अक्षय तृतीया …4: कब और केसे मनाएं ..???
अक्षय तृतीया(आखा तीज) का महत्व और मान्यताएं….


अक्षय तृतीया पर्व को कई नामों से जाना जाता है. इसे अखतीज और वैशाख तीज भी कहा जाता है. इस वर्ष यह पर्व 02 मई 2014  (शुक्रवार) के दिन मनाया जाएगा. इस पर्व को भारतवर्ष के खास त्यौहारों की श्रेणी में रखा जाता है.इस दिन रोहिणी नक्षत्र तथा मिथुन राशि का चन्द्रमा रहेगा..


भारतीय काल गणना के अनुसार चार स्वयंसिद्ध अभिजित् मुहूर्त है –
1. चैत्र शुक्ल प्रतिपदा (गुडी पडवा)।
2. आखातीज (अक्षय तृतीया)।
.. दशहरा।
4. दीपावली के पूर्व की प्रदोष तिथि।


वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को “अक्षय तृतीया” या “आखा तृतीया” अथवा “आखातीज” भी कहते हैं। “अक्षय” का शब्दिक अर्थ है – जिसका कभी नाश (क्षय) न हो अथवा जो स्थायी रहे। स्थायी वहीं रह सकता है जो सर्वदा सत्य है। सत्य केवल परमात्मा है जो अक्षय, अखण्ड और सर्वव्यापक है। यह अक्षय तृतीया तिथि “ईश्वर तिथि” है। इसी दिन नर-नारायण, परशुराम और हयग्रीव का अवतार हुआ था इसलिए इनकी जयंतियां भी अक्षय तृतीया को मनाई जाती है। 


परशुरामजी की गिनती चिंरजीवी महात्माओं में की जाती है। अत: यह तिथि “चिरंजीवी तिथि” भी कहलाती है। चारों युगों – सत्ययुग, त्रेतायुग, द्वापर युग और कलियुग में से त्रेतायुग का आरंभ इसी आखातीज से हुआ है जिससे इस तिथि को युग के आरंभ की तिथि “युर्गाद तिथि” भी कहते हैं।


अंकों में विषम अंकों को विशेष रूप से ‘3’ को अविभाज्य यानी ‘अक्षय’ माना जाता है। तिथियों में शुक्ल पक्ष की ‘तीज’ यानी तृतीया को विशेष महत्व दिया जाता है। लेकिन वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को समस्त तिथियों से इतर विशेष स्थान प्राप्त है।


‘अक्षय तृतीया’ के रूप में प्रख्यात वैशाख शुक्ल तीज को स्वयं सिद्ध मुहुर्तों में से एक माना जाता है।पौराणिक मान्यताएं इस तिथि में आरंभ किए गए कार्यों को कम से कम प्रयास में ज्यादा से ज्यादा सफलता प्राप्ति का संकेत देती है। सामन्यतया अक्षय तृतीया में 42 घरी और 21 पल होते हैं। पद्म पुराण अपराह्म काल को व्यापक फल देने वाला मानता है। भौतिकता के अनुयायी इस काल को स्वर्ण खरीदने का श्रेष्ठ काल मानते हैं। इसके पीछे शायद इस तिथि की ‘अक्षय’ प्रकृति ही मुख्य कारण है। यानी सोच यह है कि यदि इस काल में हम यदि घर में स्वर्ण लाएंगे तो अक्षय रूप से स्वर्ण आता रहेगा। अध्ययन या अध्ययन का आरंभ करने के लिए यह काल सर्वश्रेष्ठ है।अक्षय तृतीया कुंभ स्नान व दान पुण्य के साथ पितरों की आत्मा की शांति के लिए अराधना का दिन भी माना गया है। 


