हम जहां रहते हैं वहां कई ऐसी शक्तियां होती हैं, जो हमें दिखाई नहीं देतीं किंतु बहुधा हम पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं जिससे हमारा जीवन अस्त-व्यस्त हो उठता है और हम दिशाहीन हो जाते हैं। इन अदृश्य शक्तियों को ही आम जन ऊपरी बाधाओं की संज्ञा देते हैं। भारतीय ज्योतिष में ऐसे कतिपय योगों का उल्लेख है जिनके घटित होने की स्थिति में ये शक्तियां शक्रिय हो उठती हैं और उन योगों के जातकों के जीवन पर अपना प्रतिकूल प्रभाव डाल देती हैं।
भारतीय संस्कृति के अनुसार प्रेत योनि के समकक्ष एक और योनि है जो एक प्रकार से प्रेत योनि ही है, लेकिन प्रेत योनि से थोड़ा विशिष्ट होने के कारण उसे प्रेत न कहकर पितृ योनि कहते हैं।प्रेत लोक के प्रथम दो स्तरों की मृतात्माएं पितृ योनि की आत्माएं कहलाती है। इसीलिए प्रेत लोक के प्रथम दो स्तरों को पितृ लोक की संज्ञा दी गयी है।
भारतीय ज्योतिष में सूर्य को पिता का कारक व मंगल को रक्त का कारक माना गया है। अतः जब जन्मकुंडली में सूर्य या मंगल, पाप प्रभाव में होते हैं तो पितृदोष का निर्माण होता है। पितृ दोष वाली कुंडली में समझा जाता है कि जातक अपने पूर्व जन्म में भी पितृदोष से युक्त था। प्रारब्धवश वर्तमान समय में भी जातक पितृदोष से युक्त है।
जन्म के समय व्यक्ति अपनी कुण्डली में बहुत से योगों को लेकर पैदा होता है. यह योग बहुत अच्छे हो सकते हैं, बहुत खराब हो सकते हैं, मिश्रित फल प्रदान करने वाले हो सकते हैं या व्यक्ति के पास सभी कुछ होते हुए भी वह परेशान रहता है. सब कुछ होते भी व्यक्ति दुखी होता है! इसका क्या कारण हो सकता है? कई बार व्यक्ति को अपनी परेशानियों का कारण नहीं समझ आता तब वह ज्योतिषीय सलाह लेता है. तब उसे पता चलता है कि उसकी कुण्डली में पितृ-दोष बन रहा है और इसी कारण वह परेशान है.
बृहतपराशर होरा शास्त्र के अनुसार जन्म कुंडली में .4 प्रकार के शापित योग हो सकते हैं. जिनमें पितृ दोष, मातृ दोष, भ्रातृ दोष, मातुल दोष, प्रेत दोष आदि को प्रमुख माना गया है. इन शाप या दोषों के कारण व्यक्ति को स्वास्थ्य हानि, आर्थिक संकट, व्यवसाय में रुकावट, संतान संबंधी समस्या आदि का सामना करना पड़ सकता है. पितृ दोष के बहुत से कारण हो सकते हैं. उनमें से जन्म कुण्डली के आधार पर कुछ कारणों का उल्लेख किया जा रहा है जो निम्नलिखित हैं :-
जन्म कुण्डली के पहले, दूसरे, चौथे, पांचवें, सातवें, नौवें या दसवें भाव में यदि सूर्य-राहु या सूर्य-शनि एक साथ स्थित हों तब यह पितृ दोष माना जाता है. इन भावों में से जिस भी भाव में यह योग बनेगा उसी भाव से संबंधित फलों में व्यक्ति को कष्ट या संबंधित सुख में कमी हो सकती है.
सूर्य यदि नीच का होकर राहु या शनि के साथ है तब पितृ दोष के अशुभ फलों में और अधिक वृद्धि होती है.किसी जातक की कुंडली में लग्नेश यदि छठे, आठवें या बारहवें भाव में स्थित है और राहु लग्न में है तब यह भी पितृ दोष का योग होता है.
यदि समय रहते इस दोष का निवारण कर लिया जाये तो पितृदोष से मुक्ति मिल सकती है। पितृदोष वाले जातक के जीवन में सामान्यतः निम्न प्रकार की घटनाएं या लक्षण दिखायी दे सकते हैं।
1. यदि राजकीय/प्राइवेट सेवा में कार्यरत हैं तो उन्हें अपने अधिकारियों के कोप का सामना करना पड़ता है। व्यापार करते हैं, तो टैक्स आदि मुकदमे झेलने होंगे। सामान की बर्बादी होगी!
.. मानसिक व्यथा का सामना करना पड़ता है। पिता से अच्छा तालमेल नहीं बैठ पाता।
.. जीवन में किसी आकस्मिक नुकसान या दुर्घटना के शिकार होते हैं।
4. जीवन के अंतिक समय में जातक का पिता बीमार रहता है या स्वयं को ऐसी बीमारी होती है जिसका पता नहीं चल पाता।
5. विवाह व शिक्षा में बाधाओं के साथ वैवाहिक जीवन अस्थिर सा बना रहता है।
6. वंश वृद्धि में अवरोध दिखायी पड़ते हैं। काफी प्रयास के बाद भी पुत्र/पुत्री का सुख नहीं होगा।
7. गर्भपात की स्थिति पैदा होती है।
8. अत्मबल में कमी रहती है। स्वयं निर्णय लेने में परेशानी होती है। वस्तुतः लोगों से अधिक सलाह लेनी पड़ती है।
9. परीक्षा एवं साक्षात्मार में असफलता मिलती है।
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राहु के मुख्य लक्षण (प्रभाव)—पेट के रोग, दिमागी रोग, पागलपन, खाजखुजली ,भूत -चुडैल का शरीर में प्रवेश, बिना बात के ही झूमना, नशे की आदत लगना, गलत स्त्रियों या पुरुषों के साथ सम्बन्ध बनाकर विभिन्न प्रकार के रोग लगा लेना, शराब और शबाब के चक्कर में अपने को बरबाद कर लेना,लगातार टीवी और मनोरंजन के साधनों में अपना मन लगाकर बैठना, होरर शो देखने की आदत होना, भूत प्रेत और रूहानी ताकतों के लिये जादू या शमशानी काम करना, नेट पर बैठ कर बेकार की स्त्रियों और पुरुषों के साथ चैटिंग करना और दिमाग खराब करते रहना, कृत्रिम साधनो से अपने शरीर के सूर्य यानी वीर्य को झाडते रहना, शरीर के अन्दर अति कामुकता के चलते लगातार यौन सम्बन्धों को बनाते रहना और बाद में वीर्य के समाप्त होने पर या स्त्रियों में रज के खत्म होने पर टीबी तपेदिक फ़ेफ़डों की बीमारियां लगाकर जीवन को खत्म करने के उपाय करना, शरीर की नशें काटकर उनसे खून निकाल कर अपने खून रूपी मंगल को समाप्त कर जीवन को समाप्त करना, ड्र्ग लेने की आदत डाल लेना, नींद नही आना, शरीर में चींटियों के रेंगने का अहसास होना,गाली देने की आदत पड जाना,सडक पर गाडी आदि चलाते वक्त अपना पौरुष दिखाना या कलाबाजी दिखाने के चक्कर में शरीर को तोड लेना, बाजी नामक रोग लगा लेना, जैसे गाडीबाजी, आदि, इन रोगों के अन्य रोग भी राहु के है, जैसे कि किसी दूसरे के मामले में अपने को दाखिल करने के बाद दो लोगों को आपस में लडाकर दूर बैठ कर तमाशा देखना, लोगों को क्लिप बनाकर लूटने की क्रिया करना और इन कामों के द्वारा जनता का जीवन बिना किसी हथियार के बरबाद करना भी है। अगर उपरोक्त प्रकार के भाव मिलते है, तो समझना चाहिये कि किसी न किसी प्रकार से राहु का प्रकोप शरीर पर है, या तो गोचर से राहु अपनी शक्ति देकर मनुष्य जीवन को जानवर की गति प्रदान कर रहा है, अथवा राहु की दशा चल रही है, और पुराने पूर्वजों की गल्तियों के कारण जातक को इस प्रकार से उनके पाप भुगतने के लिये राहु प्रयोग कर रहा है।
