आइये जाने की क्या हैं लाभ पंचमी और क्या हैं इसका महत्त्व ..???


सौभाग्य (लाभ) पंचमी जीवन मं सुख और सौभाग्य की वृद्धि करती है इसलिए कार्तिक शुक्ल पक्ष कि पंचमी को सौभाग्य पंचमी के नाम से भी जाना जाता है. 


इस वर्ष .8 अक्तूबर 2..4 को (मंगलवार के दिन) लाभ/ सौभाग्य पंचमी का पर्व मनाया जाएगा


कार्तिक शुक्ल पंचमी, सौभाग्य पंचमी व लाभ पंचमी के रूप में भी मनाई जाती है। खासतौर पर गुजरात क्षेत्र में यह शुभ तिथि दीप पर्व का ही हिस्सा है। दीपावली से गुजराती नववर्ष की शुरुआत के साथ ही लाभ पंचमी को कारोबार में तरक्की और शुरुआत के लिए भी बहुत ही शुभ माना जाता है। मनुष्य अपने कार्यक्षेत्र के साथ पारिवारिक सुख-समृद्धि की कामना रखता है। दीप पर्व सुख-शांति और खुशहाल जीवन की ऐसी इच्छाओं को पूरा करने की भरपूर ऊर्जा और प्रेरणा लेने का शुभ अवसर होता है। 


इसलिए लाभ पंचमी पर दीपावली पर पूजा के बाद बहीखातों को लिखने की शुरुआत शुभ व लाभ की कामना के साथ भगवान गणेश का स्मरण कर की जाती है।

गुजरात में है लाभ पंचमी का महत्व—- 


गुजराती समुदाय यूं तो धनतेरस से लाभ पंचमी तक दीपावली मनाता है, लेकिन उनके लिए लाभ पंचमी का विशेष महत्व है। गुजराती समुदाय को खासतौर पर व्यवसायी माना जाता है, इसलिए व्यवसाय से जुड़ी हर रीति यहां महत्वपूर्ण होती है। व्यवसायी दीपावली के दिन चोपड़ा (बहीखाता) पूजन करते हैं। दरअसल, यह बहीखातों की पूजा होती है। हालांकि इनकी पूजा तो दीवाली के दिन ही हो जाती है, लेकिन लाभ पंचमी के दिन इसमें लिखना शुरू करते हैं। इसलिए यह दिन हमारे लिए विशेष महत्वपूर्ण होता है।’ वैसे, दीपावली के अगले दिन ही गुजराती नया साल मनाते हैं। 




इस बार मंगलवार के साथ लाभ पंचमी या सौभाग्य पंचमी का योग बना है। इस दिन पूजा सभी सांसारिक कामनाओं का पूरा कर सुख-शांति लाती है तो लाभ पंचमी पर गणेश पूजा हर विघ्र का नाश कर काराबोर के साथ परिवार को समृद्ध और कलहमुक्त बनाती है। 


ऐसी ही शुभ तिथि पर जानें एक विशेष मंत्र जिसके द्वारा भगवान गणेश का आवाहन कर कार्यक्षेत्र, नौकरी और कारोबार में काम शुरू करना समृद्धि की कामना को सुनिश्चित करता है। जानते हैं इस दिन गणेश के साथ शिव के स्मरण की भी आसान विधि —– 


– प्रात: शुभ मुहूर्त में एक चौकी पर भगवान गणेश की प्रतिमा या गणेश स्वरूप सुपारी पर मौली लपेटकर चावल के अष्टदल पर विराजित करें। साथ ही शिवलिंग स्थापित करें। 
– भगवान गणेश की केसरिया चंदन, सिंदूर, अक्षत, फूल, दूर्वा तो शिव की भी भस्म, बिल्वपत्र, धतुरा, सफेद वस्त्र अर्पित कर पूजा करें। गणेश को बूंदी के लड्डू व शिव को दूध के सफेद पकवानों का भोग लगाएं। 
– नीचे लिखे मंत्रों से श्री गणेश व शिव का स्मरण करें – 


गणेश मंत्र ——


लम्बोदरं महाकायं गजवक्त्रं चतुर्भुजम्।
आवाहयाम्यहं देवं गणेशं सिद्धिदायकम्।। 


शिव मंत्र ——- 


गंङ्गाधर नमस्तुभ्यं वृषध्वज नमोस्तुते। 
आशुतोष नमस्तुभ्यं भूयो भूयो नमो नम:।। 


– मंत्र स्मरण के बाद भगवान गणेश व शिव की धूप, दीप व कपूर्र आरती के बाद सिंदूर या गंध को मस्तक, बहीखातों या कार्यालय के द्वार के दोनों ओर स्वस्तिक के रूप में लगाएं। प्रसाद ग्रहण करें।

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