स्वयंसिद्ध मुहूर्त—–
भारतीय ज्योतिषशास्त्र में अक्षय तृतीया को स्वयंसिद्ध मुहूर्त घोषित किया गया है। ऐसी मान्यता है कि अक्षय तृतीया के दिन मांगलिक कार्य जैसे-विवाह, गृहप्रवेश, व्यापार अथवा उद्योग का आरंभ करना अति शुभ फलदायक होता है। सही मायने में अक्षय तृतीया अपने नाम के अनुरूप शुभ फल प्रदान करती है।अक्षय तृतीया पर सूर्य व चंद्रमा अपनी उच्च राशि में रहते हैं..
तिथि का उन लोगों के लिए विशेष महत्व होता है। जिनके विवाह के लिए गृह-नक्षत्र मेल नहीं खाते। शुभ तिथि पर सैकड़ों लोग दांपत्य जीवन में बंधेगे। साथ ही अन्य शुभ कार्य भी होंगे।
हिंदू रीति-रिवाज में गृह नक्षत्रों का विशेष महत्व होता है। सदियों से हर काम शुभ मुहुर्त में किए जाने का प्रावधान रहा है। चाहे वह गृह प्रवेश हो, बच्चे का नाम करण संस्कार हो, शादी हो या अन्य चीजें। जिसके पीछे व्यक्ति का मुख्य उदेश्य होता है कि किए गए काम में कोई बाधा न आए। शुभ मुहुर्त की तलाश में कई बार लोगों को लंबा इंतजार करना पड़ जाता है। जिसका कारण है कि कभी शनि, कभी मंगल को कभी गुरू सही दिशा में नहीं होता। कई लोगों का गृह-नक्षत्र ऐसा होता है कि काफी तलाश करने के बाद भी उन्हें कोई शुभ मुहुर्त नहीं मिलता। 


ऐसे लोगों को इंतजार होता है अक्षय तृतिया के शुभ मुहुर्त का। जिस दिन किया गया हर काम शुभ होता है। इस दिन गृह नक्षत्रों का दोष नहीं होता। महीनों से शुभ मुहुर्त का इंतजार करने वालों के लिए घड़ी नजदीक आ गई है। 
इस तिथि पर गृह नक्षत्रों के मिलान का अर्थ नहीं होता। अक्षय का मतलब होता है कभी क्षय न होने वाला। मान्यता है कि इस दिन जो भी काम किया जाता है वह हमेशा बना रहता है। इस तिथि का इंतजार उन लोगों को ज्यादा होता है जिनके गृह नक्षत्र किसी भी तिथि पर मेल नहीं खाते। जिन्हें दांपत्य जीवन में बंधना होता है या अन्य कोई शुभ कार्य करना होता है उनके लिए यह तिथि शुभ होती है। इस दिन किसी प्रकार का दोष नहीं होता। बच्चे की शादी के लिए शुभ मुहुर्त की तलाश, गृह-नक्षत्रों के मेल न खाने के कारण लंबे समय तक कोई शुभ मुहुर्त नहीं मिलना। एसे में अक्षय तृतिया की शुभ तिथि का इंतजार रहता है।कहते हैं कि इस दिन जिनका परिणय-संस्कार होता है उनका सौभाग्य अखंड रहता है। इस दिन महालक्ष्मी की प्रसन्नता के लिए भी विशेष अनुष्ठान होता है जिससे अक्षय पुण्य मिलता है।


पूरे भारत वर्ष में अक्षय तृतीया की खासी धूम रहती है. हए कोई इस शुभ मुहुर्त के इंतजार में रहता है ताकी इस समय किया गया कार्य उसके लिए अच्छे फल लेकर आए. मान्यता है कि इस दिन होने वाले काम का कभी क्षय नहीं होता अर्थात इस दिन किया जाने वाला कार्य कभी अशुभ फल देने वाला नहीं होता. इसलिए किसी भी नए कार्य की शुरुआत से लेकर महत्वपूर्ण चीजों की खरीदारी व विवाह जैसे कार्य भी इस दिन बेहिचक किए जाते हैं.


