जानिए …4 में लगने वाले चंद्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण—


नई उमंगों के साथ साल 2014 शुरू हो चुका है। 1947 और 2014 का कैलेंडर लगभग एक से प्रतित होते हैं।  पंचांग गणना के अनुसार साल 2014 में दो सूर्य ग्रहण होंगे और इतने ही चन्द्रग्रहण भी होंगे। 
सूर्यग्रहण के दौरान सूर्य और पृथ्वी के बीच चंद्रमा कुछ इस तरह आ जाता है कि पृथ्वी से निहारने पर सौरमंडल का मुखिया चमकदार कंगन की तरह दिखायी देता है।  
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15 अप्रैल 2014(मंगलवार)—-
चन्द्र ग्रहण एक अहम खगोलीय घटना मानी जाती है। जब पृथ्वी, सूर्य और चन्द्रमा के बीच आ जाती है तो इसे चन्द्र ग्रहण कहते हैं। चन्द्र ग्रहण को ज्योतिष के लिहाज से भी काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। चन्द्र ग्रहण के समय चन्द्र देव की पूजा का विधान है। 
भारतीय समय के अनुसार यह चन्द्र ग्रहण  10 बजकर 24 मिनट पर शुरू होगा और शाम के 4 बजकर 7 मिनट पर समाप्त होगा। यह ग्रहण आस्ट्रेलिया, प्रशांत महासागर के क्षेत्र एवं अमेरिका में दिखेगा। भारत में यह ग्रहण नहीं देखा जा सकेगा।इस दिन साल का यह पहला व पूर्ण चन्द्रग्रहण होगा जो भारत के अलावा अन्य देशो जेसे ऑस्ट्रेलिया, प्रशांत महासागरीय देशों, उत्तर तथा दक्षिण अमेरिकी देशों से दिखाई देगा।


कब शुरू होगा चन्द्र ग्रहण—-???


उपच्छाया से पहला स्पर्श – १०:२३:३६
प्रच्छाया से पहला स्पर्श – ११:२८:१९
खग्रास प्रारम्भ – १२:३६:४७
परमग्रास चन्द्र ग्रहण – १३:१५:४०
खग्रास समाप्त – १३:५४:३४
प्रच्छाया से अन्तिम स्पर्श – १५:०३:०४
उपच्छाया से अन्तिम स्पर्श – १६:०७:३७


खग्रास की अवधि – ०१ घण्टा १७ मिनट ४७ सेकेंड
खण्डग्रास की अवधि – ०३ घण्टे ३४ मिनट ४५ सेकेंड
उपच्छाया की अवधि – ०५ घण्टे ४४ मिनट ०० सेकेंड


===पंडित दयानंद शास्त्री के अनुसार चन्द्र ग्रहण के दौरान पूजा और स्नान मान्यता है कि चन्द्र ग्रहण के दौरान पूजा-पाठ, अनुष्ठान, दान आदि का अत्यधिक फल मिलता है। मत्स्य पुराण के अनुसार ग्रहण काल के दौरान जातक को श्वेत पुष्पों और चन्दन आदि से चन्द्रमा की पूजा करनी चाहिए। 
चन्द्र ग्रहण के खत्म होने पर जातक को स्नान और दान (विशेषकर गाय का दान) करना चाहिए।हिंदू धर्म की मान्‍यता के अनुसार चंद्र ग्रहण अच्‍छा नहीं माना जाता है। ग्रहण के कुप्रभाव से बचने के लिये इन तिथियों पर आप गरीबों को दान दें। गरीबों को भोजन करायें, मंत्रों का उच्‍चारण करें, जिनमें गायत्री मंत्र सर्वश्रेष्‍ठ फल देगा। अपने ईष्‍ट देव का ध्‍यान करें। भोजन नहीं करें। 


ग्रहण के बाद स्‍नान करें और ताज़ा भोजन करें। साथ ही यदि आप गर्भवती हैं तो आपके होने वाले बच्‍चे पर ग्रहण के प्रभाव से बचाने के लिये एकांत स्‍थान पर बैठ जायें और ईश्‍वर का ध्‍यान करें। यह काम आप सूर्य ग्रहण के समय भी करें।
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ग्रहण काल में चन्द्र के प्रभावों को शुभ करने के लिये चन्द्र की वस्तुओं का दान किया जाता है –


