एकता में शक्ति..(राष्ट्रीय एकता और अखंडता)—- 
Ek Bharat, Shreshtha Bharat….


राष्ट्रीय एकता से अभिप्राय है सभी नागरिक राष्ट्र प्रेम से ओत-प्रोत हों सभी नागरिक पहले भारतीय हों,फिर हिन्दू, मुसलमान या अन्य। 


एकता ही समाज का दीपक है- एकता ही शांति का खजाना है। संगठन ही सर्वोत्कृषष्ट शक्ति है। संगठन ही समाजोत्थान का अधर है। संगठन बिन समाज का उत्थान संभव नहीं। एकता के बिना समाज आदर्श स्थापित नहीं कर सकता।, क्योंकि एकता ही समाज एवं देश के लिए अमोघ शक्ति है, किन्तु विघटन समाज के लिए विनाशक शक्ति है। 


राष्ट्रीय एकता का मतलब ही होता है, राष्ट्र के सब घटकों में भिन्न-भिन्न विचारों और विभिन्न आस्थाओं के होते हुए भी आपसी प्रेम, एकता और भाईचारे का बना रहना। राष्ट्रीय एकता में केवल शारीरिक समीपता ही महत्वपूर्ण नहीं होती बल्कि उसमें मानसिक,बौद्धिक, वैचारिक और भावात्मक निकटता की समानता आवश्यक है। एकता का अर्थ यह नहीं होता कि किसी विषय पर मतभेद ही न हो। मतभेद होने के बावजूद भी जो सुखद और सबके हित में है उसे एक रूप में सभी स्वीकार कर लेते हैं। 


विघटन समाज को तोड़ता है और संगठन व्यक्ति को जोड़ता है। संगठन समाज एवं देश को उन्नति के शिखर पर पहुंचा देता है। आपसी फूट एवं समाज का विनाश कर देती है। धागा यदि संगठित होकर एक जाए तो वः हठी जैसे शक्तिशाली जानवर को भी बांध सकता है। किन्तु वे धागे यदि अलग-अलग रहें तो वे एक तृण को भी बंधने में असमर्थ होते हैं। विघटित ५०० से – संगठित ५ श्रेष्ठ हैं। संगठन छे किसी भी क्षेत्र में क्यों न हो, वह सदैव अच्छा होता है- संगठन ही प्रगति का प्रतीक है, जिस घर में संगठन होता है उस घर में सदैव शांति एवं सुख की वर्षा होती है। 


चाहे व्यक्ति गरीब ही क्यों न हो, किन्तु यदि उसके घर-परिवार में संगठन है अर्थात सभी मिलकर एक हैं तो वह कभी भी दुखी नहीं हो सकता, लेकिन जहाँ या जिस घर में विघटन है अर्थात एकता नहीं है तो उस घर में चाहे कितना भी धन, वैभव हो किन्तु विघटन, फूट हो तो हानि ही हाथ आती है..


हमारा देश विभिन्न संस्कृतियों का देश है जो समूचे विश्व में अपनी एक अलग पहचान रखता है। अलग-अलग संस्कृति और भाषाएं होते हुए भी हम सभी एक सूत्र में बंधे हुए हैं तथा राष्ट्र की एकता व अखंडता को अक्षुण्ण रखने के लिए सदैव तत्पर रहते हैं। 


संगठन ही सभी शक्तियों की जड़ है,एकता के बल पर ही अनेक राष्ट्रों का निर्माण हुआ है,प्रत्येक वर्ग में एकता के बिना देश कदापि उन्नति नहीं कर सकता। एकता में महान शक्ति है। एकता के बल पर बलवान शत्रु को भी पराजित किया जा सकता है।