नया वाहन लेना या गृह प्रेवेश करना, आभूषण खरीदना इत्यादि जैसे कार्यों के लिए तो लोग इस तिथि का विशेष उपयोग करते हैं. मान्यता है कि यह दिन सभी का जीवन में अच्छे भाग्य और सफलता को लाता है. इसलिए लोग जमीन जायदाद संबंधी कार्य, शेयर मार्केट में निवेश रीयल एस्टेट के सौदे या कोई नया बिजनेस शुरू करने जैसे काम भी लोग इसी दिन करने की चाह रखते हैं.


अक्षय तृतीया के विषय में मान्यता है कि इस दिन जो भी काम किया जाता है उसमें बरकत होती है। यानी इस दिन जो भी अच्छा काम करेंगे उसका फल कभी समाप्त नहीं होगा अगर कोई बुरा काम करेंगे तो उस काम का परिणाम भी कई जन्मों तक पीछा नहीं छोड़ेगा।


बताते हैं कि धरती पर देवताओं ने 24 रूपों में अवतार लिया था। इनमें छठा अवतार भगवान परशुराम का था। पुराणों में उनका जन्म अक्षय तृतीया को हुआ था। इस दिन भगवान विष्णु के चरणों से धरती पर गंगा अवतरित हुई। सतयुग, द्वापर व त्रेतायुग के प्रारंभ की गणना इस दिन से होती है।


शास्त्रों की इस मान्यता को वर्तमान में व्यापारिक रूप दे दिया गया है जिसके कारण अक्षय तृतीया के मूल उद्देश्य से हटकर लोग खरीदारी में लगे रहते हैं। वास्तव में यह वस्तु खरीदने का दिन नहीं है। वस्तु की खरीदारी में आपका संचित धन खर्च होता है।


“न माधव समो मासो न कृतेन युगं समम्।
न च वेद समं शास्त्रं न तीर्थ गङग्या समम्।।”


वैशाख के समान कोई मास नहीं है, सत्ययुग के समान कोई युग नहीं हैं, वेद के समान कोई शास्त्र नहीं है और गंगाजी के समान कोई तीर्थ नहीं है। वैशाख मास की विशिष्टता इसमें प़डने वाली अक्षय तृतीय के कारण अक्षुण्ण हो जाती है। भारतवर्ष संस्कृति प्रधान देश है। हिन्दू संस्कृति में व्रत और त्यौहारों का विशेष महत्व है। व्रत और त्यौहार नयी प्रेरणा एवं संस्कृति का सवंहन करते हैं। इससे मानवीय मूल्यों की वृद्धि बनी रहती है और संस्कृति का निरन्तर परिपोषण तथा सरंक्षण होता रहता है। भारतीय मनीषियों ने व्रत-पर्वो का आयोजन कर व्यक्ति और समाज को पथभ्रष्ट होने से बचाया है।वैशाख मास के शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाए जाने वाले इस पर्व का उल्लेख विष्णु धर्म सूत्र, मत्स्य पुराण, नारदीय पुराण तथा भविष्य पुराण आदि में मिलता है।


यह समय अपनी योग्यता को निखारने और अपनी क्षमता को बढ़ाने के लिए उत्तम है। यह मुहूर्त अपने कर्मों को सही दिशा में प्रोत्साहित करने के लिए श्रेष्ठ माना जाता है। शायद यही मुख्य कारण है कि इस काल को ‘दान’ इत्यादि के लिए सबसे अच्छा माना जाता है।


‘वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथी को आखातीज के रुप मेँ मनाया जाता है भारतीय जनमानस मेँ यह तिथी अक्षय तीज के नाम से प्रसिद्ध है


