क्या होगा प्रभाव शनि के राशि परिवर्तन का..???


. नवम्बर 2..4 (रविवार की शाम) 6.45 बजे शनि राशि बदलकर तुला से वृश्चिक में प्रवेश करेगा। वृश्चिक राशि का स्वामी मंगल होता है जो कि शनि का शत्रु है।


शनिदेव जब राशि परिवर्तन करते है तब दो राशियो पर ढैया तथा तीन राशियो पर साढेसाती का प्रभाव शुरू होता है । एक साथ में पाँच राशियो को विशेष रूप से प्रभावित करने कि क्षमता सिर्फ शनि मे है ।शनि मकर एवं कुंभ राशि का स्वामी है। इसके अलावा तुला राशि में बीस डिग्री (अंश) उच्च का है जबकि मेश राशि में 20 अंश नीच का है। इसकी मूल त्रिकोण राशि कुंभ है। इसको दुख व शोक का कारक भी माना जाता है। दो नवंबर 2014 की रात को शनि महाराज तुला राशि छोड़कर वृश्चिक राशि में प्रवेश करेंगे। शनि के इस राशि परिवर्तन के कारण हर राशि पर अलग अलग प्रभाव पड़ेगा।


खगोल की दृष्टि से शनिसौर मंडल में शनि ग्रह सूर्य से 886 मिलियन मील दूर है जबकि आकार के हिसाब से शनि दूसरा सबसे बड़ा ग्रह है, जिसका व्यास 75000 मील है। शनि के नौ उप ग्रह हैं एवं उसके आस पास धूल, कण एवं आकाशीय उल्काओं का मनमोहक तथा रंगबरंगा प्रकाशमान अंगूठी नमुना घेरा होता है, जो सौर मंडल में उसको सबसे खूबसूरत ग्रह बनाता है। शनि ग्रह पृथ्वी की तुलना में 700 गुना बड़ा है। हालांकि, उसकी द्रव्यता पृथ्वी की तुलना में सोवें हिस्से की है।  




शनि किसी भी राशि मे प्रवेश करने के 6 माह पूर्व ही अगली राशि का फल प्रकट करने लग जाते है ।
इस दौरान जिन लोगों को साढ़ेसाती या ढैय्या चल रहा है। उन्हें शनिदेव को मनाने के लिए उनकी आराधना करना चाहिए। साथ ही, शनि से जुड़ा दान करना चाहिए। साढ़ेसाती, ढैय्या या शनि दोष से पीडि़त लोगों को शनि देव के धामों के दर्शन करने चाहिए। शनि एक न्यायाधीश ग्रह है, जो आपको अपने पुराने कर्मों का फल प्रदान करता है, यदि आप अपने पुण्य किए हैं तो अच्छे फल, यदि आप ने पाप किए हैं तो बुरे परिणाम मिलेंगे


पिछली 19 जून से 2 नवम्बर 2014  तक दो प्रमुख ग्रह गुरु व शनि उच्च राशिगत चल रहे थे । गुरु, शनि व राहु का क्रमश: कर्क, तुला व कन्या राशि में आना सैकड़ों वषरें में एक बार होता है। यह संयोग 296 वर्ष के बाद हुआ था । शनि व गुरु दोनों उच्च के हों तो राजयोग कारक होते हैं। यदि चर लग्न हो तो उस स्थिति में ये दोनों ग्रह क्रमश: हंस व शश योग का निर्माण करते हैं। दोनों ही ग्रह केंद्रस्थ होकर आपस में जुड़ेंगे, शनि की गुरु पर पूर्ण दृष्टि होगी। यह स्थितियां राजयोग कारक हैं।गुरु, शनि, राहु व केतु का दुर्लभ संयोग 296 वर्ष बाद बना था । 19 जून 2014  को गुरु अपनी उच्च राशि कर्क में प्रवेश किया था । शनि अपनी उच्च राशि तुला में पहले से ही चल रहा है। 


शनि को सभी में ग्रहों सबसे महत्वपूर्ण न्यायाधीश का पद प्राप्त है। चूंकि न्याय सदैव कठोर ही होता है, इसलिए शनि देव भी हमारे बुरे कर्मों का न्याय बड़ी कठोरता से ही करते हैं। इनके कोप से बचने के लिए इनकी आराधना के साथ ही धार्मिक आचरण करना अति आवश्यक है।