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राहु से प्रभावित (ग्रस्त) मनुष्य के लक्षण के कारण—-
लग्न में राहु तथा चंद्र और त्रिकोण में मंगल व शनि हों, तो जातक को प्रेत प्रदत्त पीड़ा होती है।
चंद्र पाप ग्रह से दृष्ट हो, शनि सप्तम में हो तथा कोई शुभ ग्रह चर राशि में हो, तो भूत से पीड़ा होती है।
शनि तथा राहु लग्न में हो, तो जातक को भूत सताता है।
लग्नेश या चंद्र से युक्त राहु लग्न में हो, तो प्रेत योग होता है।
यदि दशम भाव का स्वामी आठवें या एकादश भाव में हो और संबंधित भाव के स्वामी से दृष्ट हो, तो उस स्थिति में भी प्रेत योग होता है।
1. नीच राशि में स्थित राहु के साथ लग्नेश हो तथा सूर्य, शनि व अष्टमेश से दृष्ट हो।
2. पंचम भाव में सूर्य तथा शनि हो, निर्बल चन्द्रमा सप्तम भाव में हो तथा बृहस्पति बारहवें भाव में हो।
3. जन्म समय चन्द्रग्रहण हो और लग्न, पंचम तथा नवम भाव में पाप ग्रह हों तो जन्मकाल से ही पिशाच बाधा का भय होता है।
4. षष्ठ भाव में पाप ग्रहों से युक्त या दृष्ट राहु तथा केतु की स्थिति भी पैशाचिक बाधा उत्पन्न करती है।
5. लग्न में शनि, राहु की युति हो अथवा दोनों में से कोई भी एक ग्रह स्थिति हो अथवा लग्नस्थ राहु पर शनि की दृष्टि हो।
6. लग्नस्थ केतु पर कई पाप ग्रहों की दृष्टि हो।
7. निर्बल चन्द्रमा शनि के साथ अष्टम में हो तो पिशाच, भूत-प्रेत मशान आदि का भय।
8. निर्बल चन्द्रमा षष्ठ अथवा बाहरहवें में मंगल, राहु या केतु के साथ हो तो भी पिशाच भय।
9. चर राशि (मेष, कर्क, तुला, मकर) के लग्न पर यदि षष्ठेश की दृष्टि हो।
1.. एकादश भाव में मंगल हो तथा नवम भाव में स्थिर राशि (वृष, सिंह,वृश्चिक, कुंभ) और सप्तम भाव में द्विस्वभाव राशि(मिथुन, कन्या, धनु मीन) हो।
11. लग्न भाव मंगल से दृष्ट हो तथा षष्ठेश, दशम, सप्तम या लग्न भाव में स्थिति हों।
12. मंगल यदि लग्नेश के साथ केंद्र या लग्न भाव में स्थिति हो तथा छठे भाव का स्वामी लग्नस्त हो।
13. पापग्रहों से युक्त या दृष्ट केतु लग्नगत हो।
14. शनि राहु केतु या मंगल में से कोई भी एक ग्रह सप्तम स्थान में हो।
15. जब लग्न में चन्द्रमा के साथ राहु हो और त्रिकोण भावों में क्रूर ग्रह हों।
16. अष्टम भाव में शनि के साथ निर्बल चन्द्रमा स्थित हो।
17. राहु शनि से युक्त होकर लग्न में स्थित हो।
18. लग्नेश एवं राहु अपनी नीच राशि का होकर अष्टम भाव या अष्टमेश से संबंध करे।
19. राहु नीच राशि का होकर अष्टम भाव में हो तथा लग्नेश शनि के साथ द्वादश भाव में स्थित हो।
20. द्वितीय में राहु द्वादश मं शनि षष्ठ मं चंद्र तथा लग्नेश भी अशुभ भावों में हो।
21. चन्द्रमा तथा राहु दोनों ही नीच राशि के होकर अष्टम भाव में हो।
22. चतुर्थ भाव में उच्च का राहु हो वक्री मंगल द्वादश भाव में हो तथा अमावस्या तिथि का जन्म हो।
23. नीचस्थ सूर्य के साथ केतु हो तथा उस पर शनि की दृष्टि हो तथा लग्नेश भी नची राशि का हो।
24. जिन जातकों की कुण्डली में उपरोक्त योग हों, उन्हें विशेष सावधानीपूर्वक रहना चाहिए तथा संयमित जीवन शैली का आश्रय ग्रहण करना चाहिए। जिन बाहय परिस्थितियों के कारण प्रेत बाधा का प्रकोप होता है उनसे विशेष रूप से बचें। जातक को प्रेतबाधा से मुक्त रखने में अधोलिखित उपाय भी सहायक सिद्ध हो सकते हैं:-
25. शारीरिक सुचिता के साथ-साथ मानसिक पवित्रता का भी ध्यान रखें।
26. नित्य हनुमान चालीसा तथा बजरंग बाण का पाठ करें।
27. मंगलवार का व्रत रखें तथा सुन्दरकांड का पाठ करें।
28. पुखराज रत्न से प्रेतात्माएं दूर भागती हैं, अतः पुखराज रत्न धारण करें।
29. घर में नित्य शंख बजाएं।
30. नित्य गायत्री मंत्र की एक माला का जाप करें।
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सूर्यकृत पितृदोष निवारण
1. शुक्लपक्ष के प्रथम रविवार के दिन घर में विध विधान से सूर्ययंत्र स्थापित करें। सूर्य को नित्य तांबे के पात्र में जल लेकर अघ्र्य दें। जल में कोई लाल पुष्प चावल व रोली अवश्य मिश्रित कर लें। जब घर से बाहर जाएं तो यंत्र दर्शन जरूर करें।
2. निम्न मंत्र का एक माला नित्य जप करें। ध्यान रहे आपका मुख पूर्व दिशा में हो। ऊं आदित्याय विद्महे, प्रभाकराय, धीमहि तन्नो सूर्यः प्रचोदयात्।।
3. ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष के प्रथम रविवार से प्रारंभ कर कम से कम 12 व अधिक से अधिक 30 रविवार व्रत रखें। सूर्यास्त के पूर्व गेहूं गुड घी आदि से बनी कोई सामग्री खा कर व्रतपूर्ण करें। व्रत के दिन सूर्य स्तोत्र का पाठ भी करें।
4. लग्नानुसार सोने या तांबे में 5 रत्ती के ऊपर का माणिक्य रविवार के दिन विधि विधान से धारण कर लें।
5. पांच मुख रूद्राक्ष धारण करें। तथा नित्य द्वादश ज्योतिर्लिंगो के नामों का स्मरण करें।
6. पिता का अपमान न करें। बड़े बुजुर्गों को सम्मान दें।