पुराणोँ के अनुसार इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान,दान,जप,स्वाध्याय आदि करना शुभ फलदायी माना जाता है इस तिथी में किये गए शुभ कर्मोँ का कभी क्षय नँही होता है इसको सतयुग के आरम्भ की तिथी भी माना जाता है इसलिए इसे’कृतयुगादि’ तिथी भी कहते है
यदि इसी दिन बुधवार और रोहिणी नक्षत्र हो तो वह सर्वाधिक शुभ और पुण्यदायी होने के साथ-साथ अक्षय प्रभाव रखने वाली भी हो जाती है
मत्स्य पुराण के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन अक्षत पुष्प दीप आदि द्वारा भगवान विष्णु की आराधना करने से विष्णु भगवान की विशेष कृपा प्राप्त होती है तथा सँतान भी अक्षय बनी रहती है इस दिन दीन दुःखीयोँ की सेवा करना,वस्त्रादि का दान करना ओर शुभ कर्मोँ की ओर अग्रसर रहते हुए मन वचन ओर अपने कर्म से अपने मनुष्य धर्म का पालन करना ही अक्षय तृतीया पर्व की सार्थकता है कलियुग के नकारात्मक प्रभाव से बचने के लिए इस दिन भगवान विष्णु की उपासना करके दान अवश्य करना चाहिए|ऐसा करने से निश्चय ही अगले जन्म मेँ समृद्धि ऐश्वर्य व सुख की प्राप्ति होती है
भविष्य पुराण मेँ दिये गये एक प्रसँग के अनुसार शाकल नगर रहने वाले एक वणिक नामक धर्मात्मा अक्षय तृतीया के दिन पूर्ण श्रद्धा भाव से स्नान ध्यान ओर दान कर्म किया करता था जबकि उसकी भार्या उसको मना करती थी,मृत्यू के बाद किये गये दान पुण्य के प्रभाव से वणिक द्वारकानगरी मेँ सर्वसुख सम्पन्न राजा के रुप मेँ अवतरित हुआ|
अक्षय तृतीया को पवित्र तिथी माना गया है इस दिन गँगा यमुना आदि पवित्र नदियोँ मेँ स्नान करके श्रद्धा भाव से अपने सामर्थ्य के अनुसार जल,अनाज,गन्ना,दही,सत्तू,फल,सुराही,हाथ से बने पँखे वस्त्रादि का दान करना विशेष फल प्रदान करने वाला माना गया है


दान को वैज्ञानिक तर्कों में उर्जा के रूपांतरण से जोड़ कर देखा जा सकता है। दुर्भाग्य को सौभाग्य में परिवर्तित करने के लिए यह दिवस सर्वश्रेष्ठ है। यदि अक्षय तृतीया सोमवार या रोहिणी नक्षत्र को आए तो इस दिवस की महत्ता हजारों गुणा बढ़ जाती है, ऐसी मान्यता है। इस दिन प्राप्त आशीर्वाद बेहद तीव्र फलदायक माने जाते हैं। भविष्य पुराण के अनुसार इस तिथि की गणना युगादि तिथियों में होती है। सतयुग, त्रेता और कलयुग का आरंभ इसी तिथि को हुआ और इसी तिथि को द्वापर युग समाप्त हुआ था।


रेणुका के पुत्र परशुराम और ब्रह्मा के पुत्र अक्षय कुमार का प्राकट्य इसी दिन हुआ था। इस दिन श्वेत पुष्पों से पूजन कल्यामकारी माना जाता है। धन और भौतिक वस्तुओं की प्राप्ति तथा भौतिक उन्नति के लिए इस दिन का विशेष महत्व है। धन प्राप्ति के मंत्र, अनुष्ठान व उपासना बेहद प्रभावी होते हैं। स्वर्ण, रजत, आभूषण, वस्त्र, वाहन और संपत्ति के क्रय के लिए मान्यताओं ने इस दिन को विशेष बताया और बनाया है। बिना पंचांग देखे इस दिन को श्रेष्ठ मुहुर्तों में शुमार किया जाता है।
दान करने से जाने-अनजाने हुए पापों का बोझ हल्का होता है और पुण्य की पूंजी बढ़ती है। अक्षय तृतीया के विषय में कहा गया है कि इस दिन किया गया दान खर्च नहीं होता है, यानी आप जितना दान करते हैं उससे कई गुणा आपके अलौकिक कोष में जमा हो जाता है। 