बिखरा हुआ व्यक्ति टूटता है- बिखरा समाज टूटता है- बिखराव में उन्नति नहीं अवनति होती है- बिखराव किसी भी क्षेत्र में अच्छा नहीं। जो समाज संगठित होगा, एकता के सूत्र में बंधा होगा, वह कभी भी परास्त नहीं हो सकता- क्योंकि एकता ही सर्वश्रेष्ठ शक्ति है, किन्तु जहाँ विघटन है, एकता नहीं है उस समाज पर चाहे कोई भी आक्रमण कर विध्वंस कर देगा। इसलिए ५०० विघटित व्यक्तियों से ५ संगठित व्यक्ति श्रेष्ठ हैं, बहुत बड़े विघटित समाज से छोटा सा संगठित समाज श्रेष्ठ है। यदि समाज को आदर्शशील बनाना चाहते हो तो एकता की और कदम बढाओ।


भारत विभिन्न संस्कृतियों,धर्मों और सम्प्रदायों का संगम स्थल है। यहां सभी धर्मों और सम्प्रदायों को बराबर का दर्जा मिला है। हिंदु धर्म के अलावा जैन,बौद्ध और सिक्ख धर्म का उद्भव यहीं हुआ है। अनेकता के बावजूद उनमें एकता है। यही कारण है कि सदियों से उनमें एकता के भाव परिलक्षित होते रहे हैं। शुरू से हमारा दृष्टिकोण उदारवादी है। हम सत्य और अहिंसा का आदर करते हैं। 


समाज एकता की चर्चा करने के पूर्व आवश्यकता है- घर की एकता, परिवार की एकता की। क्योंकि जब तक घर की एकता नहीं होगी- तब तक समाज, राष्ट्र, विश्व की एकता संभव नहीं। एकता ही समाज को विकासशील बना सकती है। समाज के संगठन से एकता का जन्म होता है एवं एकता से ही शांति एवं आनंद की वृष्टि होती है। 