7. रविवार के दिन गाय को गेहूं व गुउ़ खिलाएं। स्वयं घर से बाहर जाते समय गुड़ खाकर निकला करें।
8. दूध में शहद मिलाकर पिया करें।
9. सदैव लाल रंग का रूमाल अपने पास अवश्य रखें।
मंगलकृत पितृदोष निवारण:
1. शुक्ल पक्ष के प्रथम मंगलवार के दिन घर में मंगल यंत्र पूर्ण विधि विधान से स्थापित करें । जब घर के बाहर जाएं तो यंत्र दर्शन अवश्य करके जाएं।
2. नित्य प्रातःकाल उगते हुए सूर्य को अघ्र्य दें।
3. निम्य एक माला जप निम्न मंत्र का करें। ऊं अंगारकाय विद्महे, शक्तिहस्ताय, धीमहि तन्नो भौमः प्रचोदयात्।।
4. शुक्लपक्ष के प्रथम मंगलवार से आरंभ करके 11 मंगलवार व्रत करें। हनुमान जी व शिवजी की उपासना करें। जमीन पर सोएं।
5. मंगलवार के दिन 5 रत्ती से अधिक वनज का मूंगा सोने या तांबे में विधि विधान से धारण करें।
6. तीनमुखी रूद्राख धारण करें तथा नित्य प्रातःकाल द्वादश ज्योतिर्लिंगों के नामों का स्मरण करें।
7. बहनों का भूलकर भी अपमान न करें।
8. लालमुख वाले बंदरों को गुड़ व चना खिलाएं।
9. जब भी अवसर मिले रक्तदान अवश्य करें।
10. 100 ग्राम मसूर की दाल जल में प्रवाहित कर दें।
11. सुअर को मसूर की दाल व मछलियों को आटे की गोलियां खिलाया करें।
विशेष:- हो सकता है कि कुंडली में सूर्य व मंगलकृत दोनों ही पितृदोष हो। यह स्थिति अत्यंत घातक हो सकती है। यदि ऐसी स्थिति है तो जीवन में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। सूर्य मंगल राहु की युति विशेष रूप से कष्टकारी हो सकती है। अतः अनिष्टकारी प्रभावों से बचने के लिए निम्न उपाय करने चाहिए।
1. शुक्ल पक्ष के प्रथम शनिवार को सांय काल पानी वाला नारियल अपने ऊपर से 7 बार उतार कर तीव्र प्रवाह वाले जल में प्रवाहित कर दें तथा पितरों से आशीर्वाद का निवेदन करें।
2. अष्टमुखी रूद्राक्ष धारण करें। घर में 21 मोर के पंख अवश्य रखें तथा शिवलिंग पर जलमिश्रित दूध अर्पित करें। प्रयोग अनुभूत है अवश्य लाभ मिलेगा।
3. जब राहु की महादशा या अंतर्दशा चल रही हो तो कंबल का प्रयोग कतई न करें।
4. सफाईकर्मी को दान दक्षिणा दे दिया करें।
उपरोक्त प्रयोग पूर्ण श्रद्धा लगन व विश्वास के साथ करने पर पितृदोष के दुष्प्रभावों का शमन होता है।
भूतप्रेत निवारण के लिए हनुमानजी की भक्ति श्रीराम भक्त हनुमान को केसरीनन्दन पवनसुत अंजनीपुत्र आदि नामों से पुकारा जाता है। हनुमान जी आठ तरह की सिद्धियों और नौ तरह की निधियों के दाता हैं। हनुमान जी के प्रत्येक पाठ इतने चमत्कारी हैं कि उनके मात्र एक बार स्मरण से ही व्यक्ति मुसीबत से पार हो जाता है। चाहे वह चालीसा हो सुन्दरकांड हो कवच हो या स्तोत्र हो इनमें से किसी का भी पाठ कर लेने से बाधाओं में धंसा हुआ व्यक्ति जैसे तुरंत ही भवसागर तर जाता है।
प्रत्येक मंगलवार और शनिवार के दिन हनुमान मंदिर पर भक्तों का आकर्षण इस बात का परिचायक है कि प्रभु श्री राम के साथ हनुमान भी सभी के हृदय में विराजे हैं।
किसी भी प्रकार की बाधा हो चाहे व्यक्ति आर्थिक संकट से ग्रस्त हो या भूतपिशाच जैसे ऊपरी बाधाओं से परेशान तथा मारण सम्मोहन उच्चाटन आदि से ग्रस्त व्यक्ति को हनुमान आराधना से बहुत ही अच्छा लाभ मिलता है। यदि कोर्ट कचहरी लड़ाई मुकदमों से ग्रस्त व्यक्ति भी हनुमान जी की शरण में आएं तो उसे लाभ अवश्य मिलता है।
हनुमान साधना के नियम
शास्त्रों में मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन व्रत करने से और इसी दिन हनुमान पाठ जप अनुष्ठान आदि प्रारंभ करने से त्वरित फल प्राप्त होता है। 1. हनुमान-साधना में लाल चीजों का प्रयोग अधिक हो।
2. जप पाठ अनुष्ठान आदि प्रारंभ करने से पूर्व किसी भी हनुमान मंदिर में जाकर हनुमान जी से आज्ञा मांग लेनी चाहिए।
3. जातक को पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुंह करके लाल आसन का प्रयोग करते हुए हनुमान साधना प्रारंभ कर लेनी चाहिए व जप मूंगे की माला से भी कर सकते हैं।
4. साधना के दौरान ब्रहमचर्य का पालन आहार विहार पर नियंत्रण रखना चाहिए।
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राहु से प्रभावित (ग्रस्त) मनुष्य को ठीक करने के उपाय—
उक्त योगों के जातकों के आचरण और व्यवहार में बदलाव आने लगता है। ऐसे में उन योगों के दुष्प्रभावों से मुक्ति हेतु निम्नलिखित उपाय करने चाहिए।
संकट निवारण हेतु पान, पुष्प, फल, हल्दी, पायस एवं इलाइची के हवन से दुर्गासप्तशती के बारहवें अध्याय के तेरहवें श्लोक सर्वाबाधा……..न संशयः मंत्र से संपुटित नवचंडी प्रयोग कराएं।
दुर्गा सप्तशती के चौथे अध्याय के चौबीसवें श्लोक का पाठ करते हुए पलाश की समिधा से घृत और सीलाभिष की आहुति दें, कष्टों से रक्षा होगी।
शक्ति तथा सफलता की प्राप्ति हेतुग्यारहवें अध्याय के ग्यारहवें श्लोक सृष्टि स्थिति विनाशानां……का उच्चारण करते हुए घी की आहुतियां दें।
शत्रु शमन हेतु सरसों, काली मिर्च, दालचीनी तथा जायफल की हवि देकर अध्याय के उनचालीसवें श्लोक का संपुटित प्रयोग तथा हवन कराएं।
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कुछ अन्य उपाय———
महामृत्युंजय मंत्र का विधिवत् अनुष्ठान कराएं। जप के पश्चात् हवन अवश्य कराएं।
महाकाली या भद्रकाली माता के मंत्रानुष्ठान कराएं और कार्यस्थल या घर पर हवन कराएं।
गुग्गुल का धूप देते हुए हनुमान चालीस तथा बजरंग बाण का पाठ करें।
उग्र देवी या देवता के मंदिर में नियमित श्रमदान करें, सेवाएं दें तथा साफ सफाई करें।