जिस व्यक्ति की कुंडली में सूर्य की राशि में शनि हो उस व्यक्ति को जीवनभर कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। किसी व्यक्ति की कुंडली में चार, आठ या बारहवें भाव में शनि है तो उस व्यक्ति को शनि की कृपा प्राप्त होती है। शनि नीच राशि में या अस्त या वक्री हो तो व्यक्ति को दुख और कष्ट ही देता है। शनि मकर व कुंभ राशि का स्वामी है।


किसी भी प्राणी / मनुष्य  के अच्छे-बुरे कर्मों का फल शनिदेव ही उसे देते हैं। जिस व्यक्ति पर शनिदेव की टेड़ी नजर पड़ जाए, वह थोड़े ही समय में राजा से रंक बन जाता है और जिस पर शनिदेव प्रसन्न हो जाएं वह मालामाल हो जाता है। जिस किसी पर भी शनिदेव की साढ़ेसाती या ढय्या रहती है, उसे उस समय बहुत ही मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।


शनि देव के कोप से सभी भलीभांति परिचित हैं। शनि की बुरी नजर किसी भी राजा को भिखारी बना सकती है और यदि शनि शुभ फल देने वाला हो जाए तो कोई भी भिखारी राजा के समान बन सकता है। सूर्य पुत्र शनि अत्यंत धीमी गति से चलने वाला ग्रह है। यह एक राशि में ढाई वर्ष तक रहता है।



शनि देव का एक सिद्ध धाम उत्तर प्रदेश में ब्रजमंडल के कोसीकलां गांव के पास है। यह सिद्ध पीठ कोसी से 6 किलोमीटर दूर है और नंद गांव से सटा हुआ है। यह शनि मंदिर भी दुनिया के प्राचीन शनि मंदिरों में से एक है। यहां मांगी मुराद बड़ी जल्दी पूरी होती है। 


मंदिर भगवान कृष्ण के समय से स्थापित है। जब भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था, उनके दर्शन करने के लिए सभी देवतागण गए थे, जिनमें शनिदेव भी थे, लेकिन माता यशोदा और नंदबाबा ने शनिदेव महाराज जी की वक्र दृष्टि होने की वजह से कृष्ण भगवान के दर्शन नहीं करवाए। 


इस बात से शनि महाराज को बड़ा दुख हुआ उन्होंने सोचा वक्र दृष्टि भी भगवान श्रीकृष्ण की ही दी हुई है इसमें मेरा क्या दोष। इस पर कृष्ण भगवान ने अपने भक्त के दुख को समझते हुए। शनि महाराज को स्वप्न में यह प्रेरणा दी कि नंदगांव से उत्तर दिशा में एक वन है वहां जाकर मेरी भक्ति करो तो मैं स्वयं आकर आपको दर्शन दूंगा।


शनि महाराज ने ऐसा ही किया। मान्यता है कि शनि देव की आराधना से प्रसन्न होकर श्री कृष्ण ने कोयल के रूप में शनि महाराज को उपरोक्त वन में दर्शन दिए और कोयल से रूपांतर होकर के उपरोक्त वन का नाम कोकिलावन पड़ा। 


माना जाता है कि श्रीकृष्ण ने शनि महाराज से कहा कि आज से आप यही पर विराजेंगे और यहीं विराजने पर आपकी वक्र दृष्टि नम रहेगी। मैं भी आप की बाईं दिशा में राधा जी के साथ यहीं पर विराजमान रहूंगा। जो भक्तगण अपनी किसी भी प्रकार की परेशानी लेकर के आप के पास आएंगे उसकी पूर्ति आपको करनी होगी और कलयुग में मेरे से भी ज्यादा आप की पूजा अर्चना की जाएगी। 


कहते हैं कि यहां राजा दशरथ द्वारा लिखा शनि स्तोत्र पढ़ते हुए परिक्रमा करनी चाहिए। इससे शनि की कृपा प्राप्त होती है।


किसी भी  शनि मंदिर में शनिदेव का निवास है। भक्तजन यहां तेल चढ़ाते हैं और अपने पहने हुए कपड़े, चप्पल, जूते आदि सभी यहीं छोड़कर घर चले जाते हैं। ज्योतिषीय मान्यता है कि ऐसा करके रुष्ट शनिदेव को मनाया जा सकता है। 