शुभ प्रभाव प्राप्त करने के लिए निम्न उपाय करे –


—ग्रहण में बालक, वृद्ध और रोगी के लिए कोई नियम शास्त्रों में नहीं बताया गया है ।


—-चिटियों को पिसा हुआ चावल व आट्टा डाले ।


— चन्द्र की दान वस्तुओं में मोती, चांदी, चावल, मिसरी, सफेद कपड़ा,सफेद फूल, शंख, कपूर,श्वेत चंदन, पलाश की लकड़ी, दूध, दही, चावल, घी, चीनी आदि का दान करना शुभ रहेगा ,


—कुंडली के अनुसार चन्द्रमा को मन और माँ का कारक माना गया है जन्म कुंडली में चन्द्रमा जिस भाव में हो उसके अनुसार दान करना चाहिए . चन्द्र वृष राशी में शुभ और वृश्चिक राशी में अशुभ होता है , जब चन्द्र जन्म कुण्डली मे उच्च का या अपने पक्के भाव का हो तब चन्द्र से सम्बन्धित वस्तुऑ का दान नही करना चाहिए, अगर चन्द्र दितीय चतुर्थ भाव मे हो तो चावल चीनी दुध का दान न करे , यदि चन्द्र वृश्चिक राशी में हो तो चन्द्र की शुभता प्राप्त करने के लिए मन्दिर,मस्जिद, गुरुद्धारा, शमशान या आम जनता के लिए प्याउ( पानी की टंकी ) बनवाए या किसी मिटटी के बर्तन में चिड़ियों के लिये पानी रखे .


—-चन्द्र का वैदिक मंत्र :-


चंद्रमा के शुभ प्रभाव प्राप्त करने हेतु चंद्रमा के वैदिक मंत्र का 11000 जप करना चाहिए।.


—–”””ऊँ श्रां श्रीं श्रौं सः चंद्रमसे नमः “””या “””ऊँ सों सोमाय नमः “”


—-चन्द्र दोष दूर करने के लिए सोमवार, अमावस्या का दिन बहुत ही शुभ होता है। किंतु चन्द्र दोष से पीडि़त के लिए चन्द्रग्रहण के दौरान चन्द्र उपासना बहुत ही जरूरी होती है। शिव जी की आराधना करें। अपने श्री इष्ट देवताये नम:, का जाप करे….


इस चंद्रग्रहण पर करें यह प्रयोग, बिजनेस में जरुर मिलेगी सफलता—-


यदि आपका बिजनेस ठीक नहीं चल रहा है तो घबराईए बिल्कुल मत क्योंकि 10 दिसंबर, शनिवार को आने वाला चंद्र ग्रहण इस समस्या से छुटकारा पाने का श्रेष्ठ अवसर है। बिजनेस की सफलता के लिए चंद्रग्रहण के दिन यह प्रयोग करें-


ऐसे करें प्रयोग—–


ग्रहण से पहले नहाकर लाल या सफेद कपड़े पहन लें। इसके बाद ऊन व रेशम से बने आसन को बिछाकर उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठ जाएं। जब ग्रहण काल प्रारंभ हो तब चमेली के तेल का दीपक जला लें। अब दाएं हाथ में रुद्राक्ष की माला लें तथा बाएं हाथ में 5 गोमती चक्र लेकर नीचे लिखे मंत्र का 54 बार जप करें-


—-मन्त्र “”””ऊँ कीली कीली स्वाहा”””


अब इन गोमती चक्रों को एक डिब्बी में डाल दें और फिर क्रमश: 5 हकीक के दाने व 5 मूंगे के दाने लेकर पुन: इस मंत्र का 54 बार उच्चारण करें। अब इन्हें भी एक डिब्बी में डालकर उसके ऊपर सिंदूर भर दें। अब दीपक को बुझाकर उसका तेल भी इस डिब्बी में डाल दें।


