आज ( .4 अक्टूबर, शुक्रवार को  ) गोवर्धन पूजा होने वाली हैं…


दीपावली के इस पांच दिवसीय पर्व में आज पर्वतराज गोवर्धन की पूजा,सेवा एवं आराधना की जाएगी,जिसे भगवान श्री कृष्ण ने अपनी अंगुली पर धारण किया था,गोकुल -मथुरा वासियों को इन्द्र के कोप/ नाराजगी से बचाने के लिए..


आज अनेक स्थानों/मंदिरों में अन्नकूट का भी आयोजन किया जाता हैं..


इस दिन उत्तर भारत में गोवर्धन पूजा में गोधन यानी गायों की पूजा की जाती है। गाय को देवी लक्ष्मी का स्वरूप भी कहा गया है। देवी लक्ष्मी जिस प्रकार सुख समृद्धि प्रदान करती हैं उसी प्रकार गौ माता भी अपने दूध से स्वास्थ्य रूपी धन प्रदान करती हैं। गौ के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए ही कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन गोर्वधन की पूजा की जाती है और इसके प्रतीक के रूप में गाय की पूजा की जाती है।


सभी जानते हैं की प्रति वर्ष कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा यानी दिवाली के दूसरे दिन उत्तर भारत में गोवर्धन पूजा की जाती है। इस दिन बलि पूजा, अन्न कूट, मार्गपाली आदि उत्सव भी सम्पन्न होते है। अन्नकूट या गोवर्धन पूजा भगवान कृष्ण के अवतार के बाद द्वापर युग से प्रारम्भ हुई। 
इस बार गोवर्धन पूजा का पर्व 24 अक्टूबर, शुक्रवार को है।
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जानिए गोवर्धन पूजा के शुभ मुहूर्त (24 अक्टूबर, शुक्रवार) को–

सुबह .6:.5 से 07:45 बजे तक


सुबह 07:45 से 09:15 बजे तक


सुबह 09:15 से 10:45 बजे तक


दोपहर 12:15 से 01:40 बजे तक
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जानिए गोवर्धन पूजा की पूजन विधि—

गोवर्धन पूजा का पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाया जाता है। इस दिन सुबह शरीर पर तेल की मालिश करके स्नान करना चाहिए। फिर घर के द्वार पर गोबर से गोवर्धन बनाएं। गोबर का अन्नकूट बनाकर उसके समीप विराजमान श्रीकृष्ण के सम्मुख गाय तथा ग्वाल-बालों, इंद्र, वरुण, अग्नि और बलि का पूजन षोडशोपचार द्वारा करें। 


विभिन्न प्रकार के पकवानों व मिष्ठानों का भोग लगाकर पहाड़ की आकृति तैयार करें और उनके मध्य श्रीकृष्ण की मूर्ति रख दें। पूजन के पश्चात कथा सुनें। प्रसाद रूप में दही व चीनी का मिश्रण सब में बांट दें। फिर पुरोहित को भोजन करवाकर उसे दान-दक्षिणा से प्रसन्न करें।


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आइये जाने की अन्नकूट का क्या महत्वहैं.?? 
कैसे करें गोवर्धन पूजा..????


कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को गोवर्धन उत्सव मनाया जाता है। इस दिन बलि पूजा, अन्न कूट, मार्गपाली आदि उत्सव भी सम्पन्न होते है। अन्नकूट या गोवर्धन पूजा भगवान कृष्ण के अवतार के बाद द्वापर युग से प्रारम्भ हुई। गाय बैल आदि पशुओं को स्नान कराकर फूल माला, धूप, चन्दन आदि से उनका पूजन किया जाता है।


गाय बैल आदि पशुओं को स्नान कराकर फूल माला, धूप, चन्दन आदि से उनका पूजन किया जाता है। गायों को मिठाई खिलाकर उनकी आरती उतारी जाती है तथा प्रदक्षिणा की जाती है। गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर जल, मौली, रोली, चावल, फूल दही तथा तेल का दीपक जलाकर पूजा करते है तथा परिक्रमा करते हैं। कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को भगवान के निमित्त भोग व नैवेद्य में नित्य के नियमित पदाथरें के अतिरिक्त यथासामर्थ्य अन्न से बने कच्चे-पक्के भोग, फल, फूल; अनेक प्रकार के पदार्थ जिन्हें छप्पन भोग कहते हैं। ‘छप्पन भोग’ बनाकर भगवान को अर्पण करने का विधान भागवत में बताया गया है और फिर सभी सामग्री अपने परिवार, मित्रों को वितरण कर के प्रसाद ग्रहण करें।