अगर यदि आप पर शनि कि साढेसाती आती है तो घबराये नहीं , क्यों कि शनि दूध का दूध ओर पानी का पानी करते है । साढेसाती के दोरान अपने कर्म अच्छे रखे ।


शनिदेव जब राशि परिवर्तन करते है तब दो राशियो पर ढैया तथा तीन राशियो पर साढेसाती का प्रभाव शुरू होता है । एक साथ में पाँच राशियो को विशेष रूप से प्रभावित करने कि क्षमता सिर्फ शनि मे है । शनि किसी भी राशि मे प्रवेश करने के 6 माह पूर्व ही अगली राशि का फल प्रकट करने लग जाते है ।


शनि की ढैया का प्रभाव :– 


मेष ओर सिंह राशि पर शनि कि ढैया लगेगी । इन दोनो राशियो का समय बहुत अधिक विपरीत है,
क्यो कि बृहस्पति भी इनके लिये अनुकूल नही है । अखबार में आने वाले अपराधियो के नाम 90% शनि से प्रभावित होते है । क्यो कि शनि अपनी ढैया ओर साढेसाती मे एक एक कर्म का हिसाब करते है ।


शनि की साढेसाती का प्रभाव :– 


तुला, वृश्चिक ओर धनु इन तीन राशियो पर साढेसाती का प्रभाव रहेगा ।
इस साढेसाती का शुरू का एक वर्ष धनु राशि वालो के लिये अत्यन्त विपरीत है,
कही भी सफलता नही मिलेगी, तनाव बढेगा । अगर कुण्डली मे शनिदेव कि स्थिति अच्छी है, ओर आपके
कर्म शुभ है तो शुभ फल प्राप्त होगे ।
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2 नवम्बर, 2014 को शनि के राशि परिवर्तन का भारत में ऐसा होगा प्रभाव —


राजनीतिक व्यवस्था—-


केंद्र में राजनीतिक स्थिरता मिलेगी। प्रांतीय सरकारों में अस्थिरता का योग मिल सकता है। राजनेताओं के आचरण से संबंधित दोष उजागर हो सकते हैं। भ्रष्टाचार एवं अन्य आपराधिक मामलों में कमी हो सकती है।


अर्थव्यवस्था——
भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए मिश्रित फलदायक है। बैंकिंग एवं फायनेंस सेक्टर में बेहतरी की उम्मीद की जा सकती है। कम्युनिकेशन व कंप्यूटर के क्षेत्र में अनुकूल परिणाम प्राप्त होंगे। महंगाई नियंत्रित हो सकती है। अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में वृद्धि के संकेत हैं।


कानून व्यवस्था—-
कानून व्यवस्था में सुधार की उम्मीद की जा सकती है। यद्यपि अपराधों की वृद्धि दर में कोई विशेष कमी नहीं दिखाई देगी परन्तु न्यायिक प्रक्रिया के चलते बड़े अपराधियों को दंड मिलेगा और लगेगा कि कानून व्यवस्था में सुधार हो रहा है।


अंतर्राष्ट्रीय संबंध—-
अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में परिवर्तन के योग हैं। पश्चिमी देशों के साथ संबंधों में प्रतिकूलता व पूर्वी देशों से संबंधों में प्रगाढ़ता के संकेत मिल रहे हैं।


सामाजिक व्यवस्था——
समाज के लिए ये स्थितियां अनुकूल फलप्रद हैं। समाज में जागरुकता की स्थिति बनेगी और सामाजिक परिवर्तन की स्वत:स्फूर्त चेतना का निर्माण होगा। महिलाओं की स्थिति में सुधार की उम्मीद है।


2 नवम्बर, 2014 को शनि जैसे ही तुला राशि से वृश्चिक राशि में प्रवेश करेगा, प्राकृतिक, राजनैतिक एवं प्रशासनिक गलियारों में हड़कम्प मच सकता है?
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ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनि दास है। इसका रंग सांवला है एवं लंगड़ा होने के कारण इसकी गति धीमी है। इसको सूर्य पुत्र माना जाता है। हालांकि, इस ग्रह को सूर्य के विरोधी ग्रहों में गिना जाता है। शनि का वाहन कौआ है। उत्तर कालामृत के अनुसार ज्योतिष शास्त्र में शनि निम्नलिखित मामलों में कारक की भूमिका निभाता है—-