इस डिब्बी को बंद करके अपने घर, दुकान या ऑफिस में रखें। आपका बिजनेस चल निकलेगा।


—-इस चंद्रग्रहण पर करें यह उपाय/टोटका, होगा अचानक धन लाभ—-


तंत्र शास्त्र के अनुसार ग्रहण के दौरान किया गया प्रयोग बहुत प्रभावशाली होता है और इसका फल भी जल्दी ही प्राप्त होता है। इस मौके का लाभ उठाकर यदि आप धनवान होना चाहते हैं तो नीचे लिखा उपाय करने से आपकी मनोकामना शीघ्र ही पूरी होगी और आपको अचानक धन लाभ होगा।


ऐसे करें उपाय/टोटका —-


ग्रहण के पूर्व नहाकर साफ पीले रंग के कपड़े पहन लें। ग्रहण काल शुरु होने पर उत्तर दिशा की ओर मुख करके ऊन या कुश के आसन पर बैठ जाएं। अपने सामने पटिए(बाजोट या चौकी) पर एक थाली में केसर का स्वस्तिक या ऊँ बनाकर उस पर महालक्ष्मी यंत्र स्थापित करें। इसके बाद उसके सामने एक दिव्य शंख थाली में स्थापित करें।अब थोड़े से चावल को केसर में रंगकर दिव्य शंख में डालें। घी का दीपक जलाकर नीचे लिखे मंत्र का कमलगट्टे की माला से ग्यारह माला जप करें-


ये हें मंत्र—-


सिद्धि बुद्धि प्रदे देवि मुक्ति मुक्ति प्रदायिनी।


मंत्र पुते सदा देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते।।


मंत्र जप के बाद इस पूरी पूजन सामग्री को किसी नदी या तालाब में विसर्जित कर दें। इस प्रयोग से कुछ ही दिनों में आपको अचानक धन लाभ होगा।
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29 अप्रैल 2014 —
29 अप्रैल को कंकणाकृत सूर्य ग्रहण के रूप में होगा। यह ग्रहण सुबह 9 बजकर 22 मिनट से शुरू होकर दोपहर के 1 बजकर 44 मिनट पर समाप्त होगा। यह ग्रहण भारत सहित आस्ट्रेलिया और अंटार्कटिका में भी देखा जा सकेगा।इस दिन वलयाकार सूर्यग्रहण होगा, लेकिन इस अद्भुद् घटना का नजारा भी भारत में नहीं दिखेगा। वलायाकार सूर्यग्रहण में पृथ्वी और चन्द्रमा के बीच चंद्रमा आ जाता है जिससें सूर्य कंगन की तरह दिखाई देता है। यह आंशिक सूर्यग्रहण अंटार्कटिका तथा ऑस्ट्रेलिया से दिखेगा।
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8 अक्टूबर 2014 —
8 अक्टूबर को चन्द्रग्रहण के रूप में होगा। यह चन्द्रग्रहण भारत में भी देखा जा सकेगा। 1 बजकर 46 मिनट से शुरू होकर यह 7 बजकर 04 मिनट पर समाप्त होगा।
इस दिन पूर्ण चन्द्रग्रहण का नजारा दिखाई देगा। यह अगले साल का दूसरा पूर्ण चन्द्रग्रहण होगा, लेकिन इसें भारत के पूर्वोत्तर राज्यों के कुछ हिस्सों में देखा जा सकेगा।यह ग्रहण  उक्त देशों के अलावा पूर्वी एशियाई देशों से भी दिखाई देगा।
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24 अक्टूबर 2014 —-
24 अक्टूबर को सूर्यग्रहण के रूप में होगा। यह ग्रहण रात में 1 बजकर 7 मिनट पर शुरू होगा और 5 बजकर 22 मिनट पर समाप्त हो जाएगा।यह साल 2014 का आखिरी और आंशिक सूर्यग्रहण होगा। लेकिन यह भी भारत में दिखाई नहीं देगा। उत्तरी अमेरिका तथा रूस के सुदूर पूर्व में भी आंशिक सूर्यग्रहण दिखेगा।


गौरतलब है कि साल 201. में ग्रहण की कुल पांच घटनाएं हुई थी जिनमें चंद्रग्रहण, एक वलायाकार सूर्यग्रहण, दो उपच्छाया चंद्रग्रहण तथा एक पूर्ण सूर्यग्रहण हैं।


हिंदू धर्म के मतानुसार चंद्र ग्रहण का प्रभाव शुभ नहीं माना जाता। ग्रहण के अशुभ प्रभावों से निजात पाने के लिए ग्रहण के दिन गरीबों को दान दें, भोजन कराएं, गायत्री मंत्र का जाप करें। अपने ईष्‍ट देव की आराधना करें और उपवास रखें। ग्रहण के उपरांत स्‍नान कर भोजन ग्रहण करें।


क्या सावधानियां रखें ग्रहण के दोरान..???