यदि घर के छोटे बच्चे पीड़ित हों, तो मोर पंख को पूरा जलाकर उसकी राख बना लें और उस राख से बच्चे को नियमित रूप से तिलक लगाएं तथा थोड़ी-सी राख चटा दें।
घर की महिलाएं यदि किसी समस्या या बाधा से पीड़ित हों, तो निम्नलिखित प्रयोग करें।
सवा पाव मेहंदी के तीन पैकेट (लगभग सौ ग्राम प्रति पैकेट) बनाएं और तीनों पैकेट लेकर काली मंदिर या शस्त्र धारण किए हुए किसी देवी की मूर्ति वाले मंदिर में जाएं। वहां दक्षिणा, पत्र, पुष्प, फल, मिठाई, सिंदूर तथा वस्त्र के साथ मेहंदी के उक्त तीनों पैकेट चढ़ा दें। फिर भगवती से कष्ट निवारण की प्रार्थना करें और एक फल तथा मेहंदी के दो पैकेट वापस लेकर कुछ धन के साथ किसी भिखारिन या अपने घर के आसपास सफाई करने वाली को दें। फिर उससे मेहंदी का एक पैकेट वापस ले लें और उसे घोलकर पीड़ित महिला के हाथों एवं पैरों में लगा दें। पीड़िता की पीड़ा मेहंदी के रंग उतरने के साथ-साथ धीरे-धीरे समाप्त हो जाएगी।
व्यापार स्थल पर किसी भी प्रकार की समस्या हो, तो वहां श्वेतार्क गणपति तथा एकाक्षी श्रीफल की स्थापना करें। फिर नियमित रूप से धूप, दीप आदि से पूजा करें तथा सप्ताह में एक बार मिठाई का भोग लगाकर प्रसाद यथासंभव अधिक से अधिक लोगों को बांटें। भोग नित्य प्रति भी लगा सकते हैं।
कामण प्रयोगों से होने वाले दुष्प्रभावों से बचने के लिए दक्षिणावर्ती शंखों के जोड़े की स्थापना करें तथा इनमें जल भर कर सर्वत्र छिड़कते रहें।
हानि से बचाव तथा लाभ एवं बरकत के लिए गोरोचन, लाक्षा, कुंकुम, सिंदूर, कपूर, घी, चीनी और शहद के मिश्रण से अष्टगंध बनाकर उसकी स्याही से नीचे चित्रित पंचदशी यंत्र
बनाएं तथा देवी के १०८ नामों को लिखकर पाठ करें।
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बाधा मुक्ति के लिए :——-
किसी भी प्रकार की बाधा से मुक्ति के लिए मत्स्य यंत्र से युक्त बाधामुक्ति यंत्र की स्थापना कर उसका नियमित रूप से पूजन-दर्शन करें।
अकारण परेशान करने वाले व्यक्ति से शीघ्र छुटकारा पाने के लिए : यदि कोई व्यक्ति बगैर किसी कारण के परेशान कर रहा हो, तो शौच क्रिया काल में शौचालय में बैठे-
बैठे वहीं के पानी से उस व्यक्ति का नाम लिखें और बाहर निकलने से पूर्व जहां पानी से नाम लिखा था, उस स्थान पर अपने बाएं पैर से तीन बार ठोकर मारें। ध्यान रहे, यह
प्रयोग स्वार्थवश न करें, अन्यथा हानि हो सकती है।
रुद्राक्ष या स्फटिक की माला के प्रयोगों से प्रतिकूल परिस्थितियों का शमन होता है। इसके अतिरिक्त स्फटिक की माला पहनने से तनाव दूर होता है।
ऊपरी हवा पहचान और निदान
प्रायः सभी धर्मग्रंथों में ऊपरी हवाओं, नजर दोषों आदि का उल्लेख है। कुछ ग्रंथों में इन्हें बुरी आत्मा कहा गया है तो कुछ अन्य में भूत-प्रेत और जिन्न।
यहां ज्योतिष के आधार पर नजर दोष का विश्लेषण प्रस्तुत है।
ज्योतिष सिद्धांत के अनुसार गुरु पितृदोष, शनि यमदोष, चंद्र व शुक्र जल देवी दोष, राहु सर्प व प्रेत दोष, मंगल शाकिनी दोष, सूर्य देव दोष एवं बुध कुल देवता दोष का कारक होता है। राहु, शनि व केतु ऊपरी हवाओं के कारक ग्रह हैं। जब किसी व्यक्ति के लग्न (शरीर), गुरु (ज्ञान), त्रिकोण (धर्म भाव) तथा द्विस्वभाव राशियों पर पाप ग्रहों का प्रभाव होता है, तो उस पर ऊपरी हवा की संभावना होती है।
लक्षण
नजर दोष से पीड़ित व्यक्ति का शरीर कंपकंपाता रहता है। वह अक्सर ज्वर, मिरगी आदि से ग्रस्त रहता है।
कब और किन स्थितियों में डालती हैं ऊपरी हवाएं किसी व्यक्ति पर अपना प्रभाव?
जब कोई व्यक्ति दूध पीकर या कोई सफेद मिठाई खाकर किसी चौराहे पर जाता है, तब ऊपरी हवाएं उस पर अपना प्रभाव डालती हैं। गंदी जगहों पर इन हवाओं का वास होता है, इसीलिए ऐसी जगहों पर जाने वाले लोगों को ये हवाएं अपने प्रभाव में ले लेती हैं। इन हवाओं का प्रभाव रजस्वला स्त्रियों पर भी पड़ता है। कुएं, बावड़ी आदि पर भी इनका वास होता है। विवाह व अन्य मांगलिक कार्यों के अवसर पर ये हवाएं सक्रिय होती हैं। इसके अतिरिक्त रात और दिन के १२ बजे दरवाजे की चौखट पर इनका प्रभाव होता है।
दूध व सफेद मिठाई चंद्र के द्योतक हैं। चौराहा राहु का द्योतक है। चंद्र राहु का शत्रु है। अतः जब कोई व्यक्ति उक्त चीजों का सेवन कर चौराहे पर जाता है, तो उस पर ऊपरी हवाओं के प्रभाव की संभावना रहती है।
कोई स्त्री जब रजस्वला होती है, तब उसका चंद्र व मंगल दोनों दुर्बल हो जाते हैं। ये दोनों राहु व शनि के शत्रु हैं। रजस्वलावस्था में स्त्री अशुद्ध होती है और अशुद्धता राहु की द्योतक है। ऐसे में उस स्त्री पर ऊपरी हवाओं के प्रकोप की संभावना रहती है।
कुएं एवं बावड़ी का अर्थ होता है जल स्थान और चंद्र जल स्थान का कारक है। चंद्र राहु का शत्रु है, इसीलिए ऐसे स्थानों पर ऊपरी हवाओं का प्रभाव होता है।
जब किसी व्यक्ति की कुंडली के किसी भाव विशेष पर सूर्य, गुरु, चंद्र व मंगल का प्रभाव होता है, तब उसके घर विवाह व मांगलिक कार्य के अवसर आते हैं। ये सभी ग्रह शनि व राहु के शत्रु हैं, अतः मांगलिक अवसरों पर ऊपरी हवाएं व्यक्ति को परेशान कर सकती हैं।
दिन व रात के १२ बजे सूर्य व चंद्र अपने पूर्ण बल की अवस्था में होते हैं। शनि व राहु इनके शत्रु हैं, अतः इन्हें प्रभावित करते हैं। दरवाजे की चौखट राहु की द्योतक है। अतः जब राहु क्षेत्र में चंद्र या सूर्य को बल मिलता है, तो ऊपरी हवा सक्रिय होने की संभावना प्रबल होती है।
मनुष्य की दायीं आंख पर सूर्य का और बायीं पर चंद्र का नियंत्रण होता है। इसलिए ऊपरी हवाओं का प्रभाव सबसे पहले आंखों पर ही पड़ता है।
यहां ऊपरी हवाओं से संबद्ध ग्रहों, भावों आदि का विश्लेषण प्रस्तुत है।