मृत्यु के बाद जब अन्य लोक में जाना पड़ता है तब उस धन  से दिया गया दान विभिन्न रूपों में प्राप्त होता है। पुनर्जन्म लेकर जब धरती पर आते हैं तब भी उस कोष में जमा धन के कारण धरती पर भौतिक सुख एवं वैभव प्राप्त होता है। 


शास्त्रों में कहा गया है कि इस दिन स्वर्ण, भूमि, पंखा, जल, सत्तू, जौ, छाता, वस्त्र कुछ भी दान कर सकते हैं। जौ दान करने से स्वर्ण दान का फल प्राप्त होता है।


भारतीय परिवेश में अक्षय तृतीया का महत्व:—-
1. बद्रीनारायण – दर्शन तिथि :— इस तिथि को चारों धामों में से उल्लेखनीय एक धाम भगवान श्री बद्रीनारायण के पट खुलते हैं। दर्शनार्थियों एवं भक्तों की अपार भी़ड रहती है। भक्तों के द्वारा इस दिन किए हुए पुण्य कर्म, त्याग, दान, दक्षिणा, जप-तप, होम-हवन, गंगा-स्नान आदि कार्य अक्षय की गिनती में आ जाते हैं। भगवान भक्तों का प्रसाद प्रेम से ग्रहण करते हैं।
2. वृंदावन में श्रीबिहारी जी के दर्शन :—– अक्षय तृतीया को ही वृंदावन में श्रीबिहारीजी के चरणों के दर्शन वर्ष में एक बार ही होते हैं। देश के कौने-कौन से श्रद्धालु भक्त जन चरण दर्शन के लिए वृंदावन पधारते हैं।
3. आत्म-विश्लेषण तथा आत्म निरीक्षण तिथि:—- यह दिन हमें स्वयं को टटोलने के लिए आत्मान्वेषण, आत्मविवेचन और अवलोकन की प्रेरणा देने वाला है। यह दिन “निज मनु मुकुरू सुधारि” का दिन है। क्षय के कार्यो के स्थान पर अक्षय कार्य करने का दिन है। इस दिन हमें देखना-समझना होगा कि भौतिक रूप से दिखाई देने वाला यह स्थूल शरीर, संसार और संसार की समस्त वस्तुएं क्षय धर्मा है, अक्षय धर्मा नहीं है। क्षय धर्मा वस्तुएं – असद्भावना, असद्विचार, अहंकार, स्वार्थ, काम, क्रोध तथा लोभ पैदा करती है जिन्हें भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में आसुरीवृत्ति कहा है जबकि अक्षय धर्मा सकारात्मक चिंतन-मनन हमें दैवी संपदा की ओर ले जाता है। इससे हमें त्याग, परोपरकार, मैत्री, करूणा और प्रेम पाकर परम शांति पाते हैं अर्थात् व्यक्ति को दिव्य गुणों की प्राçप्त होती है। इस दृष्टि से यह तिथि हमें जीवन मूल्यों का वरण करने का संदेश देती है – “सत्यमेव जयते” की ओर अग्रसर करती है।
4. नवान्न का पर्व :—- वैशाख शुक्ल तृतीया को मनाया जाने वाला यह व्रत बहुश्रुत और बहुमान्य है। बुन्देलखण्ड में यह व्रत अक्षय तृतीया से प्रारंभ होकर पूर्णिमा तक ब़डी धूमधाम से मनाया जाता है। कुमारी कन्याएं अपने भाई, पिता, बाबा तथा गाँव-घर के, कुटुम्ब के लोगों को सगुन बांटती है औरा गीत गाती है। इस तिथि को सुख-समृद्धि और सफलता की कामना से व्रतोत्सव के साथ ही अस्त्र, शस्त्र, वस्त्र, आभूषण आदि बनवायें, खरीदें और धारण किए जाते हैं। नई भूमि का क्रय, भवन, संस्था आदि का प्रवेश इस तिथि को शुभ फलदायी माना जाता है।
5. परशुराम जयंती :—-इसी दिन नर-नारायण, परशुराम और हयग्रीव का अवतार हुआ था, इसीलिए इनकी जयंतियां भी अक्षय तृतीया को मनाई जाती है। श्री परशुरामजी प्रदोष काल में प्रकट हुए थे इसलिए यदि द्वितीया को मध्याह्न से पहले तृतीया आ जाए तो उस दिन “अक्षय तृतीया”, “नर-नारायण जयंती”, “हयग्रीव जयंती” सभी संपन्न की जाती है। इसे “परशुराम तीज” भी कहते हैं। अक्षय तृतीया ब़डी पवित्र और सुख सौभाग्य देने वाली तिथि है।
6. सामाजिक पर्व के रूप में अक्षय तृतीया :— आखा तीज का दिन सामाजिक पर्व का दिन है। इस दिन कोई दूसरा मुहूर्त न देखकर स्वयंसिद्ध अभिजित् शुभ मुहूर्त के कारण विवाहोत्सव आदि मांगलिक कार्य संपन्न किए जाते हैं।
7. कृषि उत्पादन के संबंध में अक्षय तृतीया :—- किसानों में यह लोक विश्वास है कि यदि इस तिथि को चंद्रमा के अस्त होते समय रोहिणी आगे होगी तो फसल के लिए अच्छा होगा और यदि पीछे होगी तो उपज अच्छी नहीं होगी। अक्षय तृतीया में तृतीया तिथि, सोमवार और रोहिणी नक्षत्र तीनों का सुयोग बहुत श्रेष्ठ माना जाता है। इस संबंध में भड्डरी की कहावतें भी लोक में प्रचलित है।


