आइये जाने की क्या महत्त्व हैं रूप चौदस / रूप चतुर्दशी  का..???


इस वर्ष दीपावली ( …4)पर महालक्ष्मी संयोगों और खुशियों की बारात लेकर आ रही हैं।
इस वर्ष रूप चतुर्दशी 22 अक्तूबर 2014 को (बुधवार) के दिन मनाई जाएगी..


इस वर्ष एक ओर जहां दीपावली पर 54 साल बाद गुरु और शनि का उच्च राशिगत होने का दुर्लभ योग बन रहा है, वहीं रूप चौदस भी 24 साल बाद सर्वार्थ सिद्ध योग, हस्त नक्षत्र और उच्च राशिगत बुध का शुभ संयोग लेकर आ रही है। इस वर्ष हनुमानजी जन्मोत्सव और रूप चतुर्दशी के इस संयोग में पूजा-अर्चना सुख-समृद्धि दायक होगी।


ज्योतिषाचार्य पंडित “विशाल” दयानन्द शास्त्री के अनुसार सर्वार्थ सिद्ध योग सूर्योदय से रात्रि 2.50 बजे तक रहेगा। सर्वार्थ सिद्ध योग होने से हनुमान जयंती का महत्व काफी बढ़ जाएगा। इसके साथ ही बुधवार और हस्त नक्षत्र रहेगा। हस्त नक्षत्र का स्वामी सूर्य होता है। खास बात यह है कि कन्या का चंद्रमा भी रहेगा। इसका स्वामी बुध है। बुध इस बार उच्च का होने से विशेष फलदायी रहेगा।  

इसके पूर्व वर्ष 1990 में बना था यह अनूठा योग-—- 

सर्वार्थ सिद्ध योग, कन्या का चंद्रमा, उच्च का बुध और हस्त नक्षत्र का ऐसा योग इससे पहले 1990 में आया था, जो अब 27 साल बाद 2041 में बनेगा।  रूप चौदस को ही हनुमानजी का जन्म हुअा था। हनुमत उपासना कल्पद्रुम, व्रत रत्नाकर और उत्सव सिंधु के अनुसार कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी रूप चौदस में मंगलवार को ही अर्ध रात्रि में हनुमानजी का जन्म हुआ था। चैत्र में गर्भधारण काल माना गया है और कार्तिक में जन्म का समय। कुछ मतांतर में दक्षिण में चैत्र शुक्ल`पक्ष पूर्णिमा को हनुमान जयंती का उल्लेख है। नर्क चतुर्दशी होने से इस दिन दीपदान का विशेष महत्व है। इस दिन 14 दीपों का दान होता है।


कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को ‘नरक-चतुर्दशी’, ‘छोटी दीपावली’, ‘रूप-चतुर्दशी’, ‘यमराज निमित्य दीपदान’ के रूप में  मनाया जाता है |कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को कहा जाता है। इसे चतुर्दशी को ‘नरक चौदस’, ‘रूप चौदस’, ‘रूप चतुर्दशी’, ‘नर्क चतुर्दशी’ या ‘नरका पूजा’ के नाम से भी जाना जाता है। कृष्ण चतुर्दशी के दिन मृत्यु के देवता यमराज की पूजा का विधान है। नरक चतुर्दशी को ‘छोटी दीपावली’ भी कहते हैं। दीपावली से एक दिन पहले मनाई जाने वाली नरक चतुर्दशी के दिन संध्या के पश्चात दीपक प्रज्जवलित किए जाते हैं। इस चतुर्दशी का पूजन कर अकाल मृत्यु से मुक्ति तथा स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए यमराज जी की पूजा व उपासना की जाती है।


आज के दिन को नरकासुर से विमुक्ति के दिन के रूप में भी मनाया जाता है  | आज के ही दिन भगवन श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध किया था | नरकासुर  ने देवताओं की माता अदिति के आभूषण छीन लिए थे | वरुण को छत्र से वंचित कर दिया था | मंदराचल के मणिपर्वत शिखर को कब्ज़ा लिया था | देवताओं, सिद्ध पुरुषों और राजाओं को 16100  कन्याओं का अपहरण करके उन्हें बंदी बना लिया था |


कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को भगवन श्रीकृष्ण ने उसका वध करके उन कन्याओं को बंदी गृह से छुड़ाया, उसके बाद स्वयं भगवन ने उन्हें सामाजिक मान्यता दिलाने के लिए सभी अपनी पत्नी स्वरुप वरण किया | इस प्रकार सभी को नरकासुर के आतंक से मुक्ति दिलाई, इस महत्वपूर्ण घटना के रूप में नरक चतुर्दशी के रूप में छोटी दीपावली मनाई जाती है |


रूप चतुर्दशी (उबटन लगाना और अपामार्ग का प्रोक्षण )——-


आज के दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान अवश्य करना चाहिए | सूर्योदय से पूर्व तिल्ली के तेल से शरीर की मालिश करनी चाहिए उसके बाद अपामार्ग का प्रोक्षण करना चाहिए तथा लौकी के टुकडे और अपामार्ग दोनों को अपने सिर के चारों ओर सात बार घुमाएं ऐसा करने से नरक का भय दूर होता है साथ ही पद्म पुराण के मंत्र का पाठ करें
“सितालोष्ठसमायुक्तं संकटकदलान्वितम। हर पापमपामार्ग भ्राम्यमाण: पुन: पुन:||”
“हे तुम्बी(लौकी) हे अपामार्ग तुम बार बार फिराए जाते हुए मेरे पापों को दूर करो और मेरी कुबुद्धि का नाश  कर दो |”