राहु-केतु : जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, शनिवत राहु ऊपरी हवाओं का कारक है। यह प्रेत बाधा का सबसे प्रमुख कारक है। इस ग्रह का प्रभाव जब भी मन, शरीर, ज्ञान, धर्म, आत्मा आदि के भावों पर होता है, तो ऊपरी हवाएं सक्रिय होती हैं।
शनि : इसे भी राहु के समान माना गया है। यह भी उक्त भावों से संबंध बनाकर भूत-प्रेत पीड़ा देता है।
चंद्र : मन पर जब पाप ग्रहों राहु और शनि का दूषित प्रभाव होता है और अशुभ भाव स्थित चंद्र बलहीन होता है, तब व्यक्ति भूत-प्रेत पीड़ा से ग्रस्त होता है।
गुरु : गुरु सात्विक ग्रह है। शनि, राहु या केतु से संबंध होने पर यह दुर्बल हो जाता है। इसकी दुर्बल स्थिति में ऊपरी हवाएं जातक पर अपना प्रभाव डालती हैं।
लग्न : यह जातक के शरीर का प्रतिनिधित्व करता है। इसका संबंध ऊपरी हवाओं के कारक राहु, शनि या केतु से हो या इस पर मंगल का पाप प्रभाव प्रबल हो, तो व्यक्ति के ऊपरी हवाओं से ग्रस्त होने की संभावना बनती है।
पंचम : पंचम भाव से पूर्व जन्म के संचित कर्मों का विचार किया जाता है। इस भाव पर जब ऊपरी हवाओं के कारक पाप ग्रहों का प्रभाव पड़ता है, तो इसका अर्थ यह है कि व्यक्ति के पूर्व जन्म के अच्छे कर्मों में कमी है। अच्छे कर्म अल्प हों, तो प्रेत बाधा योग बनता है।
अष्टम : इस भाव को गूढ़ विद्याओं व आयु तथा मृत्यु का भाव भी कहते हैं। इसमें चंद्र और पापग्रह या ऊपरी हवाओं के कारक ग्रह का संबंध प्रेत बाधा को जन्म देता है।
नवम : यह धर्म भाव है। पूर्व जन्म में पुण्य कर्मों में कमी रही हो, तो यह भाव दुर्बल होता है।
राशियां : जन्म कुंडली में द्विस्वभाव राशियों मिथुन, कन्या और मीन पर वायु तत्व ग्रहों का प्रभाव हो, तो प्रे्रत बाधा होती है।
वार : शनिवार, मंगलवार, रविवार को प्रेत बाधा की संभावनाएं प्रबल होती हैं।
तिथि : रिक्ता तिथि एवं अमावस्या प्रेत बाधा को जन्म देती है।
नक्षत्र : वायु संज्ञक नक्षत्र प्रेत बाधा के कारक होते हैं।
योग : विष्कुंभ, व्याघात, ऐंद्र, व्यतिपात, शूल आदि योग प्रेत बाधा को जन्म देते हैं।
करण : विष्टि, किस्तुन और नाग करणों के कारण व्यक्ति प्रेत बाधा से ग्रस्त होता है।
दशाएं : मुख्यतः शनि, राहु, अष्टमेश व राहु तथा केतु से पूर्णतः प्रभावित ग्रहों की दशांतर्दशा में व्यक्ति के भूत-प्रेत बाधाओं से ग्रस्त होने की संभावना रहती है।
युति
किसी स्त्री के सप्तम भाव में शनि, मंगल और राहु या केतु की युति हो, तो उसके पिशाच पीड़ा से ग्रस्त होने की संभावना रहती है।
गुरु नीच राशि अथवा नीच राशि के नवांश में हो, या राहु से युत हो और उस पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो, तो जातक की चांडाल प्रवृत्ति होती है।
पंचम भाव में शनि का संबंध बने तो व्यक्ति प्रेत एवं क्षुद्र देवियों की भक्ति करता है।
ऊपरी हवाओं के कुछ अन्य मुख्य ज्योतिषीय योग
यदि लग्न, पंचम, षष्ठ, अष्टम या नवम भाव पर राहु, केतु, शनि, मंगल, क्षीण चंद्र आदि का प्रभाव हो, तो जातक के ऊपरी हवाओं से ग्रस्त होने की संभावना रहती है। यदि उक्त
ग्रहों का परस्पर संबंध हो, तो जातक प्रेत आदि से पीड़ित हो सकता है।
यदि पंचम भाव में सूर्य और शनि की युति हो, सप्तम में क्षीण चंद्र हो तथा द्वादश में गुरु हो, तो इस स्थिति में भी व्यक्ति प्रेत बाधा का शिकार होता है।
यदि लग्न पर क्रूर ग्रहों की दृष्टि हो, लग्न निर्बल हो, लग्नेश पाप स्थान में हो अथवा राहु या केतु से युत हो, तो जातक जादू-टोने से पीड़ित होता है।
लग्न में राहु के साथ चंद्र हो तथा त्रिकोण में मंगल, शनि अथवा कोई अन्य क्रूर ग्रह हो, तो जातक भूत-प्रेत आदि से पीड़ित होता है।
यदि षष्ठेश लग्न में हो, लग्न निर्बल हो और उस पर मंगल की दृष्टि हो, तो जातक जादू-टोने से पीड़ित होता है। यदि लग्न पर किसी अन्य शुभ ग्रह की दृष्टि न हो, तो जादू-टोने से पीड़ित होने की संभावना प्रबल होती है। षष्ठेश के सप्तम या दशम में स्थित होने पर भी जातक जादू-टोने से पीड़ित हो सकता है।
यदि लग्न में राहु, पंचम में शनि तथा अष्टम में गुरु हो, तो जातक प्रेत शाप से पीड़ित होता है।
ऊपरी हवाओं के प्रभाव से मुक्ति के सरल उपाय
ऊपरी हवाओं से मुक्ति हेतु शास्त्रों में अनेक उपाय बताए गए हैं। अथर्ववेद में इस हेतु कई मंत्रों व स्तुतियों का उल्लेख है। आयुर्वेद में भी इन हवाओं से मुक्ति के उपायों का विस्तार से वर्णन किया गया है। यहां कुछ प्रमुख सरल एवं प्रभावशाली उपायों का विवरण प्रस्तुत है।
ऊपरी हवाओं से मुक्ति हेतु हनुमान चालीसा का पाठ और गायत्री का जप तथा हवन करना चाहिए। इसके अतिरिक्त अग्नि तथा लाल मिर्ची जलानी चाहिए।
रोज सूर्यास्त के समय एक साफ-सुथरे बर्तन में गाय का आधा किलो कच्चा दूध लेकर उसमें शुद्ध शहद की नौ बूंदें मिला लें। फिर स्नान करके, शुद्ध वस्त्र पहनकर मकान
की छत से नीचे तक प्रत्येक कमरे, जीने, गैलरी आदि में उस दूध के छींटे देते हुए द्वार तक आएं और बचे हुए दूध को मुख्य द्वार के बाहर गिरा दें। क्रिया के दौरान इष्टदेव का स्मरण करते रहें। यह क्रिया इक्कीस दिन तक नियमित रूप से करें, घर पर प्रभावी ऊपरी हवाएं दूर हो जाएंगी।
रविवार को बांह पर काले धतूरे की जड़ बांधें, ऊपरी हवाओं से मुक्ति मिलेगी।
लहसुन के रस में हींग घोलकर आंख में डालने या सुंघाने से पीड़ित व्यक्ति को ऊपरी हवाओं से मुक्ति मिल जाती है।
ऊपरी बाधाओं से मुक्ति हेतु निम्नोक्त मंत्र का यथासंभव जप करना चाहिए।