दान के पर्व के रूप में :—-
 अक्षय तृतीया वाले दिन दिया गया दान अक्षय पुण्य के रूप में संचित होता है। इस दिन अपनी सामथ्र्य के अनुसार अधिक से अधिक दान-पुण्य करना चाहिए। इस तिथि पर ईख के रस से बने पदार्थ, दही, चावल, दूध से बने व्यंजन, खरबूज, लड्डू का भोग लगाकर दान करने का भी विधान है। अक्षय ग्रंथ गीता : गीता स्वयं एक अक्षय अमरनिधि ग्रंथ है जिसका पठन-पाठन, मनन एवं स्वाध्याय करके हम जीवन की पूर्णता को पा सकते हैं, जीवन की सार्थकता को समझ सकते हैं और अक्षय तत्व को प्राप्त कर सकते हैं। अक्षय तिथि के समान हमारा संकल्प दृढ़, श्रद्धापूर्व और हमारी निष्ठा अटूट होनी चाहिए। तभी हमें व्रतोपवासों का समग्र आध्यात्मिक फल प्राप्त हो सकता है।


पर्व के विविध रूप—-
अक्षय तृतीया का पर्व देश के विभिन्न प्रांतों में विविध प्रकार से मनाया जाता है। मालवा (उज्जैन-इंदौर) में नए घड़े के ऊपर खरबूजा और आम्रपल्लव रखकर लोग अपने कुल देवता या इष्टदेव का पूजन करते हैं। 


भारतीय कृषक इसी दिन से अपने नए कृषि-वर्ष का शुभारंभ मानकर इसे ‘नवान्न पर्व’ के रूप में मनाते हैं। इस दिन दूध से बने व्यंजन, गुड़, चीनी, दही, चावल, खरबूजे, तरबूज और लड्डुओं का दान भी दिया जाता है। 


बुंदेलखंड में अक्षय तृतीया से पूर्णिमा तक युवतियां एक विशेष पर्व मनाती है, जिसे सतन्जा कहा जाता है। इस दिन लड़कियां सात तरह के अनाजों से देवी पार्वती की पूजा करती हैं।


 राजस्थान में अक्षय तृतीया के दिन वर्षा ज्ञान के लिए शकुन निकाला जाता है तथा अछी वर्षा के लिए लड़कियां शकुन गीत गाती है। दक्षिण भारत में यह धारणा है कि अक्षय तृतीया के दिन सोना या इसके आभूषण खरीदने से घर में सदा सुख-समृद्धि रहती है।


क्यों पूजनीय है पीपल का वृक्ष?


भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भगवद्गीता में कहा है- ‘वृक्षों में मैं पीपल हूं।’ इसीलिए इसे ऐसा दिव्य वृक्ष माना गया है, जिसकी जड़ से लेकर पलियों तक तैंतीस करोड़ देवताओं का वास होता है। शनिवार को पीपल की जड़ के नीचे जल चढ़ाने, दीप जलाने और उसकी सात बार परिक्रमा करने से शनि ग्रह के अशुभ प्रभाव दूर हो जाते हैं। गौतम बुद्ध को इस वृक्ष के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। यह एकमात्र ऐसा वृक्ष है, जो वायुमंडल में सबसे ज्यादा ऑक्सीजन छोड़ता है। आयुर्वेद की दृष्टि से भी पीपल अनेक औषधीय गुणों से भरपूर है। इन्हीं गुणों के कारण पीपल का वृक्ष पूजनीय माना जाता है।


सावधान–एक गलत विचार-मानसिकता/धारणा—


यह मान्यता है कि रजस्वला होने के पूर्व ही कन्या (पुत्री) का कन्यादान कर दिया जाए तो उस से बड़ा दान कुछ नहीं होता। नतीजा यह है कि इन धारणाओं ने आखा तीज को विवाह के लिए अबूझ सावा (विवाह मुहूर्त) बना दिया है। इस दिन थोक में बाल विवाह होते हैं। विशेष रूप से राजस्थान, गुजरात  मध्य प्रदेश और कुछ अन्य प्रांतों में बहुत बड़ी संख्या में बालविवाह  होते रहे हैं। ऐसा करना अभिशाप हें.


बाल विवाहों का अनिवार्य परिणाम यह सामने आया कि विवाह संबंधी विवादों में भारी वृद्धि हुई। कुछ भी होता है कि लड़की को पिता के घर रोक लिया जाता है, और फिर धारा 125 दं.प्र.सं. में भरणपोषण के मुकदमे से विवाद का अदालत में आरंभ हो जाता है। अब तो अनेक माध्यम हैं जिन के जरिए अदालत जाया जा सकता है।
सब से बड़ा अंतर्विरोध है कि हिन्दू विवाह अधिनियम में किसी भी बाल विवाह को अवैध नहीं माना जाता। एक बार संपन्न हो जाने के उपरांत विवाह वैध हो जाता है और उसे बाल विवाह होने के कारण अवैध, अकृत, या शून्य घोषित नहीं किया जा सकता है। 


एक और तो यह स्थिति है, दूसरी और बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम ने बाल विवाह को अपराधिक कृत्य बनाया हुआ है और सजाओं का प्रावधान किया है, इसे विधि की विडम्बना कहा जाए या फिर विधायिका द्वारा निर्मित विधियों से विधिशास्त्र में उत्पन्न किया गया अंतर्विरोध। 


बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम में 18 से कम आयु की स्त्री और 21 वर्ष से कम आयु के पुरुष के विवाह को वर्जित घोषित किया गया है और ऐसा विवाह करने वाले 18 से अधिक और 21 वर्ष से कम आयु के और उस से अधिक आयु के लड़के को अलग अलग दंडों का भागी घोषित किया गया है। इसी विवाह को कराने वाले पुरोहित और माता-पिता के लिए भी दंडों का विधान किया गया है। इस तरह एक ऐसा कृत्य जिस को करने और कराने वाले वयस्क व्यक्तियों को अपराधी कहा गया है उसी कृत्य के परिणाम विवाह को वैध करार दिया गया है। 


हिन्दू विवाह और अन्य किसी भी व्यक्तिगत विधि के अंतर्गत संपन्न बाल विवाह को हर स्थिति में वैध माना गया है। ऐसे विवाह से उत्पन्न संतानों को वही अधिकार प्राप्त हैं जो कि अन्य विवाहों से उत्पन्न संतानों को प्राप्त हैं। 

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