फिर स्नान करें और स्नान के उपरांत लौकी और अपामार्ग को घर के दक्षिण दिश में विसर्जित कर देना चाहिए | इस से रूप बढ़ता है और शरीर स्वस्थ्य रहता है |


आज के दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान करने से मनुष्य नरक के भय से मुक्त हो जाता है | पद्मपुराण में लिखा है जो मनुष्य  सूर्योदय से पूर्व स्नान करता है, वह यमलोक नहीं जाता है अर्थात नरक का भागी नहीं होता है | भविष्य पुराण के अनुसार जो कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को जो व्यक्ति सूर्योदय के बाद स्नान करता है, उसके पिछले एक वर्ष के समस्त पुण्य कार्य समाप्त हो जाते हैं | इस दिन स्नान से पूर्व तिल्ली के तेल की मालिश करनी चाहिए यद्यपि कार्तिक मास में तेल की मालिश वर्जित होती है, किन्तु नरक चतुर्दशी के दिन इसका विधान है | नरक चतुर्दशी को तिल्ली के तेल में लक्ष्मी जी तथा जल में गंगाजी का निवास होता है |


नरक चतुर्दशी को सूर्यास्त के पश्चात अपने घर व व्यावसायिक स्थल पर तेल के दीपक जलाने चाहिए | तेल की दीपमाला जलाने से लक्ष्मी का स्थायी निवास होता है ऐसा स्वयं भगवान विष्णु ने राजा बलि से कहा था | भगवान विष्णु ने राजा बलि को धन-त्रियोदशी से दीपावली तक तिन दिनों में दीप जलाने वाले घर में लक्ष्मी के स्थायी निवास का वरदान दिया था |


इस सम्बन्ध में एक कथा प्रचलित है :——-


जब भगवान वामन ने त्रियोदशी से अमावस्या  की अवधि के बीच दैत्यराज बलि के राज्य को तीन कदम  में नाप दिया | राजा बलि जो की परम दानी थे उन्होंने अपना पूरा राज्य भगवान विष्णु अवतार भगवान वामन को दान कर दिया इस पर भगवान वामन ने प्रसन्न हो कर बलि से वर मांगने को कहा | 


बलि ने भगवान से कहा कि, ‘हे प्रभु ! मैंने जो कुछ आपको दिया है, उसे तो मैं मांगूंगा  नहीं और न ही अपने लिए कुछ और मांगूंगा, लेकिन संसार के लोगों के कल्याण के लिए मैं एक वर मांग ता हूँ ! आपकी शक्ति है, तो दे दीजिये !”


भगवान वामन ने कहा, ” क्या वर मांगन चाहते हो ! राजन ?”


दैत्यराज बलि बोले : ” प्रभु ! आपने कार्तिक कृष्ण त्रियोदशी से लेकर अमावस्या की अवधि में मेरी संपूर्ण पृथ्वी नाप ली | इन तीन दिनों में प्रतिवर्ष मेरा राज्य रहना चाहिए और इन तीन दिन की अवधि में जो व्यक्ति मेरे राज्य में दीपावली मनाये उसके घर में लक्ष्मी का स्थायी निवास हो तथा जो व्यक्ति चतुर्दशी के दिन नरक के लिए दीपों का दान करेंगे उनके सभी पित्र लोग कभी नरक में ना रहे उसे यम यातना नहीं होनी चाहिए |”


राजा बलि की प्रार्थना  सुन कर भगवान वामन बोले : ” राजन ! मेरा वरदान है की जो चतुर्दशी के दिन नरक के स्वामी यमराज को दीपदान करेंगे उनके सभी पित्र लोग कभी भी नरक में नहीं रहेंगे और जो व्यक्ति इन तीन दिनों में दीपावली का उत्सव मनाएंगे उन्हें छोड़ कर मेरी प्रिय लक्ष्मी कहीं भी नहीं जायेंगी | जो इन तीन दिनों में बलि के राज में दीपावली नहीं करेंगे उनके घर में दीपक कैसे जलेंगे ? तीन दिन बलि के राज में जो मनुष्य उत्साह नहीं करते, उनके घर में सदा शोक रहे |”


भगवान वामन द्वारा बलि को दिये इस वरदान के बाद से ही नरक चतुदाशी के व्रत, पूजन और दीपदान का प्रचलन आरम्भ हुआ, जो आज तक चला आ रहा है |


आज के दिन पर  हनुमान जयंती भी मनाई जाती है हनुमान जी रूद्र के ग्यारहवें अवतार हैं । इनकी जन्म के सम्बन्ध में निम्न श्लोक प्रचलित है –


“आश्विनस्यासिते पक्षे भूतायां  च महानिशि । भौमवारे अंजनादेवी हनुमंतमजीजनत ।।


अर्थात आश्विन कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी मंगलवार की महानिशा में अंजनादेवी के उदार से हनुमान जी का जन्म हुआ । इस आधार पर हुमन जयंती आज के दिन मनाई जाती है यद्यपि  हनुमान जी की अवतार की अन्य तिथियाँ भी प्रचलित है : चैत्र   पूर्णिमा, चैत्र शुक्ल एकादशी ।

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