” ओम नमो भगवते रुद्राय नमः कोशेश्वस्य नमो ज्योति पंतगाय नमो रुद्राय नमः सिद्धि स्वाहा।”
घर के मुख्य द्वार के समीप श्वेतार्क का पौधा लगाएं, घर ऊपरी हवाओं से मुक्त रहेगा।
उपले या लकड़ी के कोयले जलाकर उसमें धूनी की विशिष्ट वस्तुएं डालें और उससे उत्पन्न होने वाला धुआं पीड़ित व्यक्त्ि को सुंघाएं। यह क्रिया किसी ऐसे व्यक्ति से करवाएं जो अनुभवी हो और जिसमें पर्याप्त आत्मबल हो।
प्रातः काल बीज मंत्र ÷क्लीं’ का उच्चारण करते हुए काली मिर्च के नौ दाने सिर पर से घुमाकर दक्षिण दिशा की ओर फेंक दें, ऊपरी बला दूर हो जाएगी।
रविवार को स्नानादि से निवृत्त होकर काले कपड़े की छोटी थैली में तुलसी के आठ पत्ते, आठ काली मिर्च और सहदेई की जड़ बांधकर गले में धारण करें, नजर दोष बाधा से मुक्ति मिलेगी।
निम्नोक्त मंत्र का १०८ बार जप करके सरसों का तेल अभिमंत्रित कर लें और उससे पीड़ित व्यक्ति के शरीर पर मालिश करें, व्यकित पीड़ामुक्त हो जाएगा।
मंत्र : ओम नमो काली कपाला देहि देहि स्वाहा।
ऊपरी हवाओं के शक्तिषाली होने की स्थिति में शाबर मंत्रों का जप एवं प्रयोग किया जा सकता है। प्रयोग करने के पूर्व इन मंत्रों का दीपावली की रात को अथवा होलिका दहन की रात को जलती हुई होली के सामने या फिर श्मषान में १०८ बार जप कर इन्हें सिद्ध कर लेना चाहिए। यहां यह उल्लेख कर देना आवष्यक है कि इन्हें सिद्ध करने के इच्छुक साधकों में पर्याप्त आत्मबल होना चाहिए, अन्यथा हानि हो सकती है।
निम्न मंत्र से थोड़ा-सा जीरा ७ बार अभिमंत्रित कर रोगी के शरीर से स्पर्श कराएं और उसे अग्नि में डाल दें। रोगी को इस स्थिति में बैठाना चाहिए कि उसका धूंआ उसके मुख के सामने आये। इस प्रयोग से भूत-प्रेत बाधा की निवृत्ति होती है।
मंत्र : जीरा जीरा महाजीरा जिरिया चलाय। जिरिया की शक्ति से फलानी चलि जाय॥ जीये तो रमटले मोहे तो मशान टले। हमरे जीरा मंत्र से अमुख अंग भूत चले॥ जाय हुक्म पाडुआ पीर की दोहाई॥
एक मुट्ठी धूल को निम्नोक्त मंत्र से ३ बार अभिमंत्रित करें और नजर दोष से ग्रस्त व्यक्ति पर फेंकें, व्यक्ति को दोष से मुक्ति मिलेगी।
मंत्र : तह कुठठ इलाही का बान। कूडूम की पत्ती चिरावन। भाग भाग अमुक अंक से भूत। मारुं धुलावन कृष्ण वरपूत। आज्ञा कामरु कामाख्या। हारि दासीचण्डदोहाई।
थोड़ी सी हल्दी को ३ बार निम्नलिखित मंत्र से अभिमंत्रित करके अग्नि में इस तरह छोड़ें कि उसका धुआं रोगी के मुख की ओर जाए। इसे हल्दी बाण मंत्र कहते हैं।
हल्दी गीरी बाण बाण को लिया हाथ उठाय। हल्दी बाण से नीलगिरी पहाड़ थहराय॥ यह सब देख बोलत बीर हनुमान। डाइन योगिनी भूत प्रेत मुंड काटौ तान॥ आज्ञा कामरु कामाक्षा माई। आज्ञा हाड़ि की चंडी की दोहाई॥
जौ, तिल, सफेद सरसों, गेहूं, चावल, मूंग, चना, कुष, शमी, आम्र, डुंबरक पत्ते और अषोक, धतूरे, दूर्वा, आक व ओगां की जड़ को मिला लें और उसमें दूध, घी, मधु और गोमूत्र मिलाकर मिश्रण तैयार कर लें। फिर संध्या काल में हवन करें और निम्न मंत्रों का १०८ बार जप कर इस मिश्रण से १०८ आहुतियां दें।
मंत्र : ओम नमः भवे भास्कराय आस्माक अमुक सर्व ग्रहणं पीड़ा नाशनं कुरु-कुरु स्वाहा।
नजर दोष निवारक मंत्र व यंत्र
वायुमंडल में व्याप्त अदृश्य शक्तियों के दुष्प्रभाव से ग्रस्त लोगों का जीवन दूभर हो जाता है। प्रत्यक्ष रूप से दिखाई न देने के फलस्वरूप किसी चिकित्सकीय उपाय से इनसे मुक्ति संभव नहीं होती। ऐसे में भारतीय ज्योतिष तथा अन्य धर्म ग्रंथों में वर्णित मंत्रों एवं यंत्रों के प्रयोग सहायक सिद्ध हो सकते हैं। यहां कुछ ऐसे ही प्रमुख एवं अति प्रभावशाली मंत्रों तथा यंत्रों के प्रयोगों के फल और विधि का विवरण प्रस्तुत है। ये प्रयोग सहज और सरल हैं, जिन्हें अपना कर सामान्य जन भी उन अदृश्य शक्तियों से मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं।
गायत्री मंत्र : गायत्री मंत्र वेदोक्त महामंत्र है, जिसके निष्ठापूर्वक जप और प्रयोग से प्रेत तथा ऊपरी बाधाओं, नजर दोषों आदि से मुक्ति प्राप्त की जा सकती है। नियमित रूप से गायत्री मंत्र का जप करने वालों को ये शक्तियां कभी नहीं सताती। उन्हें कभी डरावने सपने भी नहीं आते।
गायत्री मंत्र से अभिमंत्रित जल से अभिषेक करने से अथवा गायत्री मंत्र से किए गए हवन की भस्म धारण करने से पीड़ित व्यक्ति को प्रेत बाधाओं, ऊपरी हवाओं, नजर दोषों आदि से मुक्ति मिल जाती है। इस महामंत्र का अखंड प्रयोग कभी निष्फल नहीं होता।
मंत्र : ओम भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गोदेवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात्।
प्रयोग विधि
गायत्री मंत्र का सवा लाख जप कर पीपल, पाकर, गूलर या वट की लकड़ी से उसका दशांश हवन करें, ऊपरी हवाओं से मुक्ति मिलेगी।
सोने, चांदी या तांबे के कलश को सूत्र से वेष्टित करें और रेतयुक्त स्थान पर रखकर उसे गायत्री मंत्र पढ़ते हुए जल से पूरित करें। फिर उसमें मंत्रों का जप करते हुए सभी तीर्थों का आवाहन करके इलायची, चंदन, कपूर, जायफल, गुलाब, मालती के पुष्प, बिल्वपत्र, विष्णुकांता, सहदेवी, वनौषधियां, धान, जौ, तिल, सरसों तथा पीपल, गूलर, पाकर व वट आदि वृक्षों के पल्लव और २७ कुश डाल दें। इसके बाद उस कलश में भरे हुए जल को गायत्री मंत्र से एक हजार बार अभिमंत्रित करें। इस अभिमंत्रित जल को भूता बाधा, नजर दोष आदि से पीड़ित व्यक्ति के ऊपर छिड़कर उसे खिलाएं, वह शीघ्र स्वस्थ हो जाएगा। इस प्रयोग से पैशाचिक उपद्रव भी शांत हो जाते हैं।