उदाहरण के लिए  —


चम्पक वन नाम का  एक छोटा सा जंगल था जो शिवालिक की पहाड़ियों से घिरा हुआ था ! यंहा कई छोटे -बड़े पक्षी अपना अपना घोसला बनाकर रहते थे ! सुंदर फूल, बड़े-बड़े वृक्ष इस वन की ख़ूबसूरती में चार चाँद लगते थे ! इस वन में किसी तरह की कोई कमी नहीं थी ! पक्षियों के पीने  के लिए स्वच्छ तालाब , चारों  तरफ शांत और सुखद माहौल न आपस में कोई  न वैर-विरोध न कोई लड़ाई ! क्योंकि लडाई  झगडे के लिए आपस में बातचीत होना बेहद ज़रूरी है और इस वन की अनोखी बात ये थी की यंहा कोई किसी से बात  ही नहीं करता था ! सब अपनी ही दुनिया में मगन रहते न ही किसी का आपस में मेल -जोल था न दोस्ती एक अजीब सी चुप्पी उन सबके बिच विधमान थी ! सभी पक्षी सुबह- सुबह अपने घोसलों से दाना चुगने के लिए निकलते और शाम ढले ही वापिस लौटते थे  ! घर आकर वो अपने बच्चों के साथ खेलते उनसे अपने दिल की बातें सांझी करते थे ! यही सब करते उनका वक़्त सुख से गुजर रहा था ..लेकिन एक दिन बड़ी ही अजीब घटना घटित हुई ! हुआ ये की जब बुलुबुल मैना  अपने घर आई तो उसने देखा की उसका घोसला टूटा हुआ है ..और अंडों  के छिलके ज़मीन पर बिखरे हुए हैं ! वो ये सब देखकर घबरा गयी और जोर -जोर से रोने लगी ..उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था , की ऐसी हरकत कौन कर सकता है ! उसने पेड़ के चारों  तरफ देखा कंही टहनियां और फल निचे गिरे हुए थे ! बुलबुल मैना रोते हुए सोचने लगी की अगर कोई तूफान आया होता तो सभी पक्षियों के घोसलें को नुकसान पहुंचता लेकिन यंहा तो सिर्फ बुलबुल का ही घरोंदा ही उजड़ा था ! उसे लगा की शायद उसकी पड़ोसन ब्लेकी कोयल ने उसे परेशां के लिए ये सब किया है ..पर उसे अपनी परेशानी का कोई हल नहीं सूझ रहा था ..वो पूछे तो पूछे किससे  और बताये तो किसे अपनी परेशानी बताये ! लेकिन फिर भी वो उड़ कर ब्लेकी कोयल के पास चली गयी और गुस्से में उसके साथ झगडा करने लगी ! ब्लेकी ने बुलबुल को समझाया ! कि मैं ऐसा क्यों करुँगी .मुझे ये सब करके क्या मिलेगा ! मैं तो खुद अपने साथ-साथ कपटी कोए के बच्चों को भी पालती  हूँ ! ये कहकर वो कुहू-कुहू करती उड़ गयी ! बेचारी बुलबुल चुपचाप अपने पेड़ पर आ गयी और सारी रात अकेले आंसू बहाती  रही क्योंकि वो जानती थी की उसके दुःख में आंसू बहाने वाला और कोई नहीं था . जो उसे दिलासा देता या उसका गम बाँट लेता ! बुलबुल भी रोते -रोते न जाने कब सो गयी उसे भी पता नहीं चला ! सुबह सूरज की रौशनी के साथ सभी पक्षियों की दिनचर्या फिर से शुरू हो गयी और शाम को जब सभी दाना लेकर घर लौटे तो अपने अपने बचों को आवाज़ देकर पुकारने लगे ! लेकिन जब चीनी चिड़िया अपने घर आई तो देखकर परेशान  हो गयी क्योंकि उसका घोसला बरगद के पेड़ से नदारद था ! वह इधर-उधर ढूंढती रही और तभी उसकी नज़र नीचे बिखरे हुए अंडों के छिलकों पर पड़ी ! चीनी चिड़िया को समझते देर न लगी की ये काम किसी दुसरे जानवर का है ! लेकिन वो ये सोच के हैरान थी की कौन ऐसा काम करेगा और क्यों ! चीनी चिड़िया भी दुखी मन से पेड़ की किसी टहनी पर बैठ गयी और सोचने लगी की क्या किया जाये ..और ये सोचते-सोचते ही उसकी आँख लग गयी ! अगले दिन चीनी दाना लेने ना जाकर चम्पक वन में ही रूक गयी और दोपहर बाद ही सचाई उसके सामने थी की ये कौन कर रहा है .वो समझ गयी की  इस मुश्किल से छुटकारा पाना  उसकी अकेली की बस की बात नहीं है   !  लेकिन उसने निश्चय कर लिया था की वो हार नहीं  मानेगी ! धीरे-धीरे ये घटना पुरे जंगल में आम हो गयी ..अब समस्या किसी एक पक्षी तक सिमित नहीं थी ! हर पक्षी अपना दुःख दुसरे पक्षी के साथ बाँटने को बेताब था ! यही सब सोचकर और हालत को देखते हुए चीनी चिड़िया ने हनी तोते की मदद मांगी और दोनों ने मिलकर एक सभा का आयोजन किया और  उसमें सभी पक्षियों को बुलाया गया ताकि समस्या का हल  निकाला जा सके !   