1. कमजोर स्वास्थ्य
2. बाधाएं
.. रोग
4. दुश्मनी
5. मृत्यु
6. अन्य जातियां
7. दीर्घायु
8. नंपुसकता
9. वृद्धावस्था
10. काला रंग
11. क्रोध
12. विकलांगता
13. संघर्ष
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जि लोगों पर शनि की साढ़े साती व ढय्या का प्रभाव हो उन्हें शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए खास उपाय करना चाहिए। 



शनि पीड़ा निवारण के लिए करें ये उपाय—-


—— दीपावली पर शनि को मनाने के लिए काले तिल का दान करें।
—— एक कटोरी में तेल लेकर उसमें अपनी परछाई देखें और फिर इस तेल का दान करें।
—– हनुमान चालीसा का पाठ करें।
—– पीपल के वृक्ष में जल चढ़ाएं और सात परिक्रमा करें।
—— किसी जरूरतमंद व्यक्ति को काले कंबल का दान करें।
—— काली गाय की सेवा करने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं। काली गाय के सिर पर रोली लगाकर सींगों में कलावा बांधकर धूप-आरती करें फिर परिक्रमा करके गाय को बूंदी के चार लड्डू खिला दें। ये उपाय आप कभी भी आपकी इच्छानुसार कर सकते हैं।
——- प्रतिदिन सूर्यास्त के बाद हनुमानजी का पूजन करें। पूजन में सिंदूर, काली तिल्ली का तेल, इस तेल का दीपक एवं नीले रंग के फूल का प्रयोग करें। ये उपाय आप हर शनिवार भी कर सकते हैं।
——– किसी शनिवार को शनि यंत्र की स्थापना व पूजन करें। इसके बाद प्रतिदिन इस यंत्र की विधि-विधान पूर्वक पूजा करने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं। प्रतिदिन यंत्र के सामने सरसों के तेल का दीप जलाएं। नीला या काला पुष्प चढ़ाएं ऐसा करने से लाभ होगा।
—– शमी वृक्ष की जड़ को विधि-विधान पूर्वक घर लेकर आएं। शनिवार को श्रवण नक्षत्र में किसी योग्य विद्वान से अभिमंत्रित करवा कर काले धागे में बांधकर गले या बाजू में धारण करें। शनिदेव प्रसन्न होंगे तथा शनि के कारण जितनी भी समस्याएं हैं, उनका निदान होगा।
—– प्रत्येक शनिवार को बंदरों और काले कुत्तों को बूंदी के लड्डू खिलाने से भी शनि का कुप्रभाव कम हो सकता है अथवा काले घोड़े की नाल या नाव में लगी कील से बना छल्ला धारण करें।
—— शनिवार के एक दिन पहले पहले काले चने पानी में भिगो दें। शनिवार को ये चने, कच्चा कोयला, हल्की लोहे की पत्ती एक काले कपड़े में बांधकर मछलियों के तालाब में डाल दें। यह उपाय पूरा एक साल करें। इस दौरान भूल से भी मछली का सेवन न करें।
—— किसी शनिवार को अपने दाहिने हाथ के नाप का उन्नीस हाथ लंबा काला धागा लेकर उसको बटकर माला की भांति गले में पहनें। इस प्रयोग से भी शनिदेव का प्रकोप कम होता है।
—-चोकर युक्त आटे की 2 रोटी लेकर एक पर तेल और दूसरी पर शुद्ध घी लगाएं। तेल वाली रोटी पर थोड़ा मिष्ठान रखकर काली गाय को खिला दें। इसके बाद दूसरी रोटी भी खिला दें और शनिदेव का स्मरण करें।
—– प्रत्येक शनिवार को शाम के समय बड़ (बरगद) और पीपल के पेड़ के नीचे सूर्योदय से पहले स्नान आदि करने के बाद सरसो के तेल का दीपक लगाएं और दूध एवं धूप आदि अर्पित करें।
—— शनिवार को सुबह स्नान आदि करने के बाद सवा किलो काला कोयला, एक लोहे की कील एक काले कपड़े में बांधकर अपने

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