जो घर ऊपरी बाधाओं और नजर दोषों से प्रभावित हो, उसमें गायत्री मंत्र का सवा लाख जप करके तिल, घृत आदि से उसका दशांश हवन करें। फिर उस हवन स्थल पर एक चतुष्कोणी मंडल बनाएं और एक त्रिशूल को गायत्री मंत्र से एक हजार बार अभिमंत्रित करके उपद्रवों और उपद्रवकारी शक्तियों के शमन की कामना करते हुए उसके बीच गाड़ दें।
किसी शुभ मुहूर्त में अनार की कलम और अष्टगंध की स्याही से भोजपत्र पर नीचे चित्रांकित यंत्र की रचना करें।
फिर इसे गायत्री मंत्र से अभिमंत्रित कर गुग्गुल की धूप दें और विधिवत पूजन कर ऊपरी बाधा या नजरदोष से पीड़ित व्यक्ति के गले में बांध दें, वह दोषमुक्त हो जाएगा।
अमोघ हनुमत-मंत्र : ऊपरी बाधाओं और नजर दोष के शमन के लिए निम्नोक्त हनुमान मंत्र का जप करना चाहिए।
ओम ऐं ह्रीं श्रीं ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रीं ओम नमो
भगवतेमहाबल पराक्रमाय भूत-प्रेत-पिशाच-शाकिनी डाकिनी- यक्षिणी-पूतना मारी महामारी यक्ष-राक्षस भैरव-वेताल ग्रह राक्षसादिकम क्षणेन हन हन भंजय मारय मारय शिक्षय शिक्षय महामारेश्वर रुद्रावतार हुं फट स्वाहा।
इस मंत्र को दीपावली की रात्रि, नवरात्र अथवा किसी अन्य शुभ मुहूर्त में या ग्रहण के समय हनुमान जी के किसी पुराने सिद्ध मंदिर में ब्रह्मचर्य पूर्वक रुद्राक्ष की माला पर दस हजार बार जप कर उसका दशांश हवन करके सिद्ध कर लेना चाहिए ताकि कभी भी अवसर पड़ने पर इसका प्रयोग किया जा सके।
सिद्ध मंत्र से अभिमंत्रित जल प्रेत बाधा या नजर दोष से ग्रस्त व्यक्ति को पिलाने तथा इससे अभिमंत्रित भस्म उसके मस्तक पर लगाने से वह इन दोषों से मुक्त हो जाता है।
उक्त सिद्ध मंत्र से एक कील को १००८ बार अभिमंत्रित कर उसे भूत-प्रेतों के प्रकोप तथा नजर दोषों से पीड़ित मकान में गाड़ देने से वह मकान कीलित हो जाता है तथा वहां फिर कभी किसी प्रकार का पैशाचिक अथवा नजर दोषजन्य उपद्रव नहीं होता।
भूत-प्रेता बाधा नाशक यंत्र इस यंत्र को सिद्ध करने हेतु इसे सूर्य ग्रहण, चंद्र ग्रहण अथवा दीपावली की रात्रि में अनार की कलम तथा अष्टगंध से भोजपत्र पर ३४ बार लिखकर और धूप-दीप देकर किसी नदी में प्रवाहित करें। तत्पश्चात इस यंत्र को पुनः लिखकर विधिवत पूजन कर अपने पास रखें, हर प्रकार की प्रेत बाधा से रक्षा होगी।
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ऊपरी हवाओं से बचाव के कुछ अनुभूत प्रयोग
लहसुन के तेल में हींग मिलाकर दो बूंद नाक में डालने, नीम के पत्ते, हींग, सरसों, बच व सांप की केंचुली की धूनी देने तथा रविवार को काले धतूरे की जड़ हाथ में बांधने से ऊपरी बाधा दूर होती है। इसके अतिरिक्त गंगाजल में तुलसी के पत्ते व काली मिर्च पीसकर घर में छिड़कने, गायत्री मंत्र के (सुबह की अपेक्षा संध्या समय किया गया गायत्री मंत्र का जप अधिक लाभकारी होता है) जप, हनुमान जी की नियमित रूप से उपासना, राम रक्षा कवच या रामवचन कवच के पाठ से नजर दोष से शीघ्र मुक्ति मिलती है। साथ ही, पेरीडॉट, संग सुलेमानी, क्राइसो लाइट, कार्नेलियन जेट, साइट्रीन, क्राइसो प्रेज जैसे रत्न धारण करने से भी लाभ मिलता है।
उतारा : उतारा शब्द का तात्पर्य व्यक्ति विशेष पर हावी बुरी हवा अथवा बुरी आत्मा, नजर आदि के प्रभाव को उतारने से है। उतारे आमतौर पर मिठाइयों द्वारा किए जाते हैं, क्योंकि मिठाइयों की ओर ये श्ीाघ्र आकर्षित होते हैं।
उतारा करने की विधि :
उतारे की वस्तु सीधे हाथ में लेकर नजर दोष से पीड़ित व्यक्ति के सिर से पैर की ओर सात अथवा ग्यारह बार घुमाई जाती है। इससे वह बुरी आत्मा उस वस्तु में आ जाती है। उतारा की क्रिया करने के बाद वह वस्तु किसी चौराहे, निर्जन स्थान या पीपल के नीचे रख दी जाती है और व्यक्ति ठीक हो जाता है।
किस दिन किस मिठाई से उतारा करना चाहिए, इसका विवरण यहां प्रस्तुत है।
रविवार को तबक अथवा सूखे फलयुक्त बर्फी से उतारा करना चाहिए। सोमवार को बर्फी से उतारा करके बर्फी गाय को खिला दें। मंगलवार को मोती चूर के लड्डू से उतार कर लड्डू कुत्ते को खिला दें। बुधवार को इमरती से उतारा करें व
उसे कुत्ते को खिला दें। गुरुवार को सायं काल एक दोने में अथवा कागज पर पांच मिठाइयां रखकर उतारा करें। उतारे के बाद उसमें छोटी इलायची रखें व धूपबत्ती जलाकर किसी पीपल के वृक्ष के नीचे पश्चिम दिशा में रखकर घर वापस जाएं। ध्यान रहे, वापस जाते समय पीछे मुड़कर न देखें और घर आकर हाथ और पैर धोकर व कुल्ला करके ही अन्य कार्य करें।शुक्रवार को मोती चूर के लड्डू से उतारा कर लड्डू कुत्ते को खिला दें या किसी चौराहे पर रख दें। शनिवार को उतारा करना हो तो इमरती या बूंदी का लड्डू प्रयोग में लाएं व उतारे के बाद उसे कुत्ते को खिला दें।
इसके अतिरिक्त रविवार को सहदेई की जड़, तुलसी के आठ पत्ते और आठ काली मिर्च किसी कपड़े में बांधकर काले धागे से गले में बांधने से ऊपरी हवाएं सताना बंद कर देती हैं।
नजर उतारने अथवा उतारा आदि करने के लिए कपूर, बूंदी का लड्डू, इमरती, बर्फी, कड़वे तेल की रूई की बाती, जायफल, उबले चावल, बूरा, राई, नमक, काली सरसों, पीली सरसों मेहंदी, काले तिल, सिंदूर, रोली, हनुमान जी को चढ़ाए जाने वाले सिंदूर, नींबू, उबले अंडे, गुग्गुल, शराब, दही, फल, फूल, मिठाइयों, लाल मिर्च, झाडू, मोर छाल, लौंग, नीम के पत्तों की धूनी आदि का प्रयोग किया जाता है।