सोनू गिलहरी  बोली की सबसे पहले हमें दुश्मन का पता लगाना होगा की ये सब कौन कर रहा है ! ये सुनते ही चीनी चिड़िया ने कहा ये तो मुस खोंखार बन्दर कर रहा है ..औऔर बताने लगी की कैसे वो सबके जाने के बाद यंहा आकार उत्पात मचाता है ..क्योंकि वो हमारी कमजोरी जानता  है की हम सब में एकता नहीं है !  मीठी चिड़िया ने कहा  उसका मकसद हमारे अण्डों से अपना पेट भरना तो है ही साथ ही हमारे घोसले तोड़ कर हमें परेशान करना भी   है ! पिंकू कबूतर ने कहा बस अब बहुत हो गया अब हम उस कपटी को सबक ज़रूर सिखायेंगें !  हाँ अब हम मिलकर इस मुश्किल का सामना करेंगें सभी पक्षियों ने कहा तभी बुलबुल मैना  ने कहा की हमें इसके लिए एक योजना बनानी होगी ! सभी पक्षियों ने इस बात का समर्थन किया तभी ब्लेकी कोयल ने कहा की सबसे पहले ये पता लगाये जाए की वो किस समय आता है ..तभी गुनी तोता बोल इस बात से कोई ख़ास फरक नहीं पड़ता हमें अपनी तयारी करनी चाहिए ! छु-छु चिड़ा कहने लगा की क्यों न हम सब  मिलकर उस पर आक्रमण कर दें अचानक हुए हमले से वो घबरा जायेगा और फिर कभी लौट कर वापिस नहीं आयेगा ! पिंकू कबूतर ने कहा की अच्छी योजना है पर इतने से बात नहीं बनेगी ..तभी चीनी चिड़िया ने कहा की छु-छु चिड़ा की योजना में ही मैं एक और योजना जोड़ना चाहती हूँ ! क्यों न हम बहन हनी मधु-मखियों और बनी चींटियों की मदद ले लें ! सभी हैरानी से एक-दुसरे का चेहरा देखने लगे ..तभी चीनी चिड़िया ने कहा  रुकिए मैं विस्तार से समझती हूँ ! बन्दर के आने से पहले हम सब इधर -उधर छुप जायेंगें !  बन्दर हमेशा की तरह अपने नए शिकार को ढूंढेगा और जन्हा तक मेरा अंदाज़ा है तो वो इस बार पीपल के पेड़ पर रहने वाली ब्लेकी को ही अपना निशाना बनाएगा ..सभी गौर से चीनी की बात सुन रहे थे ..तभी चीनी ने कहा की इस बार घोसले के अन्दर अंडे नहीं चीटियों का झुण्ड होगा जैसे ही बंदर अपना हाथ घोसलें में डालेगा सभी चीटियाँ उस पर हमला कर देंगे .साथ ही बहन  मधुमखियाँ उसके शरीर को कट खायेंगी और साथ ही हम सब अपनी चोंच से प्रहार शुरू कर देंगें ..सभी को चीनी चिड़िया की योजना पसंद आ  गयी .और वे हनी बनी की मदद लेने के लिए उनके पास चले गये ! .और वे तुरंत उनकी मदद करने के लिए मान गयी अब सभी जंगलवासी इस मुश्किल से लड़ने को तैयार थे !अगले दिन  वैसा ही हुआ जैसा उन्होनें सोचा था  नियत समय पर वो उत्पति बन्दर जंगल में आ गया ..और सब कुछ योजना के अनुसार ही होने लगा ..बंदर ने इस अचानक होने वाले हमले की कल्पना भी नहीं की थी .चीटियों व मधुमखियों के हुए प्रहार से वो बोखला गया तभी .पक्षियों के अचानक प्रहारने उसे लहू-लुहान कर दिया वो सबसे क्षमा की भीख मांगने लगा ..लेकिन अब तक भट देर हो चुकी थी अपने बचाव में भागते हुए वो पेड़ से गिर पड़ा और वन्ही मर गया ! सभी पक्षियों ने चैन की सांस ली और अब सब इस बात को समझ चुके थे की एकता में ही शक्ति है ..एक साथ जुट कर हर समस्या को सुलझाया जा सकता है ! हर बुराई  को ख़तम किया जा सकता है ! बस जरूरत है हिम्मत से एक कदम उठाने की ..इस दिन के बाद कभी कोई बन्दर उन्हें सताने नहीं आया और वो मिल-जुल कर प्यार से रहने लगे ..
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उदाहरण के लिए  —
एक समय की बात हैं कि कबूतरों का एक दल आसमान में भोजन की तलाश में उडता हुआ जा रहा था। गलती से वह दल भटककर ऐसे प्रदेश के ऊपर से गुजरा, जहां भयंकर अकाल पडा था। कबूतरों का सरदार चिंतित था। कबूतरों के शरीर की शक्ति समाप्त होती जा रही थी। शीघ्र ही कुछ दाना मिलना जरुरी था। दल का युवा कबूतर सबसे नीचे उड रहा था। भोजन नजर आने पर उसे ही बाकी दल को सुचित करना था। बहुत समय उडने के बाद कहीं वह सूखाग्रस्त क्षेत्र से बाहर आया। नीचे हरियाली नजर आने लगी तो भोजन मिलने की उम्मीद बनी। युवा कबूतर और नीचे उडान भरने लगा। तभी उसे नीचे खेत में बहुत सारा अन्न बिखरा नजर आया “चाचा, नीचे एक खेत में बहुत सारा दाना बिखरा पडा हैं। हम सबका पेट भर जाएगा।’