गायों का मिठाई खिलाकर उनकी आरती उतारी जाती है तथा प्रदक्षिणा की जाती है। गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर जल, मौली, रोली, चावल, फूल दही तथा तेल का दीपक जलाकर पूजा करते है तथा परिक्रमा करते हैं। कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को भगवान के निमित्त भोग व नैवेद्य में नित्य के नियमित पदार्थों के अतिरिक्त यथासामर्थ्य अन्न से बने कच्चे-पक्के भोग, फल, फूल; अनेक प्रकार के पदार्थ जिन्हें “छप्पन भोग” कहते हैं।


‘छप्पन भोग’ बनाकर भगवान को अर्पण करने का विधान भागवत में बताया गया है और फिर सभी सामग्री अपने परिवार, मित्रों को वितरण कर के प्रसाद ग्रहण करें।


इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने इंद्र की पूजा को बंद करा कर इस के स्थान पर गोवर्धन की पूजा को प्रारंभ किया था और दूसरी ओर स्वयं गोवर्धनं रूप धर कर पूजा ग्रहण की इससे कुपित होकर इंददेव ने मूसलाधार जल बरसाया और श्री कुष्ण जी ने गोप और गोपियों को बचाने के लिए अपनी कनिष्ठ उंगली पर गोवर्धन पर्वत को उठाकर इंद्र का मानमर्दन किया था उनके ही स्मण के लिए गोवर्धन और गौ पूजन का विधान है।सब ब्रजवासी सात दिन तक गोवर्धन पर्वत की शरण मे रहें।


सुदर्शन चक्र के प्रभाव से ब्रजवासियों पर एक जल की बूँद भी नही पड़ी। ब्रह्या जी ने इन्द्र को बताया कि पृथ्वी पर श्री कृष्ण ने जन्म ले लिया है, उनसे तुम्हारा वैर लेना उचित नही है। श्रीकृष्ण अवतार की बात जानकर इन्द्रदेव अपनी मुर्खता पर बहुत लज्जित हुए तथा भगवान श्रीकृष्ण से क्षमा याचना की।
श्रीकृष्ण ने सातवें दिन गोवर्धन पर्वत को नीचे रखकर ब्रजवासियो से आज्ञा दी कि अब से प्रतिवर्ष गोवर्धन पूजा कर अन्नकूट का पर्व उल्लास के साथ मनाओ।


देखा जाये तो आज कल गोवर्धन ब्रज की छोटी पहाड़ी है, किन्तु इसे गिरिराज (अर्थात पर्वतों का राजा) कहा जाता है। इसे यह महत्व या ऐसी संज्ञा इस लिये प्राप्त है क्यूंकि यह भगवान कृष्ण के समय का एक मात्र स्थाई व स्थिर अवशेष है। उस समय की यमुना नदी जहाँ समय-समय पर अपनी धारा बदलती रही है, वहां गोवर्धन अपने मूल स्थान पर ही अविचलित रुप में विधमान है। इसे भगवान कृष्ण का स्वरुप और उनका प्रतिक भी माना जाता है और इसी रुप में इसकी पूजा भी की जाती है।


बल्लभ सम्प्रदाय के उपास्य देव श्रीनाथ जी का प्राकट्य स्थल होने के कारण इसकी महत्ता और बढ़ जाती है। गर्ग संहिता में इसके महत्व का कथन करते हुए कहा गया है – गोवर्धन पर्वतों का राजा और हरि का प्यारा है। इसके समान पृथ्वी और स्वर्ग में कोई दूसरा तीर्थ नहीं है। यद्यपि वर्तमान काल में इसका आकार-प्रकार और प्राकृतिक सौंदर्य पूर्व की अपेक्षा क्षीण हो गया है, फिर भी इसका महत्व कदापि कम नहीं हुआ है।
इस दिन स्नान से पूर्व तेलाभ्यंग अवश्य करना चहिये। इससे आयु, आरोग्य की प्राप्ति होती है और दुःख दारिद्र्य का नाश होता है। इस दिन जो शुद्ध भाव से भग्वत चरण में सादर समर्पित, संतुष्ट, प्रसन्न रहता है वह वर्ष पर्यंत सुखी और समृद्ध रहता है।


यदि आज के दिन कोई दुखी है तो वर्ष भर दुखी रहेगा इसलिए मनुष्य को इस दिन प्रसन्न होकर इस उत्सव को सम्पूर्ण भाव से मनाना चाहिए।


इस दिन जो शुद्ध भाव से भग्वत चरण में सादर समर्पित, संतुष्ट, प्रसन्न रहता है वह वर्ष पर्यंत सुखी और समृद्ध रहता है।

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