स्थायी व दीर्घकालीन लाभ के लिए संध्या के समय गायत्री मंत्र का जप और जप के दशांश का हवन करना चाहिए। हनुमान जी की नियमित रूप से उपासना, भगवान शिव की उपासना व उनके मूल मंत्र का जप, महामृत्युंजय मंत्र का जप, मां दुर्गा और मां काली की उपासना करें। स्नान के पश्चात् तांबे के लोटे से सूर्य को जल का अर्य दें। पूर्णमासी को सत्यनारायण की कथा स्वयं करें अथवा किसी कर्मकांडी ब्राह्मण से सुनें। संध्या के समय घर में दीपक जलाएं, प्रतिदिन गंगाजल छिड़कें और नियमित रूप से गुग्गुल की धूनी दें। प्रतिदिन शुद्ध आसन पर बैठकर सुंदर कांड का पाठ करें। किसी के द्वारा दिया गया सेव व केला न खाएं। रात्रि बारह से चार बजे के बीच कभी स्नान न करें।
बीमारी से मुक्ति के लिए नीबू से उतारा करके उसमें एक सुई आर-पार चुभो कर पूजा स्थल पर रख दें और सूखने पर फेंक दें। यदि रोग फिर भी दूर न हो, तो रोगी की चारपाई से एक बाण निकालकर रोगी के सिर से पैर तक छुआते हुए उसे सरसों के तेल में अच्छी तरह भिगोकर बराबर कर लें व लटकाकर जला दें और फिर राख पानी में बहा दें।
उतारा आदि करने के पश्चात भलीभांति कुल्ला अवश्य करें।
इस तरह, किसी व्यक्ति पर पड़ने वाली किसी अन्य व्यक्ति की नजर उसके जीवन को तबाह कर सकती है। नजर दोष का उक्त लक्षण दिखते ही ऊपर वर्णित सरल व सहज उपायों का प्रयोग कर उसे दोषमुक्त किया जा सकता है।
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क्या करें, क्या न करें:-
1. किसी निर्जन एकांत या जंगल आदि में मलमूत्र त्याग करने से पूर्व उस स्थान को भलीभांति देख लेना चाहिए कि वहां कोई ऐसा वृक्ष तो नहीं है जिस पर प्रेत आदि निवास करते हैं अथवा उस स्थान पर कोई मजार या कब्रिस्तान तो नहीं है।
2. किसी नदी तालाब कुआं या जलीय स्थान में थूकना या मल-मूत्र त्याग करना किसी अपराध से कम नहीं है क्योंकि जल ही जीवन है। जल को प्रदूषित करने स जल के देवता वरुण रूष्ट हो सकते हैं।
3. घर के आसपास पीपल का वृक्ष नहीं होना चाहिए क्योंकि पीपल पर प्रेतों का वास होता है।
4. सूर्य की ओर मुख करके मल-मूत्र का त्याग नहीं करना चाहिए।
5. गूलर मौलसरी, शीशम, मेहंदी आदि के वृक्षों पर भी प्रेतों का वास होता है। रात के अंधेरे में इन वृक्षों के नीचे नहीं जाना चाहिए और न ही खुशबुदार पौधों के पास जाना चाहिए।
6. सेब एकमात्र ऐसा फल है जिस पर प्रेतक्रिया आसानी से की जा सकती है। इसलिए किसी अनजाने का दिया सेब नहीं खाना चाहिए।
7. कहीं भी झरना, तालाब, नदी अथवा तीर्थों में पूर्णतया निर्वस्त्र होकर या नग्न होकर नहीं नहाना चाहिए।
8. अगर प्रेतबाधा की आशंका हो तो.घर में प्राणप्रतिष्ठा की बजरंगबलि हनुमान की सुसज्जित प्रतिमा और हनुमान चालीसा रखनी चाहिए।
9. प्रतिदिन प्रातःकाल घर में गंगाजल का छिड़काव करना चाहिए।
10. प्रत्येक पूर्णमासी को घर में सत्यनारायण की कथा करवाएं।
11. सूर्यदेव को प्रतिदिन जल का अघ्र्य देना प्रेतवाधा से मुक्ति देता है।
12. घर में ऊंट की सूखी लीद की धूनी देकर भी प्रेत बाधा दूर हो जाती है।
13. घर में गुग्गल धूप की धूनी देने से प्रेतबाधा नहीं होती है।
14. नीम के सूखे पत्तों का धुआं संध्या के समय घर में देना उत्तम होता है।
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क्या करें कि भूत प्रेतों का असर न हो पाए:-
1. अपनी आत्मशुद्धि व घर की शुद्धि हेतु प्रतिदिन घर में गायत्री मंत्र से हवन करें।
2. अपने इष्ट देवी देवता के समक्ष घी का दीपक प्रज्वलित करें।
3. हनुमान चालीसा या बजरंग बाण का प्रतिदिन पाठ करें।
4. जिस घर में प्रतिदिन सुन्दरकांड का पाठ होता है वहां ऊपरी हवाओं का असर नहीं होता।
5. घर में पूजा करते समय कुशा का आसन प्रयोग में लाएं।
6. मां महाकाली की उपासना करें।
7. सूर्य को तांबे के लोटे से जल का अघ्र्य दें।
8. संध्या के समय घर में धूनी अवश्य दें।
9. रात्रिकालीन पूजा से पूर्व गुरू से अनुमति अवश्य लें।
10. रात्रिकाल में 12 से 4 बजे के मध्य ठहरे पानी को न छुएं।
11. यथासंभव अनजान व्यक्ति के द्वारा दी गई चीज ग्रहण न करें।
12. प्रातःकाल स्नान व पूजा के प्श्चात ही कुछ ग्रहण करें।
13. ऐसी कोई भी साधना न करें जिसकी पूर्ण जानकारी न हो या गुरु की अनुमति न हो।
14. कभी किसी प्रकार के अंधविश्वास अथवा वहम में नहीं पड़ना चाहिए। इससे बचने का एक ही तरीका है कि आप बुद्धि से तार्किक बनें व किसी चमत्कार अथवा घटना आदि या क्रिया आदि को विज्ञान की कसौटी पर कसें, उसके पश्चात ही किसी निर्णय पर पहुंचे।
15. किसी आध्यात्मिक गुरु, साधु, संत, फकीर, पंडित आदि का अपमान न करें।
16. अग्नि व जल का अपमान न करें। अग्नि को लांघें नहीं व जल को दूषित न करें।
17. हाथ से छूटा हुआ या जमीन पर गिरा हुआ भोजन या खाने की कोई भी वस्तु स्वयं ग्रहण न करें।
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भूत-प्रेत आदि से ग्रसित व्यक्ति की पहचान कैसे करें?
1. ऐसे व्यक्ति के शरीर या कपड़ों से गंध आती है।
2. ऐसा व्यक्ति स्वभाव में चिड़चिड़ा हो जाता है।
3. ऐसे व्यक्ति की आंखें लाल रहती हैं व चेहरा भी लाल दिखाई देता है।
4. ऐसे व्यक्ति सिरदर्द व पेट दर्द की शिकायत अक्सर करता ही रहता है।
5. ऐसा व्यक्ति झुककर या पैर घसीट कर चलता है।
6. कंधों में भारीपन महसूस करता है।
7. कभी कभी पैरों में दर्द की शिकायत भी करता है।
8. बुरे स्वप्न उसका पीछा नहीं छोड़ते।
9. जिस घर या परिवार में भूत प्रेतों का साया होता है वहां शांति का वातावरण नहीं होता। घर में कोई न कोई सदस्य सदैव किसी न किसी रोग से ग्रस्त रहता है। अकेले रहने पर घर में डार लगता है बार-बार ऐसा लगता है कि घर के ही किसी सदस्य ने आवाज देकर पुकारा है जबकि वह सदस्य घर पर होता ही नहीं? इसे छलावा कहते हैं।