सरदार ने सूचना पाते ही कबूतरों को नीचे उतरकर खेत में बिखरा दाना चुनने का आदेश दिया। सारा दल नीचे उतरा और दाना चुनने लगा। वास्तव में वह दाना पक्षी पकडने वाले एक बहलिए ने बिखेर रखा था। ऊपर पेड पर तना था उसका जाल। जैसे ही कबूतर दल दाना चुगने लगा, जाल उन पर आ गिरा। सारे कबूतर फंस गए।


कबूतरों के सरदार ने माथा पीटा “ओह! यह तो हमें फंसाने के लिए फैलाया गया जाल था। भूख ने मेरी अक्ल पर पर्दा डाल दिया था। मुझे सोचना चाहिए था कि इतना अन्न बिखरा होने का कोई मतलब हैं। अब पछताए होत क्या, जब चिडिया चुग गई खेत?”


एक कबूतर रोने लगा “हम सब मारे जाएंगे।”


बाकी कबूतर तो हिम्मत हार बैठे थे, पर सरदार गहरी सोच में डूबा था। एकाएक उसने कहा “सुनो, जाल मजबूत हैं यह ठीक हैं, पर इसमें इतनी भी शक्ति नहीं कि एकता की शक्ति को हरा सके। हम अपनी सारी शक्ति को जोडे तो मौत के मुंह में जाने से बच सकते हैं।”


युवा कबूतर फडफडाया “चाचा! साफ-साफ बताओ तुम क्या कहना चाहते हो। जाल ने हमें तोड रखा हैं, शक्ति कैसे जोडे?”


सरदार बोला “तुम सब चोंच से जाल को पकडो, फिर जब मैं फुर्र कहूं तो एक साथ जोर लगाकर उडना।”


सबने ऐसा ही किया। तभी जाल बिछाने वाला बहेलियां आता नजर आया। जाल में कबूतर को फंसा देख उसकी आंखें चमकी। हाथ में पकडा डंडा उसने मजबूती से पकडा व जाल की ओर दौडा।


बहेलिया जाल से कुछ ही दूर था कि कबूतरों का सरदार बोला “फुर्रर्रर्र!”


सारे कबूतर एक साथ जोर लगाकर उडे तो पूरा जाल हवा में ऊपर उठा और सारे कबूतर जाल को लेकर ही उडने लगे। कबूतरों को जाल सहित उडते देखकर बहेलिया अवाक रह गया। कुछ संभला तो जाल के पीछे दौडने लगा। कबूतर सरदार ने बहेलिए को नीचे जाल के पीछे दौडते पाया तो उसका इरादा समझ गया। सरदार भी जानता था कि अधिक देर तक कबूतर दल के लिए जाल सहित उडते रहना संभव न होगा। पर सरदार के पास इसका उपाय था। निकट ही एक पहाडी पर बिल बनाकर उसका एक चूहा मित्र रहता था। सरदार ने कबूतरों को तेजी से उस पहाडी की ओर उडने का आदेश दिया। पहाडी पर पहुंचते ही सरदार का संकेत पाकर जाल समेत कबूतर चूहे के बिल के निकट उतरे।


