लीं ब्रह्मास्त्राय विद्महे स्तम्भनबाणाय धीमहि। तन्नो बगला प्रचोदयात्।।

अष्टाक्षर गायत्री मंत्र- ऊँ ह्रीं हं स: सोहं स्वाहा। हंसहंसाय विद्महे सोहं हंसाय धीमहि। तन्नो हंस: प्रचोदयात्।।

अष्टाक्षर मंत्र- ऊँ आं ह्लीं क्रों हुं फट् स्वाहा

त्र्यक्षर मंत्र- ऊँ ह्लीं ऊँ

नवाक्षर मंत्र- ऊँ ह्लीं क्लीं ह्लीं बगलामुखि ठ:

एकादशाक्षर मंत्र- ऊँ ह्लीं क्लीं ह्लीं बगलामुखि स्वाहा।

ऊँ ह्ल्रीं हूं ह्लूं बगलामुखि ह्लां ह्लीं ह्लूं सर्वदुष्टानां ह्लैं ह्लौं ह्ल: वाचं मुखं पदं स्तम्भय स्तम्भय ह्ल: ह्लौं ह्लैं जिह्वां कीलय ह्लूं ह्लीं ह्लां बुद्धिं विनाशाय ह्लूं हूं ह्लीं ऊँ हूं फट्।

षट्त्रिंशदक्षरी मंत्र- ऊँ ह्ल्रीं बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलय बुद्धिं विनाशय ह्लीं ऊँ स्वाहा।

अंत में माता बगलामुखी से ज्ञात-अज्ञात शत्रुओं से मुक्ति की प्रार्थना करें।

जानिए माँ बगलामुखी की कथा—-

देवी बगलामुखी जी के संदर्भ में एक कथा बहुत प्रचलित है जिसके अनुसार एक बार सतयुग में महाविनाश उत्पन्न करने वाला ब्रह्मांडीय तूफान उत्पन्न हुआ, जिससे संपूर्ण विश्व नष्ट होने लगा इससे चारों ओर हाहाकार मच जाता है और अनेकों लोक संकट में पड़ गए और संसार की रक्षा करना असंभव हो गया. यह तूफान सब कुछ नष्ट भ्रष्ट करता हुआ आगे बढ़ता जा रहा था, जिसे देख कर भगवान विष्णु जी चिंतित हो गए.

इस समस्या का कोई हल न पा कर वह भगवान शिव को स्मरण करने लगे तब भगवान शिव उनसे कहते हैं कि शक्ति के अतिरिक्त अन्य कोई इस विनाश को रोक नहीं सकता अत: आप उनकी शरण में जाएँ, तब भगवान विष्णु ने हरिद्रा सरोवर के निकट पहुँच कर कठोर तप करते हैं. भगवान विष्णु ने तप करके महात्रिपुरसुंदरी को प्रसन्न किया देवी शक्ति उनकी साधना से प्रसन्न हुई और सौराष्ट्र क्षेत्र की हरिद्रा झील में जलक्रीडा करती महापीत देवी के हृदय से दिव्य तेज उत्पन्न हुआ.

उस समय चतुर्दशी की रात्रि को देवी बगलामुखी के रूप में प्रकट हुई, त्र्येलोक्य स्तम्भिनी महाविद्या भगवती बगलामुखी नें प्रसन्न हो कर विष्णु जी को इच्छित वर दिया और तब सृष्टि का विनाश रूक सका. देवी बगलामुखी को बीर रति भी कहा जाता है क्योंकि देवी स्वम ब्रह्मास्त्र रूपिणी हैं, इनके शिव को एकवक्त्र महारुद्र कहा जाता है इसी लिए देवी सिद्ध विद्या हैं. तांत्रिक इन्हें स्तंभन की देवी मानते हैं, गृहस्थों के लिए देवी समस्त प्रकार के संशयों का शमन करने वाली हैं.
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रविवार को मां बगलामुखी जयंती है। इस अवसर पर मां बगलामुखी को प्रसन्न करने के लिए इस प्रकार पूजन करें-