यदि आप गर्भवती हैं, या आपके घर में कोई महिला गर्भवती है या फिर आप इस साल फेमिली प्‍लानिंग करने जा रहे हैं, तो इन तिथियों को कैलेंडर में जरूरनोट कर लें। 
इसके अलावा नया मकान, या नई दुकान लेने जा रहे हैं, तो इन ति‍थियों पर लेने से बचें। 
इन  तिथियों पर आपकी करियर लाइव, निजी जीवन, आय के स्रोत, परिवार, प्रेम-संबंध, आदि में व्‍यापक परिवर्तन हो सकते हैं। खुशियां आ सकती हैं या हो सकता है दु:ख घर कर जाये, लिहाजा आपको इन तिथियों पर विशेष सावधानी बरतनी होगी। 
बेहतर होगा यदि उन सभी बातों का पालन करें, जो बड़े बुजुर्ग बताते हैं।
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पण्डित दयानंद शास्त्री के अनुसार कुछ पंचाग ने इस ग्रहण को माना है । परन्तु सेवाक्रम की बात करे तो इस ग्रहण को जो मनुष्य की आखो से नही दिखे तो, ऐसे ग्रहण को मानने की अनुमति हमारे धर्मसिन्धु निर्णयसिन्धु ग्रन्थ भी नही देते है । 
कब और केसे करें सूतक का पालन..???
सूर्यग्रहण में सूतक 12 घंटे पहले और चंद्रग्रहण में सूतक 9 घंटे पहले लगता है । सूतक काल में जहाँ देव दर्शन वर्जित माने गये हैं वहीं मन्दिरों के पट भी बन्द कर दिये जाते हैं । इस दिन जलाशयों, नदियों व मन्दिरों में राहू, केतु व सुर्य के मंत्र का जप करने से सिद्धि प्राप्त होती है और ग्रहों का दुष्प्रभाव भी खत्म हो जाता है ।
हमारे ऋषि मुनियों ने सुर्यग्रहण लगने के समय भोजन करने के लिये मना किया है, क्योंकि उनकी मान्यता थी कि ग्रहण के समय में किटाणु बहुलता से फैल जाते हैं । खाद्य वस्तु, जल आदि में सुक्ष्म जीवाणु एकत्रित होकर उसे दूषित कर देते हैं। 
इसलिये ऋषियों ने पात्रों में क़ुश अथवा तुलसी डालने को कहा है, ताकि सब किटाणु कुश में एकत्रित हो जायें और उन्हें ग्रहण के बाद फेंका जा सके। पात्रों में अग्नि डालकर उन्हें पवित्र बनाया जाता है, ताकि किटाणु मर जायें। ग्रहण के बाद स्नान करने का विधान इसलिये बनाया गया ताकि स्नान के दौरान शरीर के अन्दर ऊष्मा का प्रवाह बढे, भीतर बाहर के किटाणु नष्ट हो जायें, और धूल कर बह जायें।
पण्डित दयानंद शास्त्री के अनुसार ग्रहण के दौरान भोजन न करने के विषय में जीव विज्ञान विषय के प्रोफेसर टारिंस्टन ने पर्याप्त अनुसन्धान करके सिद्ध किया है कि सुर्य चन्द्र ग्रहण के समय मनुष्य के पेट की पाचन शक्ति कमजोर हो जाती है, जिसके कारण इस समय किया गया भोजन अपच, अजीर्ण आदि शिकायतें पैदा कर शारीरिक या मानसिक हानि पहुँचा सकता है ।
पण्डित दयानंद शास्त्री के अनुसार भारतीय धर्म विज्ञान वेत्घ्ताओं का कहना है कि सूर्य-चन्घ्द्र ग्रहण लगने से 10 घंटे पूर्व से ही इसका कुप्रभाव शुरू हो जाता है। अंतरिक्ष प्रदुषण के समय को सूतक काल कहा जाता है। इसलिए सूतक काल और ग्रहण काल के समय में भोजन तथा पेय पदार्थों के सेवन की मनाही की गयी है। चॅंकि ग्रहण से हमारी जीवन शक्ति का ह्रास होता है और तुलसी दल (पत्र) में विद्युत शक्ति व प्राण शक्ति सबसे अधिक होती है, इसलिए सौर मंडलीय ग्रहण काल में ग्रहण प्रदूषण को समाप्घ्त करने के लिए भोजन व पेय सामग्री में तुलसी के कुछ पत्घ्ते डाल दिए जाते हैं। जिसके प्रभाव से न केवल भोज्घ्य पदार्थ बल्कि अन्घ्न, आटा आदि भी प्रदूषण से मुक्घ्त बने रह सकते हैं।