सरदार ने मित्र चूहे को आवाज दी। सरदार ने संक्षेप में चूहे को सारी घटना बताई और जाल काटकर उन्हें आजाद करने के लिए कहा। कुछ ही देर में चूहे ने वह जाल काट दिया। सरदार ने अपने मित्र चूहे को धन्यवाद दिया और सारा कबूतर दल आकाश की ओर आजादी की उडान भरने लगा।


सीखः एकजुट होकर बडी से बडी विपत्ति का सामना किया जा सकता हैं।
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एक बार हाथ की उंगलियों में बहस चल पड़ी। अंगूठा कहने लगा कि मैं सब उंगलियो से बड़ा हूं। उसके बराबर वाली उंगली कहने लगी, “नहीं, तुम नहीं, सब से बड़ी मैं हूं।” बाकी तीनों उंगलियों ने भी इसी प्रकार स्वयं को श्रेष्ठ कहा। निर्णय न हो सका तो सब अदालत में पहंुचे। न्यायाधीश ने अंगूठे से प्रश्न किया, “भई मियां अंगूठे, तुम कैसे बड़े हो गए?” अंगूठे ने कहा, “मैं सब में से अधिक पढ़ा-लिखा हूं। अनपढ़ लोग हस्ताक्षर के स्थान पर मेरा ही उपयोग करते हैं।” अंगूठे के बराबर वाली उंगली ने कहा, “मैं इसलिए बड़ी हूं कि मुसलमान भाई मुझे शहादत की उंगली कहते हैं। मैं बताती हूं कि ईश्वर एक है। सब की पहचान के लिए भी मेरा उपयोग किया जाता है।”
उसके बाद वाली उंगली ने कहा, “मैं इसलिए बड़ी हूं कि आप लोगों ने मुझे नापा नहीं। नाप कर तो देखो, लम्बाई अर्थात कद मे सब से बड़ी मैं ही हूं।”
चौथी उंगली ने कहा, “मैं इसलिए बड़ी हूं कि मेरी गरदन में लोग सोने, चांदी, हीरे-जवाहरातों की कीमती अंगूठियां डालते हैं।”
सब से छोटी उंगली ने कहा, “मैं इसलिए बड़ी हूं कि शर्त लगाने के लिये मेरा उपयोग किया जाता है।”
न्यायाधीश सोच में पड़ गये। फिर आदेश दिया कि प्लेट में एक रसगुल्ला लाया जाए। रसगुल्ला आ गया, तो उन्होंने अंगूठे से कहा, “रसगुल्ला उठाओ।”
अंगूठे ने भरसक प्रयत्न किया, किन्तु वह रसगुल्ला उठा न सका। फिर अंगूठे के बराबर वाली उंगली से कहा गया। वह भी रसगुल्ला न उठा सकी। इस प्रकार बारी-बारी सारी उंगलियों से कहा गया, किन्तु कोई भी अकेले रसगुल्ला न उठा सकी। तब न्यायाधीश ने पांचों उंगलियों से कहा, “अब तुम सब मिलकर उठाओ।”
पांचों उंगलियों ने एक साथ मिल कर रसगुल्ला उठा लिया। न्यायाधीश बोले, “आप लोगों ने अलग-अलग प्रयत्न किया, तो रसगुल्ला उठा नहीं सकीं। सब ने मिल कर उठाने की चेष्टा की, तो रसगुल्ला आसानी से उठा लिया। इसलिए आप में से कोई एक बड़ा नहीं है। आप सभी बड़ी हैं। 
यह भी समझ लें कि एकता से मिलजुल कर रहें तो कोई काम कठिन नहीं। एकता में ही शक्ति है।”

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