पंडित  दयानंद शास्त्री के अनुसार  साधक को माता बगलामुखी की पूजा में पीले वस्त्र धारण करना चाहिए। इस दिन सुबह जल्दी उठकर नित्य कर्मों में निवृत्त होकर पूर्व दिशा की ओर मुख करके आसन पर बैठें। चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर भगवती बगलामुखी का चित्र स्थापित करें। इसके बाद आचमन कर हाथ धोएं। आसन पवित्रीकरण, स्वस्तिवाचन, दीप प्रज्जवलन के बाद हाथ में पीले चावल, हरिद्रा, पीले फूल और दक्षिणा लेकर इस प्रकार संकल्प करें-
ऊँ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु: अद्य……(अपने गोत्र का नाम) गोत्रोत्पन्नोहं ……(नाम) मम सर्व शत्रु स्तम्भनाय बगलामुखी जप पूजनमहं करिष्ये। तदगंत्वेन अभीष्टनिर्वध्नतया सिद्ध्यर्थं आदौ: गणेशादयानां पूजनं करिष्ये।
इसके बाद भगवान श्रीगणेश का पूजन करें। नीचे लिखे मंत्रों से गौरी आदि षोडशमातृकाओं का पूजन करें-
गौरी पद्मा शचीमेधा सावित्री विजया जया।
देवसेना स्वधा स्वाहा मातरो लोक मातर:।।
धृति: पुष्टिस्तथातुष्टिरात्मन: कुलदेवता।
गणेशेनाधिकाह्योता वृद्धौ पूज्याश्च षोडश।।
इसके बाद गंध, चावल व फूल अर्पित करें तथा कलश तथा नवग्रह का पंचोपचार पूजन करें।
तत्पश्चात इस मंत्र का जप करते हुए देवी बगलामुखी का आवाह्न करें-
नमस्ते बगलादेवी जिह्वा स्तम्भनकारिणीम्।
भजेहं शत्रुनाशार्थं मदिरा सक्त मानसम्।।
आवाह्न के बाद उन्हें एक फूल अर्पित कर आसन प्रदान करें और जल के छींटे देकर स्नान करवाएं व इस प्रकार पूजन करें-
गंध- ऊँ बगलादेव्यै नम: गंधाक्षत समर्पयामि। का उच्चारण करते हुए बगलामुखी देवी को पीला चंदन लगाएं और पीले फूल चड़ाएं।
पुष्प- ऊँ बगलादेव्यै नम: पुष्पाणि समर्पयामि। मंत्र का उच्चारण करते हुए बगलामुखी देवी को पीले फूल चढ़ाएं।
धूप- ऊँ बगलादेव्यै नम: धूपंआघ्रापयामि। मंत्र का उच्चारण करते हुए बगलामुखी देवी को धूप दिखाएं।
दीप- ऊँ बगलादेव्यै नम: दीपं दर्शयामि। मंत्र का उच्चारण करते हुए बगलामुखी देवी को दीपक दिखाएं।
नैवेद्य- ऊँ बगलादेव्यै नम: नैवेद्य निवेदयामि। मंत्र का उच्चारण करते हुए बगलामुखी देवी को पीले रंग की मिठाई का भोग लगाएं।
अब इस प्रकार प्रार्थना करें-
जिह्वाग्रमादाय करणे देवीं, वामेन शत्रून परिपीडयन्ताम्।
गदाभिघातेन च दक्षिणेन पीताम्बराढ्यां द्विभुजां नमामि।।
अब क्षमा प्रार्थना करें-
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्।
पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वरि।।
मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि।
यत्पूजितं मया देवि परिपूर्णं तदस्तु मे।।
अब नीचे लिखे मंत्र का एक माला जप करें-
गायत्री मंत्र- ऊँ ह्लीं ब्रह्मास्त्राय विद्महे स्तम्भनबाणाय धीमहि। तन्नो बगला प्रचोदयात्।।
अष्टाक्षर गायत्री मंत्र- ऊँ ह्रीं हं स: सोहं स्वाहा। हंसहंसाय विद्महे सोहं हंसाय धीमहि। तन्नो हंस: प्रचोदयात्।।
अष्टाक्षर मंत्र- ऊँ आं ह्लीं क्रों हुं फट् स्वाहा
त्र्यक्षर मंत्र- ऊँ ह्लीं ऊँ
नवाक्षर मंत्र- ऊँ ह्लीं क्लीं ह्लीं बगलामुखि ठ:
एकादशाक्षर मंत्र- ऊँ ह्लीं क्लीं ह्लीं बगलामुखि स्वाहा।
ऊँ ह्ल्रीं हूं ह्लूं बगलामुखि ह्लां ह्लीं ह्लूं सर्वदुष्टानां ह्लैं ह्लौं ह्ल: वाचं मुखं पदं स्तम्भय स्तम्भय ह्ल: ह्लौं ह्लैं जिह्वां कीलय ह्लूं ह्लीं ह्लां बुद्धिं विनाशाय ह्लूं हूं ह्लीं ऊँ हूं फट्।
षट्त्रिंशदक्षरी मंत्र- ऊँ ह्ल्रीं बगलामुखि सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदं स्तम्भय जिह्वां कीलय बुद्धिं विनाशय ह्लीं ऊँ स्वाहा।
अंत में माता बगलामुखी से ज्ञात-अज्ञात शत्रुओं से मुक्ति की प्रार्थना करें।
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माँ बगाल्मुखी साधना इन बातों का रखें विशेष ध्यान/सावधानियां—