पुराणों की मान्घ्यता के अनुसार राहू चन्घ्द्रमा को तथा केतू सूर्य को ग्रसता है। ये दोनों छाया की संतान है । चन्घ्द्रमा और सूर्य की छाया के साथ साथ चलते हैं । चन्घ्द्रग्रहण के समय कफ की प्रधानता बढ़ती है, और मन की शक्ति क्षीण होती है । जबकि सूर्य ग्रहण के समय जठराग्नि नेत्र तथा पित्घ्त की शक्ति कमजोर पड़ती है ।
पण्डित दयानंद शास्त्री के अनुसार ग्रहण लगने से पूर्व नदी या घर में उपलब्घ्ध जल से स्घ्नान करके भगवान का पूजन, यज्ञ, जप करना चाहिए । भजन कीर्तन करके ग्रहण के समय का सदुपयोग करें । ग्रहण के दौरान कोई कार्य न करें । ग्रहण के समय में मंत्रों का जप करने से सिध्घ्दि प्राप्घ्त होती है ।
पण्डित दयानंद शास्त्री के अनुसार ग्रहण की अवधि में तेल लगाना, भोजन करना, जल पीना, मल-मूर्त्त्घ्याग करना, केश विन्घ्यास करना, रति क्रीडा करना, मंजन करना वर्जित किए गये हैं । कुछ लोग ग्रहण के दौरान भी स्घ्नान करते हैं । ग्रहण समाप्घ्त हो जाने पर स्घ्नान करके ब्राम्घ्हण को दान करने का विधान है । कहीं कहीं वर्स्घ्त्धोने, बर्तन धोने का भी नियम है । पुराना पानी, अन्घ्न नष्घ्ट कर नया भोजन पकाया जाता है, और ताजा भरकर पीया जाता है, क्घ्योंकि डोम को राहू केतु का स्घ्वरूप माना गया है ।
पण्डित दयानंद शास्त्री के अनुसार सूर्यग्रहण में ग्रहण से चार प्रहर पूर्व और चंद्रग्रहण में तीन प्रहर पूर्व भोजन नहीं करना चाहिए (1 प्रहर = 3 घंटे) । बूढ़े, बालक और रोगी एक प्रहर पूर्व खा सकते हैं । ग्रहण के दिन पत्घ्ते, तिनके, लकड़ी और फूल नहीं तोड़ना चाहिए । बाल और वर्स्घ्त्नहीं निचोड़ने चाहिए एवं दंत धावन नहीं करना चाहिए । ग्रहण के समय ताला खोलना, सोना मल मूर्त्का त्घ्याग करना, मैथून करना और भोजन करना ये सब वर्जित कार्य हैं । ग्रहण के समय मन से सत्घ्पार्त्को उद्देश्घ्य करके जल में जल डाल देना चाहिए ऐसा करने से देने वाले को उसका फल प्राप्घ्त होता है और लेने वाले को उसका दोष भी नहीं लगता है । ग्रहण के समय गायों को घास, पक्षियों को अन्घ्न, जरूरत मंदों को वर्स्घ्त्दान देने से अनेक गुना पुण्घ्य प्राप्घ्त होता है।
पण्डित दयानंद शास्त्री के अनुसार चन्द्रग्रहण और सूर्यग्रहण के समय संयम रखकर जप-ध्यान करने से कई गुना फल होता है। भगवान वेदव्यास जी ने परम हितकारी वचन कहे हैं- सामान्य दिन से चन्द्रग्रहण में किया गया पुण्यकर्म (जप, ध्यान, दान आदि) एक लाख गुना और सूर्य ग्रहण में दस लाख गुना फलदायी होता है। यदि गंगा जल पास में हो तो चन्द्रग्रहण में एक करोड़ गुना और सूर्यग्रहण में दस करोड़ गुना फलदायी होता है।
देवी भागवत में आता हैः सूर्यग्रहण या चन्द्रग्रहण के समय भोजन करने वाला मनुष्य जितने अन्न के दाने खाता है, उतने वर्षों तक अरुतुन्द नामक नरक में वास करता है। फिर वह उदर रोग से पीड़ित मनुष्य होता है फिर गुल्मरोगी, काना और दंतहीन होता है। ग्रहण के अवसर पर पृथ्घ्वी को नहीं खोदना चाहिए ।
पण्डित दयानंद शास्त्री के अनुसार सूर्यग्रहण में ग्रहण से चार प्रहर (12 घंटे) पूर्व और चन्द्र ग्रहण में तीन प्रहर ( 9 घंटे) पूर्व भोजन नहीं करना चाहिए। बूढ़े, बालकक और रोगी डेढ़ प्रहर (साढ़े चार घंटे) पूर्व तक खा सकते हैं। ग्रहण पूरा होने पर सूर्य या चन्द्र, जिसका ग्रहण हो, उसका शुद्ध बिम्ब देखकर भोजन करना चाहिए।
ग्रहण वेध के पहले जिन पदार्थों में कुश या तुलसी की पत्तियाँ डाल दी जाती हैं, वे पदार्थ दूषित नहीं होते। जबकि पके हुए अन्न का त्याग करके उसे गाय, कुत्ते को डालकर नया भोजन बनाना चाहिए।
ग्रहण के समय गायों को घास, पक्षियों को अन्न, जररूतमंदों को वस्त्र और उनकी आवश्यक वस्तु दान करने से अनेक गुना पुण्य प्राप्त होता है।
ग्रहण के समय कोई भी शुभ या नया कार्य शुरू नहीं करना चाहिए।
ग्रहण के समय सोने से रोगी, लघुशंका करने से दरिद्र, मल त्यागने से कीड़ा, स्त्री प्रसंग करने से सूअर और उबटन लगाने से व्यक्ति कोढ़ी होता है। गर्भवती महिला को ग्रहण के समय विशेष सावधान रहना चाहिए।
गर्भवती स्त्रियों के लिये सावधानी——
पण्डित दयानंद शास्त्री के अनुसार गर्भवती स्त्री को सूर्य दृ चन्घ्द्रग्रहण नहीं देखना चाहिए, क्घ्योकि उसके दुष्घ्प्रभाव से शिशु अंगहीन होकर विकलांग बन जाता है । गर्भपात की संभावना बढ़ जाती है । इसके लिए गर्भवती के उदर भाग में गोबर और तुलसी का लेप लगा दिया जाता है, जिससे कि राहू केतू उसका स्घ्पर्श न करें ग्रहण के दौरान गर्भवती स्त्री को कुछ भी कैंची, चाकू आदि से काटने को मना किया जाता है , और किसी वस्घ्त्र आदि को सिलने से मना किया जाता है । क्घ्योंकि ऐसी मान्घ्यता है कि ऐसा करने से शिशु के अंग या तो कट जाते हैं  या फिर सिल (जुड़) जाते हैं ।
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पण्डित दयानंद शास्त्री के अनुसार क्या सावधानियां रखे ग्रहण के समय..???
====ग्रहण के सोने से रोग पकड़ता है किसी कीमत पर नहीं सोना चाहिए।
===ग्रहण के समय मूर्त्दृ त्घ्यागने से घर में दरिद्रता आती है ।
====शौच करने से पेट में क्रीमी रोग पकड़ता है । ये शार्स्घ्त्की बातें हैं इसमें किसी का लिहाज नहीं होता।
===ग्रहण के समय संभोग करने से सूअर की योनी मिलती है ।
===ग्रहण के समय किसी से धोखा या ठगी करने से सर्प की योनि मिलती है ।
==== जीव-जन्घ्तु या किसी की हत्घ्या करने से नारकीय योनी में भटकना पड़ता है ।
====ग्रहण के समय भोजन अथवा मालिश किया तो कुष्घ्ठ रोगी के शरीर में जाना पड़ेगा।
===ग्रहण के समय बाथरूम में नहीं जाना पड्रे ऐसा खायें।
===ग्रहण के दौरान मौन रहोगे, जप और ध्घ्यान करोगे तो अनंत गुना फल होगा।