पंडित  दयानंद शास्त्री के अनुसार  बगलामुखी आराधना में निम्न बातों का विशेष ध्यान रखना जरूरी होता है। साधना में पीत वस्त्र धारण करना चाहिए एवं पीत वस्त्र का ही आसन लेना चाहिए। आराधना में पूजा की सभी वस्तुएं पीले रंग की होनी चाहिए। आराधना खुले आकश के नीचे नहीं करनी चाहिए।

आराधना काल में पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए तथा साधना क्रम में स्त्री स्पर्श, चर्चा और संसर्ग कतई नहीं करना चाहिए। साधना डरपोक किस्म के लोगों को नहीं करनी चाहिए। बगलामुखी देवी अपने साधक की परीक्षा भी लेती हैं। साधना काल में भयानक अवाजें या आभास हो सकते हैं, इससे धबराना नहीं चाहिए और अपनी साधना जारी रखनी चाहिए।

साधना गुरु की आज्ञा लेकर ही करनी चाहिए और शुरू करने से पहले गुरु का ध्यान और पूजन अवश्य करना चाहिए। बगलामुखी के भैरव मृत्युंजय हैं, इसलिए साधना के पूर्व महामृत्युंजय मंत्र का एक माला जप अवश्य करना चाहिए। साधना उत्तर की ओर मुंह करके करनी चाहिए। मंत्र का जप हल्दी की माला से करना चाहिए। जप के पश्चात् माला अपने गले में धारण करें।

साधना रात्रि में 9 बजे से 12 बजे के बीच प्रारंभ करनी चाहिए। मंत्र के जप की संखया निर्धारित होनी चाहिए और रोज उसी संखया से जप करना चाहिए। यह संखया साधक को स्वयं तय करना चाहिए।

साधना गुप्त रूप से होनी चाहिए। साधना काल में दीप अवश्य जलाया जाना चाहिए।
जो जातक इस बगलामुखी साधना को पूर्ण कर लेता है, वह अजेय हो जाता है, उसके शत्रु उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाते।

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