पण्डित दयानंद शास्त्री के अनुसार ग्रहण विधि निषेध ===
===सूर्यग्रहण मे ग्रहण से चार प्रहर पूर्व और चंद्र ग्रहण मे तीन प्रहर पूर्व भोजन नहीं करना चाहिये । बूढे बालक और रोगी एक प्रहर पूर्व तक खा सकते हैं ग्रहण पूरा होने पर सूर्य या चंद्र, जिसका ग्रहण हो, उसका शुध्द बिम्बदेख कर भोजन करना चाहिये । (१ प्रहर = ३ घंटे)
=== ग्रहण के दिन पत्ते, तिनके, लकड़ी और फूल नहीं तोडना चाहिए । बाल तथा वस्त्र नहीं निचोड़ने चाहियेव दंत धावन नहीं करना चाहिये ग्रहण के समय ताला खोलना, सोना, मल मूत्र का त्याग करना, मैथुन करना औरभोजन करना – ये सब कार्य वर्जित  हैं ।
===.ग्रहण के समय मन से सत्पात्र को उद्दयेश्य करके जल मे जल डाल देना चाहिए ।  ऐसा करने से देनेवालेको उसका फल प्राप्त होता है और लेनेवाले को उसका दोष भी नहीं लगता।
===कोइ भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिये और नया कार्य शुरु नहीं करना चाहिये ।
===ग्रहण वेध के पहले जिन पदार्थाे मे तिल या कुशा डाली होती है, वे पदार्थ दुषित नहीं होते । जबकि पके हुएअन्न का त्याग करके गाय, कुत्ते को डालकर नया भोजन बनाना चाहिये ।
===ग्रहण वेध के प्रारंभ मे तिल या कुशा मिश्रित जल का उपयोग भी अत्यावश्यक परिस्थिति  मे ही करना चाहिये और ग्रहण शुरु होने से अंत तक अन्न या जल नहीं लेना चाहिये ।
====ग्रहण के समय गायों को घास, पक्षियों को अन्न, जरुरतमंदों को वस्त्र दान से अनेक गुना  पुण्य प्राप्तहोता है ।
====तीन दिन या एक दिन उपवास करके स्नान दानादि का ग्रहण में महाफल है, किंतु  संतानयुक्त ग्रहस्थको ग्रहणऔर संक्रान्ति के दिन उपवास नहीं करना चाहिये।
==== श्स्कंद पुराणश् के अनुसार ग्रहण के अवसर पर दूसरे का अन्न खाने से बारह वर्षाे का एकत्र किया हुआसब पुण्यनष्ट हो जाता है ।
===. श्देवी भागवतश् में आता है कि भूकंप एवं ग्रहण के अवसर पृथ्वी को खोदना नहीं चाहिये ।
पण्डित दयानंद शास्त्री के अनुसार ग्रहण के समयकेसे करें  मंर्त्सिध्दि ..???
1.   ग्रहण के समय “ घ् ह्रीं नमः “ मंत्र का 10 माला जप करें इससे ये मंर्त्सिध्घ्द हो जाता है । फिर अगर किसी का स्घ्वभाव बिगड़ा हुआ है …. बात नहीं मान रहा है …. इत्घ्यादि ….. । तो उसके लिए हम संकल्घ्प करके इस मंर्त्का उपयोग कर सकते हैं ।
2.  श्रेष्ठ साधक उस समय उपवासपूर्वक ब्राह्मी घृत का स्पर्श करके श्घ् नमो नारायणायश् मंत्र का आठ हजार जप करने के पश्चात ग्रहणशुद्ध होने पर उस घृत को पी ले। ऐसा करने से वह मेधा (धारणाशक्ति), कवित्वशक्ति तथा वाकसिद्धि प्राप्त कर लेता है।

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